________________ प्रथम प्रज्ञापनापद / [ 71 उपाया उक्कडा उप्पडा तणाहारा कट्ठाहारा मालुया पत्ताहारा तणविटिया पतविटिया पुष्फविटिया फलविटिया बीयविटिया तेदुरणमज्जिया' तउसमिजिया कप्पासटिसमिजिया हिल्लिया झिल्लिया झिगिरा किगिरिडा पाहुया सुभगा सोवच्छिया सुविटा इंदिकाइया इंदगोवया उरुलुचगा कोत्थलवाहगा जूया हालाहला पिसुया सतवाइया गोम्ही हस्थिसोंडा, जे यावऽण्णे तहप्पगारा। सम्वेते सम्मुच्छिम-णपुंसगा। [57.1 प्र.] वह (पूर्वोक्त) त्रीन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना किस प्रकार की है ? [57-1 उ.] त्रीन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना अनेक प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है-प्रीपयिक, रोहिणीक, कंथु (कुथुआ), पिपीलिका (चींटी, कीड़ी), उद्देशक, उद्देहिका (उदई-दीमक), उत्कलिक, उत्पाद, उत्कट, उत्पट, तृणाहार, काष्ठाहार (घुन), मालुक, पत्राहार, तृणवृन्तिक, पत्रवृन्तिक, पुष्पवृन्तिक, फलवृन्तिक, बीजवृन्तिक, तेदुरणमज्जिक (तेवुरणमिजिक या तम्बुरुण-उमज्जिक), पुषमिजिक, कापसास्थिमिजिक, हिल्लिक, झिल्लिक, झिगिरा (झींगूर), किगिरिट, बाहुक, लधुक, सुभग, सौवस्तिक, शुकवृन्त, इन्द्रिकायिक (इन्द्रकायिक), इन्द्रगोपक (इन्द्रगोप-~-बीरबहूटी), उरुलुचक (तुरुतुम्बक), कुस्थलवाहक, यूका (जू) हालाहल, पिशुक (पिस्सू--- खटमल), शतपादिका (गजाई), गोम्ही (गोम्मयी), और हस्तिशौण्ड / इसी प्रकार के जितने भी अन्य (जीव हों, उन्हें त्रीन्द्रिय संसारसमापन्न समझना चाहिए।) ये (उपर्युक्त) सब सम्मूच्छिम और नपुंसक हैं। [2] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा–पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एएसि णं एवमाइयाणं तेइंदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं अट्ठ जातिकुलकोडिजोणिप्पमुहसतसहस्सा भवंतीति मक्खायं / से तं तेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा / [57-2] ये (पूर्वोक्त त्रीन्द्रिय जीव) संक्षेप में, दो प्रकार के कहे गए है, यथा--पर्याप्तक और अपर्याप्तक। इन पर्याप्तक और अपर्याप्तक श्रीन्द्रियजीवों के सात लाख जाति कूलकोटि-योनिप्रमुख (योनिद्वार) होते हैं, ऐसा कहा है। यह हुई उन त्रीन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना / विवेचन-तीन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना--प्रस्तुत सूत्र (सू. 57) में तीन इन्द्रियों वाले अनेक जाति के जीवों का निरूपण किया गया है। गोम्ही का अर्थ-वृत्तिकार ने इसका अर्थ-'कर्णसियालिया' किया है / हिन्दी भाषा में इसे कनसला या कानखजूरा भी कहते हैं। चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना 58. [1] से कि तं चउरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा? चरिदियसंसारसमावष्णजीवषण्णवणा अणेगविहा पण्णत्ता / तं जहापाठान्तर---१. तंबुरुणुमज्जिया, तिबुरणमज्जिया, तेबुरणमिजिया। 2. झिगिरिडा बाहुया / 3. उरुतु भुगा, तुम्तु बगा। 4. प्रज्ञापनासूत्र मलय, वृत्ति, पत्रांक 42 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org