SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो सा सुइसुहयरसरअहरीकयकिन्नरीनियरकंठा । आइसइ वच्छ ! किं नियकुलुन्नई पइ पमायपरो ? || २९० ॥ तुम्हारिसा वि जइ असमसाहसुत्तासया जमस्सावि । अवहीरिय धीरिममिय पमायओ वोलयति कुला ॥ २९१ ॥ ता नूण पउत्था पुरिसयारवत्ता वि भुवणगब्भम्मि । न समीहियसिद्धीओ संपज्जंति प्पमाईणं ॥ २९२ ॥ ता साहसमवलंबिय कं पि हु तह वच्छ ! उज्जम कुणसु । जह होइ तुह कुलुन्नइकरो सुओ पूयए य ममं ॥ २९३ ॥ रायाऽऽह देवि ! साहसमहमवलंबामि जत्थ तं कहसु । देवी जंपइ कीए वि देवयाए पुरो राया ॥ २९४ ॥ भणइ निवो किं तुज्झ वि सयासओ का वि देवया अवरा । पवरा समत्थि जमहं पसायइस्सामि साहसओ ? ॥ २९५ ॥ किमियरदेवीहिं मह पत्ताए उत्तमाए देवी ! तए ? । किमवररसेहिं कज्जं पत्ते अमए मरणहरणे ? ॥ २९६ ॥ भग्गो मग्गो वि तए भूनाह ! हिओवएसदाणस्स । जं पुत्तुप्पत्तिकए उवरोहसि ममिय तीयुत्तं ॥ २९७ ॥ तो भणइ निवो पुत्तं वियरसु गिन्हसु व देवि ! मह पाणे । वित्थरउ अज्ज तोसो सोओ वा भुवणगब्मम्मि ॥ २९८ ॥ उल्लवइ महालच्छी अणहुंतमहं सुयं कहं देमि ? | जा तुज्झ रक्खिगा हं सा तं कह राय! मारेमि ? ॥ २९९ ॥ रायाऽऽह देवि ! निययप्पइन्नभंगं न चेव काहमहं । पुत्तो तुज्झायत्तो मरणं पुण मज्झयाऽऽयत्तं ॥ ३०० ॥ इय जंपिरेण जमजीहसच्छहं छुरियमुक्खिविय तेण । वामकरधरियकेसं पारद्धं छिंदिउं ससिरं ॥ ३०१ ॥ तो छिज्जंतनसाजालगलिरकीलालसंवलियदेहो । राया सारुणकिरणो कणयाभो भाइ मेरु व्व ॥ ३०२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001445
Book TitleAnanthnath Jina Chariyam
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorJitendra B Shah, Rupendrakumar Pagariya
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages778
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, N000, & N001
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy