Book Title: Jainagama Nirdeshika
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनागम-निर्देशिका [पेंतालीस जैनागमों की विषय-निर्देशिका ] तला 221 MAMALAM सम्पादक मुनि कन्हैयालाल 'कमल' Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपाध्याय कविरत्न श्री अमरचन्दजी महाराज का अभिमत जैनागम-निर्देशिका-पैतालीस जैनागमों की विशद विषयसूचिका । अपनी भूमिका का सुन्दर एवं उपादेय ग्रन्थ । इस प्रकार के ग्रन्थ की चिरकाल से अपेक्षा की जा रही थी और इसके लिए दो चार छुट-पुट प्रयत्न भी हुए, परन्तु मुनि श्री 'कमल' जी का प्रयास सर्वोपरि शिरसि शेखरायमाण है। विषय-निर्देशन काफी बौद्धिक सूक्ष्मता एवं आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से किया गया है । संशोधक विद्वानों के लिए तो यह अल्प प्रयास से ही बहुत कुछ पा लेने जैसा है । आगम साहित्य में साध्वाचार, श्रावकाचार, अध्यात्म, दर्शन, इतिहास, आदि की अनेकविध विस्तृत चर्चाएं हैं । तत्काल किसी विषय के संबंध में जानकारी प्राप्त करना हो तो आगम-सागर में गहरी डुबकी लगाए बिना, समय और श्रम का विपुल उपयोग किये बिना, कुछ अता-पता पा लेना शक्य नहीं है । परन्तु प्रस्तुत पुस्तक इस कठिनाई का सरलतम समाधान है, भावुकता नहीं, विवेक के प्रकाश में मुनि श्री जी इसके लिए सविशेष धन्यवाद के पात्र हैं। संपादन के समान ही पुस्तक की छपाईमें सफाई आदि का बाह्य परिष्कार भी अद्यतन एवं नयनाभिराम है । -उपाध्याय अमर मुनि, आगरा W inelibrary.one Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो सिद्धाणं जैनागम-निर्देशिका [ पैंतालीस जैनागमों का विषय निर्देशन ] 2 122945 आगम प्रसारभ अनुयोग सम्पादक मुनि कन्हैयालाल 'कमल' Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकआगम अनुयोग प्रकाशन पोस्ट बॉक्स ११४१ दिल्ली-७ प्रथमावृत्ति वीर संवत् २४६२ विक्रम संवत् २०२३ ईस्वी सन् १९६६ मूल्य २५ रु. मुद्रकउद्योगशाला प्रेस, किंग्सवे दिल्ली Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण जैनागमों के अध्ययन में अभिरुचि रखनेवाले जिज्ञासु जनों को ---- मुनि कमल Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्ञप्ति पूर्व प्रकाशित सूचना के अनुसार अनुयोग शब्द - सूची इसी पुस्तक में देने की योजना थी किन्तु पृष्ठ संख्या अधिक हो जाने से 'अनुयोग शब्द सूची' एवं कतिपय परिशिष्ट पृथक् पुस्तिका के रूप में प्रकाशित करने की योजना है । यह पुस्तिका केवल जैनागम - निर्देशिका के ग्राहकों को ही देने का नियम है, अतः अन्य सज्जन केवल इस पुस्तिका के लिए आवेदन पत्र न भेजें । आगम अनुयोग - ग्रन्थराज का प्रकाशन कार्य चल रहा है, निकट भविष्य में इसका प्रथम विभाग चरणानुयोग स्वाध्याय के लिए उपलब्ध हो सकेगा । श्री शान्तिभाई वनमाली शेठ के उदारता पूर्ण सहयोग से यह विशालकाय पुस्तक इस रूप में इतने अल्प समय में आपके करकमलो में पहुँचा सके हैं, इसकेलिए हम उनके चिरकृतज्ञ हैं । -मंत्री Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैनागम-निर्देशिका आगम-सूची که ८३१ ३ له م م م م ८५७ ८५६ م ८७३ م م م س ق ر س ५१३ ११ अंग अागम पृ० संख्या २६. नन्दीसूत्र पृ० संख्या ८३२ १. आचारांग २७. अनुयोगद्वार २. सूत्रकृतांग | ४ छेद भागम ३. स्थानांग २८. बृहत्कल्प ८४५ ४. समवायांग २६. जीतकल्प ५. भगवतीसूत्र २६१ ३०. व्यवहार ६. ज्ञाताधर्मकथा ३१. दशाश्रुतस्कंध ७. उपासकदशा ४६७ ३२. निशीथ ८७७ ८. अन्तकृद्दशा ३३. श्रावश्यक ६. अनुरोत्तपपातिकदशा। ४६७ ७६३ ३४. कल्पसूत्र ८६९. १०. प्रश्नव्याकरण ५०३ ५० प्रकीर्णक ११. विपाक ३५. चतुश्शरण प्रकीर्णक ६१६ १२ उपांग आगम ३६. आतुर-प्रत्याख्यान ... ६१६ १२. औपपातिक ३७. महाप्रत्याख्यान .... ६२१ १३. राजप्रश्नीय ३८. भक्तपरिज्ञा .... ६२४ १४. जीवाभिगम ३६. तन्दुलवैचारिक .... ६२७ १५. प्रज्ञापना संस्तारक .... ६३० १६. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४१. गच्छाचार ..... ६३१ १७. चन्द्रप्रज्ञप्ति. ४२. गणिविद्या १८. सूर्यप्रज्ञप्ति ७२६ ४३. देवेन्द्रस्तव " ६३५ १९-२३ निरयावलिकादि ४४. मरणसमाधि .... ६३८ ४ मूल अागम २४. दशर्वकालिक ७५७ । १ नियुक्ति भागम २५. उत्तराध्ययन ७६७ / ४५. पिण्ड-नियुक्ति ६४१ . م ५२७ ع ع ५६५ ب س ७२६ m ... ६३३ م ७४५ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय-निर्देशन में प्रयुक्त आगमों की प्रतियां १ अाचारांग२ सूत्रकृतांग श्रागमोदय समिति सूरत जैनाचार्य श्री जवाहरलाल जी म. के तत्वावधान में सम्पादित मुनि श्री वल्लभविजयजी सम्पादित जैनधर्म प्रसारक सभा. भावनगर पं० बेचरदास जी दोशी सम्पादित अागमोदय समिति. सूरत ३ स्थानांग ४ समवायांग ५ भगवती सूत्र ६ ज्ञाताधर्म कथा ७ उपासक दशा ८ अन्तकृद्दशा ६ अनुत्तरोपपातिक ५० प्रश्नव्याकरण ११ विपाक १२ औपपातिक १३ राजप्रश्नीय १४ जीवाभिगम १५ प्रज्ञापना १६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति १७ चन्द्रप्रज्ञप्ति- सूर्यप्रज्ञप्ति १८ निरयावलिकादि १६ दशवैकालिक पं० भगवानदास हर्षचन्द्र सम्पादित श्रागमोदय समिति. सूरत आग जैनाचार्य श्री श्रात्माराम जी म.. सम्पादित २० उत्तराध्ययन Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ नन्दी सूत्र २२ अनुयोग द्वार २३ व्यवहार सूत्र २४ बृहत्कल्प सुत्र २५ दशा श्रुतस्कंध २६ निशीथ २७ जीतकल्प २८ दस प्रकीर्णक २६ पिण्डनियुक्ति ३० प्रवचन किरणावली ३१ अभिधान राजेन्द्र कोश ३२ अर्धमागधी कोश ३३ पाइयसद्द महण्णत्र ७ पूज्य श्री हस्तिमल जी म० संशोधित जैनाचार्य श्री श्रात्माराम जी म० संपादित पूज्य श्री श्रमोलख ऋषि जी म० डा० जीवराज वेलाभाई दोशी सम्पादित जैनाचार्य श्री आत्माराम जी म० सम्पादित मुनि श्री जिनविजय जी सम्पादित मुनि श्री पुण्यविजय जी म० सम्पादित आगमोदय समिति. सूरत गणिवर्य श्री हंससागर जी म० सम्पादित प्राचार्य विजयपद्म जी म० लिखित Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रवचन - प्रभावना अमूल्य प्रागम-निधि की सुरक्षा वीर - निर्वाण के पश्चात् एक हजार वर्ष की अवधि में एक-एक युग लम्बे तीन दुर्भिक्ष आये और गये । इन दुर्भिक्षों में निर्ग्रन्थ श्रमणों से आगम-वाचना, पृच्छना - परिवर्तना और अनुप्रेक्षा न हो सकी । इसलिए क्रमशः प्रत्येक दुर्भिक्ष के अन्त में पाटलीपुत्र, मथुरा और वलभी में भ० भद्रबाहु स्कंदिलाचार्य और आचार्य नागार्जुन को अध्यक्षता में आगमों की सुरक्षा के लिए श्रमण संघ ने वाचनाओं का आयोजन किया । " यहाँ तक श्रुतपरम्परा प्रचलित रही। • वीर - निर्वाण के ६८० वर्ष पश्चात् वलभी में देवधि गणि क्षमा श्रमण की अध्यक्षता में श्रमण संघ ने आगमों को लिपिबद्ध किया | 3 लिखना और पुस्तक रखना निर्ग्रन्थ श्रमण के लिए यद्यपि सर्वथा निषिद्ध था, किन्तु देवधराणि ने जब स्मृति- दौर्बल्य का स्वयं अनुभव किया तो आगमों की सुरक्षा के लिए संघ के समक्ष पुस्तक लेखन के अपवाद का नव विधान किया । आगमों के लिपिबद्ध होने के पश्चात् १४०० वर्ष की अवधि में दुष्काल के कुचक्र ने जैन संघ से अनेक आगम छीन १ (क) पाटलीपुत्र वाचना वीर निर्वाण के १६० वर्ष पश्चात् (ख) माथुरी वाचना वीर निर्वाण के ८२७ वर्ष पश्चात् (ग) वालभी वाचना माथुरी वाचना के समकाल हुई है । २ कुछ विद्वानों का मत है कि - माथुरी और वालभी वाचनाओं में आगम लिपिबद्ध हो गये थे । ३ वीर निर्वाण के ९९ ३ वर्ष पश्चात् वलभी में देवधि गणि ने आगम और प्रकीर्णक लिपिबद्ध करवाए। यह भी एक मान्यता है । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिए। आचारांग का सातवां महापरिज्ञा अध्ययन और दसवाँ प्रश्नव्याकरण अंग पूर्ण टीकाकारों के युग में भी उपलब्ध नहीं थे। आगमों के लेखनकाल में संकलित नन्दीसूत्र में जिन कालिक और उत्कालिक सूत्रों की एक लम्बी सूची अंकित है, उनमें से अनेक आगम वर्तमान में अनुपलब्ध हैं। ये आगम कब और कैसे अदृष्ट हुए, इस सम्बन्ध में पूर्ण विवरण प्रस्तुत करने का साधन हमारे पास नहीं है। प्राकृतिक विपदाओं से जिन-वाणी की सुरक्षा का उत्तरदायित्वअधिष्ठायक देव-देवियों का है। किन्तु ह्रास-काल के प्रभाव से कहिए या हमारे दुर्भाग्य से कहिए वे भी आगम-सुरक्षा से सर्वथा उदासीन रहे। फिर भी जेसलमेर पाटण आदि के विशाल ज्ञान भण्डार में प्रचुर अमूल्य आगम-निधि सुरक्षित है। जिनवाणी प्रेमी जिज्ञासु जन उनके संस्थापकों एवं संरक्षकों के सदैव आभारी रहेंगे। स्वाध्याय-साधना आगम-निधि की सुरक्षा के लिए स्वाध्याय की प्रवृत्ति बढ़ाना अत्यावश्यक है और इसके लिए एक व्यापक कार्यक्रम को आवश्यकता है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य सर्वसाधारण के लिए जैनागमों का महत्व समझाना तथा जन साधारण को जैनागमों के स्वाध्याय के लिए प्रोत्साहित करना है । इस कार्यक्रम के तीन प्रमुख अंग हैं : १ चतुर्विध संघ में जैनागमों के स्वाध्याय की प्रवृत्ति को बढ़ावा देना। २ जैनागमों का वैज्ञानिक पद्धति से लोकप्रिय प्रकाशन । १ स्थानांग में वर्णित प्रश्नव्याकरण के स्वरूप से उपलब्ध प्रश्नव्याकरण का स्वरूप सर्वथा भिन्न है। २ बन्ध दशा, द्विगृद्धि दशा आदि अनेक प्रकीर्णक ग्रन्थ । Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११ ) ३ विश्व की प्रमुख भाषाओं में जैनागमों का प्रकाशन । और ४ विश्व के शोध संस्थानों को जैन आगमों का उपहार । स्वाध्याय की प्रवृत्ति बढ़ाना (क) प्रत्येक धर्म स्थान में एक आगम पुस्तकालय स्थापित कराना। वह धर्म-स्थान मन्दिर हो या उपाश्रय, स्थानक हो या पौषध शाला । प्रत्येक क्षेत्र के स्थानीय संघ को आगम-स्वाध्याय के लिए उत्साहित करना । स्वाध्याय मण्डल की स्थापना करना । वर्षभर में समस्त आगमों का पारायण करनेवाले स्वाध्यायशील श्रमणोपासक को अ० भा० जैन संघ द्वारा सम्मानित या पुरस्कृत किया जाना । (ख) धर्मकथा करनेवाले श्रमणवर्ग या श्रमणोपासक वर्ग को जैनागमों का विशाल ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रबल प्रेरणा दी जाय । आगम ज्ञान की अभिवृद्धि के लिए वे स्वयं उत्सुक बने, ऐसा वातावरण बनाया जाय । प्रत्येक धर्म-कथक के लिए प्रति वर्ष किसी एक आगमिक विषय पर शोध निबन्ध लिखना अनिवार्य कर दिया जाय । जो धर्म कथक सर्वश्रेष्ठ महत्त्वपूर्ण निबन्ध लिखे उसे अ० भा० जैन संघ द्वारा सम्मानित किया जाय। (ग) आगम-पारायण का एक वार्षिक कार्यक्रम बनाया जाय और पारायण के माहात्म्य का इतना अधिक व्यापक विचार किया जाय किसर्वत्र वार्षिक पारायण प्रारम्भ हो जाय । जैनागमों के लोकप्रिय प्रकाशन आगम प्रकाशन का कार्य वैज्ञानिक पद्धति से होना आवश्यक है । १ वृद्धों व अल्प-पठित स्वाध्याय प्रेमियों को बड़े सुवाच्य अक्षरों में प्रका शित आगम प्रतियाँ प्रिय होती हैं। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) २ युवा व अल्पवयस्क स्वाध्यायशील व्यक्तियों को सूक्ष्माक्षरों में __ लधुकाय संस्करण रुचिकर होते हैं। ३ विद्वद्वर्ग के लिए प्रौढ़ साहित्यिक सुललित सरस भाषा में आगमों का अनुवाद प्रभावोत्पादक होता है । ४ अल्प-पठित पुरुष एवं महिलाओं के लिए सरल भाषा में आगमों का अनुवाद अधिक रुचिकर एवं ज्ञानवर्धक होता है । इस प्रकार आगमों को लोकप्रिय बनाने के लिए विविध प्रकार के संस्करणों का प्रकाशन आवश्यक है । विश्व के विद्यालयों को जैनागमों का उपहार ____ विश्व की साहित्यिक भाषाओं में अनुवाद एवं मुद्रित जैनागमों का अति शुद्ध संस्करण विश्व के विश्वविद्यालयों में पहुँचाना तथा आगमिक विषयों पर शोध निबन्ध लिखने वाले जैन जैनेतर बन्धुओं को समान भाव से सम्मानित करना या पुरस्कृत करना । इस प्रकार भारतीय जैन संघ प्रवचन की प्रभावना करके अमूल्य प्रागम-निधि की सुरक्षा करने में समर्थ हो सकेगा। जैनागम-निर्देशिका में पैतालीस आगमों का विषय निर्देशन उपलब्ध पैंतालीस आगमों का जैनागम-निर्देशिका में उपयोग किया है, बत्तीस आगमों के अतिरिक्त तेरह आगमों में स्थानकवासी परम्परा से मौलिक मतभेद रखनेवाला कोई संदर्भ नहीं है । यह निर्णय जैनागमनिर्देशिका के आद्योपान्त अध्ययन से पाठक स्वयं कर सकेंगे। जैनागमों की रचना.शैली जैनागमों की रचनाशैली चार प्रकार की है१ संवादात्मक शैली एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से प्रश्न करता है और वह उसका उत्तर Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देता है । यथा- भगवान महावीर और गौतम का संवाद । केशी गौतम का संवाद । राजा प्रदेशी और केशी मुनि का संवाद । राजा श्रेणिक और अनाथी निग्रंथ का संवाद आदि । २ वर्णनात्मक शैलोकिसी श्रमण या श्रमणी तथा श्रमणोपासक या श्रमणोपासिका के जीवन का वर्णन । यथा-दस उपासकों का तथा अन्तकृत आत्माओं का वर्णन अथवा ऐसे अन्य सभी वर्णन । ३ उपदेशात्मक शैलीसाधक या साधिका को किसी प्रकार का उपदेश देना । यथा जरा जाव न पीडेइ, वाही जाव न वड्ढइ । जाविदिया न हायंति, ताव धम्म समायरे ॥ ४ विधि-निषेधात्मक शैली साधक के लिए किसी प्रकार का विधान या निषेध करना । यथाकप्पइ निग्गंथाणं आउंचण-पट्टगं धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा । नो कप्पई निग्गंथीणं आउंचण-पट्टगं धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा। जैनागमों के प्रमुख विषय१ आचार-सम्बन्धी विधि-निषेध । २ आचार-सम्बन्धी उपदेश । ३ आचार-सम्बन्धी औसगिक और आपवादिक नियमों का विधान । ४ प्रायश्चित्त विधान । ५ भूगोल-खगोल वर्णन । ६ तत्त्व-निरूपण। ७ जैनधर्मानुयायी साधकों के जीवन । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४ ) ८ कतिपय रूपक | & शुभाशुभ कर्मफलों का वर्णन । विषय निर्देशन में बाधाएँ १. सर्व प्रथम आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध की समस्या सामने आई । यह समस्या थी सूत्र संख्या को मेरे सामने आचारांग की इतनी प्रतियाँ हैं क- जर्मन डा० शुबिंग सम्पादित प्रति, देवनागरी लिपि संस्करण । ख- प्रो० रवजी भाई देवराज सम्पादित, द्वितीय संस्करण | ग- आगमोदय समिति, सूरत । घ- आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज सम्पादित । इन सब प्रतियों में प्रथम श्रुतस्कन्ध के सूत्रों की संख्या भिन्न-भिन्न है, अतः प्रत्येक सूत्र का आदि और अन्त समान नहीं है । किस प्रति के सूत्रांक सही हैं - यह निर्णय करना सामान्यतया कठिन है। जैनागम-निर्देशिका में प्रथम श्रुतस्कन्ध को सूत्र संख्या में एकरूपता नहीं है । अर्थात् - एक किसी प्रति के आधार सूत्र संख्या नहीं दी हैं । एक सूत्रान्तर्गत भिन्नभिन्न विषयों का निर्देशन वर्णमाला द्वारा किया है । २. सूत्रकृतांग, दश त्रैकालिक, उत्तराध्ययन आदि में अनेक औपदेशिक गाथाएं ऐसी हैं जिनमें एक से अधिक विषय हैं, उन सब विषयों का निर्देशन वर्णमाला द्वारा किया गया है । जिस अध्ययन का आद्योपान्त एक ही विषय है उसका मैंने भी एक ही विषय दिया है । यथा - सूत्रकृतांग अ० ४, ५, ६ का विषय । मुख्य विषय का शीर्षक १२ प्वाइंट सोनो ब्लैक में दिया है और उसके अन्तर्गत विषय १२ प्वाइंट ह्वाइट में दिये हैं । यह क्रम जैनागम-निर्देशिका में सर्वत्र है । ३. स्थानांग के सूत्रांक आगमोदय समिति सूरत की प्रति के अनुसार दिये हैं । इन सूत्रों में अनेक सूत्र ऐसे हैं जिनके अंतर्गत अनेक सूत्र हैं । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ ) टीकाकार भ यत्र-तत्र इन सूत्रों की संख्या का निर्देश स्वयं करते हैं । टीकाकार सम्मत सूत्र - संख्या सम्पूर्ण स्थानांग को जानने के लिए बहुत बड़े उपक्रम की आवश्यकता थी, किन्तु मैं ऐसा न कर सका । फिर भी विषय निर्देशन में बहुत सावधानी बरती है । जहाँ तक हो सका है किसी विषय को छोड़ा नहीं है । ४. समवायांग के सूत्रांक 'जैनधर्म प्रसारक सभा भावनगर' से प्रकाशित प्रति के दिये हैं । इस प्रति में प्रत्येक समवाय के सूत्रांक क्रमशः दिये हैं । किन्तु टीकाकार प्रत्येक समवाय में कई सूत्र मानते हैं । जैनागमनिर्देशिका में प्रत्येक सूत्र का विषय निर्देशन किया है । ५. भगवती सूत्र की एकमात्र प्रति पं० बेचरदास जी सम्पादित मेरे सामने है । अब तक प्रकाशित भगवती सूत्र की प्रतियों में सर्वशुद्ध यही संस्करण है । इसके प्रथम भाग में दो शतक हैं, प्रथम शतक की प्रश्नोत्तर संख्या ३२६ है और द्वितीय शतक की प्रश्नोत्तर संख्या ७६ है । तृतीय शतक से प्रत्येक उद्देशक की प्रश्नोत्तर संख्या दी गई है । इसलिए एकरूपता नहीं है । वर्णनात्मक सूत्रों के सूत्रांक और प्रश्नोत्तरांक भिन्न-भिन्न नहीं दिए हैं अतः यह पता नहीं चलता कि वास्तव में इस उद्देशक में प्रश्नोत्तर कितने हैं और सूत्र कितने हैं । इस प्रति में जहाँजाव एवं जहा आदि से संक्षिप्त पाठ दिए हैं उनमें प्रश्नांक या सूत्रांक कितने होते हैं । यह अंकित नहीं है इसलिए प्रश्नोत्तरों को निश्चित संख्या जानना सरल नहीं है । विषय निर्देशन में मैंने इसी प्रति का उपयोग किया है किन्तु प्रश्नोत्तरांकों की एकरूपता नहीं रह सकी । ६. विषय निर्देशन के लिए जिन प्रतियों का उपयोग किया है उनकी सूची अन्यत्र दी है । अनुवाद एवं टीका के शुद्ध संस्करण आगमों के अब तक अप्राप्य हैं । यही एक बहुत बड़ी कठिनाई विषय- निर्देशन में रही है । Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) चोरासी आगम आगमों की संख्या के सम्बन्ध में तीन प्रमुख मान्यताभेद हैं :१. ८४ आगम २. ४५ आगम ३. ३२ आगम २६ उत्कालिक, ३० कालिक, १२ अंग-७१. ७२ आवश्यक ७३ अंतकृद्दशा "अन्य वाचना का" ७४ प्रश्नव्याकरण ७५ अनुत्तरोपपातिक दशा ,, ७६ बन्ध दशा ७७ द्वि गृद्धि दशा ७८ दीर्घ दशा ७९ स्वप्न भावना ८० चारण भावना ८१ तेजोनिसर्ग ८२ आशिविष भावना ८३ दृष्टिविष भावना ८४ कल्याण फल विपाक के ५५ अध्ययन पाप फल विपाक के ५५ अध्ययन १ ये ७२ नाम नन्दी सूत्र में उपलब्ध हैं । २ ये ६ नाम स्थानांग सूत्र में है । ३ ये ५ नाम व्यवहार सूत्र में है। ४ यह पचपनवें समवाय में है । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पैतालीस आगम १० प्रकीर्णक ११ अंग १२ उपांग ६ छेद सूत्र - १. व्यवहार । २. बृहत्कल्प । ३. जीतकल्प ४. निशीथ । ५. महानिशीथ । ६. दशा श्रुतस्कन्ध । ६ मूल सूत्र - १. दशवैकालिक । २. उत्तराध्ययन । ३. नन्दीसूत्र | ४. अनुयोग द्वार । ५. आवश्यक निर्युक्ति । ६. पिण्ड - नियुक्ति । ४५ बत्तीस आगम११ अंग १२ उपांग ४ मूल सूत्र - १. दशवैकालिक । २. उत्तराध्ययन ३. नन्दी सूत्र । ४. अनुयोग द्वार । ४ छेद सूत्र - १. व्यवहार । २. बृहत्कल्प । ३. निशीथ । ४. दशा श्रुतस्कंध | www ( १७ ) ३१ ३२ वां आवश्यक जैनागम निर्देशिका के प्रकाशन की पृष्ठभूमि विश्व के भाषा-साहित्य में प्राकृत भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है, प्राकृत भाषा साहित्य के प्रकाशन की स्थिति ऐसी नहीं है और जैनागमों के प्रकाशन की स्थिति देखकर तो मन में ऐसा लगता है कि समाज का साक्षर एवं सम्पन्न वर्ग प्रवचन प्रभावना के प्रमुख अंग आगम साहित्य को प्रमुख न मानने की भयंकर भूल कर रहा है, क्योंकि भगवान महावीर ht fasaneerणकारिणी वाणी का प्रचार व प्रसार जैनागमों के विश्व Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यापी प्रचार व प्रसार से ही सम्भव है । क-जर्मन आदि विदेशों के प्रमुख विश्वविद्यलायों में प्राकृत भाषाओं का अध्ययन हो रहा है। ख- भारत के कतिपय विश्वविद्यालयों में प्राकृत भाषाओं का अध्ययन हो रहा है। ग- अनेक भारतीय विद्वान् जैनागमों के अध्ययन के लिए उत्सुक हैं। घ- अनेक भारतीय छात्र जैनागमों के अभिलषित विषयों पर शोध निबन्ध लिखना चाहते हैं। किन्तु जैनागमों का प्राथमिक परिचय प्राप्त करने के लिए कोई पुस्तक सुलभ नहीं है। बहुत वर्षों पहले गुजराती भाषा में "प्रवचन किरणावली" नाम की एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी, उसका संकलन प्राचीन पद्धति से हुआ था, प्रत्येक गाथा या सूत्र का विषय क्या है, यह उसमें नहीं दिखाया गया है अतः हिन्दी भाषा-भाषी जनता के हित के लिए "जैनागमनिर्देशिका" के संकलन का आयोजन किया गया है। अल्प धारणा-शक्ति या अल्प आगम-भक्ति ह्रास-काल (अवसर्पिणी-काल) के प्रभाव से मानव की धारणाशक्ति का उत्तरोत्तर ह्रास होने लगा अतः जैनागमों का लेखन प्रारम्भ हुआ और इस मुद्रण-कला के युग में जैनागमों का मुद्रण हो रहा है । इस ऐतिहासिक घटनाचक्र में जैनागमों के लेखन का हेतु धारणा-शक्ति का अल्प होना बताया गया है, यह कहाँ तक संगत है, यह शोध का विषय है । अतीत में दुभिक्ष के कारण बहुत लम्बे समय तक श्रमण-श्रमणियां जैनागमों का पारायण न कर सके, इसलिए उनका आगम-ज्ञान लुप्त होने लगा था यह ऐतिहासिक सत्य है। किन्तु उस समय श्रुति की विस्मृति का कारण दुर्भिक्ष था-अल्प धारणा-शक्ति नहीं । यद्यपि काल का प्रभाव अनिवार्य है और स्मृति दौर्बल्य की घटना के पीछे भी कुछ तथ्य अवश्य हैं, फिर भी धारणा शक्ति का ह्रास इतना नहीं हुआ है कि Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) बिना पुस्तक के हम आगम-ज्ञान को सुस्थिर न रख सकें। राजस्थानी भाषा के बृहत् काव्य बगड़ावत, तेजाजी आदि वर्तमान में भी राजस्थान के अनेक कृषकों को कण्ठस्थ हैं, वे उन काव्यों कायदाकदा पारायण भी करते हैं, यद्यपि उन्हें अक्षर-ज्ञान नहीं है, फिर भी उनको धारणा-शक्ति प्रबल है। इसी प्रकार राजस्थान की देवियाँ अपने सामाजिक गीतों को सदा कण्ठस्थ रखती हैं। वे सामाजिक प्रसंगों पर उनका पारायण करती रहती हैं। राजस्थानी भाषा के ये बृहत् काव्य और ये गीत अब तक लिपिबद्ध नहीं हुए हैं। कृषकों और स्त्रियों में अब तक भी श्रुत-परम्परा चल रही है । कृषकों और स्त्रियों से तो हमारे पूज्य संयमी श्रमण-श्रमणियों की धारणा-शक्ति निर्बल नहीं होनी चाहिए। हमारे पूज्य श्रमण श्रमणियों में आज स्मरण-शक्ति का चमत्कार दिखानेवाले कई शतावधानी और कई सहस्रावधानी हैं । इसलिए अतीत के समान आज भी जैनागमों का ज्ञान कण्ठस्थ करने की शक्ति हमारे पूज्य श्रमण-श्रमणियों में विद्यमान है। यदि आगम-भक्ति अधिक हो तो अतीत के स्वर्ण युग को पुनरावृत्ति असम्भव नहीं है । पुस्तक रखना अपवाद मार्ग है पुस्तक परिग्रह है एवं असंयम का हेतु है।' यह असंदिग्ध है। पर अनेक शताब्दियों से हमारे ऐसे संस्कार बन गए हैं कि-पुस्तक हमारे ज्ञान का साधन है। बिना पुस्तक के हम ज्ञानोपार्जन करने में असमर्थ हैं । इसलिए पुस्तक हमारी साधना का एक प्रमुख अंग बन गया है । अतीत में आचार्यों ने पुस्तक या लेखन अपवाद रूप में स्वीकार किया था वह अपवाद रूप आज प्रायः समाप्त हो गया है, यह उचित नहीं है । पुस्तक ज्ञान का साधन है और इस युग में बहुश्रुत होने के लिए पुस्तकों १ पोत्थएसु घेप्पतेसु. असंजमो-दशबैकालिक-अगस्त्यचूर्णी Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २० ) का पठन-पाठन अनिवार्य है । यह मानने में भी किसी को कोई आपत्ति भी नहीं है । फिर भी पुस्तक का विवेकपूर्ण सीमित उपयोग हो उचित है । श्रमणोपासक वर्ग इस सम्बन्ध में अपने उत्तरदायित्व को समझे और निभाए तो पुस्तक का अपवाद रूप में उपयोग आज भी सम्भव है । पुस्तक लेखन और मुद्रण का विरोध जैनागम जब सर्व प्रथम लिखे गए उस समय लिखने का घोर विरोध हुआ था । विरोध करनेवाला संयमनिष्ठ सर्वश्रेष्ठ श्रमणवर्ग था । अतः आगम लेखन भी अपवाद रूप में ही स्वीकार किया गया और पुस्तक लेखन एवं पुस्तक के रखने के प्रायश्चित्त का नव विधान' हुआ । विरोध करनेवाले श्रमणवर्ग की लेखन के विरोध में दी हुई युक्तियाँ" अहिंसा की दृष्टि से सर्वोत्तम हैं। उनका जबाब न किसी के पास पहले था और न आज ही है । युग ने स्वर बदला और पुस्तक लिखने की महिमा १ एक अक्षर लिखने का, एक बार पुस्तक बांधने का तथा एक पुस्तक रखने का चार लघु प्रायश्चित्त का विधान है । २ पुस्तक पंचक में दी हुई युक्तियाँ विचारणीय हैं- (क) जाल में फंसा हुआ पशु या पक्षी (ख) जाल में फंसी हुई मछली ( ग ) घानी ( तिल आदि पीलने का यन्त्र ) में पड़ा हुआ तिल कीट (घ) वधिकों से घिरा हुआ प्राणी (ङ) दूध आदि तरल पदार्थों में पड़े हुए प्राणी (च) तेल आदि स्निग्ध पदार्थों में पड़े हुए प्राणी दैवयोग से बच जाते हैं किन्तु पुस्तक के बीच में दबा हुआ प्राणी किसी प्रकार बच नहीं सकता । ३ न ते नरा दुर्गतिमाप्नुवन्ति, न मूकतां नैव जड़स्वभावम् । न चान्धतां बुद्धिविहीनतां च ये लेखन्तीह जिनस्य वाक्यम् ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) गाई गई । एक दिन जो असंयम का हेतु माना गया था । वही संयम' का हेतु मान लिया गया। फिर भी पुस्तक अपवाद रूप में ही ग्रहण किया गया- क्योंकि सभी श्रमण श्रमणियों की समान धारणा-शक्ति नहीं होती । कुछ अल्पधारणा शक्तिवाले भी होते हैं । उनके लिए पुस्तक रखना उपयोगी था और आज भी उपयोगी है । लेखन का स्थान मुद्रण ने लिया तो जैनागमों का भी मुद्रण होने लगा और मुद्रण का भी घोर विरोध हुआ । विरोध करनेवालों ने कहा निर्ग्रन्थ प्रवचन के विरोधी मुद्रित प्रतियाँ प्राप्त करके छिद्रान्वेषण करेंगे और यत्र तत्र पारिभाषिक शब्दों का मनमाना अर्थ करके भ्रान्तियाँ पैदा करेंगे । अपवाद विधानों का रहस्य समझे बिना श्रमण संस्कृति का उपहास करेंगे। किन्तु इन तर्कों में कोई तथ्य नहीं है । आगम लेखन काल से कई शताब्दी पूर्व सात निन्हव हो गये थे । ये सब प्रवचन- निन्हव थे । प्रवचन उड्डाह की परिकल्पना भी बहुत पहले हो चुकी थी । ऐसी स्थिति में प्रकाशन का विरोध करके प्रकाशन से होनेवाले असाधारण लाभ से जन साधारण को वंचित रखना सर्वथा अनुचित है । 'आगम - अनुयोग' ग्रन्थराज के प्रकाशन मेंसांडेराव के स्थानकवासी संघ का महत्वपूर्ण योगदान सांडेराव ऐतिहासिक नगर है । बांकलीवास नगरके एक मोहल्ले का नाम है, स्थानकवासी जैनों की अधिक संख्या इसी मोहल्ले १ उवगरण संजमो पोत्थए अजमी वज्जणं तु संजमो । कालं पडुच्च चरण-करण अव्वोच्छित्तिनिमित्तं गेण्हंतस्स संजमो भवति ।। २ संडेर गच्छ की उत्पत्ति से इस नगर का संबंध रहा है, ऐसे ऐतिहासिक उल्लेख हैं । यहाँ श्वे ० जैनों के ४०० घर हैं, दो जैन मन्दिर हैं, दो जैन स्थानक हैं, राजकीय चिकित्सालय और प्राथमिक शाला है । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) में है और वे सभी पोरवाल हैं । बडेवास में भी स्थानकवासी जैनों के कुछ घर हैं। उनमें कुछ घर ओसवाल हैं और कुछ घर पोरवाल हैं । स्वर्गीय स्वामीजी श्री बखतावरमलजी महाराज को श्रामण्यसाधना का केन्द्र-सांडेराव नगर। आप मेरे स्वर्गीय गुरुदेव श्री प्रताप चन्द्रजी म. सा. के गुरुदेव के गुरुभ्राता थे । आपका आगम ज्ञान एवं आत्मबल प्रसिद्ध था । आपने संविग्न शाखा के अनेक मुनियों व साध्वियों को ज्ञान-दान दिया था । आपके श्रामण्य जीवन की अनेक दिव्य चमत्कारी घटनाएँ वद्ध पुरुष सुनाया करते हैं । आपका जैन जैनेतर जनतापर समान प्रभाव था। बम्बई क्षेत्र को पावन करनेवाले प्रथम स्थानकवासी श्रमण आप ही थे। पंजाब के नाभा, पटियाला क्षेत्र भी आपके चरण-रज से पावन हुए थे, सारा गोड़वाड़ प्रान्त आपकी प्रमुख विहार-भूमि रहा, आपका स्वर्गवास इसी ऐतिहासिक नगर में हुआ। सांडेरावमें स्वामीजी महाराज के प्रमुख उपासक१. शा० धनरूपमल जी हीराजी पुनमिया, बडावास, आपने अपने एक स्व० प्रिय पुत्र की स्मृति में बांकलोवास में विशाल धर्म-स्थानक का निर्माण करवाया, आपके सुपुत्र श्री ज्ञानमलजी और श्री राजमलजी विद्यमान हैं, दोनों भाइयों का धर्म प्रेम व गुरुभक्ति प्रशंसनीय है, एक निजी नोहरे का सार्वजनिक के हित में उपयोग करके दोनों भाई पुण्योपार्जन कर रहे हैं। २ शा० पोमाजी दलिचन्दजी, बांकलीवात ___ आप स्वामीजी महाराज के परम भक्त, सरल स्वाभावी एवं परोपकारी श्रावक थे, आपका बहुत बड़ा परिवार इस समय विद्यमान है, जो चोवटिया परिवार के नाम से प्रसिद्ध है, आपके सारे परिवार की धर्म पर . Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २३ ) ३. शा, प्रतापजी कपूरजी, बांकलीवास, ___आप दृढ़धर्मी एवं विवेकी श्रावक थे, आपके चार पुत्रों में से तीन पुत्र इस समय विद्यमान हैं, बड़े पुत्र, श्री हिम्मतमल जी आपके पहले ही स्वर्गस्थ हो गये, आपके चारों पुत्रों का परिवार धर्मप्रेमी एवं सेवाभावी है। मेरे श्रमण-जीवन की जन्मभूमि, आज से तीन युग पूर्व मेरे श्रमण-जीवन का जन्म इसी नगर में चतुर्विध संघ के समक्ष हुआ था, अतः यहाँ के सभी धार्मिक जन मेरे प्रति अगाध स्नेह एवं पूज्य भाव रखते हैं । मेरी शिक्षा-दीक्षा में यहाँ का संघ प्रमुख रहा है। सार्वजनिक हित के लिए शिक्षण-शाला की स्थापना स्वर्गीय गुरुदेव श्री के प्रवचनों से प्रभावित होकर संघ ने उदारता दिखाई और राजस्थान शिक्षा विभाग को बहुत बड़ी अर्थराशि अर्पित कर प्राथमिक शाला प्रारम्भ करवाई । कुछ समय से शिक्षकवर्ग को माध्यमिक शाला की आवश्यकता प्रतीत हो रही थी, किन्तु स्थान की कमी थी, इसके लिए स्थानीय जैन दानवीरों ने उदारता दिखाकर चार विशाल कमरे बनवा दिए हैं, इनकी उदारता प्रशंसनीय है । 'आगम अनुयोग' प्रकाशन की स्थापना, पैतालीस आगमों को चार अनुयोगों में विभक्त करना और प्रत्येक विषय का अनुयोगानुसार वर्गीकरण करना समय-साध्य एवं श्रमसाध्य रहा, संकलन कार्य में ही कई वर्ष बीत गये । श्रद्धेय कवि श्री तथा पं० दलसुख भाई मालवणिया से दिशा निर्देशन मिला, और धैर्यपूर्वक कार्यरत रहने की प्रेरणा मिली। गणितानुयोग का अनुवाद डा० मोहनसिंहजी महता ने किया, चरणानुयोग का अनुवाद पं० शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने किया, इस प्रकार कुछ कार्य-भार हल्का तो हुआ, किन्तु प्रकाशन पर्यन्त सारा Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) उत्तरदायित्व मुझे निभाना था, इसलिए मन हल्का नहीं हो पा रहा था । चारों अनुयोगों के प्रकाशन का कार्य सामान्य तथा बहुत बड़ी अर्थ - राशि इसके लिए अपेक्षित थी, दो वर्ष पर्यन्त संकलित संग्रह पड़ा रहा । देहली आनेपर धर्मस्नेही सज्जन ताराचन्द प्रतापजी दर्शनार्थ आये, आगम अनुयोग के प्रकाशन के संबंध में विचार-विनिमय हुआ, फलस्वरूप "आगम अनुयोग प्रकाशन" की स्थापना हुई। आपका सहयोग प्रारम्भ से ही था, अनुवाद कार्य भी आपकी ही प्रेरणा से सम्पन्न हुआ था, इसलिए प्रकाशन कार्य सम्पन्न करवाने की आपके मन में बड़ी लगन है, आपके उत्साह को देखकर शा० हिम्मतमल प्रेमचन्दजी, मेघराज जसराजजी, फूलचन्द चुन्नीलाल जी, निहालचन्द कपूरजी आदि ने प्रकाशन व्यय के लिए विपुल वित्तराशि का संग्रह करवाने में तथा प्रकाशन कार्य में पूर्ण सहयोग देने की दृढ़ प्रतिज्ञा की है, आप सब भ० महावीर के प्रवचनों की प्रभावना करनेवाले सज्जन हैं । तपस्वी जी श्री गौरीलालजी महाराज का अनुपम सेवाभाव तपस्वीजी स्व० दिवाकर जी महाराज के प्रशिष्य हैं, और तपस्वी श्री नेमीचन्दजी म० के शिष्य हैं, आपने अतीत में बहुत तपश्चर्या की है । वर्तमान में आप ज्योतिष एवं मंत्र - शास्त्र विशारद वयोवृद्ध स्वामी जी श्री कस्तूरचन्दजी म० के आज्ञानुवर्ती हैं । मेरे साथ आपका तृतीय वर्षावास है, आपके उदार सहयोग से ही मैं इस पुस्तक के तथा आगम अनुयोग ग्रंथराज के संकलनादि कार्यों में संलग्न रह सका हूँ । मेरे जीवन में आपका यह सहयोग चिरस्मरणीय रहेगा, वयोवृद्ध होनेपर भी आपका अप्रमत्त भाव एवं साहस आदरणीय व अनुकरणीय है । आगमज्ञ विद्वानों से विनम्र अनुरोध, अन्त में आगमज्ञ विद्वानों से मेरा विनम्र अनुरोध है कि वे जैनागम निर्देशिका का आद्योपान्त निरीक्षण करके संशोधनार्थ सूचनाएं भेजें, Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २५ ) प्राप्त सूचनाओं का उपयोग द्वितीय संस्करण में अवश्य किया जायगा। प्रस्तुत पुस्तक में कई कमियाँ रह गई हैं जिनका अब मैं स्वयं अनुभव कर रहा हूं फिरभी ऐसी कई भूलें हो सकती हैं, जिनकी ओर मेरा ध्यान न गया हो। ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यवज्ञां । जानन्तु ते किमपि तान् प्रति नैष यत्न :॥ विनम्र श्रुत सेवक मुनि कन्हैयालाल “कमल" Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समिथं ति मनमाणस्ससमिया वा, असमिया वा, समिया होति उबेहारा अपमियति मन्नमाणरसपमियावा, असमिया वा, अपमिया होति उवहारा. --आचारांग Jire Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो चरित्तस्स चरणानुयोग-प्रधान आचाराङ्ग श्रुतस्कंध अध्ययन उद्देशक चूलिका पद उपलब्ध पाठ मूलपाठ गद्य-सूत्र संख्या ,, पद्य गाथा संख्या १८००० २५०० श्लोक परिमाण . १६ 0 ५ ब्रह्मचर्य श्रुतस्कंध . २ आचाराम श्रुतस्कंध अध्ययन .... अध्ययन ... महापरिज्ञा अध्ययन लुप्त ... उद्देशक उद्देशक .... ५१ चूलिका .... सूत्र संख्या .... २२२ सूत्र संख्या ..... गाथा संख्या ... ११५ गाथा संख्या .... of १७६ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिणपवयणत्थुई निव्वुइपहसासणयं जयइ सया सव्वभावदेसणयं । कुसमयमयनासणयं जिणिदवरवीरसासणयं ॥ जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करेंति भावेणं । अमला असंकिलिट्ठा ते होंति परित्तसंसारी ॥ बालमरणाणि बहुसो अकाममरणाणि चेव य बहूणि। मरिहंति ते वराया जिणव यणं जे न जाणंति ।। -: मर JIO Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो चरित्तस्स आचारांग विषय-सूची प्रथमश्रुतस्कंध له » مع प्रथम अध्ययन शस्त्रपरिज्ञा (जीव-संयम) प्रथम जीव-अस्तित्व उद्देशक सूत्राङ्क उत्थानिका पूर्वभव के स्थान का अज्ञान ३ पूर्वभव और परभव का अज्ञान पूर्वभव और परभव जानने के हेतु आत्मवादी आदि ६-१२ कर्मबंध परिज्ञा १३ कर्मबंध परिज्ञा वाला ही मुनि है सूत्र संख्या १३ द्वितीय पृथ्वीकाय उद्देशक अहिंसा पृथ्वोकाय के हिंसक १५ क- __में जीवों का अस्तित्व में की हिंसा से विरत मुनि की हिंसा से अविरत-द्रव्यलिंगी की हिंसा , , के हेतु Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची १७ क- पृथ्वीकाय की हिंसा का फल ख १६ ग ts his p २५ घ ङ च " ?? 33 " १८ क ख ग is सूत्र संख्या ५ "" 11 17 "" तृतीय अप्काय उद्देशक अहिंसा " २० २१ २२ २३ अप्काय में जीवों का अस्तित्व २४ - अष्कायिक हिंसा से विरत मुनि ख ग घ ड च श्रद्धा से मुक्ति संयम 11 अकाय परिज्ञा माया न करने वाला ही अनगार है श्रद्धा - संयम 11 11 का हिंसक अन्य अनेक जीवों का हिंसक की वेदना - अंधे का उदाहरण 33 मूर्च्छित का उदाहरण " " के हिंसक को वेदना का अज्ञान के अहिंसक को वेदना का ज्ञान की हिंसा से विरत होने का उपदेश की परिज्ञा वाला ही मुनि होता है के फल का ज्ञाता 11 श्रु ०१, अ०१, उ० ३ सू०२५ 11 11 अविरत द्रव्यलिंगो की परीज्ञा के हेतु का फल के फल का ज्ञाता छ ज- अप्काय के आश्रित अनेक जीव अष्कायिक जीवों का स्वरूप " जीवोंका हिंसक अन्य अनेक जीवों का हिंसक Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०१. उ०४ सू०३८ ५ आचारांग-सूची ३१ क अप्काय के शस्त्र २७ अप्कायिक हिंसा से अदत्तादान अप्काय के सम्बन्ध में अन्य मान्यताएँ २६ हिंसक संबंध में अनिश्चित मत हिंसक को वेदना का अज्ञान 'अहिंसक को वेदना का ज्ञान की हिंसा से विरत होने का उपदेश परिज्ञा वाला ही मुनि है सूत्र संख्या १३ चतुर्थ अग्निकाय उद्देशक अहिंसा ३२ क तेजस्काय परिज्ञा अग्निकायिक जीवों का अस्तित्व : " , की वेदना के ज्ञाता " , प्रत्यक्षदर्शी अग्निकाय के हिंसक ,, की हिंसा न करने की प्रतिज्ञा हिंसा से विरत मुनि , अविरत द्रव्यलिंगी हिंसा की परिज्ञा ,, के हेतु ,, का फल , के फल का ज्ञाता का हिंसक अन्य अनेक जीवों का हिंसक से परितप्त प्राणी Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची ३६ क ख ग घ सूत्र संख्या 5 ४० ४१ ४२ ४३ ४४-४५ ४६ क ख ग घ ङ च छ S8 ४७ ४८ क ख ग अग्निकाय घ 33 " " पंचम वनस्पतिकाय उद्देशक अनगार लक्षण विषय - संसार संसार का स्वरूप विषयी आराधक नहीं प्रमत्त अहिंसा वनस्पतिकाय परिज्ञा सूत्र संख्या ह वनस्पतिकायिक जीवों की हिंसा से विरत मुनि के हिंसक को वेदना का अज्ञान के अहिंसक को वेदना का ज्ञान की हिंसा से विरत होने का उपदेश की परिज्ञा वाला ही मुनि है 17 11 वनस्पतिकायिक हिंसा की परिज्ञा हिंसा के हेतु हिंसा का फल 31 17 श्रु०१, अ०१. उ०५ सू०४८ 31 "1 हिंसा के फल का ज्ञाता वनस्पतिकायका हिंसक अन्य अनेक जीवों का हिंसक मानव शरीर से वनस्पतिकाय की तुलना वनस्पतिकाय के हिंसक को वेदना का अज्ञान अहिंसक को वेदना का ज्ञान " की हिंसा से विरत होने का उपदेश परिज्ञा वाला ही मुनि है 1 हिंसा से अविरत द्रव्यलिंगी 11 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०१. उ०७ सू०५७ ७ आचारांग-सूची षष्ठ त्रसकाय उद्देशक त्रसकाय परिज्ञा अहिंसा विविध त्रसजीव प्राण, भूत, जीव और सत्व के विभिन्न सुख-दुख त्रसजीवों का लक्षण त्रसकायिक हिंसा के प्रयोजन पृथ्वीकायादि के आश्रित त्रसकायिक जीव त्रसकायिक हिंसा से विरत मुनि ,, , अविरत द्रव्यलिंगी ,, ,, की परिज्ञा , के हेतु ,, , का फल " , के फल का ज्ञान त्रसकाय का हिंसक अन्य अनेक जीवों का हिंसक ,, की हिंसा के विभिन्न प्रयोजन त्रसकाय के हिंसक को वेदना का अज्ञान , अहिंसक को वेदना का ज्ञान , की हिंसा से विरत होने का उपदेश ,, परिज्ञा वाला ही मुनि है सूत्र संख्या ७ सप्तम वायुकाय उद्देशक अहिंसा वायुकाय परिज्ञा ५६-५७ क वायुकायिक हिंसा से निवृत्त होने में समर्थ व्यक्ति ख आत्म-समत्व Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची .८ श्रु०१, अ०२, उ०१ सू०७२ वायुकाय का अहिंसक संयमी वायुकायिक हिंसा से विरत मुनि ,, , अविरत द्रव्यलिंगी ,, हिंसा की परिज्ञा ,, हिंसा के हेतु , , का फल " , के फल का ज्ञाता छ वायुकाय का हिंसक अन्य अनेक जीवों का हिंसक से संपातिम जीवों का संहार के हिंसक को वेदना का अज्ञान के अहिंसक को वेदना का ज्ञान की हिंसा से विरत होने का उपदेश की परिज्ञा वाला ही मुनि है के हिंसक के प्रचुर कर्मबंध ६२ क सम्यक्त्वी का लक्षण ___ख छह कायकी हिंसा का सर्वथा त्यागी ही मुनि है सूत्र संख्या ७ द्वितीय अध्ययन लोकविजय प्रथम स्वजन उद्देशक क . संसार के मूल कारण विषयी जीव विवेक हीन अशरण भावना अप्रमाद का उपदेश (अनित्य भावना) परिग्रह (अशरण भावना) a mr or ur or or or xwg AS ६६-७२ आत्मोपदेश सूत्र संख्या १० Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०१. उ०४ सू०८३६ आचारांग-सूची द्वितीय अदृढ़ता उद्देशक मुक्ति ७४ द्रव्यलिंगी ७५-७६ अममत्व ७७ क अहिंसा (हिंसा के सर्वथा परित्याग का उपदेश) मुक्तिमार्ग सूत्र संख्या १ तृतीय मदनिषेध उद्देशक गोत्रमद निषेध भाषा विवेक, प्रमत्त विषयी की विपरीत प्ररूपणा ८१ क संयम-उपदेश मृत्यु HoiPN जीवन [स सुख-दुख ८म वध-जीवन त्व असंयमी संपत्ति मोह परतीथिक-पावस्थ ८२ बालजीव सूत्र संख्या ५ चतुर्थ भोगासक्ति उद्देशक भोग से रोग अशरण भावना एकत्व Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची श्र०१, अ०२ उ०५ सू०६२ घ ८४ भोगासक्ति सम्पत्ति-मोह भोग विरक्ति परिग्रह की नि:सारता स्त्री-मोह अविवेक अप्रमाद, स्त्री से सावधान कामेच्छा भयंकर है अहिंसा संयम का पालन आहार घ सूत्र संख्या ४ पंचम लोकनिश्रा उद्देशक आहार ८७ ८८ क ८६ क संयम क्रय-विक्रय. मोक्षमार्ग ९० क भभभभभ ११ क वस्त्र आहार का परिमाण आहार मिलने पर न हर्ष, न मिलने पर न शोक आहार-संग्रह का निषेध अपरिग्रह । आर्योक्त मार्ग ६२ क Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११ आचारांग-सूची श्रु०१, अ०२. उ०६ सू०१०१ ६३ क, कामभोग आयु कामी-व्यक्ति सर्वज्ञ विषयगृद्ध मुक्ति ___ङ पंडित ६५ क आश्रव आसक्ति सावद्य चिकित्सा का निषेध सूत्र संख्या-१० षष्ठ अममत्व उद्देशक ६७ अहिंसक १८ क हिंसक असंयत वक्ता प्रमत्त श्रमण परिज्ञा कर्मोपशमन ९६ क मुनि-अममत्व लोकसंज्ञा रति-अरति १०० क लौकिक सुखों का निषेध मुक्ति रुक्ष-शुष्क आहार १०१ क सुवसु-दुर्वसु मुनि Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची ख १०२ क ख ग घ १०३ क 6 श्र ख अ 4 ग १०४ क ख १०५ क ख ख 쇠위의 쇠 सूत्र संख्या - ह ग ११० क १२ लोक-संयोग का त्याग - मोक्षमार्ग दुःख परिज्ञा कर्म परमार्थ उपदेश (समभाव ) धर्मोपदेश धर्मोपदेशक तृतीय शीतोष्णीय अध्ययन प्रथम भावसुप्त उद्देशक १०६ भावनिद्रा - भाव जागरण ( अमुनि मुनि ) १०७ क ख ग १०८ क ख १०६ क ख अरिहंत आचीर्ण हिंसा, लोकसंज्ञा का परित्याग उपदेश बालजीव अज्ञान अहिंसा श्रु ०१, अ०३ उ० १ सू०११० 33 आत्मज्ञ आदि (मुनि) संसार के कारण राग-द्वेष शीत - उष्ण परीषह बैर ( भाव जागृत ) जरा-मृत्यु (धर्म) संयम ( अप्रमत्त ) मत्तप्राणी Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३ उ०२ सू०११३-१३ आचारांग-सूची ग- दुःख का कारण-आरम्भ जन्म मरण (मायावी-प्रमादी) उपेक्षाभाव अप्रमत्त-खेदज्ञ संयम (शस्त्रज्ञ) कर्ममुक्त आत्मा कर्म-उपाधि कर्म (जागृति) " (हिंसा) ,, (राग-द्वेष) लोक संज्ञा का त्याग १११ क ख सूत्र संख्या ६ ११२ क द्वितीय दुःखानुभव उद्देशक जन्म-जरा ममत्व सम्यग्दर्शी (पाप निषेध) स्नेहपाश जन्म-मरण बाल आतंकदर्शी कर्म मुक्त मुनि भय (मुनि) परमदर्शी कर्म सत्य . ११३ क- Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारोग-सूची १४ श्रु०१, अ०३, उ०३ सू०११८ ____ उपरत मेधावी-कर्मक्षय ११४ क- परिग्रह हिंसा (चलनी को पानी से भरने का उदाहरण) ११५ क- मृषावाद-निषेध असार भोग जन्म-मरण अहिंसा भोग निन्दा (स्त्री-विरति) सम्यक्त्व कषाय-विजय (हिंसा) शोक परिग्रह और शोक का त्याग अ- अहिंसा का उपदेश सूत्र संख्या ४ ततीय अक्रिया उद्देशक अप्रमाद का उपदेश अहिंसा (ममत्व) विचिकित्मा (मुनि) समभाव अप्रमाद आत्मगुप्त यावन्मात्रा रूप-विरक्ति गति-आगति ११८ क- अन्य तीथियों की मान्यताएँ १ पूर्व भव की विस्मृति और परभव की कोई संभावना नहीं ११६ क Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३, उ०४ सू०१२६ १५ आचारांग-सूची मोक्ष दुःख ख २ जीवका अतीत और भविष्य अचिन्त्य है । ३ जीव का अतीत और भविष्य समान है । ४ सर्वज्ञ का मत अनासक्ति संयम-कच्छप का उदाहरण आत्मा की मित्रता ११६ क आत्मदान सत्य (मार-संसार) श्रेय-मोक्ष १२० प्रमाद १२१ क प्रपंचमुक्त मुनि सूत्र संख्या ६ चतुर्थ कषाय-वमन उद्देशक १२२ कषाय-वमन १२३ ज्ञान (अणु-संसार) १२४ क- प्रमत्त को भय, अप्रमत्त को अभय कर्म (मोह) क्षय-उपशम मोक्ष (लोक-संयोग) संयम मोक्ष-महायान १२५ क- कर्म (एक का क्षय होने पर सबका क्षय) आज्ञा लोक ज्ञान (आज्ञा) हिंसा (शस्त्र-संयम) १२६ क- कषाय का ज्ञान कर्म-उपाधि (सर्वज्ञ) सूत्र संख्या ख Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची १६ श्रु०१, अ०.४, .