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सिरिअणंतजिणचरियं अह अन्नया नरेसरनियडनिविढे कुमारपमुहम्मि । मंडलिय-मंति-सामंत-दूयसेणाहिवाइजणे ॥ ६९५५ ॥ पविसिय सहाए मणि-कणय-दंडमंडियकरेण नमिय निवो । पडिहारेण सविणयं कयकरकोसेण विन्नत्तो ॥ ६९५६ ॥ (जुयलं) देव ! दुवारे उज्जाणपालओ कुसुमसुंदरो नाम । पहुदंसणं समीहइ ता करणिज्जं समाइसह || ६९५७ ॥ मुंचसु तमियनिवुत्तो सो मुक्को पविसिउं निवं नमिउं । विन्नवइ देव ! अलिकुलउलउज्जाणे केवली पत्तो || ६९५८ ।। सुररईयकणयकमले उवविट्ठो धवलछत्तसच्छाओ । जो संतयाए नज्जइ आरायरोसो अकहिओ वि ॥ ६९५९ ॥ सद्देसणं कुणंतस्स जस्स वयणाओ दसणकिरणाली । मेहाओ अमयवुट्ठि व्व निग्गया समइ भवभावं ॥ ६९६० ॥ सो सामीणब्भुदएक्ककारणं तेण विन्नवेमि अहं ।। तं सोऊण नरिंदेण तुट्ठिदाणं विइन्नं से ॥ ६९६१ ॥ तो आरूढो दाणावगाढसिंगारियंगकरिराए । अवहरियतरणितावोपरिविलसिरपुंडरीएण ॥ ६९६२ ॥ करडिघडाहिं तुरयावलीहिं घणघंटरव-रहालीहिं । मंडलिय-मंति-सामंतलंकियाहिं कयावेढो ॥ ६९६३ ॥ बंदीहिं पढिज्जंतो विलसिरवज्जंतमंजुलाउज्जो । संतेउरो सपउरो ससुओ पत्तो तमुज्जाणं ॥ ६९६४ ॥ नवघणगहीरगज्जियपरिभवकरदेसणासरं सोउं ।। सहकरिवरेण परिहरिय पंचवररायककुहाइं ॥ ६९६५ ॥ पविसिय सहाए कयतिप्पयाहिणो केवलिक्कमे नमिउं । परिवारजुओ राया उचियट्ठाणे समुवविट्ठो ॥ ६९६६ ॥ पहुणा पारद्धा पारभवअवारतरणेक्कतरी । सद्देसणा महामोहमूढभव्वावबोहत्थं ॥ ६९६७ ॥
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