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रणविक्कमकहा तो पणमिय गुरुचरणे चरणेक्करई रईसनिम्महणो । संवेगरंगियप्पा जणणीजुत्तो गिहे पत्तो ॥ ३१४६ ॥ उत्तुंगतोरणाई गिरिंदरुंदाई देवभवणाई । कारविय पइट्ठावइ तिसु मुणिंदेहिं जिणचंदे ॥ ३१४७ ॥ . पडिलाभिऊण संघं सम्माणेऊण सुहिसयणविंदं । मग्गणदीणाईणं दाणं वंछाहियं दाउं ॥ ३१४८ ॥ काराविऊण जिणमंदिरेसु अट्ठाहिया महामहिमं । मोयाविय गुत्तिनरे पुरम्मि उग्घोसिय अमारिं ॥ ३१४९ ॥ आरुहिय कणयमयकणिरकिंकिणीजालरयणसिबियाए । वज्जिरजयआउज्जो मागहकयजयजयारावो ॥ ३१५० ॥ पेच्छणए पेच्छंतो गिज्जंतो तरुणरमणिनियरेण । तित्थं पभावयतो गुरुचरणं तं समणुपत्तो ॥ ३१५१ ॥ सिबियाओ समुत्तरिडं नमिय गुरुं जायए सजणणीओ । दिक्खं देहि त्ति तओ गुरुणा सो दिक्खिओ तत्थ ॥ ३१५२ ॥ जाणाविओ य गहणासेवणसिक्खाओ जणणिसंजुत्तो । अज्जा समप्पिया अज्जियाण सुविसुद्धसीलाण ॥ ३१५३ ॥ सुमरिय नियदुच्चरियं चरियतवं नियसरीरनिरवेक्खं । उप्पन्नविमलकेवलनाणा सा सिद्धिमणुपत्ता ॥ ३१५४ ॥ पढइ सुयं तवइ तवं सज्झायं कुणइ सुणइ वक्खाणं । वेयवियक्खणसाहू संजाओ झत्ति गीयत्थो ॥ ३१५५ ॥ छत्तीससूरिगुणसंगओ ति गुरुणो कओ पए नियए । पडिबोहंतो भविए कुणइ विहारं सपरिवारो ॥ ३१५६ ॥ सो हं इह संपत्तो जोइंदापुच्छिओ तए जं च ।। वेरग्गकारणं तस्स एस मग्गं पि तुह कहियं ॥ ३१५७ ॥ ता भो ते च्चिय धन्ना वसंति अकलंकिया इह भवे जो । न कयाइ गुरू अवज्जायरणेण विडंबियाहमिव ॥ ३१५८ ॥
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