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________________ रणविक्कमकहा रत्तकुसुमेहिं पूईय, तद्देहं रत्तचंदणविलितं । उवविसिय तयं मंताभिमंतियं अग्गओ ठविओ ॥। २४४८ ॥ रक्खवइ कत्तियं सो मारिउकामो कुमारियं पावो । नत्थियवाईणऽहवा किमकज्जं निग्विणमणाणं ।। २४४९ ।। मरणभयुब्भंतच्छीहच्छमतुत्थस्सरेण पोक्करइ । भो धाह धाह, धावह पावो संहणइ जोइ त्ति ।। २४५० ॥ तं सोऊणं रणविक्कमस्स करुणाए पूरियं हिययं । दुहिए अवरे वि दया गुरूण किं पुण न नारीए ।। २४५१ ॥ तो कोवकड्ढियासी, हक्कंतो जाइ जोईयाभिमुहं । अन्नो वि हु अनईणं, न सहइ किं खत्तियस्स सुओ ।। २४५२ ॥ जंपतो रे रे दुट्ठ ! धिट्ठ ! अविसिट्ठ ! कम्मचंडाल ! । मुंचसु इत्थि अह तो, मह खग्गहओ धुवं मरसि ॥ २४५३ ॥ इय जंपतो उक्खित्तखग्ग- जट्ठी वि थंभिओ तेण । न चलइ तिलमत्तं पि हु, संखमपाहाणघडिओ व्व ॥ २४५४ ॥ भणिओ य जोइएणं, तमंतरायं करेसि किं मज्झ । भुवणत्तयपक्खोहणिविज्जासंसिद्धिसमयम्मि ।। २४५५ ।। जेण दुवालसवरिसाइं उद्धसेवज्जियं महाकठ्ठे । मह विहलं चियं जायइ उत्तरसेवं विणा अज्ज ॥ २४५६ ॥ सा पुण जायइ बत्तीसलक्खणुत्तमकुमारिहोमेण । सा एसा एत्थ च्चिय पत्ता भमिरेण देसेसु ॥ २४५७ ॥ ता अवलंबिय मोणो चिट्ठसु तमहं करेमि मंतस्स । होमं जं पारद्धं गुरू न तं चयइ मरणे वि ।। २४५८ ॥ रणविक्कमो विचिंतइ महप्पभावो इमो धुवं को वि । जेण इह थंभिओ हमवि निच्चलो कीलिओ व्व ठिओ ॥ २४५९ ॥ ता एस पुरिसयरो, सज्झो बज्झो वि मारिउमसक्को । ता सोमो च्चिय कीरओ को वा दंडो पयंडम्मि ॥ २४६० ॥ Jain Education International १९३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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