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________________ रयणावलिका जइ न पणस्संतो सो ता निंतो अंडयाई अन्नत्थ । मह पुण जं होयव्वं तं हुतं रोयविहुराए ॥ ३७६२ ॥ रक्खेमि कहमिमाई दावआवयाओ अंडयाई अहं । जेणच्चतमसत्ता एइ दवो वि हु गुरुरएण ।। ३७६३ ।। परकीयं पि हु रक्खंति दुक्खियं जे हवंति गुरुकरुणा । मच्चुमुहमुवगयाई सावच्चाई चएमि कहं ॥ ३७६४ ॥ पुव्वं वा पच्छा वा मरणम्मि धुवे इमाण जइरक्खा । खणमवि तीरइ काउं ता उवयारो कओ होइ ।। ३७६५ ॥ नियतणयविणासमपेच्छिरी मरणं पि ऊसवो मज्झ । तणए उवेहिरीए जीवियमवि मे मरणअहियं ।। ३७६६ ॥ एएण मह सरीरेण रोयविहुरेण पडणधम्मेण । जीवंति अवच्चाइं जइ किर ता किं न पज्जत्तं ॥ ३७६७ ॥ अन्नेसिं पि हु पोए पक्खीणं दज्झिरे पलोएउं । तेसिं रक्खणकज्जे तस्संती फुरियगुरुकरुणा ॥ ३७६८ ॥ तह दठुमद्धदद्धे पसुणो विरसारवेण कंदते । तेसिं पि रक्खणत्थं भूरिवियप्पेहिं झूरती ॥ ३७६९ ॥ इय आउलिया हंसी जा चिट्ठा ताव नियडमणुपत्तो । दावानलो दहंतो तस - थावरसत्तसंघायं ॥ ३७७० ॥ तो नियसरीरपीडं अवगण्णिय फुरियपरमकरुणा । वित्थारियपक्खदुगेण अंडए छाइऊण ठिया ॥ ३७७१ ॥ तयणुसमुल्लसियाओ दवजालाओ असोयतरुमज्झे । अरुणत्तं तप्पत्ताणमत्तणो वि य निएडं व ॥ ३७७२ ॥ तज्जालाजोयज्जलिरसाहिं साहाहिं सह सनीडा वि । भासीभूया सह अंडएहिं सा रायहंसपिया ॥ ३७७३ ॥ असरिसकरुणाभरजायसुकयसंभारभावओ जाया । रायसुया हं दयधम्मकरणओ किं न कल्लाणं ॥ ३७७४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only २९५ www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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