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तवोवरिचंदकंतकहाणयं हा निस्सेस गुणायर ! हा परमायरपरोक्यारपरा ! ।। हा सच्छा सयसियजससुमित्त ! तं कत्थ दीसिहसि ? || ५५२६ ॥ सो सत्थवई रोयइ दुस्सहसुहिगुरुविओगउव्विग्गो । हा सप्पुरिससिरोमणि ! कत्थ गओ तं ममं मुत्तुं ? || ५५२७ ॥ तईआ अरण्णमझे, थंभेउं सबरसंतियं धाडि । मह सत्थं रक्खेउं महोवयारो कओ तुमए ॥ ५५२८ ॥ तुह पुण तणमेत्तं पि हु नमए सिरकमलओ वि अवणीयं । ता कयन्नु जणाणं, सुमित्त ! अहमेव पढमयरो ॥ ५५२९ ॥ जइ होइ तुज्झ दुस्सहविओयवज्जाहयस्स सह मरणं । ता निव्वडइ सिणेहो, अकित्ति सो अन्नहा नियडी ॥ ५५३० ॥ ईय पलविय पइरिक्के, रन्नो साहइ वसंतदेवुत्तं । भणइ धरणीवई वि हु, कीरउ इममेत्थ को दोसो ? || ५५३१ ॥ तत्तो य सत्थवइणा जह न जणो मुणइ तह मयमुहं ति । मुट्ठी उडिल्ल-अक्खय-सिद्धत्थाणं परिनिहित्ता ॥ ५५३२ ॥ तो रन्ना जद्दरनेत्तमेहडंबरविराइयं रुंदं ।। कारवियं जंपाणं चलघणरणज्झणिरकिंकिणियं ॥ ५५३३ ॥ आमलयथूलं मुत्तावचूलकलियम्मि तम्मि पक्खत्तो । देहो वसंतदेवस्स, घुसिणमयणाहिरससित्तो ॥ ५५३४ ॥ उक्खित्तं जंपाणं रायाएसा पहाणपुरिसेहिं । वज्जंतभूरितूरप्पडिरवपरिपूरियदियंतं ॥ ५५३५ ॥ कयकमचंकमणो च्चिय राया जंपाण अग्गअग्गठिओ । पत्तो तरंगिणीए तीरम्मि दिणावसाणम्मि ॥ ५५३६ ॥ कसिणागरु-चंदण-चारु-दारपब्भारकयचियाचक्के । आरोवियं सरीरं वसंतदेवस्स कयपूयं ॥ ५५३७ ॥ भणियं रन्ना एसा मसाणभूमी भयावहा दूरं । बहलतमा रयणी वि हु पत्ता तागम्मउ गिहेसु ॥ ५५३८ ॥
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