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________________ ૬૮૮ सिरिअणंतजिणचरियं चत्तो रत्तो वि पिओ भवम्मि पुव्वे इमाए कुवियप्पा । इय चिंतिय कुविएण व कामेण सरेहिं पहिया सा ॥ ८८३९ ॥ दाहो वाहो कंपो हियए नयणेसु देहजट्ठीए । तव्वेलं चिय तीए संजाया सत्तिया भावा ॥ ८८४० ॥ अरईसयगसिक्कारवसविणिक्खंतरत्तदंतपहं । हिययम्मि अमायंतं उव्वणमइ पियाणुरायं व ॥ ८८४१ ॥ असुहपसरप्पकंपिरकडजुयनहसुत्तिकंतिपसरेण । धवलंती चंदणरसपंकेण व ताविलं देहं ॥ ८८४२ ॥ ईय पसरियनियपियविरहतावदावग्गिदज्झमाणतणू । उव्वेया वेयवसा बाला कळं दसं पत्ता | ८८४३ ॥ गरुयाणुणयपुरस्सरपुच्छंतसहीणसाहिओ तीए । पुव्वप्पियम्मि भुवणप्पमोयगे निवसुए नेहो ॥ ८८४४ ॥ भणई य जइ तमहं पुव्वभवपियं हे सहीओ न लहेमि । देमि धुवं ता जलणस्स आहुई नियसरीरेण ॥ ८८४५ ॥ नहयरनाहस्स सहीहिं साहिओ तीए निय सुए राओ । तो से तोसो जाओ सुयाए कुमराणुरत्ताए ॥ ८८४६ ॥ जंपइ पन्नत्तिं देवयं निवो देवि ! आणसु कुमारं । अच्चाहियं न जायइ जा मह जीवियसमसुयाए ॥ ८८४७ ॥ तो इह देवी पत्ता पत्ते कुमरम्मि रम्ममुज्जाणं ।। काऊण किन्नरीपेच्छणच्छलंतीए हरिओ सो ॥ ८८४८ ॥ नेउं रहनेउरचक्कवालनयरम्मि नहयरिंदस्स ।। सो उवणीओ तीए सह कुमरीए पमोएण ॥ ८८४९ ॥ कयगोरवेण कुमरस्स राइणा कहिय कन्नया चरियं । भणियं पुव्वभवपियं परिणसु तं वच्छ ! मह दुहियं ॥ ८८५० ॥ तं सोउं जाईसरणनायनियपुव्वजम्मवुत्तो । जंपइ तए जमुत्तं काहं सव्वं पि तं किंतु ॥ ८८५१ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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