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________________ २०३ रणविक्कमकहा आसयमाणेणं चिय उग्गारा जाय तुह तहा जाया । खीरोयहिप्पमाणं, कल्लोल च्चिय पयासंति ॥ २५७८ ॥ पयडीहूयमवसरे पुत्तय ! तुमए जमज्जियं सुकयं । घणमंडलावसाणे पुन्निमरयणियरबिंबं व ॥ २५७९ ॥ ता वच्छ ! पुव्वभववित्तपुन्नपब्भारपत्तरज्जस्स ।। परिपालणं तुह च्चेव, जुज्जए नेव अवरस्स ॥ २५८० ॥ तो भणइ नरिंदो चलह संपयं ताय ! रायहाणीए । रम्मारामा परिहह तीए गंतुं जहिच्छाए ॥ २५८१ ॥ इय जंपिऊण जणणी-जणयजुओ जाइ सुहमुहुत्तम्मि । नियठाणेहिं कयं सिद्धे कज्जे पवासेणं ॥ २५८२ ॥ मयजसधारासारासित्तमही पुरिपहे करेणुघडा । गयणंगणे व्व नवघणपडलाली चलइ लीलाए ॥ २५८३ ॥ गुरुरयटंपाझंपाचारक्कपुलब्भमीहिं गच्छंता ।। उत्तरलतरातुरया हरंति हिययाई सुहडाण ॥ २५८४ ॥ चक्कारयकंसियखलहलारवो तुरयघरघरालिसरो । चलमणिरहाण बहिरइ दिसाओ धयकिंकिणिसणो य ॥ २५८५ ॥ वग्गंता धावंता दिता करणाई उच्छलंता य । तिव्वयप्पहरणवग्गपाणिणो जंति सुहडा वि ॥ २५८६ ॥ इय चउरंगचमूचयकयदढपरिवेढसत्तुदुद्धरिसो । मंडलियमंतिसामंततंतवालाइबलकलिओ ॥ २५८७ ॥ चिंधद्धयसिक्करिसय-सियछत्त-अलंबचुंबियंबरओ । मागहमंडलवज्जरिय-चरियथुइबहिरियदियंतो ॥ २५८८ ॥ दुडुदुडिडमरुयढक्काहक्कानीसाण-सण-भरिय भुवणो । वच्चंतो संपत्तो, कमेणमेगं महाअडविं ॥ २५८९ ॥ जा तल-तमाल-हिंताल-साल-सरल-प्पियाल-वलकलिया । कयली-पलास-कुवली-लवंग-एलालवलललिया ॥ २५९० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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