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सिरिअणंतजिणचरियं जिणपूया पावहरी जिणपूया जायए भवंतकरी । . जिणपूया सव्वाण वि कल्लाणमणीण भंडारो ॥ ७५५४९ ॥ अवहरइ दरिदत्तं पणामए तिजयलच्छिविच्छड् । जिणपूया कीरंती पणासए सव्वदुरियाई ॥ ७५५० ॥ (कुसुमपूयाफलम्मि सिरिकुसुमसेहरकहा) कुसुमक्खय-फल-जल-धूव-दीव-नेवज्ज-वास-निम्माया । पूया जिणेसराणं सा अट्ठविहा विणिद्दिट्ठा ॥ ७५५१ ॥ वरपरिमलेहिं कुसुमेहिं पूयए जो जिणे सबहुमाणं । पूयापत्तं जायइ जिणप्पसाया गुरूण वि सो ॥ ७५५२ ॥ जो जिणपयपउमपुरो पूयत्थं खिवइ अक्खए खिप्पं । सासयसोक्खे मोक्खम्मि अक्खओ होइ सो पत्तो ॥ ७५५३ ॥ एक्केणा वि फलेणं जिणरन्नो जो उवायणं कुणइ । तो तप्पसायओ लहइ सो धुवं सव्वसिद्धिसिरिं ॥ ७५५४ ॥ पत्तगएण जिणिंदं जो सच्छस्साउसीयलजलेण । पूयइ सो तेणेव य पक्खालइ नियमलं नियमा ॥ ७५५५ ॥ जो घणसारं अगुरुं च दहइ जिणअंगधूवणनिमित्तं । सो घणसारो जायइ अगुरू धणओ वि जस्स पुरो ॥ ७५५६ ॥ जो मंगलप्पईवेण पूयए सामिसालजिणचंदं ।। सो दीवसिहाउज्जलमुत्तीसग्गसिरिं रमइ ॥ ७५५७ ॥ जे निरवज्जं भोज्जं नेवज्जे जिणवरस्स जच्छंति । भोत्तूण ते अणवज्जाइं भवसुहाई सिवं जंति ॥ ७५५८ ॥ जो सुहवासेहिं जिणेसरस्स पूएइ पायसयवत्तं । सो सुहवासम्मि सया सिवालए सासओ वसइ ॥ ७५५९ ॥ एयाओ अट्ठ वि कुणइ जो सया भत्तिनिब्भरो भव्यो । सो अट्ठकम्ममुक्को संपज्जइ सासओ सिद्धो ॥ ७५६० ॥
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