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सीलोवरिरयणावलीकहा
३३९
अइररुइप्फुरियं पिव दिट्ठविणठें सिरी विलसियं पि । रोय-जरा भीयं पिव, जाइ ललाम पि लायन्नं ॥ ४३३३ ॥ पायं सन्निहियाओ अणिट्ठगोट्ठीउ आवईड व्व । कल्लाणमालियाओ दुलहाओ इट्ठगोट्ठीओ ॥ ४३३४ ॥ अट्ठोत्तरसयरोय पविभज्जंतस्स कत्थ देहस्स ।। अक्खयया मडयस्स व गिद्धेहिं गसिज्जमाणस्स ॥ ४३३५ ॥ एइ जरा तुरिययरं कडरकए रायकालवत्ती वि ।। परिपालइ पत्थावं पासे परिसंठिउं मच्चू ॥ ४३३६ ॥ एयारिसे असारम्मि भवविलासम्मि किं महासत्त ! । कुणसि न अप्पायत्तं नियचित्तं उप्पहपसत्तं ॥ ४३३७ ॥ अवरं च मह सरीरे किं सच्चवियं नियप्पिया अहियं । जेण अणिवत्तउ तुह मह विसए राय ! उक्करिसो || ४३३८ ॥ मुत्तंत-वसासुइ-मंस-सुक्क-सोणिय-सिर-ट्ठि-पोत्तम्मि । का राय ! मह सरीरम्मि सारया जीए अणुरत्तो ? || ४३३९ ॥ गुज्झ-अवाण-त्थण-वयण-नासिया-सवण-नयण-छिड्डाणि ।। दुग्गंध-मल-चिलीणाणि, जाणिउं कहणु रत्तोऽसि ॥ ४३४० ॥ दंतवणुव्वट्टण-न्हाण-पमुह-परिकम्मणा विहीणा वि । कंत-तणुणो तिरिअ-बीभच्छा हुंति पुण मणुया ॥ ४३४१ ॥ अंगावयवेहिं ठिओ वयरंति तिरिया सया वि लोयाण । जं कीरइ तच्चम्मेण निवसणोवाणहाईयं ॥ ४३४२ ॥ वीइज्जति नरिंदा सुरा य चमरीण पुच्छ-केसेहिं । गयदंतपव्वएसुं खिप्पइ कप्पूर-घुसिणाइं ॥ ४३४३ ॥ करिकुंभमोत्तिएहिं अलंकरिज्जति राय-देवा वि । सिंगारिजंति सया मयणाहीए धणड्ढा वि ॥ ४३४४ ॥ किं बहुणा जेसिं गोमओ वि सुपवित्तयं वहइ तेण । जं गोमुहाई कीरति सुर-पइट्ठाइपव्वेसु ॥ ४३४५ ॥
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