SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 576
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४७ रयणसुंदरकहा लायन्नसलिलसरिया जस-ससहर-जोण्ह-पुन्निमा रयणी । सीलमरालयनलिणीलीलालईया मलयवसुहा ॥ ७०१९ ॥ तीए सह विविहविसयव्वामोहपरस्स नीइचित्तस्स । वच्चइ कालो खयराहिराइणो गुरुपयावस्स ॥ ७०२० ॥ तीए सयासं न निवो खणं पि मुंचइ न सा वि निवपासं । “जोन्हा न चयइ चंदं चंदो वि हु चयइ किं जोन्हं ?" ॥ ७०२१ ॥ अन्नोन्नदरिसिणो च्चिय तेसिं उप्पज्जए महासोक्खं । तव्विरहे बहुदुक्खं रहंगमिहुणाण वसया वि ॥ ७०२२ ॥ सिविणम्मि वि उप्पज्जइ न ताण कईया वि पणयकलहो वि । एगस्स सुहेण सुहं दोन्ह वि दुक्खेण दुक्खं जं ॥ ७०२३ ॥ अच्चंतपिआ पेम्मप्पयरिसविसएण खेयरिदेण । समभमणमणुन्नायं निच्चं पि कयप्पसाएण || ७०२४ ॥ तो उवविसइ सहाए समगं चिय चडइ रायवाडीए । न चयइ खणं पि पासं पइणो छाय व्व सत्ताण ॥ ७०२५ ॥ जइ वि न निवइनिरोहो जइ वि पसाओ पईव से जइ वि । देवी तहा वि दूरं महासई गव्वमुव्वहइ ॥ ७०२६ ॥ कईया वि कीलिउं सह पिएण सुत्ता निसावसाणम्मि । देवीदेवयमेगं सिविणे सिंगारियं नियइ ॥ ७०२७ ॥ उच्छंगसंगयं दलृ निदं विहाय पडिबुद्धा । मंजुस्सरेणमवणिद्दमवणिनाहं विहेऊण ॥ ७०२८ ॥ विन्नवइ देव ! देवयमेगं सिंगारियंगमुच्छंगे । पासियपडिबुद्धा हं ता किं फलओ इमो सिविणो ? ॥ ७०२९ ॥ रायाह देवि ! देवीसिविणेणं सूईओ सुया. जम्मो । किं तु पवित्ती भव्वासओ वि कईया वि जं होही ॥ ७०३० ॥ देवीए जंपियं पुहु ! एयंपि हु होउ तुह पसाएण । बंधइ य सउणगंठिं तुट्ठमणो उत्तरीयंतो || ७०३१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy