________________
६९॥
गंधबंधुरकहा जो वसिओ धवलहरे विचित्तचित्ते ति-भूमिए सययं । सो वसइ ताव जलसीयदूमिओ जरकुडीरम्मि ॥ ८९५६ ॥ जो मंदपवणपरितरलसिक्किरिच्छायमस्सिओ भमिओ । विक्कयकज्जे सो भमइ कट्ठहरे य कयच्छाओ ॥ ८९५७ ॥ जा संसुत्तो दोलाचलंतपल्लंकतूलियासु सया । सो सुयइ दब्भसत्थरयमुवगओ बाहुउवहाणो ॥ ८९५८ ॥ पडिजद्दरंबरेहिं सिंगारा जेण सव्वया विहिओ । बहुछिड्डदंडियाहिं परिहइ सो मलिणवत्थाई ॥ ८९५९ ॥ जो गरुयतुरंगसुहासणेसु आरुहिय सव्वया भमिओ ।। परियडइ फुडणखंतपयजुओ सोणुवाहणओ ॥ ८९६० ॥ नवरं इस्सरियम्मि व दारिद्दे वि हु पिया न तं मुयइ । उदयक्खएसु दइए समचित्ताओ सईओ सया ॥ ८९६१ ॥ अइसुहिओ होउं सो अच्चंतं दुहभरं समणुहवइ । पाविय संपन्नसिरी किं खंडिज्जइ न य मयंको ॥ ८९६२ ॥ समयंतरम्मि कम्मि वि वीवाहे सिट्ठिपुत्तकन्नाए । पारद्धे नयरजणो निमंतिओ भोयणनिमित्तं ॥ ८९६३ ॥ सो चिंतइ अज्जनिमंतणं इहागच्छिही अओ मज्झ । वन्नणकज्जे जुज्जइ खडाई आहरणगमणंतो ॥ ८९६४ ॥ गेहे च्चिय अत्थिस्सं जमिहं निमंतयनरो खडप्फडिही । इय चिंतंतो तत्थ ट्ठिओ दिणप्पहरजुयलं जा ॥ ८९६५ ॥ मज्झं दिणे वि जाए जा को वि न से निमंतओ पत्तो । ता परिभावइ एवं नाहं नाओ गिह ठिउ त्ति ॥ ८९६६ ॥ ता जामि तत्थ सयमवि नियघरगमणम्मि मज्झ का लज्जा ? | अगयस्स पुणो सयणा लहु रूसिस्संति जा जीवं ॥ ८९६७ ॥ इय कहियं कंताए सा जंपइ नाह ! मोहमढो सि ।। धणिणो सहोयरेण व दरिद्दिणा किं न लज्जंति ॥ ८९६८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org