________________
२४४
सिरिअणंतजिणचरियं
जं न कयाइ वि सुव्वइ साहिप्पंतं च जणइ जं अलियं । हीलाए विही तं चिय अकज्जनिरओ कुणइ कज्जं ॥ ३१०८ ॥ तहा - नयमग्गसंठियस्स वि दिव्ववसा विविहकयपयत्तस्स । कस्स न जायइ भुवणे विसमदसा खुंटपक्खलणं ॥ ३१०९ ॥ जे दुद्धरबंभव्वयधरणेण पवित्तयंति अत्ताणं । बालत्ताओ वि पत्ता तवोवणं तच्चिय जियंति ॥ ३११० ॥ जइ हं बालत्ताओ वि तवंतवितेसु दुच्चरं नृणं । ता न करतो आजम्मचित्तसंतावयमकज्जं ॥ ३१११ ॥ मा जीवउ मह सरिसो नराहमो कोइ कत्थइ कयाइ । जो इहलोए अयसं पावेइ नरयं तु परलोए ॥ ३११२ ॥ ता संपइ एयमहापावुच्छेयणकए तवच्चरणं ।। काहामि किं पि न विवेयणो उवेहिति दुच्चरियं ॥ ३११३ ॥ जणणीयं विप्पयासिय एयसरूवं करेमि पडिबोहं । इयरस्स वि धम्मपहो पयडिज्जइ किं न पियराण ॥ ३११४ ॥ इय परिभाविय जणणीकमेसु निहिडं निउत्तमंगं सो । मन्नुभरगग्गरगिरं कत्तो जणजणिय कारुन्नो || ३११५ ॥ नियपरियणेण तीए वि निवारिओ सोयकारणं पुट्ठो । साहेइ तीए छत्तं बहुकत्तमकज्जमुल्लसइ ॥ ३११६ ॥ सा वि वराई सो एसो मह सुओ इय विभाविरी दूरं । गुरुदुक्खं कंदंती पुत्तेण निवारिया नमिउं ॥ ३११७ ॥ भणिया य अंब ! किं सोइएण दुक्कम्महेउणा इमिणा । इण्हि कीरइ तं जेण न भवए एरिसपरिभवो वि ॥ ३११८ ॥ आवइबहुलेण अकज्जकारिणा नस्सरेण देहेण ।। कीरउ सोअं च तवो जायइ न विडंबणा जेण ॥ ३११९ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org