उ०३. सू०१३५ चतुर्थ सम्यक्त्व अध्ययन प्रथम सम्यक्वाद उद्देशक १२७ अहिंसा धर्म सत्यधर्म है १२८ क- धर्म में दृढ़ता ख निर्वेद (वैराग्य) लोकैषणा-निषेध १२६ क. धर्मोपदेश भोगी का जन्म-मरण रत्न-बय की आराधना ख- अप्रमाद का उपदेश सूत्र संख्या ४ द्वितीय धर्मप्रवादी परीक्षा उद्देशक १३१ क- कर्मबन्ध एवं कर्मक्षय के हेतुओं में समानता श्रावक----संवर धर्म में अप्रमाद मृत्यु अवश्यंभावी है. जन्म-मरण , , नरक में कर्म-वेदना श्रुतकेवली और केवली का समान कथन १३४ अहिंसा की परिभाषा १३२ क १३३ क सूत्र संख्या ४ तृतीय अनवद्य तप उद्देशक उपेक्षा-भाव वाला विज्ञ है १३५ क- Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ०५. उ० १ सू०१४२ अहिंसा दुःख- परिज्ञा आज्ञा-पंडित ख ग १३६ क ख १३७ क ख सूत्र संख्या ३ १३८ क ख ग घ १३६ १४० क ख ग घ १४१ क ख सूत्र संख्या ४ १४२ क ख १७ समाधि—जीर्णकाष्ठ का उदाहरण दुःख क्रोधमूलक है अनिदान (पापकर्मों से निवृत्ति) चतुर्थ संक्षेप वचन उद्देशक संयम - तपश्चर्या में वृद्धि वीरमार्ग तप से कृशता ब्रह्मचर्य बाल-मोहान्ध सम्यक्त्व बुद्ध ( आरम्भ से उपरत ) निष्कर्मदर्शी (आरम्भ से उपरत ) वेदवित् ( कर्मबन्ध से निवृत्ति ) सत्य सर्वज्ञ को कोई उपाधि नहीं पंचम लोकसार 'अध्ययन प्रथम एकचर उद्देश्यक हिंसा ( अर्थ - अनर्थ ) हिंसक की गति विषयेच्छा का त्याग अति कठिन १. इस अध्ययन का दूसरा नाम " अवन्ति" है । अध्ययनादावावन्तोशब्दस्यो च्चारणाद्” – आचा० टोका, आचारांग सूची Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचारांग-मादी १८ श्रु०१० अ०५ उ०३ सू०१५२ १४३ क मोह, बाल-जीव, कुशाग्न बिन्दु का उदाहरण मोह से जन्म-मरण संशय से संसार का ज्ञान १४५ क ब्रह्मचर्य भोग दुःख का हेतु १४६ क आसक्ति से नरक: हिंसा, हिंसक का जन्म-मरण बाल-जीव एक चर्या ङ अविद्या से मोक्ष मानने वाले सूत्र संख्या द्वितीय विरत मुनि उद्देशक १४७ क निर्दोष आहार अप्रमाद विभिन्न प्रकार का दुःख नश्वर शरीर १४६ रत्नत्रय की आराधना परिग्रह-महाभय है १५१ क अपरिग्रह परम चक्षु के लिए प्रयत्न ब्रह्मचर्य अप्रमत्त होने का उपदेश सूत्र संख्या २ तृतीय अपरिग्रह उद्देशक १५२ कः . अपरिग्रह ___ख समता धर्म १४८ १५० • Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०५. उ०४ सू०१५६ १६ आचारांग-सूची . १५३ वीर्य- आत्म-शक्ति संयम के चार भांगे १५४ शील आराधना १५५ क आत्मदमन (बाह्य शत्रु आत्म-शत्रु ) परिज्ञा रूप-आसक्ति (हिंसा) मुनि अहिंसा (कर्म) समत्व अहिंसा अनासक्त (स्त्री से विरक्ति) वसुमान् (तपोधन) सम्यक्त्व मुनिधर्म, विरति सम्यक्त्व (रूक्ष आहार) ङ मुनि संसार-समुद्र उत्तीर्ण है सूत्र संख्या २ चतुर्थ अव्यक्त उद्देशक अव्यक्त (अगीतार्थ) एकल विहारी १५८ क हित-शिक्षा देने पर कुपित महामोह कुशल दर्शन, भ० का आशिर्वाद, बाधा न हो अहिंसा १५६ कर्म (इस भव में भोगने योग्य और प्रायश्चित्त से शुद्ध होने योग्य कर्म) अप्रमाद । Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 444 आचारांग-सूची २० श्रु०१, अ०५, उ०६ सू०१६७ कर्मक्षय के लिये प्रयत्न स्त्री के संसर्ग का निषेध स्त्री से विरक्त होने के उपाय स्त्री-सुख से पूर्व या पश्चात् कष्ट अवश्यम्भावी है युद्ध का निमित्त-स्त्री स्त्री-कथा, स्त्री-दर्शन तथा ममत्व, स्वागत, बातचीत एवं स्त्री की अभिलाषा का निषेध मुनिधर्म सूत्र संख्या ४ पंचम ह्रदोपम उद्देशक १६१ क आचार्य को जलाशय की उपमा " के समान श्रमण १६२ क विचिकित्सा (असमाधि) आचार्य का अनुसरण न करने पर खेद जो जिन-प्रवेदित है वह सत्य है श्रद्धा के चार भांगे सम्यक्त्वी का चिन्तन-सम्यक् परिणमन मिथ्यात्वी का चिंतन-असम्यक् परिणमन सम्यक चितन से कर्मक्षय बाल-भाव का निषेध अहिंसा का मनोविज्ञान १६६ क आत्मा विज्ञानात्मा ___ ख ज्ञान और आत्मा अभिन्न है सूत्र संख्या ६ षष्ठ उन्मार्ग वर्जन उद्देशक १६७ क आज्ञा-धर्म १६५ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०६. उ०१ सू०१७४ २१ आचारांग-सूची गुरु के तत्त्वावधान में रहना १६८ क तत्त्वदर्शन जिनाज्ञा की आराधना प्रवाद-परीक्षा वस्तु स्वरूप का बोध १६६ क स्वसिद्धान्त और परसिद्धान्त का ज्ञान गुप्तात्मा संयमी अप्रमाद १७० क सर्वत्र आश्रव अकर्मा होने के लिये प्रयत्न कर्म-चक्र १७१ क गति-आगति मोक्षसुख मा का स्वरूप सूत्र संख्या ६ षष्ठ धूत अध्ययन प्रथम स्वजन विधूनन उद्देशक उपदेश मुक्तिमार्ग का कथन संक्लिष्ट व्यक्ति कमलाच्छादित जलाशय और कूर्म का उदाहरण वृक्ष का उदाहरण सोलह रोग जन्म-मरण का अन्त १७४ क दुःख (मोहान्ध) हिंसा 위 죄 의 이 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावारांग-सूची २२ श्रु०१, अ०६ उ०३ सू०१८४ १७५ क सावद्य चिकित्सा का निषेध १७६ क धूतवाद अनेक मुनि हुए १७७ क दीक्षा अशरण भावना सूत्र संख्या २ द्वितीय कर्म विधूनन उद्देशक १७८ कुशील १७६ महामुनि १८१ क सम्यक् दृष्टि नग्न आज्ञाधर्म संयम एकचर्या-निर्दोष आहार, परीषह सहना सूत्र संख्या ४ तृतीय उपकरण-शरीर विधूनन उद्देशक । १८२ अचेल परीषह १८३ क प्रज्ञा का प्रभाव (कृश शरीर) कषाय मुक्त अरति धर्म को द्वीप की उपमा मुनि (पंडित) घ पक्षीशिशु (शावक) की तरह शिष्य का पालन और शिक्षण सूत्र संख्या ३ १८४ क Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ०७ उ०५. सू० १६३ २३ १८५ १८६ १८७ १८८ १८६ क ख १६० क ख सूत्र संख्या ६ १६१ क ख १६२ क ख ग घ ङ चतुर्थ गौरवत्रिक विधूनन उद्देशक कुशिष्य बाल पाप-श्रमण का जन्म-मरण कुशिष्य धर्मानुशासन आज्ञा विराधक हिंसक है पाप-श्रमण संयमोपदेश पंचम उपसर्ग-सन्मान विधूनन उद्देशक उपसर्ग - सहन धर्मोपदेश धर्मोपदेशक ( श्रोता की अवज्ञा न करें ) मुनि को द्वीप की उपमा भिक्षु की संयम साधना सम्यग्दर्शी परिग्रह भिक्षु कषाय विजय मरण (आत्म शत्रुओं के साथ आत्मा का संग्राम ) पारगामी मुनि (पादपोपगमन ) च छ १६३ क ख सूत्र संख्या ३ आचारोग सूची Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची २४ श्रु०१, अ०८ उ०२ सू०२०२ सप्तम महा परिज्ञा अध्ययन अष्टम विमोक्ष अध्ययन प्रथम असमनोज्ञ विमोक्ष उद्देशक १६४ भिक्षु का व्यवहार १९५ १६६ क अन्य तीथिक अन्य तैर्थिकों का कथन अहेतुक है १९७ क आशुप्रज्ञ मुनि गुप्ति (वचनगुप्ति) धर्म (ग्रामवास और अरण्य) महाव्रत' (तीन याम) पापकर्मों से निवृत्ति १९८ दण्ड-हिंसा (औद्देशिक हिंसा) १६६ द्वितीय अकल्पनीय विमोक्ष उद्देशक औद्देशिक आदि छ दोष सहित आहार, वस्त्र, पात्र, वसति ग्रहण करने का निषेध औद्देशिक आदि दोष जानने के हेतु उपसर्ग सहन (मौन विधान) असमनोज्ञ को आहारादि देने का निषेध २०० २०१ २०२ * १. (क) यह अध्ययन अनुपलब्ध है. (ख) समवायांग टीका में यह प्राचारांग का आठवां अध्ययन माना गया है. (ग) आचारांग नियुक्ति में इस अध्ययन के ८ उद्देशक कहे गये हैं किन्तु समवायांग टीका में ७ उद्देशक कहे गये हैं. २. आचारांग टीका Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्र०१, अ०८, उ०४ सू०२०६ . २५ आचारांग-सूची २०३ समनोज्ञ को आहारादि देने का विधान सूत्र संख्या १० तृतीय अंग चेष्टा भाषित उद्देशक २०४ क. दीक्षा (मध्यम वय में) समता . श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर अपरिग्रही श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र अग्रंथ (निग्रंथ) कोबा (गांधीनगर) पि 30000 एक चर्या २०५ क आहार से शरीरोपचय (परीषह से शरीर क्षय) इन्द्रियों की क्षीणता दया (श्रमण) ख भिक्षु के लक्षण शीत से कम्पित भिक्षुओंको देखकर गृहस्थ की आशंका ख भिक्षु का यथार्थ कथन, अग्नि से तपने का निषेध सूत्र संख्या ४ चतुर्थ वेहानसादि मरण उद्देशक २०८ क तीन वस्त्र और एक पात्रधारी श्रमण का आचार चौथा वस्त्र लेने का संकल्प न करे तीन वस्त्र न हो तो निर्दोष वस्त्र ले जैसे वस्त्र मिले वैसे ले वस्त्रों को धोए अथवा रंगे नहीं धोए हुए या रंगे हुवे वस्त्र पहने नहीं अन्य ग्राम जाते समय वस्त्र पिछावे नहीं २०६ क ग्रीष्म ऋतु आने पर जीर्णवस्त्र डालदे (परठदे) आवश्यकता हो तो अल्प वस्त्र रखे २०७ क Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची २६ श्रु०१, अ०८. उ०७ सू०२२० ग अचेलक बने २१० क उपकरण लाघव तपश्चर्या है ख सचेल-अचेल अवस्थामें समत्त्व रखे २११ असह्य शीतादिका उपसर्ग होनेपर वैहानस-मरण मरे सूत्र संख्या । पंचम ग्लान-भुक्त-परिज्ञा उद्देशक २१२ क दो वस्त्र और एक पात्रधारी श्रमण का आचार पूर्वोक्तं सूत्र के समान २१३ क अस्वस्थ एवं अशक्त होनेपर भी अभिहृत आहारादि न ले वैयावृत्य का अभिग्रह ग वैयावृत्य (सेवा) के चार भांगे घ मरणपर्यंत अभिग्रह का दृढ़ता से पालन करे सूत्र संख्या २ षष्ठ एकत्व भावना इंगित मरण उद्देशक २१४ एक वस्त्र और एकपात्रधारी श्रमण का आचार २१५ पूर्वोक्त सूत्र २१० के समान अस्वादव्रत-तप अस्वस्थ एवं अति अशक्त होने पर "इंगित मरण" से मरण २१८ "इंगित मरण" का महत्व सूत्र संख्या २ सप्तम पडिमा पादपोपगमन उद्देशक २१६ अचेल परीषह और लज्जा परीषह न सहसके तो एक कटी वस्त्र लेने का विधान २२० अचेल-तप २१६ २१७ Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०६, उ०१ गाथा १२ २७ २२१ २२२ सूत्र संख्या ४ ३ गाथा १-२५ भक्त परिज्ञा, इंगित और पादपोपमरण की विधि ४ गाथांक प्रथम चर्या उद्देशक १ ५ ६ ७- १० ११ १२ १३ १४-१६ १७ वैयावृत्य के चारभांगे पादपोपगमन मरण की विधि नवम उपधान श्रुत अध्ययन अष्टम भक्त, इंगित, पादपोपगमन मरण उद्देशक " दीक्षा के अनन्तर भ० महावीर का हेमन्त ऋतु में विहार भ० महावीर का देवदूष्यवस्त्र धारण पूर्व तीर्थंकरों का अनु सरण मात्र था 27 भ० महावीर को चार मास पर्यन्त भ्रमर आदि जन्तुओं का उपसर्ग रहा भ० के स्कंध पर तेरह मास देवदृष्य वस्त्र रहा, पश्चात् वे अचेलक हो गये भ० महावीर को आक्रोश परीषह एवं वध परीषह हुवा भ० महावीर को स्त्रियों के द्वारा अनेक उपसर्ग हुए भ० महावीर का मौन विहार भ० महावीर ने दो वर्ष पूर्व ही सचित्तका त्याग कर दिया था भ० महावीर ने छ काय के आरंभ का परित्याग कर दिया था भ० महावीर द्वारा पुनर्जन्म का प्ररूपण कर्म सिद्धान्त का प्रतिपादन अहिंसा का आचरण और अब्रह्मका परित्याग "" आचारांग सूची 17 " 71 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची २८ श्रु०१, अ०६. उ०३ गाथा१३ भ० महावीर द्वारा पुनर्जन्म का प्ररूपण , , , आधाकर्म आहार का त्याग , , , पर (गृहस्थ) के वस्त्र और पर (गृहस्थ) के पात्रका त्याग ,, ,, परिमित आहार ग्रहण एवं खाज खुजलाने का त्याग ,, ,, की इर्या (विहार-विधि) , , ,, द्वारा तेरह मास पश्चात् देव-दूष्य वस्त्र का परित्याग २३ उपसंहार द्वितीय शय्या उद्देशक गाथांक १- ३ भ० महावीर का विविध वसतियों में विहार ४ , , की तेरह वर्ष पर्यंत साधना ५-६ , , के निद्रात्याग ,, , के सादि का उपसर्ग ,, , को चोर-जार आदि पुरुषों द्वारा उपसर्ग , , का शीत परीषह सहन करना १६ उपसंहार तृतीय परीषह उद्देशक गाथांक १ भ० महावीर के तृणस्पर्श आदि परीषह २ , , का लाट देश के वज्रभूमि और शुभ्रभूमि में विहार ३-१३ , , के (लाट देश में) उपसर्ग, भगवान को युद्ध के मोर्चेपर स्थित हाथी की उपमा, (दुष्टजनों को कंटक की उपमा, ग्राम-कंटक) KGA KE १ . Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ० १२०१ सूत्र २ २६ आचारांग-सूची ६-१३ १४ उपसंहार चतुर्थ आतङ्कित उद्देशक गाथांक भ० महावीर की तपश्चर्या १-२ भ० महावीर की मिताहार करने की प्रतिज्ञा और रोगों की चिकित्सा न करवाने की प्रतिज्ञा भ० महावीर का अल्पभाषण की शीत और ग्रीष्म ऋतु में ध्यान साधना ने आठ मास तक निरस अन्न ग्रहण किया था के विविध प्रकार के तप का त्रिकरण से पापकर्म-परित्याग की पिण्डषणा " , के ध्यानासन १५-१६ " " का अप्रमत्त जीवन उपसंहार द्वितीय श्रु तस्कंध प्रथमा चूलिका प्रथम पिण्डैषणा अध्ययन प्रथम उद्देशक सूत्रांक सचित मिश्रित आहार लेने का निषेध असावधानी से लेने पर निरवद्य भूमि में डालने (परठने) का विधान सजीव (अप्रासुक) फलियों के लेने का निषेध निर्जीव (प्रासुक) " " विधान 4 भभ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राचारांग-सूची ३० श्रु०२, अ०१ उ०१ सू० ६ क अपक्व या अर्धपक्व शालि आदि के लेने का निषेध ख अनेक वार पक्व या तीन वार पक्ब " विधान भिक्षा समय की प्रवेश विधि शौचभूमि में , , स्वाध्याय भूमि में , , ग्रामानुग्राम विहार की विधि भिक्षु अथवा भिक्षुणी अन्यतीथिक को और गृहस्थ को आहार न दे और न दिलाए पारिहारिक-अपारिहारिक को आहार न दे और न दिलाए एक स्वधर्मी के निमित्त बने हुए (औद्देशिक) आहार लेने का निषेध अनेक स्वधर्मियों के , " " लेने का निषेध एक स्वमिनी के लेने का निषेध अनेक स्वमिनियों के , " " लेने का निषेध श्रमणादि को गिनकर बनाये हुए (औद्देशिक) आहार के लेने का निषेध पुरुषान्तर कृत (अन्य पुरुष सेवित) आदि होनेपर लेने का विधान ८ क श्रमणादि को गिने बिना बनाये हुए (औद्देशिक) आहार के लेने का निषेध पुरुषान्तर कृत (अन्य पुरुषसे वित) आदि होनेपर लेने का विधान भिक्षु अथवा भिक्षुणी का नित्यपिण्ड, अग्र पिण्ड, अर्ध Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०१० उ०३ सू०१८ ३१ आचारांग-सूची भाग और चतुर्थ भाग दिये जाने वाले कुलों में प्रवेश निषेध सूत्र संख्या है १० क १२ क द्वितीय उद्देशक पर्वदिन या विशेष प्रसंग में जहाँ नियत परिमाण में श्रमणादि को आहार दिया जाता हो, वहाँ से भिक्षु अथवा भिक्षुणी को आहार लेने का निषेध पुरुषान्तरकृत आदि होनेपर लेने का विधान उनकुल आदि कुलों से शुद्ध आहार लेने का विधान सामुहिक भोज, मृतक-भोज, उत्सव-भोजादि में जहाँ नियत परिमाण में श्रमणादि को आहार दिया जाता हो वहाँ से भिक्षु अथवा भिक्षुणी को आहार लेने का निषेध पुरुषान्तरकृत आदि होनेपर लेने का विधान संखडि (जीमनवार) में जाने का निषेध आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्रित, क्रीत, उधार लाया हुआ आहार लेने का निषेध ख १३ क सूत्र संख्या ४ तृतीय उद्देशक रोगोत्पत्ति की संभावना से संखडि भोजन लेने का निषेध स्थानाभाव आदि अनेक दोषों की संभावना से संखडि में जाने का निषेध संखडि के समय अन्य कुलों में भी जाने का निषेध पश्चात् अन्य कुलों से शुद्ध आहार लेने का विधान संखडि के निमित्त किसी ग्राम आदि में जाने का निषेध संदिग्ध आहार लेने का निषेध Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची __३२ श्रु०२ अ०१ उ०५ सू० २६ गृह प्रवेश विधि शौचभूमि प्रवेश विधि स्वाध्याय भूमि प्रवेश विधि ग्रामानुग्राम विहार की विधि वर्षा, धुंअर व रज-वर्षा के समय भिक्षार्थ गृह प्रवेशविधि __ शौचभूमि प्रवेश विधि स्वाध्यायभूमि , , ग्रामानुग्राम विहार की , सूत्र संख्या ७ चतुर्थ उद्देशक २२ क निर्दिष्ट कुलों में आहार के लिए जाने का निषेध जिस संखडि में- मांसादि बना हो, जाने के मार्ग में जीवजन्तु हो, श्रमणादि की भीड़ के कारण प्रवेश, निष्क्रमण न हो सकता हो, स्वाध्याय न हो सकता हो, तो उसमें जाने का निषेध जहाँ उक्त बातें न हों वहाँ जाने का विधान जहाँ गायें दुही जाती हों, वहाँ आहार के लिये जाने की विधि आगन्तुक अतिथि मुनियों के साथ आहार के लिए जाने की विधि सूत्र संख्या ४ पंचम उद्देशक अग्रपिंड लेने का निषेध भिक्षा के लिए सममार्ग से जाने का विधान २५ २६ क Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भब भ में श्रु०२ अ०१ उ० ६. सू०३६ ३३ आचारांग-सूची ख विषम मार्ग यद्यपि सीधा हो तो भी उस मार्ग से भिक्षा के लिए जाने का निषेध विषम मार्ग में गिर जानेपर अशुभ पुद्गलों से लिप्त शरीर को पूंछने की विधि २७ क सीधे मार्ग में यदि उन्मत्त या हिंसक पशु आदि हों तो उस मार्ग से भिक्षा के लिये जाने का निषेध सीधे मार्ग में यदि गड्ढे आदि हों तो उस मार्ग से भिक्षा के लिये जाने का निषेध २८ क भिक्षाकाल में आज्ञा लिये बिना गृहद्वार खोलने का निषेध आज्ञा लेकर गृहद्वार खोलने का विधान पूर्व प्रविष्ट तथा पश्चात् प्रविष्ट श्रमण को किसी घर में सम्मिलित आहार प्राप्त हो तो उसके परिभोग की विधि जिस गृह में पूर्व प्रविष्ट श्रमण हो उस गृह में भिक्षार्थ जाने की विधि सूत्र संख्या ६ षष्ठ उद्देशक कुक्कुट आदि जिस मार्ग में दाना चुगते हों उस मार्ग से भिक्षार्थ जाने का निषेध ३२ क गृहस्थ के घर में निदिध स्थानों में खड़े रहने का तथा इधर उधर देखने का निषेध ख अविधि से याचना करने का निषेध गृहस्थ को कठोर वचन कहने का निषेध कालत्रय में औद्देशिक आहार लेने का निषेध दाता यदि अविधि से आहार दे तो लेने का निषेध विधि से दे तो लेने का विधान कालत्रय में पिष्ट या भिन्न अप्रासुक दे तो लेने का निषेध अग्निपर रखा हुआ आहार लेने का निषेध सूत्र संख्या ६ - ३ mm ५ U Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 44भभ आचारांग-सूची . ३४ श्रु०२, अ०१. उ०८ सू०४५ सप्तम उद्देशक ऊंचे स्थानों में रखा हुआ आहार दे तो लेने का निषेध ऊंचे स्थान से आहार उतारने वाले को होनेवाली हानियाँ नीचे स्थान से आहार निकालकर दे तो लेने का निषेध ३८ क मिट्टी का आच्छादन तोड़कर दे तो लेने का निषेध पृथ्वीकाय पर रखा हुआ आहार लेने का निषेध जलकाय पर " अग्निकाय पर " " अत्यूष्ण आहार को सूप आदि से ठंडा करके दे तो लेने का निषेध ४० क वनस्पतिकाय पर रखा हुआ आहार लेने का निषेध त्रसकाय पर पानी लेने की विधि सजीव पृथ्वी आदिपर रखे हुए बर्तन से पानी दे तो लेने का निषेध सजीव पृथ्वी आदि से मिश्रित पानी दे तो लेने का निषेध सूत्र संख्या ६ अष्टम उद्देशक आम्रादि का अप्रासुक (सचित्त) एवं औद्देशिक पानी लेने का निषेध अन्नादि को आसक्ति पूर्वक गंध सूंघने का निषेध ४५ क सालु आदि अपक्व लेने का निषेध पिप्पली " अंब आदि अपक्व फल लेने का निषेध अस्वस्थ प्रवाल " कपित्थ सरडु उंबर ४२ क ४४ FE IP मंथु Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भराभ श्रु०२, अ०१. उ०१० सू०५८ ३५ आचारांम-सूची आमडाग-आदि अपक्व या अर्धपक्व लेने का निषेध इक्षु खंड आदि अप्रासुक लेने का निषेध ख उत्पल ४८ क अग्रबीज ख इक्षु लशुन अस्तिक . ङ. कण सूत्र संख्या ६ नवम उद्देशक औद्देशिक आहार लेने का निषेध जहाँ श्रमण के स्वकुल के तथा स्वसुर कुल के रहते हों वहाँ आहार के लिए जाने की विधि जहाँ माँसादि बना हो वहाँ आहार के लिए जाने का निषेध आहार खाने की विधि पानी पीने की विधि अधिक आहार के परिभोग की विधि किसी को देने के लिए निकाले हुए आहार के लेने की विधि सूत्र संख्या ७ दशम उद्देशक श्रमण समूह के लिए प्राप्त आहार के परिभोग की विधि सरस आहार को छिपाने का निषेध इक्षु आदि अल्प खाद्य अधिक त्याज्य पदार्थ लेने का निषेध बहु अस्थिक आदि के परिभोग की विधि ५६ भ For Private &, Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग - सूची ५६ सूत्र संख्या ४ ६० ६१ ६२ ६३ सूत्र क ख ग घ ङ च छ ज संख्या ४ ६४ क ३६ श्रु०२, अ०२ उ० १ सू०६४ अप्रासुक लवण के लेने का निषेध, भूल से लिए हुए के परिभोग की तथा डालने ( परठने ) की विधि एकादश उद्देशक ग्लान के निमित्त मिले हुए आहार के संबन्ध में माया करने का निषेध सूत्र ६० के समान सात पिण्डेषणा अलिप्त हाथ एवं अलिप्त पात्र से आहार लेना लिप्त हाथ एवं लिप्त पात्र से आहार लेना अलिप्त और लिप्त पात्र या लिप्त हाथ और अलिप्त पात्र से आहार लेना पश्चात् कर्म दोषरहित आहार लेना भोजन से पूर्व धोये हुए हाथ सूकने के पश्चात् आहार लेना स्वयं या दूसरे के लिए पात्र में लिया हुआ आहार लेना डालने योग्य आहार लेना सात पाणैषणा पिंडैषणा के सामान आहार के स्थान में पानी समझना पडिमाधारी की निन्दा का निषेध द्वितीय शय्यैषणा अध्ययन प्रथम उद्देशक पक्षियों के अंडे आदि जिस उपाश्रय में हो, उसमें ठहरने का निषेध Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०२, उ०१ सू०६७ ३७ आचारांग-सूची ख पक्षियों के अंडे आदि जिस उपाश्रय में न हो, उसमें ठहरने का विधान एक स्वधर्मी के निमित्त बने हुए औद्देशिक उपाश्रयमें ठहरने का निषेध अनेक स्वर्मियों के निमित्त बने हुए औद्देशिक उपाश्रय में ठहरने का निषेध . एक स्वमिनी के निमित्त बने हुए औद्देशिक उपाश्रय में ठहरने का निषेध अनेक स्वमिनियों के निमित्त बने हुए औद्देशिक उपाश्रय में ठहरने का निषेध श्रमणों की गिनती करके बनाये हुए औद्देशिक उपाश्रय में ठहरने का निषेध श्रमणों के गिने बिना बनाये हुए औद्देशिक उपाश्रय में ठहरने का निषेध भिक्षु के निमित्त मरम्मत कराये हुए औद्देशिक उपाश्रय में ठहरने का निषेध ६५ क भिक्षु के निमित्त कुछ परिवर्तन कराये हुए औद्देशिक उपाश्रय में ठहरने का निषेध भिक्षु के निमित्त कंदमूलादि स्थानांतरित किये जावें ऐसे उपाश्रय में ठहरने का निषेध पुरुषान्तरकृत आदि होनेपर ठहरने का विधान भिक्षु के निमित्त पीठ-फलक आदि स्थानांतरित किए जावें ऐसे उपाश्रय में ठहरने का निषेध बहुत ऊंचे मकानों में या तलघरों में ठहरने का निषेध ऐसे स्थानों में ठहरने से होनेवाली हानियां ६७ क स्त्री आदि वाले उपाश्रय में ठहरने का निषेध ऐसे स्थानों में ठहरने से होनेवाली हानियाँ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची ६८ ६६ ७० ७१ ७२ सूत्र संख्या = ७३ ७४ ७५ ७६ क ७७ ख क ख ३८ श्रु०२, अ० २ उ०२ सू०७७ जिस उपाश्रय में गृहस्थ रहता हो, ऐसे उपाश्रय में ठहरने का निषेध ऐसे उपाश्रय में कहल आदि का उपद्रव होता है ऐसे उपाश्रय में अग्निकाय का आरंभ होता है अलंकृत तरुणियों को देखने से मन विकृत होता है ऐसे उपाश्रय में ओजस्वी पुत्र प्राप्ति निमित्त मैथुन के लिए स्त्रियाँ निमंत्रण देती हैं द्वितीय उद्देशक ऐसे उपाश्रय में भिक्षु के स्वेद की दुर्गंध के प्रति शौचवादि गृहस्थ को घृणा होती है ऐसे उपाश्रय में गृहस्थ या भिक्षु के निमित्त बने हुए सरस भोजन पर भिक्षु का मन चलता है। ऐसे उपाश्रय में भिक्षु के निमित्त काष्ठ भेदन और अग्नि का आरंभ होता है ऐसे उपाश्रय में मलमूत्रादि से निवृत्त होने के लिए रात्रि में द्वार खोलनेपर चोरों के घुसने की संभावना अथवा भ्रम से साधु को चोर मान लेना, चोर के संबंध में भाषा का विवेक जीव-ज -जन्तुवाला तृण पलाल आदि जिस उपाश्रय में हो, उसमें ठहरने का निषेध जीव-जन्तु रहित तृण, पलाल आदि जिस उपाश्रय में हो उसमें ठहरने का विधान जिन स्थानों में स्वधर्मी अधिक आते हों उन स्थानों में अधिक ठहरने का निषेध Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०२, उ०३ सू०६० ३६ आचारांग-सूची ७८ जिन स्थानों में मासकल्प या वर्षावास रह चुके हों, उनमें पुनः रहने का निषेध उक्त स्थान में दो तीन मास का व्यवधान किये बिना ठहरने का निषेध श्रमण या गृहस्थ के निमित्त बनवाये हुए स्थान में अन्य मतानुयायी श्रमणों के ठहरनेपर भिक्षु के ठहरने का विधान उक्त स्थान में अन्य मतानुयायि श्रमण न ठहरे हों तो भिक्षु के ठहरने का निषेध गृहस्थ अपने लिए बनवाया हुआ मकान साधुओं को समर्पित करे और अपने लिए दूसरा मकान बनवावे तो उसमें ठहरने का निषेध ८३ श्रमणादि की गिनती करके बनवाये हुए एवं समर्पित किये हुए स्थान में ठहरने का निषेध सूत्र ८१ के समान एक भिक्षु के निमित्त निर्माण कराए हुए एवं समर्पित किए हुए स्थान में ठहरने का निषेध गृहस्थ ने अपने लिए मकान बनवाया हो और अपने लिए ही अग्नि का आरंभ किया हो, ऐसे स्थान में ठहरने का विधान सूत्र संख्या १५ तृतीय उद्देशक उपाश्रय के दोषों का कथन, और उनकी यथार्थता बहुत छोटे द्वार वाले उपाश्रय में अथवा अनेक श्रमण जहां ठहरे हुए हों, ऐसे उपाश्रय में ठहरने की विधि उपाश्रय के लिए आज्ञा प्राप्त करने की विधि ६० क शय्यातर का नाम गोत्र पूछना Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची ४० श्रु०२, अ०२ उ०३ सू०१०१ ख mox - CU ६६ क शय्यातर के घर से आहार लेने का निषेध जिस उपाश्रय में गृहस्थ का निवास हो, अग्नि-पानी का आरंभ हो, स्वाध्याय स्थान का अभाव हो उसमें ठहरने का निषेध गृहस्थ के घर में होकर उपाश्रय में जाने का मार्ग हो तो उस उपाश्रय में ठहरने का निषेध गृहस्थ के घर में गृहकलह होता है " , तेल मर्दन होता है " , स्नानादि होता है " , जलक्रीड़ा होती है , नग्न या अर्ध नग्न स्त्रियां होती हैं , विकार वर्धक भित्ति चित्र होते हैं जीव-जन्तु वाला संस्तारक लेने का निषेध भारी , प्रत्यर्पण के अयोग्य , शिथिल बंधवाला , जीव-जन्तु रहित, लघु, प्रत्यर्पण योग्य एवं दृढ़ संस्तारक लेने का विधान चार संस्तारक पडिमा १ प्रथमा पडिमा-संस्तारकों का नाम लेकर किसी एक संस्तारक का ग्रहण करना २ द्वितीया पडिमा--इन संस्तारकों में से अमुक एक संस्तारक ग्रहण करना। ३ तृतीया पडिमा-उपाश्रय में विद्यमान संस्तारक ग्रहण करना अन्यथा उत्कटुक आसन आदि से रात्रि व्यतीत करना १०० Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ १०७ श्रु०२, अ०३, उ०१ सू०११४ ४१ आचारांग-सूची १०२ ४ चतुर्थी पडिमा--शिला या काष्ट का संस्तारक लेना अन्यथा उत्कटुक आसनादि से रात्रि व्यतीत करना १०३ पडिमा धारी की निन्दा का निषेध जीव-जन्तु सहित संस्तारक प्रत्यर्पित नहीं करना १०५ जीव-जन्तु रहित संस्तारक प्रत्यर्पित करना १०६ मल-मूत्र डालने की भूमि का देखना, न देखने से होनेवाली हानियाँ आचार्य आदि के शय्यास्थल को छोड़कर अन्यत्र शय्या स्थल देखना १०८ क जीव-जन्तु रहित शय्यापर बैठना बैठने से पूर्व शरीर का प्रमार्जन करना एक-दूसरे का परस्पर स्पर्श न हो ऐसी शय्या पर सोना मुँह ढककर उच्छ्वास आदि लेना मलद्वार के ऊपर हाथ देकर अपानवायु छोड़ना सम-विषम शय्या में समभाव रखना सूत्र संख्या २४ तृतीय इर्या अध्ययन प्रथम उद्देशक वर्षाकाल में विहार का निषेध ११२ क अयोग्य स्थान में वर्षावास न करना योग्य करना ११३ वर्षाकाल के पश्चात् भी मार्ग में जीव जन्तु अधिक हों तो विहार न करना ११४ क जीव-जन्तु वाले मार्ग में न चलना अन्यमार्ग के अभाव में त्रसजीवों की रक्षा करते हुए १११ चलना Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची ग घ ११५ क ख ११६ क by If ख ११७ क १२० १२१ ख ११८ क ख ११६ सूत्र संख्या ह १२२ क ख ग घ ४२ श्रु०२, अ०३ ३०२ सू० १२२ बीज आदि वनस्पतिवाले मार्ग में न चलना अन्य मार्ग के अभाव में स्थावर जीवों की रक्षा करते हुए चलना म्लेच्छ आदि के उपद्रव वाले मार्ग से विहार न करना अन्य मार्ग से विहार करने का विधान अराजक आदि प्रदेशों में होकर विहार करने का निषेध अन्य मार्ग से विहार करने का विधान अनेक दिनों में लांघने योग्य अटवी में होकर जाने का निषेध ऐसी अटवी में होकर जाने से होनेवाली हानियां कीतादि दोष युक्त अथवा सुदूर गामिनी नौका में बैठने का निषेध तिर्यग्गामिनी नौका में बैठने का विधान व बैठने की विधि नाव में बैठने की विधि कर्तव्याकर्तव्य द्वितीय उद्देशक नाव में बैठने के पश्चात् किसी के उपकरण ग्रहण न करे अधिक भार के कारण यदि कोई मुनि को नौका से नीचे गिरावे तो समाधिभाव रखने का उपदेश नौका से गिराए जाने के पश्चात् शरीर के अवययों का परस्पर स्पर्श न करे डुबकी न लगावे. कान आदि में पानी न जाने दे निकलने में कठिनाई मालूम दे तो उपधि का परित्याग करे, किनारे पहुँचने पर ज्यों का त्यों खड़ा रहे गीला शरीर सूखने पर आगे विहार करे Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२५ श्रु०२, अ०३, उ०३ सू० १२७ ४३ आचारांग-सूची १२३ क बात करते हुए चलने का निषेध पानी के अल्प-प्रवाह को पार करना १२४ क पानी को पार करने की विधि पानी को पार करते समय अवयवों का परस्पर स्पर्श निषेध ठण्डक के लिये गहरे पानी में जाने का निषेध, किनारे पहुंचने पर ज्यों का त्यों खड़ा रहना गीला शरीर सूखने पर आगे विहार करना कीचड़ से भरे हुए पावों को हरे घास से घिसते हुए चलने का निषेध हरे घास रहित मार्ग में चलने का विधान किले की ट्रटी दिवार आदि मार्ग में हो तो उस मार्ग से जाने का निषेध अन्य मार्ग के अभाव में उस मार्ग से जाना पड़े तो उसकी विधि धान्य की गाडियां आदि जिस मार्ग से जा रही हो उस मार्ग से जाने का निषेध जिस मार्ग में छावनी हो उस मार्ग से जाने का निषेध अन्य मार्ग के अभाव में-उस मार्ग से जाते समय यदि उपसर्ग हो तो समभाव रखने का उपदेश १२६ पथिकों के प्रश्नों का उत्तर न देना सूत्र संख्या ७ तृतीय उद्देशक १२७ क गढ़, किला आदि दिखाते हुए चलने का निषेध ___ ख कच्छ आदि दिखाते हुए चलने का निषेध Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ क आचारांग-सूची ४४ श्रु०२, अ०३, उ०३ सू०१३० दिखाने से मृगादि प्राणियों को होने वाला भय गुरूदेव के साथ विवेक पूर्वक चलने का विधान आचार्य-उपाध्याय के हस्त आदि अवयवों से स्पर्श करते हुए चलने का निषेध आचार्य उपाध्याय--पथिकों के प्रश्नों का उत्तर दे रहें हो, उस समय बीच में बोलने का निषेध ज्ञानवृद्धों के हस्तादि अवयवों से स्पर्श करते हुए चलने का निषेध घ . ज्ञानवृद्ध-पथिकों के प्रश्नों का उत्तर देरहे हों उस समय बीचमें बोलने का निषेध १२६ क भिक्षु अथवा भिक्षुणी से कुछ पथिक-मनुष्य, पशु आदि के सम्बन्ध में पूछे तो उत्तर देने का निषेध भिक्षु अथवा भिक्षुणी से कुछ पथिक जलज कंद आदि के सम्बन्ध में पूछे तो उत्तर देने का निषेध भिक्षु अथवा भिक्षुणी से कुछ पथिक धान्य की गाड़ियों के सम्बन्ध में पूछे तो उत्तर देने का निषेध छावनी आदि के सम्बन्ध में पूछे तो उत्तर देने का निषेध भिक्षु अथवा भिक्षुणी से कुछ पथिक “ग्राम कितनी दूर है" ऐसा पूछे तो उत्तर देने का निषेध भिक्षु अथवा भिक्षुणी से कुछ पथिक "अमुक गांव का मार्ग कितनी दूर है" ऐसा पूछे तो उत्तर देने का निषेध १३० क उन्मत्त सांड आदि जिस मार्ग में हो उससे जाने की विधि जिस अटवी में चोरों का उपद्रव हो, उस अटवी से पार होने की विधि Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०४ उ०१ सू०१३६ आचारांग-सूची भिक्षु अथवा भिक्षुणी के उपकरण मार्ग में चौर छीनें तो उस समय के लिए समाधिभाव रखने का उपदेश तथा उस समय के लिए कुछ विशेष सूचनाएँ सूत्र संख्या चतुर्थ भाषा जात अध्ययन प्रथम वचन विभक्ति उद्देशक १३२ क कठोर वचन और निश्चित वचन का निषेध सोलह प्रकार के वचनों का विवेक पूर्वक प्रयोग चार प्रकार की भाषा के सम्बन्ध में तीनकाल के तीर्थकरों की समान प्ररूपणा, भाषा का पौदगलिक रूप १३३ क भाषा का कालिक रूप सावद्य- यावत्. प्राणियों का घात करने वाली चारों भाषाओं का निषेध असावद्य यावत-प्राणियों का घात नहीं करने वाली सत्य और व्यवहार भाषा के प्रयोग का विधान १३४ क पुरुष को अप्रिय सम्बोधन करने का निषेध , प्रिय , विधान ग स्त्रियों ,, अप्रिय निषेध , प्रिय , विधान १३५ क आकाश आदि को देव कहने का निषेध वर्षा धान्य आदि के सम्बन्ध में हो या न हो" ऐसी भाषा के प्रयोग का निषेध राजा की जय पराजय कहने का निषेध ग आकाशादि के संबन्ध में विवेकपूर्ण भाषा का प्रयोग सूत्र संख्या ४ द्वितीय क्रोधादि उत्पत्ति वर्जन उद्देशक १६६ क रोगी या अंगविकल को कुपित करने वाले वाक्य न कहना Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ क आचारांग-सूची ४६ श्रु०२ अ०४ उ०२ सू० १३६ ,, , न करने वाले वाक्य कहना किले आदि को देखकर सावध भाषा के प्रयोग का निषेध ,, , , निरवद्य ,, , विधान १३७ क आहार के सम्बन्ध में सावध भाषा के प्रयोग का निषेध ख __ " , निरवद्य , विधान मनुष्य पशु आदि के सम्बन्ध में सावध भाषा के प्रयोग का निषेध मनुष्य पशु , , , निरवद्य , , विधान गाय-बैल के , सावद्य , , निषेध , , निरवद्य ,,, विधान उद्यान में खड़े बड़े वृक्षों के सम्बन्ध में सावध भाषा के प्रयोग का निषेध उद्यान या वन में खड़े बड़े वृक्षों के सम्बन्ध में निरवद्य भाषा के प्रयोग का विधान फलों के सम्बन्धमें सावध भाषा के प्रयोग का निषेध , निरवद्या , विधान धान्यके संबंधमें सावध , निषेध , , निरवद्य , विधान शब्द सुनकर सावध भाषा का प्रयोग न करना __, , निरवद्य न करना रूप देखकर सावध न करना निरवद्य करना गंध संघकर सावध न करना ,, , निरवद्य करना रस का आस्वादनकर सावध न करना करना -958 निरवद्य , Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०५७०१ सू० १४४ ४७ झ ञ १४० सूत्र संख्या १४१ क ख ग घ १४२ १४३ क ख ho च ज १४४ क स्पर्श के पश्चात् सावद्य निरवद्य ख "3 विवेक पूर्वक बोलने का उपदेश " " चार चद्दर का परिमाण वस्त्र के लिये अर्ध योजन से अधिक जाने का निषेध एक स्वधर्मी के उद्देश्य से बनाया या बनवाया हुआ कपड़ा लेने का निषेध अनेक स्वधर्मियों के उद्देश्य से ग एक स्वधर्मनी के घ अनेक स्वधर्मनियों के 37 पंचम वस्त्रैषणा अध्ययन प्रथम वस्त्र ग्रहण विधि उद्देशक 33 31 छह प्रकार के वस्त्र निग्रंथ के लिए एक वस्त्र का विधान निर्ग्रथी के लिए चार चद्दर का विधान " 27 23 "" #1 आचारांग सूची न करना करना 37 17 श्रमणादि को गिनकर उनके निमित्त बनाया या बनवाया हुआ कपड़ा लेने का निषेध 17 पुरुषान्तरकृत आदि होने पर लेने का विधान श्रमण समूह के लिए बनाया या बनवाया हुआ कपड़ा लेने का निषेध पुरुषान्तरकृत आदि होनेपर लेने का विधान भिक्षु के निमित्त क्रीत, धौत आदि दोष सहित वस्त्र लेने का निषेध पुरुषान्तरकृत आदि होनेपर लेने का विधान Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग - सूची १४५ क ख क ख १४७ क ख ग In घ ङ च १४८ क ख ग घ his ङ सूत्र संख्या ७ १४६ क ख बहुमूल्य वस्त्र लेने का निषेध चर्म " चार वस्त्र पडिमा प्रथमा पडिमा -- छह प्रकार के वस्त्रों में से किसी एक प्रकार के वस्त्र का संकल्प करके लेना, स्वयं याचना करना बिना याचना किए दे तो लेना 37 द्वितीया पडिमा - दृष्ट वस्त्र का मनमें संकल्प करके लेना तृतीया पडिमा - परिभुक्त वस्त्र लेना चतुर्थी पडिमा - फेंकने योग्य वस्त्र लेना पडिमा धारी की निन्दा का निषेध 11 वस्त्र लेने की विधि जीव जन्तु सहित वस्त्र लेने का निषेध विधान "" 37 रहित टिकाउ आदि गुण सम्पन्न वस्त्र लेने का विधान वस्त्र को नवीन दिखाने के लिए प्रयत्न न करे 77 11 " 11 33 ४८ 11 11 सुगन्धित करने वस्त्र को सुखाने की विधि 31 17 "} 33 13 31 "" " श्रु०२, अ०५. उ०२ सू० १४६. 71 17 13 71 "} J द्वितीय वस्त्र धारण विधि उद्देशक यथा प्राप्त वस्त्र धारण करने का विधान धोने व रंगने का निषेध • Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५० क १५१ क श्र०२, अ०६, उ०१ सू०१५२ ४६ आचारांग-सूची भिक्षा के समय सारे वस्त्र साथ में लेजाने का विधान स्वाध्याय स्थान में जाते , , , , शौच-स्थल में जाते " " " वर्षा धुंअर रजघात हो तो ग-घ-ङ में निर्दिष्ट समयों में सारे वस्त्र साथ लेजाने का निषेध किसी श्रमण से अल्पकाल के लिए याचित वस्त्र के प्रत्यर्पण की विधि मायापूर्वक अल्पकाल के लिए वस्त्र याचना का निषेध शोभनीय वस्त्र को अशोभनीय और अशोभनीय वस्त्र को शोभनीय बनाने का निषेध अन्य वस्त्र के प्रलोभन से स्वकीय वस्त्र का विनिमय आदि न करे अन्य वस्त्र के प्रलोभन से दृढ़ वस्त्र को फाड़कर न फेंके वस्त्र छीनने वाले चोर के भय से उन्मार्ग गमन का निषेध अटवी में , " " , चोरों का उपद्रव होनेपर समभाव रखने का उपदेश सूत्र संख्या ३ षष्ठ पात्रैषणा अध्ययन प्रथम उद्देशक १५२ तीन प्रकार के पात्र निग्रंथ के लिए एक पात्र का विधान पात्र के लिए आधे योजन से आगे जाने का निषेध एक स्वधर्मी के उद्देश्यसे बनाया या बनवाया पात्र लेने का निषेध अनेक स्वर्मियों के उद्देश्य से बनाया या बनवाया पात्र लेने का निषेध Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची ङ च छ ज व ट ठ १५३ १५४ क ख ग श्रु ०२ अ०६ उ० १ सू० १५४ एक स्वधर्मनी के उद्देश्य से बनाया या बनवाया पात्र लेने का निषेध ५० अनेक स्वधर्मनियों के उद्देश्य से बनाया या बनवाया पात्र लेने का निषेध श्रमणों को गिनकर बनाये या बनवाये पात्र लेने का निषेध श्रमण समूह के लिए बनाया या बनवाया पात्र लेने का निषेध बहुमूल्य पात्र लेने का निषेध बहुमूल्य बंधनों से बंधे हुए पात्र लेने का निषेध चार पात्र पड़िमा प्रथम पड़िमा -- तीन प्रकार के पात्रों में से किसी एक प्रकार के पात्र का संकल्प करके लेना, स्वयं याचना करे या बिना याचना के मिले तो ग्रहण करना द्वितीय पड़िमा — देखने के पश्चात् उपयुक्त पात्र लेना तृतीय पड़िमा फेंकने योग्य पात्र लेना चतुर्थ पड़िमा - परि भुक्त पात्र लेना पsिमाधारी की निन्दा का निषेध पात्र याचना विधि पात्र का प्रमार्जन करके भिक्षार्थ जाने का विधान सचित्त शीतल जल दूसरे पात्र में लेकर खाली किया हुआ पात्र दे तो लेने का निषेध भिक्षार्थ जाते समय सारे पात्र साथ ले जाने का विधान स्वाध्याय स्थान में जाते समय सारे पात्र साथ ले जाने का विधान Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रु०२, अ०७, उ०१ सू० १५८ ५१ आचारांग-सूची शौच स्थान में जाते समय सारे पात्र साथ ले जाने का विधान वर्षा, धुंअर व रजघात के समय ख-ग-ध में निर्दिष्ट स्थानों में सारे पात्र ले जाने का निषेध सूत्र संख्या ३ १५५ १५६ क १५७ क सप्तम अवग्रह प्रतिमा अध्ययन प्रथम उद्देशक अदत्तादान लेने का सर्वथा निषेध साथी मुनियों के छत्र आदि भी आज्ञापूर्वक लेने का विधान धर्मशाला आदि में ठहरने के लिये जितने काल की आज्ञा ले उतने काल तक ठहरना स्वयं के लाये हुए आहार के लिए स्वधर्मी श्रमण को निमंत्रण दे, दूसरे के लाये हुए आहार के लिए निमंत्रण न दे स्वयं के लाये हुए पीढा आदि के लिए स्वधर्मी श्रमणको निमंत्रण देना, दूसरे के लाये हुए के लिए निमंत्रण न देना सुई, कैंची आदि के प्रत्यपर्ण की विधि सजीव भूमि की आज्ञा न लेना स्तूप आदि की आज्ञा न लेना भीत पर बने स्थानादि की आज्ञा न लेना ऊंचे बने स्थानादि की आज्ञा न लेना गृहस्थादि जहाँ रहते हो ऐसे उपाश्रय की आज्ञा न लेना गृहस्थ के घर में होकर उपाश्रय में जाने का मार्ग हो ऐसे उपाश्रय की आज्ञा न लेना १५८ क Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . प्राचारांग-सूची ५२ श्रु०२, अ०६ उ०२ सू०१६१ छ ऐसे उपाश्रय में से ठहरने से होने वाली हानियां ज भित्तिचित्र वाले उपाश्रय की आज्ञा न लेना सूत्र संख्या ४ द्वितीय उद्देशक १५६ धर्मशाला आदि स्थानों में पूर्व निवसित श्रमण को अप्रिय न लगे, इस प्रकार आज्ञा लेकर रहना १६० क आम्रवन में जीव-जन्तु सहित आम्र लेने का निषेध आम्रवन में प्रासुक आम्र लेने का विधान आम्रवन में अप्रासुक आम्र लेने का निषेध आम्रवन में जीव-जन्तु सहित आम्र-खण्ड लेने का निषेध आम्रवन में अप्रासुक अर्ध प्रासुक आम्र-खण्ड लेने का निषेध आम्रवन में प्रासुक आम्र-खंड लेने का विधान इक्षु वन में अप्रासुक इक्षु लेने का निषेध इक्षु वन में प्रासुक इक्षु लेने का विधान इक्षु वन में प्रासुक इक्षु-खंड लेने का विधान लशुन वन के तीन विकल्प, आम्रवन के समान सात अवग्रह पडिमा प्रथम पडिमा-आज्ञा काल पर्यंत ठहरूंगा द्वितीय पडिमा-अन्य के लिए निर्दोष स्थान की आज्ञा लूंगा और उसी में ठहरूंगा। तृतीय पडिमा--अन्य के लिए निर्दोष स्थान की आज्ञा लंगा किन्तु उसमें ठहरूंगा नहीं चतुर्थ पडिमा--अन्य के लिए आज्ञा नहीं लूंगा किन्तु अन्य से याचित उपाश्रय में ठहरूंगा पंचम पडिमा-केवल अपने लिए स्थान की याचना करूंगा, अन्य के लिए नहीं । षष्ठ पडिमा याचित स्थान में शय्या संस्तारक होगा Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०२, अ०८. उ० १ सू०१६३ ५३ १६२ सूत्र संख्या ४ १६३ क श्र आचारांग सूची तो शयन करूंगा, अन्यथा उत्कटुक आसन से रात्रि बिताऊंगा ख सप्तम पड़िमा - याचित स्थान में शिला या काष्ठपट होगा तो शयन करूंगा, अन्यथा उत्कटुक आसन से रात्रि बिताऊंगा पड़िमाधारी की निन्दा न करना पाँच प्रकार के अवग्रह द्वितीय चूला अष्टम स्थान अध्ययन प्रथम उद्देशक प्रथम स्थान सप्तकक जीव-जन्तु वाले स्थान' में ठहरने का निषेध शय्यैषणा अध्ययन सूत्र ६४ के ख से च तथा सूत्र ६५ के समान चार स्थान पड़िमा प्रथम पड़िमा -- भीतादि का सहारा लूंगा किन्तु अवयवों का संकोच - प्रसारण नहीं करूंगा द्वितीय पड़िमा - अवयवों का संकोच - प्रसारण करूंगा किन्तु भ्रमण नहीं करूंगा तृतीय पड़िमा - अवयवों का संकोच - प्रसारण नहीं करूंगा और भ्रमणादि भी नहीं करूंगा चतुर्थ पड़िमा -- शरीर का ममत्व छोड़कर स्थिर रहूंगा पड़िमाधारी की निंदा का निषेध - ध्यान करने के लिए याचित स्थान २ - ध्यान करने योग्य स्थान Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ क आचारांग-सूची ५४ श्रु०२, अ०१० उ०१ सू०१६५. नवम निषीधिका अध्ययन. प्रथम उद्देशक निषोधिका' सप्तैकक जीव-जन्तुवाले स्थान में स्वाध्याय करने का निषेध द्वितीय शय्यषणा अध्ययन-सूत्र ६४ के ख से च पर्यन्त और सूत्र ६५ की पुनरावृत्ति एक से अधिक स्वाध्याय स्थान में जावें तो बैठने की विधि सूत्र संख्या २ दशम उच्चार-प्रश्रवण अध्ययन. प्रथम उद्देशक तृतीय उच्चार-प्रश्रवण सप्तैकक १६५ क मलवेग से व्यथित श्रमण के पास मलोत्सर्ग के लिए स्वयं का वस्त्र खंड या पात्र न हो तो स्वधर्मी श्रमण से याचना का विधान जीव-जन्तुवाली भूमि में मलोत्सर्ग करने का निषेध जीव-जन्तु रहित _ विधान एक स्वधर्मी के लिए बनाई हुई शौचभूमि में मलोत्सर्ग का निषेध अनेक स्वर्मियों एक स्वमिनी अनेक स्वमिनियों " श्रमणादि को गिनकर " पुरुषान्तर कृत होनेपर मलोत्सर्ग का विधान श्रमण समूह के लिए बनाई हुई शौचभूमि में मलोत्सर्ग करने का निषेध Ps # 8 १-स्वाध्याय के लिए याचित स्थान Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य आचारांग-सूची ५५ श्रु०२, अ०११ उ०१ सू०१६८ क्रीतादि दोषयुक्त उच्चार-प्रश्रवणभूमि में मलोत्सर्ग निषेध कंदादि जिस भूमि में स्थानांतरित किए गए हों ऐसी भूमि में अनेक पदार्थ जिस भूमि में " " " सजीव भूमि में मलोत्सर्ग करने का निषेध जिस भूमिमें कंदादी फेंके जाते हों ऐसी भूमिमें म० नि० " " में साली आदि धान्य बिखरे हों " " " " में कचरे का ढेर हो भोजन बनाने के स्थान में मलोत्सर्ग करने का निषेध श्मशान में बगीचे आदि में अट्टालिका आदिमें तिराहे चोराहे आदि में कोयला आदि बनाने के स्थान में जलाशयों में खानों में शाक पैदा होने वाले स्थानों में " धान्यादि पैदा होने वाले स्थानों में " पत्र, पुष्प फलादि पैदा होने वाले स्थानों में १६७ एकान्त स्थान में मलोत्सर्ग की विधि सूत्र संख्या ३ इग्यारहवां शब्द अध्ययन. प्रथम उद्देशक चतुर्थ शब्द सप्तकक १६८ क मृदंग आदि वाद्य सुनने के लिए जाने का निषेध वीणा ताल घ शंख 644 सथ में 98444 भ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची १६६ क ख ग घ ङ छ 15 ज झ १७०. क ख ग घ ङ च १७१ क ख ग घ सूत्र संख्या ३ h च छ ५.