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________________ १३० सिरिअणंतजिणचरियं मोक्खो विव सिद्धेणं सियपक्खछणो व्व पुन्नचंदेण । तिजयजणमणहरेणं अलंकिओ जुव्वणेण पडू || १६३६ ॥ तहाहि - जस्सारुण-चरण-नहुल्लसिरपहा नमिरमहिहरिंदाण । .मसिणियधुसिणरसेण व रंजइ निच्चं पि हु सिराइं ॥ १६३७ ॥ परिवद्धमाणचित्तं, सुकुमारं भूरिविलसिरच्छायं । बहुपुन्नपुरिसविंद, व सामिणो महइ जंघजुयं ॥ १६३८ ॥ सीहस्स व सुसिलिट्ठं, कडीतडं वित्थडं भुवणगुरुणो । सोहइ अईव तुच्छो, मझो पहु भवविलासो व्व || १६३९ ॥ परिविलसिरसिरिवच्छं, वच्छत्थलं भाइ भुवणनाइस्स । भवभमणरीणभविययणदिन्नघणनिव्वुइच्छायं ॥ १६४० ॥ कप्पलयाओ व बाहाओ, जस्स मणिभूसणाभिरामाओ । जायगजणस्स सययं, वंछियफलयाओ जायंति ॥ १६४९ ॥ बहुरयणउम्मियाभा, जस्स करा सायर व्व सोहंति । संख-करि-मयर-मीणुल्लसंतसिरिवच्छसच्छाया || १६४२ ॥ लद्धाउ व्व स्वाहरियअसुर-नर-अमर-लोयलोयणओ । सोहंति सामिणो, कंठ-कंदले तिन्नि रेहाओ || १६४३ ॥ नवपउमगयरयणप्पहाभिरामा विराइ अहरदले । रायकयपत्थाणो व्व नज्जए सामिहिययाओ || १६४४ ॥ आभाइ कुंदकलियावलिसमपहुदंत-पंति-कंतिभरो । हिययुल्लसिरविवेय-खीरोयहिनीरपसरो व्व || १६४५ ॥ पहुणो सरलसहावा, नासा सप्पुरिसचित्तवित्ति व्व । कन्नजुयलं सुवन्नालंकारं सहइ सत्थं व ॥ १६४६ ॥ मुत्ताहलच्छडासारसच्छहो नाहनयणजोण्हभरो । लीलावलोयणम्मि पसरह करुणारसोहो व्व ॥ १६४७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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