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सिरिअणंतजिणचरियं इय अमरेहिं जुत्तउ, वेगि पहुत्तउ, नंदीसरु निय हिययइ धरि । दाहिण पुव्विल्लइ, सिरि सोहिल्लइ, हरि रइकरि अवयरिउ घरि ॥ १४६१ ॥
संहरि सिरिवित्थरू अप्पमाणु, संकोइवि तं गुरुतरु विमाणु । तो चल्लिड जंबुद्दीवु सरिवि, दाहिणउ भरहु नियहियइ धरिवि ॥ १४६२ ॥ लंघंतु गयणुमाणु पवणजवणि, हरि पत्तु सीहसेणस्स भवणि । सविमाणु पयाहिण तिन्नि देवि, भत्तीए सुरेसरु नमइ देवि ॥ १४६३ ॥ ईसाणकोणहि मिल्लिवि विमाणु, जिणु नमइ सपरियणु सबहुमाणु । जिणजणणि थुणइ तो सहसनयणु, गंभीरसरेण पूरंतु गयणु ॥ १४६४ ॥ जयजय चिंतामणिकुच्छिधरणि, जय -भवणदीवउप्पत्तिकरणि । जय महिलवग्ग संपत्तरेहि, जय पणयचरणि दाणवसुरेहिं ॥ १४६५ ॥ (५) जयजय मयगलगामिणि, तिहुयणसामिणि, इय थुणेवि दससयनयणु । देविणु अवसोयणि दुहदरमोयणि, नियगुरुत्त-निज्जय-गयणु ॥ १४६६ ॥
पडिबिंबु ठवइ तित्थयरतणउ, जणणीसमीवि वामोहजणउ । तो पंचरूवु ठिउ झत्ति सक्कु, कयमिच्छदिट्ठिसुरमणधसक्कु ॥ १४६७ ॥ उव्वट्टिवि हरियंदणरसेण, नियपाणिजुयलु नं सियजसेण । तो एक्कि रूवें सामिसालु, करकोसिकरइ हरि सिरिविसालु ॥ १४६८ ॥ छत्तत्तउ वीइई सिरि धरेइ, विहि चमरजुयल चालणु करेइ । पंचमउ वज्जकरु पुरुउ सरइ, जो जिण अभत्तु तसु पाण हरइ ।। १४६९ ॥ (६) तो चलिउ सुरेसरु मेरुमग्गि, गुरुतारइ भरसोहिएसमग्गि । परिवज्जमाण जयतूरविसरु, चलवेगविणिज्जयपवणपसरु ॥ १४७० ॥ लंघतउ दीहरुउव्व-महीहरु, जोयणलक्खु संमूसियउ । गच्छंतु पुरंदरु, पेच्छइ मंदरु, विप्फुरंतमणिभूसियउ ॥ १४७१ ॥
जो सहइ चारुतलभद्दसालु, वणसंडु व बहुमणसुविसालु । दिसि वित्थरंत पहमंडलेण, जिणसंमुहु चलइ जु नियबलेण ॥ १४७२ ॥
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