SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 272
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४३ रणविक्कमकहा तो पोढपिम्मपन्भाररम्मभोगोवभोगसत्ताण । वच्चंति खणं पिव ताण वासरा बहुविणोएहिं ॥ ३०९५ ॥ तो कामलच्छिरमणी गोठेंगणठवियविट्ठरनिविट्ठा । दुट्ठाण सेरहिणं सुरहीणं य गहियदुव्वाइं ॥ ३०९६ ॥ काराविय दहियाई महिऊणं ताई मक्खणं घेत्तुं । परितवियतरघयं पट्टणेसु नेऊण विक्किणइ ॥ ३०९७ ॥ ता सुहय ! सा अहं गहियघयघडविक्कयत्थमिह पत्ता । जलवाहिणीए घडिउं पडिया घडओ वि फुडिओ मे ॥ ३०९८ ॥ घयहाणीए वि दिट्ठा जमहं तुमए अभिन्नमुहराया । तं तुह मए वि कहियं न विणठं वलइ खेएण ॥ ३०९९ ॥ रोएमि किमिह पइ-पुत्त-विरहमह रायमारणं अहवा । . वेसाविडंबणं अहव पुत्तपरिभोगपरिभवं च ॥ ३१०० ॥ जह बहुपरिणं अ-रिणं तह मह बहु दुक्खमवि अदुक्खं ति । संजाय धीरिमाए न मए खेओ कओ सुहय ! ॥ ३१०१ ॥ आयन्निय तच्चरियं पावकरं जसहरं नरयहेऊ । वेयवियक्खणविप्पो विसायविवसो विभावेइ ॥ ३१०२ ॥ पेच्छ मह न तिजयस्स वि मज्जायावत्तिणो सुगुरुणो वि । सिंधुस्स व वडवग्गी अकज्जमइदाहयं जायं ॥ ३१०३ ॥ गुरुगोत्तसमुत्थजसुज्जलं पि गंगाजलं च चित्तं मे । कलुसीकयं अकज्जेण झत्ति जउणाजलेणेव ॥ ३१०४ ॥ पुन्नेकपयं ते उत्तमा नरा जे सदारसंतुट्ठा ।। संपत्ता नरतणं पि हु बहुपावविडंबणमहं च ॥ ३१०५ ॥ परमेसरसिरिधरिया निच्चं नंदंतु ते नरा भुवणे ।। बीया चंद व्व कलंककलुसिया जे न कईया वि ॥ ३१०६ ॥ हयविहिविलासवसओ जीवो जमसंभवं लहइ तं पि । जं' कहिउं पि न तीरइ कस्सइ लज्जाए जेणुत्तं ॥ ३१०७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy