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________________ १४२ सिरिअणंतजिणचरियं एत्तो पहु ! दक्खामंडवम्मि, कयलीहरंतरम्मि ठिया । मज्जं पियंति सह पिययमाहि सिंगारिणो केइ ॥ १७९० ॥ गायंता वि सदुक्खं रुयंति कुव्वंति न च्चिराचिरणं । खामंति य पयलग्गा, पीयमहूणऽहव न विवेओ ॥ १७९१ ॥ पत्तो य विलसिरपया, कुवलयनयणा वियासिकमलमुही । चक्कमिहुणत्थणी कामिणि व्व सरसी तरंगभुया ॥ १७९२ ॥ तीरट्ठिय एगंतरिय-हंस-जलवायसावली वलया । वणस्सिरी कयमोत्तियरिट्ठालंकारकलिय व्व ॥ १७९३ ॥ भुवणाहिडें एसा कणयपंकयासीणभमरविंदेहिं । कणयट्ठियनीलमणीहिं, रेहए भूसियंगि व्व ॥ १७९४ ॥ तडनियडप्पडिबिंबिय, वडसाहा पक्कफलभरं धरिउं । एसा आमिसलुद्धं मीणउलं सामि ! वेलवई ॥ १७९५ ॥ (कुलयं) इय दंसंतो बउलो, पहुणो उज्जाणवइयरे विविहे । सह जगगुरुसुरकरिणा, सो सरसीपालिमारूढो ॥ १७९६ ॥ एत्थंतरम्मि सक्काएसागयपालयाभिह सुरेण । रइयं ति भूमियं रयणमंदिरं पालिसिहरम्मि ॥ १७९७ ॥ जं सच्छफलिहतलगिहसिहरट्ठिय पंचवन्नमणिभवणं । पहु पुव्वपरिचएण व पतं पुप्फोत्तरं विमाणं ॥ १७९८ ॥ जं चउपासप्पसरंतरयणकिरणालिफुरणदुनिरिक्खं । नज्जइ संखाइक्कंतसूरपरमाणुघडियं व्व ॥ १७९९ ।। मणिथंभयग्गठियसालिहंजियाविजियपोढरमणियणं । उल्लोयपलंबिरमोत्तियावलीचंदकिरणिल्लं ॥ १८०० ॥ मणिभित्तिभायभासंतमत्तवारणयनयणनियरेणं । अवलोयंतं व वसंतऊसवुक्करिसमइहरिसा || १८०१ ॥ जं डज्झिरकप्पूरागरुब्भवं धूमपडलमुग्गिरइ । ठाणट्ठाणरइयारिट्ठरयण-भवणकंतिजालं व ॥ १८०२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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