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सिरिअणंतजिणचरियं ईय चिंतासंतत्तो वुत्तो कंताए नरवई एवं ।। "मा तम्मसु पियपुच्छसु वरमइसयनाणिणमिमीए ॥ ८७३६ ॥ बहुमन्नियपियवयणो तणयं गहिउं गओ विदेहं सो । माणिक्कपुरारामे दठूणं केवलिं नमइ ॥ ८७३७ ॥ उवविसिऊणं सोऊण देसणं पत्तअंतरो नमिउं । पुच्छइ किं मह दुहिया पहु ! पुरिसव्वेसिणी जाया ॥ ८७३८ ॥ तो भणइ विमलनाणी आयन्नसु राय ! कारणमिमीए । जेणेसा संजाया विद्देसपरा पुरिसविसए ॥ ८७३९ ॥ (नेवज्जपूयाए भुवणपमोयकहा) सालीण जणावासे रइरूवकुलंगणे जणियसोहे । हसियसरो व सरोहे सालिपुराभिहपुरे रम्मे || ८७४० ॥ अत्थि नयज्जियबहधणदाणकयत्थी कयत्थिसंघाओ । सालिप्पियाभिहाणो धणिप्पहाणो धणी विणई ॥ ८७४१ ॥ अवरो वि खत्तिओ तत्थ अस्थि रणसूरनामओ चाई । नवरं तणुविहवो नो पायं चाइम्मि वसइ सिरी" ॥ ८७४२ ॥ चाईयणकरपरंपरपरियत्तणजायगुरुयखेय व्व । अत्था किविणघरत्था सत्थावत्थासुयंति व्व ॥ ८७४३ । तस्सोभयहा वि पिया विणयवई नयपरा सुसीला य । ईसीसि साहिमाणा अहव न दोसं विणा कोई ॥ ८७४४ ॥ भत्ता पियमणुवत्तइ पिया वि पइणोणुवत्तए चित्तं ।। वद्धइ दुन्ह वि पणओ जइ वा नेहो न थट्टाण ॥ ८७४५ ॥ सालिप्पियस्स कज्जाई साहए सो वि देइ दविणं से । न निओ वि कुणइ कज्ज सुहियाए किं पुणन्नजणो ॥ ८७४६ ।। जं किंपि लहइ कत्थइ तमप्पए आणिउं पियाए सो । पाणा वि जम्मि देया तत्थ अदेयं किमवि नत्थि ॥ ८७४७ ॥
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