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सिरिअणंतजिणचरियं
नाह ! कुचेलो त्ति दरिद्दिओ त्ति ववहारकरणअक्खमो त्ति । न निमंतिओ धुवं कुणसु नियमणे मा तुमं भंतिं ॥ ८९६९ ॥ न कयाइ मज्झ भणियं तए कयं कुणसु संपयं पि तुमं । जं पडिहाइ मणे तं इय जंपिय सा ठिया मोणे ॥ ८९७० ॥ इय संगयं पि भणिरि अवगन्निय तं गओ सवीवाहे । अहव हियाहियविसए कुओ विवेओ जडमईण ? ॥ ८९७१ ॥ अब्भक्खणभद्दासणउववेसणपायसोहणप्पमुहं । विरइज्जतिं पेच्छइ पडिवत्तिं ईसरजणस्स ॥ ८९७२ ॥ तंबोलकरे विरईय विलेवणे पत्तपट्टओ य वत्थे । भुत्तुत्तरे पलोयइ निग्गच्छंते धणड्ढनरे ॥ ८९७३ ॥ अब्भुक्खणंपि न लहइ आसण-पय-सोयणाई कत्तो से । तो तंबकडाहिजलेण अब्भुक्खिया धोयए पाए ॥ ८९७४ ॥ उवविट्ठो पडिवालइ आमंतणमत्तणो निरक्खई य । वाहरियगोरवेणं भोइज्जतं परजणं पि ॥ ८९७५ ॥ विहिय अदिस्सीकरणे व्व तम्मि दिट्ठि पि न खिवए को वि । दूरे चिट्ठ पक्कव्वंजणप्पमुहभोज्जं से ॥ ८९७६ ॥ तस्स तह संठियस्स वि दिणमद्धप्पहरसेसयं जायं । भोज्जत्थे न विसंति पेच्छइ पज्जंतपतिं सो ॥ ८९७७ ।। चिंतइ य कि अवन्ना इमाणमहवाउलत्तमच्चंतं । जं मह नियडाभोयणकज्जे नीया न चेव अहं ॥ ८९७८ ॥ ता जामि सममिमेहिं भुंजामि निए गिहम्मि का लज्जा ? | एवं परिभावंतो पत्तो नरपंतिमज्झम्मि ॥ ८९७९ ॥ दोपाससंदभद्दासणोवविट्ठाण ईसरनराणं । मज्झे उवविट्ठो गहियभायणो विट्ठरे नीए ॥ ८९८० ॥ पित्तलपडिग्गहट्ठियगुरुपरियलजुयलमिलणअंतरियं । भूमिगयभायणं से नयणाण सगोयरं जायं ॥ ८९८१ ॥
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