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सिरिअणंतजिणचरियं पत्तो नरिंदअत्थाण मंडवं मुक्कपेक्कअक्कंदा । सकलत्तसामिअवहरणहियसुहा रोविडं लग्गा ॥ ४२४३ ॥ हा राय ! हा तिजयनायय ! हा विमलनायविक्खाय ! । हा बंदि जाय कय कणयचाय हा सामि ! निम्माय ॥ ४२४४ ॥ हा चंदवयण ! हा अमियनयण ! हा गरिमगयण ! नररयण ! । हा देसदाण ! उद्धरियसयण ! हा रूवजियमयण ! ॥ ४२४५ ॥ रण-रंगुच्छंगसमागएऽरिणो जयपयंडु तं मुत्तुं । का नाम रामदेवो व्व रक्खसे दारिही दरिए ॥ ४२४६ ॥ का नाम बहुमयामोयमिलिय अलि-जालरोलकलियम्मि । आरुहिय वारणे रायवाडियं विलसिरो करिही ॥ ४२४७ ॥ देव व्व पुरिसरयणं भुवणालंकारकारयं कायं । एवं अवहरमाणो कह होसि हयास ! जसपत्तं ॥ ४२४८ ॥ गलियं कलाहिं नहें नएहिं सत्थेहिं पत्थियं दूरे । रुळं सिट्ठायारेण सामिसालम्मि अवहरिए ॥ ४२४९ ।। इय रायहरणरणरणयविहुरया परवसे सहेलाए । भणियममच्चेणमहो मा रोयह होह कज्जपरा ॥ ४२५० ॥ जइ उभयकुलविसुद्धा तह लज्जह भुत्तपहुपसायाण । ता रायरहियरज्जं रक्खह रइयाऽऽयरो होउं ॥ ४२५१ ॥ ते बिंति मंति वियरसु आणं अम्हाण झ ति करणिज्जे । मंती जंपइ परियडह, देसमज्झे दमह हुडे ॥ ४२५२ ॥ इय जंपिऊण सीहासणम्मि करावियाओ कणयमइयाओ । तेण निवपाउयाओ, ताओ जणो नमिय सेवेइ ॥ ४२५३ ॥ नियदेसु विएसेसु सोहिज्जंते नरेसरे स-पिए । रिउ-चोरचरडचक्के सव्वत्थ विणिग्गहिज्जंते ॥ ४२५४ ॥ पणमणपुव्वं नरनाह-पाउया पाससंनिविट्ठम्मि । सामंत-मंति-मंडलियं-मंडले पउरपरियरिए ॥ ४२५५ ॥
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