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________________ ४९० सिरिअणंतजिणचरियं तो ताई सहत्थेणं रन्नादिन्नाई तीए रमणीए । तुह करिबुद्धाए भइणि ! मंगलीयं ति इय भणियं ॥ ६२८० ॥ तो तस्स निरीहत्तं सोडीरत्तं च वयण-विन्नासं । दहुँ सव्वो वि जणो विम्हयओ एवमुल्लवइ ॥ ६२८१ ॥ दीसंति पभूया वि हु पुरिसाभूभारकारया भुवणे । नवरं न महासत्तो एय समो अस्थि तिजए वि ॥ ६२८२ ॥ चक्की वा राया वा नज्जइ एसो सुलक्खणतणूए । केणावि कारणेणं जामेगगो भमइ तं चित्तं ॥ ६२८३ ।। ईय भणिरजणालावे, आयन्नंतो पुरीए सव्वाए । पत्तो नरेसरो जोगसिद्धिवरजोइणीभवणे ॥ ६२८४ ॥ अब्भुट्ठिऊण तीए, काउं पय-सोहणाइपडिवत्तिं । भणियं मए सुयं सामि रमणिमोयवेणं करिणो ॥ ६२८५ ॥ कीलावणं च मत्तस्स तस्स ता पह ! न तम्ह जत्तमिणं । विसमविहिविलसियवसा जइ हुतं किं पि हु अणिठें ॥ ६२८६ ॥ ता तुह रज्जब्भंसो मह अयसो वंछियत्थविग्यो य ।। जणवयरिउचमढणमिय अणत्थपत्थारिया हुंती ॥ ६२८७ ॥ रायाह मए सत्तं न नारिगन्माण मारणं दर्छ । करुणाए वसे विहिओ हत्थी न बलाबलेवेण ॥ ६२८८ ॥ जे न खणभंगुरेहिं पाणेहिं परोवयारलेसं पि । कुव्वंति ताण छाया पुरिसाण व अंतरं किमिह ? || ६२८९ ॥ विहिए परोवयारे परिपसरइ ससिकरुज्जला-कित्ती । सग्गापवग्गसम्मग्गसाहओ होइ धम्मो वि ॥ ६२९० ॥ तो तीए सत्ताहियनिवसंभावियसकज्जसिद्धीए । परितोसमुव्वहंतीए करिओ नरवई न्हाणं ॥ ६२९१ ॥ मयणाहिमिस्सचंदणरसेण रइऊणमंगरायं से । रइओ य रम्मवत्थाभरणेहिं समग्गसिंगारो ॥ ६२९२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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