६ किले आदि में होनेवाला संगीत सुनने का निषेध 1) 33 कच्छ ग्राम बगीचे भैंसे आदिके के युद्धस्थलों में विवाह स्थलों में कथा कलह अट्टालिका तिराहे चौराहे भैंसे आदि बांधने के स्थानों में होनेवाला संगीत सुनने का निषेध 31 21 कच्छ बगीचे श्रु०२, अ०१२ उ० १ सू० १७१ समूह में 2) 31 अट्टालिका तिराहे - चौराहे भैंसे आदि बांधने के स्थान 27 79 "" " 77 "} 39 ܐܐ " वध 11 शकट आदि के महोत्सव में सभी प्रकार के शब्दों में आसक्ति रखने का निषेध "" "3 33 " " बारहवां रूप अध्ययन. प्रथम उद्देशक पंचम रूप सप्तकक 31 37 13 33 77 33 37 " 17 11 31 गूंथी हुई फूल मालाएं आदि अवलोकनार्थ जाने का निषेध 17 किले 73 " " "" 37 "" "" 77 33 " 33 31 23 Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०१३उ०१ सू०१७२ ५७ आचारांग-सूची भैंसे आदि के युद्ध के स्थल अवलोकनार्थ जानेका निषेध विवाह स्थल " कथा 46 - सस 2 कलह वध " " शकट आदि का समूह महोत्सव सभी प्रकार के रूपों में आसक्ति रखने का निषेध सूत्र संख्या १ तेरहवां परक्रिया अध्ययन. प्रथम उद्देशक षष्ठ परक्रिया सप्तैकक १७२ 위 최 गृहस्थ से पैरों का प्रमार्जन न कराना मर्दन स्पर्श मालिश के लेपन गृहस्थ से पैरों का न धुलाना " " पैरों के विलेपन न कराना " " पैरों के धूप न दिलाना गृहस्थ से पैरों के काँटे न निकलवाना गृहस्थ से पैरों का पीप न निकलवाना " " शरीर का प्रमार्जन न कराना " " व्रण का मर्दन न कराना पैर विषयक ग से अ तक की पुनरावृत्ति गृहस्थ से गड़ (फोड़ा) आदि का शस्त्र से छेदन न कराना | 4 외 위 최 의 Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग सूची ख ग घ ङ क ख ग མ| ག ख ग क ख ग क ख ट Ю ठ ड ho 44 ण त श्रु०२, अ०१३, ३० १ सू० १७२ गृहस्थ से गड़ (फोड़ा) आदि का शस्त्र से रक्त न निकालना 21 77 आदि का प्रमार्जन न करवाना आदि का मर्दन न करवाना " 11 "" पैर विषयक ग से ब तक की पुनरावृत्ति गृहस्थ से शरीर का मैल साफ न करवाना 31 "" "1 31 23 " " ५८ आँख आदि का मैल साफ न करवाना लंबे बाल आदि न कटवाना लीख जूं न निकलवाना गोद या पलंग पर लेटाकर गृहस्थ पैरों का प्रमार्जन करे तो न करवाना गोद या पलंग पर लेटालर गृहस्थ पैरों का मर्दन करे तो न करवाना पैर विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति गोद या पलंगपर लेटाकर गृहस्थ हार आदि पहनाये तो न पहनना आराम या उद्यान में लेजाकर गृहस्थ पैरों का प्रमार्जन करे तो न करवाना पैर विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति साधु दूसरे साधु से अकारण पैरों का प्रमार्जन न करावे पैर किषयक ग से ञ तक की पुनरावृत्ति काय विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति व्रण विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति गंड विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति व्रणछेदन विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति स्वेद विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति लीख जूं विषयक ग से ज तक की पुनरावृत्ति Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०१५, उ०१ सू०१७६ ५६ आचारांग-सूची १७३ क गृहस्थ से मंत्र चिकित्सा न करवाना ख गृहस्थ से कंदादि चिकित्सा न करवाना सूत्र संख्या २ चौदहवां अन्योऽन्य क्रिया अध्ययन. प्रथम उद्देशक सप्तम अन्योऽन्य क्रिया सप्तकक १७४ क गच्छ निर्गत साधु से पैरों का प्रमार्जन न करवाना ख सूत्र १७२-१७३ की पुनरावृत्ति सूत्र संख्या १ तृतीय चूला पंदरहवां भावना अध्ययन. प्रथम उद्देशक १७५ भ० महावीर के कल्याण (पूर्वभव का देहत्याग, और गर्भावतरण, जन्म, दीक्षा, केवल ज्ञान, और मोक्ष) १७६ भ० महावीर का गर्भावतरण गर्भ साहरण जन्म जन्मोत्सव नाम करण संवर्धन तारुण्य के तीन नाम के पिता के तीन नाम की माता के तीन नाम के काका का नाम के बड़े भ्राता का नाम __ की बड़ी भगिनी का नाम Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचारांग-सूची ६० श्रु०२, अ०१६. उ०१ गाथा १ भ० महावीर की भार्या का नाम " पुत्री के दो नाम १७७ " दोहित्री के दो नाम १७८ के माता-पिता का स्वर्गवास " " निर्वाण १७६ का वर्षीदान " अभिनिष्क्रमण को मनपर्यव ज्ञानोत्पत्ति का अभिग्रह " कुमार ग्राम गमन की उत्कृष्ट साधना का उपसर्ग सहन के केवल ज्ञानोत्पत्ति के केवल ज्ञान का महोत्सव का धर्माख्यान भ० महावीर का पंच महाव्रत प्ररूपण प्रथम महाव्रत की पांच भावना द्वितीय तृतीय चतुर्थ पंचम सूत्र संख्या ६ चतुर्थी चूला सोलहवां विमुक्ति अध्ययन. प्रथम उद्देशक गाथांक अनित्य भावना Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०१६ उ०१ गाथा १२ २ ३ ४-८ ε १० ११ १२ 417****** मुनि को हाथी की उपमा मुनि को पर्वत की उपमा मुनि के कर्ममल को रौप्यमल की उपमा दुःख शय्या को सर्प कंचुक की उपमा संसार को समुद्र की उपमा अन्तकृत् मुनि मोक्षगामी मुनि ६१ XXXXXXXIOMNET**************.XOQUERZAXXRANGRYZEL आचारांग - सूची तमेव सच्च णीसंकं जं जिणेहिं पवेइयं ********HCHUIP Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो दंसणस्स द्रव्यानुयोग - प्रधान सूत्रकृतांग श्रुतस्कंध अध्ययन उद्देशक पद उपलब्ध पाठ परिमाण श्लोक गद्य सूत्र पद्य प्रथम श्रुतस्कन्ध अध्ययन उद्देशक गद्य सूत्र पद्य " "" १६ २६ ४ ६३१ २ २३ ३३ ३६००० २१०० ८५ ७१६ द्वितीय श्रुतस्कन्ध अध्ययन उद्देशक गद्य सूत्र पद्य 11 ७ ७ ८ १ ८८ Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम श्रुतस्कन्ध गाथांकई अध्ययन | उद्देशक | गाथांक अध्ययन । उद्देशक له س ه م wwwwwwwvonAAMNNAPAMORYANAWA/wwwwwwwwwwwNAAM AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAMANANAANAvavinavAAMARNAMAANAMAN ه M n n n n n n س مه له س ه n n n م م ___ ४ सूत्र . द्वितीय श्रुतस्कन्ध अध्ययन उद्देशक सूत्रांक अध्ययन | उद्देशक गाथांक or om or or १ सूत्र or - Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग विषयसूची प्रथम श्रुतस्कंध प्रथम समय अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक बंधन तोड़ने के लिए प्रेरणा परिग्रह के सर्वथा त्याग से मुक्ति हिंसा से वैर वृद्धि आसक्त व्यक्ति का जीवन धन और परिवार को अत्राता एवं जीवन को अल्प जानने वाला कर्म मुक्त होता है मताग्रही एवं आसक्त श्रमण ब्राह्मण ७- ८ १ पंचमहाभूतवाद १-११ २ अात्माद्वैतवाद एकात्मवाद का परिहार ३ देहात्मवाद ४ अकारक वाद १४ देहात्मवाद और अकारकवाद का परिहार १५-१६ ५ श्रात्म षष्ठ वाद १७ पंच स्कंध वाद १८ चार धातु वाद १६-२७ ६ अफलवाद पूर्वोक्त वादियों का निष्फल जीवन A GK Kum Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची ६६ श्रु०१, अ०२ उ०१ गाथा २ द्वितीय उद्देशक गाथांक १-१३ नियतिवाद और उसका परिहार १४-२० अज्ञानवाद और उसका परिहार २१-२३ ज्ञानवाद २४-३२ क्रियावाद और उसका निरसन तृतीय उद्देशक गाथांक १- ४ आधाकर्म आहार का निषेध ५-१० जगत्कर्तृत्ववाद ओर उसका खण्डन ११-१३ त्रैराशिक वाद का परिहार १४-१६ अनुष्ठान वाद का निरसन चतुर्थ उद्देशक गाथांक . १- ३ परिग्रही श्रमणों की संगति का निषेध ४ शुद्ध आहार लेने का विधान ५- ६ लोकवाद निरसन असर्वज्ञवाद का निरसन ८-१० अहिंसा चर्या-आसन-शय्या-भक्तपान समिति का पालन कषाय जय ५ समिति,५ संवर द्वितीय वैतालीय अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक बोध प्राप्ति के लिए प्रेरणा मानवभव की दुर्लभता २ आयु की अनित्यता Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०२ उ० २, गाथा १३ ६७ सूत्रकृतांग-सूची cK WWW. M GANA पारिवारिक मोह से निवृत्ति का उपदेश सावद्य कार्यों से निवृत्ति का उपदेश सब को स्वस्थान त्याग का दुःख होता है आसक्त की मृत्यु आसक्त की कर्म वेदना अन्य तीथिक की संगति का निषेध कषाय-युक्त की मुक्ति नहीं पापकर्म से निवृत्त होने का उपदेश इर्या समिति प्रथम महाव्रत का उपदेश शीत-उष्ण परीषह सोदाहरण प्रथम महाव्रत एवं तप का उपदेश सोदाहरण तप का उपदेश १६-२२ मोह विजय द्वितीय उद्देशक गाथांक १- २ निन्दा निषेध (पाप-पर परिवाद) समभाव साधना परीषह जय (आक्रोश-वध) कषाय विजय, अहिंसा का उपदेश अनासक्त होकर उपदेश देने का विधान प्रथम महाव्रत ६-१० परिग्रह निषेध परिचय निषेध, गर्व निषेध एकाकी विहार का विधान, इर्या-समिति शून्यगृह में प्रवेश निषेध, वसति एषणा-एषणा समिति Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ० २, उ० ३ गाथा २ ६८ १४ १५-१६ १७ १८ १६ २० २.१ २२ २३-२४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० क ख ग ३१ ३२ सूत्रकृतांग-सूची सूर्यास्त के पश्चात् विहार करने का सर्वथा निषेध ( इर्या समिति ) शून्यगृह संम्बन्धी विधि ( वसति एषणा ) निर्दोष वसति ( वसति एषणा ) राज- संसर्ग का निषेध ( उष्णोदकसेवी विशेषण ) गाक १ कलह निषेध ( अठारह पाप में ) समभावी श्रमण की आचार विधि मद निषेध नरक गति में जाने वाले और मोक्ष गति में जाने वाले उत्तम धर्म का आराधन विषय वासनापर विजय प्राप्त करने वाला ही धर्माराधक है धार्मिक ही दूसरे को धार्मिक बना सकता हैं भुक्त भोगों के स्मरण का निषेध ( चौथा महाव्रत ) विकथा, प्रश्नफल, दृष्टि की भविष्यवाणी आदि का कथन धनोपार्जन के उपाय बताने का और ममत्व का निषेध अनुत्तर धर्म के आराधन का उपदेश ( भाषा समिति ) कषाय विजय का उपदेश, संयमी की महिमा ममत्व निषेध सत्कार्य-संवर-धर्म और इन्द्रिय विजय का उपदेश आत्म कल्याण की दुर्लभता भ. महावीर कथित सामायिक का अश्रवरण या अनाचार ही भवभ्रमण का कारण है गुरू का निर्दिष्ट मुक्ति मार्ग तृतीय उद्देशक संवर और निर्जरा से ही पंडित की मुक्ति स्त्री त्यागी - स्त्री त्याग से ही मुक्ति, रोग का कारण भोग ब्रह्मव्रत महाव्रत है Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १ अ०२ उ०३ गाथा २२ ६६ ४ सुखैषी एवं कामी पुरुष समाधि के रहस्य को नहीं समझ सकता आत्म बलहीन साधक को दुर्बल बैल की उपमा, संयम-भार कामभोग निवृत्त होने का उपदेश विषयों से निवृत्त होने का उपदेश, कामी की दुर्दशा 6. ८ ह १० ११ १२ क ख क ख १३ १४ क ख सूत्रकृतांग सूची महाव्रतों की रत्नों से तुलना - रत्नों का धारक राजा होता है और महाव्रतों का धारक महात्मा होता है - महाव्रत १५ १६ १७ १८ १६ आसक्त पुरुष की अकाल मृत्यु हिंसक की गति बाल तपस्वी की गति बालजन की मान्यता, जीवन में पापाचरण वर्तमान सुख की कामना, पुनर्जन्म के प्रति अनास्था सर्वज्ञ की वाणीपर श्रद्धा करने का उपदेश, मोहान्ध की अश्रद्धा स्तुति-पूजा का निषेध समत्व का उपदेश समभावी एवं सुव्रती पुरुष की देवगति संयम में पुरुषार्थ करने का उपदेश इर्या का निषेध संवर धर्म और तप के आचरण का उपदेश त्रिगुप्त होकर परमार्थ के लिये प्रयत्न करने का उपदेश वित्त, पशु और स्वजन - रक्षक नहीं है ( अशरण भावना ) मृत्यु आनेपर एकाकी जाना पड़ता है, धनादि से रक्षा नहीं होती कर्मानुसार दुःख, जन्म-जरा-मरण एवं भव भ्रमण ( कर्म-फल ) मनुष्य जन्म और बोधि की दुर्लभता का चिंतन सभी तीर्थंकरों का समान कथन २०-२२ गुणों के सम्बन्ध में तीर्थंकरों की और उनके अनुयायियों की समान प्ररूपणा - एक वाक्यता ग शुद्ध आहार लेने का उपदेश Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची गाथांक २-३ ४ ૭ ८ ६-१० ११ १२ १३ १४-१५ १६ १७ ७० श्रु० १, अ०३, उ०१ गाथा १७ तृतीय उपसर्ग अध्ययन प्रथम प्रतिकूल - उपसर्ग उद्देशक भीरू भिक्षु को शिशुपाल की और उपसर्गों को महारथी श्रीकृष्ण की उपमा भीरू भिक्षु को कायर पुरुष की ओर उपसर्गों को योद्धा या युद्ध की विभीषिका की उपमा शीतपीडित श्रमण को राज्यहीन क्षत्रिय की उपमा, शीतपरीषह ग्रीष्म और पिपासा से पीडित भिक्षु को पानी के अभाव में तड़फती हुई मछली की उपमा, उष्ण-पिपासा परीषह आक्रोस, यांचा परीषह आक्रोश परीषह भीरू भिक्षु को संग्राम भीरू की उपमा वध परीषह पीड़ित भिक्षु को कुत्ते के काटने पर अग्निदाह के समान वेदना आक्रोश परीषहद्रोही पुरुषों के क्रूर वचन क्रूर वचनों का फल १ दंश-मशक परीषह २ तृष्णस्पर्श परीषह उपसर्ग जन्य प्रत्यक्ष दुःख से परलोक के प्रति अनास्था केशलोच और ब्रह्मचर्य के कष्ट से पीड़ित भिक्षु को जाल में फंसी हुई मच्छली की उपमा वध परीषह - अनार्य पुरुषों द्वारा किये गये उपसर्ग दण्ड, वध परीषह घर से निकली हुई क्रुद्धा स्त्री के स्वजन के समान मुष्टि आदि द्वारा प्रताडित भिक्षु का स्वजन स्मरण उपसर्ग पीड़ित भिक्षु का संयम छोड़कर पलायन, बाण विद्ध गजराज के पलायन के समान है Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु ०१, अ०३, उ०३ गाथा १५ ७१ गाथांक द्वितीय उद्देशक - अनुकूल उपसर्ग १ अनुकूल उपसर्गों से संयम की अधिक हानि २ - ६ विविध प्रकार के अनुकूल उपसर्गों से संयम त्यागकर पुनः गृही बनना १० भिक्षु को परिवार का मोह बांध लेता है यथा- वृक्ष को लता ११ भिक्षु के गृहस्थ बनने पर परिवार वालों का घेरे रहना सूत्रकृतांग- सूची १२ स्वजन स्नेह समुद्र की तरह दुस्तर है, स्नेह बंधन से दुःख १३ स्वजन संसर्ग महाश्रव, धर्म श्रवण के पश्चात् असंयमी जीवन की इच्छा का निषेध १४ बुद्धों का आवर्ती से हटना और अबुद्धों का आवर्ती में फंसना १५-१८ राजा आदि द्वारा भिक्षु से भोग भोगने का आग्रह १६ भिक्षु को प्रलोभन, यथा -- चांवलों का सूअर को प्रलोभन २० ऊंचे मार्ग में यथा दुर्बल वृषभ का गिरना, तथैव संयम मार्ग में आत्मबल हीन श्रमण का गिरना २१ संयमी जीवन और तपश्चर्या के कष्टों से संयमी जीवन से पतन, यथा-ऊंचे मार्ग में वृद्ध २२ भोगों में आसक्त भिक्षु का पुनः गृही जीवन तृतीय उद्देशक- परवादी वचन जन्य अध्यात्म दुःख गाथांक १- ५ संयम भीरु और युद्ध भीरु की तुलना ६-७ युद्धवीर और संयमवीर की तुलना ८- आक्षेप वचन कहनेवाले अन्यतीर्थी समाधिभावको प्राप्त नहीं होते पीड़ित भिक्षु का वृषभ का पतन स्वीकार करना १०-१५ वांस के अग्रभाग के समान अन्य तीर्थियों को दुर्बल आक्षेप का विवेक पूर्ण प्रत्युत्तर Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची १६ दान के सम्बन्ध में अन्यतीथिक का आक्षेप वचन १७ अन्य तीर्थियों की स्वपक्ष सिद्धि के लिये धृष्टता परास्त अन्यतीर्थिकों का गालीदान १८ १६ परतीथिकों के साथ विवेक पूर्वक वाद करने का विधान ग्लान सेवा २० २१ उपसर्ग सहन करने का उपदेश चतुर्थ उद्देशक- यथावस्थित अर्थ प्ररूपण गाथांक १ ७२ श्रु०१, अ०३, उ०४ गाथा १८ सिद्धि के सम्बन्ध में विविध मान्यताएं१ जल से सिद्धि २ नमी की आहार न खाने से और रामगुप्त की आहार खाने से सिद्धि हुई ३ बाहुक और नारायण ऋषि ने पानी पीकर सिद्धि प्राप्त की ३-४ आसिल ऋषि, देविल ऋषि, द्वीपायन ऋषि और पाराशर ऋषि ने पानी पीने से और वनस्पति के खाने से सिद्धि कही है। ५ भारवाही गर्दभ के समान संयमभार से भिक्षु का दुःखी होना पृष्ठसप पंगु के समान शिथिल श्रमण को शिवपद प्राप्त नहीं होता ६-७ मिथ्यामार्ग और आर्यमार्ग का अन्तर, आर्यमार्ग ग्रहण किये बिना लोह बनिये की तरह दुःखी होना ८ पंचाश्रव सेवी असंयमी ६-१३ स्त्रियों के सम्बन्ध में पार्श्वस्थों के अभिप्राय १४ सुखेषी का पश्चात्ताप १५ धीर पुरुष का जीवन १६ स्त्री वैतरणी नदी के समान दुस्तर है १७ स्त्री त्यागी को समाधि की प्राप्ति १८ उपसर्ग सहना समुद्र के समान दुस्तर है Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . श्रु०१, अ०६, उ०१ गाथा २६ ७३ सूत्रकृतांग-सूची मृषावाद और अदत्तादान के त्याग का उपदेश अहिंसा से शांति और निर्वाण (प्रथम महाव्रत) ग्लान सेवा उपसर्ग सहन करने का उपदेश चतुर्थ स्त्री परिज्ञा अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक १-३१ स्त्री परिषह का विस्तृत वर्णन ... द्वितीय उद्देशक गाथांक १-२२ स्त्री परिषह का विस्तृत वर्णन पंचम नरक विभक्ति अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक १.२७ नरक वेदना द्वितीय उद्देशक गाथांक १-२५ पापी का चारों गतियों में भ्रमण षष्ठ वीर स्तुति अध्ययन प्रथम-उद्देशक १-२६ भ० महावीर के गुणानुवाद और उपमा युक्त विस्तृत वर्णन Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची गाथांक १-३ १४- १७ १८- १६ सप्तम सुशील परिभाषा अध्ययन प्रथम- उद्देशक ४ ५-७ ८-१० ११ क- मनुष्यभव और बोधि की दुर्लभता ख- दुःखमय संसार में सुख के लिये किये गये प्रयत्नों से भी दुःख होता है हिंसक - जिन जीवनिकायों की हिंसा करता है, उन्हीं जीवनिकायों में उत्पन्न होकर वेदना भांगता है कर्मफल १२ क पर समय-- नमक त्याग से मोक्ष · ख शीतल जल सेवन से मोक्ष यज्ञ से मोक्ष ग१३ क- स्वसमय - प्रातः काल के स्नान से मोक्ष नहीं नमक न खाने से मोक्ष नहीं ख - ग- अन्यतीर्थी का मद्य मांस आहार से भवभ्रमण २२ २३ २४. अग्निकाय के आरम्भ से निवृत्त होने का उपदेश वनस्पतिकाय की हिंसा और उसका फल " ७४ श्रु ०१, अ०७, उ०१ गाथा २४ 31 ܕܕ 21 31 जलस्पर्श से मुक्ति की मिथ्या मान्यता यज्ञ-हवन से मुक्ति की मिथ्या मान्यता २० हिंसा का फल, और अहिंसा २१ सरस आहार, स्नान, वस्त्र प्रक्षालन और वस्त्र परिकर्म का निषेध स्नान, कन्द आहार और मैथुन का निषेध रस लौलुप की असाधुता सरस आहार के लिये घर में धर्मकथा करने का और स्वगुणीकीर्तन का निषेध Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची २५ २६ २७ २८ २६ ३० गाथांक १ २ ७ ८ ७५ सरस आहार के लिये दाता की प्रशंसा न करना दाता का प्रशंसक, पार्श्वस्थ एवं कुशील है उसका संयम निस्सार है श्रु० १, अ०८, उ० १ गाथा ८ अज्ञात कुल की भिक्षा लेने का विधान, पूजा-प्रतिष्ठा के लिये तपश्चर्या न करना. शब्द रूप आदि में आसक्ति न रखना संग परित्याग, सहिष्णु, रत्नत्रय की साधना, अनासक्ति एवं अभयदान के सम्बन्ध में उपदेश, समभाव से संयम पालन का उपदेश संयम निर्वाह के लिये आहार. पाप-निवृत्ति, उपसर्ग-सहनसंयम व मोक्ष रुचि कर्म शत्रु का दमन उपसर्ग सहन और राग-द्वेष की निवृत्ति से सर्वथा कर्मक्षय एवं मोक्ष अष्टम वीर्य अध्ययन प्रथम उद्देशक वीर्य के दो भेद, वीर्य का भावार्थ कर्मवीर्य और अकर्म वीर्य प्रमाद कर्म और अप्रमाद अकर्म प्रमाद बालवीर्य, अप्रमाद पंडितवीर्य बाल-वीर्य बाल जीव का शस्त्राभ्यास और मंत्र साधना सुख के लिये मायावी जीवों द्वारा धन और प्राणों का हरण असंयमी की मानसिक हिंसा हिंसा से वैर परम्परा की वृद्धि साम्परायिक कर्म - बालजीवन के अनेक पापकृत्य Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०६, उ०१ गाथा ३ ७६ सूत्रकृतांग-सूची की G पंडित वीर्य बालजीव का सकर्म वीर्य समाप्त, पंडित का अकर्म वीर्य प्रारंभ बंधन मुक्त साधक द्वारा कर्म बंधन का छेदन रत्नत्रय की साधना से मोक्ष, बालवीर्य से दुःख और अशुभ विचारों की वृद्धि १२-१३ उच्चपद और स्वजन सम्बन्ध की अनित्यता अममत्व और आर्यधर्माचरण के लिए उपदेश गुरु निर्दिष्ट धर्म का आचरण, पाप कर्मों का प्रत्याख्यान आयु के अंतिम क्षणों में संलेखना करना कूर्म के अंग संकोच की भाँति पापकर्मों का संकोच करना शरीर, मन और इन्द्रियों का निग्रह, भाषादोष का असेवन कषाय विजय का उपदेश अहिंसा, सत्य और अस्तेय धर्म है अहिंसा संवर का उपदेश पापकर्मों का त्रिकरण से निषेध असम्यग्दर्शी वीर पुरुषों का दान और तप कर्मबंध का हेतु है सम्यग्दर्शी वीर पुरुषों का दान और तप कर्मक्षय का हेतु है पूजा-प्रतिष्ठा के लिये किया गया तप, तप नहीं तप को गुप्त रखने का उपदेश. आत्म प्रशंसा निषेध २५ अल्पभोजन, अल्पभाषण, क्षमा, अलोभ, इन्द्रियदमन और अना सक्ति का उपदेश मन, वचन और काया का निग्रह, मोक्ष पर्यन्त परीषह सहने का उपदेश नवम धर्म अध्ययन, प्रथम उद्देशक गाांक धर्म स्वरूप की पृच्छा और उपदेश २-३ सभी जातियों के मनुष्य परिग्रही, हिंसक एवं विषय लोलुप हैं Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची ४ ५-६ ७ 5-£ १०-११ १२-१३ १४ १५ १६ १७-१८ १६ श्रु०१, अ०६, ३०१ गाथा २६ धन का भोग स्वजन और कर्मफल का भोग संग्रहकर्ता भोगता है २०-२१ २२ २३ २४ २५-२७ २८ २६ ७७ पाप का फल भोगते समय कोई रक्षक नहीं बनता, रत्नत्रय की आराधना, ममत्व और अहंकार का त्याग, जिनभाषित धर्म का अनुष्ठान बाह्य और आभ्यंतर परिग्रह का त्याग, संयम का पालन विविध प्रकार के जीव, जीवहिंसा और परिग्रह का निषेध मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन, परिग्रह, कषाय तथा शस्त्र कर्म - बंध के हेतु हैं अतः इनका त्याग करना अनाचारों का त्याग दोषयुक्त आहार का त्याग अनाचारों का त्याग सांसारिक वार्ता, पापकार्य की प्रशंसा, निमित्त कथन और शय्यातर के आहार का निषेध अनाचारों का त्याग हरे घास आदि पर मलोत्सर्ग का निषेध तथा बीजादि अप्रासुक ( सजीव ) को निकाल कर प्रासुक (निर्जीव ) जल से गुदा प्रक्षालन का निषेध अनाचारों का त्याग यश के लिये प्रयत्न न करना स्वधर्मी को सदोष अन्न-जल देने का निषेध निग्रंथ महावीर का उपदेश भाषा विवेक कुशील की संगति न करना अकारण गृहस्थ के घर में बैठने का, बच्चों के खेल खेलने का और अधिक हंसने का निषेध Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ rr m श्रु०१, अ०१०, उ०१ गाथा ११ ७८ सूत्रकृतांग-सूची विषयों में अनाशक्ति-भिक्षाचरी में अप्रमाद और उपसर्ग सहने का उपदेश वध परीषह गुरुजनों से इच्छा निरोध सीखना योग्य गुरु की उपासना गृहवास में सम्यग् ज्ञान साधना संभव नहीं अतः प्रव्रज्या का उपदेश अनासक्ति, असावध अनुष्ठान और सर्व अनाचारों का निषेध मोक्ष पर्यंत कषाय का त्याग दशम समाधि अध्ययन प्रथम उद्देशक لن نت गाथांक धर्म श्रवण के लिए प्रेरणा, निदान और हिंसा का निषेध,संयम पालन प्राणातिपात विरमण तथा अदत्तादान विरमण का उपदेश आश्रव का निषेध और धन धान्य संचय का निषेध स्त्री परित्याग का उपदेश बालजीव का भव भ्रमण भाव समाधि और प्राणातिपात विरति का उपदेश समत्व का उपदेश, पूजा प्रतिष्ठा के इच्छुक और उपसर्ग पीड़ित का संयम से पतन आधाकर्म आहार और स्त्री का त्याग हिंसक की दुर्गति । धन संचय, आसक्ति तथा पापकथा का निषेध. विवेकपूर्ण भाषण का उपदेश आधाकर्म आहार का निषेध Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - सूत्रकृतांग-सूची १२ -१३ १४ - १५ १६ १७ १८ १६ २० २१ २२ २३ २४ गाथांक १-२ ३-६ ७-१२ १३ - १५ १६ १७- २१ ७६ श्रु०१, अ०११, उ०१ गाथा २१ एकत्व भावना मैथुन और परिग्रह से निवृत्त को ही समाधि भाव की प्राप्ति परीषह सहन वचन गुप्ति और शुद्ध लेश्या रखने का उपदेश, और स्त्री- सम्पर्क निषेध अक्रियावाद से मोक्ष कहने वाले धर्मज्ञ नहीं है विश्व में कई क्रियावादी, कई अक्रियावादी और कई बालक की बलि देने वाले हैं अर्थासक्त व्यक्ति अशरण भावना जिस प्रकार मृग सिंह से दूर रहता है, इसी प्रकार धार्मिक व्यक्ति को पाप से दूर रहना चाहिये अहिंसा का उपदेश मृषावाद निषेध गृह निर्माण संदोष आहार, परिग्रह और यशः कीर्ति की कामना का निषेध निरपेक्ष होने का उपदेश. शरीर का ममत्व, निदान, जन्म-मरण की आशा का त्यागी मुक्त होता है एकादश मार्ग अध्ययन : प्रथम उद्देशक मोक्ष मार्ग के लिये प्रश्न सुनने के लिए प्रेरणा छकाय की रक्षा के लिये विरति का उपदेश पिण्डैषणा, आधाकर्म आहार का निषेध उपाश्रय का निर्माण कराने के लिये अनुमति न देना दान-पुण्य के कार्यों में विधि-निषेध का प्रयोग न करना, विधि - निषेध के प्रयोग से होने वाली हानियां Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०१०, उ०१ गाथा ११ ७८ सूत्रकृतांग-सूची اس نسل ته له له ننه ننه विषयों में अनाशक्ति-भिक्षाचरी में अप्रमाद और उपसर्ग सहने का उपदेश वध परीषह गुरुजनों से इच्छा निरोध सीखना योग्य गुरु की उपासना गृहवास में सम्यग् ज्ञान साधना संभव नहीं अतः प्रव्रज्या का उपदेश अनासक्ति, असावध अनुष्ठान और सर्व अनाचारों का निषेध मोक्ष पर्यंत कषाय का त्याग दशम समाधि अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक धर्म श्रवण के लिए प्रेरणा, निदान और हिंसा का निषेध,संयम पालन प्राणातिपात विरमण तथा अदत्तादान विरमण का उपदेश आश्रव का निषेध और धन धान्य संचय का निषेध स्त्री परित्याग का उपदेश बालजीव का भव भ्रमण भाव समाधि और प्राणातिपात विरति का उपदेश समत्व का उपदेश, पूजा प्रतिष्ठा के इच्छुक और उपसर्ग पीड़ित का संयम से पतन आधाकर्म आहार और स्त्री का त्याग हिंसक की दुर्गति । धन संचय, आसक्ति तथा पापकथा का निषेध. विवेकपूर्ण भाषण का उपदेश आधाकर्म आहार का निषेध Gme Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची ८१ श्रु०१, अ०१३, उ०१ गाथा ७ मिथ्यात्व से संसार की वृद्धि देव दानवों का भवभ्रमण अंगनाओं के अनुराग से भवभ्रमण कर्मक्षय बालजीव नहीं कर सकता है, संतोषी मेधावी पापकर्म नहीं करता बुद्ध पुरुषों का ही मोक्ष होता है कुछ लोग एकान्त ज्ञानवादी हैं-किन्तु धीर पुरुष पापकर्मों से सर्वथा विरत हैं आत्मसमदर्शी को दीक्षा ग्रहण करने के लिए उपदेश धर्मोपदेशक ही रक्षक है, धर्मोपदेशक के समीप ही निवास करने का विधान आत्मदर्शी ही लोकदर्शी है, जो संसार और मोक्ष का ज्ञाता है, वह जन्म मरण का ज्ञाता है जो नरक की वेदना जानता है वह आश्रव संवर और निर्जरा को जानता है अनासक्त रहने का उपदेश त्रयोदश यथातथ्य अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक शील और अशील का रहस्य, शांति (मोक्ष) और अशांति (बंध) का रहस्य सुनने के लिए प्रेरणा समाधि मार्ग पर न चलने वाले निन्हवों का अविनय क्रोधान्ध का दुःखमय जीवन । क्रोधी समभाव को प्राप्त नहीं होता, सुशिष्य के लक्षण, आज्ञा पालन, पापकर्म भीरु, लज्जावान, श्रद्धालु और अमायावी होना विनयी शिष्य Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ०१४, उ०१ गाथा ७ ८२ अभिमानी तपस्वी का तप निरर्थक है ज्ञान का मद करने वाला अज्ञानी सच्चा श्रमण शुद्ध आहार लेनेवाला एवं निरभिमानी होता है ११ दुर्गति से रक्षा रत्नत्रय की साधना से होती है, जाति कुल से नहीं पूजा प्रतिष्ठा के इच्छुक अभिमानी श्रमण की भिक्षाचर्या केवल आजीविका एवं भवभ्रमण का हेतु साधु के लक्षण, मद करने वाला गुणी श्रमण भी सच्चा सच्चे श्रमण नहीं no ८ is m १२ १३ १४ १५-१६ १७ १८ १६-२२ २३ गाथांक १ २-३ ४-५ ६ ७ ज्ञान-मदया लाभ-मद करने वाला निन्दक श्रमण बाल है, उसको समाधि प्राप्त नहीं होती मद न करने वाला ही पंडित है एवं मोक्ष गामी है शुद्ध आहार लेना संयम में अरति और असंयम में रति का निषेध, भाषा विवेक और एकत्व भावना का उपदेश उपदेश देने की पद्धति हिंसा और माया के त्याग का उपदेश सूत्रकृतांग-सूची चतुर्दश ग्रंथ अध्ययन प्रथम उद्देशक अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, आज्ञापालन और अप्रमाद का उपदेश अविनयी शिष्य की दुर्गति-पक्षी शावक की उपमा गुरुकुल निवास का उपदेश शब्दों में राग-द्वेष, निद्रा और चिकित्सा का निषेध भूल स्वीकार न करके क्रोध करने वाला श्रमण मुक्त नहीं होता Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची ८३ श्रु०१, अ०१५, उ०१ गाथा १ ८-१२ हित शिक्षा देने वाले पर क्रोध न करना अपितु प्रसन्न होना जिन वचनों से धर्म के स्वरूप का ज्ञान प्राणातिपात विरमण प्रश्न पूछने की विधि प्राणातिपात विरमण, समिति, गुप्ति और अप्रमाद का उपदेश आचार का ज्ञाता एवं शुद्ध आहार लेनेवाला मुक्त होता है विवेकपूर्वक प्रश्नों का उत्तर देने वाला धर्मोपदेशक मुक्त होता है प्रश्नों का यथार्थ उत्तर देना, आत्म प्रशंसा और अन्य का उपहास न करे, आशीर्वाद न दे आशीर्वाद न दे, मंत्र प्रयोग और अधर्मोपदेश का निषेध, निस्पृह रहने का उपदेश हास्य, अप्रिय सत्य, प्रतिष्ठा की कामना और कषाय का निषेध भाषा विवेक और समभाव का उपदेश प्रश्नों का संक्षिप्त एवं सरस भाषा में उत्तर देना प्रश्न का उत्तर विस्तृत देना हो तो भी निर्दोष भाषा में देना आगमोक्त सिद्धान्तों का उपदेष्टा भाव समाधि को प्राप्त होता है सूत्र का यथार्थ अर्थ करना सूत्र का शुद्ध उच्चारण और यथार्थ अर्थ करने वाला तपस्वी भाव समाधि को प्राप्त होता है पंचदश आदान अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक दर्शनावरणीय के क्षय से त्रिकालज्ञ होना Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०१५, उ०१ गाथा २५ ८४ सूत्रकृतांग-सूची ६-७ संशय मिटाने वाला सर्वत्र नहीं होता सर्वज्ञोक्त सत्य ही सुभाषित है, मैत्रीभाव का उपदेश अविरोध ही श्रमण धर्म है, धर्म भावना का उपदेश भावना से आत्म-शूद्धि एवं निर्वाण पाप स्वरूप का ज्ञाता और नये पाप कर्मों को न करने वाला कर्मों से मुक्त होता है स्त्रियों के मोह से मुक्त पुरुष ही मुक्त होता है मोक्षमार्ग का दर्शक ही मुक्त होता है धर्मोपदेश का प्रत्येक प्राणी पर भिन्न २ प्रभाव, मुक्तपुरुष के लक्षण ८-६ ११ १२ स्त्री संग से भवभ्रमण प्राणीमात्र के साथ अविरोध रखने वाला परमार्थ दर्शी है अनाकांक्षी ही मार्ग दर्शक है, मोह का अंत ही संसार का अन्त है १५ रूखा सूखा खाने वाला निष्काम श्रमण मुक्त होता है १६-१७ शिवपद और स्वर्ग का अधिकारी मनुष्य है, अमनुष्य (देव तिर्यंच आदि) नहीं—मनुष्य भव की दुर्लभता बोधि और शुभ लेश्या दुर्लभ है धर्मोपदेशक का भव भ्रमण नहीं होता मुक्त का पुनरागमन नहीं होता, तीर्थंकर और गणधर लोक के नेत्र हैं काश्यप कथित संयम के पालने से निर्वाण की प्राप्ति २२ पापकर्मों का अकर्ता ही मुक्त होता है २३-२४ संयम से शिवपद और स्वर्ग २५ रत्नत्रय की अराधना से भव भ्रमण नहीं होता Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची ८५ श्रु०२, अ०१, उ०१ सू० ८ xww - षोडश गाथा अध्ययन प्रथम उद्देशक अनगार के चार पर्याय माहण श्रमण भिक्षु और निग्रंथ. माहण की व्याख्या श्रमण की व्याख्या भिक्षु की व्याख्या निग्रंथ की व्याख्या सूत्र संख्या ४ द्वतीय श्रुत स्कन्ध प्रथम पुंडरीक अध्ययन प्रथम उद्देशक पुष्करिणी (वापिका) में अनेक कमल, मध्यभाग में एक पद्मवर पुंडरीक पुंडरीक के उद्धार के लिए पूर्व दिशा से प्रयत्नशील प्रथम पुरुष दक्षिण " " द्वितीय " पश्चिम " " तृतीय " चतुर्थ " का केवल आह्वान से उद्धार करने वाला पंचम " भ० महावीर द्वारा निर्ग्रथ-निग्रंथियों को निमंत्रण और उनके सामने दृष्टांत के भाव का कथन ___ दृष्टांत और दार्धान्तिक १ पुष्करिणी १ मनुष्य लोक २ उदक २ कर्म ३ पंक ३ विषय भोग ४ नाना प्रकार के कमल ४ नाना प्रकार के मनुष्य उत्तर " , Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०१, उ०१ सू० ११ ८६ सूत्रकृतांग-सूची ५ पद्मवर पुंडरिक ५ राजा प्रमुख पुरुष ६ पंक निमग्न चार पुरुष ६ भोग पंक निमग्न चार तीथिक ७ तट ७ उत्तम धर्म ८ तट स्थित पाँचवाँ पुरुष ८ धर्म तीर्थ ६ शब्द ९ धर्म कथा १० पुंडरीक का बाहर आना १० निर्वाण राजा, राजसभा, धर्मोपदेश, देहात्मवादी द्वारा देहात्मवाद का प्रतिपादन, आत्मा और शरीर को भिन्न-भिन्न दिखाने के लिए युक्ति युक्त प्रश्न शरीर के प्रतीक आत्मा के प्रतीक १ कोश १ असि २ मुँज २ शलाका ३ माँस ३ अस्थि ४ करतल ४ आमलक ५ दधि ५ नवनीत ६ तिल ६ तेल ७ इक्षु ७ रस ८ अरणि ८ अग्नि क्रिया, अक्रिया, सुकृत, दुष्कृत आदि का निषेध देहात्मवादी शाक्य श्रमण का विषयभोगमय जीवन राजा, राजसभा, धर्मोपदेशक, पंचमहाभूतवादी द्वारा पंच महाभूतवाद का प्रतिपादन, क्रिया-अक्रिया, सुकृत-दुष्कृत आदि का निषेध पंचमहाभूतवादी श्रमण का भोगमय जीवन राजा, राजसभा, धर्मोपदेशक, ईश्वर कारणिकवादी द्वारा Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०१, उ० १ सू० १५ १२ १३ १४ १५ क ख ग ८७ ईश्वर कर्तव्य का प्रतिपादन, क्रिया अक्रिया, आदि का निषेध सूत्रकृतांग- सूची ईश्वर कारणिकवादी श्रमण का भोगमय जीवन राजा, राजसभा, धर्मोपदेशक, नियतिवादी द्वारा नियतिवाद का प्रतिपादन क्रिया-अक्रिया, सुकृत- दुष्कृत आदि का निषेध भिक्षावृत्ति स्वीकार करना तथा एकत्व भावना भावित श्रमण का तत्त्वज्ञान गृहस्थ और अन्य तीर्थिकका सावद्य जीवन. श्रमण का निरवद्य जीवन. छ जीवनिकाय की हिंसा का युक्तिपूर्वक निषेध, समस्त तीर्थकरों द्वारा अहिंसा का प्रतिपादन सूत्र संख्या १५ सुकृतदुष्कृत प्राणातिपात से विरत और अनाचार सेवन न करनेवाला भिक्षु संयम साधना से भिक्षु का स्वर्ग या सिद्धलोक में गमन अनासक्त पाप-विरत भिक्षु प्राणातिपात से सर्वथा विरत भिक्षु काम भोग से सर्वथा विरत भिक्षु घ ङ च क्रोधादिपूर्वक की गई सांपरायिक क्रिया से सर्वथा विरत भिक्षु छ क्रीत आदि दोष रहित आहार लेने वाला भिक्षु ज गृहस्थ के निमित्त बने हुए आहार को अनासक्त होकर खाने वाला और समस्त कार्य यथा समय करनेवाला भिक्षु झ निस्पृह होकर धर्मोपदेश करनेवाला भिक्षु 외 उक्त सर्वगुण संपन्न भिभु के उपदेश से भव्य आत्माओं का उद्धार श्रमण के गुण श्रमण के चौदह पर्याय वाची Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची श्रु०२, अ०२ उ०१ सू०३२ m १६. २ द्वितीय क्रिया-स्थान प्रयध्यन प्रथम उद्देशक दो प्रकार के स्थान १ धर्म स्थान २ अधर्म स्थान १ उपशांत स्थान २ अनुपशांत स्थान तेरह क्रियास्थान अधर्म स्थान प्रथम अर्थ-दण्ड की व्याख्या द्वितीय अनर्थ-दण्ड , तृतीय हिंसा-दण्ड , चतुर्थ अकस्मात् दण्ड की व्याख्या पंचम दृष्टि विपर्यास दण्ड , षष्ठ मृषावाद प्रत्ययिक क्रियास्थान की व्याख्या सप्तम अदत्तादान प्रत्ययिक की व्याख्या अष्टम अध्यात्म नवम मान दशम मित्र दोष एकादश माया २८ द्वादश लोभ २६ त्रयोदश धर्मस्थान, इर्या पथिक क्रियास्थान की व्याख्या पापशास्त्रों के नाम पापशास्त्रों के अध्ययनकर्ताओं की गति पापात्माओं के चतुर्दश पाप कार्य ३२ क महापापियों के कार्य, भोगमय जीवन बितानेवाले अनार्य हैं, धूर्त हैं २२ २३ म Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३ ४० श्रु०२, अ०३ उ०१ सू० ४७८९ सूत्रकृतांग-सूची ख- अधर्म पक्ष हेय है ३३ धर्म पक्ष उपादेय है ३४ मिश्र पक्ष हेय है ३५-३७ अधर्म पक्ष (महा आरंभी गृहस्थों का वर्णन) धर्म पक्ष (मुनि जीवन का वर्णन) मिश्र पक्ष (धार्मिक गृहस्थों का वर्णन) यह मिश्र पक्ष उपादेय है अधर्म पक्ष के आराधक ३६३ वादी हिंसा के समर्थकों का भवभ्रमण, अहिंसा के समर्थकों की सद्गति ४२ बारह क्रिया स्थान सेवियों का भवभ्रमण, तेरहवें क्रियास्थान सेवियों की सिद्ध गति सूत्र संख्या २७ तृतीय आहार परिज्ञा अध्ययन प्रथम उद्देशक चार प्रकार के बीज, पृथ्वी योनिक वनस्पतियों का आहार वनस्पतियों की उत्पत्ति के कारण. वनस्पति में जीव के अस्तित्व की युक्ति पूर्वक सिद्धि वृक्ष योनिक वृक्षों के जीवों का आहार, वृक्षयोनिक वृक्षो में जीवों की उत्पत्ति का कारण वृक्ष योनिक वृक्षों में जीवों की उत्पत्ति का कारण, वृक्षयोनिक वृक्षों का आहार, वृक्ष योनिक वृक्ष के जीवों का शरीर वृक्ष के दक्ष अवयवों में भिन्न-भिन्न जीव और उन जीवों का आहार अध्यारुह वृक्षों की उत्पत्ति का कारण का आहार Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग- सूची ४८ ४६ ५० ५१ ५२ 11 ५३ 17 " 27 ?? "" 17 " 27 " अध्यारुवृक्षों का शरीर योनिक वृक्षों की उत्पत्ति का कारण 17 ६० योनिक वृक्षों के जीवों की उत्पत्तिका कारण योनिक का आहार का शरीर वृक्ष के जीवों का आहार शरीर "" श्रु०२, अ०३ उ० १ सू०५४ दश अवयवों में भिन्न-भिन्न जीव. 37 उन जीवों का आहार और उन जीवों के शरीर तृण वनस्पति की उत्पत्ति का कारण का आहार और शरीर " "1 पृथ्वी योनिक तृणों की उत्पत्ति के कारण " का आहार और शरीर तृण योनिक तृणों के दश अवयवों में भिन्न-भिन्न जीव और शरीर ૪ क- आय, वाय, काय आदि वनस्पतियों की उत्पत्ति का कारण उनका आहार और शरीर, सूत्र ४४-४५-४६ की पुनरावृत्ति ख- उदक योनिक वनस्पतियों की उत्पत्ति का कारण 33 का आहार और शरीर "" 17 सूत्र ४४-४५-४६ की पुनरावृत्ति ग- औषधि और हरित वनस्पतियों के सम्बन्ध में सूत्र ४३-४४ ४५-४६ की पुनरावृत्ति घ- उदक योनिक अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ, उनकी उत्पत्ति, आहार और शरीर Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०३ उ०१ सू०६४ ६१ सूत्रकृतांग-सूची पृथ्वी योनिक वृक्ष, वृक्ष योनिक वृक्ष और वृक्ष योनिक मूलइस प्रकार सबके ३-३ विकल्प हैं, पाँच प्रकार के मनुष्य, इनकी उत्पत्ति, आहार और शरीर जलचर जीवों की उत्पत्ति, आहार और शरीर स्थलचर ,, , उरपरिसर्प , , , , , भूजपरिसर्प , " " " खेचर , , नाना प्रकार की योनियों में पैदा होने वाले जीवों की उत्पत्ति आहार और शरीर वायु योनिक अप्काय में विविध प्रकार के जीवों की उत्पत्ति आहार और शरीर ६० क- त्रस-स्थावर जीवों के शरीरों में अग्निकाय की उत्पत्ति आहार और शरीर , ख- , , , वायुकाय की , , , , पृथ्वीकाय की , सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्वों की अनेक योनियों में ,, इन जीवों की उत्पत्ति आहार और शरीरों का ज्ञाता मुनि आहारगुप्त आदि गुणों का धारक बने सूत्र संख्या २० याख्यान अध्ययन प्रथम उद्देशक अप्रत्याख्यानी आत्मा द्वारा सर्वदा पापकर्मों का उपार्जन ६४ प्रश्न- अव्यक्त विज्ञान वाले प्राणी पापकर्मों का उपार्जन कैसे करते हैं ? Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची १२ श्रु०२ अ०५ उ०१ गाथा १६ उत्तर- वे छ काय की हिंसासे एवं पापों से विरत नहीं हैं, वधक का दृष्टान्त ६५ प्रश्न- जो प्राणी अदृष्ट या अश्रुत है, उनके साथ वैर किस प्रकार हो सकता है ? ६६उत्तर- संज्ञी और असंज्ञी का दृष्टान्त ६७ प्रश्न- मनुष्य संयत, विरत आदि गुण-सम्पन्न किस प्रकार हो सकता है ? ६८उत्तर- छ काय की हिंसासे विरत भिक्षु एकान्त पंडित है, सूत्र संख्या ६ पंचम आचार श्रुत अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक अनाचार सेवन न करने का उपदेश २-५ जगत के संबंध में एकान्त वचन का प्रयोग न करना एकेन्द्रिय तथा पंचेन्द्रिय की हिंसा के सम्बन्ध में एकान्त वचन का प्रयोग न करना ८.