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भुवनपईवनिवकहा धाईए वि अरईए असुहत्थीए वयंसियाए व । दासीहिं व संगहिया कामुक्कलियाहिं सा दूरं || ८६४६ ॥ ता पहु ! पेससु कुमरं परिणयणकए कुरंगनयणीए । जह होइ जीवियं से गुरूण दुहिए न जमुवेहा ॥ ८६४७ ।। रायाह सा सइ च्चिय जो पुव्वब्भवप्पियम्मि अणुरत्ता । सिविणे वि जं सईणं रमइ मणो नन्न रमणम्मि ॥ ८६४८ ॥ इय भणिय समाइट्ठो कुमरो वीवाहिउं नरिंदसुयं । वच्छा ! गच्छसु तो सो नमिय निवाणं सिरे धरइ ॥ ८६४९ ॥ ' सम्माणिऊण मंतिं संवाहियनियसुओ समंतेण । चउरंगचमूचक्को पट्ठविओ हिट्ठहियएण ॥ ८६५० ॥ अणवरयकयपयाणो सो मणिमंदिरपुरम्मि संपत्तो । 'ठाणं चलिरो मंदो वि पावए किं न सिग्घगई" ॥ ८६५१ ॥ पत्तओ य वत्थकयहट्टसोहगुरुमंचतोरणधयम्मि । रायंगरुहो रन्ना रिद्धीए पवेसिओ नयरे ॥ ८६५२ ॥ आवासिओ समप्पियपासाए कणयकलसकमणीए । नरवइकारावियभोयणाइगुरुगोरवमहाघो ॥ ८६५३ ।। लग्गदिणे हयगयठियसामंता वेढिओ गयारूढो । छत्तद्धयचामरचयरायालंकारकमणीओ ॥ ८६५४ ॥ वज्जिरजयआउज्जो पत्तो वीवाहमंदिरवारे । रइयायारो पविसिय उवविट्ठो कन्नया पासे ॥ ८६५५ ॥ पठं से तीए करं करेण गहिडं पयाहिणिय जलणो । उवविसिय रायकुमरेहिं तयणु सम्माणिओ लोओ || ८६५६ ॥ तो नियकलत्तकलिओ चलिओ घडिउं करेणुरायम्मि । रिद्धीए नियावासे पत्तो कीलइ सह पियाए ॥ ८६५७ ॥ ससुरयसम्माणुम्मीलमाणतोसो दिणाण दसगं सौ । तत्थच्छिय नमिय निवं सकलत्तो नियपुरे पत्तो || ८६५८ ॥
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