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________________ ४७८ सिरिअणंतजिणचरियं कंकण-कुंडल-केऊर-सरलहाराइभूसणसमूहं । पडिजद्दरं व राई वि बंदिजणओ पाविही कत्तो ? ॥ ६१२६ ॥ पत्तीणं सुकईण य को सत्थमहत्थजाणओ इण्हि । बुद्धिजियजीवत्थं भे अद्दिस्से सामिसालम्मि ॥ ६१२७ ॥ सिप्पीण सिप्पकम्म, कलजीवीण य कलासु कोसल्लं । जायं निरत्थयं चिय, वियारचउरं विणा देवं ॥ ६१२८ ॥ इय सकरुणं रुयंतेसु, मंति-सामंतमंडलीएसु । करि-हरि-हंसाईया करुणं कंदति तिरिया वि || ६१२९ ॥ नायनरिंदअलहो सव्वं अंतेउरीओ कंदति । देविमणिप्पहपमुहाओ अंसुपव्वालियमुहीओ || ६१३० ॥ हा कोमलंग हा गयकुसंग ! हा जाय चंगसोहग्ग ! । पहु ! सहयरीओ मुत्तुं, अम्हे ते पवसिओ कत्थ ? || ६१३१ ॥ हा राय राय ! हा विहिय नाय ! हा सयलतिजयविक्खाय । । हा कणयजाय ! कयवाय हा, ह हा सामि ! निम्माय ! ॥ ६१३२ ॥ ताण तिणगणियतिहुयणसुहाणुसहरिस ! सिणेहरमियाण । अवसाणमिमं जायं न पवासो वि हु जमक्खाओ || ६१३३ ॥ तुह नाह ! नेहनिब्भरपसायसुमरणपविप्पहारहीयं । फुट्टइ न जमम्ह हिययं तं नृणं वज्जदलघडियं ॥ ६१३४ ॥ इय पलविरीओ मुच्छाए जंति भूमीए भूमिवइविरहे । पाविय चेयन्नाओ रुयंति पुणरुत्तमंसूहिं ॥ ६१३५ ॥ पडिहारअंगरक्खय-थइयावहसो विदल्लदासेहिं । तह रुन्नमंसुधाराहिं जह सहाए जलं वहइ ॥ ६१३६ ॥ अक्कंदिऊण बहुसो पउरा पउरा महायणीया य । सामिगुणग्गहणपरा परिदेविउमेवमारद्धा ॥ ६१३७ ॥ संजाया वयमिण्हि नूणं निभग्गसेहरा सव्वे । जेऽनिस्सरेण मुत्तूण सामिओ कत्थइ पउत्थो ॥ ६१३८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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