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भावणाधम्मेसिंगारमउडकहा सिंगारसायरनिवो, संवेगावेगसंगपुलयधरो । जंपइ पहुपयपासे, पढमं धम्मं गहिस्सामि ॥ ५९८५ ॥ किंतु पुहु ! पंचवारिसियपुत्तओ हत्थिणा हिओ मज्झ । तद्दिवसाओ जाया संपइ वरिसाण चउवीसा ॥ ५९८६ ॥ ता भयवं ! सो कत्थइ समत्थि अहवा नव त्ति मे कहह । जं तुम्हमसेसं पि हु पच्चक्खं तेण पुच्छामि ॥ ५९८७ ॥ भणियं केवलिणा सोम ! सुणसु जत्थत्थि तुह सुओ राया । तं सोउं जीवइ पुत्तउ त्ति सेवट्ठिया आसा ॥ ५९८८ ॥ नरवइ ! तया गयाहिवउत्तिन्ने बालहारय नरे वि । कुमरो गच्छइ गयठियसमुग्गिया तूलियारूढो ॥ ५९८९ ॥ बालो वि एक्कगो वि हु अदीणचित्तो तहट्ठिओ जाइ । अहवा कस्सइ भीहइ लहू वि किं केसरिकिसोरो ? || ५९९० ॥ तईय दिणे अच्चंतं छुहा-पिवासाहिं वाहिओ बालो । तरुणा वि हु पीडिज्जंति, छुह-तिसाहिं न किं बाला ? ॥ ५९९१ ॥ गेलन्नवसा सुत्तस्स तस्स तूलीए आगया मुच्छा । बहुमग्गलंघणस्समवसेण निद्दागयासुहहरा ॥ ५९९२ ॥ गच्छइ मुच्छा पच्छाईयच्छिणा तेण संगओ हत्थी । गच्छंतो संपत्तो कमेण विंझाडई मज्झो || ५९९३ ॥ गयणं पिव सुक्कविसाहरोहिणी गुरुअगत्थिमूलसियं । लुद्धय हत्थविकत्तिय मयसिरिमंदप्पयारं व ॥ ५९९४ ॥ अन्नोन्नमिलियबहुसाहिसाहनिच्छिद्दपत्तपन्भारे । न लहंति पवेसं जम्मि रायसूरा वि दुग्गेव ॥ ५९९५ ॥ तस्संतो गच्छंतो संपत्तो गुरुरएण गयराओ । सिरिविंझवासिणी नाम देवया आययणदारम्मि ॥ ५९९६ ॥ रायंगणे व्व तम्मि बहुकलहकरेणुसंकुले पत्तो ।। देवी मंदिरदाराभिमुहो होऊण वीसंतो ॥ ५९९७ ॥
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