________________
भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा
४६३ उम्मुक्कपेक्कपोक्को सहाए पविसिय महीए उवविट्ठो । रुयइ रुयावियलोगो कयकारुन्नो पसूणं पि ॥ ५९३४ ॥ हा बालय ! सुकुमालय ! हा लच्छीनिलय ! हा कुमरतिलय ! ।। हा विणयकलिय ! हा विउलअलिय ! तं कत्थ दीसहसि ? ॥ ५९३५ ॥ हा सुत्त ! पुत्तजुत्तं किं तं जम्मं गओ परिव्वईओ । ता एहिं जाइ जा तुह विओगओ तो विवज्जामि ॥ ५९३६ ॥ रज्जं पि रज्जुबंधो नयरं नरओ सुहं पि गुरुदुक्खं । तुह विरहियस्स पुत्तय ! परियत्ती मे सुहाण असुहा ।। ५९३७ ॥ कह करिणो उत्तरिही उत्तिन्नो वि हु हणिज्जिही करिणा । अइसुकुमालो बालो छुहा-पिवासाहिं वा मरिही ॥ ५९३८ ॥ परिदेवतम्मि नरेसरम्मि एवं सगग्गयगिराहिं । परिवारम्मि वि मंतिप्पमुहे बहुसोयविहुरम्मि ॥ ५९३९ ॥ सुय नियसुयावहाराहारा वाऊरियंबवरदियंता ।। सिंगारसिरी देवी रुयइ रुयाविय परीवारा ॥ ५९४० ॥ हा पुत्त ! उत्तमस्सिविणसूईओ होउमसमरूवधरो । तं दीहरच्छवच्छय ! कत्थ गओ मं परिच्चईओ ॥ ५९४१ ॥ हा पुत्त ! तए सद्धिं संजाओ चित्तआलवालम्मि । जो मह मणोरहतरू किं तस्स फलं न संभविही ॥ ५९४२ ॥ हा पुत्त ! जा न तुह विरहवज्जपहराहयहयासाए । फुडइ हियं मह सयहा होउं ता दंसणं देसु ॥ ५९४३ ॥ हे देव्व ! अपुत्ताए दाउं मे पुत्तयं तए हरिउं । अइवालविलसियाओ वि अहियरं विरईयमणज्जं ॥ ५९४४ ॥ रोयंति अंगरक्खयथइबहुओ विदल्लयाईया । हिययप्पइट्ठकुमरावहारगुरुसोयभरविहुरा ॥ ५९४५ ॥ एवं ते पलवंता निवाइणो मंतिणा दढमणेण । होउं विबोहिया हियगिराहिं सोयाय णयणाहिं ॥ ५९४६ ॥ .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org