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सिरिअणंतजिणचरियं
धम्मसारो विबुद्धाण मए तं निट्ठमाणसो । चत्तसम्मत्ततत्तो सो पत्तो पंचत्तमन्नया ॥ ९४८५ ॥ सोहम्मे देवलोगम्मि संजाओ किब्बिसो सुरो । तओ चुओ भमेऊण भवे मोक्खो भविस्सइ ॥ ९४८६ ॥ जह गुणदोसो जाया पालणभंगेहिं दंसणस्सेसिं । अन्नेसि पि तहा हुंति राय ! ता चयह तद्दोसे ॥ ९४८७ ॥ एयं तयक्खरं चिय कहाणयं धम्मसामिचरियाओ । लिहियमिह जहा नज्जइ गंथदुगम्मि वि कई एगो || ९४८८ ॥ इय जगगुरूणाणतेण साहिए दंसणस्स दिट्ठते । भरहद्धवई तग्गहणपरिणईपरिगओ जाओ ॥ ९४८९ ॥ न य पहुपयसयवत्तो कयंजली जंपए विणयपुव्वं । पहु ! सव्वदेसविरईण पालणे नत्थि मह सत्ती ॥ ९४९० ॥ ता दाऊणं दंसणरयणं मं पहु ! करेह सुकयत्थं । तो आरोवइ सामी तस्स सहत्थेण सम्मत्तं ॥ ९४९१ ॥ सुप्पहनिवेण पुण दंसणेण सह सव्वसावयवयाइं । गहियाई भत्तिपाउब्भवंतरोमंचनिचिएण ॥ ९४९२ ।। गिण्हंति सव्वविरई के वि निवो देसविरइमन्नेउं । के वि हु अविरयसम्मद्दिट्ठित्तं लिंति पहुपासे ॥ ९४९३ ॥ बहुबीयणंतकायाइचाइणो के वि पहु पुरो जाया । एए च्चिय तिरिएहिं वि गहिया नियमा न जिणदिक्खा ॥ ९४९४ ॥ तम्मि समयम्मि उग्घाडपोरिसी सूयगो वली पत्तो । वीसामत्थं सामी वि देवच्छंदं समल्लीणो ॥ ९४९५ ॥ तो वंदिऊण सामिं भरहद्धपहू ससुप्पहाइनिवो । चउविहदेवनिकाओ वि निय-नियट्ठाणमणुपत्तो ॥ ९४९६ ॥ तत्थच्छिऊण सामी कइवयदिवसाई भव्वपाणीहिं । पूइज्जंतो भरहद्धरायपमुहेहिं भत्तीए ॥ ९४९७ ॥
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