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सिरिअणंतजिणचरियं पुरिसा वि न पसंसं पावंति कयाइ जे सया कलुसा । जे सक्करायपरितावकारया पव्वराहु व्व ॥ ५२२७ ॥ ते चिय निंदा पत्तं सइ जं लोयावयारयत्तेण ।। हुंति न कयाइ कस्सइ हियंकरा कूरकाल व्व ॥ ५२२८ ॥ कस्स न अहिलसणिज्जा दिंती महिला वि निम्मलं बुद्धिं । सव्व जगज्जीवहियं अमयं नवमेहमाल व्व ॥ ५२२९ ॥ ता निवपसायदिन्ने देसे गंतूण गम्मए सपुरे । जहमेव सरइ अयसो. पच्छित्तेणेव पावभरो ॥ ५२३० ॥ अम्मा-पिऊसु रोसो कज्जो न जओ कुकम्मफुरियं मे । जायं कलंकहेऊ, दुप्पडियाराई ता इंतु ॥ ५२३१ ॥ आणेऊण सरज्जे, भुंजावसु ताई रज्जसिरिसोक्खं । तं चिय सलहंति बुहा गुरूण जं जाइ उवओगे ॥ ५२३२ ॥ एवं कीरते अज्जउत्त ! उल्लसइ उत्तमा कित्ती । धम्मो वि होइ पुज्जाइं जं जिणाणं पि एयाई ॥ ५२३३ ॥ तुह हियमिममुवइठं, जं जुत्तं अज्जउत्त ! तं कुणसु । पत्तीहिं कहेयव्वं, पहूणमेत्थ तयायरणं ॥ ५२३४ ॥ तं. सोउं. सो चिंतइ, एसा मह हियकरी इय मण्णंती । अब्भुल्लसंति अहियाण नूणमेवं विहुल्लावा ॥ ५२३५ ॥ निज्जइ घणस्सिणेहामइ एसा इय हियं पयंपंती । निन्नेहाणं नूणं, नं हुंति एवंविहुल्लावा ॥ ५२३६ ॥ इय चिंतिय तेणुत्तं पिए ! जयुत्तं तए तयं काहं । जाणइ हियाहियाणं, जो न विसेसं पसू स धुवं ॥ ५२३७ ॥ इय मंतिय तीए समं, सहाए गंतुं निवं नमिय भणइ । . देवप्पसायदिन्नं देसं संठाविउं जामि ॥ ५२३८ ॥ रायाह तहा कज्जं सिग्घं पि जहा इहागई होइ । आएसो त्ति भणित्ता, तो सो पत्तो नियावासे ॥ ५२३९ ॥
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