________________
२२८
सिरिअणंतजिणचरियं सवणंतायड्ढियकढिणघणुमुक्ककंकपत्तेहिं । भिंदिज्जइ भडविंदं परोप्परं रोसवसएहिं ॥ २९०१ ॥ बाणनिवारणसिरकयफरयाणप्पविसिराण सुहडाण । गुरुगोउरग्गसुहडा खिवंति सायरसयधणीओ || २९०२ ॥ दप्पुब्भडसुहडपमुक्कपेक्कहुंकारहक्कलल्लक्के । मयरद्धयरिउराया रणंगणे झत्ति संपत्तो ॥ २९०३ ॥ वीइज्जंतो रमणीयरमणिकरचलिरचमरनियरेण । मुत्तावचूलविलसिरसियछत्तरियरवितावो ॥ २९०४ ॥ चउपासचउरचारणउच्चारियचारुथुइपयपहिट्ठो । गयघडरह-वूह-हयोह-जोह-संदोह-संसोहो ॥ २९०५ ॥ सेवयनरिंदआभरणकिरणभररइयहरिधणुगणेण । रणरंगागयरिउगणहणणाणीयत्थसव्वोत्थ ॥ २९०६ ॥ धवलायवत्तपंतीए गच्छत्तत्थसिक्किरिस्सेणी । बलजलपाणनिमित्तं गंगाजउणा उवाणितो ॥ २९०७ ॥ कुलयं तं दटुं तीए को वि पुच्छिओ एस को निवो भद्द ! । कत्तो पत्तो किं वा वि वेरमेयस्स इय कहसु ॥ २९०८ ॥ सो आह एस वइराडदेसरायानिरुद्धआणंदो । मयरद्धयओ व्व मयरइयाभिहो जणमणावासो || २९०९ ॥ अणुवच्छरं पि करमेस नरवई अम्ह सामिणो दितो । संपइ न देइ तमिमो तो विक्खेवो कओ पहुणा ॥ २९१० ॥ सच्चविया सा रामा रन्ना विईओ तओ नियंतेण । नियरूवरेहअहरिय दूरं भाविब्भमा रंभा ॥ २९११ ॥ सो चिंतइ एयाए भूयंडवडंबरेण विजियाहिं । पडिवन्नो वणवासो हरिणीहिं लज्जिरीहिं व ॥ २९१२ ॥ एयाए वयणरयणीयरेण विजिओ व्व पव्वहरिणंको । हरिणच्छलेण हियए मच्छरओ धरइ कालुस्सं ॥ २९१३ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org