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________________ पढमपत्थावो समलंकियतारुन्ना, कंचणवन्ना ललामलायन्ना । सुवियड्ढपोढसहिविंदसंगया कीलए बाला ॥ ९३ ॥ सव्वुत्तमसोहग्गं, असरिसरूवं विराइसिंगारं । तं दट्टुं पुरतरुणा, पहुणो न हवंति समणस्स ॥ ९४ ॥ नियमणनिजंतणपरा निग्गहियसमग्गइंदियप्पसरा । ईसीसिपरायत्ता जं दटुं हुंति मुणिणो वि ॥ ९५ ॥ मन्ने कहिं पि कुमरिं दट्टुं देवा विओयजायदुहा । पावंति नेव निई, अस्सुवणा तेण भण्णंति ॥ ९६ ॥ (कमलावलीरायकन्नाए बहियाविहारो पुक्खरिणीआरोहणं च) कइया वि सा सुहासणमारुहिय सहियणेण परियरिया । लंबंतमोत्तिओऊलछत्तअंतरियरवितावा ॥ ९७ ॥ चलिरकर-कणिरकंकणरमणीदोधुव्वमाणसियचमरा । नीहरिया पुरपरिसरधराविहारं समणुभविउं ॥ ९८ ॥ परिमियपरिवारा सरिय-सर-पवाराम-मढ-विहारेसु । भमिरी पत्ता पुक्खरिणिमेगमच्चंतरमणीयं ॥ ९९ ॥ जा मुत्तासेलसिलाबंधपहाधवलियं जलं वहइ । खीरोयमहणसंभूयअमरसंगहियअमयं व्व ॥ १०० ॥ जीए पविसिररमणियणरयणभित्तिब्भमंतपडिमाओ ।। लक्खिज्जति जणेणं, सक्खं जलदेवयाओ व्व ॥ १०१ ॥ सारसचंक्कमणा सगडि व्व पियवजा सुहरिसहिया परमारविंदउम्मत्तिसुंदरा अब्बुयमहि व्व ॥ १०२ ॥ चउदाररयणतोरणचलधयरणझणिरकिंकिणिगणाए । मुत्तुं सुहासणं रायकन्नया तीए आरूढा ॥ १०३ ॥ समवयसिंगारविरायमाणससिणेहसहिभुयालग्गा । अवलोयइ पुक्खरिणीए रामणीयगमणुक्करिसं ॥ १०४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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