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तवोवरिचंदकंतकहा नवरं रिउस्सिणायाए, संगमो मह तए समं जाओ । अम्मा-पिऊण आमिलसु जह पईई हवइ तेसिं ॥ ४८७७ ॥ जइ कह वि देव्वदुव्विलसिएण मह होइ गब्भसंभूई । ता ससुर-पिइहरेसुं लहेमि नेगस्थ वि पवेसं ॥ ४८७८ ॥ तेणुत्तं तेसिं चिय अप्पं गोवेमि सुब्भुनन्नेसिं । जं भज्जा मिलणत्थे समागओ हं ति लज्जामि ॥ ४८७९ ॥ जइ कह विहेइ तुह गब्भसंभवो तं तुम मह गुरूणं । कहिऊणं वुत्तंतं, दंसिज्जसु अंगुलीयमिमं ॥ ४८८० ॥ इय जंपिय नियकरअंगुलीए वज्जावली वलइयं तं । नवइंदनीलकलियं, अप्पइ से मुद्दिया-रयणं ॥ ४८८१ ॥ भणई य गुरुगुणगेहं देहं तं सुब्भु आवयाहिंतो । पालेज्ज पयत्तेणं, जं जेण हं चेव जीवामि ॥ ४८८२ ॥ जइ अणुकूला मह विहि-मण-पवणा सउणसंगया सुयणु ! । होहिंति सिग्घमेव य ताहं इह आगमिस्सामि ॥ ४८८३ ॥ इय भणिउं सम्माणिय सम्मुहिं सहयरिं समारूढो । तद्दइयाकारियभोयणम्मि भारुडपक्खिम्मि ॥ ४८८४ ॥ पेच्छंतीए तीए गईए गरुईए गयणमग्गेण । उड्डेउं भारुडे, नयणाणमगोयरे जाए || ४८८५ ॥ सहसा पवत्तपियविरहअंसुभरदंतुरच्छिसयवत्ता । न खणं पि रइं पावइ, पावइ जलिरंगजट्ठि व्व ॥ ४८८६ ॥ तिक्खण-विउत्त-पिय-दुहिय-माणसा माणमासलस्सासा । अइकिच्छेण मयच्छी ठिया पहूपाणधरणम्मि ॥ ४८८७ ॥ रणरणयुव्विग्गमणा मणायमवि नेव कुणइ करणिज्जं । संजायसव्वसारावहारसुन्न व्व परिवसइ ॥ ४८८८ ॥ चिटुंतीए तीए ईय असरिसअसुहविहुरियंगीए । पयडीहूओ गब्भो सद्धि दुस्सहकुकम्मेण ॥ ४८८९ ॥ .
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