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रयणसुंदरकहा मा साहसं ति मा साहसं ति भणिरो गओ समीवे से । लंबंतदेहठियनिबिडपासओ णमियवयणाए ॥ ६८६४ ॥ करणक्कमेण वामेण बाहुणालिंगिज्जंतयं धरिउं । दाहिणकरछुरियाए छिंदिय पासं महिं पत्तो ॥ ६८६५ ॥ तं धरिडं उच्छंगे संबाहिय कंठकंदलं तीए । वत्थंचलानिलेणं सा तेण कया सचेयन्ना ॥ ६८६६ ॥ उम्मीलियाई तो तीए झ त्ति कन्नंतपत्तनयणाई । कुमुयाई पिव कोमलरायंगयकरपयारेण ॥ ६८६७ ॥ ससि-जोण्हाए दोन्ह वि परियाणंताण विहियमन्नोन्नं । असरिससिणेहजणगं कामीणं दूइयाइ व्व ॥ ६८६८ ॥ सुत्ता एवमवन्नं मा कुणसु पियस्स चयसु अंकं ति । भणिया वयंसियाए व लज्जाए उठ्ठिया अंका ॥ ६८६९ ॥ कुमरेणुत्तं किं सुयणु ! साहसं एरिसं तए विहियं । कल्लाणओ जमप्पा खित्तोऽणत्थंमि विच्छिन्ने ॥ ६८७० ॥ सो आह नाह ! मह तुह विरहे पाणा खणं पि मा हुंतु । तुमए समगं ते चेव कोडिकप्पाउया संतु ॥ ६८७१ ॥ जं मए पुव्वम्मि भवम्मि सामि ! सुकयं जमज्जियं तेण । एवंविहम्मि समए जाओ जोगो इहम्हाण ॥ ६८७२ ॥ ईय जंपिय तीयुत्तं पहु ! गमणागमणसुहदुहाई । कहसु त्ति कुमारो वि हु तो से साहइ नियं चरियं ॥ ६८७३ ॥ भणियं च पिए ! मह विरहियस्स सेणाजणस्स जं जायं । सुहमसुहं वा तं कहसु जाव अम्हेत्थ मिलियाई ॥ ६८७४ ॥ तीयुत्तं पहु ! तुब्भे तलायमवलोइडं अडइमडिया । तो तुम्ह सव्वहरिणो हरिणो हरिणा इव पलाणा ॥ ६८७५ ॥ तुम्हंगरक्खणत्थं पेरिज्जंता वि कडयसामीहिं । जमिह सीहपहं पि हु न नियंति हया भयाभिहया ॥ ६८७६ ॥
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