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________________ ४५८ सिरिअणंतजिणचरियं सुव्वंति देवि ! सिविणा बहुया नवरं न कोइ एय समो । वरिसे पभूय दिवसा न कोइ दीवूसवसरिच्छो ॥ ५८६९ ॥ ता तुह मयच्छि ! एयस्सिविणयं संसूईओ सुओ होही । ससिवयणपवद्धंतो सो भविही भुवणआभरणं ॥ ५८७० ॥ जह मउडो सव्वाभरणउत्तमो उत्तमंगमारुहइ । तह देवि ! तुह सुओ वि हु सगोत्तगिरिहरुमारुहिही ॥ ५८७१ ॥ तं सोऊणं घणजलधारब्भाहयकयंबकुसुमं व । जाया देवी सव्वंगरम्मरोमंचकंचुईया ॥ ५८७२ ॥ अवितहवयणा गरुया ता एय एवमत्थु ईय भणिरी । नियवासगिहे पत्ता, सुहेण सा गब्भमुव्वहइ ॥ ५८७३ ॥ अम्ह पडणाय वद्धइ गब्भो त्ति विदितउं व सिहिणा से । जाया सा समुहा किं सहति परिवुड्ढिमुव्वित्ता ॥ ५८७४ ॥ गब्भो देवीए भओ रिऊण तोसो नरिंदचित्तम्मि । रोसो य सवत्तीणं वद्धति समं समग्गा वि ॥ ५८७५ ॥ हिय-मिय-मिउ-रिउ-समुचियआहारेहिं सिणिद्धमहुरेहिं । गब्भं परिपालंती संपत्ता एस पसवसमयं सा ॥ ५८७६ ॥ तो नवमासद्धट्ठम दिवसोवरि सुहमुहुत्तसमयम्मि । विप्फुरियफारतेयं देवीपुत्तं पसूया सा ॥ ५८७७ ॥ तो विरईयसव्वुत्तमवेयविसिंखलगईहिं दासीहिं । वद्धाविओ नरिंदो सव्वुत्तमपुत्तजम्मेण ॥ ५८७८ ॥ तस्सवणरम्मरोमंचकंचुईज्जंतमुत्तिणा तेण । मुत्तुं मउडं तासिं दिन्नो निययंगसिंगारो ॥ ५८७९ ॥ दव्वं पि तह विइन्नं भूरि जहा सत्त वेणिया उ तयं । दिंतीणं पि हरिस्सइ दोगच्चं जायग-जणस्स ॥ ५८८० ।। अह पडिहारमुहेण सयले वि पुरे निवेण आइलैं । वद्धावणयं अहमिहमिगाए तो तं जणो कुणइ ॥ ५८८१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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