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________________ ३२४ सिरिअणंतजिणचरियं दाऊण मग्गणकहियकणयमवलोयए मुहं तीए । दुलहत्त ईसराणं तं जं लब्भइ धणेणावि ॥ ४१३९ ॥ तारामेलयकाले अन्नोन्नं ताई दोन्नि वि नियंति । कयदंसणंतराए मोत्तुं कोवेण व निमेसे ॥ ४१४० ॥ पुन्नाक्खरवुच्चरेण पुव्वं विप्पेण पन्नइठं से । लोयणमिलणेसा पईव ताण करा वि मेलविया ॥ ४१४१ ॥ मंडलयचउक्केणं जलणस्स पयाहिणाओ दिताई । चउगइपरियडणं पिव भवस्स विसएहिं दंसंति ॥ ४१४२ ॥ खेयरवइणा दिन्ना कुमरीकरमोयणे सिरी पउरा ।। न हि माणुसाओ अवरं वरमत्थि न दिज्जए जं से ॥ ४१४३ ॥ नियपरपक्खे नराणं वत्थाभरणाई दो वि वियरंति । अच्चंतमुदाराणं न नियम्मि परम्मि व विसेसो || ४१४४ ॥ वज्जिरवद्धावणयच्छंदपणच्चंतकुलबहूविसरो । उग्गीयमंगलावलिविलया गिज्जंतनिवगोत्तो ॥ ४१४५ ॥ अक्खयवत्तविहत्थप्पविसरसिंगारितरुणरमणियणे । दिज्जंत भूरिदाणो विवाहमहूसवो जाओ ॥ ४१४६ ॥ (जुयल) नवनवसम्माणपवद्धमाणअपमाणपत्तपरिओसो । दिवसाइं दस नरिंदो अइवाहइ अमुणियाई व ॥ ४१४७ ॥ तो मोयविय ससुरं सुरंगणारूवपणइणिं महिउं ।। चलिओ नहेण नियनहयरिंदवलवलईओ राया ॥ ४१४८ ॥ रयणप्पहकुमरविमाणसत्तवारणयआसणासीणो । चलइ अवलोयमाणो विमाण-करि-हरि-रह-भडोहं ॥ ४१४९ ॥ पंतिट्ठियपवणुच्छलिरभूरिसियचिंधधयअलंबेहिं । उल्लासंतो नहयलसुरसरिकल्लोलमालं व ॥ ४१५० ॥ गयघडपमुक्कफुक्कारसिक्करासरे वरिसपसरमिसा । जणयंतो मुत्तावरिसदंतुरं सयलगयणयलं ॥ ४१५१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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