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________________ १३१ अणंतजिणवण्णणं सइसंपुन्नं पहु-मुहमयंकमो लग्गिउं व संपत्तो । भालच्छलेण अद्धक्खीणतणू सामपक्खससी ॥ १६४८ ॥ सहइ तमालदलालि व्व थूलघणसलिलबिंदुदंतुरिया । मुत्ताजालयकबरा जयबंधवचिहुरकुरवाली ॥ १६४९ ॥ एवं समग्गसोहाधरंग-चंगत्तविजियतिजयजणो । तिहुयणपहू सलीलं कीलइ सह बहुवयंसेहिं ॥ १६५० ॥ दटुं अच्चब्भुयरूवरमणमुल्लसियअसमसोहागं । नरनाह-मंति-सामंत-मंडलीया वि चिंतंति ॥ १६५१ ॥ अम्ह सुयाणं नवजोव्वणाण सव्वंगसुंदरंगीण । जुत्तोऽणंतकुमारो वरो वरो नूण न उणऽन्नो ॥ १६५२ ॥ इय चिंतिऊण नियरूवरामणीयंगविडंबियरइओ । सोहगुवग्गअंगाओ गुरुगुणुल्लासचंगाओ ॥ १६५३ ॥ मयणावली-सुकंता-मयंकलच्छी-जया-विलासवई । चंदसिरी-कामलया-जयावली-पमुहकन्नाओ ॥ १६५४ ॥ . गुरुरिद्धिवित्थरेणं आणेऊणं सयंवराउ सयं । जणयाईहिमणंतो कुमरो वीवाहिओ तत्थ ॥ १६५५ ॥ मज्झम्मि ताण रमणीरयणं मयणावली गुणेक्करिहं ।। सीलसमलंकियंगी अंगीकयरमणिजोग्गकला ॥ १६५६ ॥ वियसियपंकयपरिमलपरिमिलियब्भमरमालपंति व्व । जीसे घणसामलकुंतलेसु कुरुलावली सहइ ॥ १६५७ ॥ जीए मुहे छणचंद व्व जणपियत्तं व लसयलायन्नं । जोण्ह व्व ववयणकंती मउ व्व मयमय-मउतिलओ ॥ १६५८ ॥ रेहति जीए घणसंगया भुयाविचित्ततुंबया विहिया । रइपीइविणोयकए वीणादंड व्व मयणेण ॥ १६५९ ॥ उल्लसिर-सेय-नहसुत्तिकरभरं जीए सहइ करजुयलं । हिययट्ठियपियवीयणचालियसियचामरजुयं व ॥ १६६० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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