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________________ रणविक्कमकहा २५३ तहाहि - ता पारणयं कज्जं जइ इह रन्ने सुसीमनयरीओ । एही नरो सभज्जातिगो तहा सुहितिगसमेओ ॥ ३२२४ ॥ जइ भिल्लभडुल्लंटियसत्थाहो भासिऊण इह वाही । भत्तासु मित्तपत्तीसु सड्ढपरहदुगदिणम्मि || ३२२५ ॥ नियभोयणगहियारत्तधन्नपडिपुन्नपत्तलीहत्थो । मिलिएसु सुरासुरखेयरेसु भत्तीए जइ दाही ॥ ३२२६ ॥ गहियविसुद्ध अन्नं अह नो इममेव अणसणं मज्झ । इय वाइए पइन्ना पुन्ना मुणिणो त्ति नाऊणं ॥ ३२२७ ॥ अमरेंहिं जयजयारवपुरस्सरं विरइया कुसुमवुट्ठी । दाणपसंसापुव्वं वुटुंमणिकणयकोडीहिं ॥ ३२२८ ॥ चेलुक्खेवं काऊण जंपियं पुरिसरयण ! धन्नो तं । पाराविओ तवस्सी जेणेस दुमासणाऽहारो ॥ ३२२९ ।। संपुन्ननियपइन्नो पणओ लच्छीहरेण सो साहू । तम्मित्तकलत्तेहिं य भावेणऽणुमोयणा विहिया ॥ ३२३० ॥ पुन्ननिययप्पइन्ने मुणंमि पत्तम्मि पारणयट्ठाणे । सट्ठाणे संपत्ता अमरासुरखेयरा सव्वे ॥ ३२३१ ॥ मुणिदाणेणं लच्छीहरो वि नियजम्मजीवियव्वाण । सहलतं कलयंतो सलाहिओ मित्तकंताहिं ॥ ३२३२ ॥ तं चिय धन्नो तं पुन्नभायणं तं समज्जियजसो य । तं चिय भुवणभंतरपवित्तपुरिसाण पढमो त्ति ॥ ३२३३ ॥ बहुदिणनिरसणमुणिवरपारणसुपुन्नपरमतोसवसा । पयडीहोउं सासणदेवी लच्छीहरं भणइ ॥ ३२३४ ॥ लच्छीहर ! वच्छ ! अतुच्छ ! लच्छिविच्छड्डमेयमायरसु । जेणामरेहि दिन्नं तुह मुणिदाणेण हिट्ठेहिं ॥ ३२३५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
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