६ आधाकर्म आहार सेवी के १०-११ औदारिकादि शरीरों के लोक और अलोक का अभाव नहीं किन्तु अस्तित्व है जीव और अजीव का अर्म और अधर्म का बन्ध और मोक्ष का पुण्य और पाप का आश्रव और संवर का वेदना और निर्जरा का क्रिया और अक्रिया का o ir m x is is mmm Www w 9 is w Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०६, उ०१ गाथा ४२६३ सूत्रकृतांग-सूची OM ___ क्रोध और मान का अभाव नहीं किन्तु अस्तित्व है माया और लोभ का राग और द्वेष का चार गति वाले संसार का देव और देवी का सिद्धि और असिद्धि का सिद्धि स्थान का साधु और असाधु का २५-२६ कल्याण और पाप का ३० ' जगत् और प्राणियों का साधुता के सम्बन्ध में सही दृष्टि रखने का उपदेश दान की प्राप्ति के सम्बन्ध में सही दृष्टि रखने का उपदेश मोक्ष पर्यन्त जिनोपदिष्ट धर्म की आराधना २७ Www WW.0 षष्ठ आर्द्रकीय अध्ययन प्रथम उद्देशक गाथांक १-२६ गोशालक आर्द्रकुमार संवाद भ० महावीर के सम्बन्ध में गोशालक के आक्षेप आक्षेप के विषयक- भ० महावीर पहले एकचारी थे अब अनेकचारी हैं ख. धर्मोपदेश-भ० महावीर की आजीविका है ग- महावीर डरपोक हैं घ- महावीर लाभार्थी वैश्य जैसा है आर्द्र कुमार द्वारा आक्षेपों का समाधान २७-४२ शाक्य भिक्षुओं के साथ आर्द्र कुमार का संवाद Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकृतांग-सूची ६४ श्रु०२, अ०७ उ०१ सू० ७७ ___ वाद के विषय क- वध्य प्राणी को जड़ वस्तु मानने पर हिंसा नहीं होती ख- शाक्य भिक्षुओं को भोजन देने से पुण्य और स्वर्ग आर्द्रकुमार का समाधान ४३-४६ ब्राह्मणों के साथ आर्द्रकुमार का संवाद वाद का विषय-ब्रह्मभोज करवाने से पुण्य ओर स्वर्ग प्राप्त होता है, आर्द्र कुमार द्वारा समाधान ४७-५२ एक दंडियों के साथ आर्द्रकुमार का संवाद वाद का विषय-एकात्मवाद. आर्द्र कुमार द्वारा समाधान ५३-५५ हस्ति तापसों के साथ आर्द्रकुमार का संवाद वाद का विषय ---हिंसा निर्दोष है आद्रकुमार द्वारा समाधान सप्तम नालंदीय अध्ययन प्रथम उद्देशक राजगृह का उपनगर नालंदा लेप गाथापति का धार्मिक जीवन सेसदविया-उदकशाला. हस्तियाम-वनखंड भ० गोतम और पार्वापत्य पेढाल पुत्र का मिलन और संवाद ७२-७३ पेढ़ाल पुत्र द्वारा कुमार पुत्र निर्ग्रन्थ की प्रत्याख्यान पद्धति की आलोचना भ० गोतम द्वारा पापित्य पेढाल पुत्र की मान्यता का खण्डन ७५-७६ पा० पेढाल पुत्र का त्रश शब्द के सम्बन्ध में प्रश्न भ० गोतम द्वारा समाधान ७७ पा० पेढाल पुत्र का श्रावक की प्राणातिपात विरति के संबंध में प्रश्न ७४ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२, अ०७, उ०१ सू०८१५ सूत्रकृतांग-सूची भ० गोतम का पाश्र्वापत्य स्थविरों से प्रतिप्रश्न भ० गोतम द्वारा समाधान भ० गोतम का आदर किये बिना ही पा० पेढाल पुत्र का गमन भ० गोतम का पाश्र्वापत्य पेढाल पुत्र को रोकना, तथा भ० महावीर के पास लेजाकर पंच महाव्रत स्वीकार करवाना सूत्र संख्या १४ "निग्गंथे पावयणे" अयं अट्टे अयं परम सेसे अणहे Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो णाणस्स द्रव्यानुयोग-प्रधान स्थानांग (ठाणांग-समवायांग का ज्ञाता श्रुत स्थविर होता है) श्रुतस्कंध स्थान उद्देशक पद ७२००० उपलब्ध पाठ परिमाण श्लोक ३७७० गद्य सूत्र पद्य सूत्र २१ MMGMA Know .MAR आगमों का अध्ययन काल वर्ष के दीक्षित को प्राचारप्रकल्प सूत्र कृतांग दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प व्यवहार स्थानांग, समवायांग भगवती सूत्र छुल्लिका विमानादि पाँच अध्ययन अरुणोपपात अादि पांच अध्ययन उत्थान श्रत आदि चार अध्ययन प्राशिविष भावना दृष्टिविष भावना चारण भावना महा स्वप्न भावना तेजो निसर्ग दृष्टिवाद २० वर्ष के दीक्षित को शेष सर्व भागम Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक श्रतस्कन्ध - स्थान । उद्देशक । क्रमशः सूत्र संख्या ५६ प्रत्येक स्थान के सूत्र . २ . G ११० २३४ २७७ ३ ४११ ४४० ४७४ ५४० ५१३ ७०३ ७८३ Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग विषयसूची एक श्रुतस्कंध प्रथम स्थान-एक उद्देशक १ उत्थानिका २ आत्मा ३ दंड ४ क्रिया ५ लोक ६ अलोक ७ धर्म ८ अधर्म ९ बंध १० मोक्ष ११ पुण्य १२ पाप १३ आश्रव १४ संवर १५ वेदना १६ निर्जरा १७ प्रत्येक शरीर में जीव १८ विकुर्वणा १६ मन २० वचन २१ काया २२ उत्पाद २३ विनाश २४ मृत शरीर २५ गति २६ आगति २७ च्यवन २८ उपपात २६ तर्क ३० संज्ञा ३२ विज्ञ ३३ वेदना ३४ छेदन ३५ भेदन ३६ मुक्त आत्माओं का अंतिम मरण ३७ शुद्ध चारित्र ३८ दुःख ३६ अधर्म प्रतिमा ४० धर्म प्रतिमा ४१ मनन लक्षण मन ४२ उत्थान, कर्म, बलवीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम ४३ मन वचन काया ४४ समय ४५ प्रदेश परमारगु सिद्ध निर्वाण निवृत्त ४७ शब्द रूप ३१ मति m mr Mr ४६ सिद्धि Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० ०१, अ० १, उ० १ सूत्र ५१ गंध सुशब्द दीर्घ त्रिकोण मंडलाकार लोहित सुगंध कटु मधुर शीत लघु 71 "" ?? १०० ग- सम्यग्दृष्टियों की वर्गणा रस सुरूप ह्रस्व चतुष्कोण कृष्ण हारिद्र दुर्गंध कषाय कर्कश उष्ण स्निग्व ४८ पाप ४६ पापविरति ५० अवसर्पिणी काल के ६ आरे, उत्सर्पिणी काल के ६ आरे ५१ क- चौवीस दण्डकों की वर्गणा ख- भव सिद्धिकों की वर्गणा अभव सिद्धिकों की चौवीस दण्डकों में भवसिद्धिकों की वर्गणा अभवसिद्धिकों की वर्गणा स्पर्श कुरूप वृत्त विस्तीर्ण नील स्थानांग सूची शुक्ल तिक्त आम्ल मृदु गुरु रुक्ष चौवीस दण्डकों में सम्यग्दृष्टियों की वर्गणा मिथ्यादृष्टियों की वर्गणा चौवीस दण्डकों में मिथ्यादृष्टियों की वर्गणा सम्यग् मिथ्यादृष्टियों की वर्गणा चौवीस दण्डकों में सम्यग् मिथ्यादृष्टियों की वर्गणा घ- कृष्ण पाक्षिकों की वर्गणा चौवीस दण्डकों में कृष्णपाक्षिकों की वर्गणा Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १०१ श्रु०१, अ०१, उ०१ सूत्र ५१ शुक्लपाक्षिकों की वर्गणा चौवीस दण्डकों में शुक्लपाक्षिकों की वर्गणा ङ. कृष्ण लेश्या की वर्गणा यावत् शुक्ल " " " बावीस दण्डकों में--कृष्ण, नील, कापोत, लेश्या की वर्गणा, (२३-२४ दण्डक छोड कर) अठारह दण्डकों में-तेजोलेश्या की वर्गणा (२ से ११, १२, १३, १६, २० से २४ । योग १८) (१, १४, १५, १७, १८, १६ । योग ६ में नहीं) तीन दण्डकों में--पद्म-शुक्ल लेश्या की वर्गणा (२०, २१, २४ दण्डकों में) कृष्ण लेश्या वाले भवसिद्धिकों की वर्गणा-यावत्शक्ल " " " " " कृष्ण " अभवसिद्धिकों की शुक्ल " " " " सतरह दण्डकों में-कृष्ण, नील, कापोत, लेश्या वाले सम्यग् दृष्टियों की वर्गणा (१ से ११, १७ से २२ । योग १७) पन्द्रह दण्डकों में ---- तेजोलेश्या वाले सम्यगतियों की वर्गणा (२ से ११, २० से २४ । योग १५) तीन दण्डकों में--पद्म-शुक्ल लेश्या वाले सम्यग्दृष्टियों की वर्गणा (२०, २१, २४ । योग ३) बावीस दण्डकों में-कृष्ण, नील, कापोत लेश्यावाले मिथ्यादृष्टियों की वर्गणा अठारह दण्डकों में--तेजोलेश्या वाले मिथ्यादृष्टियों की वर्गणा तीन दण्डकों में--पद्म, शुक्ल लेश्या वाले कृष्णपाक्षिकों की वर्गणा Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०१, उ०१ सूत्र ५१ १०२ स्थानांग-सूची शुक्ल पाक्षिकों की वर्गणा-कृष्णपाक्षिकों के समान है च- १५ तीर्थसिद्धों की वर्गणा-यावत्-अनेक सिद्धों की वर्गणा १३ सू०--प्रथम समय सिद्धों की वर्गणा, अनंत समय सिद्धों की वर्गणा छ- परमाणु पुद्गलों की वर्गणा-यावत्-अनन्त प्रदेशी स्कंधों की वर्गणा एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गलों की वर्गणा-यावत्-असंख्यात प्रदेशावगाढ पुद्गलों की वर्गणा एक समय की स्थितिवाले पुद्गलों की वर्गणा-यावत्-असंख्यात समय की स्थितिवाले पुद्गलों की वर्गणा एक गुण काले पुद्गलों की वर्गणा-यावत्-अनंत गुण काले पुद्गलों की वर्गणा शेष ४ वर्ण २ गंध, ५ रस, और ८ स्पर्श वाले पुद्गलों की वर्गणा जघन्य प्रदेशी स्कंधों की वर्गणा उत्कृष्ट अजघन्योत्कृष्ट जघन्य अवगाहना वाले स्कंधो की वर्गणा उत्कृष्ट अजघन्योत्कृष्ट जघन्य स्थिति , उत्कृष्ट अजघन्योत्कृष्ट जघन्य गुण काले पुद्गलों की वर्गणा उत्कृष्ट " " अजघन्योत्कृष्ट " " शेष ४ वर्ण, २ गंध, ५ रस, और ८ स्पर्श वाले पुद्गलों की वर्गणा Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची श्रु०१, अ०२, उ०१ सू०५७ १०३ जम्बूद्वीप की परिधि अंतिम तीर्थंकर महावीर अकेले मुक्त हुए अनुत्तर देवों की अवगाहना आर्द्रा नक्षत्र का तारा चित्रा ,, ,, स्वाति , , , पुदगल एक प्रदेशावगाढ पुद्गल एक समय स्थिति वाला पुद्गल एक वर्ण वाला पुद्गल , गंध " " ., रस , , ,, स्पर्श , , सूत्र संख्या १६ द्वितीय स्थान प्रथम उद्देशक लोक में दो प्रकार के पदार्थ जीव-ग्रजीव जीव सयोनि, अयोनि सायु, अनायु सेन्द्रिय, अनेन्द्रिय सवेदक, अवेदक सरूपी, अरूपी सपुद्गल, अपुद्गल Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १०४ श्रु०१, अ०२, उ०१ सूत्र ६० ५४ संसार प्राप्त, असंसार प्राप्त शास्वत, अशास्वत अजीव आकाश, नो आकाश, धर्म, अधर्म बंध, मोक्ष, पुण्य, पाप आश्रव, संवर वेदना, निर्जरा क्रिया विचार ६० क- दो प्रकार की क्रिया जीव क्रिया दो प्रकार की अजीव ,, , ख- दो प्रकार की क्रिया कायिकी क्रिया दो प्रकार की आधिकरणिकी ,, , ग- दो प्रकार की क्रिया प्राद्वेषिकी क्रिया दो प्रकार की पारितापनिकी , , घ- दो प्रकार की क्रिया प्राणातिपातक्रिया दो प्रकार की अप्रत्याख्यान क्रिया , " ङ- दो प्रकार की क्रिया आरंभिका क्रिया दो प्रकार की परिग्रहिका , , , च- दो प्रकार की क्रिया माया प्रत्ययिकी क्रिया दो प्रकार की मिथ्यादर्शन ,, , , छ- दो प्रकार की क्रिया Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १०५ श्रु०१, अ०२, उ०१ सूत्र ६४ दृष्टिका क्रिया दो प्रकार की पृष्टिका , , , ज- दो प्रकार की क्रिया प्रातीत्यिकी क्रिया दो प्रकार की सामन्तोपनिपातिकी ,, , झ- दो प्रकार की क्रिया स्वाहस्तिकी क्रिया दो प्रकार की नैसृष्टिकी , , , अ- दो प्रकार की क्रिया । आज्ञापनिका क्रिया दो प्रकार की वैदारिणी , , , ट- दो प्रकार की क्रिया अनाभोग प्रत्यया क्रिया दो प्रकार की अनवकांक्षा , " " ठ- दो प्रकार की क्रिया । अनायुक्त आदानता क्रिया दो प्रकार की ,, प्रमार्जनता , , , ___ ड- दो प्रकार की क्रिया प्रेम प्रत्ययिका क्रिया दो प्रकार की द्वेष , , , ६१ क-ख- गर्दा दो प्रकार की ६२ क-ख- प्रत्याख्यान दो प्रकार के ६३ मुक्त होने के दो कारण ६४ क- केवली कथित धर्म का श्रवण ख- बोधि की प्राप्ति ग- अनगार प्रव्रज्या घ- ब्रह्मचर्य वास - or or Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०२, उ०१ सूत्र ७१ १०६ स्थानांग-सूची ङ- संयम च- संवर छ- मतिज्ञान-यावत्-केवल ज्ञान की प्राप्ति न होने के दो कारण केवली कथित धर्म का श्रवण यावत्-मतिज्ञान-यावत्-केवल ज्ञान प्राप्त होने के दो कारण सूत्र ६५ के समान समय (काल चक्र) के दो भेद उन्माद दो प्रकार के दण्ड चौवीस दण्डकों में दो प्रकार के दण्ड ७० क- दर्शन दो प्रकार के ख- सम्यग्दर्शन ग- निसर्ग सम्यग्दर्शन " " घ- अभिगम , , ङ- मिथ्या दर्शन ,, , , च- अभिग्रहिक मिथ्या दर्शन छ- अनभिग्रहिक ,, , ज्ञान के दो भेद ७१ क- प्रत्यक्ष ज्ञान के दो भेद ख- केवल ज्ञान ,, ग- भवस्थ केवल ज्ञान घ- सजोगी भवस्थ केवल ज्ञान के ङ- अजोगी , . च- सिद्ध केवल ज्ञान छ- अनन्तर सिद्ध केवल ज्ञान ज- परंपर Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्रु०१, अ०२, उ०१ सूत्र ७२ १०७ स्थानांग-सूची झ- नो केवलज्ञान के दो भेद ज- अवधि ज्ञान ट- भव प्रत्ययिक अवधि ज्ञान ठ. क्षायोपशामिक ड- मनःपर्यव ज्ञान , ढ- परोक्ष ज्ञान ण- आभिनिबोधिक त- श्रुत निश्रित थ- अश्रुत , द- श्रुत ज्ञान ध- अंग बाह्य न- आवश्यक व्यतिरिक्त ७२ क- धर्म दो प्रकार का ख- श्रुत धर्म , ग- चारित्र धर्म , दो भेद दो प्रकार के संयम घ- संयम ङ- सराग संयम दो प्रकार का च-ज- सूक्ष्म संपराय सराग संयम झ- बादर अ- वीतराग संयम ,, ट-ठ- उपशांत कषाय वीतराग संयम ड- क्षीण ढ- छद्मस्थ क्षीण ण- स्वयं बुद्ध छदमस्थ क्षीण कषाय Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग सूची १०८ श्रु ०१, अ०२, उ०१ सूत्र ७६ द-न- बुद्ध बोधित छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग संयम दो प्रकार का प- केवली फ-भ- सजोगी केवली म- अजोगी केवली ७४ ७५ ७६ 15 ठि ज झ ७३ क ङ- दो प्रकार के पृथ्वीकाय यावत् - वनस्पति काय च उव्य पृथ्वीकाय द्रव्य पृथ्वी काय द्रव्य काल के दो भेद आकाश "1 "" 33 " 27 " 19 21 दो प्रकार के काय त्रस काय के दो भेद स्थावर "" 32 दिशा विचार 21 "" 73 चौवीस दंडकों में दो शरीर विग्रहगति प्राप्त जीवों के दो शरीर चौवीस दडकों में दो कारणों से शरीर की रचना शरीर प्राप्ति के दो कारण 17 33 सहभोज, सहवास, पूर्व और उत्तर दिशा में करने योग्य कार्य(१) प्रव्रज्या, मुँडन, शिक्षा, उपस्थापन, स्वाध्याय के लिए आदेश, विशेष आदेश, अध्यापन के लिए आदेश, आलोचना, प्रतिक्रमण, निंदा, गर्हा, अतिचार त्याग के लिए संकल्प, अतिचार शुद्धि, पुनः अतिचार सेवन न करने की Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १०६ श्रु०१, अ०२, उ०२ सूत्र ८० प्रतिज्ञा, प्रायश्चित्त, संलेखना, पादपोपगमन सूत्र संख्या २० द्वितीय उद्देशक ७७- चौवीस दंडकों में वेदना ७- चौवीस दंडकों में गति, आगति ७६- चौवीस दंडकों में भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक अनंतरोपपन्नक, परंपरोपपन्नक ,, गति प्राप्त, अगति प्राप्त प्रथमसमयोत्पन्न-अप्रथमसमयोत्पन्न आहारक, अनाहारक श्वासोच्छास सहित, श्वासोच्छास रहित सेन्द्रिय, अनेन्द्रिय पर्याप्त, अपर्याप्त संज्ञो, असंज्ञी भाषा सहित, भाषा रहित सम्यकदृष्टि, मिथ्यादृष्टि अल्पसंसार भ्रमण वाले, अनंत संसार भ्रमण वाले संख्येय समय की स्थिति वाले असंख्येय समय की स्थिति वाले ,, सुलभ बोधि, दुर्लभ बोधि ,, , कृष्णपाक्षिक, शुक्लपाक्षिक , चरिम, अचरिम ८० क- अधोलोक को आत्मा दो प्रकार से जानता है तिर्यक्लोक ऊर्ध्व लोक , " सम्पूर्ण लोक , , Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग सूची ख- अधोलोक को आत्मा दो प्रकार से जानता है। तिर्थक् लोक उर्ध्व लोक सम्पूर्ण लोक ग- दो प्रकार से आत्मा शब्द सुनता है घ रूप देखता है गंध सूंघता है h's ङ च ञ to to ट 33 ठ ड ढ ण त 13 33 17 11 रसास्वादन करता है छ स्पर्शानुभव करता है ज प्रकाश करता है 11 - दो प्रकार से आत्मा विशेष प्रकाश करता है वैक्रेय करता है " 23 "" 17 11 " 11 11 22 33 "" भ नाग कुमार म- सुवर्ण 33 31 13 31 11 "1 "" 11 23 "3 " 31 थ द ध न मरुत देव दो प्रकार के हैं प किन्नर फ- किंपुरुष ब- गंधर्व 77 11 " " 33 11 "" ?? " ११० श्र०१, अ०२३०२ सूत्र ८० ७ 21 33 37 मैथुन सेवन करता है बोलता है आहार खाता है आहार का परिणमन करता है वेदन करता है निर्जरा करता है देव शब्द सुनता है रूप देखता है - यावत् - निर्जरा करता है Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०१, अ०२, उ०२ सूत्र ८३ सूत्र संख्या ४ ८१ ६२ ८३ य- अग्नि कुमार देव दो प्रकार के हैं र- वायु ल- देव तृतीय उद्देशक क- दो प्रकार के ख के ग घ ङ.... च छ ज ग toto ध ङ 13 17 " 31 1) " " " झ क- दो प्रकार से पुद्गल चिपकते हैं ख 31 17 17 27 शब्द भाषा शब्द नो भाषा शब्द आतोद्य तत शब्द वितत नो आतोद्य भूषण शब्द से शब्द की उत्पत्ति होती है १११ पुद्गलों का भेदन होता है पुद्गल सड़ते हैं गिरते है नष्ट होते हैं 11 37 " १२ सूत्र - पुद्गल दो प्रकार के 11 73 11 11 ६ सूत्र - दो प्रकार के शब्द 37 रूप गंध स्थानांग सूची Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रस स्थानांग-सूची ११२ श्रु०१, अ०२ उ०३सू०८५ दो प्रकार के स्पर्श ८४ क- आचार दो प्रकार का है नो ज्ञानाचार , नो दर्शनाचार , नो चारित्राचार , ख- ६ सूत्र-प्रतिमा दो प्रकार की ग- सामायिक ,, ८५ क- दो का उपपात , उद्वर्तन ,, च्यवन ,, की गर्भ से उत्पत्ति गर्भ में आहार वृद्धि , हानि वैक्रिय गत्यन्तर में गमन " समुद्घात , की गर्भ में कालकृत पर्याय ,, का गर्भ से निर्गमन ,, का गर्भ में मरण दो का अस्थि मांस मज्जामय शरीर ,, की रज वीर्य से उत्पत्ति ख- दो प्रकार की स्थिति , काय स्थिति " भव , __ग- का आयु Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची ११३ श्रु०१, अ०२, उ०३ सूत्र ८७ दो प्रकार का कालायु , भवायु " के कर्म , का पूर्णायु परिवर्तन वाला आयु ८६ जम्बुद्वीप में-दो-दो समान क्षेत्र ३ सूत्र—मेरु पर्वत से उत्तर दक्षिण में दो-दो क्षेत्र १ सूत्र- , पूर्व-पश्चिम में १ सूत्र- , उत्तर-दक्षिण में दो समान वृक्ष - १ सूत्र--दो कुरुओं में दो वृक्ष दो देव १ सूत्र–दो वृक्षों पर पल्योपम स्थिति वाले दो देव ८७ क- जम्बुद्वीप में-दो दो समान वर्षधर पर्वत ३ सूत्र-मेरपर्वत से उत्तर-दक्षिण में दो दो वर्षधर पर्वत १ सूत्र , , दो वृत्तवैताढ्य पर्वत दो दो देव १ सूत्र–वृत्त वैताढ्य पर्वतों पर पल्योपम स्थिति वाले दो दो देव ख- जम्बुद्वीप में-दो दो समान वक्षस्कार पर्वत १ सूत्र-मेरुपर्वत से दक्षिण में दो वक्षस्कार पर्वत १ सूत्र-- , उत्तर जम्बुद्वीप में दो दो समान दीर्घ वैताढ य पर्वत २ सूत्र--मेरुपर्वत से उत्तर-दक्षिण में दो दो दीर्ध वैताढय पर्वत, दो दो समान गुफा २ सूत्र-दो दीर्घ वैताढय पर्वतों पर दो दो समान गुफा दो दो देव २ सूत्र-इन गुफाओं में पल्योपम स्थितिवाले दो दो देव Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ० २, उ० ३ सूत्र ८८ ११४ स्थानांग-सूची ग- जम्बुद्वीप में दो दो समान कूट चुल्ल (छोटा) हिमवत वर्षधर पर्वत पर दो कूट महा हिमवंत वर्षधर पर्वत पर दो कूट निषध , " नीलवंत " " रूक्मी , " शिखरी क- जम्बुद्वीप में दो दो समान महा द्रह १ सूत्र-चूल्ल हिमवंत वर्षधर पर्वत पर दो महा द्रह शिखरी , दो-दो देव इन द्रहों पर पल्योपम स्थिति वाले दो दो देव १ सूत्र–महा हिमवंत वर्षधर पर्वत पर दो महा द्रह रुक्मी दो दो देव इन द्रहों पर पल्योपम स्थिति वाले दो दो देव १ सूत्र-निषध वर्षधर पर्वत पर दो महाद्रह नीलवंत दो दो देव इन द्रहों पर पल्योपम स्थिति वाले दो दो देव ख- जम्बुद्वीप में दो-दो नदियां महा हिमवंत वर्षधर पर्वत के महाद्रह से निकल ने वाली दो नदियां निषध तिगिच्छ नीलवंत केसरी महा पौंडरिक ग- जम्बुद्वीप के दो दो समान प्रपात द्रह रुक्मी Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०२ उ० ३, सूत्र ८६ ११५ स्थानांग-सूची भरत क्षेत्र में दो समान प्रपात द्रह हिमवंत वर्ष हरिवर्ष महाविदेह रम्यक् वर्ष हिरण्यवंत वर्ष " " ऐरवत वर्ष घ- जम्बुद्वीप में दो दो समान नदियां भरत क्षेत्र में दो महानदियाँ हिमवत्त वर्ष हरिवर्ष महाविदेह रम्यक् वर्ष हिरण्य वर्ष एरवत क्षेत्र ८६ क- जम्बुद्वीप में एक साथ उत्पन्न होने वाले उत्तम पुरुषों के दो दो वंश भरत ऐरवत क्षेत्र में त्रिकालवर्ती दो अरिहंत वंश चक्रवर्ती " दशार दो अरहंत थे, हैं और होवेंगे चक्रवर्ती च- " , बलदेव वासुदेव ज- जम्बुद्वीप में कालचक्र का अनुभव झ- देवकुरु-उत्तर कुरु में सुषम-सुषम काल का अनुभव अ- हरिवर्ष-रम्यक् वर्ष में सुषम Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची ११६ श्रु०१, अ०२, उ०३ सूत्र ६४ ट- हिमवंतवर्ष-हिरण्यवंत वर्ष में सुषम-दुषम काल का अनुभव ठ- पूर्व विदेह-पश्चिम विदेह में " ड- भरत ऐरवत में छहों कालों का अनुभव जम्बुद्वीप के चन्द्र-सूर्य आदि दो चन्द्र, दो सूर्य कृतिका से भरणी पर्यन्त २८ नक्षत्र दो दो अग्नि से यम पर्यन्त नक्षत्रों के अधिपति दो दो अंगारक से भावकेतु पर्यन्त दो दो ग्रह जम्बुद्वीप वेदिका की ऊंचाई लवण समुद्र का वृत्ताकार विष्कम्भ " वेदिका की ऊंचाई ६२ क- धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में सूत्र ८६ से ८६ तक के समान ख- धातकी खण्ड द्वीप के पश्चिमार्ध में सूत्र ८६से ८६ तक के समान ग- वृक्ष और देवों के नामों में अन्तर घ- धातकी खण्ड द्वीप में वर्ष-क्षेत्र, वृक्ष, देव, वर्षधर पर्वत, वृत्त वैताढय पर्वत, वक्षस्कार पर्वत, कूट, द्रह, द्रहवासी देवी, महानदी, आंतर नदी, चक्रवर्ती विजय, विजयों की राजधानियों के नाम, मेरु पर्वत के वनखण्ड, अभिषेक शिला, मेरु चूला ६३ कालोदधि समुद्र के वेदिका की ऊंचाई पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्व भाग का वर्णन , , पश्चिमभाग ,, ,, द्वीप- वेदिका की ऊंचाई समस्त द्वीप समुद्रों के वेदिका की ऊंचाई क- १० सूत्र-भवनवासी देवों के २० इन्द्र ख- १६ सूत्र-व्यन्तर देवों के ३३ इन्द्र ग- १ सूत्र-ज्योतिषी ,, का २ , Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०२, उ०४ सू०६८ ११७ स्थानांग-सूची " छियालीस ध- ५ सूत्र-वैमानिक देवता के १० इन्द्र ङ- महाशुक्र और सहश्रार कल्प के विमानों के दो वर्ण च- ग्रेवेयक देवों की ऊंचाई सूत्र-संख्या १३ चतुर्थ उद्देशक ६५ क- समय वाचक पचास नाम ख- ग्रामादि वसति सूचक चवदह नाम आराम आदि वाग , चार वापी आदि जलाशय , आठ प्रकीर्णक जीव है अजीव है ग- छाया आदि दश नाम जीव हैं, अजीव हैं घ- राशि-जीव, अजीव क- दो प्रकार के बंध ख- दो कारण से पापकर्म का बंध होता है ,, ,, पापकर्मों की उदीरणा होती है घ- , , , , का वेदन होता है ङ. , , , , की निर्जरा होती है दो प्रकार से आत्मा शरीर का स्पर्श करके निकलता है ,, , को कंपित , , , , , का भेदन , " " ,, , , संकोच , , , " को आत्मप्रदेशों से पृथक करके निकलता है ६८ दो प्रकार से आत्मा केवली कथित धर्म का श्रवण करता है - यावत्-मन: पर्यव ज्ञान प्राप्त होता है १६ d Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची ११८ श्रु०१, अ०२ उ०४ सू०१०६ ६६ दो प्रकार का औपमिक काल १०० चौवीस दण्डकों में दो प्रकार का क्रोध-यावत्-मिथ्यादर्शन शल्य १०१ क- दो प्रकार के संसारी जीव ख- " " " सर्व " ग." " " " " के १४ सूत्र भ० महावीर ने दो दो मरणों का निषेध किया है क- मरण निषेध के ५ सूत्र ख- कारण से दो प्रकार के मरण का विधान ग- पादोपगमन मरण दो प्रकार का है घ- भक्त प्रत्याखान " " " " १०३ क. लोक दो प्रकार का है ख-" में अनंत दो हैं ग. " शास्वत "" १०४ क- बोधी दो प्रकार की ख- बुद्ध " के ग- मोह " का घ- मूढ़ ज्ञानावरणीय कर्म दो प्रकार का ख- दर्शनावरणीय " ग- वेदनीय घ- मोहनीय ङ. आयु च- नाम छ- गोत्र ज- अंतराय १०६ क- मूर्छा दो प्रकार की ख- प्रेम मूर्छा " Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ११० श्रु०१ अ०२ उ०४ सूत्र ११६ ११६ स्थानांग-सूची ग- द्वेष मूर्छा दो प्रकार की १०७ क- आराधना " ख- धर्माराधना " ग- केवली आराधना १०८ क- दो तीर्थकर नील कमल के समान वर्ण वाले ख- " " प्रियंगु " " पद्मगौर " " " " " चन्द्रगौर " " " . सत्य प्रवाद पूर्व के दो वस्तु हैं क- पूर्वाभाद्रपद्रा नक्षत्र के दो तारे ख- उत्तराभाद्रपदा " " __ ग- पूर्वा फाल्गूनी " " घ- उत्तरा" " " १११ मनुष्य क्षेत्र में दो समुद्र ११२ सातवी नर्क में जाने वाले दो चक्रवर्ती ११३ क- नागकुमार आदि भवनवासी देवों की स्थिति ख- सौधर्म कल्प के देवों की उत्कृष्ट · ग- ईशान " " " " घ- सनत्कुमार " " जघन्य ङ- माहेन्द्र " " " ११४ दो कल्पों में देवियाँ हैं ११५ " " देवों की तेजोलेश्या है के देव काय परिचारक हैं ख- " " " स्पर्श " ग. " "" रूप " घ. " " " शब्द " ह. " "" मन " Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० स्थानांग सूची दो स्थानों में जीवों द्वारा पापकर्म के पुद्गलों का कालिक चयन यावत्-निर्जरा श्रु०१, अ०३, उ० १ सू० १२६ ११७ ११८ क दो प्रदेशी स्कंध ख- दो प्रदेशावगाढ़ पुद् गल ग- दो समय की स्थितिवाले पुद्गल घ- दो गुण काले- यावत्-दो गुण रूखे सूत्र संख्या २३ ११६ क ग १२० क ग - १२१ तृतीय स्थान प्रथम उद्देशक तीन प्रकार के इन्द्र तीन प्रकार की विकुर्वणा - वैक्रिय शक्ति उन्नीस दण्डकों के संख्या भेद से तीन प्रकार १२२ तीन प्रकार की परिचारणा १२३ क का मैथुन ख-ग- मैथुन सेवन करने वाले तीन वर्ग १२४ क- सोलह दंडकों में तीन प्रकार के योग 33 ख प्रयोग करण 31 }} 31 ग घ- चौवीस 37 "" १२५ छ- अल्पायु " ख- दीर्घायु ग- अशुभ दीर्घायु ' घ- शुभदीर्घायु १२६ क तीन गुप्ति "1 17 22 17 बंध के तीन कारण 33 3) 37 77 संयत मनुष्यों की तीन गुप्ति ख- सोलह दण्डकों में तीन अगुप्ति ग- तीन प्रकार के दंड पुद्गल 13 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १२१ श्रु०१, अ०३, उ०१ सू० १३१ घ- सोलह दण्डकों में तीन प्रकार के दण्ड १२७ क- तीन प्रकार की गर्दा ख- " के प्रत्याख्यान १२८क-ख- तीन प्रकार के वृक्ष इसी प्रकार तीन प्रकार के पुरुष ग-घ- " " पुरुष ङ- तीन प्रकार के पुरुष च- उत्तम पुरुष तीन प्रकार के छ- मध्यम " " ज- जघन्य " " १२६ क- तीन प्रकार के मच्छ अंडज मच्छ पोतज मच्छ पक्षी अंडज पक्षी पोतज पक्षी उरपरिसर्प भुजपरिसर्प प्रकार की स्त्रियाँ तिर्यंच स्त्रियाँ "१३० " मनुष्य " के पुरुष तिर्यंच पुरुष मनुष्य " नपुंसक तिर्यंच नपुंसक मनुष्य " तिर्यच .. ११३१ " " Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम " अंतिम स्थानांग-सूची १२२ श्रु०१, अ०३ उ०१ सू० १३४ १३२ तेईस दंडकों में प्रथम तीन लेश्या . क- प्रथम वीस दंडकों में प्रथम तीन लेया ख- बीसवें-इक्कीसवें " " अंतिम " ग- बाईसवें दण्डक " घ- चौवीसवें " " क- तीन कारणों से तारा स्वस्थान से चलित होते हैं " देवता विद्युत् के समान चमकते हैं ग- " देवता गर्जना करते हैं १३४ क- तीन कारणों से अंधकार होता है उद्योत देवताओं में अंधकार " उद्योत देवता मनुष्य लोक में आते हैं देवता कोलाहल करते हैं देव समूह आता है सामानिक देव मृत्युलोक में आते हैं त्रायस्त्रिशक " लोकपाल अग्रमहिषियां " आती हैं परिषद के देव " आते हैं देव सेनाधिपति " " आत्म रक्षक देव " " देव अपने आसन से उठते हैं देवताओं का आसन कम्पित होता है देवता सिंहनाद करते हैं देवता वस्त्र वृष्टि करते हैं 팬 위 킨 뒤 엔 엔 연 면 왼 된 위 위 열 원 위 흰 원부 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३ उ०१ सू० १४२ १२३ स्थानांग-सूची ध- तीन कारणों से देवताओं के चैत्यवृक्ष कम्पित होते हैं न- " लोकांतिक देव मनुष्य लोक में आते हैं १३५ तीन का प्रत्युपकार दुष्कर है १३६ तीन कारणों से अनगार संसार का अंत करता है १३७ क- तीन प्रकार की अवसर्पिणी " उत्सर्पिणी १३८ क- तीन कारणों से अच्छिन्न पुद्गल चलित होते हैं ख- तीन प्रकार की उपधि ग- पन्द्रह दण्डकों में तीन प्रकार की उपधि ग- तीन प्रकार का परिग्रह घ. चौदह दण्डकों में तीन प्रकार का परि ग्रह ङ- तीन प्रकार का परिग्रह च- चौवीस दण्डकों में तीन प्रकार का परिग्रह १३६ क- तीन प्रकार का प्रणिधान , सुप्रणिधान ग- संयत मनुष्यों का तीन प्रकार का सुप्रणिधान घ- तीन प्रकार का दुष्प्रणिधान ङ- सोलह दंडकों में तीन प्रकार के दुष्प्रणिधान क- तीन प्रकार की योनी ख- नव दंडकों में तीन प्रकार की योनि ग- तीन प्रकार की योनी घ- दश दंडकों में तीन प्रकार की योनी ङ- तीन प्रकार की योनी च- " कूमोन्नित योनि में उत्पन्न होने वाले तीन प्रकार के उत्तम पुरुष १४१ तीन प्रकार के तृण वनस्पतिकाय १४२ अढाई द्वीप में तीर्थ १४० Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३, उ०१ सूत्र १४३ १२४ स्थानांग-सूची भरत में तीन तीर्थ ऐरवत , महाविदेह के प्रत्येक चक्रवर्ती विजय में तीन तीर्थ धातकी खंड द्वीप के पूर्वार्ध में-तीन तीर्थ , पश्चिमार्ध पुष्कर वर द्वीपा के पूर्वार्ध में , , पश्चिमाई , १४३ अढाई द्वीप में काल-मान क- जम्बुद्वीप में अतीत उत्सपिणी के सुषमा का परिमाण , वर्तमान अवसर्पिणी , आगामी उत्सर्पिणी धातकी खंड द्वीप के पूर्वार्ध में-क-के समान , पश्चिमाधु पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध . , , पश्चिमाध , ख- अढाई द्वीप में मनुष्यों का शरीरमान ग- जम्बुद्वीप के भरत ऐरवत में अतीत उत्सर्पिणी में सुषम-सुषमा ___काल के मनुष्यों का शरीरमान वर्तमान अवसर्पिणी में , आगामी उत्सर्पिणी में , जम्बुद्वीप के देवकुरु और उत्तर कुरु में मनुष्यों का शरीरमान की परमायु छ- धातकी खंड द्वीप के पूर्वार्ध में-क-से-घ के समान पश्चिमार्ध झ- पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध ब- , , पश्चिमार्ध अढाई द्वीप में तीन बंशों की त्रैकालिक उत्पत्ति ज-, Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची श्रु०१, अ०३, उ०२ सूत्र १५४ १२५ पुर्णायु भोगनेवाले तीन मध्यमायु स्थूल तेउकाय की स्थिति वायुकाय १४५ सुरक्षित शाली आदि धान्यों की स्थिति १४६ क- शर्करा प्रभा के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति ख- बालुका प्रभा, जधन्य , १४७ क- धूम्रप्रभा के नरकावास ख- प्रथम तीन नरकों में तीन प्रकार की वेदना १४८क-ख- लोक में तीन समान १४६ क- तीन समुद्र विभिन्न प्रकार के पानी वाले हैं ख-,, मच्छ-कच्छों से परिपूर्ण हैं १५० क- सातवीं नरक में उत्पन्न होने वाले तीन ख- सर्व सिद्ध में , , १५१ क- ब्रह्म लोक और लातंक कल्प के विमानों के तीन वर्ण - ख- आनत आदि चार देवलोक के देवों की ऊंचाई १५२ तीन प्रज्ञप्तियाँ (आगमों के नाम) सूत्र संख्या ३३ द्वितीय उद्देशक १५३ क- तीन प्रकार के भाव लोक क- " " भाव लोक ग- " " लोक १५४ क- चमरेन्द्र की तीन परिषद् चमरेन्द्र के सामानिक देवों की त्रायंशिक लोकपालों की Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ स्थानांग-सूची १२६ श्रु०१, अ०३. उ०२ सूत्र १६० अग्रमहिषियों की तीन परिषद् ख- शेष भवनेन्द्रों की परिषदायें-क-के समान ख- सर्व व्यंतरेन्द्रों " " ङ- सर्व वैमानिकेन्द्रों १५५ क- तीन याम ख- केवली कथित धर्म का श्रवण-यावत्-छ सूत्र मतिज्ञान-यावत् केवल ज्ञान की प्राप्ति तीन याम में होती है ग- तीन वय घ- ख-के समान-तीन वय में होती है क- तीन प्रकार की बोधी ख- " " के बुद्ध ग- " " का मोह " के मूर्ख १५७ क- घ-तीन प्रकार की प्रवज्या तीन प्रकार के निग्रंथ संज्ञोपयोग रहित हैं ख- " " " सहित और रहित भी हैं १५६ क- नवदीक्षित को छेदोपस्थापनीय चारित्र देने का समय तीन प्रकार का ख- तीन प्रकार के स्थविर १६० क- मन के तीन विकल्प. तीन प्रकार के पुरुष ख- गमन क्रिया अतीत काल " वर्तमान" " " " भविष्य " ग- गमन क्रिया का निषेध, तीन प्रकार के पुरुष अतीत काल वर्तमान " ५८ Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ० ३, उ०२ सू०१६० १२७ स्थानांग-सूची. भविष्य काल तीन प्रकार के पुरुष घ- आगमन क्रिया तीन प्रकार के पुरुष अतीत काल " " " वर्तमान" " " " भविष्य " " , " ङ. आगमन क्रिया का निषेध. तीन प्रकार के पुरुष अतीत काल . " " वर्तमान भविष्य च- खड़ा होना, खड़ा न होना तीन प्रकार के पुरुष छ- बैठना, न बैठना ज- हिंसा करना, हिंसा न करना झ- छेदन करना, छेदन न करना अ- बोलना, न बोलना | ट- भाषण करना, न करना ठ- देना, न देना ड- खाना, न खाना ढ- प्राप्त करना, प्राप्त न करना ण- पीना, न पीना त- सोना, न सोना थ- लड़ना, न लड़ना द- जीतना, न जीतना ध- हारना, न हारना न- सुनना, न सुनना 'प- रूप देखना, रूप न देखना 'फ- सूंघना, न सूंघना ब- रसास्वादन करना, रसास्वादन न करना Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • स्थानांग-सूची १२८ श्रु०१,अ०३,उ०२ सू०१६५ भ- स्पर्श करना, स्पर्श न करना. तीन प्रकार के पुरुष प्रत्येक विकल्प के साथ अतीत, वर्तमान और भविष्य काल का प्रयोग १६१ क- कुशील को प्राप्त होने वाले तीन स्थान सुशील " " " १६२ क- तीन प्रकार के संसारी जीव ख- " सर्व " ग- छ- " " " क- तीन प्रकार की लोक स्थिति ख- तीन दिशा ग- तीन दिशाओं में जीवों की गति आगति व्युत्क्रांति " का आहार की वृद्धि हानि गति पर्याय का समुद्घात " की कालकृत अवस्था " का दर्शन का बोध ज्ञान जीव १६४ क- तीन प्रकार के त्रस " स्थावर १६५ क- अछेद्य हैं ख- अभेद्य अदाह्य Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १२६ श्रु०१, अ०३ उ०३ सू०१६८ अग्राह्य अनर्ध अमध्य अप्रदेश अविभाज्य दुःख के सम्बन्ध में तीन प्रश्नोत्तर दुःख की वेदना के सम्बन्ध में अन्य तीथियों का मन्तव्य और उसका निराकरण १६६ १६७ सूत्र संख्या १५ तृतीय उद्देशक १६८- (१) तीन कारणों से मायावी आलोचना नहीं करता क- " " " प्रतिक्रमण " निन्दा " गर्दा " बुरे विचारों का नाश " " विशुद्धि " योग्य प्रायश्चित्त स्वीकार " (२) तीन कारणों से आलोचना नहीं करता-क-से-छ-तक के समान क-तीन कारणों से मायावी आलोचना करता है प्रतिक्रमण म. , , निन्दा गर्दा बुरे विचारों का नाश करता है शुद्धि करता है योग्य प्रायश्चित्त स्वीकार करता है Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १३० श्रु०१, अ०३ उ०३ सू०१७६ (२) तीन कारणोंसे मायावी आलोचना करता है-क-से-छ-तक के समान १६६ तीन प्रकार के पुरुष १७० क- निग्रंथ-निग्रंथियों के कल्प्य वस्त्र तीन प्रकार के ख- " " वस्त्र " १७१ वस्त्र धारण करने के तीन कारण १७२ क- आत्म रक्षा करने वाले तीन ख. ग्लान निग्रंथ को पानी की तीन दत्ति-मात्रा-कल्पती है १७३ तीन कारणों से साधर्मि निग्रंथ को विसंभोगी करने पर आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता १७४. क- तीन प्रकार की अनुज्ञा (शास्त्र पढ़ने की आज्ञा) " " समनुज्ञा " " " उपसंपदा (अन्य गण के आचार्य को आचार्य मानना) " का विजहन (गण छोड़ना) १७५ क- तीन प्रकार के वचन के अवचन ग. " के मन के अमन १७६ क- अल्प वृष्टि के तीन कारण ख- महा १७७ तीन कारणों से नवीन उत्पन्न देव इच्छा होते हुए भी मनुष्य लोक में नहीं आसकता १७८ क- देवताओं की तीन कामनाएं ख- तीन कारणों से देवता दु:खी होता है १७९ क- " " च्यवन (मरण) को जान लेता है Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ०३ उ०३ सू० १८३ १३१ ख- तीन कारणों से देवता उद्विग्न होता है १८० क- विमानों के तीन प्रकार के आकार आधार " १८३ ख ग- तीन प्रकार के विमान १८१ क- सोलह दंडकों में तीन दृष्टियां ख- तीन प्रकार की दुर्गती 17 ग सुगती 33 ङ घ ङ सुगति दुर्गति प्राप्त तीन 11 77 १८२ क- एक उपवास करने वाले को तीन प्रकार का पानी कल्पता है 31 ख- दो ग- तीन घ- तीन प्रकार का उपहृत ( वरतन में निकालकर रखे हुये भांजन को लेने का अभिग्रह ) " "" "1 " 17 39 "" च- तीन प्रकार का ऊनोदर तप 17 " ढ - एक रात्रि की छ उपकरण ऊनोदर तप ज- निग्रंथ के लिये तीन अहितकारी कार्य हितकारी 11 77 " झ ञ - तीन प्रकार के शल्य ट- तेजोलेश्या की तीन प्रकार से साधना "" "" अगृहीत ( थाली में लिये हुए भोजन को लेने का अभिग्रह ) " 11 ठ- त्रैमासिकी भिक्षु प्रतिमा की विधि ड- एक रात्रिकी भिक्षु प्रतिमा की सम्यक् आराधना न करने से - स्थानांग सूची अढाई द्वीप में तीन-तीन कर्मभूमि क्षेत्र " "1 - होने वाली तीन विपदायें "1 करने संपदायें Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३, उ०३ सूत्र १८७ १३२ स्थानांग-सूची क- जम्बुद्वीप में तीन कर्मभूमि क्षेत्र ख- धातकी खंड द्वीप के पूर्वार्ध में तीन कर्मभूमि क्षेत्र ग- " " पश्चिमार्ध में " ग- पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में " घ. " " पश्चिमाई में " क- तीन प्रकार के दर्शन ख- " " की रुची " का प्रयोग १८५ क- " " का व्यवसाय ख. " , ग- " " " घ- इह लौकिक व्यवसाय तीन प्रकार का ङ- लौकिक " " च- वैदिक " " छ- सामयिक ॥ ॥ ॥ ज- अर्थोत्पत्ति के तीन कारण १८६ क- तीन प्रकार के पुद्गल ख- नरकों के तीन आधार ग- आधारों के सम्बन्ध में नयों की अपेक्षा से विचार १८७ क- तीन प्रकार का मिथ्यात्व की अक्रिया " प्रयोग क्रिया " सामुदायिकी क्रिया का अज्ञान च- " अविनय अज्ञान Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३, उ०४ सूत्र १६४ १३३ स्थानांग-सूची १८८ क- तीन प्रकार का धर्म उपक्रम ग- " " " " उभयोपक्रम का वैयावृत्य का अनुग्रह " अनुशासन " उपालम्भ १८६ क- तीन प्रकार की कथा ख- " का विनिश्चय १६० पर्युपासना के फल की परम्परा सूत्र संख्या २३ चतुर्थ उद्देशक १६१ क- प्रतिमाधारी तीन प्रकार के उपाश्रयों की प्रतिलेखना करे ख- " " " " आज्ञा ले में प्रवेश करे " " संस्तारकों की प्रतिलेखना करे " " " " आज्ञा ले १६२ क- तीन प्रकार का काल ख- " " " समय ग- " " " आवलिका-यावत-तीन प्रकार का अवसर्पिणी - काल घ- " के पुद्गल १६३ क-ग-" " के वचन १६४ क- तीन प्रकार की प्रज्ञापना ख- " " के सम्यक् ग- " " " उपघात Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग सूची घ- तीन प्रकार की १६५ क- तीन प्रकार की १६६ १९७ ख ÉÉÉÉÉ ग घ ङ च छ ज झ ञ - 37 22 " 11 17 21 " 93 17 11 23 "" 22 " 37 33 73 27 21 17 "" 37 " 29 "1 11 13 23 अढाई द्वीप में तीन-तीन अकर्मभूमियां क- जम्बुद्वीप के मेरु से दक्षिण में तीन अकर्मभूमियाँ ख उत्तर " 31 23 31 ग- धातकीखंड द्वीप के पूर्वार्ध में मेरु से दक्षिण में घ पश्चिमार्ध में उत्तर में 27 दक्षिण में "3 11 "1 11 13 ङ - पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में च 33 27 " 21 1) 33 के संक्लेश 11 पश्चिमार्ध में उत्तर में 11 17 11 अढ़ाई द्वीप में तीन-तीन क्षेत्र - क-से-च-तक के समान 17 "" 29 १३४ श्रु० १, अ०३, उ०४ सूत्र १६८ विशुद्धि आराधना 32 ज्ञानाराधना दर्शनाराधना चारित्राधना असंक्लेश अतिक्रम व्यतिक्रम अतिचार अनाचार प्रायश्चित्त 33 27 23 17 13 " 33 वर्षधर पर्वत महाद्रह देव 17 १६८ क प्रादेशिक भूकम्प के तीन कारण महानदियां अंतरनदियां 27 17 31 27 31 "" 22 23 19 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३, उ०४ सू०२०८ १३५ स्थानांग-सूची २०१ - ख- सार्वदेशिक भूकम्प के तीन कारण १६६ क- तीन प्रकार के किल्विषिक देव ख- किल्विषिक देवों का स्थान २०० क- शक्रेन्द्र के बाह्य परिषद् के देवों की स्थिति ख- , आभ्यंतर , देवियों , ग- ईशानेन्द्र के बाह्य , " " क- तीन प्रकार का प्रायश्चित्त ख- अनुद्घातिकों को (गुरु) प्रायश्चित्त , पारंचिक , ग- , अनवस्थाप्य , २०२ क- तीन शिक्षा के अयोग्य ख- ,, मुंडित करने के ग- ,, शिक्षा , घ-,, उपस्थापना , " ङ- ,, सहभोज , , च- , सहवास , २०३ क.ख-,, वाचना , , ग- , दुर्बोध्य घ- ,, सुख बोध्य २०४ , मांडलिक पर्वत २०५ , परिमाण में सबसे महान २०६ क-ख-, प्रकार की कल्प स्थिति २०७ क- चौदह दंडकों में तीन शरीर ख- सात , , , " २०८ क- तीन गुरु प्रत्यनीक ख- , गति Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १३६ श्रु०१, अ०३, उ०४ गाथा २२१ ग- तीन समूह प्रत्यनीक घ- , अनुकंपा , ङ- , भाव ॥ च- , श्रुत , क- तीन पिठ्यंग ख- , माथ्यंग २१० निग्रंथ की महानिर्जरा के तीन कारण २११ तीन प्रकार का पुद्गल प्रतिघात २१२ , , के चक्षु २१३ , , का अभिसमागम-यथार्थ ज्ञान २१४ क- तीन प्रकार की ऋद्धि ख- , , , देवद्धि ग-घ-, , , रायद्धि ङ-च-, , , गणि-ऋद्धि २१५ तीन प्रकार के गर्व । २१६ , , , कारण २१७ , , , धर्म २१८ ,, , की व्यावृत्ति-निवृत्ति २१६ ॥ ॥ का अंत क- तीन प्रकार के जिन ख. , , , केवली ग- , , , अरिहंत तीन दुर्गंध वाली लेश्या ख- " सुगंध ग- " दुर्गति गामिनी ध- " सुगति ॥ ॥ ङ- " संक्लिष्ट or Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०३ उ०४ सू०२२८ १३७ स्थानांग-सूची तीन असंक्लिष्ट लेश्या छ- , मनोज्ञ , अमनोज्ञ , अविशुद्ध विशुद्ध अप्रशस्त , प्रशस्त ड-, शीत-रुक्ष , उष्ण-स्निग्ध ,, प्रकार के मरण ख-, , , बाल मरण ग-, , , पंडित मरण घ- ,, . , बाल-पंडित मरण २२३ क- अव्यवसित के लिए तीन अहितकारी ख- व्यवसित , , हितकारी २२४ प्रत्येक पृथ्वी के तीन वलय २२५ उन्नीस दंडकों में तीन समय की विग्रहगति २२६ क्षीण मोह अरहंत के तीन कर्मप्रकृतियों का एक साथ क्षय २२७ क- अभिजित के तीन तारे ख- श्रवण , " " ग- अश्विनी " , " घ- भरणी ॥ " " ङ- मृगशिर , च- पुष्य , छ- जेष्ठा २२८ भगवान् धर्मनाथ और भगवान् शांतिनाथ का अन्तर 원 띈부 흰 원 엑연 언면 왼 된 뿌 Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० श्रु०१, अ०४, उ०१ सूत्र २३६ १३८ . स्थानांग-सूची २२६ भ० महावीर के पश्चात् होने वाले तीन युग पुरुष भ० महावीर के चौदह पूर्वी मुनि २३१ तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती थे । ग्रैवेयक देवों के तीन विमान प्रस्तट २३३ जीवों द्वारा तीन प्रकार की पाप कर्म प्रकृतियों के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन-यावत्-निर्जरा सूत्र ११७ के समान २३४ क- तीन प्रदेशी स्कंध ख- , प्रदेशावगाढ पुद्गल ग- ,, समय की स्थितिवाले पुद्गल घ- , गुण काले पुद्गल-यावत्-तीन गुण रुखे पुद्गल सूत्र संख्या ४४ चतुर्थ-स्थान प्रथम उद्देशक २३५ चार अंतक्रिया सिद्ध गति प्राप्त होने के उपाय उन्नत प्रणत २३६ क- चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष उन्नत परिणत प्रणत परिणत ग- चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष उन्नत मन प्रणतमन घ- चार प्रकार के पुरुष उन्नत प्रणत ङ.- चार प्रकार के संकल्प च- , की प्रज्ञा छ- , , की दृणि ज- का शीलाचार झ- " " का व्यवहार का Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १३६ श्रु०१, अ०४, उ०१ सू० २४१ ट- चार प्रकार का पराक्रम ऋजु-वक्र ठ- चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ड- " , " PER ण- , , , पुरुष त- , , , संकल्प थ- " की प्रज्ञा ५ की दृष्टि ध' , , को शीलाचार न- , " व्यवहार प- , , , पराक्रम २३७ पडिमायुक्त अणगार के कल्प्य चार भाषा २३८ चार भाषा शुद्ध-अशुद्ध परिणत रूपमन २३६ क- चार प्रकार के वस्त्र, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ख- , , , , , " ग- चार प्रकार के वस्त्र, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष घ. चार प्रकार के वस्त्र , ,, , , ङ- , , ,, संकल्प-यावत्-पराक्रम, सूत्र २३६ के समान २४० चार प्रकार के पुत्र सत्य-असत्य २४१ क- चार प्रकार के संकल्प-यावत्-पराक्रम, सूत्र २३६ के समान शुचि-अशुचि ख- चार प्रकार के बस्त्र, इसी प्रकारचार प्रकार के पुरुष, परिणत Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ २४७ श्रु०१, अ०४, उ०१ सू० २५० १४० स्थानांग-सूची यावत्-पराक्रम सूत्र २३६ के समान फलदान २४२ फलदान-चार प्रकार के कोरक (मंजरी) इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष २४३ तप-चार प्रकार के धुन, इसी प्रकार चार प्रकार के भिक्षु २४४ चार प्रकार का तृण वनस्पतिकाय २४५ चार कारणों से नैरिकों का मनुष्य लोक में न आसकना, निग्रंथियों को कल्पनीय चार चद्दरें और उनका परिमाण चार ध्यान, प्रत्येक ध्यान के चार चार प्रकार, ध्यान के लक्षण, आलंबन और अनुप्रेक्षा २४८ चार प्रकार की देव-स्थिति ख- , , का संवास-मैथुन २४६ क- चौवीस दंडकों में चार कषाय ख- चौवीस दंडको में कषायों के चार आधार स्थान ,, की उत्पत्ति के चार कारण घ-ङ- चार प्रकार का क्रोध च-छ-, , मान ज-झ-,, , माया ज-ट- ,, ,, लोभ २५० क- (चौवीस दंडकों में) अतीत काल में आठ कर्म प्रकृतियों के चयन के चार करण वर्तमान भविष्य ख- चौवीस दंडकों में तीन काल में आठ कर्म प्रकृतियों के उप चयन के चार कारण ग- " Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १४१ श्रु०१, अ०४, उ०१ सूत्र २५६. च- " ग- चौबीस दण्डकों में (तिन काल में) आठ कर्म प्रकृतियों के बंध के चार कारण घ- " " " उदीरणा , ङ- " "." . " वेदना निर्जरा , २५१ क- चार पडिमा। २५२ क- चार अस्तिकाय , अरूपि वय एवं श्रुत से पक्व या अपक्व २५३ चार प्रकार के फल, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष २५४ क- ,, , का सत्य - ख- , , की मृषा , का प्रणिधान घ. , , का सुप्रणिधान ङ. , , , दुष्प्रणिधान १६ पंचेद्रिय दंडकों में २५५ क- सद् व्यवहार (चार प्रकार के पुरुष) ख- दोष दर्शन , " " ग- , कथन " , " घ- ,, उपशमन , , , आभ्यन्तर तप विनय-चार प्रकार के पूरुष १ अभ्युत्थान, २ वंदना, ३ सत्कार, ४ सम्मान, ५ पूजन, ६ स्वाध्याय, ७ वाचना देना, ८ पूछना, ६ बार-बार १० पूछना, ११ व्याख्या करना, १२ सूत्र, अर्थ, तदुभय, २५६ क- भवनेन्द्रों के लोकपाल ___ ख- वैमानिकेन्द्रों , " Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १४२ श्रु०१,अ०४,उ०१ सू०२६९ २५६ २६० ग- चार प्रकार के वायु कुमार २५७ चार प्रकार के देव २५८ , , , प्रमाण की देवियां चार दिशा कुमारियाँ ,, विद्युत् ॥ देव स्थिति चार पल्योपम शकेन्द्र की मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति " , , , , देवियों , , २६१ चार प्रकार का संसार २६२ , , , दृष्टिवाद २६३ क-ख- चार प्रकार का प्रायश्चित्त २६४ , , , काल २६५ , , , पुद्गल परिणमन चार महाव्रत भरत ऐरवत के बाईस तीर्थंकरों द्वारा चार महाव्रतों का कथन महा विदेह के सर्व अरहंतों , , , " क- चार दुर्गति ख- , सुगति ग , दुर्गति प्राप्त जीव घ- , सुगति , , २६८ क- अर्हन्तों के सर्व प्रथम (प्रथम समय में) चार घाति कर्मों का क्षय ख- सिद्धों , , , अघाति , २६६ हास्योत्पत्ति के चार कारण २६७ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०४ उ०२ सूत्र २७६ १४३ स्थानांग-सूची २७४ २७५ २७० चार प्रकार की विशेषता, इसी प्रकार स्त्री अथवा पुरुष की विशेषता २७१ ,,, के भृत्य २७२ ,, की लोकोत्तर पुरुष की विशेषता २७३ समस्त लोक पालों की अग्रमहिषियाँ , इन्द्रों की चार गोरस की विकृतियां " स्नेह , , महा , वस्त्रावृत देह या गुप्तेन्द्रिय क- चार प्रकार के घर, इसी प्रकार चार के पुरुष, वस्त्रावृत देह या गुप्तेन्द्रिय ख- चार प्रकार की कूटागार शाला इसी प्रकार चार प्रकार की स्त्रियां २७६ शरीर की अवगाहना चार प्रकार की अवगाहना २७७ चार अंगबाह्य प्रज्ञप्तियाँ सूत्र संख्या ४३ द्वितीय उद्देशक २७८ कषाय निग्रह क- चार प्रति संलीन " अप्रति संलीन मन आदि का निग्रह ख- चार प्रति संलीन " अप्रति संलीन २७६ (१७) चार चार प्रकार के पुरुष. दीन-अदीन Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ०४, उ०२ सूत्र २८१ १४४ २८० स्थानांग - सूची १ परिणत २ रूप ३ मन ४ संकल्प ५ प्रज्ञा ६ दृष्टि ७ शीला - चार ८ व्यवहार पराक्रम १० वृत्ति ११ जाति १२ भाषी १३ अवभासी १४ सेवी १५ पर्याप्त १६ परिवार २८१ (१८) आर्य-अनार्य, चार चार प्रकार के पुरुष (१६) परिणत आदि की पुनरावृत्ति और १ भाव श्रेष्ठता क- चार प्रकार के वृषभ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ख - जाति- कुल से श्रेष्ठ चार प्रकार के वृषभ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ग- जाति और बल से श्रेष्ठ चार प्रकार के वृषभ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष घ- जाति और रूप से श्रेष्ठ चार प्रकार के वृषभ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ङ - कुल और बल से श्रेष्ठ चार प्रकार के वृषभ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष च - कुल और रूप से श्रेष्ठ चार प्रकार के ज - धैर्य - अल्प धैर्यचार प्रकार के वृषभ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष - भीरु और विचित्र स्वभाव हस्ति, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष - मंद, भद्र, मृदु और संकीर्ण चार प्रकार के हस्ति, इसी प्रकार चार प्रकार - मृदु भद्र, मंद, और संकीर्ण चार प्रकार के हस्ति, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष पुरुष ट- भद्र, मंद, मृदु और संकीर्ण चार प्रकार के हस्ति, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०४ उ० २, सूत्र २८६ १४५ स्थानांग-सूची ठ- भद्र, मंद, मृदु और संकीर्ण के लक्षण. चार गाथा २८२ क- चार विकथा, चार स्त्री कथा, चार भक्त कथा, चार देश कथा, चार राज कथा ख- चार धर्मकथा, चार आक्षेपिनी कथा, चार विक्षेपणी कथा, चार संवेगनी कथा, चार निर्वेदिनी कथा २८३ क- दुर्बल शरीर और दृढ़ भाव. चार प्रकार के पुरुष ख- " " शरीर " " " ग- ज्ञान दर्शन की उत्पत्ति " " " २८४ निग्रंथ-निग्रंथियों के ज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति में बाधक चार कारण २८५ क- चार प्रतिपदाओं में अस्वाध्याय ख- चार संध्याओं में " ग- स्वाध्याय के चार काल २८६ चार प्रकार की लोकस्थिति २८७ क- विविध प्रकार का जीवन, चार प्रकार के पुरुष ख- भव भ्रमण का अंत " " ग- क्रोध या अज्ञान घ- आत्म दमन २८८ चार प्रकार की गर्दा २८६ क- संतुष्ट या समर्थ ख- सरलता और वक्रता-चार प्रकार के मार्ग, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ग- क्षेम और अक्षेम-चार प्रकार के मार्ग, इसी प्रकार " घ- क्षेम और अक्षेमरूप- " " ङ- अनुकूल और प्रतिकूल स्वभाव-चार प्रकार के शंख, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष च- अनुकूल और प्रतिकूल स्वभाव छ- चार प्रकार की धूमशिखा, इसी प्रकार चार प्रकार की स्त्रियाँ Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १४६ श्रु०१, अ०४ उ०२ सू० २६६ ज- चार प्रकार की अग्निशिखा इसी प्रकार चार प्रकार की स्त्रियां भ- " " वातमंडलिका अ- " " के वनखंड २६० निग्रंथ-निग्रंथियों के साथ चार कारण से बात करे तो आज्ञा का उल्लंघन नहीं होता २६१ क-ग-तमस्काय के चार नाम घ. चार कल्पों पर तमस्काय का आवरण २६२ क- विविध प्रकार के स्वभाव. चार प्रकार के पुरुष ख- जय-पराजय. चार प्रकार की सेना, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष वक्रताक- चार प्रकार की वक्रता, इसी प्रकार चार प्रकार की माया. माया करने वालों की गति ख- अहंकार चार प्रकार के अहंकार. इसी प्रकार चार प्रकार के मान. मान करने वालों की गति ग- लोभ चार प्रकार के लोभ, इसी प्रकार चार प्रकार के लोभ लोभी की गति २६४ क- चार प्रकार का संसार ख- " " की आयु ग- " " के भव " का आहार २६६ कर्म क- " " " बंध ख. " " " उपक्रम-आरम्भ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ० ४, उ०२ सू०३०२ १४७ स्थानांग-सूची ग- चार प्रकार का बंधनोपक्रम घ- " " " उदीरणोपक्रम - " " ॥ उपशमनोपक्रम प्रकार का विपरिणमनोपक्रम छ- " " " अल्प-बहत्व ज- " " " संक्रम—एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचना ज- " " " निधत्त-दृढतर बंधन अ- " " " निकाचित-दृढ़तम. बंधन २६७ चार एक संख्यावाले २६८ " बहु २६४ " सर्व " ३०० पर्वत سه मानुषोत्तर के चार दिशाओं में चार कूट जम्बूद्वीप के भरत-ऐरवत क्षेत्र में अतीत उत्सपिणी के आरे का परिमाण " " , " वर्तमान उत्सर्पिणी , , , , आगामी उत्ससिणी , अकर्मभूमि क्षेत्र क- जम्बूद्वीप में चार अकर्म भूमि ख- पर्वत ___जम्बूद्वीप में चार वैताढ्य पर्वत ग- पर्वतवासी देव और उनकी स्थिति __ चार देवों के नाम घ- क्षेत्र जम्बूद्वीप में चार महाविदेह Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m ४ , " 8 w स्थानांग-सूची १४८ श्रु०१, अ०.४ उ०२ सूत्र ३०४ सर्व निषढ-नीलवंत वर्षधर पर्वतों की ऊँचाई ङ- वर्षधर पर्वत च- वक्षस्कार पर्वत१- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में और सीता नदी के उत्तर में चार वक्षस्कार पर्वत दक्षिण में " " " पश्चिम में , " उत्तर में " " चार विदिशाओं में ,, , ६ ,, ,, महाविदेह में (तीन काल में) चार-चार उत्तम पुरुषों की उत्पत्ति ७ , , मेरुपर्वत पर चार वन ८ ,, , अभिषेक शिलायें ६ मेरु पर्वत की उपर से चौड़ाई १० धातकी खंड द्वीप पूर्वाद्ध में-सूत्र ३०१ से ३०२ तक के समान ११ पुष्कर वर द्वीप के पश्चिमार्ध में-सूत्र ३०१ से ३०२ तक के समान जम्बूद्वीप के द्वार जम्बूद्वीप के चार द्वार. द्वारों की चौड़ाई. द्वारों पर रहने वाले चार देव. उनकी स्थिति (७) सूत्र अंतर्वीप के (एक जैसे) जम्बू द्वीप के मेरुपर्वत से चुल्ल हिमवंत वर्षधर पर्वत के चार विदिशाओं में (लवण समुद्र में) २८ अन्तर्वीप. उन अन्तरद्वीपों में रहने वाले मनुष्य. (७) सूत्र अंतर्वीप के (एक जैसे) जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के चार विदिशाओं में (लवण समुद्र में) २८ अन्तीप. उनमें रहने वाले मनुष्य ३०३ ३०४ Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०४, उ०२ सूत्र ३०७ १४६ स्थानांग-सूची ३०५ क- पाताल कलश चार महापाताल कलश इन कलशों में चार देव. देवों की स्थिति ख- आवास पर्वत. देव. देवस्थिति जम्बूद्वीप के लवण समुद्र में चार वेलंधर नागराज आवास पर्वत इन पर रहने वाले चार देव, चारों देवों की स्थिति च- चन्द्र-सूर्य १-लवण समुद्र में चार चन्द्र, चार सूर्य २- ,, , , कृतिका-यावत्-भरणी अग्नि , यम अंगार , भावकेतु ङ- समुद्र, देव, स्थिति लवण समुद्र के चार द्वार, इन द्वारों पर रहने वाले चार देव चारों देवों की स्थिति द्वीप-विष्कम्भ क. धातकी खंड द्वीप की चौड़ाई ख. क्षेत्र आदि जम्बूद्वीप के बाहर चार भरत-यावत्-(स्थानांग सूत्र स्था० २ उ० ५ सूत्र ६१-धातकी खंड द्वीप के पश्चिमाध के वर्णन में दो भरत-यावत्-दो मेरु. दो चूलिका) नंदीश्वर द्वीप क-नंदीश्वर द्वीप के मध्य भाग में चार अंजनक पर्वत. अंजनक पर्वतों की ऊंचाई, चौड़ाई अंजनक पर्वतों पर चार सिद्धालय सिद्धालय का आयाम-विष्काम्भ के चार द्वार " ,, द्वारों पर चार देव ३०७ Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १५० श्रु०१, अ०४, उ०३ सूत्र ३१३ सिद्धालय के द्वारों के आगे चार मुख्य मंडप, चार प्रेक्षा मंडप, चार अखाड़े, चार मणिपीठिका, चार सिंहासन, चार विजय, दूष्य, चार वज्रमय अंकुश, चार चैत्य स्तूप, चार जिन प्रतिमा, चार चैत्य वृक्ष, चार महेन्द्र ध्वज, चार नंदा पुष्करिणियां, पुष्करिणियों का परिमाण, चार सोपान, चार तोरण, चार वनखंड, चार दधिमुखपर्वत, पर्वतों की ऊंचाई आदि चार रतिकर पर्वत, पर्वतों की ऊंचाई आदि ईशानेन्द्र की चार अग्रमहिषियों की चार-चार राजधानियां शक्रेन्द्र ,, , " ३०८ चार प्रकार का सत्य ३०६ आजीविक सम्प्रदाय में चार प्रकार का तप क- चार प्रकार का संयम ख. , , , त्याग ग- ,,, की अकिंचनता सूत्र संख्या ३३ तृतीय उद्देशक चार प्रकार का क्रोध, क्रोधी की गति ३१२ शब्द और रूप क- चार प्रकार के पक्षी, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष विश्वास और अविश्वास ख- चार प्रकार के पुरुष - प्रीति और अप्रीति घ- चार प्रकार के पुरुष 10 १३ परोपकार भाव Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १५१ श्रु०१, अ०४ उ०३ सूत्र ३२० चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ३१४ विश्राम स्थल चार प्रकार के लौकिक विश्राम , लोकोत्तर ,, लौकिक और लोकोत्तर विकास-ह्रास ३१५ चार प्रकार के पुरुष ३१६ चौवीस दण्डकों में चार प्रकार के युग्म ३१७ चार प्रकार के पराक्रमी पुरुष प्रशस्त और अप्रशस्त अभिप्राय, चार प्रकार के पुरुष ३१६ चार लेश्या-१० भवन पति १ पृथ्वी १ अप १ वायु १ वन ; (१४ दंडकों में चार लेश्या) ३२० क- धर्म युक्त और धर्म अयूक्त । युक्त-अयुक्त, परिणत, रूप और शोभा ये चार विकल्प चार प्रकार के यान, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ख- चार प्रकार की पालकी, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ___"क" के चार विकल्पों की पुनरावृत्ति ग- कार्य बनाने वाला और कार्य बिगाड़ने वाला चार प्रकार के सारथी, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष घ- चार प्रकार के अश्व, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ___"क" के चार विकल्पों की पुनरावृत्ति ङ- चार प्रकार के गज, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ___"क" के चार विकल्पों की पुनरावृत्ति च- मोक्ष मार्ग गामी, और संसार मार्ग गामी, चार प्रकार के मार्गगामी या उन्मार्गगामी, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष छ- गुण सम्पन्न और गुण अ सम्पन्न चार प्रकार के पुष्प, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग - सूची ज- श्रेष्ठ और अश्रेष्ठ १ जाति- कुल २ जाति-बल ३ जाति-रूप ४ श्रुत ५ शील ६ चरित्र " " 13 १ कुल-बल २ कुल - रूप ४ शील ५ चरित्र १५२ श्रु० १, अ०४ उ०३ सू०३२० "} }) ३ कुल-श्रुत १ बल-रूप २ बल - श्रुत ३ बल-शील ४ बल-रूप १ रूप श्रुत २ रूप- शील ३ रूप-चरित्र १ श्रुत-शील २ श्रुत चरित्र १ शील- चरित्र कुल संख्या २१, चार प्रकार के पुरुष झ- मधुरता चार प्रकार की मधुरता, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य ञ - आत्म सेवा, पर सेवा, चार प्रकार के पुरुष ट- सेवा करने वाला और सेवा नहीं कराने वाला, चार प्रकार के पुरुष ठ- कार्य करने वाला, अभिमान नहीं करने वाला, चार प्रकार के पुरुष ड- गण गण का कार्य ढ- गण के योग्य सामग्री का संचय करने वाला, किन्तु अभिमान नहीं करने वाला, चार प्रकार के पुरुष - गण की शोभा बढ़ावे वाला, किन्तु अभिमान नहीं करने वाला चार प्रकार के पुरुष त- गण की शुद्धि करने वाला किन्तु अभिमान नहीं करने वाला, चार प्रकार के पुरुष थ - लिंग और धर्म का त्याग - चौभंगी द- धर्म और गण का त्याग ध- धर्म प्रेम और धर्म में दृढ़ता, चार प्रकार के पुरुष " Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०४, उ०३ सूत्र ३२७ १५३ न- चार प्रकार के आचार्य प अंतेवासी फ निर्ग्रथ ब निग्रंथियां भ म श्रमणोपासक श्रमणोपासकाएं श्रमणोपासक ३२१ क- ख ३२२ ३२३ - 37 ३२६ 19 33 " 33 सौधर्म कल्प में उत्पन्न होने वाले भ० महावीर के श्रावकों की स्थिति 97 सद्यजातदेव के मनुष्य लोक में न आने के चार कारण आने के चार कारण 32 33 17 ३२४ क - लोक में अंधकार होने के चार कारण उद्योत " 21 ख ग- देवलोक में अंधकार घ" " उद्योत ङ - देवसमूह के मनुष्य लोक में आने के चार कारण च- मनुष्य लोक में देव मेला होने के देव - कोलाहल छ- " ज देवेन्द्रों के आगमन के ख- दुःख 33 ३२५ क - वसति-निवास गृह चार सुख शय्या او 17 " 11 17 "" 21 39 स्वाध्याय वाचन देने के अयोग्य पुरुष योग्य ३२७ क- भरण-पोषण, चार प्रकार के पुरुष J 27 ܐܕ 11 स्थानांग सूची "" " "" 27 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०४, उ०३ सूत्र ३२७ १५४ स्थानांग-सूची ख- लौकिक, पक्ष-दरिद्र और धनवान चार भंग लोकोत्तर पक्ष-ज्ञान रहित और ज्ञानवान ग- असम्यग् व्रति और सम्यग् व्रति घ- अपव्ययी-मितव्ययी ङ- दुर्गतिगामी और सुगतिगामी च- , प्राप्त प्राप्त छ- लौकिक पक्ष-अन्धकार और प्रकाश । लोकोत्तर पक्ष-अज्ञान , ज्ञान ज- लौकिक पक्ष-दुःशील , सुशील लोकोत्तर पक्ष अज्ञानी ,, ज्ञानी झ- अज्ञानानंदी और ज्ञानानंदी अज्ञानाभिमानी ,, ज्ञानाभीमानी ब- पाप कार्यों का त्यागी और पाप कर्मों का ज्ञानी-चार भंग ट- ,, ,, किन्तु गृहत्यागी नहीं ठ-, ज्ञानी ड- इहलोक सुखैषी और परलोक सुखैषी, चौभंगी ढ- वृद्धी और हानी ज्ञान-दर्शन की वृद्धि-हानी और राग-द्वेष की वृद्धि-हानी चार प्रकार के पुरुष लौकिक पक्ष-वेगवान् और वेग रहित लोकोत्तर पक्ष-गुणी और अवगुणी विनीत-अविनीत चार प्रकार के अश्व, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष श्रेष्ठता-जाति-कुल, जाति-बल, जाति-रूप, जाति-जय, कुल-बल, कुल-रूप, कुल-जय, बल-रूप, बल-जय, चार प्रकार के अश्व, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्र०१, अ०४, उ०३ सूत्र ३३६ १५५ स्थानांग-सूची उन्नत (वर्द्धमान)परिणाम और अवनत (हायमान) परिणाम चार प्रकार के पुरुष ३२८ क-ख- चार समान परिमाण वाले ३२६ क- उर्ध्व लोक में दो शरीर वाले चार ख- अधो ,, , ग- तिरछे ,, ३३० लज्जा, चंचलता, स्थिरता, चार प्रकार के पुरुष अभिग्रह चार शय्या प्रतिमा ,, वस्त्र , __ m m २३४ ,, स्थान , आत्मा का स्पर्श करने वाले चार शरीर कर्मों ३३३ लोक , " असंख्यात शरीर वाले चार ३३५ सूक्ष्म सूक्ष्म पदार्थ के स्पर्श से ज्ञान करने वाली चार इन्द्रियाँ ३३७ जीव और पुद्गल के लोक से बाहर न जा सकने के चार कारण ३३८ क- चार प्रकार के उदाहरण ख- प्रत्येक उदाहरण के चार चार भेद ग- चार प्रकार के हेतु ३३६ पदा ३३६ क. चार प्रकार की गणित Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ० ४, उ०४ सूत्र ३४३ १५६ स्थानांग-सूची ३४० ख- अधोलोक में अंधकार करने वाले चार तिर्यक्लोक में उद्योत ऊध्र्व " " " " सूत्र संख्या २६ चतुर्थ उद्देशक चार प्रकार के प्रवासी ३४१ नैरयिकों का चार प्रकार का आहार तिर्यंचों मनुष्यों देवों ३४२ चार प्रकार के आशिविष और उनकी शक्ति ३४३ क- चार प्रकार की व्याधियां ,, ,, चिकित्सा ख- लौकिक पक्ष-व्रण लोकोत्तर पक्ष-अतिचार व्रण करने वाला, व्रण का स्पर्श करने वाला अतिचार सेवन करने वाला, अतिचार का स्मरण करने वाला ग- लौकिक पक्ष-व्रण करनेवाला. व्रण की रक्षा करने वाला लोकोत्तर पक्ष-अतिचार सेवन करने वाला, अतिचार सेवी का संसर्ग न करने वाला घ- लौकिक पक्ष-व्रण करने वाला, व्रण का उपचार करने वाला लोकोत्तर पक्ष-अतिचार सेवन करने वाला, अतिचार की प्रायश्चित्त से शुद्धि करने वाला प्रत्येक के चार-चार प्रकार के पुरुष ङ- लौकिक व्रण-दृश्य व्रण लोकोत्तर, व्रण. गुरु के समक्ष अतिचारों की आलोचना न करने वाला Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १५७ श्रु०१, अ०४, उ०४ सूत्र ३४६. गुरु के समक्ष अतिचारों की आलोचना करने वाला च- लौकिक पक्ष-अंदर का व्रण, बाहर का व्रण लौकिक पक्ष-दुष्ट हृदय, सहृदय चार प्रकार के व्रण, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष छ- धर्मात्मा और पापात्मा __ धर्मात्मा सदृश और पापात्मा सदृश ज- अपने आपको धर्मात्मा या पापात्मा मानना झ- कथा वाचक प्रभावक ,, , एषणा निपुण इसी प्रकार प्रत्येक के चार-चार प्रकार के पुरुष अ- चार प्रकार की वृक्ष विक्रिया ३४५ चार प्रकार के वादी सोलह दण्डकों में चार प्रकार के वादी ३४६ देना या न देना। क-ख- चार प्रकार के मेघ ग. गुप्त दान चार प्रकार के मेघ .. घ- यथोचित दाता. अदाता चार प्रकार के मेघ ङ- पात्र को देने वाला चार प्रकार के मेघ च- लौकिक जन्म-पालन-पोषण चार प्रकार के मेघ, इसी प्रकार चार प्रकार के माता-पिता लोकोत्तर जन्म-दीक्षा. ज्ञान दान चार प्रकार के मेघ, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य छ- आत्म हित और सर्व हित, (स्वदेश और विश्व) चार प्रकार के मेघ, इसी प्रकार चार प्रकार के राजा Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १५८ श्रु०१, अ०४, उ०४ सूत्र ३५२ प्रत्येक के चार-चार विकल्प ३४७ ' चार प्रकार के मेघ ३४८ क- सार और असार चार प्रकार के करंड, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य ख- महानता और तुच्छता चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य ग- योग्य अयोग्य आचार्य और योग्य अयोग्य शिष्य चार प्रकार के वृक्ष, इसी प्रकार चार प्रकार के आचार्य घ- भिक्षाचर्या चार प्रकार के मच्छ, इसी प्रकार चार प्रकार के भिक्षाचर ङ- श्रमण की वैचारिक दृढता और शिथिलता चार प्रकार के गोले, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष च- अल्प गुण और अधिक गुरग चार प्रकार के गोले, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष छ- स्नेह छेदन चार प्रकार के पत्र ज- अल्प या अधिक स्नेह चार प्रकार की चटाई ३५० क- चार प्रकार के चतुष्पद ख. , , , क्षुद्रप्राणी ३५१ समर्थ और असमर्थ चार प्रकार के पक्षी, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ३५२ क- लौकिक पक्ष-कृशदेह और पुष्टदेह लोकोत्तर पक्ष-कृश कषाय और अकृश कषाय ख- दुर्बल और सबल देह, दुर्बल और सबल आत्मा Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १५६ श्रु०१, अ०४, उ०४ सूत्र ३६० ग- विवेकी और अविवेकी चार प्रकार के पुरुष ध- शास्त्रज्ञ और समयज्ञ, चार प्रकार के पुरुष ङ- स्वदया , परदया , ३५३ चार प्रकार के मैथुन विषयक ७ सूत्र ३५४ क- चारित्र नष्ट होने के चार कारण ख- असूर योग्य कर्म बंधन के चार कारण ग- आभियोगिक-देवयोग्य , घ- संमोह (मूढ देव) योग्य , ङ- किल्विष देव " " ३५५ क-से-ङ तक चार प्रकार की प्रव्रज्या, वपन और शुद्धि च-छ- चार प्रकार की कृषि, इसी प्रकार चार प्रकार की प्रव्रज्या चार संज्ञा आहार संज्ञा के चार कारण भय मैथुन परिग्रह " " ३५७ चार प्रकार के काम तुच्छ और गंभीर क-ख- चार प्रकार का जल, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ग-ध- ,, ,, के समुद्र ३५६ समर्थ और असमर्थ चार प्रकार के तिरने वाले क-से-छ-तक लौकिक पक्ष-धन से परिपूर्ण और धन रहित लोकोत्तर पक्ष-श्रुत से परिपूर्ण और श्रूत रहित चार प्रकार के कुम्भ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष ज- मधुर भाषण, कटु भाषण Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग- ॥ ३६२ क-ग- चार प्रकार ,, मति स्थानांग-सूची १६० श्रु०१, अ०४उ०४ सू० ३७२. मलिन हृदय, पवित्र हृदय चार प्रकार के कुम्भ, इसी प्रकार चार प्रकार के पुरुष चार प्रकार के उपसर्ग उपसर्ग देवकृत , मानवकृत तिर्यंचकृत स्वयंकृत के कर्म ३६३ , , का संग ३६४ क- , " की बुद्धि . ख-, , ३६५ क- , के संसारी जीव ___ ख-ङ-, , सर्व , ३६६ क- मित्र 'शत्रु चार प्रकार के पुरुष ख- मुक्त अमुक्त , , ३६७ क- गति--आगति. तिर्यंच पंचेन्द्रिय की गति-आगति ख- मनुष्य की ३६८ क- बेइन्द्रिय जीवों की रक्षा से चार प्रकार का संयम ख- " हिंसा , , असंयम ३६६ सोलह दण्डकों में चार किया । ३७० क- विद्यमान गुणों का नाश होने के चार कारण ख- गुणों की वृद्धि के चार कारण ३७१ क- चौवीस दंडकों में चार कारणों से शरीर की उत्पत्ति , रचना ३७२ धर्म के चार साधन ख- , Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०४ उ०४ सू० ३८६ १६१ स्थानांग-सूची ३७३ नरकायु बंध के चार कारण तिथंचायु , मनुष्यायु देवायु , , चार प्रकार के वाद्य ३७४ " ,, , नृत्य ,, का संगीत माल्य , के अलंकार ,, , का अभिनय ३७५ क- सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के विमानों के चार वर्ण ख. महाशुक्र और सहश्रार कल्प के देवों की ऊंचाई ३७६ क- चार प्रकार के उदक गर्भ ख-, ३७७ " " का मानव ३७८ उत्पाद पूर्वके चार मूल वस्तु चार प्रकार के काव्य ३८० नैरयिकों और वायुकायिकों में चार समुद्घात ३८१ भ० अरिष्ट नेमिनाथ के चौदह पूर्वी मुनि भ० महावीर के वादलब्धि सम्पन्न मुनि ३८३ नीचे के चार कल्पों की संस्थिति मध्य " " " ऊपर " " " ३८४ विभिन्न रसवाले चार समुद्र ३८५ चार प्रकार के आवर्त, इसी प्रकार चार प्रकार का क्रोध क्रोध करने वालों की गति ३८६ नक्षत्रों के तारे mr m m Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १६२ श्रु०१, अ०५ उ०१ सू० ३६० अनुराधा पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा के चार-चार तारे चार स्थानों से पापकर्म के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन उपचयन ३८७ बंध उदीरणा वेदना निर्जरा ३८८ पुद्गल चार प्रदेश वाला स्कंध अनंत , प्रदेशावगाढ पुद्गल ,, ,, समय की स्थितिवाले पुद्गल ., गुण काले-यावत्-चार गुण रूखे पुद्गल सूत्र संख्या ४६ पंचम स्थान प्रथम उद्देशक ३८६ क- पांच महाव्रत ख- , अणुव्रत ३६० क-ग-पांच-वर्ण, रस, कामगुण घ- शब्दादि ५ में जीवों की आसक्ति " " का राग " " , की मूच्र्छा " , , , गृद्धि " " " , लीनता से , का विनाश ङ- शब्दादि ५ का असम्यग्ज्ञान जीवों के अहित-यावत्-संसार वृद्धि के लिये च- शब्दादि ५ का सम्यग्ज्ञान जीवों के हित-यावत्-सिद्धि के लिए Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०१, अ०५, उ० १ सू०३६६ १६३ स्थानांग सूची छ - शब्दादि ५ के ज्ञान से सुगति, शब्दादि ५ के अज्ञान से दुर्गति ३६१ क- प्राणातिपात आदि ५ से दुर्गति ख- प्रणातिपात विरमण आदि ५ से सुगति ३६२ पांच प्रतिमा ३६३ क- पांच स्थावर काय ख - कायाधिपति "" ३६४ क - अवधि ज्ञानी पांच कारणों से क्षुब्ध होता है ख- केवल ज्ञानी पांच कारणों से क्षुब्ध नहीं होता ३६५ क - चौवीस दंडकों में पांच वर्ण, पांच रस ३६८ ख- पांच शरीर के वर्ण, रस ग- स्थूल शरीरों के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श ३९६ क- प्रथम और अंतिम जिनके युग में पांच दुर्गम हैं 17 ख- मध्यम बावीस सुगम हैं ग- भ. महावीर ने निर्ग्रथों को पांच स्थान की आज्ञा दी है घ ङ - छ ज " - 21 " 17 13 7" 11 " संव व्यवस्था 11 27 "" 91 " 17 " ट ३६७ क - श्रमण निग्रंथ की महा निर्जरा और महाप्रयाण के पांच कारण ख "" पांच प्रकार की भिक्षा की आज्ञा दी है। तपश्चर्या की 17 17 " " 17 " के आहार की 19 ३६६ क- आचार्य-उपाध्याय के गण में पांच विग्रह स्थान ख विग्रह स्थान " आसनों के लिए - सांभोगिक साधमि को विसंभोगी करने के पांच कारण ख- साधर्मिक निर्ग्रथ को पारंचिक प्रायश्चित्त देने के पांच कारण 23 13 3 22 Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग सूची ४०० ४०१ क- पांच प्रकार के ज्योतिषी देव ख- पांच प्रकार के देव पांच निषद्या, पांच आर्जव स्थान ४०२ की परिचारणा ४०३ क - चमरेन्द्र की पांच अग्रमहिषियां 17 27 17 ख- बलेन्द्र ४०४ क- भवनेन्द्रों की पांच-पांच सेनाएं, पांच-पांच सेनाधिपति "" ४०६ ४०७ 17 ख- वैमानिकेन्द्रों ४०५ क- शकेन्द्र के अभ्यन्तर परिषद् के देवों की स्थिति 33 ख- ईशानेन्द्र की देवियों 33 "" 31 पांच प्रकार का प्रतिबंध १६४ श्रु० १, अ०५, उ० १ सूत्र ४११ 31 31 "" 77 " ४१० क घ-पांच प्रकार के हेतु 33 }; 37 की आजीविका ४०८ के राज्य-चिह्न ४०६ क - छद्मस्थावस्था में परिषह सहने के पांच कारण 13 ख - सर्वज्ञावस्था में - भ० कुंथुनाथ भ- भ० अर नाथ ख- भ० पुष्पदंत ग- भ० शीतल नाथ घ- भ० विमल नाथ ङ- भ० अनंत नाथ च - भ० धर्म नाथ छ- भ० शांति नाथ ङ-छ ज - केवली के पांच पूर्ण ४११ क- भ० पद्मप्रभ के पांच कल्याणक "7 अहेतु "} 11 "" " " "" 17 "" 33 77 "" 7) 39 37 13 77 33 31 17 77 " 71 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्र०१, अ०५, उ०२ सूत्र ४१६ १६५ स्थानांग-सूची अ- भ० मुनिसुव्रत के पांच कल्याणक ट- भ० नमि नाथ " " " ठ- भ० नेम नाथ " " " ड- भ० पार्श्व नाथ" " " ढ़- भ० महावीर " " " सूत्र संख्या २३ द्वितीय उद्देशक ४१२ एक मास में दो-तीन वार पांच नदियों के लांघने का निषेध अपवाद में उक्त नदियों के लांघने का विधान ४१३ क- प्रथम वर्षा होने पर विहार करने का निषेध, अपवाद में विधान ख- वर्षावास में बिहार का निषेध, अपवाद में विहार का विधान ४१४ पांच गुरु प्रायश्चित्त ४१५ श्रमण निर्ग्रन्थ के अंत:पुर में प्रवेश करने के पांच कारण ४१६ क- पुरुष के साथ सहवास न करने पर भी गर्भधारण करने के पाच कारण ख-ध-पूरुष के साथ सहयोग होने पर भी स्त्री के गर्भधारण न करने के पांच कारण ४१७ क- निग्रंथ-निग्रंथियों के एक स्थान में ठहरने, एक स्थान में शयन करने और एक स्थान में स्वाध्याय करने के पांच कारण ख- अचेलक निग्रंथ और सचेलक निग्रंथियों के साथ ठहरने के पांच कारण ४१८ पांच आश्रव, पांच संवर, पांच दंड ४१६ क- सोलह दण्डकों में (केवल मिथ्यापियों में) आरंभिया आदि पांच क्रियाएं ख- चौवीस दंडकों में काइया आदि पांच क्रियाएं ग- " " दिदिया " " क्रियाएं घ. " " नेसशिया " " " Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १६६ श्रु०१, अ०५, उ०२ सूत्र ४३१ ङ- एक (इक्कीसवें) दण्डक में पेज्जवत्तिया आदि पांच क्रियाएं ४२० पांच प्रकार की परिज्ञा ४२१ " का व्यवहार ४२२ क- सुप्त संयत के पांच जागृत जागृत" के " सुप्त ख- असंयत के पांच जागृत जागृत " पांच जागृत ४२३ क- कर्म बंध के पांच कारण ख- " क्षय" " " ४२४ पंच मासिकी भिक्षु पडिमा की विधि ४२५ पांच प्रकार की सदोष एषणा " " " निर्दोष " ४२६ बोधि की दुर्लभता के पांच कारण " " सुलभता के " " ४२७ पांच इन्द्रिय जय " ' पराजय पांच संवर " असंवर ४२८ पांच प्रकार का संयम ४२६ क- ऐकेन्द्रिय जीवों की रक्षा से पांच प्रकार का संयम ऐकेन्द्रिय जीवों की हिंसा से पांच प्रकार का असंयम ४३० क- पंचेन्द्रिय जीवों " रक्षा " " " संयम ख- " " " हिंसा " " " असंयम ४३१ क- सर्व प्राण भूत जीव और सत्वों की रक्षा करने से पांच प्रकार का संयम ख. " " " " हिंसा " " असंयम Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०५ उ०२ सूत्र ४३७ १६७ स्थानांग-सूची ४३२ पांच प्रकार का आहार " " " आचार प्रकल्प (प्रायश्चित्त) " " की आरोपणा-एक प्रायश्चित्तके साथ दूसरा प्रायश्चित ४३४ वक्षस्कार पर्वत क- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में और सीता नदी के उत्तर में पांच वक्षस्कार पर्वत ख- सीता नदी के दक्षिण में पांच वक्षस्कार पर्वत ग- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में और सीता महानदी के दक्षिण में पांच वक्षस्कार पर्वत घ- सीता महानदी के उत्तर में पांच वक्षस्कार पर्बत महाद्रह ङ- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण में देवकुरु में पांच महा द्रह च- " " " उत्तरकूरु " " वक्षस्कार पर्वत छ- सर्व वक्षस्कार पर्वतों की ऊंचाई और गहराई ज- धातकी खण्ड के पूर्वार्द्ध में क. ख. ग. और घ के समान पांच पांच वक्षस्कार पर्वत झ- पश्चिमार्ध में भी २० वक्षस्कार पर्वत. समय क्षेत्र में पांच भरत-यावत्-मेरु चूलिकाएं. चतुर्थ अ०, द्वितीय उद्देशक, सूत्रांक ३०६ के समान ४३५ भ० ऋषभदेव की ऊँचाई, भरत चक्रवर्ती की " बाहुबली की ब्राह्मी की सुन्दरी की ४३६ जाग्रत होने के ५ कारण निग्रंथ-निग्रंथियों को सहारा देने के पांच कारण ४३७ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १६८ श्रु०१, अ०५ उ०३ सू०४४६ " ४३८ आचार्य और उपाध्याय के गण के ५ अतिशय " " से पृथक होने के ५ कारण सूत्र संख्या २६ तृतीय उद्देशक ४४० पांच प्रकार के ऋद्धिमान् मनुष्य ४४१ पांच अस्तिकाय " गति ४४३ क- " इन्द्रियों के विषय ख- " मुंड ४४५ ४४४ क- अधोलोक में स्थूल (बादर) काय उर्ध्वलोक" तिर्यक्लोक ख- पांच प्रकार का बादर तेजस् काय ग- " " " " वायू " घ. " " " अचित्त " क. " " के निग्रंथ 8. " " " पूलाक ग- " , , बकुश " " " कुशील निग्रंथ " " " स्नातक ४४६ क- निग्रंथ-निग्रंथियों के ग्रहण करने योग्य पांच प्रकार के वस्त्र ख- " " " " " " रजोदरण ४४७ पांच निश्रा (आश्रय) स्थान ४४८ " निधि ४४३ " प्रकार के शौच Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५७ स्थानांग-सूची १६६ श्रु०१, अ०५ उ०३ सू०४६२ ४५० क- असर्वज्ञ (छद्मस्थ) पंचास्तिकाय को पूर्णरूप से नहीं जानता ख सर्वज्ञ " जानता है ४५१ क- अधोलोक में पांच नरकावास ख- उद्धलोक " महा-विमान ४५२ पांच प्रकार के पुरुष ४५३ भिक्षाचर पांच प्रकार के मत्स्य. इसी प्रकार पांच प्रकार के भिक्षु ४५४ " " " याचक ४५५ " " " प्रशस्त अचेलक ४५६ " उत्कट (उत्तोत्तर बढ़ने वाला) । ' समिति ४५८ क- पांच प्रकार के संसारी जीव ख- एकेन्द्रिय की पांच गति, पांच आगति ग- द्वीन्द्रिय " " " घ- त्रीन्द्रिय " " " " ङ- चतुरिन्द्रिय" " " , च- पंचेन्द्रिय " " " , छ- पांच प्रकार के सर्व जीव ज- " " " " " ४५६ धान्यों की उत्कृष्ट स्थिति ४६० क- पांच प्रकार के संवत्सर ख. " " " युग संवत्सर ग- " " " प्रमाण". घ. " " " लक्षण " ४६१ जीव निकलने के पांच मार्ग. तदनुसार गति ४६२ क- पांच प्रकार के छेदन-विभाग Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १७० श्रु०१, अ०५, उ०३ गाथा ४७४ ख- " " " आनन्तर्य-अविभाग ग- " " " अनन्त घ- " ॥ ॥ ॥ ४६३ पांच प्रकार के ज्ञान " " ज्ञानावरणीय कर्म ४६५ " " " स्वाध्याय " "प्रत्याख्यान ४६७ " " " प्रतिक्रमण ८ क- सूत्र वाचना के पांच कारण ख- " सीखने " " " ६ क- सौधर्म और ईशान कल्प के विमानों के पांच वर्ण ख- " " " " की ऊंचाई ग- ब्रह्मलोक और लांतक " देवों की ऊंचाई घ- चौवीस दण्डकों में पांच वर्ण और पांच रस के पुद्गलों का (त्रैकालिक) बंधन ४७० नदियां क- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण में गंगा में मिलने वाली पांच नदियां " जमुना " सिन्धु " रक्ता . " रक्तवती ४७१ कुमारावस्था में दीक्षित होने वाले पांच तीर्थंकर ४७२ सभी इन्द्र स्थानों में पाँच-पाँच सभा ४७३ पांच-पाँच तारा वाले पाँच नक्षत्र ४७४ क- पांच स्थानों में पापकर्मों के पुदगलों का चयन उपचयन " " बंध Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७१ पांच स्थानों में पाप कर्मों की 33 श्रु० १, अ०६, उ० १ सूत्र ४८२ ४७५ ४७६ ४७७ 37 37 ग- अप् घ- तेजस् ख- पंच प्रादेशिक स्कन्ध अनन्त ग- पंच प्रदेशावगढ़ पुद्गल अनन्त यावत्-पांच गुण रुक्ष पुद्गल अनन्त सूत्र संख्या ३४ ङ - वायु च - वनस्पति छ- त्रस षष्ठ स्थान एक उद्देशक गण में रहने योग्य छह प्रकार के अणगार निर्ग्रथ-निर्ग्रथी को छह कारण से सहारा दे सकता है। मृत साधमी के साथ निग्रंथ निर्बंथियों के छह व्यवहार ४७६ ४८० ४८ १ छह प्रकार के ताराग्रह ४८२ क- छह प्रकार के संसारी जीव ख- पृथ्वीकायिकों की छह गति, " 31 ४७८ क- असर्वज्ञ ( छद्मस्थ ) धर्मास्तिकाय आदि छह को पूर्णरूप से नहीं जानता ख- सर्वज्ञ, धर्मास्तिकाय आदि छह को पूर्णरूप से जानता है अशक्य छह कार्य छह जीव- निकाय 31 17 " " 37 71 " 33 12 "" 11 29 " 33 " 32 73 11 13 36 17 11 छह आगति 11 " 3) "" " 21 " उदीरणा वेदना निर्जरा " स्थानांग सूची 17 17 Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०६, उ०१ सूत्र ४६७ १७२ स्थानांग-सूची ४८३ क-ग-छह प्रकार के सर्व जीव ४८४ ,, ,, तृण वनस्पतिकाय ४८५ , स्थान दुर्लभ ४८६ , इन्द्रियों के विषय ४८७ क- छह संवर ख-, असंवर ४८८ क- छह प्रकार का सुख ख- , , दुःख ४८६ , , प्रायश्चित्त ४६० क-ख-, के मनुष्य ४६१ क-ख-,, , , ४६२ क- अवसर्पिणी के छह आरा ख- उत्सर्पिणी ,, ,, ,, ४६३ क- जम्बूद्वीप के भरत-एरवत में----- १- अतीत उत्सर्पिणी के सुसमसुसमा आरा में मनुष्यों की ___ऊंचाई और आयु २- वर्तमान अवसर्पिणी के ,, , , ३- आगामी उत्सर्पिणी के ,, ,, , ख- जम्बूद्वीप के देवकुरु और उत्तर कुरु में-क-के समान पुनरावृत्ति ग- धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में-क-के समान पुनरावृत्ति ४६४ छह प्रकार के संहनन " , संस्थान ४६६ सकषाय आत्मा के ६ अहितकारी अकषाय ,,, हितकारी ४६७ क- छह प्रकार के जाति आर्य Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०६ उ०१ सू० ५०४ १७३ स्थानांग-सूची ख- छह प्रकार के कुल आर्य ४६८ , ,, की लोकस्थिति ६ क- छह दिशा ख- छह दिशाओं में जीवों की गति " , , आगति " , , व्युत्क्रांति का आहार की वृद्धि , हानि ,, विकूर्वणा ,, ,, गतिपर्याय ॥ ॥ " समुद्घात " , का काल-संयोग ,, दर्शन " , ज्ञान ,, ,, जीवाभिगम , ,, ,, अजीवाभिगम ५०० क. निग्रंथ के आहार खाने के ६ कारण ख- , ,, आहार न खाने,, ,, उन्माद होने के ६ कारण ५०२ प्रमाद के ६ कारण ५०३ क- ६ प्रकार की प्रमाद प्रतिलेखना-धर्मोपकरणों को देखने में आलस्य करना ख- ६ प्रकार की अप्रमाद प्रतिलेखना-धोपकरणों को देखने में आलस्य न करना ५०४ छह लेश्या, दो (२०-२१वें) दण्डकों में Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०६, उ०१ सू० ५१७ १७४ स्थानांग-सूची ५०५ क- शकेन्द्र के सोम लोकपाल की छह अग्रमहिषियां ख- , , यम , ,,, , ५०६ ईशानेन्द्र के मध्य परिषद् के देवों की स्थिति ५०७ छह दिक् कुमारियाँ, छह विद्युत् कुमारियाँ ५०८ क- धरण नागेन्द्र की छह अग्रमहिषियाँ ख- भुतानन्द ,, ,, , . ग- शेष (दक्षिण उत्तर) भवनेन्द्रों की ६-६ अग्रमहिषियाँ ५०६ क- धरण नागेन्द्र की ६ सहस्र सामान्य देवियाँ ख- भूतानन्द ,, ,, ,, ,, ,, ,, ग- शेष (दक्षिण-उत्तर) भवनेन्द्रों की ६ हजार सामान्य देवियाँ ५१० ज्ञान के भेद क- छह प्रकार की अवग्रह मति ख- ,, ,, ,, ईहा मति ग- , , ,, अवाय मति ,,, धारणा ५११ तप के भेद । क- छह प्रकार का बाह्य तप ख- , , ,, आभ्यन्तर तप ५१२ ,, ,, ,, विवाद " " के क्षुद्रप्राणी ५१४ एषणा समिति-छह प्रकार की भिक्षाचर्या ५१५ क- रत्नप्रभा के छह नरकावासों के नाम ख- पंकप्रभा " " " " ५१६ ब्रह्मलोक में छह विमान प्रस्तट ५१७ क- चन्द्र के साथ तीस मुहूर्त रहनेवाले छह नक्षत्र ख. , के साथ पंद्रह मुहूर्त रहनेवाले छह नक्षत्र ग- " " " पेंतालिस" ॥ ॥ ॥ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१६ ५२२ क श्रु०१, अ०६, उ०१ सूत्र ५२६ १७५ स्थानांग-सूची ५१८ अभिचन्द्र कुलकर की ऊंचाई भरत चक्रवर्ती का राज्य-काल ५२० भ० पार्श्वनाथ के बादल ब्धिसम्पन्न मुनि भ० वासुपूज्य के साथ दीक्षित होनेवाले भ० चन्द्रप्रभ का छद्मस्थ काल ५२१ क- त्रीन्द्रिय जीवों की रक्षा करने से छह प्रकार का संयम ख- " " " हिंसा करने से छह प्रकार का असंयम बुद्वीप में छह अकर्मभूमि ख- क्षेत्र " वर्षधर पर्वत घ- " " " कूट " महा द्रह " " ,, की अधिष्ठात्री देवियों को स्थिति " के मेरु पर्वत से दक्षिण में छह महा नदियाँ ॥ ॥ " उत्तर " " " " " " पूर्व में सीतानदी के दोनों किनारों पर . ६ अंतर नदियाँ अ- जम्बुद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में सीतानदी के दोनों किनारों पर ६ अंतर नदियाँ ट- धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में क-से-अ-तक पूर्वोक्त क्रम ठ- धातकी खण्ड द्वीप के उत्तरार्ध में क-से-ज-तक का पूर्वोक्त क्रम ५२३ छह ऋतु ५२४ क- छह क्षय तिथियाँ ख- " अधिक " ५२५ ज्ञान के भेद आभिनिबोधिक ज्ञान के छह अर्थावग्रह ५२६ छह प्रकार का अवधिज्ञान Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ स्थानांग-सूची १७६ श्रु०१, अ०६, उ०१ सूत्र ५४० .५२७ निग्रंथ निग्रंथियों के छह अकल्प्य वचन ५२८ कल्प-साधु मर्यादा (प्रायश्चित्त) के छह प्रकार ५२६ कल्प के छह घातक छह प्रकार की कल्प स्थिति भ० महावीर की दीक्षा के पूर्व का तप " " " केवल ज्ञान से ,, ,, तप " , "निर्वाण से ,, ,, ,, ५३२ क- सनतकुमार और माहेन्द्र कल्प के विमानों की ऊंचाई ख- " " " देवों की ऊंचाई ५३३ क- भोजन का परिणाम छह प्रकार का . ख- विष " " " " ५३४ ६ प्रकार के प्रश्न ५३५ क. सभी इन्द्रस्थानों का उत्कृष्ट विरह काल ख- सातवीं नरक " " " ग- सिद्ध गति , " " आयुकर्म क- छह प्रकार का आयु-बंध ___ ख- चौवीस दण्डकों में-छह प्रकार का आयु-बंध ग- सोलह ,, ,, ,, माह पूर्व आगामी भव का आयु-बंध ५३७ छह प्रकार के भाव ५३८ , , का प्रतिक्रमण ५३६ छह तारे वाले नक्षत्र ५४० क- छह स्थानों में पाप कर्मों के पुदगलों का चयन उपचयन वंध उदीरणा Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०७ उ० १, सूत्र ५४५ १७७ स्थानांग-सूची छह स्थानों में पाप कर्मों की वेदना " " " निर्जरा छह प्रदेशिक स्कंध " प्रदेशावगाढ़ पुद्गल " समय की स्थितिवाले पुद्गल " गुण काले पुद्गल-यावत्-छह गुण रूखे पुद्गल सूत्र संख्या ६६ , सप्तम स्थान. एक उद्देशक गण से निकलने के सात कारण सात प्रकार के विभंग ज्ञान क. " " की योनि (जीवोत्पत्ति के स्थान) ख- अंडज की सात गति. सात आगति ग- पोतज " घ- जरायुज" ङ- रसज " च- संस्वेदज" छ- संमूछिम" ज- उद्भिज" ५४४ संघ व्यवस्था क- आचार्य और उपाध्याय के गण में सात संग्रह स्थान " " " " "" असंग्रह " ५४५ क- सात पिण्डषणा ख. " पाणैषणा ग- सात अवग्रह पडिमा घ- '' सप्तकक आचाराङ्ग श्रुतस्कन्ध दो. चूलिका दो में ङ- " महा अध्ययन सूत्रकृताङ्ग श्रुतस्कन्ध दो में च- सप्त सप्तमिका भिक्षु प्रतिमा का परिमाण Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १७८ श्रु०१, अ०७, उ०१ सूत्र ५५३ ५४६ क- अधोलोक में सात पृथ्वियाँ (नरक) ख- " " घनोदधि म ॥ ॥ घनवात घ. " " तनूवात स . " अवकाशान्तर इनका समावेश क्रम च. सात पृथ्वियों के नाम छ- " " " गोत्र सात स्थूल (बादर) वायुकाय ५४८ संस्थान ५४६ भयस्थान ५५० क- " प्रकार से असर्वज्ञ (छद्मस्थ) की पहचान " " सर्वज्ञ मूल गोत्र काश्यप गोत्र के सात भेद गौतम " घ. " वत्स " " कुत्स " च- " कौशिक " " छ- " मंडव " " ज- " वशिष्ठ " " ५५२ सात मूल नय ५५३ क- सात स्वर " स्थान " जीव निश्रित " अजीव " लक्षण Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १७६ श्रु०१, अ०७ उ०१ सू० ५५५ सात स्वरों के तीन ग्राम तीनों ग्राम की सात-सात मूर्छना सात स्वरों के उत्पत्ति स्थान गेय की उत्पति गेय के तीन आकार गेय के छह दोष गेय के आठ गुण " " तीन वृत्त " की दो भणिति (भाषा) गायन करने वाली स्त्रियों के स्वर से उनके वर्गों का ज्ञान सात प्रकार के स्वर सम तान-उनपचास स्वर मंडल पूर्ण ५५४ सात प्रकार का कायक्लेश ५५५ क- जम्बूद्वीप में सात क्षेत्र ख- " " " वर्षघर पर्वत ग- लवण समुद्र में मिलने वाली सात नदियां घ- " " " " " " - धातकी खण्ड द्वीप के पूर्वाध के सात क्षेत्र .च- " " " " " " वर्षधर पर्वत छ- लवण समुद्र में मिलनेवाली सात नदियाँ ज- कालोद ,, ,, ,, ,, , झ- धातकी खंड द्वीप के पश्चिमार्ध में सात क्षेत्र अ- , , , , , , वर्षधर पर्वत ट- लवण समुद्र में मिलने वाली सात नदियाँ ठ- कालोद ,, , , , , ड- पुष्कर वर द्वीपार्ध के पूर्वाध में सात क्षेत्र ढ- , , , , , वर्षधर पर्वत Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १८० श्रु०१, अ०७ उ०१ सू०५७१ ५५६ ण- पुष्करोदधि में मिलने वाली सात नदियाँ त- कालोद समुद्र में मिलने वाली सात नदियाँ थ- पुष्कर वर द्वीपार्ध में, पश्चिमार्ध के ठ-से-ण-तक के समान क- जम्बूद्वीप के भरत की अतीत उत्सर्पिणी में सात कुलकर ख- , , ,, ,, वर्तमान अवसर्पिणी ,, , ग- , , ,, ,, आगामी उत्सर्पिणी ,, ,, ५५७ सात प्रकार की दंड नीति । ५५८ चक्रवर्ती के सात एकेन्द्रिय रत्न " ,, पंचेन्द्रिय , ५५६ बुरे काल के सात लक्षण अच्छे ,, , , , ५६० सात प्रकार के संसारी जीव ५६१ आयु क्षय के सात कारण ५६२ क-ख-सात प्रकार के सर्व जीव ५६३ ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का आयु और गति ५६४ भ० मल्लिनाथ सहित दीक्षित होने वाले सात व्यक्ति ५६५ सात प्रकार के दर्शन ५६६ छद्मस्थ वीतराग के सात कर्म प्रकृतियों का वेदन ५६७ असर्वज्ञ के जानने के अयोग्य सात पदार्थ सर्वज्ञ ,, ,, ,, योग्य , , ५६८ भ० महावीर की ऊंचाई ५६६ सात विकथा ५७० आचार्य और उपाध्याय के गण के सात अतिशय ५७१ क- सात प्रकार का संयम ख- , , असंयम ग- " " आरंभ अनारंभ घ- , , Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १८१ श्रु०१, अ०७ उ०१ सूत्र ५७६ ५७२ ङ- सात प्रकार का सारंभ च- , , , असारंभ छ- ,, ,, ,, समारंभ ज-, ,, असमारंभ ___कोठे में रहे हुए धान्यों की स्थिति ५७३ क- बादर अप्काय की स्थिति ___ ख- बालुका प्रभा के नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति ग- पंक प्रभा के नैरयिकों की जघन्य स्थिति ५७४ क- ईशानेन्द्र के आभ्यन्तर परिषद के देवों की स्थिति ख- ईशानेन्द्र के अग्रमहिषियों की स्थिति ग- सौधर्म कल्प में परिगृहित देवियों की उत्कृष्ट स्थिति ५७५ सारस्वत देव और उनका परिवार आदित्य , " " गर्दतोय , " तुषित , " ५७६ क- शक्रेन्द्र के वरुण लोकपाल की सात अग्रमहिषियां ख- ईशानेन्द्र के सोम , , , , " ग- ,, ,, यम , ,,, , ५७७ क- सनत्कुमार कल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति ख- माहेन्द्र , , " " ग- ब्रह्मलोक , " " ५७८ ब्रह्मलोक कल्प में विमानों की ऊंचाई . ५७६ भवनवासी देवों की ऊंचाई व्यंतर ॥ ज्योतिषी , , सोधर्म कल्प के ईशान कल्प के Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०७, उ०१ सूत्र ५६१ १८२ स्थानांग-सूची ५८० क- नंदीश्वर द्वीप में सात द्वीप ख- , , , , समुद्र ५८१ सात श्रेणियां ५८२ सर्व देवेन्द्रों की सात-सात सेना और सात-सात सेनाधिपति ५८३ " के " " कच्छ, प्रत्येक कच्छ के देवों की संख्या ५८४ वचन के सात विकल्प ५८५ क- सात प्रकार का प्रशस्त मन विनय ख. " " " अप्रशस्त " " प्रशस्त वचन " अप्रशस्त " " प्रशस्त काय " अप्रशस्त " " छ- " " " लोकोपचार ." ५८६ सात समुद्घात ५८७ क- भ० महावीर के सात प्रवचन निन्हव ख- निन्हवों के सात जन्म नगर ५८८ शाता वेदनीय कर्म के सात अनुभाव ५८६ क- मघा नक्षत्र के सात तारे ख- पूर्व दिशा में द्वारवाले सात नक्षत्र ग- दक्षिण दिशा में ,, ,, , घ- पश्चिम , , , , ङ- उत्तर , , , " ५६० क- वक्षस्कार पर्वत जम्बूद्वीप में सोमनस वक्षस्कार पर्वत पर सात कूट __ ख- , , गंधमादन , , , , ५९१ द्वीन्द्रिय की कुल कोड़ी Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १८३ श्रु०१, अ०८, उ०१ सू० ५९७ ५६२ सात स्थानों में पाप कर्मों के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन उपचयन बंध उदीरणा वेदना निर्जरा सात प्रदेशिक स्कन्ध ,, प्रदेशावगाढ़ पुद्गल ,, समय की स्थिति वाले पुद्गल " गुण काले पुद्गल-यावत्-सात गुण रूखे पुद्गल ५९३ सूत्र संख्या २३ अष्टम स्थान. एक उद्देशक ५६४ एकाकी विहार प्रतिमा के योग्य आठ प्रकार के अनगार ५६५ क- आठ प्रकार की योनियाँ ख- अंडजों की आठ गतियाँ. आठ आगतियाँ " ग- पोतज , , , " " घ- जरायुज,, ॥ ॥ " " ५६६ चौवीस दण्डकों में आठ कर्म प्रकृतियों का कालिक चयन उपचयन बंध उदीरणा वेदना निर्जरा ५६७ क- मायावी के आलोचना न करने के आठ कारण Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १८४ श्रु०१, अ०८, उ०१ सूत्र ६१३ ग- आलोचना करने वाला आराधक आलोचना न करने वाला विराधक घ- आराधक और विराधक की गति में अन्तर ५६८ क- आठ संवर ख- आठ असंवर ५९६ आठ स्पर्श आठ प्रकार की लोक स्थिति ,, ,, गणि-संपदा प्रत्येक महानिधि की ऊंचाई आठ समिति ६०४ क- आलोचना (प्रायश्चित्त) सुनने योग्य अणगार के आठ गुण ख- आत्म दोषों की आलोचना करनेवाले ,, , , ,, ६०५ आठ प्रकार का प्रायश्चित्त आठ मद स्थान . आठ अक्रियावादी आठ प्रकार का निमित्त ६०६ आठ प्रकार की वचन विभक्ति ६१० क- असर्वज्ञ आठ स्थानों को पूर्णरूप से नहीं जानता ख- सर्वज्ञ आठ स्थानों को पूर्णरूप से जानता है ६११ आठ प्रकार का आयुर्वेद क- शकेन्द्र की आठ अग्र महिषियां ख- ईशानेन्द्र ,, ,, , ग- शकेन्द्र के सोम लोकपाल की आठ अग्रमहिषियां घ- ईशानेन्द्र के वैश्रमण , , , " ङ- ग्रह-आठ महाग्रह ६१३ आठ प्रकार की तृण वनस्पतिकाय ८०७ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८५ ६१७ "६२१ श्रु०१, अ०० उ०१ सू०६३२ १८५ स्थानांग-सूची ६१४. क- चतुरिन्द्रिय जीवों की रक्षा से आठ प्रकार का संयम ख- ,, , ,, हिंसा , , ,, ,, असंयम ६१५ आठ प्रकार के सूक्ष्म भरत चक्रवर्ती के पश्चात् आठ पुरुष मुक्त हुए भ० पार्श्वनाथ के आठ गणधर आठ दर्शन ६१६ आठ प्रकार का औपमिक काल ६२० भा० अरिष्ट नेमि के पश्चात् आठ युग-प्रधान पुरुष भ० महावीर के उपदेश से दीक्षित होनेवाले आठ राजा आठ प्रकार का आहार ६२३ क- आठ कृष्णराजी ख- आठ कृष्णराजियों के नाम ग- , , ,, अवकाश में आठ लोकान्तिक विमान घ- ,, लोकान्तिक देवों की स्थिति क- धर्मास्तिकाय के मध्य-प्रदेश आठ ख- अधर्मास्तिकाय के , , ग- आकाशास्तिकाय के ,, , घ. जीवास्तिकाय के , , २५ महापद्म तीर्थंकर आठ राजाओं को दीक्षित करेंगे मुक्त होनेवाली श्री कृष्ण की आठ अग्र महिषियाँ ६२७ वीर्य प्रवाद पूर्व की आठ चूलिका वस्तु आठ प्रकार की गति ६२६ गंगा आदि ४ देवियों के द्वीपों का आयाम विष्कम्भ उल्कामुख आदि ४ देवों के द्वीपों का आयाम विष्कम्भ कालोद समुद्र का आयाम विष्कम्भ “६३२ पुष्करार्ध द्वीप के अंदर का आयाम विष्कम्भ " " "बाहर" , " “६२४ क. له ل س س Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०८, उ०१ सूत्र ६३७ १८६ स्थानांग-सूची ६३३ प्रत्येक चक्रवर्ती के काकिणी रत्न का प्रमाण मगध के योजना का प्रमाण ६३५ जंबूद्वीप के सुदर्शन वृक्ष के मध्यभाग का विष्कम्भ और ऊंचाई ६३६ तिमिस गुफा की ऊंचाई खंड प्रपात , " " ६३७ वक्षस्कार पर्वत क- ज़बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में सीता महानदी के किनारे आठ वक्षस्कार पर्वत ख- जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में सीता महानदी के किनारे आठ वक्षस्कार पर्वत चक्रवर्ती विजय ग. जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में सीता नदी के उत्तर में आठ चक्रवर्ती विजय घ. जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में सीतानदी के दक्षिण में आठ चक्रवर्ती विजय ङ- जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में सीतानदी के दक्षिण में आठ चक्रवर्ती विजय च- जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में सीता महानदी के उत्तर में आठ चक्रवर्ती विजय छ- राजधानियाँ जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में सीता महानदी के उत्तर में आठ राजधानियाँ ज- जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में सीता महानदी के दक्षिण में आठ राजधानियाँ झ- जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में सीता महानदी के दक्षिण में आठ राजधानियाँ Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१, अ०८, उ०१ सू० ६३६ १८७ स्थानांग-सूची ब- जंबूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में सीता महानदी के उत्तर में आठ राजधानियाँ ६३८ क- जंबूद्वीप के पूर्व में सीतानदी के उत्तर में उत्कृष्ट आठ अरिहन्त थे, हैं, और होंगे जंबूद्वीप के पूर्व में सीतानदी के उत्तर में उत्कृष्ट आठ चक्रवर्ती थे, हैं, और होंगे जंबूद्वीप के पूर्व में सीतानदी के उत्तर में उत्कृष्ट आठ बलदेव थे, हैं, और होंगे जंबूद्वीप के पूर्व में सीतानदी के उत्तर में उत्कृष्ट आठ वासुदेव थे, हैं, और होंगे ख- जंबूद्वीप के पूर्व में सीतानदी के दक्षिण में 'क' सूत्र की पुनरावृत्ति ग- , पश्चिम में ,, दक्षिण , , , घ- , , , उत्तर , , , ६३६ क- जंबूद्वीप के पूर्व में सीतानदी के उत्तर में आठ दीर्घ वैताढ्य पर्वत जंबूद्वीप के पूर्व में सीतानदी के उत्तर में आठ तिमिस्र गुफा ,, खण्ड प्रपात गुफा " " , कृतमाल देव ,, नृत्यमाल देव ,, गंगा कुण्ड जम्बूद्वीप के पूर्व में सीता नदी के उत्तर में आठ सिंधु कुंड " , गंगा नदी , , , ,, सिंधु नदी , ऋषभकूट पर्वत दक्षिण में दीर्घ वैताढ्य पर्वत " , , तिमिस्र गुफा ख Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग सूची १८८ श्रु ०१, ०८, उ० १ सू०६४२ जंबूद्वीप के पूर्व में सीता नदी के दक्षिण में दीर्घं वैताढ्यपर्वत तमिस्र गुफा खण्डप्रपात गुफा कृतमाल देव नृत्यमाल देव घ "" ?? 