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________________ ३५५ सीलोवरिरयणावलीकहा देवी दिने रयणासणम्मि भूमीवई समुवविट्ठो । उचियासणे निविट्ठा, देवी वि हु रायआणाए ॥ -४५४१ ॥ सामाणणं पहु पेच्छिऊण पुच्छइ पिया कहह पहुणो । ससिमंडलमिव दिवसे विच्छायं किं मुहं तुम्ह ? ॥ ४५४२ ॥ रायाह पिए ! अहमिहिमागओ तुज्झ कहणकज्जम्मि । इय भणिय गीयआयन्नणाइ सव्वं पि से कहइ ॥ ४५४३ ॥ दृस्सीलया कलंकं जायं अत्ताणयम्मि सोऊण । तीए सकज्जलवाहसमयससी विव विहाइ मुहं ॥ ४५४४ ॥ कज्जलजुयवाह-पवाह-पट्ठईओ सहति वयणे से । अच्चंतकसिणतारा कंतिस्सेणीओ उवसहति ॥ ४५४५ ॥ चमरानिलउल्लासियमुहचंदे अलयवल्लरीओ व्व । अहवा विहसिय पउमे, विलसिरभमरावलीओ व्व ॥ ४५४६ ॥ भणियं निवेण किं देवि ! रुयसि भवणवासमावसंताण । सत्ताण कलंका इंति आगओ तं तुहे सो वि ? || ४५४७ ॥ तीउत्तं आगच्छड पहु ! सो जो एइ कयविणासाए । अविणासियम्मि एसो समागओ तेण मे दुक्खं ॥ ४५४८ ॥ त च्चिय नंदंतु चिरं, महासईओ महप्पभावाओ । कइया वि हु संपत्तं, जासि न कलंक-कलुसत्तं ॥ ४५४९ ॥ जाओ पुणो सामि ! कलंककलुसियाओ धरंति नियपाणे । जीवंतमयाणं ताण इह जए कहसु का गणणा ? ॥ ४५५० ॥ जइ सच्चं चिय तुह वल्लहा अहं सामिसाल ता मज्झ । दिव्वाइणा पयारेण देसु सुद्धिं जणसमक्खं ॥ ४५५१ ॥ तो साहु साहु साहु त्ति जंपिउं तं पसंसिउं राया । अइवाहिऊण रइणिं गोसम्मि सहाए उवविट्ठो ॥ ४५५२ ॥ आइसिउं पडिहारं, वाहरियमहायणं भणइ एवं । भो भो कावि अउव्व सकिमत्थि वत्ता पुरस्संतो ? ४५५३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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