SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अणंतजिणवण्णणं १३७ विहसियरत्तासोया, कलकंठरवा पकामकलिया य । सामि ! वसंतसिरी वि हु पिय व्व तुह संगमहिलसइ ॥ १७२६ ॥ ता देव ! ताओ माणह माणह रुवाओ मुंचह मुहेव । न सयंवराउ कन्नाउ जं विमुंचंति जगगुरुणो ॥ १७२७ ॥ आयन्निऊण उज्जाणपालविन्नत्तियं पणयपहुणो ।। निव-मंति-मंडलेसर-सामंता विन्नवंति इमं ॥ १७२८ ॥ काऊण पसायपरं चित्तं आरामपालविन्नत्तिं । सहलं कुणंतु पहुणो गमणेण वसंतकेलिकए || १७२९ ॥ कोऊहलावलोयणविमुहो वि सहाजणोवरोहेण । मन्नइ तमकामा वि हु कुणंति गुरुवो परुत्तं पि || १७३० ॥ काउं कयत्थमुज्जाणपालयं बहुपसायदाणेण । रइडं वसंतकुसुमाभरणेण समग्गसिंगारं ॥ १७३१ ॥ तो भूवइ-सेणावइ-मंडलि-महाअमच्च-सामंता । थइयावहंगरक्खपडिहारप्पमुहपहुणो य ॥ १७३२ ॥ तह सेट्ठि-सत्थवाहेसरा वि सिंगारगारवग्घविया । संतेउरी सपउरा सपरियणा गरुयरिद्धीण ॥ १७३३ ॥ करि-तुरय-रह-सुहासण-लंघिणिया-बहिल-नरविमाणाई । आरुहिउं संपत्ता सव्वे वि नरिंदपासाए ॥ १७३४ ॥ तो जगगुरुणो मणिभूसणेहिं समलंकिओ विजयहत्थी । उवणीओ करिपहुणा भणिओ आरुहह पहुणो ति ॥ १७३५ ॥ एत्थंतरम्मि चुन्नियमुत्ताहलदलविणम्मियंगो व्व ॥ अणवरयगयणगंगाजलण्हाणसेयदेहो व्व ॥ १७३६ ॥ बहुकालखीरनीरहिनिवाससंजायधवलियमगुणो व्व । सव्वंगसमालिंगियनियबंध व्व अमयमिस्सो व्व ॥ १७३७ ॥ रणविजियसमग्गकरेणुरायसंजायकित्तिकलिओ व्व । गोसीसचारुचंदण-रसरईयविलेवणसिओ व्व ॥ १७३८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy