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सिरिअणंतजिणचरियं जइ होइ तारयाणं गयणे अंतो मणीण व समुद्दे । ता नियपहुचरियाणं पज्जवसाणं वयं मुणिमो ॥ ६४३६ ॥ इय निययनाहअब्भुदयवन्नणुप्पन्नपरमपरिओसा ।। ते सव्वे वि हु जाया सोक्ख-सुहा सिंधुमग्ग व्व ॥ ६४३७ ॥ घुसिणघणसारचंदण-मयणाही-अगरु-सुरहिकुसुमेहिं । परिवारजुओ वि विसज्जिओ सुरो पूईडं पहुणो ॥ ६४३८ ॥ कइया विअरिओ सिणायए पट्टदेवीए अंबयफलं तं । निवपाससमुवलद्धं उवभुत्तं तोसवसयाए ॥ ६४३९ ॥ भूवइणा सह काऊण कामकेलिं सुहेण सुत्ता सा । रयणीविरमणसमयम्मि सिविणयं नियइ समपयई ॥ ६४४० ॥ विप्फुरियफारकरप्पयारहयतमभररयणरासिं । पेच्छिय निय उच्छंगम्मि पाविया झ त्ति पडिबोहं ॥ ६४४१ ॥ तव्वेलं चिय काउं विणिद्दमवणिंदममयमहुरसरं । सिविणयसच्चवियं रयणरासिमाइक्खए तस्स ॥ ६४४२ ॥ तं सोउं सो उल्लसियतोसपोसेण रिओ भणइ । देवि ! सुओ तुह होही नूणं गुरुगुणरयणरासी ॥ ६४४३ ॥ सोऊण सिविणयत्थं तीए नियउत्तरीयअंतम्मि । एवं होउ त्ति पयंपिरीए बद्धो सउणगंठी ॥ ६४४४ ॥ तो रन्नाणुन्नाया मंथरगई रणझणंतमंजीरा । संपत्ता सुद्धते पारद्धा गब्भमुव्वहिउं ॥ ६४४५ ॥ तीए उयरेण सद्धिं वद्धइ असुहं सवत्तिचित्तेसु । मुहं तीए लवणिमाए तो सो पसरइ नरिंदस्स ॥ ६४४६ ॥ तीए सिहिणेहिं सद्धिं सामी हूयं मुहं रिउ-निवणे । उल्लसियं कित्तीए सह तीए तनूए पंडुत्तं ॥ ६४४७ ॥ जे जे दोहलया तीए हुंति पूरइ नरेसरो ते ते । सामन्ना वि हु एवं कुणंति किं नो महीनाहो ॥ ६४४८ ॥
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