33 71 11 33 " " 15 13 29 37 " 33 33 " 11 "" " 11 31 " 13 23 33 39 11 " " 11 "1 " " 31 " 33 " 37 "" 17 19 32 ऋषभ कूट देव 23 ग- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में सीता नदी के उत्तर में "क" के समान दक्षिण में " "" 11 " 11 रक्ता कुंड रक्तावती कुंड रक्ता नदी रक्तावती नदी ऋषभ कूट पर्वत ६४० मेरु चूलिका का विष्कम्भ ६४१ क- धातकी खंड द्वीप के पूर्वार्ध में धातकी वृक्ष की ऊँचाई के मध्यभाग का विष्कम्भ कूट ख- जम्बूद्वीप की जगति की ऊंचाई विष्कम्भ " 33 "3 ख- शेष-सूत्र ६३६ से ६४० तक समान ग- धातकी खंड द्वीप के पश्चिमार्ध में महाधातकी वृक्ष की ऊंचाई शेष "क" के समान "1 घ- पुष्करार्ध द्वीप के पूवार्ध में पद्मवृक्ष की ऊंचाई. शेष 'क' 'ख' के समान ङ 31 11 पश्चिमार्ध में महापद्म वृक्ष की ऊंचाई ६४२ क- जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत पर भद्रशाल वन में आठ दिशा हस्ति 31 Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ध्रु०१, अ०८, उ०१ सूत्र ६५१ १८६ स्थानांग-सूची ६४३ क- जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण में महा हिमवंत वर्षधर पर्वत पर आठ कूट ख- , उत्तर में रूक्मि , , , ग- , पूर्व में रुचक पर्वत पर आठ कूट इन पर रहने वाली दिशा कुमारियों की स्थिति घ- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण में रुचक पर्वत पर आठ कूट ङ- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पश्चिम में रुचक पर्वत पर आठ कूट च- , उत्तर में ,, ,, इन पर रहने वाली दिशा कुमारियों की स्थिति छ- अधोलोक में आठ दिशा कुमारियां ज- उर्ध्वलोक में , , , ६४४ क- आठ कल्पों में तिर्यंच और मनुष्यों का उपपात ख- ॥ , आठ इन्द्र ग- ,, इन्द्रों के ,. पारियानिक विमान ___ अष्ट अष्टमिका भिक्षु प्रतिमा का परिमाण क- आठ प्रकार के संसारी जीव ख- ,, ,, ,, सर्व , ६४७ , का संयम । ६४८ आठ पृथ्वियां ख- ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी के मध्यभाग की मोटाई ग- , , , , आठ नाम प्रमाद त्याग करके करने योग्य आठ शुभ कार्य ६५० महाशुक्र और सहस्रार कल्प में विमानों की ऊंचाई ६५१ भ० अरिष्ट नेमी के वाद-लब्धि सम्पन्न मुनि ६४६ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० ०१, अ०६, उ० १ सूत्र ६६३ १६० ६५२ -६५३ ६५४ ६६१ ६६२ ६६३ केवली समुद्घात की स्थिति अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले भ० महावीर के मुनि आठ प्रकार के व्यंतर देव और उनके आठ चैत्यवृक्ष रत्नप्रभा से सूर्य विमान की ऊंचाई ३५५ ६५६ चन्द्र का स्पर्श करके गति करने वाले आठ नक्षत्र -६५७ क - जम्बूद्वीप के द्वारों की ऊंचाई ख - सर्व द्वीप समुद्रों के द्वारों की ऊंचाई ६५८ क - पुरुष वेदनीय कर्म की जघन्य बंध स्थिति ख- यशोकीर्ति नाम कर्म की ग- उच्च गोत्र कर्म की -६५६ त्रीन्द्रिय की कुलकोटी ६६० क- आठ स्थानों में पापकर्म के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन उपचयन बंध उदीरणा वेदना निर्जरा ܕ ܕ " " 31 ܐܕ 17 "" 27 33 35 ख- आठ प्रदेशी स्कंध " 7? सूत्र संख्या ६७ 31 " " 17 11 19 "3 11 21 " 31 " 17 27 " " "" "" 73 "3 31 71 आठ प्रदेशावगाढ़ पुद्गल समय की स्थितिवाले 11 गुण काले-यावत्-आठ गुणरूखे पुद्गल " " 32 "" स्थानांग-सूची नवम स्थान. एक उद्देशक संभोगी निर्ग्रथ को विसंभोगी करने के नो कारण ब्रह्मचर्य ( आचारांग प्रथम श्रुत स्कंध ) के नव अध्ययन नव ब्रह्मचर्य गुप्ति Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग सूची ६६४ ६६५ नव पदार्थ ६६६ ६७० ६७१ ६७२ भ० अभिनन्दन और भ० सुमतिनाथ का अंतर ६७३ ६७४ ६७५ ६७६ नव प्रकार के संसारी जीव पृथ्वीकाय अप्काय तेजस्काय वायुकाय वनस्पतिकाय द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पंचेन्द्रिय 11 11 में नव की गति. नव की आगति 31 "" "" " " १६१ श्रु०१, अ०६, उ० १ सूत्र ६७६ "" "1 17 नव विकृति शरीर के नव द्वार नव प्रकार का पुण्य 23 77 "" 17 " 17 33 31 " "" " " 13 रोगोत्पत्ति के नव कारण नव प्रकार का दर्शनावरणीय कर्म 19 " "" ख- नव प्रकार के सर्व जीव ग की सर्व जीवों की अवगाहना ( शरीर का प्रमाण ) घ- सांसारिक जीवों को त्रैकालिक अवस्थिति " " 3) 11 "" ६६७ ६६८ ६६ क - अभिजित का चन्द्र के साथ योग काल ख- चन्द्र के साथ उत्तर की ओर से योग करने वाले नत्र नक्षत्र समभूभाग से ताराओं की ऊंचाई जम्बूद्वीप में नव योजन के मत्स्यों का त्रैकालिक प्रवेश जम्बूद्वीप के भरत में इस अवसर्पिणी में नव बलदेव-नव वासुदेवों के पिता. शेष वर्णन समवायांग के समान प्रत्येक निधि का विष्कम्भ चक्रवर्ती की नव निधि 11 77 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w w w श्रु०१, अ०६, उ०१ सूत्र ६८६ १६२ स्थानांग-सूची ६७७ नव पाप स्थान ६७८ नव पाप श्रुत नव निपुण आचार्य भ० महावीर के नव गण " " " निग्रंथों की नव कोटि शुद्ध भिक्षा . ६८२ ईशानेन्द्रों के वरुण लोकपाल की नव अग्रमहिषियां ६८३ क- ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों की स्थिति ख- ईशान कल्प में देवियों की स्थिति नव देव-निकाय अव्याबाध देव और उनका परिवार अगिच्चा " " " , रिट्टा " " " " ६८५ नव नैवेयक विमान प्रस्तर नव प्रकार का आयु परिणाम ६८७ नव नवमिका भिक्षु प्रतिमा का परिमाण ६८८ नव प्रकार आ प्रायश्चित्त ६८४ ४ or ६८६ क- जंबुद्वीप के दक्षिण भरत में दीर्घ वैताढय पर्वतपर नव कूट " " " निषध " " " " " मेरु पर्वत पर नन्दन वन में नव कुट घ- " " माल्यवंत वक्षस्कार पर्वत पर नव कुट " कच्छ में दीर्घ वैताढ्य पर्वतपर नव कूट च- " " सूकच्छ में" " " कट शेष सूत्र ६३७ के “ग' से 'च तक के विजयों में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नव नव कूट Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १, अ० ६, उ० १ सू०७०२ १६३ ६६० ६६१ ६६२ ६६३ ६६४ ६६५ ६६६ ६६७ ६६८ ६६६ ७०० ७०२ छ- जम्बुद्वीप के विद्युत्प्रभ वक्षस्कार पर्वतपर नव कूट ज 31 पद्मप्रभ शेष सूत्र ६३७ के "ग" से "च" तक के विजयो में दीर्घ वैताढ्य पर्वतों पर नव-नव कूट झ - जम्बुद्वीप के मेरुपर्वत से उत्तर में नीलवंत वर्षधर पर्वत पर नव कूट ज- जम्बुद्वीप के मेरुपर्वत से एरवत में दीर्घ वैताढ्य पर्वत पर नव कूट " महापद्म चरित्र चन्द्र के साथ पीछे से योग करनेवाले नव नक्षत्र भ. पार्श्व नाथ की ऊंचाई भ० महावीर के तीर्थ में तीर्थंकर गोत्र नाम कर्म बांधने वाले आगामी उत्सर्पिणी में होनेवाले नव तीर्थंकरों में नाम ७०१ क- चतुरिन्द्रियों की कुलकोटी ख- भुजगों की 17 घनतादि ४ अंतद्विपों का आयाम विष्कम्भ शुक्र महाग्रह की नव विथियाँ नव कषाय वेदनीय कर्म की नव प्रकृतियाँ " आनत आदि चार देवलोकों में विमानों की ऊंचाई विमल वाहन कुलकर की ऊंचाई भ० ऋषभदेव का तीर्थ प्रवर्तन काल 77 "" नव स्थानों में पापकर्म के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन " 77 "" उपचयन बंध उदीरणा 11 " 21 स्थानांग-सूची 11 " "" 77 33 Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०३ स्थानांग-सूची १९४ श्रु०१, अ०१० उ० १ सूत्र ७१३ " " " " वेदना " " " निर्जरा नव प्रदेशी स्कंध नव प्रदेशावगाढ पुद्गल नव समय की स्थितिवाले पुद्गल नव गुण काले-यावत्-नव गुण रुखे पुद्गल सूत्र संख्या ४३ दशम स्थान, एक उद्देशक ७०४ दश प्रकार की लोक-स्थिति ७०५ " " का शब्द ७०६ अतीत काल में इन्द्रियों के दश विषय वर्तमान " - आगामी " ० ० ० ७०७ अच्छिन्न पुद्गलों का दश कारणों से चयन ७०८ क्रोधोत्पत्ति के दश कारण ७०६ क- दश प्रकार का संयम ख- " , " असंयम ग- , , , संवर घ." , असंवर अभिमान के दश कारण ७११ दश प्रकार की समाधि , , , असमाधि ७१२ क- , , , प्रवज्या का श्रमणधर्म ग-, , की वैयावृत्य का जीव परिणाम , , अजीव , Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु१, अ० १०, उ०१ सू० ७२१ १६५ स्थानांग-सूची ७१४ क- , , , अंतरिक्ष अस्वाध्याय ख. , , , औदारिक ,, ७१५ क- पंचेन्द्रिय जीवों की रक्षा से दश प्रकार का संयम ख- ,, , ,, हिंसा ,, , , , असंयम ७१६ दश प्रकार के सूक्ष्म ७१७ क. जम्बू द्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिण में गंगा-सिन्धु में मिलने वाली दश नदियाँ ख- , , , , उत्तर में रक्तावती में , , ७१८ क- जम्बूद्वीप के भरत में दश राजधानियाँ ख- इन राजधानियों में दीक्षित होनेवाले दश राजा ७१६ जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत का उद्वेध (गहराई) ,, , , के मूल का विष्कम्भ-चौड़ाई ,, ,, , , मध्यभाग का विष्कम्भ " , ,, की ऊंचाई ७२० क- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत के मध्यभाग में आठ रुचक प्रदेश ख- इन रुचक प्रदेशों से दश दिशाओं की उत्पत्ति ग- दश दिशाओं के नाम घ- लवण समुद्र का गोतीर्थ विरहित क्षेत्र " " , उदक माल , के पाताल कलशों का उद्वेध " , , , , ,, विष्कम्भ " , , , , ,, बाहल्य ,, ,, क्षुद्रपाताल कलशों का,, उद्वेध-विष्कम्भ और बाहल्य ७२१ क- धातकी खंड द्वीप के मेरुपर्वत का उद्वेध और विष्कम्भ ख- पुष्कर वर द्वीपार्ध के ,, , " Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १६६ श्रु०१, अ०१०, उ०१ सूत्र ७३५. ७२२ सर्व वृत्त वैताढ्य पर्वतों की ऊँचाई और विष्कम्भ ७२३ जम्बूद्वीप के दश क्षेत्र ७२४ मानुषोत्तर पर्वत के मूल का विष्कम्भ ७२५ क- सर्व अंजनग पर्वतों की ऊंचाई, संस्थान और विष्कम्भ ख- सर्व दधिमुख पर्वतों को ऊंचाई और विष्कम्भ ग- सर्व रतिकर ,, , , , ,, ७२६ क- रुचक वर पर्वत के मूल का और ऊपर का विष्कम्भ ख- कुंडल ,, , , , , " " " ७२७ दश प्रकार का द्रव्यानुयोग ७२८ सर्व इन्द्रों और लोकपालों के उत्पातपर्वतों का परिमाण ७२६ क- बादर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट अवगाहना ख- जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की , ग- उरपरिसर्प , , , " ७३० भ० संभवनाथ और भ० अभिनन्दन का अन्तर ७३१ दश प्रकार का अनंत ७३२ उत्पाद पूर्व की दस वस्तु अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व की दश चूलवस्तु ७३३ क- दश प्रकार की प्रतिसेवना ख- आलोचना के दश दोष ग- दश गुण युक्त श्रमण आत्मदोषों की आलोचना कर सकता है घ. दश प्रकार का प्रायश्चित्त दश प्रकार का मिथ्यात्व भ० चन्द्र प्रभ का पूर्णायु और गति भ० नमि नाथ , , " " भ० धर्म नाथ , " " " Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्र०१, अ०१०, उ०१ सूत्र ७५२ १६७ स्थानांग-सूची पुरुषसिंह वासुदेव , भ० नेमिनाथ की ऊंचाई, और आयु कृष्ण वासुदेव की ७३६ क- दश भवनवासी देव ख- भवनवासी देवों के चैत्यवृक्ष दश प्रकार का सुख ७३८ क. , , , उपघात (दोष) की विशोधि का संक्लेश , , , बल ७३७ < W ७४१ " , " सत्य ॥ मृषा असत्यामृषा ७४२ दृष्टिवाद के दश नाम क- दश प्रकार के शास्त्र ख- " " " दोष विशेष ७४४ शुद्ध वचन " " का ७४५ का दान " " की गति ,, , ७४६ के मंड ७४७ की संख्या ___ " " ७४८ के प्रत्याख्यान " " ७४९ की समाचारी ७५० भगवान महावीर के दश स्वप्न ७५१ दश प्रकार का सम्यग्दर्शन ७५२ दश संज्ञा Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची १६८ . श्रु०१, अ०१०, उ०१ सू० ७५८: ७५३ दश प्रकार की नरक वेदना ७५४ क- छद्मस्थ दश पदार्थों को पूर्णरूप से नहीं जानता ख- सर्वज्ञ " " " " "जानता है ७५५ क- दश-दशा (आगमों के नाम) ख- कर्म विपाक दशा के दश अध्ययन ग- उपासक " घ. अन्तकृत ङ- अनुत्तरोपपातिक च- आचार दशा छ- प्रश्नव्याकरण दशा ज- बंध झ- द्विगृद्धि अ- दीर्घ ट- संक्षेपित ७५६ उत्सर्पिणी काल का परिमाण अवसर्पिणी " " " ७५७ क- चौवीस दण्डकों में-अनंतरोपपन्नक आदि दश प्रकार ख- पंकप्रभा के नरकावास ग- रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति घ. पंकप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति ङ- धूमप्रभा में जघन्य स्थिति च- असुर कुमारों आदि भवनवासियों की जघन्य स्थिति छ- बादर वनस्पति काय की उत्कृष्ट स्थिति ज- व्यन्तर देवों की जघन्य स्थिति झ- ब्रह्मलोक कल्प में उत्कृष्ट स्थिति ब- लांतक कल्प में जघन्य स्थिति ७५८ आत्महितकारी शुभकर्म बंध के दश कारण Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची श्रु०१, अ०१० उ०१ सू०७७२ १९६ ७५६ दश प्रकार का आशंसा (कामना) प्रयोग ७६१ ॥ " के स्थविर ७६२ " " " पत्र ७६३ केवली (सर्वज्ञ) के दश सर्वोत्कृष्ट ७६४ क- समय क्षेत्र में दश कुरुक्षेत्र ख- इनमें दश महा द्रुम ग- इनपर रहनेवाले दश महद्धिक देव और उनकी स्थिति ७६५ क- सुकाल के दश लक्षण ख- दुष्काल" सुसम सुसमा नाम के प्रथम आरा में भोगोपभोग की सामग्री देनेवाले दश कल्प वृक्ष ७६७ क- जम्बुद्वीप के भरत में-अतीत उत्सर्पिणी में दश कुलकर ख- " " " आगामी " " " " ७६८ क- जम्बुद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व में सीतानदी के दोनों किनारे दश वक्षस्कार पर्वत " " " "पश्चिम में " ख- धातकी खण्ड के पूर्वार्ध में "क" के समान र- " " " पश्चिमार्ध में " " " घ- पुष्करवर द्वीपार्ध के पूर्वार्ध में " " " " " " पश्चिमार्ध में" " " क- इन्द्राधिष्ठित दश कल्प ख- दश इन्द्रों के दश पारियानिक विमान ७७० दश दशमिका भिक्षु प्रतिमा का परिमाण ७७१ क- दश प्रकार के संसारी जीव ख-ग-" " " सर्व " ७७२ शतायु पुरुष की दश दशा ७६१ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थानांग-सूची २०० श्रु०१, अ०१०, उ०१ सूत्र ७८३ ७७७ ७७८ ७७३ दश प्रकार की तृणवनस्पतिकाय ७७४ क- विद्याधर श्रेणियों का विष्कम्भ ख- अभियोग " " " ७७५ ग्रैवेयक विमानों की ऊंचाई ७७६ तेजोलेश्या से भष्म होने के दश प्रसंग दश आश्चर्य रत्नप्रभा के रत्न काण्ड का बाहल्य " " वज़ " " " शेष १४ काण्डों का बाहल्य रत्न काण्ड के समान ७७६ क- सर्वद्वीप समुद्रों का उद्वेध ख- सर्व महा द्रहों " " ... ग- '' कुण्डों " " घ- सीता-सीतोदा नदियों के मुख मूल का उद्वेध ७८० क- चन्द्र के बाह्य मण्डल से दशवें चन्द्र मण्डल में भ्रमण करने वाला नक्षत्र ख- " आभ्यंतर " " " " " , " ७८१ ज्ञान वृद्धि करने वाले दश नक्षत्र ७८२ क- स्थलचर तिर्यंच पंचेन्द्रिय की कुल कोटी ख- उरपरिसर्प " " " " " ७८३ क- दश स्थानों में पापकर्मों के पुद्गलों का त्रैकालिक चयन " " " " उपचयन बंध उदीरणा , , , वेदना निर्जरा ख- दश प्रदेशी स्कंध दश प्रदेशावगाढ पुद्गल दश समय की स्थितिवाले पुद्गल दश गुण काले पुद्गल-यावत्-दश गुण रुखे पुद्गल Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतस्कन्ध उद्देशक १ उपलब्ध पाठ १६६७ श्लोक प्रमाण I ३ सागरदत्त ४ अशोक ललित ५ वराह ६ धर्मसेन ७ अपराजित ८ राजललित ह गद्य सूत्र १६० पद्य सूत्र ६० नव बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव, परिचयाङ्कन पत्र बलदेव- पूर्वं वासुदेव-पूर्व पूर्वभव निदानभूमि निदान हेतु बलदेव भव भव धर्माचार्य १ विश्वनंदी २ सुबन्धु बासुदेव ॥ णमो गणहराणं ॥ द्रव्यानुयोग प्रधान समवायाङ्ग त्रिपृष्ट द्विपृष्ट स्वयंभू पुरुषोत्तम पुरुषसिंह पुरुषपुडरीक दत्त नारायण कृष्ण 9 विश्वभूमि संभूत पर्वतक धनदत्त समुद्रदत्त ऋषिपाल कृष्ण प्रियमित्र ललितमित्र पुनवसु गंगदत्त बल० वासु०पिता प्रजापति ब्रह्मा सोम रुद्र शिव महाशिव अग्निशिख दशरथ वसुदेव सुभद्र सुदर्शन श्रेयांस गंगदत्त आशाकर अध्ययन १ पद समुद्र द्रमसेन मथुरा कनकवस्तु श्रावस्ती पोतन १ लाख ४४ हजार राजगृह काकेंद्री कैशांबी मिथिला हस्तिनापुर बलदेव-माता भद्रा सुभद्रा सुप्रभा सुदर्शना विजय बैजयंती जयंती अपराजिता देहिणी गाय द्यत संग्राम स्त्री अचल विजय भद्र सुप्रभु रंग-पराजय सुदर्शन भार्यानुराग आनंद गोष्ठी नंदन परऋद्धि पद्म माता राम बासुदेव - माता प्रतिवासुदेव मृगावती अश्वग्रीव उमा पृथ्वी सीता अमृता लक्ष्मीमति बलि शेषमति कैकेयी देवकी तारक मेरक मधुकैटभ निशुभ प्रह्लाद रावण जरासंघ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायाङ्ग सूत्र संख्या १ ४३ । २ २३ । ३ २४ । ४ १८ । ५ २२ ।। ६ १७ । ७ २३ । ८ १८ । ६ २० । १० २५ । ११ १६ । १२ २० । १३ १७ । १४ १८ । १५ १६ । १६ १६ । १७ २१ । १८ १८ । १६ १५ । २० १७ । २१ १४ । २२ १७ । २३ १३ । २४ १५ । २५ १८ । २६ ११ । २७ १५ । २८ १४ । २६ १८ । ३० १६ । ३१ १४ । ३२ २४ । ३३ १४ । ३४ ६ । ३५ ६ । ३६ ४ । ३७ ५ । ३८ ४ । ३६ ४ । ४० ८ । ४१ ३ । ४२ १० । ४३ ५ । ४४ ४ । ४५ ४६ ३ । ४७ २ । ४८ ३ । ४६ ३ । ५० ५१ ५ । ५२ ५। ५३ ४ । ५४ ४ । ५५ ६ । ५६ २ । ५७ ५ । ५८ ६ । ५६ ३ । ६० ६ । ६१ ४ । ६२ ५ । ६३ ४ । ६४ ६ । ६५ ३ । ६६ ६ । ६७ ४ । ६८ ५। ६६ ३ । ७० ५। ४ । ७२ ८ । ७३ २ । ७४ ४ । ७५ ३ । ७६ २ । ७७ ४ । ७८ ४ । ७६ ४ । ८० ७ । ८१ ३ । ८२ ४ । ८३ ५। ८४ १७ । ८५ ४ । ३ । ८७ ७ । ८८ ६ । ८९ ४ । ६० ५ । ६१ ४ । ६२ ४ । ६३ ३ । १४ २ । ६५ ५ । ६६ ५। ६७ ४ । ६८ ७ । ६६ ७ । १०० ८ । २०२ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०३ १०१ १५० ३ । १०२ २०० ३ । १०३ २५० २। १०४ ३०० ५ । १०५ ३५० २ । १०६ ४०० ५ । १०७ ४५० २ । १०८ ५०० ८ । १०६ ६०० । ११० ७०० ६ । १११ ८०० ५। ११२ ६०० ७ । ११३ १००० १० । ११४ ११०० २ । ११५ २००० १ । ११६ ३००० १ । ११७ ४००० १ । ११८ ५००० १ । ११६ ६००० १ । १२० ७००० १ । १२१ ८००० १ । १२२ १००० १ । १२३ १०००० १ । १२४ एक लाख में सूत्र १ । १२५ दो लाख में १२६ तीन लाख में १ । १२७ चार लाख में १२८ पाँच लाख में १ । १२६ छह लाख में १३० सात लाख में १ । १३१ आठ लाख में १ । १३२ नव लाख में १ । १३३ दस लाख में १ । १३४ एक करोड़ में सूत्र १ । १३५ एक करोड़ा करोड़ में १ । सूत्र १३६ से १४८ पर्यन्त एक उप सूत्र । १४६ वें सूत्र में ५ उप सूत्र १५० ५। १५१ १ । १५२ १ । १५३ ४ । १५४ ४ । १५५ २ । १५६ १ । १५७ २१ । १५८ १७ । १५६ ३६ । १६० १ । कुल योग-समवाय १३५ । सूत्र १०४६ ग्यारह सौ पैंतीस ११३५ r an ora तहमेयं भंते ! निग्गंथं पावयणं अवितहमेयं भंते ! निग्गंथं पावयणं असंदिद्धमेयं भंते ! निग्गंथं पावयणं Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G Py समवायांग विषय-सूची प्रथम समवाय १ आत्मा २ अनात्मा ३ दण्ड ४ अदण्ड ५ क्रिया ६ अक्रिया लोक ८ अलोक धर्म १० अधर्म ११ पुण्य १२ पाप १३ बंध १४ मोक्ष १५ आश्रव १६ संवर १७ वेदना १८ निर्जरा १ जम्बूद्वीप की लम्बाई-चौड़ाई (आयाम-विष्कम्भ) २ अप्रतिष्ठान नरकावास की लम्बाई चौड़ाई ३ पालक विमान की लम्बाई-चौड़ाई ४ सर्वार्थसिद्ध विमान की लम्बाई-चौड़ाई १ आर्द्रा नक्षत्र का तारा २ चित्रा नक्षत्र का तारा ३ स्वाति नक्षत्र का तारा १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति . २ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की उत्कृष्ट स्थिति ३ शर्कराप्रभा के कुछ नैरयिकों की जघन्य स्थिति ४ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ५ कुछ असुरकुमारों की उत्कृष्ट स्थिति ६ नाग कुमारों आदि की स्थिति ७ असंख्य वर्षों की आयुवाले संज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रिय की स्थिति Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय २ २०५ ८ असंख्य वर्षों की आयुवाले मनुष्यों की स्थिति 2 व्यंतर देवों की उत्कृष्ट स्थिति १० ज्योतिषी देवों की उत्कृष्ट स्थिति ११ सौधर्मकल्प के देवों की जघन्य स्थिति १२ सौधर्म कल्प के देवों की स्थिति १३ ईशान कल्प के देवों की जघन्य स्थिति १४ ईशान कल्प के देवों की स्थिति १५ सागर आदि देवों की स्थिति १ सागर आदि देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ सागर आदि देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की एक भवसे मुक्ति सूत्रसंख्या ४३ द्वितीय समवाय १ दंड २ राशि ३ बंधन १ पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के तारे २ उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के तारे ३ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के तारे ४ उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के तारे १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ शर्कराप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ४ नागकुमार आदि की उत्कृष्ट स्थिति समवायांग-सूची Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ समवायांग-सूची समवाय ३ ५ असंख्य वर्ष की आयुवाले कुछ तिर्यच पंचेन्द्रियों की स्थिति ६ असंख्य वर्ष की आयुवाले कुछ संज्ञी मनुष्यों की स्थिति ७ सौधर्म कल्प के कुछ देवों की स्थिति ८ ईशान कल्प के देवों की स्थिति ६ सौधर्म कल्प के कुछ देवों की उत्कृष्ट स्थिति १० ईशान कल्प के कुछ देवों को उत्कृष्ट स्थिति ११ सनत्कुमार कल्प के देवों की जघन्य स्थिति १२ मन्हेन्द्र कल्प के देवों की जघन्य स्थिति १३ शुभ आदि विमानवासी देवों की उत्कृष्ट स्थिति १ शुभ आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ शुभादि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की दो भव से मुक्ति सूत्र संख्या २३ ततीय समवाय २ गुप्ति ३ शल्य ४ गर्व ५ विराधना १ मृगशिरा नक्षत्र के तारे २ पुष्य नक्षत्र के तारे ३ ज्येष्ठा नक्षत्र के तारे ४ अभिजित नक्षत्र के तारे ५ श्रवण नक्षत्र के तारे Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ४ २०७ समवायांग-सूची ६ अश्विनी नक्षत्र के तारे ७ भरिणी नक्षत्र के तारे १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ शर्कराप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ बालुका प्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ४ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ५ असंख्य वर्ष की आयुवाले संज्ञी तिर्यच पंचेन्द्रियों की स्थिति ६ असंख्य वर्ष की आयुवाले संज्ञी मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति ७ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ८ सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति ९ आभंकर आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ आभंकर आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ आभंकर आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की तीन भव से मुक्ति सूत्र संख्या २४ " चतुर्थ समवाय १ कषाय २ ध्यान ३ विकथा ४ संज्ञा ५ बंध ६ योजन का परिमाण १ अनुराधा नक्षत्र के तारे Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २०८ समवाय ५.. २ पूर्वाषाढा नक्षत्र के तारे ३ उत्तराषाढा नक्षत्र के तारे १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ बालुकाप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प के देवों की स्थिति ६ कृष्टि आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ कृष्ठि आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ कृष्टि आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भव सिद्धिकों की चार भव से मुक्ति सूत्र संख्या 15 पंचम समवाय १ क्रिया २ महाव्रत ३ कामगुण ४ आश्रव द्वार ५ संवर द्वार ६ निर्जरा स्थान ७ समिति ८ अस्तिकाय १ रोहिणी नक्षत्र के तारे २ पुनर्वसु नक्षत्र के तारे ३ हस्त नक्षत्र के तारे ४ विशाखा नक्षत्र के तारे Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ६ २०६ समवायांग-सूची ५ धनिष्ठा नक्षत्र के तारे १ वालुका प्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के देवों की स्थिति ५ सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प के देवों की स्थिति ६ वात आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ वात आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ वात आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की पांच भव से मुक्ति सूत्र संख्या २२ षष्ठ समवाय १ लेश्या २ जीव-निकाय ३ बाह्य तप ४ आभ्यन्तर तप ५ छाद्मस्थिक समुद्घात ६ अर्थावग्रह १ कृतिका नक्षत्र के तारे २ अश्लेषा नक्षत्र के तारे १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ बालुकाप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुरकुमारों की स्थिति Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २१० समवाय ७ ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ स्वयंभू आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ स्वयंभू अदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ स्वयंभू आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भबसिद्धिकों की छह भव से मुक्ति सूत्र संख्या १७ सप्तम समवाय १ भयस्थान २ समुद्घात ३ भ० महावीर की ऊँचाई ४ जम्बूद्वीप के वर्षधर पर्वत ५ जम्बूद्वीप के वर्ष-क्षेत्र ६ क्षीणमोह गुणस्थान में वेदने योग्य कर्म प्रकृतियाँ १ मघा नक्षत्र के तारे २ पूर्व दिशा के द्वार वाले नक्षत्र ३ दक्षिण दिशा के द्वार वाले नक्षत्र ४ पश्चिमदिशा के द्वार वाले नक्षत्र उत्तरदिशा के द्वार वाले नक्षत्र १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ वालुकाप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ पंक प्रभा के कुछ नैरयिकों को स्थिति ४ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ५ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची “समवाय ८ २११ ६ सनत्कुमार कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति ७ माहेन्द्र कल्प के कुछ देवों की उत्कृष्ट स्थिति ८ ब्रह्मलोक कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ सम आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ सम आदि विमानवासी देवों क ाश्वासोच्छ्वास काल १ समआदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की सान भव से मुक्ति सूत्रसंख्या २३ अष्टम समवाय १ मदस्थान २ प्रवचन माता ३ व्यंतर देवों के चैत्यवृक्षों की ऊंचाई ४ जम्बूद्वीप के सुदर्शन वृक्ष की ऊंचाई ५ कूट शाल्मली-गरुड़ावास की ऊंचाई ६ जम्बूद्वीप-जगती की ऊंचाई ७ केवली समुद्घात के समय ८ भ० पार्श्वनाथ के गण ६ भ० पार्श्वनाथ के गणधर १० चन्द्र के साथ योग १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ पंकप्रभा के कुछ नै रयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ ब्रह्मलोक कल्प के कुछ देवों की स्थिति Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ समवाय समवायांग-सूची ६ अचि आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ अचि आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ अचि आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भव सिद्धिकों की आठ भव से मुक्ति सूत्र संख्या १६ नवम समवाय १ ब्रह्मचर्य गुप्ति २ ब्रह्मचर्य अगुप्ति ३ आचाराङ्ग-ब्रह्मचर्य श्रुतस्कंध के अध्ययन ४ भ० पार्श्वनाथ की ऊंचाई ५ चन्द्र के साथ अभिजित नक्षत्र का योगकाल ६ उत्तरदिशा से चन्द्र के साथ योग करने वाले ७ रत्नप्रभा के ऊपरी समभूभाग से ताराओं की ऊंचाई . १ लवण समुद्र से जम्बूद्वीप में प्रवेश करने वाले मत्स्यों की अवगाहना १ विजय द्वार के एक-एक पार्श्व में होने वाले भूमिधर १ व्यंतर देवों की सुधर्मा सभा की ऊंचाई १ दर्शनावरणीय की उत्तर प्रकृतियाँ १ रत्नप्रभा के कुछ नै रयिकों की स्थिति २ पंकप्रभा के कुछ ने रयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के देवों की स्थिति Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय १० २१३ समवायांग-सूची ५ ब्रह्मलोक कल्प के देवों की स्थिति ६ पद्म आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ पद्म आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छवास काल १ पद्म आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भव सिद्धिकों की नव भव से मुक्ति सूत्र संख्या २० दशम समवाय १ श्रमण-धर्म २ चित्तसमाधि स्थान ३ मेरुपर्वत के मूल का विष्कम्भ ४ भ० अरिष्टनेमी की ऊंचाई ५ कृष्ण वासुदेव की ऊंचाई ६ राम बलदेव की ऊंचाई १ ज्ञानवृद्धि करने वाले नक्षत्र १ अकर्मभूमि मनुष्यों के कल्प-वृक्ष १ रत्नप्रभा के नैरयिकों की जघन्य स्थिति २ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ पंकप्रभा के नरकावास ४ पंकप्रभा के कुछ नै रयिकों की उत्कृष्ट स्थिति ५ धूमप्रभा के नै रयिकों की जघन्य स्थिति ६ कुछ असुर कुमारों की जघन्य स्थिति ७ नाग कुमार आदि कुछ भवनवासी देवों की जघन्य स्थिति ८ कुछ असुर कुमारों की स्थिति Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग सूची २१४ ६ बादर वनस्पतिकाय की उत्कृष्ट स्थिति १० व्यन्तर देवों की जघन्य स्थिति ११ सौधर्म - ईशानकल्प के देवो की स्थिति १२ ब्रह्मलोक कल्प के देवों की स्थिति १३ लांतक कल्प के देवों की स्थिति १४ घोस आदि विमानवासी देवों की स्थिति 1 १ घोस आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ घोस आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भव- सिद्धिकों की दशा भव से मुक्ति सूत्र संख्या २५ इग्यारवां समवाय १ उपासक पडिमा २ लोकान्त से ज्योतिष चक्र का अन्तर ३ जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से ज्योतिष चक्र का अन्तर ४ भ० महावीर के गणधर ५ मूल नक्षत्र के तारे ६ नीचे के तीन ग्रैवेयक ७ मेरु पर्वत के शिखर का विष्कम्भ १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ लांतक कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ ब्रह्म आदि विमानवासी देवों की स्थिति समवाय ११ Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय १२ बारहवां समवाय २१५ १ ब्रह्म आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ ब्रह्म आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की इग्यारह भव से मुक्ति सूत्र संख्या १६ १ भिक्षु प्रतिमा २ श्रमणों के व्यवहार-संभोग ३ बंदना के आवर्त ४ विजया राजधानी का विष्कम्भ ५ राम बलदेव का पूर्णायु ६ मेरु पर्वत की चूलिका का विष्कम्भ ७ जम्बूद्वीप-जगती के मूल का विष्कम्भ ८ जघन्य रात्रि के मुहूर्त ६ जघन्य दिन के मुहूर्त १० सर्वार्थसिद्ध विमान से ईषत्प्राग्भारा का अन्तर ११ ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के नाम १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूम्रप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ लांतक कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ महेन्द्र आदि विमानवासी देवों की स्थिति समवायांग सूची १ महेन्द्र आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ महेन्द्र आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय १३ समवायांग-सूची २१६ १ कुछ भवसिद्धिकों की बारह भव से मुक्ति सूत्र संख्या २० तेरहवां समवाय १ क्रियास्थान २ सौधर्म-ईशान कल्प के विमान प्रस्तट ३ सौधर्मावतंसक विमान का आयाम-विष्कम्भ ४ ईशानावतंसक विमान का आयाम-विष्कम्भ ५ जलचर तिर्यंच पंचेन्द्रियों की कुलकोटी ६ प्राणायु पूर्व के वस्तु ७ संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रियों के योग ८ सूर्यमण्डल का परिमाण १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति । ४ सौधर्म-ईशान कल्प के देवों की स्थिति ५ लांतक कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ वज्र आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ वज्र आदि विमानवासी देवों का श्वासोछ्वास काल १ वज्र आदि विनानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की तेरह भव से मुक्ति सूत्र संख्या १७ चौदहवां समवाय १ भूतग्राम २ पूर्व ३ अग्रायणी पूर्व के वस्तु Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - समवाय १५ २१७ ४ भ० महावीर की उत्कृष्ट श्रमण संपदा ५ गुणस्थान ६ भरत और ऐरवत क्षेत्र की जीवा का आयाम ७ चक्रवर्ती के रत्न जम्बूद्वीप के लवणसमुद्र में मिलने वाली नदियाँ ८ १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म - ईशानकल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ लांतक कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति ६ महाशुक्र कल्प के देवों की जघन्य स्थिति ७ श्रीकांत आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ श्रीकांत आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ श्रीकांत आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की चौदह भवों से मुक्ति सूत्र संख्या १७ पन्द्रहवां समवाय समवायांग सूची १ परमाधार्मिक देव २ भ० नमिनाथ की ऊँचाई ३ कृष्णपक्ष में ध्रुवराहु द्वारा प्रतिदिन चन्द्रकला का आवरण ४ शुक्लपक्ष में ध्रुवराहु द्वारा प्रतिदिन चन्द्रकला का अनावरण ५ शतभिषादि छह नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग काल ६ चैत्र तथा आश्विन में दिन के मुहूर्त `७ चैत्र तथा आश्विन में रात्रि के मुहूर्त Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ २१८ समवाय १६. समवायांग-सूची ८ विद्यानुप्रवाद के वस्तु ६ संज्ञी मनुष्य में योग १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ महाशुक्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ नंद आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ नंद आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ नंद आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की पन्द्रह भव से मुक्ति सूत्र संख्या १८ सोलहवां समवाय १ सूत्रकृतांग सोलहवें अध्ययन की गाथायें २ कषाय के भेद ३ मेरु पर्वत के नाम ४ भ० पार्श्वनाथ की उत्कृष्ट श्रमण संपदा ५ आत्मप्रवाद पूर्व के वस्तु ६ चमरेन्द्र और बलेन्द्र के अवतारिकालयन का आयाम-विष्कम्भ ७ लवरण समुद्र के मध्य में जल की वृद्धि १ रत्नप्रभा के कुछ नरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय १७ २१६ ४ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ महाशुक्र कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ आवर्त आदि विमानवासी देवों की उत्कृष्ट स्थिति १ आवर्त आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छवास काल १ आवर्त आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की सोलह भव से मुक्ति सूत्र संख्या १६ सत्रहवां समवाय १ असंयम २ संयम ३ मानुषोत्तर पर्वत की ऊँचाई ४ सर्व वेलंधर अनुवेलंधर नागराजों के आवास पर्वतों की ऊँचाई ५ लवण समुद्र के मध्यभाग में पानी की गहराई ६ चारण मुनियों की तिरछी गति ७ चमरेन्द्र के तिगिच्छ कूट उत्पात पर्वत की ऊँचाई ८ बलेन्द्र के रुचकेन्द्र उत्पात पर्वत की ऊँचाई 8 मरण के प्रकार १० सूक्ष्म सम्पराय गुणस्थान में कर्म प्रकृतियों का बंध १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों स्थिति ३ तमः प्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ४ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ५ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ महाशुक्र कल्प के कुछ देवों की उत्कृष्ट स्थिति समवायांग सूची Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -समवायांग-सूची २२० समवाय १८ ७ सहस्रार कल्प के कुछ देवों की जघन्य स्थिति ८ सामान आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ सामान आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छवास काल १ सामान आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की सत्रह भव से मुक्ति सूत्र संख्या २१ अट्ठारहवां समवाय १ ब्रह्मचर्य २ भ० अरिष्टनेमी की उत्कृष्ट श्रमण सम्पदा ३ सर्व साधुओं के आचार स्थान ४ चूलिका सहित आचाराङ्ग के पद ५ ब्राह्मी लिपि के प्रकार ६ अस्ति-नास्ति प्रवाद के वस्तु ७ धूमप्रभा का बाहल्य-मोटाई ८ पोषमास में रात्रि के मुहूर्त ६ अषाढमास में दिन में मूहर्त १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ धूमप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति '४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ सहस्त्रार कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति ६ आनत कल्प के देवों की जघन्य स्थिति ७ काल आदि विमानवासी देवों की स्थिति Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय १६ २२१ १ काल आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ काल आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की अट्ठारह भव से मुक्ति सूत्र संख्या २१ उन्नीसवां समवाय १ ज्ञाताधर्मकथा - - प्रथम श्रुतस्कंध के अध्ययन २ जम्बूद्वीप में सूर्य का ताप क्षेत्र ३ शुक्र महाग्रह के साथ भ्रमण करनेवाले नक्षत्र ४ एक कला का परिमाण ५ राज्यपद पाने के पश्चात् प्रव्रज्या लेनेवाले तीर्थंकर १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमः प्रभा के कुछ नरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ आनत कल्प के कुछ देवों की उत्कृष्ट स्थिति ६ प्राणत कल्प के कुछ देवों की जघन्य स्थिति ७ आनत आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ आनत आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ आनत आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की उन्नीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १५ बीसवां समवाय १ असमाधि स्थान समवायांग सूची Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २२२ समवाय २१ २ भ० मुनिसुव्रत की ऊंचाई ३ सर्व घनोदधि का बाहल्य ४ प्राणत देवेन्द्र के सामानिक देव ५ नपुंसक देवनीय की बंधस्थिति ६ प्रत्याख्यान पूर्व के वस्तु ७ उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी-कालचक्र---का परिमाण १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमःप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ प्राणत कल्प के कुछ देवों की उत्कृष्ट स्थिति ६ आरपण कल्प के कुछ देवों की जघन्य स्थिति ७ सात आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ सात आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ सात आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की बीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १७ इक्कीसवां समवाय १ सबल दोष २ अष्टम गुणस्थान में कर्मप्रकृतियों की सत्ता ३ अवसर्पिणी के पांचवें छ8 आरे के वर्षों का परिमाण ४ उत्सर्पिणी के पहले और दूसरे आरे के वर्षों का परिमाण .१ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमःप्रभा के कुछ नरयिकों की स्थिति Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय २२ ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ आरण कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ अच्युत कल्प के कुछ देवों की स्थिति ७ श्रीवत्स आदि विमानवासी देवों की स्थिति २२३ बावीसवां समवाय १ श्री वत्स आदि विमानवासी देवों का स्वासोच्छ्वास काल १ श्री वत्स आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भव सिद्धिकों की इक्कीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १४ १ परिषह २ दृष्टिवाद में स्वसिद्धान्त के सूत्र ३ दृष्टिवाद में आजीविक सिद्धान्त के सूत्र ४ दृष्टिवाद में त्रैराशिक मत के सूत्र ५ दृष्टिवाद में नय चतुष्क के सूत्र ६ पुद्गल परिणाम के प्रकार समवायांग सूची रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमः प्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ तमस्तमप्रभा के कुछ नैरयिकों की जघन्य स्थिति ४ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ५ सौधर्म - ईशानकल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ अच्युत कल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति ७ नीचे के तीन ग्रैवेयक विमानों की स्थिति ८ महित आदि विमानवासी देवों की स्थिति १ महित आदि विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २२४ समवाय २३-२४ १ महित आदि विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवद्धिकों की बावीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १७ तेईसवां समवाय १ सूत्र कृतांग-दो श्रुतस्कंधों के अध्ययन २ सूर्योदय के समय केवलज्ञान होने वाले तीर्थकर ३ पूर्वभव में एकादश अङ्गों का अध्ययन करनेवाले इस अवसर्पिणी के तीर्थकर ४ पूर्वभव में मांडलिक राज्य करनेवाले इस अवसर्पिणी के तीर्थकर १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्काय के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ तीन मध्यम प्रैवेयक देवों की स्थिति ६ तीन अधम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट स्थिति १ ग्रैवेयक देवों का श्वासोच्छवास काल १ ग्रैवेयक देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की तेईस भवसे मुक्ति सूत्र संख्या १३ चौवीसवां समवाय १ देवाधिदेव २ लघु हिमालय वर्षधर पर्वत की जीवाका आयाम ३ शिखरी वर्षधर पर्वत की जीवाका आयाम . Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय २५ २२५ ४ इन्द्रवाले देवस्थान ५ सूर्य के उत्तरायण होने पर पौरुषी छाया का परिमाण ६ गंगा नदी के प्रवाह का विस्तार ७ सिन्धु नदी के प्रवाह का विस्तार रक्ता नदी के प्रवाह का विस्तार ९ रक्तवती नदी के प्रवाह का विस्तार १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सोधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ नीचे के तीसरे ग्रैवेयकों की स्थिति ६ नीचे के दूसरे ग्रैवेयकों की स्थिति १ उक्त ग्रैवेयकों का श्वासोच्छ्वास काल १ उक्त ग्रैवेयकों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की चौवीस भवसे मुक्ति सूत्र संख्या १८ पच्चीसवां समवाय १ पाँच महाव्रत की भावना २ भ० मल्लीनाथ की ऊंचाई ३ सर्व महान् वैताढ्य पर्वतों की ऊंचाई और उद्वेध ४ शर्करा प्रभा के नरकावास समवायांग- सूची ५ चूलिका सहित आचारांग के अध्ययन ६ अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि विकलेन्द्रिय में बंधने वाली नाम कर्म की प्रकृतियाँ Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची ७ गंगा नदी के प्रपात का परिमाण सिन्धु नदी के प्रपात का परिमाण रक्ता नदी के प्रपात का परिमाण रक्तवती नदी के प्रपात का परिमाण ६ लोकबिन्दुसार पूर्व के वस्तु २२६ १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ मध्यम प्रथम ग्रैवेयकों की स्थिति १ मध्यम प्रथम ग्रैवेयकों का श्वासोच्छ्वास काल १ मध्यम प्रथम ग्रैवेयकों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की पच्चीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १७ छवीसवां समवाय १ दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प और व्यवहार के उद्देशक २ अभव सिद्धिक जीवों के सत्ता में मोहनीय की कर्म प्रकृतियां १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ मध्यम दूसरे ग्रैवेयकों की स्थिति ६ मध्यम प्रथम ग्रैवेयकों की स्थिति १ उक्त ग्रैवेयकों का श्वासोच्छवास काल समवाय २६ Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय २७ २८ २२७ समवायांग-सूची १ उक्त प्रैवेयकों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की छव्वीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या ३३ सत्तावीसवां समवाय ६ अनगार गुण २ जम्बूद्वीप में नक्षत्रों का व्यवहार ३ नक्षत्रमास के दिन-रात ४ सौधर्म-ईशान कल्प के विमानों का बाहल्य ५ वेदक सम्यक्त्व के बंध से विरत जीव के सत्ता में मोहनीय की उत्तर प्रकृतियाँ ६ श्रावण शुक्ला सप्तमी को पौरुषी का प्रमाण १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों का स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ मध्यम तीसरे ग्रैवेयक देवों की स्थिति ६ मध्यम दूसरे ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट स्थिति -- - - - १ उक्त ग्रंवेयक देवों का श्वासोच्छवास काल १ उक्त ग्रेवेयक देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की सत्तावीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या ११ अट्ठावीसवां समवाय १ आचार प्रकल्प २ भवसिद्धिक जीवों के सत्ता में मोहनीय की प्रकृतियाँ Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग सूची ३ ईशान कल्प के विमान ४ देवगति बांधने वाले जीव के नामकर्म की उत्तर प्रकृतियों का बंध १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुरकुमारों की स्थिति ४ सौधर्म - ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ ऊपर के प्रथम ग्रैवेयकों की स्थिति ६ मध्यम दूसरे ग्रैवेयकों की स्थिति २२८ १ उक्त ग्रैवेयकों का श्वासोच्छ्वास काल १ उक्त ग्रैवेयकों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की अट्ठावीस भवों से मुक्ति सूत्र संख्या १३ उनत्तीसवां समवाय १ पापश्रुत २ आषाढ मास के दिन-रात ३ भाद्रपद मास के दिन-रात ४ कार्तिक मास के दिन-रात ५ पौष मास के दिन-रात ६ फाल्गुन मास के दिन-रात ७ वैशाख मास के दिन-रात पचन्द्र दिन के मुहूर्त ९ सम्यग्दृष्टि जीव के विमान वासी देवों में उत्पन्न होने से पूर्व तीर्थंकर नामकर्म सहित नामकर्म की प्रकृतियों का नियमा बंधन १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों को स्थिति समवाय २६ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ३० २२६ समवायांग-सूची २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के देवों की स्थिति ५ मध्यम ऊपर के ग्रेवेयक देवों की स्थिति ६ ऊपर के प्रथम ग्रैवेयक देवों की उत्कृष्ट स्थिति १ उक्त अवेयक देवों का श्वासोच्छावास काल १ उक्त ग्रैवेयक देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की उनत्तीस भवों से मुक्ति सूत्र संख्या १६ तीसवां समवाय १ मोहनीय स्थान २ स्थविर मंडित पुत्र का श्रमण पर्याय ३ एक अहोरात्र के मुहर्त ४ तीस मुहूर्तों के नाम ५ भ० अरहनाथ की ऊंचाई ६ सहस्रार देवेन्द्र के सामानिक देव ७ भ० पाश्वेनाथ का गृहवास ८ भ० महावीर का गृहवास ६ रत्नप्रभा के नरकावास १ रत्नप्रभा के कुछ नै रयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर देवों की स्थिति ४ ऊपर के तृतीय गवेयक देवों की स्थिति ५ ऊपर के द्वितीय ग्रैवेयक देवों की स्थिति ६ रत्नप्रभा के नरकावास Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ३१,३२ समवायांग-सूची २३० १ उक्त प्रैवेयक देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ उक्त ग्रैवेयक देवों का आहरेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की तीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १८ . इकतीसवां समवाय १ सिद्धों के गुण २ मेरु पर्वत के मूल का परिक्षेप ३ बाह्य मंडल से सूर्यदर्शन की दूरी का प्रमाण ४ अभिवधितमास के दिन-रात ५ आदित्यमास के दिन-रात १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ चार अनुत्तर विमानवासी देवों की स्थिति ६ ऊपर के तृतीय ग्रैवेयक विमानों को स्थिति १ उक्त अवेयक देवों का श्वासोच्छवास काल १ उक्त ग्रंवेयक देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की ईकतीस भवों से मुक्ति सूत्र संख्या १४ बत्तीसवां समवाय १ योगसंग्रह २ देवेन्द्र ३ भ० कुंथुनाथ की केवली परिषद् भ० अरहनाथ की केवली परिषद् Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २३१ समवाय ३३ ४ सौधर्मकल्प के विमान ५ रेवती नक्षत्र के तारे ६ नाट्य के विविध भेद له شعر १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ४ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ५ चार अनुत्तर विमानवासी देवों की स्थिति १ चार अनुत्तर विमानवासी देवों का श्वासोच्छ्वास काल १ चार अनुत्तर विमानवासी देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की बत्तीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १४ तेतीसवां समवाय १ आशातना २ चमरचंचा राजधानी के बाहर दोनों ओर के भूमिघर ३ महाविदेह का विष्कम्भ ४ बाह्य तृतीय मंडल से सूर्यदर्शन की दूरी का अन्तर १ रत्नप्रभा के कुछ नैरयिकों की स्थिति २ तमस्तमा के कुछ नैरयिकों की स्थिति ३ अप्रतिष्ठान नरकावास के नैरयिकों की स्थिति ४ कुछ असुर कुमारों की स्थिति ५ सौधर्म-ईशान कल्प के कुछ देवों की स्थिति ६ चार अनुत्तर विमानवासी देवों की उत्कृष्ट स्थिति ७ सर्वार्थसिद्ध विमान के देवों की स्थिति १. सर्वार्थसिद्ध विमान के देवों का श्वासोच्छ्वास काल Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २३२ समवाय ३४-३६ १ सर्वार्थसिद्ध विमान के देवों का आहारेच्छा काल १ कुछ भवसिद्धिकों की तेतीस भव से मुक्ति सूत्र संख्या १४ चौतीसवां समवाय १ बुद्धातिशय २ चक्रवर्ती के विजय ३ जम्बूद्वीप के दीर्घ वैताढय पर्वत ४ जम्बूद्वीप में अधिकतम तीर्थंकर ५ चमरेन्द्र के भवन ६ प्रथम, पंचम, षष्ठ और सप्तम नरक के नरकावास पैंतीसवां समवाय १ सत्य वचनातिशय २ भ० कुंथु नाथ की ऊंचाई ३ भ० अरह नाथ की ऊंचाई ३ दत्त वासुदेव की ऊंचाई ४ नंदन बलदेव की ऊंचाई ५ माणवक स्तंभ के मध्यभाग का परिमाण ६ द्वितीय और पंचम नरक के नरकावास छत्तीसवां समवाय १ उत्तराध्ययन के अध्ययन २ चमरेन्द्र के सुधर्मा सभा की ऊंचाई ३ भ० महावीर की श्रमणी सम्पदा ४ चैत्र और आश्विन में पौरुषी प्रमाण Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • समवाय ३७, ४० २३३ सैंतीसवां समवाय १ भ० कुंथुनाथ के गणधर भ० अरहनाथ के गणधर २ हेमवंत क्षेत्र की जीवा का आयाम हिरण्यवत क्षेत्र की जीवा का आयाम ३ चार अनुत्तर विमानों के प्राकारों की ऊँचाई ४ क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति के प्रथम वर्ग के उद्देशक ५ कार्तिक कृष्णा सप्तमी के दिन पौरुषी प्रमाण अड़तीसवां समवाय १ भ० पार्श्वनाथ की उत्कृष्ट श्रमणी सम्पदा २ हेमवत क्षेत्र की जीवा का धनुपृष्ठ हिरण्यवत क्षेत्र की जीवा का धनुपृष्ठ ३ मेरु पर्वत के द्वितीय कांड की ऊंचाई ४ क्षुद्रिका विमान प्रविभक्ति के द्वितीय वर्ग के उद्देशक उनचालीसवां समवाय १ भ० नमिनाथ के अवधिज्ञानी मुनि २ समय क्षेत्र के कुल पर्वत ३ द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ और सप्तम नरक के नरकावास ४ ज्ञानावरणीय, मोहनीय, गोत्र और आयुकर्म की उत्तर प्रकृतियां चालीसवां समवाय १ भ० अरिष्टनेमी की श्रमणी सम्पदा २ मेरु चुलिका की ऊंचाई ३ भ० शांतिनाथ की ऊंचाई ४ भूतानन्द नागकुमारेन्द्र के भवन ५ क्षुद्रिका विमानप्रविभक्ति के तृतीय वर्ग के उद्देशक समवायांग सूची Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २३४ ६ फाल्गुण पूर्णिमा को पौरुषी प्रमाण ७ कार्तिक पूर्णिमा को पौरुषी प्रमाण महाशुक्र कल्प के विमान इकतालीसवां समवाय १ भ० नमिनाथ की श्रमणी सम्पदा २ प्रथम, पंचम, षष्ठ और सप्तम नरक के नरकावास ३ महालिका विमान - प्रविभक्ति के प्रथम वर्ग के उद्देश्क बियालीसवां समवाय १ २ ४ ३ क- जम्बूद्वीप के दक्षिणान्त से दकभास पर्वत के उत्तरान्त का अंतर ख - जम्बूद्वीप के पश्चिमान्त से शंख पर्वत के पूर्वान्त का अन्तर ग- जम्बूद्वीप के उत्तरान्त से दकसीम पर्वत के दक्षिणान्त का अंतर कालोद समुद्र के चन्द्र-सूर्य संमूर्छिम भुजपरिसर्प की उत्कृष्ट स्थिति नामकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ७ ८ & १० १ २ समवाय ४१-४२.: भ० महावीर का श्रमण पर्याय जम्बूद्वीप के पूर्वान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर लवण समुद्र के वेलाप्रवाह को रोकनेवाले नागकुमार देव महालिका विमान - प्रविभक्ति में द्वितीय वर्ग के उद्देशक अवसर्पिणी के पाँचवे और छठे आरे का संयुक्त परिमाण उत्सर्पिणी के प्रथम तथा द्वितीय आरे का परिमाण तयालीसवां समवाय कर्म विपाक के अध्ययन प्रथम, चतुर्थ और पंचम नरक के नरकावास जम्बूद्वीप के पूर्वान्त से गोस्तुभ आवासपर्वत के पूर्वान्त का अंतर Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३५ समवायांग-सूची ४ क जम्बूद्वीप के दक्षिणान्त से दकभास पर्वत के दक्षिणान्त का अंतर ख - जम्बूद्वीप के पश्चिमान्त से शंखपर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर ग- जम्बूद्वीप के उत्तरान्त से दकसीम पर्वत के उत्तरान्त का अंतर महालिया विमान - प्रविभक्ति में तृतीय वर्ग में उद्देशक ५ समवाय ४४-४७ चौवालीसवां समवाय १ ऋषिभाषित के अध्ययन २ भ० विमलनाथ के सिद्ध होनेवाले शिष्य - प्रशिष्यों की परम्परा ३ धरण नागेन्द्र के भवन ४ महालिका विमान प्रविभक्ति में चतुर्थ वर्ग के उद्देशक पैतालीसवाँ समवाय १ समय क्षेत्र का आयाम - विष्कम्म २ सीमंतक नरकावास का आयाम - विष्कम्भ ३ उडुविमान का आयाम - विष्कम्भ ४ ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी का आयाम - विष्कम्म ५ ६ ७ IS भ० अरहनाथ की ऊंचाई मेरु पर्वत का चारों दिशाओं से अन्तर १ धातकी खंड और पुष्करार्द्ध के नक्षत्रों का चन्द्रमा के साथ योगकाल महालिका विमान - प्रविभक्ति में पाँचवे वर्ग के उद्देशक छियालीसवां समवाय १ दृष्टिवाद के मातृकापद ब्राह्मी लिपि के मातृकाक्षर प्रभंजन वायुकुमार के भवन संतालीसवां समवाय आभ्यन्तर मण्डल से सूर्य दर्शन का अन्तर Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग सूची २ १ २ १ २ ३ ७ २३६ स्थविर अग्निभूति का गृहवास अड़तालीसवां समवाय ४ ५ चक्रवर्ती के प्रमुख नगर भ० धर्मनाथ के गणधर सूर्यमंडल का विष्कम्भ उनपचासवां समवाय सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा के दिन देवकुरु - उत्तरकुरु में बाल्यकाल के दिन त्रीन्द्रियों की स्थिति पचासवां समवाय भ० मुनिसुव्रत की श्रमणी सम्पदा भ० अनंतनाथ की ऊंचाई ६ क - तिमिस्त्र गुफा का आयाम पुरुषोत्तम वासुदेव की ऊंचाई सर्व दीर्घ वेताढ्यों के मूल का विष्कम्भ लान्तक कल्प के विमान ख- खंडप्रपात गुफा का आयाम सर्व कांचनग पर्वतों के शिखरों का विष्कम्भ इकावनवां समवाय आचारांग प्रथम श्रुतस्कंध के अध्ययनों के उद्देशक चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा के स्तंभ बलेन्द्र की सुधर्मा सभा के स्तंभ सुप्रभ बलदेव का आयु दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ समवाय ४८- ५१ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ५२-५४ २३७ समवायांग-सूची बावनवां समवाय मोहनीय कर्म के नाम गोस्तूप आवास पर्वत के पूर्वान्त से बलया मुख पाताल कलश के पश्चिमान्त का अन्तर ३ क- दगभास आवास पर्वत के दक्षिणान्त से केतुग पाताल कलश के उत्तरान्त का अन्तर ख- शंख आवास पर्वत के पश्चिमान्त से यूपक पाताल कलश के पूर्वान्त का अन्तर ग- दगसीम आवास पर्वत के उत्तरान्त से ईशर पाताल कलश के दक्षिणान्त का अन्तर ज्ञानावरणीय, नामकर्म और अंतराय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ सौधर्म सनत्कुमार और माहेन्द्र के विमान पनवां समवाय १ क- देवकुरु क्षेत्र की जीवा का आयाम ख- उत्तरकुरुक्षेत्र की जीवा का आयाम २ क- महा हिमवंत वर्षधर पर्वत की जीवा का आयाम ख- रुक्मी वर्षधर पर्वत की जीवाका आयाम ३ भ० महावीर के अनुत्तर देवलोकों में उत्पन्न होने वाले शिष्य ४ सम्मूछिम उरपरिसर्प की स्थिति चोपनवां समवाय १ क- भरत क्षेत्र में उत्सर्पिणी में उत्तम पुरुष भरत क्षेत्र में अवसपिणी में उत्तम पुरुष ख- ऐरवत क्षेत्र में उत्सर्पिणी में उत्तम पुरुष ऐरवत क्षेत्र में अवसर्पिणी में उत्तम पुरुष भ० अरिष्ट नेमीनाथ का छद्मस्थ पर्याय भ० महावीर के एक दिन के प्रवचन ३ भ० अनन्तनाथ के गणधर or mr Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २३८ समवाय ५५-५७ पचपनवां समवाय १ भ० मल्लीनाथ का आयु २ मेरुपर्वत के पश्चिमान्त से विजय द्वार के पश्चिमान्त का अंतर ३ क- मेरुपर्वत के उत्तरान्त से विजयन्त द्वार के उत्तरान्त का अन्तर ___ ख- मेरुपर्वत के पूर्वान्त से जयन्त द्वार के पूर्वान्त का अन्तर ग- मेरुपर्वत के दक्षिणान्त से अपराजित द्वार के दक्षिणान्त का अन्तर भ० महावीर के अन्तिम प्रवचन प्रथम-द्वितीय नरक के नरकावास दर्शनावरणीय, नाम और आयुकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ छपनवां समवाय जम्बूद्वीप में नक्षत्रों का चन्द्र के साथ योग भ० विमलनाथ के गण-गणधर सत्तावनवां समवाय आचारांग (चूलिका को छोड़कर) सूत्रकृतांग और स्थानांग के अध्ययन गोस्तूभ आवास पर्वत के पूर्वान्त से वलयामुख पाताल कलश के मध्यभाग का अन्तर ३ क- दकभास आवास पर्वत के दक्षिणान्त से केतुक पाताल कलश के मध्यभाग का अन्तर ख- शंख आवास पर्वत के पश्चिमान्त से यूपक पाताल कलश के मध्यभाग का अन्तर ग- दकसीम आवास पर्वत के उत्तरान्त से ईश्वर पाताल कलश के मध्यभाग का अन्तर ४ भ० मल्लीनाथ के मनः पर्यव ज्ञानी For Private & Personal Use only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ५८-६० २३६ समवायांग-सूची ५ क- महाहिमवंत पर्वत के धनुपृष्ठ की परिधि ख- रुक्मी पर्वत के धनुपृष्ठ की परिधि अठावनवां समवाय प्रथम द्वितीय और पंचम नरक के नरकावास ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयु, नाम और अन्त राय कर्म की उत्तर प्रकृतियां ३ क- गोस्तूभ आवास पर्वत के पश्चिमान्त से वलयामुख पाताल कलश का मध्यभाग का अन्तर ख- दकभास पर्वत के उत्तरान्त से केतुक पाताल कलश के मध्यभाग का अन्तर ग- शंख आवास पर्वत के पूर्वान्त से यूपक पाताल कलश के मध्यभाग का अन्तर घ- दकसीम आवास पर्वत के दक्षिणान्त से ईसर पाताल कलश के मध्यभाग का अन्तर उनसठवां समवाय चन्द्र संवत्सर के दिन-रात भ० सम्भवनाथ का गृहवास भ० मल्लीनाथ के अवधिज्ञानी साठवां समवाय एक मण्डल में सूर्य के रहने का समय लवण समुद्र के ज्वार-भाटे को रोकने वाले नागकुमार भ० विमलनाथ की ऊँचाई बलेन्द्र के सामानिक देव ब्रह्म देवेन्द्र के सामानिक देव सौधर्म, ईशान कल्प के विमान ann m an n m x x w Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २४० समवाय ६१-६४ Kudo Kuro इकसठवां समवाय पंच वर्षीय युग के ऋतुमास मेरु पर्वत के प्रथम काण्ड की ऊँचाई चन्द्र विमान के समांश सूर्य विमान के समांश बासठवां समवाय पंच वर्षीय युग की पूणिमायें और अमावस्यायें भ० वासुपूज्य के गण और गणधर शुक्लपक्ष की--भाग-वृद्धि - कृष्णपक्ष की-भाग-हानि ५ क- सौधर्म कल्प के प्रथम प्रस्तर में विमान ख- ईशान कल्प के प्रथम प्रस्तर में विमान सर्व वैमानिक देवों के विमान प्रस्तर त्रेसाठवां समवाय भ० ऋषभदेव का गृहवासकाल २ क- हरिवर्ष के मनुष्यों का बाल्यकाल ख- रम्यक वर्ष के मनुष्यों का बाल्यकाल निषध पर्वत पर सूर्य के मण्डल ४ नीलवंत पर्वत पर सूर्य के मण्डल चोसठवां समवाय अष्ट अष्टमिका भिक्षु पडिमा के दिन-रात असुर कुमारों के भवन चमरेन्द्र के सामानिक देव सर्व दधिमुख पर्वतों का उत्सेध-ऊँचाई सौधर्मईशान और ब्रह्मलोक कल्प के विमान KKuwww ww Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ an om aan x x w समवाय ६५-६८ २४१ समवायांग-सूची चक्रवर्ती के मुक्तामणी हार की सरें पैंसठवाँ समवायः जम्बूद्वीप में सूर्य मण्डल स्थविर मौर्यपुत्र का गृहवास सौधर्मावतंसक विमान के भौम नगर छासठवाँ समवाय दक्षिणार्ध मनुष्य क्षेत्र के चन्द्र दक्षिणार्ध मनुष्य क्षेत्र के सूर्य उत्तरार्ध मनुष्य क्षेत्र के चन्द्र उत्तरार्ध मनुष्य क्षेत्र के सूर्य भ० श्रेयांसनाथ के गण-गणधर मतिज्ञान की उत्कृष्ट स्थिति सड़सठवाँ समवाय पंच वर्षीय युग के नक्षत्र-मास हेमवत की बाहा का आयाम हैरण्यवत की बाहा का आयाम ____ मेरु पर्वत के पूर्वान्त से गौतम द्वीप के पूर्वान्त का अन्तर सर्व नक्षत्रों के सीमा विष्कम्भ का समांश अडसठवाँ समवाय धातकी खंडद्वीप के चक्रवर्तीविजय और राजधानियाँ धातकी खंडद्वीप में तीन काल में उत्कृष्ट तीर्थंकर ३ धातकी खंडद्वीप में तीन काल में चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव ४ क- पुष्कर वर द्वीपार्ध में तीन काल में चक्रवर्ती विजय राजधानियां ख- पुष्कर वर द्वीपार्ध में तीन काल में उत्कृष्ट तीर्थंकर ग- पुष्कर वर द्वीपार्ध में तीन काल में चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव ५ भ० विमलनाथ की श्रमण सम्पदा ar or nx s an n m x Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग सूची १ ४ १ ३ ४ १ ४ w 60 ३ ४ ५ क- पुष्करार्ध में चन्द्र ख- पुष्करार्ध में सूर्य चक्रवर्ती के पुर पुरुष की कलायें ८ २४२ उनहत्तरवाँ समवाय समय क्षेत्र में मेरु को छोड़कर शेष वर्षधर पर्वत मेरु पर्वत के पश्चिमान्त से गौतम द्वीप के पश्चिमान्त का अंतर मोहनीय को छोड़कर शेष सात कर्मों की उत्तर कर्म प्रकृतियाँ सितरवाँ समवाय भ० महावीर के वर्षावास के दिन-रात भ० पार्श्वनाथ की श्रमण सम्पदा भ० वासुपूज्य की ऊँचाई मोहनीय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति माहेन्द्र के सामानिक देव इकोत्तरवाँ समवाय सूर्य की आवृत्ति का काल वीर्य प्रवाद के प्राभृत भ० अजितनाथ का गृहवास काल सागर चक्रवर्ती का गृहवास काल बहत्तरवाँ समवाय सुवर्ण कुमार के भवन लवण समुद्र की बाह्य वेला को रोकनेवाले नागकुमार भ० महावीर का आयु स्थविर अचलभ्राता का आयु सम्मूर्छिम खेचर की उत्कृष्ट स्थिति समवाय ६६-७२ Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ७३-७७ २४३ समवायांग-सूची ا ه ه ه ه ه مه ل س तिहत्तरवाँ समवाय १ क- हरिवर्ष की जीवा ख- रम्यक् वर्ष की जीवा विजय बलदेव का आयु चौहत्तरवाँ समवाय स्थविर अग्निभूति का आयु निषध पर्वत के तिगिच्छ द्रह से सीतोदा नदी का उद्गम प्रवाह नीलवत पर्वत के सीता नदी का उद्गम प्रवाह चतुर्थ नरक के अतिरिक्त छहों नरकों के नरकावास पचहत्तरवाँ समवाय भ० सुविधिनाथ के सामान्य केवली भ० शीतलनाथ का गृहवास काल भ० शांतिनाथ का गृहवास काल छिहत्तरवाँ समवाय १ विद्युत्कुमार के भवन २ क- द्वीप कुमार के भवन ख- दिशा कुमार के भवन ग- उदधि कुमार के भवन घ. स्तनित कुमार के भवन ङ- अग्निकुमार के भवन सतहत्तरवाँ समवाय भरत चक्री की कुमारावस्था २ स्थविर अकंपित का आयु ३ क- सूर्य के उत्तरायण होने पर दिन की हानि-वृद्धि ___ ख- सूर्य के दक्षिणायन होने पर दिन की हानि वृद्धि ا م Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwm समवायांग-सूची २४४ समवाय ७८,८० अठहत्तरवाँ समवाय वैश्रमण-शकेन्द्र के लोकपाल के आधिपत्य में सुवर्ण कुमार और द्वीप कुमार के भवन स्थविर अकंपित का आयु सूर्य के उत्तरायन से लौटते समय दिन-रात की हानि सूर्य के दक्षिणायन से लौटते समय दिन-रात की हानि उनहत्तरवाँ समवाय वलयामुख पाताल कलश के अधस्तनभाग से रत्नप्रभा के अध स्तन भाग का अन्तर २ क- केतु पाताल कलश के अधस्तनभाग से रत्नप्रभा के अधस्तनभाग का जन्तर ख- यूपक पाताल कलश के अधस्तन भाग से रत्नप्रभा के अधस्तन भाग का आतर ग- ईसर पाताल कलश के अधस्तनभाग से रत्नप्रभा के अधस्तन भाग का अन्तर तमः प्रभा के मध्यभाग से तमः प्रभा के अधोवर्ती धनोदधि का अन्तर जम्बू द्वीप के प्रत्येक द्वार का अन्तर अस्सीवाँ समवाय भ० श्रेयांसनाथ की ऊँचाई त्रिपृष्ट वासुदेव की ऊँचाई अचल बलदेव की ऊँचाई त्रिपृष्ट वासुदेव का राज्यकाल अप्बहुल कांड का बाहल्य ईशानेन्द्र के सामानिक देव जम्बूद्वीप में आभ्यन्तर मण्डल में--सूर्योदय Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग सूची २४५ समवाय ८१५८४ on os m ors m * م इक्यासीवाँ समवाय नवनवमिका भिक्षु प्रतिमा के दिन भ० कुंथुनाथ के मनः पर्यव ज्ञानी व्याख्या प्रज्ञप्ति के अध्ययन बयासीवाँ समवाय जम्बूद्वीप में सूर्य के गमनागमन के मण्डल भ० महावीर का गर्भ साहरण काल __ महाहिमवंत पर्वत के उपरितनभाग से सौगंधिक काण्ड के अधस्तन भाग का अन्तर रुक्मि पर्वत के उपरितन भाग के सौगंधिक काण्ड के अधस्तन भाग का अन्तर तयासीवाँ समवाय भ० महावीर के गर्भ साहरण का दिन भ० शीतलनाथ के गण-गणधर स्थविर मण्डितपुत्र की आयु भ० ऋषभदेव का गृहवास काल भरत चक्रवर्ती का गृहवास काल चोरासीवाँ समवाय समस्त नरकावास भ० ऋषभदेव का सर्वायु ३ क. भरत चक्रवर्ती का सर्वायू ख- वाहुबली का सर्वायु ग- ब्राह्मी का सर्वायु घ- सुन्दरी का सर्वायु ४ भ. श्रेयांसनाथ का सर्वायु "५ त्रिपृष्ट वासुदेव का सर्वायु ن س ه م م Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ur 9 , 2 २ -oror or or समवाय-८५-८७ २४६ समवायांग-सूची ६ शक्रेन्द के सामानिक देव ७ सभी बाह्य मेरु पर्वतों की ऊँचाई सभी अंजनक पर्वतों की ऊँचाई ६ क- हरि वर्ष की जीवा की परिधि ख- रम्यग् वर्ष की जीवा की परिधि पंक बहुल काण्ड के ऊपरीभाग से नीचे के भाग का अन्तर व्याख्या प्रज्ञप्ति के पद नागकुमार के भवन प्रकीर्णकों की अधिकतम संख्या जीवायोनी पूर्व से शीर्ष प्रहेलिका पर्यन्त का गुणाकार भ० ऋषभदेव की श्रमण सम्पदा सर्व विमान पच्चासीवाँ समवाय चूलिका सहित आचारांग के उद्देशक धातकी खण्ड के मेरु पर्वतों की ऊँचाई रुचक मण्डलीक पर्वत की ऊँचाई नन्दनवन के अघस्तन भाग से सौगंधिक काण्ड के अधस्तन भाग का अन्तर छियासीवाँ समवाय भ० सुविधिनाथ के गण-गणधर २ भ० सुपार्श्वनाथ के वादि मुनि ३ द्वितीय नरक के मध्यभाग से द्वितीय घनोदधि का अन्तर सत्तासीवाँ समवाय १ मेरु पर्वत के पूर्वान्त से गोस्तूभ आवास पर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २४७ समवाय ८८-८९ २ मेरु पर्वत के दक्षिण चरमान्त से दगमास पर्वत के उत्तर चरमान्त का अन्तर ३ मेरु पर्वत के पश्चिमान्त से शंख आवास पर्वत के के पूर्व चरमान्त का अन्तर ४ मेरु पर्वत के उत्तर चरमान्त से दगसीम आवास पर्वत के दक्षिण चरमान्त का अन्तर ५ ज्ञानावरणीय और अन्तराय को छोड़कर शेष छह कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ ६ महाहिमवंत कूट के ऊपरी भाग से सौगंधिक काण्ड के अधोभाग का अन्तर ७ रुक्मी कूट के ऊपरी भाग से सौगंधिक काण्ड के अधोभाग का अन्तर अठासीवाँ समवाय १ क- एक चन्द्र के ग्रह ___ ख- एक सूर्य के ग्रह २ दृष्टिवाद के सूत्र ३ मेरु पर्वत के पूर्वान्त से गोस्तुभ आवास पर्वत के पूर्वान्त का अन्तर ४ क- मेरु पर्वत के दक्षिणान्त से दगभास आवास पर्वत के दक्षिणान्त का अन्तर ख- मेरुपर्वत के पश्चिमान्त से शंखपर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर ग- मेरुपर्वत के उत्तरान्त से दकसीम आवास पर्वत के उत्तरान्त का अन्तर ५ उत्तरायन में दिन-रात की हानि-वृद्धि .६ दक्षिणायन में दिन-रात की हानि-वृद्धि नवासीवाँ समवाय १ भ० ऋषभदेव का निर्वाण-काल २ भ० महावीर का निर्वाण-काल Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समयाय ९०-९३ २४८ समवायांग-सूची ३ हरिसेण चक्रवर्ती का राज्य-काल ४ भ० शांतिनाथ की उत्कृष्ट श्रमणी सम्पदा नब्बेवा समवाय १ भ० शीतलनाथ की ऊँचाई २ भ० अजितनाथ के गण-गणधर ३ भ० शांतिनाथ के गण-गणधर ४ स्वयम्भु वासुदेव का दिग्विजय काल ५ सर्ववृत्त वैताढय पर्वतों के शिखरों से सौगंधिक काण्ड के अधस्तन भाग का अन्तर इक्यानवेंवाँ समवाय १ वयात्त्य प्रतिमा २ कालोद समुद्र की परिधि ३ भ० कुंथुनाथ के अवधिज्ञानी मुनि ४ आयु और गोत्र कर्म को छोड़कर शेष छह कर्मों की उत्तरप्रकृतियाँ बानवेवाँ समवाय १ सर्व प्रतिमा २ स्थविर इन्द्रभूति का आयु ३ मेरु पर्वत के मध्यभाग से गोस्तूभ आवास पर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर ४ क- मेरु पर्वत के मध्यभाग से दगभास आवास पर्वत के उत्तरान्त का अन्तर ख- मेरु पर्वत के मध्यभाग से संख आवास पर्वत के पूर्वान्त का अंतर ग- मेरु पर्वत के मध्यभाग से दकसीम आवास पर्वत के दक्षिणान्त का अन्तर तिरानवेवाँ समवाय भ० चन्द्रप्रभ के गण-गणधर Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ६३-६४ २४६ समवायांग-सूची م له س २ भ० शांतिनाथ के चौदहपूर्वी शिष्य ३ दिन-रात की हानि-वृद्धि जिस मण्डल में होती है चौरानवेवा समवाय १ क- निषध पर्वत की जीवा का आयाम ___ख- नीलवंत पर्वत की जीवा का आयाम २ भ० अजितनाथ के अवधिज्ञानी मुनि पंचानवें वाँ समवाय भ० सुपाश्र्वनाथ के गगा-गणधर जम्बूद्वीप के अंतिमभाग से (चारों दिशा में) चारों पाताल कलशों का अन्तर लवण समुद्र के दोनों पार्श्व में उद्वेध और उत्सेध की हानि का प्रमाण भ० कुथुनाथ की परमायु स्थविर मौर्य पुत्र की सर्वायु छानवेंवाँ समवाय चक्रवर्ती के ग्राम वायुकुमार के भवन ३ दण्ड का अंगुल प्रमाण क- धनुष का अंगुल प्रमाण ख- नालिका का अंगुल प्रमाण ग- अक्ष का अंगुल प्रमाण ध- मूसल का अंगुल प्रमाण "५ आभ्यन्तर मण्डल में प्रथम मुहर्त की छाया का प्रमाण सत्तानवेंवाँ समवाय १ मेरुपर्वत के पश्चिमान्त से मोस्तुभ आवास पर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर ه ر مه به سه » Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २५० समवाय ६८-६६ २ मेरु पर्वत के उत्तरान्त से दगभास पर्वत के उत्तरान्त का अन्तर ३ मेरु पर्वत के पूर्वान्त से शंख पर्वत के पूर्वान्त का अन्तर ४ मेरु पर्वत के दक्षिणान्त पर्वत से दगसीम पर्वत के दक्षिणान्त का अन्तर ५ आठ कर्मों की उत्तर-प्रकृतियाँ ६ हरिषेण चक्रवर्ती का आयु अट्ठानवेंवाँ समवाय नंदनवन के ऊपरी भाग से पंडुकवन के अधोभाग का अन्तर मेरु पर्वत के पश्चिमान्त से गोस्तुभ आवास पर्वत के पूर्वान्त का अन्तर ३ क- मेरु पर्वत के उत्तरान्त से दगभास पर्वत के दक्षिणान्त का अन्तर ख- मेरु पर्वत के पूर्वान्त से शंख पर्वत के पश्चिमान्त का अन्तर ग- मेरु पर्वत के दक्षिणान्त से दगसीम पर्वत के उत्तरान्त का अन्तर दक्षिणार्ध भरत के धनुपृष्ठ का आयाम ५ उत्तरायण-उनचासवें मण्डल में दिन-रात की हानि-वृद्धि दक्षिणायन-उनचासवें मण्डल में दिन-रात की हानि-वृद्धि रेवती से ज्येष्ठा पर्यन्त नक्षत्रों के तारे निनानवेंवाँ समवाय १ मेरु पर्वत की ऊंचाई २ नन्दनवन के पूर्वान्त से पश्चिमान्त का अन्तर ३ नन्दनवन के दक्षिणान्त से उत्तरान्त का अन्तर ४ उत्तरायन में प्रथम सूर्य मण्डल का आयाम-विष्कम्भ ५ द्वितीय सूर्य मंडल का आयाम-विष्कम्भ ६ तृतीय सूर्य मंडल का आयाम-विष्कम्भ ७ रत्नप्रभा में अंजन काण्ड के अधोभाग से व्यन्तरों के भौमेय विहारों के ऊपरी भाग का अन्तर Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय १००-३०० १ ८ सौवां समवाय दश, दशमिका भिक्षु प्रतिमा के दिन शतभिषा नक्षत्र के तारे २५१ भ० सुविधिनाथ की ऊंचाई भ० पार्श्वनाथ की आयु स्थविर आर्य सुधर्मा की आयु सभी दीर्घ वैताढ्य पर्वतों की ऊंचाई ४ ५ ६ ७ क- सभी चुल्ल हिमवन्त पर्वतों की ऊंचाई ख- सभी शिखरी पर्वतों की ऊंचाई सभी कंचनग पर्वतों की ऊंचाई, उद्वेध और मूल का विष्कम्भ डेढसोवाँ समवाय १ भ० चन्द्रप्रभ की ऊंचाई २ आरण कल्प के विमान ३ अच्युत कल्प के विमान दो सोवाँ समवाय १ भ० सुपार्श्वनाथ की ऊंचाई २ सभी महा हिमवंत पर्वतों की ऊंचाई और उद्वेध ३ जम्बूद्वीप के कांचन गिरी ढाई सोवाँ समवाय १ भ० पद्मप्रभ की ऊंचाई २ असुर कुमार के प्रासादों की ऊंचाई तीन सोवाँ समवाय समवायांग-सूची १ भ० सुमतिनाथ की ऊंचाई २ भ० अरिष्टनेमी का गृहवास काल ३ विमानों (वैमानिक देवों के) के प्राकारों की ऊंचाई Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग सूची - २५२ ४ भ० महावीर के चौदह पूर्वी मुनि .५ पांचसौ धनुष की कायावालों के जीवप्रदेशों की अवगाहना साढे तीन सोवां समवाय १ भ० पार्श्वनाथ के चौदह पूर्वधारी मुनि २ भ० अभिनन्दन की ऊंचाई चार सोवाँ समवाय "१ भ० सम्भवनाथ की ऊंचाई २ क- सभी निषध वर्षधर पर्वतों की ऊंचाई ख- सभी नीलवंत वर्षधर पर्वतों की ऊंचाई ३ ४ १ समवाय ३५०-५०० सभी वक्षस्कार पर्वतों की ऊंचाई और उद्वेध ● आणत - प्राणत कल्प के विमान भ० महावीर के उत्कृष्ट वादी मुनि साढ़े चार सोवां समवाय भ० अजितनाथ की ऊंचाई सगर चक्रवर्ती की ऊंचाई पांच सोवां समवाय सर्व वक्षस्कार पर्वतों की ऊंचाई - उद्वेध सर्व वर्षधर पर्वतों के कूटों की ऊंचाई- उद्वेध भ० ऋषभदेव की ऊंचाई ४ भरत चक्रवर्ती की ऊंचाई ५ क- सोमनस पर्वत की ऊंचाई और उद्वेध ख- गंधमादन पर्वत की ऊंचाई और उद्वेध ग- विद्युत्प्रभ पर्वत की ऊंचाई घ- माल्यवंत पर्वत की ऊंचाई हरि, हरिस्सह कूटों को छोड़कर शेष सभी कूटों की ऊंचाई और मूल का विष्कम्भ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय ६००-८०० समवायांग-सूची " बलकूट को छोड़कर सर्व नन्दन कूटों की ऊंचाई और मूल का विष्कम्भ सोधर्म-ईशान कल्प के विमानों की ऊंचाई छ सोवाँ समवाय १ क- सनत्कुमार कल्प के विमानों की ऊंचाई ख- माहेन्द्र कल्प के विमानों की २ चुल्ल हिमवंत कूट के सर्वोपरि भाग से अधोभाग का अन्तर शिखरी कूट के सर्वोपरिभाग से अधोभाग का अन्तर भ० पार्श्वनाथ के वादी मुनि अभिचंद कुलकर की ऊंचाई भ० वासुपूज्य के साथ दीक्षित होनेवाले पुरुष सात सोवाँ समवाय १ क- ब्रह्मकल्प के विमानों की ऊंचाई __ख- लांतक कल्प के विमानों की ऊंचाई भ० महावीर के केवली शिष्य ३ भ० अरिष्ठ नेमिनाथ का केवली पर्याय महाहिमवंत कूट के ऊपरी तल से अधस्तल का अन्तर रुक्मि कूट के ऊपरी तल से अधस्तल का अन्तर आठ सोवाँ समवाय १ क- महाशुक्र कल्प के विमानों की ऊंचाई ___ख- सहस्रार कल्प के विमानों की ऊंचाई २ रत्नप्रभा के प्रथम काण्ड में व्यतर देवों के भौमेय विहार-नगर. भ० महावीर के अनुत्तर विमान में उत्पन्न होनेवाले शिष्य रत्नप्रभा के ऊपरीतल से सूर्य के विमान का अन्तर ५ भ० अरिपनेमी के उत्कृष्ट बादी मुनि sm x 5 in mx Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायां : : २५४ समवाय १००-१००० سه » مع م م नो सोवाँ समवाय १ क- आनत कल्प के विमानों की ऊंचाई ख- प्राणत कल्प के विमानों की ऊंचाई ग- आरण कल्प के विमानों की ऊंचाई घ- अच्युत कल्प के विमानों की ऊंचाई २ निषध कूट के ऊपरी तल से अधस्तल का अन्तर नीलवंत कूट के ऊपरी तल से अधस्तल का अन्तर विमल वाहन कुलकर की ऊंचाई रत्नप्रभा के ऊपरी तल से ताराओं की ऊंचाई निषध पर्वत के शिखर से (रत्नप्रभा के) प्रथम काण्ड के मध्यभाग का अन्तर नीलवंत के शिखर से (रत्नप्रभा के) प्रथम काण्ड के मध्यभाग का अन्तर एक हजारवाँ समवाय सर्व प्रैवेयक विमानों की ऊंचाई सर्व यमक पर्वतों की ऊंचाई, उद्वेध और मूल का विष्कम्भ क- चित्रकूट की ऊंचाई उद्वेध और मूल का विष्कम्भ ख- विचित्रकूट की ऊंचाई, उद्वेध और मूल का विष्कम्भ सर्व वृत्त वैताढ्य पर्वतों कीऊंचाई, उद्वेध और मूल का विष्कम्भ हरि, हरिस्सह कूटों की ऊंचाई, उद्वेध और मूल का विष्कम्भ बलकूटों की ऊंचाई, उद्वेध और मूल का विष्कम्भ भ० अरिष्ट नेमीनाथ की ऊंचाई भ० पार्श्वनाथ के केवली शिष्य भ० पार्श्वनाथ के मुक्त शिष्य १ क- पद्मद्रह का आयाम ___ ख- पुंडरीक द्रह का आयाम om Ghrum Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची २५५ समवाय ११००-६००० इग्यारह सोवाँ समवाय अनुत्तरोपपातिक देवों के विमानों की ऊंचाई भ० पार्श्वनाथ के वैक्रिय लब्धिवाले शिष्य दो हजारवाँ समवाय महापद्मद्रह का आयाम महापुन्डरीकद्रह का आयाम तीन हजार वां समवाय रत्नप्रभा के वज्रकाण्ड के चरमान्त से लोहिताक्ष काण्ड के चरमान्त का अन्तर चार हजारवाँ समवाय १ क- तिगिच्छ द्रह का आयाम ख- केसरि द्रह का आयाम पांच हजारवाँ समवाय धरणितल में मेरु के मध्यभाग से अन्तिम भाग का अन्तर छ हजारवाँ समवाय सहस्रार कल्प के विमान सात हजारवा समवाय रत्नकाण्ड (रत्नप्रभा) के ऊपरीतल से पुलक काण्ड के अधस्तल का अन्तर आठ हजारवाँ समवाय १ क- हरिवर्ष का विस्तार ख- रम्यक् वर्ष का विस्तार नो हजारवाँ समवाय १ दक्षिणार्ध भरत की जीवा का आयाम Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायः १५०००-१५० २५६ समवायांग-सूची दस हजारवाँ समवाय १ मेरुपर्वत का विष्कम्भ एक लाखवा-यावत्-आठ लाखवाँ समवाय १ जम्बूद्वीप का आयाम-विष्कम्भ १ लवण समुद्र का चक्रवाल विष्कम्भ १ भ० पार्श्वनाथ की श्राविका सम्पदा १ धातकी खण्ड द्वीप का चक्रवाल विष्कम्भ १ लवण समुद्र के पूर्वान्त से पश्चिमान्त का अन्तर १ भरत चक्रवर्ती का राज्य-काल १ जम्बूद्वीप की पूर्व वेदिका से धातकी खण्ड के पश्चिमान्त का अन्तर १ माहेन्द्र कल्प के विमान कोटि समवाय १ भ० अजितनाथ के अवधिज्ञानी १ पुरुषसिंह वासुदेव का आयु कोटाकोटि समवाय १ भ० महावीर का पोटिल के भव में श्रामण्य पर्याय १ भ० ऋषभदेव और भ० महावीर का अन्तर सूत्र संख्या १३६ से १४८ पर्यन्त--द्वादशांग का परिचय १४६ क- दो राशि ख- चौवीस दण्डक में पर्याप्ता अपर्याप्ता ग- सर्व नरकावास, सर्व भवनावास, सर्व विमान घ- नरकावास और नरकों में वेदना ० क- भवनावासों का वर्णन . ख- पृथ्वीकायिकावासों का वर्णन-यावत्-मनुष्यावासों का वर्णन ग. व्यंतरावासों का वर्णन . Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायसूत्र १५१-१५७ २५७ घ- ज्योतिष्कावासों का वर्णन ङ - वैमानिकावासों का वर्णन १५१ चौवीस दण्डकों में स्थिति १५२ पाँच शरीर का विस्तृत वर्णन १५३ क - अवधिज्ञान का विस्तृत वर्णन ख- वेदना का विस्तृत वर्णन ग- लेश्या का विस्तृत वर्णन घ- आहार का विस्तृत वर्णन चौविस दण्डक में विरह का विस्तृत वर्णन १५४ १५५ क- चौवीस दण्डक में संघयण का वर्णन ख- चौवीस दण्डक में संठाण का वर्णन १५६ चौवीस दण्डक में वेदों का वर्णन १५७ क- कल्पसूत्रान्तर्गत समवसरण वर्णन ख- जम्बूद्वीप के भरत में अतीत उत्सर्पिणी के कुलकर ग- जम्बूद्वीप के भरत में अतीत अवसर्पिणी के कुलकर घ- जम्बूद्वीप के भरत में इस अवसर्पिणी के कुलकर ङ - सात कुलकरों की भार्यायें ठ- चौवीस तर्थंकरों के देवदूष्य ड- चौवीस तर्थंकरों के साथ दीक्षित होनेवाले ढ - चौवीस तर्थकरों के दीक्षा समय के तप - चौवीस तीर्थंकरों के प्रथम भिक्षा दाता समवायांग-सूची च - जम्बूद्वीप के भरत में इस अवसर्पिणी के २४ तीर्थंकरों के पिता छ- चौवीस तीर्थंकरों की माताएं ज- चौवीस तीर्थंकर झ- चौवीस तीर्थंकरों के पूर्वभव के नाम a - चौवीस तीर्थंकरों की शिविकाएं ट- चौवीस तीर्थंकरों की जन्मभूमियाँ : Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची त- चौवीस तीर्थंकरों के प्रथम भिक्षा मिलने का समय थ- चौवीस तीर्थंकरों को प्रथम भिक्षा में मिलने वाले पदार्थ द- चौवीस तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष ध- चौवीस तीर्थंकरों के चैत्यवृक्षों की ऊँचाई न. चौवीस तीर्थंकरों के प्रथम शिष्य प- चौवीस तीर्थकरों की प्रथम शिष्याएं १५८क- जम्बूद्वीप के भरत में इस अवसर्पिणी में चक्रवर्तियों के पिता ख- बारह चक्रवर्तियों की माताएं च- नो वासुदेव की माताएं छ- नो बलदेव की माताएं ज- नो दशार मंडल २५८ ग- बारह चक्रवर्ती घ- बारह चक्रवर्तियों के स्त्री रत्न ङ - जम्बूद्वीप के भरत में इस अवसर्पिणी में नो बलदेव और नो वासुदेव के पिता झ- नो बलदेव- वासुदेव के पूर्वभव के नाम ञ - नो बलदेव - वासुदेव के धर्माचार्य ट. तो वासुदेव की निदान भूमियाँ ठ- नो वासुदेव के निदान के नो कारण ड- नो प्रतिवासुदेव ढ - नो वासुदेवों की गति - नो बलदेवों की गति समवाय सूत्र १५८-१५६ १५६ क- जम्बूद्वीप के एरवत क्षेत्र में इस अवसर्पिणी के चौवीस तीर्थंकर ख- जम्बूद्वीप के भरत में आगामी उत्सर्पिणी के सात कुलकर ग- जम्बूद्वीप के एरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में दश कुलकर घ- जम्बूद्वीप के भरत में आगामी उत्सर्पिणी में चौवीस तीर्थंकर ङ - चौवीस तीर्थंकरों के पूर्वभव के नाम Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवाय सूत्र १५६ २५६ समवायांग-सूची च- चौवीस तीर्थंकरों के पिता छ- चौवीस तीर्थंकरों की माताएं ज- चौवीस तीर्थंकरों के शिष्य झ- चौवीस तीर्थंकरों की शिष्याएं ज- चौवीस तीर्थंकरों को प्रथम भिक्षा देने वाले ट- चौवीस तीर्थंकरों के चैत्यवृक्ष ठ- जम्बूद्वीप के भरत में आगामी उत्सपि णी में बारह चक्रवर्ती ड- चक्रवतियों के पिता ढ- चक्रवतियों की माताएं ण- चक्रवर्तियों के स्त्री रत्न त- नो बलदेव नो वासुदेव थ- नो बल देव-नो वासूदेवों के पिता द- नो बलदेव की माताएं ध- नो वासुदेव की माताएं न- नो दशार मण्डल प- नो बलदेव वासुदेवों के पूर्व भव के नाम फ- नो निदान भूमियां ब- नो निदान के कारण भ- नो प्रति वासुदेव म- जम्बूद्वीप के एरवत क्षेत्र में आगामी उत्सर्पिणी में___चौवीस तीर्थंकर य- बारह चक्रवर्ती र. बारह चक्रवतियों के पिता ल- बारह चक्रवर्तियों की माताएं व- बारह चक्रवर्तियों के स्त्री रत्न श- नो बलदेव-नो वासुदेवों के पिता Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समवायांग-सूची ष - नो बलदेव की माताएं नो वासुदेव की माताएं स ह - नो दशार मण्डल क्ष- नो प्रतिवासुदेव त्र - नो वासुदेवों के पूर्वभव के नाम ज्ञ- नो वासुदेवों के पूर्वभव के धर्माचार्य अ- नो वासुदेवों की निदान भूमियां आ - निदान के कारण १६० २६० उपसंहार - समवायांग में वर्णित संक्षिप्त विषय सुयक्खाए ते भंते ! णिग्गंथे सुपण्णत्ते ते भंते । णिग्गंथे सुभासिए ते भंते ! णिग्गंथे सुविणीए ते भंते ! णिग्गंथे सुभाविए ते भंते ! णिग्गंथे अणुत्तरे ते भंते ! णिग्गंथे समवाय सूत्र १६० पावयणे पावयणे पावयणे पावयणे पावयणे पावयणे Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . mo ४ w 9 शतक उ० सूत्र श० उ० सूत्र १० ३२६ ११ १२ १३४ १० ७६ १२ १० १७३ १० १५६ १३ १० १४७ १० ६ १४ १० ६७ ५ १० १८६ १५ ० ४६ हृद ७० १३३ && ६ c Wed & १० णमो णाणस्म सर्वानुयोगमय भगवती सूत्र स्कंध a a o m १० श्रुत शतक अवान्तर, शतक १३८ १६२७ ३६००० २८८००० ५२६३ ७२ भगवती सूत्र शतक, उद्देशक और सूत्रसंख्या सूचक तालिका ३४ उद्देशक प्रश्नोत्तर १० १६० १६ १४ १० १४६ १७ १४ ४६० १८ १० ३४ १६६ १६ १० ७२ २०१० पद गद्य सूत्र 37 पद्य श० उ० १ २१ २२ ६,, २३ ५ ” २४ २४ २५ १२ २६ १२ २७ ११ २८ ११ २६ ११ १०१ ३० ११ ८ वर्ग १५ ६ ५ ६३६ ५८१ श० सू० उ० ४१ १६६ २२२ सूत्र शतक उद्देशक सूत्र २८ ४१ ३१ ३२ २८ ३३ ३३ १२-१२४ १३६ ३४ वा१२ १२४ १५४ ३५ न्त१२ १२४ १२४ ३६ २१२ १२४ १२४ १२ १२४ १२४ ३८ त१२ १२४ १२४ ३६ क१२ १२४ १२४ ४० हैं २१-१८७ १८७ ४३ ११ ३७ १४ १५ ५० Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणधर यंत्र गणधर नाम ग्राम नक्षत्र पिता माता गोत्र गृहवास छद्मस्थ केवल सर्वायु र मोक्षगमन - पृथ्वी १ हन्द्रभूति गुब्बर ग्राम ज्येष्ठा वसुभूति २ अग्निभूति कृत्तिका ३ वायुभूति , स्वाति ४ व्यक्त कोल्लाक-संनि० श्रवण धन मित्र ५ सुधर्मा हस्तोत्तरा धम्मिल ६ मंडित मोराड-निवेश, मोरास-संनिवेश मधा धनदेव ७ मौर्यपुत्र , रोहिणी मो ये ८ अकंपित मिथिला . उत्तराषाहा देव ६ अचल भ्राता कोशला मृगशिरा वसु १० मेतार्य वत्सभूमि तुङ्गिक अश्विनी ११ प्रभास राजगृह पुष्य बल वारुणी भदिला बिजया वर्ष वर्ष वर्ष वर्ष गौतम ५० ३० १२ १२ महावीर पश्चात् " . ४६ १२ १६ ७४ महावीर पूर्व , ४२ १० १८ ७० , भारद्वाज ५० १२ १८ ८० ., अग्निवैश्यायन ५० ४२ ८ १०० महावीर पश्चात् वशिष्ठ ५३ १४ १६ ८३ महाबीर पूर्व काश्यप ६५ १४ १६ १५ , गौतम ४८ २१ ७८ , हारित ४६ १२ १४ ७२ कौडिन्य ३६ १० १६ ६२ , १६ ८ १६ ४० । जयंती नंदा वरुणदेवा अतिभद्रा - दत्त ग्यारह गणधरों की जाति ब्राह्मण. अध्ययन चौदह पूर्व और द्वादशाङ्ग का. मोक्षनगर राजगृह Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो संजयाणं भगवती विषय सूची प्रथम शतक उत्थानिका क- नमस्कार मंत्र ख- ब्राह्मी लिपि को नमस्कार ग- श्रुत को नमस्कार ध- दस उद्देशकों के नाम ङ- प्रश्नोत्थान भ० महावीर और गौतम गणधर का संक्षिप्त परिचय प्रश्न के लिए उद्यत गौतम गणधर प्रथम चलन उद्देशक चलमान चलित आदि 8 प्रश्नों के उत्तर नौ पदों में से चार पद एकार्थ और पांच पद नानार्थ वाले हैं चौवीस दण्डकों में स्थिति, श्वासोच्छ्वास, आहार और कर्म पुद्गल व बन्ध आदि नैरयिकों की स्थिति नैरयिकों का श्वासोच्छ्वास नैरयिक आहारार्थी आहृत पुद्गलों का परिणमन ४ प्रश्नोत्तर नरयिकों द्वारा आहृत पुद्गलों के चित आदि ६ प्रश्नोत्तर " कर्मद्रव्य वर्गणा के पुद्गलों का भेदन. आहार. द्रव्यवर्गणा पुद्गलों का चयन उपचयन नैरयिकों