SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 712
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८३ भुवणपमोयनिवकहा एवं पसंसिय मुणिं अदिट्ठबंधाओ तं भडं मुत्तं । धम्ममई संजाया देवी सहस त्ति मुणिवयणा ॥ ८७७४ ॥ सो वि भडो पयलग्गो अवराह खामए नियं मुणिणो । 'दूरम्मि पाणदाया पुज्जो अवरो वि उवयारी ॥ ८७७५ ॥ भणइ य तइ सोमे वि हु सच्चविए कलुसियं मणो मज्झ । अमयकरे वि हु दिढे कमलं संकुयइ जमजोरगं ॥ ८७७६ ॥ मारणपरे रिउम्मि वि तुह पहु ! हियए पवद्धिओ पसमो । दाहकरे वि निदाहे सीयं वि य होइ हिमसेले ॥ ८७७७ ॥ ता मज्झ देहि दिक्खं पावाओ इमाओ नन्नहा मोक्खो । “वेरग्गे जं न कयं नृणं तं दुक्करं पच्छा” ॥ ८७७८ ॥ तो से दिन्ना दिक्खा मुणिणा देवीए अप्पिओ वेसो । धम्मुज्जयम्मि जइ वा मूलं सोक्खस्स साहेज्जं ॥ ८७७९ ॥ नवदिक्खयं पसंसिय सट्ठाणे देवया गया झ त्ति । दठूण तमच्छरियं भणइ मुणिं नमिय रणसूरो ॥ ८७८० ॥ दुक्करदिक्खा एते मज्झे समत्तस्स कहसु गिहिधम्म । “दिज्जइ न जओ दुद्धं रोयम्मि रसाहिए अहवा” ॥ ८७८१ ।। भणइ मुणी गयरायं देवं आयरसु उज्झिय सरायं । मुत्तूण कामधेनुं किं गिण्हइ गद्दहिं को वि ॥ ८७८२ ॥ नाणालोए गुरुणा गिण्हसु रविणो व्व जयपवित्तकरे । पविसिऊण गुरुणो बहलनिसीहे व्व तमबहुले ॥ ८७८३ ।। अंगोकरेसु धम्म सुक्खकरं दुहयरं चइयपावं । मुत्तुमजरामरममयं को मच्चुक्करं गरं गिलइ ॥ ८७८४ ॥ कप्पद्रुमं व वंछियफलयं आयरसु उत्तमं तत्तं । किंपागं पिव संमोहकारयं मा पुण अतत्तं ॥ ८७८५ ॥ चत्तारि वि एयाई सुदेव-गुरु-धम्मतत्तरूवाई । नारयतिरियनरामरगईओ चउरो अवहरंति ॥ ८७८६ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy