________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] [73 समावण्णजीवपण्णवणा 1 तिरिक्खजोणियचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा 2 मणुस्सपंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा 3 देवचिदियसंसारसामावण्णजीवपण्णवणा 4 / [56 प्र.] वह पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना किस प्रकार की है ? [56 उ.] पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है-(१) नैयिक-पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना, (2) तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियसंसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना, (3) मनुष्य-पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना और (4) देव-पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना।। विवेचन–चतुविध पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना–प्रस्तुत सूत्र (सू. 56) में नैरयिक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव ; इन चतुर्विध पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों का निरूपण किया गया है। नैरयिकजीवों की प्रज्ञापना 60. से कि तं नेरइया? नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता / तं जहा-रयणप्पभापुढविनेरइया 1 सक्करप्पभापुढविनेरइया 2 बालुयप्पभापुढविनेरइया 3 पंकप्पभापुढविनेरइया 4 धूमप्पभापुढविनेरइया 5 तमप्पभापुढविनेरइया 6 तमतमप्पभापुढविनेरइया 7 / ते समासतो दुविहा पण्णत्ता / तं जहा–पज्जतगा य अपज्जत्तगा य / से तं नेरइया / [60 प्र.] वे (पूर्वोक्त) नैरयिक किस (कितने) प्रकार के हैं ? [60 उ.] नैरयिक सात प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-(१) रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक, (2) शर्कराप्रभापृथ्वी-नैरयिक (3) वालुकाप्रभापृथ्वी-नैरयिक, (4) पंकप्रभापृथ्वी-नरयिक, (5) धूमप्रभापृथ्वी-नैरयिक, (6) तमःप्रभापृथ्वी-नै रयिक और (7) तमस्तमःप्रभापृथ्वी-नैरयिक / वे (उपर्युक्त सातों प्रकार के नैरयिक) संक्षेप से दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-पर्याप्तक और अपर्याप्तक / यह नैरयिकों की प्ररूपणा हुई / विवेचन-नरयिक जीवों की प्रज्ञापना-प्रस्तुत सूत्र (सू. 60) में नैरयिक और उनके सात प्रकारों की प्ररूपणा की गई है। 'नरयिक' शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ-निर् +अय का अर्थ है-जिससे अय अर्थात् इष्टफल देने वाला (शुभ कर्म) निर् अर्थात् निर्गत हो गया हो-निकल गया हो, जहाँ इष्टफल की प्राप्ति न होती हो, वह निरय अर्थात् नारकावास है। निरय में उत्पन्न होने वाले जीव नैरयिक कहलाते हैं। ये नैरयिक (नारक) जीव संसारसमापन्न अर्थात्--जन्ममरण को प्राप्त हैं तथा पांचों इन्द्रियों से युक्त होते हैं, अतएव पंचेन्द्रिय-संसारसमापन्न कहलाते हैं / ' समग्र पंचेन्द्रिय तियंचयोनिक जीवों की प्रज्ञापना 61. से कि तं पंचिदियतिरिक्खजोणिया? 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वत्ति, पत्रांक 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org