________________
४४४
सिरिअणंतजिणचरियं
तिव्वतवच्चरणायरणलालसो नमिय गुरुसयासम्मि । पुच्छइ तवचरणाई, वसंतदेवो गुरू कहइ ॥ ५६९५ ॥
तहाहि
-
पुरिमड्ढेक्कासण- निव्विगईय-आयंबिलोववासेहिं । एगलयाई य पंचहिं होइ तवो इंदिय जओ त्ति ।। ५६९६ ॥ निव्विगईयमायामं उववासो ईय लयाहिं तिहिं भणिओ । नामेण जोग-सिद्धी नव दिणमाणो तवो एसो || ५६९७ ।। नाणम्मि दंसणम्मि चरणम्मि य तिन्नि तिन्नि पत्तेयं । उववासा तप्पूया - पुव्वं तत्तामगतवंमि ॥ ५६९८ ॥ एक्कासणगं तह निव्विगईयमायंबिलं अभत्तट्ठो । इय होइ लयचउक्कं कसायविजए तवच्चरणे ॥ ५६९९ ॥ खमणं एक्कासणगं, एक्कग्गसित्थं च एगठाणं च । एक्कगदत्तिं नीवियमायंचियमट्ठकवलं च ॥ ५७०० ॥ एसा एगा लईया, अट्ठहिं लइयाहिं दिवसचउसट्ठी । ईय अट्ठकम्मसूडणतवम्मि भणिया जिणिदेहिं ।। ५७०१ ।। इग - दुग - इग-तिग- दुग - चउ-तिग- पण- चउ-छक्क पंच - सत्त - छगं । अट्ठग-सत्तग-नवगं अट्ठग-नवसत्त-अट्ठेव ॥ ५७०२ ॥ छग-सत्तग-पण-छक्कं चउ-पण-तिग- चउर - दुग - तिगं एगं । दुग-एक्कग-उवासा लहु - सीह - निकीलिय - तवम्मि ॥ ५७०३ ॥ चउपन्नं खमणसयं दिणाण तह पारणाणि तेत्तीसं । इह परिवाडिचउक्के वरिसदुगं दिवस अडवीसा ॥ ५७०४ ॥ विगईओ निव्विगइयं, तहा आलंवाडयं च आयामं । परिवाडचउक्कम्मिं पारणएसुं विहेयव्वं ॥ ५७०५ ॥
(लहुसीहनिकीलियतवस्स ठावणा)
१.२.१.३.२.४.३.५.४.६.५.७.६.८.७.९.८.९.७.८.६.७.५.६.४.५.३.४.२.३.१.२.१.
एग - दुग- इग-तिग- दुग- चउ-तिग- पण - चउ - छक्क - पंच- सत्त - छगं । अडसत्त-नवड - दस - नव - एक्कारस तहेव बारसगं ॥ ५७०६ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org