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________________ अणंतजिणदेसणा १७५ दुण्ह वि इमाण धम्माण मूलमणुसरह सुद्धसम्मत्तं । तम्मि अरागरोसो, देवो अरिहाणुसरियव्वो ॥ २२१५ ॥ निग्गंथो गीयत्थो, सुबंभयारी मुणी गुरू मज्झो । जीवाजीवाण नवण्हं, तत्ताण य सुमरणं कज्जं ॥ २२१६ ॥ संमत्तलंकिएणं, धम्मेणमिमेण भूरिभव्वजणो । सिद्धो पुव्वं सिज्झइ, य संपयं सिज्झिही य पुरो || २२१७ ॥ वागरमाणे सद्धम्मदेसणं इय अणंतजिणराए । जसपमुहा पन्नासं, नरेसरा फुरियबहुमाणा || २२१८ ॥ तह विहु रंतर संजायपुलयपरिकलियमुत्तिणो दूरं । आणंदयंसुजलपूरपवहपक्खालियकवोला ॥ २२१९ ॥ भालयलमिलियभूपुट्ठमभिनया सामिपायपउमजुयं । सिरउवरिधरियकरकमलकोरया विन्नवंति पहुं ॥ २२२० ॥ पहु ! तुम्ह देसणा-मंत-सवणओ जायगुरूयतासो व्व । अम्हाण कत्थई गओ, मोहपिसाओ पणासेउं ॥ २२२१ ॥ तो अम्हे आजम्मं सेविस्सामो सया वि तुम्ह कमे । मुत्तूणं कमलसरं हंसा गच्छंति नऽन्नत्थ ॥ २२२२ ॥ ता सामिसाल ! दिक्खं, दाउं नियसेवए कुणसु अम्हे । अब्भत्थिया न गुरुणो, विणयप्पणयं परिहरंति ॥ २२२३ ॥ तो उट्ठिऊण पहुणा, तेसिं पन्नाससंखनिवईणं । कयरज्जसुत्तयाणं, दिन्ना दिक्खा नियकरेण ॥ २२२४ ॥ तह मंडलीयसामंत-मंतिसेणाहिवा वि लिंति वयं । सहिया सत्थाहिव-सेट्ठि-इब्भकुल-पुत्तयाईहिं ॥ २२२५ ॥ तोऽणंतपयप्पणया, जिणप्पिया परिलसंतकरकमला । पउम व्व सायरसुया, पउमा पत्थइ पहुं दिक्खं ॥ २२२६ ॥ तो सा विहिणा पन्नासरायअंतेउरीहिं सह पहुणा । पव्वाविया तहऽन्नाओ, दिक्खियाओ पुरंधीओ ॥ २२२७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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