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अहवा किं पयरिक्के, हयाए एयाए ता पहायम्मि । नयणं जणपच्चक्खं विडंबिउं मारइस्समिमं ॥ ४५०२ ॥ इय परिभाविय कोसे खित्तं खग्गं निवेण सिग्घं पि । “ लंघंति न चेव नायं, कुविया विहु उत्तमा अहवा" || ४५०३ ॥ तो तीयुत्तं रन्ना, महासई विहु महासइ व्व पिया । आणीया इह अहवा, दोसं न नियंति पेम्मं से || ४५०४ ॥
सिरिअणंतजिणचरियं
तो भइ महिंदो, मा राय - विरुद्धं पिए । पयंपेसु । सा आह किं विरुद्धं विक्खायमिमं पुरजणे जं ? ॥ ४५०५ ॥ तयणु नरिंदो नियनिक्कलंककंताकलंकसवणेणं । अच्चंतदूमियमणो वलिओ पत्तो सवासगिहे ।। ४५०६ ।। पल्लंकम्मि पसुत्तो, चिंतइ कह विमलसीलकलियं पि । पावा पियं कलंकइ, सया वि सद्धम्मकम्मरयं । ४५०७ ।। जइ इंति नयपराण वि एरिस असतं जसाई सत्ताण । ता अन्नयरयाणं, का वत्ता इयरमहिलाण ? ।। ४५०८ ।। अवि परिवत्ती जायइ, पीयूसरसस्स वि सहावेण ।
न तहा वि सिविणयम्मि वि मइलइ रयणावली सीलं ॥ ४५०९ ॥ अवि उव्वहंति कलिकालकलुसिया सज्जणा वि दोजत्तं ।
न तहावि सिविणयम्मि वि मइलइ रयणावली सीलं ॥ ४५१० ॥
अवि पायालं सग्गम्मि जाइ सग्गो वि जाइ पायाले ।
न तहा वि सिविणयम्मि वि, मइलइ रयणावली सीलं ॥ ५४११ ॥ अवि रविबिंबं अत्थं गयं, पुणो कुणइ नेव इह उदयं ।
न तहा वि सिविणयम्मि, वि मइलइ रयणावली सीलं ॥ ४५१२ ॥ एमेव महापावं, जइ को वि समज्जए समज्जउ ता । मह पच्चक्खं चिय, निक्कलंकसीला पुणो देवी || ४५१३ ॥ एयाए निय पियं पइ पयंपियं जं समग्गलोए वि । दुस्सीलत्तं नायं गोसे ता तं निहालेमि ॥ ४५१४ ॥
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