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________________ ७११ धम्मदेसणा सो पुण दुविहो पढमो खंतिप्पमुहो जईण दसभेओ । बीओ उ सावयाणं थूलो भन्नइ दुवालसहा ॥ ९१३७ ॥ जेउं ठंति महासत्ता काउं ते पढममेव जंति सिवं । कट्ठा सहाओ बीयं कमदिन्नसिवअणुट्ठति ॥ ९१३८ । ते दोवि सिवेक्कफला हवंति सम्मत्तपुव्वया तं पि । गयरायदेवनिग्गंथसुगुरुनवतत्तसद्दहणा ॥ ९१३९ ॥ तं निसुणिऊण भरहद्धसामिजेद्रुण भाउणा सामी । सुप्पहनिवेण नमिऊण पुच्छिओ सव्वगिहिधम्मं ॥ ९१४० ॥ आह पहू ता निसुणसु सुप्पहनिवदंसणस्स अईयारे । जेहिं विसद्धं जायइ सम्मत्तं मोक्खतरुमूलं || ९१४१ ॥ संका कंखा य तहा वितिगिच्छा अन्नतित्थियपसंसा । परतित्थियाण सवणमइयारो पंच सम्मत्ते ॥ ९१४२ ॥ सामन्नेणं एए कहिया तुह संपयं तु एक्केक्कं । एयाणं आयन्नसु साहिप्पंतं पयत्तेण ॥ ९१४३ ॥ जो जिणपणीयतत्तेसु संसओ सा कहिज्जए संका । कंखा पुण अवरावरकुतित्थिगहणम्मि संभवइ ॥ ९१४४ ॥ सा विचिगिच्छा भन्नइ संदेहो हवइ जीए फलविसए । पारद्धो एस मए अत्थो सिज्जेज्झ अह नो वा ? || ९१४५ ॥ विज्जा-मंताइकयं-दटुं परतित्थियुन्नई मूढो । तेसिं पसंसमाणो सम्मत्तं दूसए विमलं ॥ ९१४६ ॥ अणुमोयणसंवासालवणे परतित्थिएहिं सह कुव्वं । कलुसइ सम्मत्तं इय अइयारा पंच एयम्मि ॥ ९१४७ ॥ एयं विसुद्धं एयं देइ सुदेवत्तमाणुसत्ताइ । तत्तो सासयरूवं भव्वाणं सिद्धि-सोक्खं पि ॥ ९१४८ ॥ सद्धम्मधणनिहाणं करुणासुरसरिपवाहतुहिणसिरी । चारित्तकुसुममलओ नाणनई निवहनइनाहो ॥ ९१४९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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