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परिभावियं च तीए पईए रूवरेहसंपत्ती । रईरंभाण वि अहिया ता गणणा मणुयरमणीसु || ३००४ || एग्गागिणी जमेसा जणमज्झे नन्न एत्थ वत्थव्वा । जं ईसररमणीओ न हुंति दासाइएहिं विणा ॥ ३००५ ॥ जइ एवंविह रमणीरयणं भवणम्मि भवइ अम्हाणं । ता सक्खं अवयरिओ सुवन्न अक्खयनिही नूणं ॥ ३००६ ॥ इय चिंतिऊण गणिया सा सहसा तीए पासमणुपत्ता । कयपडिवत्ती पुच्छइ सुयणु ! तुमं इह कुओ पत्ता ? || ३००७ ॥ तीयत्तं दूराओ वेसा जंपइ कहिं समुत्तिन्ना ? |
सा आह देसियाणं ठाणं किं पूइउं मोत्तुं ॥ ३००८ ॥ भणइ गणिया न तुच्छे ठाणे चिट्ठेति रायपत्ताई । किं विहलिओ विहत्थी छुब्भइ कोडुंबियगिहम्मि || ३००९ || देसंतरागयाए वि वासो जुज्जइ महुत्तमे ठाणे । खीरोयनिग्गयाए ठाणं लच्छीए सिरिवत्थो ॥ ३०१० ॥
सिरिअणंतजिणचरियं
तुह दंसणमित्तेण वि वियस दिट्ठी सिणिज्झइ मणो मे । ता कावि मह तइ सह भविही जम्मंतरसिणेहो ॥ ३०११ ॥ तुह जित्तिया समाही तेत्तियकालं समेहि मे गेहे । वच्छि ! जमिट्ठगोट्ठी निमेसमेत्तं पि दुल्लंभा ॥ ३०९२ ॥ सहस त्ति चss चित्तम्मि माणुसं किं पि कस्स कयाए । जं नेहलोहकीलयकीलियमिव नेव अवयरइ || ३०१३ || ता सव्वा वि मह पत्थणाए भंगो न चैव कायव्वो । दक्खिन्नं पिहुरतासाय नेहरहियाण वि गुरूण ॥ ३०१४ ॥ तुह दंसणसंदाणयनद्ध व्व एमि तं न मोत्तमहं । ता हंसगमणि ! आयरपुरस्सरं वाहरेमि बहुं ॥ ३०९५ ॥ इय चाटुवयणविन्नासविरयणायत्तचित्तवित्ती सा । सा तब्भवगमणमणुसरइ कं न आवज्जए वेसा ॥ ३०९६ ॥
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