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________________ रयणसुंदरका इय चिंतासंतत्तस्स रायपुत्तस्स दिणमइक्कतं । विप्फुरियतिमिरपसरा संपत्ता दुस्सहा रयणी ॥ ६८३८ ॥ एत्थंतरे महामुल्लरयणमणिभूसणाण पल्लिवई । लुद्धो न देइ भागं भिल्लभडाणं ति ते कुविया ॥ ६८३९ ॥ पहरेउं पारद्धा एगीहोउं झड त्ति सह पहुणा । निप्पसरकत्तरी कत्तिया सरुक्केरघाएहिं ॥ ६८४० ॥ जाणिय जुज्झा रयणा कुमरगुहद्दारदेसपाहरिया | हण हण हण त्ति भणिरा संपत्ता ते वि रणरंगे ॥ ६८४१ ॥ सुन्नं दुवारदेसं दट्ठं सहस त्ति उट्ठिओ कुमरो । पासाइं पलोयंतो निक्खंतो झत्ति पल्लीओ ॥ ६८४२ ॥ रणरंगाओ वेगेणेगो सुहडो रएण गच्छंतो । पोट्टलयकरो कुमरेण हक्किओ कक्कससरेण ॥ ६८४३ ॥ रे दृट्ठ ! मुयसु पोट्टलयमेयमह नो वि मुंचसि तुमं ता । इण्हि पि मरसि इय सो तब्भीओ चइय तं नट्ठो ॥ ६८४४ ॥ गहिऊणं पोट्टलयं सणियं सणियं समुत्तरिय गिरिणा । ससिकरदंसियमग्गो कुमरो वेगेण जाइ पहे ॥ ६८४५ ।। ससहरकिरणुज्जोएण जोयए जाव पोट्टलयमज्झं । तो नियइ नियं सो तत्थ वत्थुछुरियाभरणजायं ॥ ६८४६ ॥ तं दट्ठूण पहिट्ठो चिंतइ मह पुन्न परिणई वलिया । जमहं छुट्टो भिल्लाण तह य वत्थाइमह मिलियं ।। ६८४७ || संभाविज्जइ मिलणं कडयस्स वि मह पणट्ठलाभेण । जेण मं कल्लाणकडक्खियाण न हवइ सुहं किं पि ॥ ६८४८ ॥ मन्ने भिल्लभडाणं समरवग्गाण तक्करो कोइ । घेत्तुमिमं नासंतो मज्झ भया उज्झिऊण गओ ॥ ६८४९ ॥ इय निच्छिऊण रइओ वत्थाभरणेहिं सारसिंगारं । कडितडनिबद्धछुरिओ संचलिओ सम्मुहदिसाए ।। ६८५० ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only ५३३ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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