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________________ रयणावलिकहा ३०५ एक्कस्स पहरिसेणं बीयस्स वि होइ पहरिसुक्करिसो । एक्कस्स वेमणस्सेण वेमणस्सं तदियरस्स ॥ ३८९२ ॥ तं माणुसाण दोण्ह वि न कयाइ वि होइ पणयकलहो वि । तेणेक्कचित्तयाइं इमाइं इय ताण विक्खायं ॥ ३८९३ ॥ तन्नेहमई वत्ता कयाइ जाया नरिंदअत्थाणे । चिट्ठइ दिणमेत्तं पि हु न विउत्तं मंतिमिहुणम्मि ॥ ३८९४ ॥ रायाह पंचदियहा नेहा नो जाव जीविया हुंति । ते वि हु पायं कत्थइ तओ कुओ एगचित्तत्तं ॥ ३८९५ ॥ केसि पि होइ नेहो अविओगे जाइ सो विओगम्मि । जं से जीवियमणवरयदंसणं तं विणा मरणं ॥ ३८९६ ॥ कीरतम्मि एवं च विसिलेसो मिहुणयाण होइ तहा । जह विहडिओ सिणेहो न कयाइ समेइ संघडणं ॥ ३८९७ ॥ सो च्चिय नेहो अणुवासरं पि जम्मिं पवड्ढमाणम्मि । मूढेहिं न धम्माइं गणिज्जए जेणिमं भणियं ॥ ३८९८ ॥ धम्मत्थदेहजसजीवियाई न वडंति संसए जम्मि । पेम्मतं पि भणंता वयंसलोया न लज्जति ॥ ३८९९ ॥ . सो वि हु जइ होइ समो परोप्परं वद्धमाणरसपसरो । ता सुंदरं इहरहा विडंबणा जेणिमं भणियं ॥ ३९०० ॥ एक्कदिसा रम्मेण वि अलाहि नेहेण सिहिदलच्छविणा । थुणिमो सम दो पासिं पिंगयपिच्छोवमं पेम्मं ॥ ३९०१ ॥ भणियं सहाजणेणं संभवइ इमं पि नवरमेयाई । अइनिबिडसिणेहाइं ता विसिलेसो कहं भविही ॥ ३९०२ ॥ रायाह तह जइस्सं इमाण जह भिन्नचित्तया भवइ । तुम्हाण पूरइस्सं कोउयमेयं समग्गाण || ३९०३ ॥ इय मंतिविहूणसहाजणेण सह जंपियं महीवइणा । समइक्कंते काले केत्तियमित्ते वि ताण तओ ॥ ३९०४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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