________________ 72 ] [ प्रज्ञापनासूत्र अंधिय त्तिय' मच्छिय मगमिगकोडे तहा पयंगे य / ढिकुण कुक्कुड कुक्कुह गंदावते य सिगिरिडे // 110 // किण्हपत्ता नीलपत्ता लोहियपत्ता हलिद्दपत्ता सुविकलपत्ता चित्तपक्खा विचितपक्खा श्रोभंजलिया जलवारिया गंभीरा णोणिया तंतवा अच्छिरोडा अच्छिवेहा सारंगा णेउला दोला भमरा भरिलो जरुला तोढा विच्छता पत्तविच्छ्या छाणविच्छुया जलविच्छ्या पियंगाला कणगा गोमयकोडगा, जे यावऽण्णे तहप्पगारा / सव्वेते सम्मुच्छिमा नपुंसगा। [58-1 प्र.] वह (पूर्वोक्त) चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना किस प्रकार की है ? [58-1 उ.] चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना अनेक प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है--- [गाथार्थ अंधिक, नेत्रिक (या पत्रिक), मक्खी, मगमृगकीट (मशक-मच्छर, कीड़ा अथवा टिड्डी) तथा पतंगा, ढिकुण (ढंकुण), कुक्कुड (कुकुट), कुक्कुह, नन्द्यावर्त और शृगिरिट (गिरट) / / 110 // ___ कृष्णपत्र (कृष्णपक्ष), नीलपत्र (नीलपक्ष), लोहितपत्र (लोहितपक्ष), हारिद्रपत्र (हारिद्रपक्ष), शुक्लपत्र (शुक्लपक्ष), चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, अवभांजलिक (मोहांजलिक), जलचारिक, गम्भीर, नोनिक (नीतिक), तन्तव, अक्षिरोट, अक्षिवेध, सारंग, नेवल (नपुर), दोला, भ्रमर, भरिलो, जरुला, तोट्ट, बिच्छू, पत्रवृश्चिक, छाणवश्चिक (गोबर का बिच्छ), जलवृश्चिक, (जल का बिच्छु), प्रियंगाल, कनक और गोमयकीट (गोबर का कीड़ा)। इसी प्रकार के जितने भी अन्य (प्राणी) हैं, (उन्हें भी चतुरिन्द्रिय समझना चाहिए। ये (पूर्वोक्त) सभी चतुरिन्द्रिय सम्मूच्छिम और नपुसक हैं। [2] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा य। एतेसि णं एवमाइयाणं चरिदियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं णव जातिकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा भवतीति मक्खायं / से तं चरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा। [58-2] वे दो प्रकार के कहे गए हैं। यथा-पर्याप्तक और अपर्याप्तक / इस प्रकार के चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों के नौ लाख जाति-कुलकोटि-योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा (तीर्थंकरों ने कहा है / यह हुई उन चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना / विवेचन-चतुरिन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना–प्रस्तुत सूत्र (सू. 58) में चतुरिन्द्रिय जीवों के अनेक प्रकारों और उनकी जातिकुलकोटि-योनियों की संख्या का निरूपण किया गया है। चतुर्विध पंचेन्द्रिय संसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना 56. से कि तं पंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? पंचिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा चउव्विहा पण्णत्ता। तं जहा–नेरइयचिदियसंसार 1. पोसिय / 2. मसगाकीडे, भगसिरकोडे, मगासकोडे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org