द्वारा कर्मद्रव्य वर्गणा के पुद्गलों की उदीरणा इसी प्रकार-वेदना, निर्जरा के प्रश्न ar x x w is w a Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ११ १२ १३ १४ क ख - * or w 2 v. १५ १६ १७ १८ १६ २० २१ २२ २३ २४ ग to to p घ ङ च २६४ श०१ उ०१, प्र० २६ नैरयिकों के अपवर्तन, संक्रमण, निधत्त और निकाचित के ( तीन काल के ) प्रश्न नैरयिकों द्वारा तैजस, कार्मण रूप में पुद्गलों का ग्रहण 33 33 11 "" - वेदना और निर्जरा इसी प्रकारनैरयिकों द्वारा अचलित कर्मों का 33 21 को का 33 17 "3 "" 17 33 77 33 चलित असुर कुमारों की स्थिति 37 12 1) 13 33 "" 33 33 "1 33 "1 "" 1, ") " गृहीत पुद्गलों की उदीरणा नाग कुमारों की स्थिति 3" 33 शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान " "" 31 का श्वासोच्छ्वास काल आहारार्थी 31 की आहारेच्छा का समय आहार के पुद्गल में आहार के पुद्गलों का परिणमन 33 पूर्व आहृत पुद्गलों की परिणति बंधन उदीरणा वेदन अपवर्तन का श्वासोच्छ्वास काल संक्रमण निधत्त निकाचित निर्जरा २५ नागकुमार आहारार्थी २६ क - नागकुमारों के आहारेच्छा का समय शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ख- सूवर्ण कुमार से स्तनित कुमार पर्यंत असुर कुमार के समान Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१ उ०१ प्र०४२ २६५ भगवती-सूची २७ पृथ्वी कायिकों की स्थिति २८ " " का श्वासोच्छवास काल. " कायिक आहारार्थी कायिकों के आहारेच्छा का समय " " आहार के द्रव्य " " " " लेने की दिशा ३२ क- " " में " का परिणमन. शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ख- अप्काय से वनस्पतिकाय पर्यंत पृथ्वीकाय के समान ३३ स्थिति और श्वासोच्छवास प्रत्येक का भिन्न भिन्न, ३४ क- द्वीन्द्रियों की स्थिति ख- " का श्वासोच्छवास काल ३५ द्वीन्द्रिय आहारार्थी शेष प्रश्नोत्तर ३०-३१ के समान द्वीन्द्रियों के आहार का परिमाण ३७ " " "ग्राह्य अग्राह्य विभाग और उसका अल्पबहुत्व " " "परिणमन " " पूर्व आहृत पुद्गलों की परिणति, शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४० क- त्रीन्द्रियों की स्थिति ख- चउरिन्द्रियों " " शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४१ क- त्रीन्द्रियों चउरिन्द्रियों के आहार का ग्राह्य-अग्राह्य विभाग और उसका अल्प-बहुत्व. ख- त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के आहार का परिणमन “४२ क- पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- उच्छ्वास की विभिन्न मात्रा Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१ उ०१ प्र० ५६ २६६ भगवती-सूची ग- पंचेन्द्रिय तियंचों के आहार का समय शेष प्रश्नोत्तर ४०-४१ के समान ४३ क- मनुष्यों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- उच्छ्वास की विभिन्न मात्रा ग- मनुष्यों के आहार का समय घ- " " " " परिणमन, शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४४ क- व्यंतर देवों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- शेष प्रश्नोत्तर २४, २५, २६ के समान ४५ क- ज्योतिषी देवों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- " " का श्वासोच्छ्रावास काल ग- " " के आहार का समय शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान ४६ क- वैमानिक देवों की भिन्न-भिन्न स्थिति ख- " " का श्वासोच्छवास काल ग- " " के आहार का समय भिन्न-भिन्न शेष प्रश्नोत्तर ७ से १५ के समान आत्मारम्भ आदि ४७ आत्मारंभी, परारंभी, उभयारंभी और अनारंभी जीव ४८ जीवों का आत्मारंभी आदि होना युक्ति संगत ४९-५२ चौवीस दण्डकों में आत्मारम्भ आदि ५३ सलेश्य जीवों में आत्मारम्भ आदि ज्ञानादि ५४-५५ ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और संयम का इह भव, परभव, और उभयभव में अस्तित्व या नास्तित्व असंवृत अनगार असंवृत अनगार के निर्वाण का निषेध ५६ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ भगवती-सूची २६७ श०१ उ०२ प्र० ६८ प " " " दृढकर्म बन्धन, संवृत अनगार ५८ संवत अनगार का निर्वाण ५६ " " के सिथिल कर्म बंधन. असंयत जीव ६०-६१ असंयत अव्रत जीवों की देवगति और उसके कारण व्यंतरदेव ६२ क- व्यंतर देवों के रमणीय देव लोक, ख- ' " की स्थिति द्वितीय दुःख उद्देशक उत्थानिका जीव का स्वयंकृत दुःख वेदन, (एक जीव की अपेक्षा) " " का कारण ख- चौवीस दण्डकों में ----जीव का स्वयंकृत दु:ख वेदन ६६ जीवों का स्वयंकृत दुःख वेदन (बहुत जीवों की अपेक्षा) ६७ क- जीवों के स्वयंकृत दुःख वेदन का कारण ख- चौवीस दण्डकों में जीवों का स्वयंकृत दुःख वेदन श्रायुवेदन ६८ क- जीव का स्वयंकृत आयुवेदन, (एक जीव की अपेक्षा) ख- " " " " " का कारण ग- चौवीस दण्डकों में स्वयंकृत आयुवेदन घ- जीवों का स्वयंकृत आयुवेदन (बहुत जीवों की अपेक्षा) हु.. " " " " का कारण च- चौवीस दण्डकों में स्वयंकृत आयुवेदन चौवीस दण्डकों में—आहार, शरीर, श्वासोच्छ्वास, कर्म, वर्ण लेश्या, वेदना, क्रिया, आयु और उत्पन्न होने का विचार Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ भगवती-सूची श०१ उ०२ प्र०१३ ३६-७०क- नरयिकों में समान आहार, ख- " " " शरीर " " श्वासोच्छवास आहार, शरीर और श्वासोच्छ्वास के समान न होने का कारण ७१-७२ " " समान कर्म न होने का कारण ७३-७४ " वर्ण ५७-७६ ७७-७८ " " " वेदना ७९-८० " " "क्रिया ८१-८२ " " " आय और साथ उत्पन्न न होने का कारण ८३ क- असुर कुमारों में आहार, शरीर, श्वासोच्छ्वास, वेदना, क्रिया आयु, और उत्पन्न होने में समानता ख- कर्म, वर्ण और लेश्या में विविधता ग- इसी प्रकार नागकुमार से-यावत्-स्तनित कुमार तक असुर कुमारों के समान __ ८४ पृथ्वीकायिकों में आहार, कर्म, वर्ण और लेश्या नैरयिकों के समान ८५-८६ में समान वेदना होने का कारण , क्रिया ,, , , ख. आयु और उत्पन्न होना नैरयिकों के समान ८६ अप्काय से-यावत्-चउरिन्द्रिय तक पृथ्वीकायिकों के समान ६० पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में आहार आदि नैरयिकों के समान किन्तु क्रिया में भिन्नता ६१-६२ , , में समान क्रिया न होने के कारण ६३ क- मनुष्यों में शरीर से वेदना पर्यन्त नैरयिकों के समान किन्तु आहार और क्रिया में भिन्नता ८७-८८ क Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २६६ श० १ उ०२ प्र०१०८ m १०० ० ० ० mm ख- आहार में समानता न होने का कारण १४-६५ क- मनुष्यों में समान क्रिया न होने का कारण ख- आयु और उत्पन्न होना नैरयिकों के समान . ६६ क- व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों में आहारादि नैरयिकों के समान किन्तु वेदना में भिन्नता ख- व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिकों में वेदना समान न होने का कारण चौवीस दण्डकों में सलेश्य जीवों के आहारादि की समा नता और भिन्नता लेश्या वर्णन, चार प्रकार का संसार संस्थान काल नैरयिकों तिर्यंचों , " " मनुष्यों और देवों नैरयिकों के संसार संस्थान काल का अल्प-बहुत्व तिर्यंचों के ,, १०५ मनुष्य और देवों के , चारों गतियों के संसार संस्थान काल का अल्प-बहुत्व १०७ जीव की अंतक्रिया (मुक्ति) उपपात १०८ क- देवगति पाने योग्य असंयत जीवों का उपपात ख- अखण्ड संयमियों का उपपात ग- खंडित , , ,, घ- अखण्ड संयमासंयमियों (श्रावकों) का उपपात ङ- खंडित संयमासंयमियों (श्रावकों) का उपपात च- असंज्ञी-अमैथुनिक सृष्टि-जीवों ,, ,, छ- तापसों का उपपात ज- कांदर्पिकों का , १०३ १०४ ० Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २७० श०१ उ०३ प्र०१२५ ११० १११ झ- चरक परिव्राजकों का उपपात अ- किल्विषिकों ट- तिर्यंच योनिकों , , ठ. आजीविकों ड- आभीयोगिकों (मंत्रादि विद्यावालों) का उपपात ढ- दर्शनभ्रष्ट स्वलिगियों का उपपात असंज्ञी आयुष्य १०६ चार प्रकार का असंज्ञि आयुष्य असंज्ञी जीवों के चार गति का आयुबंध और चारों गतियों में उत्पन्न असंज्ञी जीवों की स्थिति , आयुबंध का अल्प-बहुत्व तृतीय काँक्षा प्रदोष उद्देशक ११२ क्रिया निष्पाद्य कांक्षामोहनीय कर्म कांक्षामोहनीय कर्म देश या सर्वकृत (चोभंगी) ११४ चौवीस दण्डकों में कांक्षामोहनीय कर्म देशकृत या सर्वकृत जीवों द्वारा कालिक कांक्षामोहनीय कर्म का बंधन जीवों द्वारा त्रैकालिक कांक्षामोहनीय कर्म देशकृत या सर्वकृत ११७ जीवों का कांक्षामोहनीय कर्म वेदन ११८ कांक्षामोहनीयकर्म के कारण ११६-१२० सर्वज्ञ वाणी पर श्रद्धा करने वाला आराधक १२१ अस्तित्व नास्तित्व का परिणमन अस्तित्व नास्तित्व १२२ परिणमन के दो भेद भ० महावीर के अस्तित्व-नास्तित्व के सम्बन्ध में गौतम का प्रश्न तथा भगवान का उत्तर अस्तित्व-नास्तित्व में गमनीय (प्र० १२१-१२२ के समान) १२५ भ० महावीर के सम्बन्ध में 'गमनीय' का प्रश्नोतर (प्रश्नोत्तर १२३ के समान) १२३ १२४ Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१ उ०४ प्र०१५५ २७१ भगवती-सूची १३२ १२६-१३१ कर्मबंध के कारणों की परम्परा कांक्षामोहनीय ख- जीव का उत्थान आदि से सम्बन्ध उदीरणा, गर्दा और संवर आत्मकृत है १३३ अनुदीर्ण तथा उदीरणा योग्य कर्म की उदीरणा १३४ उत्थान आदि से कर्मों की उदीरणा १३५ क- उपशमन गर्दा और संवर आत्मकृत है ख- अनुदीर्ण कर्म का उपशमन १३६ उत्थान आदि से कर्म का उपशमन ३७ क- वेदन और गरे आत्मकृत है ख- उदीर्ण का वेदन ग- उत्थान आदि से कर्म का वेदन १३८ क- निर्जरा आत्मकृत है ख- उदय में आये हुए कर्मों की निर्जरा ग- उत्थान आदि से कर्मों की निर्जरा १३६-१४२ चौवीस दण्डकों में कांक्षामोहनीय कर्म का बेदन १४३-१४५ श्रमण निर्ग्रन्थों का , , ,, चतुर्थ कर्म प्रकृति उद्देशक आठ कर्म प्रकृतियां १४७ मोहनीय कर्म के उदयकाल में परलोक प्रयाण १४८-१४६ , बाल-वीर्य से परलोक प्रयाण १५०-१५१ क- मोहनीय के उदयकाल में बालवीर्य से अपक्रमण ___ख- पंडित वीर्य से मोहनीय का उपशमन १५२ आत्मा द्वारा ही अपक्रमण होता है १५३-१५४ मोहनीय कर्म का वेदन होने पर ही मुक्ति. १५५ क- दो प्रकार के कर्म ख- दो प्रकार की कर्म वेदना Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१ उ०५ प्र०१७५ ग- कर्म वेदन और परिणमन के द्रष्टा सर्वज्ञ घ- कृत कर्म का भोग किये बिना मुक्ति नहीं १५६-१५७ पुद्गल की त्रैकालिक स्थिति १५८ क- स्कंध ख- जीव १५-१६० १६१ १६२ १६३ 17 १७०-१७१ "" "„ २७२ "P " 21 छद्मस्थकी केवल संयम, संवर, ब्रह्मचर्य और समिति - गुप्ति के पालन से मुक्ति नहीं भगवती-सूची केवली की ही मुक्ति अंतकृत की मुक्ति प्रश्नोत्तर १५६ से १६२ तक प्रत्येक प्रश्नोत्तर में तीन काल के तीन-तीन विकल्प केवली पूर्ण सर्वज्ञ है पंचम पृथ्वी उद्देशक चौवीस दण्डकों के आवास १६४ सात पृथ्वियाँ ( सात नरक ) १६५ सात नरकों के आवास १६६ भवनवासी देवों के आवास १६७ पृथ्वीकायकों के आवास यावत्-ज्योतिषी देवों के आवास १६८ विमानावास १६६ चौवीस दण्डकों में स्थिति आदि दश स्थान रत्नप्रभा के नरकावासों में स्थिति स्थान जघन्य एवं उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे १७२-१७३ जघन्य या उत्कृष्ट अवगाहना वाले नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे १७४ नैरयिकों में तीन शरीर १७५ तीन शरीर वाले नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २७३ श०१ उ०५ प्र० १६२ १७६ नैरयिक असंघयणी है १७७ असंघयणी नरयिकों में कषाय के २७ भांगे १७८ नैरयिकों का संस्थान १७६ हुंड संस्थानवाले नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे १८० रत्नप्रभा में एक लेश्या १८१ कापोत लेश्यावाले नै रयिकों में कषाय के २७ भांगे १८२ रत्नप्रभा के नैरयिकों में तीन दृषि १८३ सम्यग्दृष्टि और मिथ्याणि नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे सममिथ्यादृष्टि नैरयिकों में कषाय के ८० भांगे १८४ नै रयिक ज्ञानी भी हैं, अज्ञानी भी हैं १८५ ज्ञानी और अज्ञानी नै रयिकों में कषाय के २७ भांगे १५६ नैरयिकों में तीन योग १८७ तीन योग वाले नै रयिकों में कषाय के २७ भांगे १८८ नैरयिकों में साकारोपयोग और अनाकारोपयोग १८६ क- दोनों उपयोगवाले नैरयिकों में कषाय के २७ भांगे ख- शेष ६ नारकों में रत्न-प्रभा के समान ग- लेश्या में भिन्नता १६० क- असुर कुमारों की स्थिति ख- असुर कुमारों में कषाय के प्रतिलोम भाँगे ग- शेष भवनवासी देव असुर कुमारों के समान १६१ क- पृथ्वीकायिकों की स्थिति ख- पृथ्वीकायिकों की स्थिति १६२ क- पृथ्वीकायिकों में कषाय के भांगे नहीं तेजोलेश्यावाले पृथ्वीकायिकों में कषाय के ८० भांगे ख- अप्कायिकों में कषाय के भांगे नहीं ग. तेउकायिकों में , , , घ. वाउकायिको में ,, Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१ उ०६ प्र० २०६ ङ - वनस्पतिकायिकों में 13 " १६३ क - विकलेन्द्रियों में स्थिति आदि दश स्थान ख- कषाय के भांगों में वैविध्य १९४ क- तिर्यंच पंचेन्द्रियों में स्थिति आदि दश स्थान ख- कषाय के भांगों में वैविध्य १९५ क - मनुष्यों में स्थिति आदि दश स्थान ख- कषाय के भांगों में वैविध्य १६६ क- व्यंतर आदि तीन दण्डकों में स्थिति आदि दश स्थान ख- कषाय के भांगों में वैविध्य २०२ २०३ २०४ १६७ उदयास्त के समय समान दूरी से सूर्य दर्शन १९८-२०१ क- उदयास्त के समय समान दूरी से प्रकाश क्षेत्र ख ग २०५ २०६ षष्ठ यावन्त उद्देशक सूर्य २०७ २०८ २०६ 37 37 " 33 २७४ लोक-लोक लोकान्त और अलोकान्त का स्पर्श 33 17 37 31 13 31 द्वीप - समुद्र द्वीपान्त और सागरान्त का स्पर्श " 37 "1 भगवती-सूची ताप क्षेत्र स्पर्श छह दिशाओं में स्पर्श क्रिया विचार जीव द्वारा प्राणातिपात क्रिया प्राणातिपात क्रिया का छह दिशाओं में स्पर्श कृत है वह क्रिया है क्रिया आत्मकृत है 71 " छह दिशाओं में स्पर्श Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २७५ २१० क्रिया सदा ( तीन काल में ) अनुक्रमपूर्वक कृत है २११-२१४ उन्नीस दण्डकों में प्राणातिपात क्रिया । प्रश्नोत्तर २०६ से २१० के समान २१५ २१६ २१७ क ख ग घ २१८ २१६ २२० २२१ २२२ क ख २२३ २२६ २२७ चौवीस दण्डकों में प्राणातिपात यावत् - मिथ्यादर्शन शल्य भ० महावीर और आर्यरोह भ० महावीर से आर्यरोह के ८ प्रश्न पूर्व या पश्चात् लोक- अलोक पूर्व या पश्चात् जीव - अजीव "" "" 11 11 " 11 17 17 21 77 " 3) 31 "" 33 11 " 27 सप्तम तनुवात सप्तम घनवात प्र० २२०-२२१ के समान ( तीन काल में समान ) लोक स्थिति 32 २२४-२२५ क- आठ प्रकार की लोकस्थिति ख- मशक का उदाहरण जीव और पुद्गल श०१ उ०६ प्र० २२७ भवसिद्धिक- अभवसिद्धिक सिद्ध-असिद्धि सिद्ध-असिद्ध अंड कुर्कुटी लोकांत-अलोकांत लोकांत - सप्तम अवकाशांतर आदि लोकांत-सर्वकाल अलोकांत के साथ २२०-२२१ के समान सप्तम अवकाशांतर सप्तम तनुवात प्र० २२०-२२१ के समान जीव और पुद्गल का सम्बन्ध सछिद्र नाव का उदाहरण Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१ उ०७ प्र० २५१ २७६ भगवती-सूची २३३ स्नेहकाय २२८-२३० स्नेह काय का पतन और अवस्थिति सप्तम नैरयिक उद्देशक २३१ चौवीस दण्डक में उत्पाद चतुर्भगी २३२ , , ,, आहार ,, उद्वर्तन ,, २३४ , , ,, आहार , २३५ क- , , , उपपन्न । ख- ,, ,, ,, आहार , २३६ , , ,, उत्पद्यमान ,, विग्रह गति २३७ चौवीस दण्डकों में विग्रह गति और अविग्रह गति २३८ जीव विग्रह गति प्राप्त भी हैं, और अविग्रह गति प्राप्त भी हैं २३६ उन्नीस दण्डकों में विग्रह गति और अविग्रह प्राप्त की चोभ गी श्रागामी भव के आयुष्य का अनुभव २४० महद्धिक देव च्यवन समय से पूर्व तिर्यंचायु या मनुष्यायु का अनुभव करता है गर्भ विचार २४१-२४२ गर्भ में उत्पन्त जीव अपेक्षाकृत सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय २४३-२४४ " " " " सशरीरी और अशरीरी का सर्व प्रथम आहार " " " " आहार २४७ " स्थित " के मलमूत्रादि का अभाव " " आहार का परिणमन ___ " २६७-२४६ " " " कवलाहार का अभाव २५१ गर्भस्थ जीव के मातृ अंग २४५ २४६ २४८ " , Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २७७ श०१ उ०८ प्र० २८२ २५२ " " " पितृ मातृ-पितृ अंगों की जीवन पर्यंत स्थिति, २५४ गर्भगत जीव की नरकोत्पत्ति के हेतु-अहेतु २५-२५६ " " "देवलोकोत्पत्ति के " " २५८ क- गर्भगत जीव का शयन उत्थान आदि माता के समान ख- कर्मानुसार प्रसव ग- " प्रशस्त-अप्रशस्त वर्ण, रूप, गंध, रस, स्पर्श आदि अष्टम बाल उद्देशक २५६ एकांत बाल जीव की चार गति में उत्पत्ति २६० एकांत पंडित की दो गति २६१ बाल-पंडित की एक देव गति क्रिया विचार २४२-२६५ मृग-धातक पुरुषको लगनेवाली क्रियाएँ २६६-२६७ आग लगाने वाले को लगने वाली क्रियाएँ २६८-२७१ मृग-घातक पुरुष को लगनेवाली क्रियाएँ २७२-२७४ पुरुष-घातक " " " " वीर्य विचार २७५-२७६ जीव सवीर्य भी है, अवीर्य भी है २७७-२७६ चौवीस दण्डक के जीव सवीर्य भी है और अवीर्य भी नवम गुरुत्व उद्देशक २८० जीव का गुरुत्व और उसके कारण २८१ जीव का लघुत्व और उसके कारण २८२ क- जीव की संसार वृद्धि और उसके कारण " " हानि " " लम्बा होना" घ. " " " नोमान " " " - " " " भ्रमण Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१ उ० प्र० २६१ २७८ भगवती-सूची च- जीवका अन्त और उसके कारण २८३ सप्तम अवकाशान्तर अगुरु-लघु २८४ क- " तनुवात गुरु-लधु घनवात घनोदधि घ. " पृथ्वी ङ- सर्व अवकाशान्तर अगुरु लघु च- द्वीप, समुद्र और क्षेत्र गुरु लघु २८५ चौवीस दण्डकों में जीवों का लघुत्व और गुरुत्व २६६ चार अस्तिकाय का अगुरु-लघुत्व २८७ पुद्ला स्तिकाय का गुरुलघु-अगुरुलघु २८८-२६० छह द्रव्य लेश्या का गुरुलघुत्व छभाव लेश्या का अगुरुलघुत्व २६१ क- दृष्टि का अगुरु लघुत्व ख- चार दर्शन का " " ग- पांच ज्ञान का " " घ- तीन अज्ञान का " " ङ- चार संज्ञा का च. औदारिक आदि चार शरीर का गुरुत्व-लघुत्व छ- कार्मण शरीर का अगुरु लघुत्व ज- दो योग का झ- सकारोपयोग का अ- अनाकारोपयोग का ट- सर्व द्रव्यों ठ- सर्व प्रदेशों " ड- सर्व पर्यायों ढ- अतीत काल Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २७६ श०१ उ०६ प्र०३०४ २६५ ण- अनागत काल का अगुरुलधुत्व त- सर्व " " " " नीग्रंथ जीवन निग्रंथों के लिए लघुता आदि प्रशस्त है " अक्रोध " " " २६४ निग्रंथों की अन्त: क्रिया के दो विकल्प अन्य तीर्थियों की मान्यता अन्य तीर्थी --एक समय में एक जीव के दो आयु का बंध भ० का महावीरएक समय में एक जीव के एक ही आयू का बंध पाश्र्वापत्य कालास्यवेषी अणगार और सथिवर २६६.२९७ क- सामायिक-सामायिक का अर्थ ख- प्रत्याख्यान-----प्रत्याख्यान " " ग- संयम --संयम घ- संवर -संवर अ- विवेक - विवेक च- व्युत्सर्ग -व्युत्सर्ग कालास्यवेषी के इन प्रश्नों का स्थविरों द्वारा समाधान २६८ क्रोधादि की निंदा का प्रयोजन २६६ गृही संयम और उसका प्रतिफल ३०० कालायस्वेशी द्वारा पंचमहाव्रत धर्म की स्वीकृति क्रिया विचार ३०१-३०२ शेठ, दरिद्र, कृपण और क्षत्रिय को समान अप्रत्याख्यान क्रिया लगती है, श्राहार विचार ३०३-३०४ आधाकर्म आहार करनेवाले निग्रंथ के दृढ कर्मों का बंध होता है Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३०५- ३०६ प्रासुक एषणीय आहार करने वाले निर्ग्रथ के शिथिल कर्मों का बंध होता है ३०७ क - अस्थिर में परिवर्तन होता है। ख- स्थिर में परिवर्तन नहीं होता है। ग- बाल और पंडित शास्वत हैं घ- बालकपन और पंडितपन अशास्वत है झ०२३०१ प्र०५ ३०८ ३०६ ३१० ३११ ३१२-३१३ ३१४- ३१५ ३२६ दशम चलन उद्देशक अन्य तीथिकों की मान्यताएँ तीन परमार पुद्गलों का चिपकना पांच परमाणु पुद्गलों के चिपकने से कर्मबंध बोलने से पूर्व या पश्चात् भाषा पूर्व क्रिया या पश्चात् क्रिया दुःख का हेतु है अकृत्य दुःख है ३१६ ३१७-३२४ भ० महावीर द्वारा इन सात मान्यताओं का समाधान १-५ २८० चलमान अचलित यावत् - निर्जीयमान अनिर्जीण दो परमाणु पुद्गलों का न चिपकना ३२५ क- एक समय में दो क्रिया "} 11 ख एक क्रिया अन्य तीर्थियों की मान्यता और उसका निराकरण 11 उपपात विरह चौवीस दण्डकों में उपपात विरह द्वितीय शतक प्रथम उच्छवास स्कंदक उद्देशक पृथ्वी काय यावत्-वनस्पतिकाय के श्वासोच्छ्वास का पौद्गलिक रूप Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८१ ६-७ श०२ उ०१ प्र०१८ - भगवती-सूची चौवीस दण्डकवर्तीजीवों के श्वासोच्छवास का पौद्गलिक रूप ८ वायुकाय वायुकाय का ही श्वासोच्छ्वास लेता है " में उत्पन्न होता है वायुकाय के जीव आघात से मरते हैं ११-१२" " सशरीरी एवं अशरीरी भी मरते हैं प्रासुक भोजी अनगार १३ अनिरुद्ध भववाले प्रासुक भोजी (मृतादि) निग्रंथ को पुनः मनुष्य भव की प्राप्ति १४-१५ उस निग्रंथ के छह नाम १६ निरुद्ध भववाले प्रासुक भोजी निग्रंथ की मुक्ति १७ उस निग्रंथ के छह नाम स्कंदक परिव्राजक क- स्कंदक परिव्राजक का संक्षिप्त परिचय क- स्कंदक से पिंगल निग्रंथ के प्रश्न ग- लोक सान्त अनन्त घ- जीव " " ङ- सिद्धि " च- सिद्ध " " छ- संसार वृद्धि करने वाला मरण ज- समाधान के लिए भ० महावीर के समीप स्कंदक का गमन झ- भ० महावीर के कथन से स्कंदक के स्वागत के लिये श्री गौतम गणधर का जाना अ- भ० महावीर के समीप गौतम के साथ-साथ स्कंदक का पहुंचना ट- भ० महावीर द्वारा स्कंदक के (पिंगल निग्रंथ के प्रश्नों से उत्पन्न) संशयों का समाधान ठ- भ. महावीर के समीप स्कंदक का प्रवज्या ग्रहण ड- स्कंदक का एकादशांग अध्ययन, भिक्षु पडिमाओं की आराधना. Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२ उ०२-५ प्र०३४ २८२ भगवती-सूची गुणरत्नसंवत्सर तप की आराधना. संलेखणा पादपोगमन, अच्युत देवलोक में गमन. महाविदेह में निर्वाण द्वितीय समुद्घात उद्देशक १६ क- सात समुद्घात ख- चौवीस दण्डकों में समुद्घात. अणगार द्वारा केवली समुद्घात तृतीय पृथ्वी उद्देशक सात पृथ्वियों का वर्णन सर्व प्राणियों की सर्वत्र उत्पत्ति चतुर्थ इन्द्रिय उद्देशक इन्द्रियों का वर्णन पंचम अन्य तीथिक उद्देशक २४ क- अन्य तीथिक-एक समय में दो वेद का वेदन ख- भ० महावीर-~-एक समय में एक वेद का वेदन गर्भ विचार उदक गर्भ का जघन्य उत्कृष्ट काल परिमाण तिर्यंच योनि में गर्भ का जघन्य उत्कृष्ट काल परिमाण मनुषी गर्भ का जघन्य उत्कृष्ट काल परिमाण गर्भ में मरकर पुन: गर्भ में उत्पन्न हो तो उत्कृष्ट गर्भकाल का परिमाण मानुषी और तिर्यंच स्त्री में वीर्य की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ३० एक भव में एक जीव के उत्कृष्ट पिता ३१-३२ एक भव में एक जीव के उत्कृष्ट पुत्र ३३ मैथुन सेवन से होने वाला असंयम तुंगिका नगरी ३४ क- तुंगिका नगरी के श्रावकों का परिचय Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २८३ ख- पाश्वपत्य स्थविरों का परिचय ग- श्रावकों का धर्मश्रवण घ- स्थविरों से श्रावकों के प्रश्न ३५ १- संयम का फल २- तप का फल ३- देवलोक में उत्पन्न होने का कारण ४- काश्यप स्थविर का उत्तर क- स्थवीरों का तुंगिका नगरी से बिहार ख- राजगृह में भ० महावीर और गौतम ग- गौतम की भिक्षाचर्या ङ- स्थविरों की योग्यता के सम्बन्ध में गौतम की जिज्ञासा च - भ० महावीर द्वारा स्थविरों की योग्यता का समर्थन ३७-४६ पर्युपासना के फल की परम्परा राजगृह के बाहर गर्भपानी का कुण्ड ४७ क अन्य तीर्थिक राजगृह के बाहर यह गर्मपानी का कुण्ड अनेक योजन का लम्बा चौड़ा है ख- भ० महावीर - इस " महातपोपतीर प्रभव" करने का परिमाण ५०० योजन है ४८ ४६ ५० षष्ठ भाषा उद्देशक अवधारिणी भाषा सप्तम देव उद्देशक चार प्रकार के देव भवनवासी देवों के स्थान यावत्-वैमानिक देवों के स्थान अष्टम चमरचंचा उद्देशक श०२ उ०६-८ प्र०५१ ५१ क- चमरेन्द्र की सुधर्मा सभा ख- अरुणवर द्वीप, अरुणवर समुद्र Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २८४ ग- तिगिच्छक कूट उत्पात पर्वत की ऊंचाई और उद्वेध घ- गोस्तुभ आवास पर्वत ५२ ङ - पद्मवर वेदिका च- प्रासादावतंसक की ऊंचाई और विष्कम्भ छ- अरुणोदय समुद्र में चमरचंचा राजधानी ज- राजधानी का आयाम विष्कम्भ - प्राकार आदि की ऊंचाई और विष्कम्भ ञ - राजधानी के द्वारों की ऊंचाई विष्कम्भ और परिक्षेप ट- ईशान कोण में जिनगृह ठ- उपपात सभा, अभिषेक सभा आदि नवम समयक्षेत्र उद्देशक समय क्षेत्र का परिमाण दशम अस्तिकाय उद्देशक श०२ उ०६ - १० प्र०७३ T ५३ पंचास्तिकाय ५४ - ५७ पंचास्तिकाय के वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श आदि ५८-६२ धर्मास्तिकाय के प्रदेश धर्मास्तिकाय नहीं है ६३-६४ उत्थान आदि से जीव भाव का वर्णन ६५ दो प्रकार का आकाश ६६ लोकाकाश ६७ अलोकाकाश ६८ लोकाकाश में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि ६६ ७० ७१ ७२ ७३ पंचास्तिकाय की महानता अधोलोक का धर्मास्तिकाय से स्पर्श तिर्यग्लोक का धर्मास्तिकाय से स्पर्श उर्ध्वलोक का धर्मास्तिकाय से स्पर्श रत्नप्रभा का धर्मास्तिकाय से स्पर्श Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २८५ श०३ उ०१ प्र०८ ७४-७५ क- रत्नप्रभा के घनोदधि आदि से धर्मास्तिकाय का स्पर्श - इसी प्रकार धर्मास्तिकाय और लोकाकाश , तृतीय शतक प्रथम चमर विकुर्वणा उद्देशक १ गाथा (दश उद्देशकों के विषय) २ मोका नगरी में भ० महावीर का पदार्पण ३ क- चमरेन्द्र की विकुर्वणा के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा चमरेन्द्र की ऋद्धि का वर्णन ग- चमरेन्द्र की वैक्रिय करने की पद्धति का संक्षिप्त परिचय घ- चमरेन्द्र की वैक्रिय शक्ति का वर्णन ४ चमरेन्द्र के सामानिक देवों की विकुर्वणा शक्ति ५ चमरेन्द्र के त्रास्त्रिशक देवों की विकुर्वणा शक्ति ६ चमरेन्द्र की अग्रमहीषियों की विकूर्वणा शक्ति ७ क- अग्निभूति का वायुभूति के समीप गमन ख- वायुभूति के सामने अग्निभूति द्वारा चमरेन्द्र आदि की विकुर्वणा शक्ति का वर्णन ग- अग्निभूति के कथन के प्रति वायुभूति की अश्रद्धा घ- वायुभूति का भ० महावीर के समीप गमन ङ- भ० महावीर द्वारा अग्निभूति के कथन का समर्थन च- वायुभूति का अग्निभूति से क्षमायाचन . . ८ क- अग्निभूति और वायुभूति का भ० महावीर के समीप सह आगमन ख- वैरोचनेन्द्र के सम्बन्ध में वायुभूति की जिज्ञासा ग- भ० महावीर द्वारा चमरेन्द्र आदि के समान वैरोचनेन्द्र आदि की विकुर्वणा शक्ति का वर्णन Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २८६ श०३ उ०१ प्र०१५ ६ क- धरण-नागकुमारेन्द्र आदि की विकुर्वणा के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा धरणेन्द्र आदि की विकुर्वणा का वर्णन ग- दक्षिण के इन्द्रों के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा और भ० महावीर द्वारा समाधान घ- उत्तर के इन्द्रों के सम्बन्ध में वायुभूति की जिज्ञासा और भ० महावीर द्वारा समाधान क- शक्रेन्द्र की विकुर्वणा शक्ति के सम्बन्ध में अग्निभूति की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा शकेन्द्र की ऋद्धि का वर्णन ग- शक्रेन्द्र आदि की विकुर्वणा शक्ति का वर्णन ११ क- भ० महावीर का शिष्य तिष्यक शर्केन्द्र के सामानिक देवरूप में उत्पन्न ख- तिष्यक देव की विकुर्वणा शक्ति । १२ क- शकेन्द्र के अन्य सामानिक देवों की विकुर्वणा शक्ति ख- शकेन्द्र के त्रायस्त्रिश देव की विकुर्वणा शक्ति ग- शकेन्द्र के लोकपाल देव की विकूर्वणा शक्ति घ- शक्रेन्द्र के अग्रमहीषियों की विकुर्वणा शक्ति १३ क- ईशानेन्द्र की विकुर्वणा शक्ति के सम्बन्ध में वायुभूति की जिज्ञासा ___ ख- भ० महावीर द्वारा ईशानेन्द्र की विकुर्वणा का वर्णन १४ क- भ० महावीर का शिष्य कुरुदत्त ईशानेन्द्र के सामानिक देव रूप में उत्पन्न ख- कुरुदत्त सामानिक देव की विकुर्वणा शक्ति । ग- अन्य सामानिक देव त्रायस्त्रिश लोकपाल और अग्रमहीषियों की विकुर्वणा शक्ति १५ क- भ० महावीर का मोका नगरी से विहार ख- भ० महावीर का राजगृह में पदार्पण ग- भ० महावीर की वंदना के लिने ईशानेन्द्र का आगमन Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३ उ०१ प्र०२७ २८७ भगवती-सूची घ. ईशानेन्द्र की दिव्य ऋद्धि के सम्बन्ध में गौतम की जिज्ञासा __ङ- भ० महावीर द्वारा समाधान १६ दिव्य ऋद्धि का ईशानेन्द्र के शरीर में प्रवेश १७ क- ईशानेन्द्र का पूर्व भव ख- ताम्रलिप्ती नगरी में मौर्यपुत्र गाथापति द्वारा प्रणामा प्रव्रज्या का ग्रहण करना ग- मौर्यपुत्र का अभिग्रह घ- प्रणामा प्रव्रज्या की विधि ङ- मौर्यपुत्र का अपरनाम तामली च- तामली का पादपोपगमन अनशन छ- इन्द्ररहित बलिचंचा राजधानी के अनेक असुरों द्वारा तामली से ___वैरोचनेन्द्र पद के लिये निदान करने का आग्रह ज- तामली की अस्वीकृति झ- तामली का ईशानेन्द्र होना ज- बलिचंचा राजधानी के असुरों द्वारा तामली के शव का अपमान ट- ईशानेन्द्र के सामने ईशान कल्पवासी देवों द्वारा बलिचंचावासी ___असुरों के कुकृत्य की चर्चा ठ- ईशानेन्द्र द्वारा बलिचंचा राजधानी भष्म ड- बलिचंचा राजधानीवासी असुरों द्वारा ईशानेन्द्र से क्षमा याचना १८ ईशानेन्द्र की स्थिति १६ ईशानेन्द्र का च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण २०-२१ शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के विमानों की ऊंचाई में अन्तर २२-२५ शकेन्द्र का ईशानेन्द्र के पास और ईशानेन्द्र का शकेन्द्र के पास गमन शकेन्द्र-ईशानेन्द्र के और ईशानेन्द्र-शकेन्द्र के चारों और देखने में समर्थ शकेन्द्र -ईशानेन्द्र से और ईशानेन्द्र-शकेन्द्र से वार्तालाप करने में समर्थ Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २८८ श०३ उ०२ प्र०५६ २८-२६ शकेन्द्र और ईशानेन्द्र का एक-दूसरे के कार्य में परस्पर सहयोग ३०-३१ शकेन्द्र और ईशानेन्द्र के विवादों का सनत्कुमारेन्द्र द्वारा निर्णय ३२-३३ सनत्कुमार भवसिद्धिक-यावत्-चमर है ३४ सनत्कुमार देवेन्द्र की स्थिति सनत्कुमार का महाविदेह में जन्म और निर्वाण द्वितीय चमरोत्पात उद्देशक ३६ क- राजगृह में भ० महावीर और गौतम तथा परिषद् ख- भ० महावीर के सामने चमरेन्द्र का नाट्य प्रदर्शन और पुनः स्वस्थानगमन ३७.३८ असुरों का रत्नप्रभा के बीच में निवास स्थान ३६-४१ क- सातवीं पृथ्वी पर्यंत असुरों के जाने का सामर्थ्य ख. तृतीय पृथ्वी पयंत असुरों का सकारण गमन ४२-४४ क- असुरों का नंदीश्वर द्वीप में गमन ग- असुरों का अरिहंतों के पंच कल्याण प्रसंगों में तिर्यग् लोक में आगमन . ४५-४७ क- असुरों का उप्रलोक में अच्युत देव लोक पर्यंत गमन सामर्थ्य ख- असुरों का सौधर्म पर्यन्त सकारण गमन ४८-५० क- असुरों द्वारा वैमानिक देवों के रत्नों का अपहरण ख- रत्नों के अपहरण से असुरों के शरीर में व्यथा ग- वैमानिक अप्सराओं के साथ असुरों का ऐच्छिक स्नेह संबंध अनन्त उत्सर्पिणी-अवपिणी के पश्चात् असुरों का सौधर्म पर्यन्त गमन अरिहन्त आदि की निश्रा से असुरों का सौधर्म आदि में गमन महधिक असुरों का सौधर्म में गमन चमरेन्द्र का सौधर्म में गमन चमरेन्द्र की वैक्रिय ऋद्धि का चमरेन्द्र के शरीर में पुनः प्रवेश ५६ क- चमरेन्द्र का पूर्वभव Y MOK Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २८९ श०३ उ०२ प्र०६१ ख- जंबू द्वीप. भरत क्षेत्र. विध्यगिरि की तलहटी. बेभेल सन्निवेश ग- पूरण गाथापति का “दानामा प्रव्रज्या" ग्रहण करना घ- पूरण का अभिग्रह ङ- दानामा प्रव्रज्या के विधि-विधान च- पूरण का पादपोपगमन अनशन छ- भ० महावीर के छद्मस्थ जीवन का इग्यारवां वर्ष ज- सुंसुमारपुर के बाहर अशोक वन में भ० महावीर द्वारा एक रात्री की भिक्षु प्रतिमा की आराधना झ- पूरण का चमरेन्द्र के रूप में उपपात ब- चमरेन्द्र द्वारा सौधर्म कल्प के शवेन्द्र का अवलोकन ट- चमरेन्द्र का रोष ठ- भ० महावीर की निश्रा में चमरेन्द्र का सौधर्म कल्प में गमन ड- चमरेन्द्र का शकेन्द्र को ललकारना ढ- शकेन्द्र का चमरेन्द्र पर वज्रप्रहार ण- चमरेन्द्र का पलायन और शकेन्द्र का पीछा करना त- भ० महावीर के चरणों की शरण में चमरेन्द्र का पहँचना थ- शक्रेन्द्र का अवधि प्रयोग और वज्र को पकड़ना द- शकेन्द्र का भ० महावीर से क्षमा याचना ध. शकेन्द्र का चमरेन्द्र को अभयदान और शकेन्द्र का चमरेन्द्र को न पकड़ सकने का कारण ५७-५८ पुद्गलगति और दिव्यगति का अन्तर ५६ क- शक्रेन्द्र की उर्ध्वगति और चमरेन्द्र की अधोगति तीव्र होती है ख- इन्द्र और वज्र की गति में अन्तर ६० उर्ध्व, अधो व मध्यलोक में शकेन्द्र की गति का अल्प-बहत्व ६१ क- ऊर्ध्व, अधो व मध्यलोक में चमरेन्द्र की गति का अल्प-बहुत्व ख- वज्र की गति का अल्प-बहुत्व Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञ०३ उ०३ प्र०८० २६० भगवती-सूची ६२ शकेन्द्र और चमरेन्द्र की अधो-उर्ध्व गति का कालमान और अल्प-वहुत्व ६३ वज्र की अधो-ऊर्ध्व गति का कालमान और अल्प-बहुत्व ६४ क- शकेन्द्र, वज्र और चमरेन्द्र की अधो-ऊर्ध्व गति का कालमान और अल्प-बहुत्व ख- चमरेन्द्र की चिन्ता ग- चमरेन्द्र का भ० महावीर की चरण वंदना के लिए आगमन ६५ सौधर्म कल्प में असुरों के जाने का कारण तृतीय क्रिया उद्देशक ६६ क- राजगृह-भ० महावीर . ख- क्रिया के सम्बन्ध में मंडितपुत्र की जिज्ञासा ग- पांच प्रकार की क्रिया ६७ दो प्रकार की कायिकी क्रिया दो प्रकार की आधिकरणिकी क्रिया दो प्रकार की प्राद्वेषिकी क्रिया दो प्रकार की परितापनिकी क्रिया दो प्रकार की प्राणातिपात क्रिया क्रिया और वेदना की पूर्वापरता ७३-७४ श्रमण निग्रंथों की क्रिया के दो कारण जीव का कंपन आदि जीव का कम्पन-यावत्-परिणमन क्रिया अंतःक्रिया के समय कंपन-यावत्-परिणमन क्रिया का अभाव कंपन-यावत्-परिणमन किया के कारण ७८ जीव की निष्क्रिय दशा ७६ निष्क्रिय का निर्वाण ८० क- निर्वाण के कारण ख- पूले के जलने का उदाहरण ७५ ७६ ७७ Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगववी-सूती २६१ श०३ उ०४ प्र०६४ ग- तप्ततवेपर उदक बिन्दु के नष्ट होने का उदाहरण घ. रिक्त नौका का उदाहरण ङ. संवृत अणगार की इर्यावही क्रिया तथा अकर्म दशा प्रमत्त और अप्रमत्त संयम एक या अनेक जीवों की अपेक्षा से प्रमत्त संयत की स्थिति एक या अनेक जीवों की अपेक्षा से अप्रमत्त संयत की स्थिति लवण समुद्र में ज्वार-भाटा लवण समुद्र में ज्वार-भाटा आने का कारण चतुर्थ यान उद्देशक ८४ अणगार देवरूप यान को देखता भी है और नहीं भी देखता है देवरूप यान की चोभंगी ८५ क- अणगार देवीरूप यान को देख भी सकता है और नहीं भी देख सकता है ख- देवीरूपी यान की चोभंगी ८६ क- अणगार देव-देवीरूप यान को देख सकता है और नहीं भी देख सकता है ख- देव-देवी रूप यान की चोभंगी ८७-८८ क अणगार वृक्ष के अन्दर-बाहर दोनों भागों को देख सकता है ख- मूल और कंद की चोभंगी ग- मूल और स्कंध की चौभंगी घ. मूल और बीज की चौभंगी-यावत् ङ- फल और बीज की चौभंगी-४५ भागे वायुकाय ८६ वायुकाय की पताकारूप में विकुर्वणा विकुर्वितरूप वायुकाय की गति का परिमाण ६१-६४ वायुकाय की गति के सम्बन्ध में विविध विकल्प Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३ उ०५ प्र०१२६ २६२ भगवती-सूची मेघ बलाहक (मेघ) का स्त्रीरूप में परिणमन बलाहक (मेघ) का स्त्रीरूप में गमन बलाहक (मेघ) का पर ऋद्धि से गमन बलाहक बलाहक ही है बलाहक का यान आदि के रूप में गमन लेश्या के द्रव्य १००-१०२ चौवीस दण्डकों में लेश्याद्रब्यों के अनुरूप जीवों की उत्पत्ति अणगार विकुर्वण १०३-१०४ बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके की हुई विकुर्वणा से अणगारका वैभारगिरि उल्लंघन १०५ क- बाह्य पुद्गलों को गहण करके की हुई विकुर्वणा से अणगार का वैभारगिरि प्रवेश ख- बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके की हुई विकुर्वणा से अणगार का वैभारगिरि पर्वत को सम-विषम रूप में परिवर्तन १०६ मायी अणगार ही विकुर्वणा करता है १०७ क- विकुर्वणा के कारण ख- मायी अनाराधक-अमायी आराधक पंचम स्त्री उद्देशक १०८-१०६ अणगार की स्त्रीरूप में विकुर्वणा ११० अणगार की वैक्रिय सामर्थ्य १११ अणगार का ढाल-तलवार बांधकर आकाश में गमन ११२ अणगार का वैक्रिय सामर्थ्य ११३-१२४ अणगार की विकुर्वणा के विविधरूप १२५-१२६ मायी और अमायी अणगार की देव गति Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३ उ०६-७ प्र०१४६ २६३ भगवती-सूची १४२ षष्ठ नगर उद्देशक १२७-१२६ राजगृह स्थित मिथ्या दृष्टि अणगार की वैक्रिय लब्धि से वाराणसी विकुर्वण तथा विभंग ज्ञान से विपरीत दर्शन १३०-१३३ भावित आत्मा अणगार की विकुर्वणा का मायी मिथ्या दृष्टि के विभंगज्ञान से विपरीत दर्शन १३४-१३६ भावित आत्मा अणगार की विकुर्वणा का अमायी सम्यग्दृष्टि के अवधिज्ञान से यर्थार्थ दर्शन १४० भावित आत्मा अणगार द्वारा ग्राम, नगर आदि की विकुर्वणा १४१ भावित आत्मा अणगार का का वैक्रिय सामर्थ्य चमरेन्द्र चमरेन्द्र के आत्मरक्षक देवों का परिवार सप्तम लोकपाल उद्देशक १४३ शकेंद्र के चार लोकपाल . १४४ चार लोकपालों के चार विमान १४५ क- सोम लोकपाल के संध्यप्रभ महाविमान का स्थान ख. संध्यप्रभ महाविमान की लम्बाई, चौड़ाई और परिधि ग- सोभाराजधानी की लम्बाई-चोड़ाई घ- सोम लोकपाल के आज्ञावर्ती देव-देवियाँ ङ- सोमलोकपाल के तत्वावधान में होनेवाले कार्य च. सोम लोकपाल के अपत्यरूप देवों के नाम छ- सोमलोकपाल की स्थिति ज- सोमलोकपाल के अपत्यरूप देवों की स्थिति १४६ क- यम लोकपाल के वाशिष्ट विमान का स्थान और लम्बाई-चौड़ाई ख- ---यावत् -- प्रश्नोत्तरांक १४५ ग के समान ग- यम लोकपाल के आज्ञानुवर्ती देव-देवियाँ घ- यम लोकपाल के तत्वावधान में होने वाले कार्य Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३ उ०८ प्र०१५० २६४ भगवती-सूची ङ- यमलोकपाल के अपत्यरूप देवों के नाम च- यमलोकपाल की स्थिति छ- यम लोकपाल के अपत्यरूप देवों की स्थिति १४० क- वरुण लोकपाल के सतंजल महाविमान का स्थान सतंजल महाविमान की लम्बाई-चौड़ाई ग- १४५ के समान घ- वरुण लोकपाल के आज्ञानुवर्ती देव-देवियाँ ङ- वरुण लोकपाल के तत्त्वावधान में होने वाले कार्य च- वरुण लोकपाल के अपत्यरूप देवों के नाम छ- वरुण लोकपाल को स्थति ज- वरुण लोकपाल के अपत्यरूप देवों की स्थिति १४८ क- वैश्रमण लोकपाल के वल्गु महाविमान का स्थान ख- वल्गु महाविमान की लम्बाई-चौड़ाई ग- वैश्रमण की राजधानी का वर्णन १४५ के समान घ- वैश्रमण लोकपाल के आज्ञानुवर्ती देव-देवियाँ ङ. वैश्रमण लोकपाल के तत्त्ववधान में होने वाले कार्य च- वैश्रमण लोकपाल के अपत्यरूप देवों के नाम छ- वैश्रमण लोकपाल की स्थिति ज- वैश्रमण लोकपाल के अपत्यरूप देवों की स्थिति अष्टम देवाधिपति उद्देशक १४६ असुर कुमारों के दश अधिपति १५० क- नाग कुमारों के दश अधिपति ख- सुवर्ण कुमारों के दश अधिपति ग- विद्युत्कुमारों के दश अधिपति घ- अग्निकुमारों के दश अधिपति ङ. द्वीप कुमारों के दश अधिपति Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०४ उ०८ प्र०४ २६५ भगवती-सूची च- उदधिकुमारों के दश अधिपति छ- दिशा कुमारों के दश अधिपति ज- वायु कुमारों के दश अधिपति झ- स्तनित कुमारों के दश अधिपति अ- दक्षिण दिशा के भवनपतियों के लोकपाल १५१ क- पिशाचों के दो अधिपति-यावत्-पतंगदेव के दो अधिपति ख- ज्योतिषी देवों के दो अधिपति १५२ सौधर्म-ईशानकल्प के दश अधिपति-यावत्-सहस्रागार पर्यंत दश अधिपति आनतादि चार कल्प के दो अधिपति नवम इन्द्रिय उद्देशक १५३ पांच इन्द्रियों के विषय दशम परिषद् उद्देशक चमरेन्द्र की तीन सभायें-यावत्-अच्युत पर्यन्त तीन सभायें चतुर्थ शतक चार लोकपाल-विमान उद्देशक ईशानेन्द्र के चार लोकपाल चार लोकपालों के चार विमान ३ क- सोम लोकपाल के सुमन महाविमान का स्थान लम्बाई चौडाई आदि ख- शेष तीन विमानों के तीन उद्देशक ग- चारों लोकपालों की स्थिति घ. चारों लोकपालों के अपत्यरूप देवों की स्थिति चार लोकपाल-राजधानी उद्देशक ४ चार लोकपालों की चार राजधानियां १५४ Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २६६ श०५उ०१ प्र०१६ m w नवम-नैरयिक उद्देशक नैरयिक नरयिकों में उत्पन्न होता है दशम लेश्या उद्देशक नीललेश्या का संयोग पाकर कृष्ण लेश्या का नील लेश्या रूप में परिणमन पंचम शतक प्रथम सूर्य उद्देशक १ क- चंपा नगरी. पूर्णभद्र चैत्य .. ख- भ० महावीर और गौतम २ सूर्य का उदयास्त भिन्न-भिन्न दिशाओं में ३ जम्बूद्वीप में दिवश और रात्रियों ४-६ जम्बुद्वीप में दिवस और रात्रि का परिमाण तीन ऋतुएँ १०-११ जम्बुद्वीप में वर्षा ऋतु १२ क- जम्बुद्वीप में हेमन्त ऋतु ख- जम्बुद्वीप में ग्रीष्म ऋतु अयन १३ क- जम्बुद्वीप में अयन ख- जम्बुद्वीप में युग-यावत्-सागरोपम १४ क- जम्बुद्वीप में उत्सर्पिणी काल ख- जम्बुद्वीप में अवसर्पिणी काल लवणसमुद्र १५ लवण समुद्र में सूर्योदय-सूर्यास्त लवण समुद्र में उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची १७ १८- १६ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६-२८ २६ ३० ३१ ३२ ३३-३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३६ २६७ धातकी खंड धातकी खंड में सूर्योदय सूर्यास्त धातकी खंड में दिवस - रात्रि धातकी खंड में उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी कालोद समुद्र लवण के समान पुष्करार्ध द्वोप धातकी खंड के समान द्वितीय वायु उद्देशक चार प्रकार के वायु भिन्न-भिन्न दिशाओं में वायु का वहन द्वीप में चार प्रकार का वायु समुद्र में चार प्रकार का वायु द्वीप और समुद्र के वायु का परस्पर विपर्यास चार प्रकार के वायु वायु की स्वाभाविक गति चार प्रकार के वायु का वहन वायु की वैक्रिय गति श०५ उ०२ प्र०३६ वायु कुमार द्वारा वायु की उदीरणा वायु का श्वासोच्छ्वास ओदन आदि ओदन, कुल्माष और सुरा के पूर्व शरीर लोहा, तांबा आदि के पूर्व शरीर अस्थि, चर्म आदि के पूर्व शरीर इंगाल आदि के पूर्व शरीर Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २४८ श० ५ उ०३-४ प्र०५७. लवण समुद्र लवण समुद्र का विष्कम्भ और परिधि तृतीय जालग्रंथिका उद्देशक ४१ क- अन्य तीथिक --- एक समय में दो आयु का वेदन जाल ग्रंथिका का उदाहरण ख- भ० महावीर-एक समय में एक आयु का वेदन शृंखला का उदाहरण ४२-४३ चौवीस दंडक में आयुष्य सहित जीवों का गमन कर्मानुसार योनि का आयुबंधन चतुर्थ शब्द उद्देशक छद्मस्थ मनुष्य का आतोद्य शब्द सुनना छद्मस्थ मनुष्य का स्पष्ट शब्द सुनना छद्मस्थ मनुष्य का समीपवर्ती शब्द सुनना केवली समीप और दूर दोनों प्रकार का शब्द सुन लेता है छद्मस्थ मनुष्य हंसता है केवली हँसते नहीं हैं ५२ न हँसने का कारण उन्नीस दण्डक में हँसने वाले जीव सात-आठ कर्म बांधते हैं ५४ क- छद्मस्थ मनुष्य नींद व ऊंघ लेता है ख- केवली नींद व ऊंघ नहीं लेते ग- नींद-ऊंघ न लेने का कारण ५५ उन्नीस दण्डकों में नींद व ऊंघ लेने वाले जीवों के ७-८ कर्म हरिणगमैषी देव ५६ क- हरिणगमेषी देव द्वारा गर्भ साहरण ख- गर्भ साहरण की चौभंगी ५७ हरिणगमेषी देव का नखाग्न से गर्भसाहरण सामर्थ्य • ४८ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ६०-६३ आर्य अतिमुक्तक ५८ क- भ० महावीर का अंतेवासी अतिमुक्त कुमार श्रमण ख अतिमुक्त की नौका क्रीड़ा ग- अतिमुक्त की इसी भव में मुक्ति घ- अतिमुक्तक की निंदा न करने तथा सेवा करने के लिए भ० महावीर का आदेश देव आगमन ५६ क- भ० महावीर के समीप दो देवों का महाशुक कल्प से आगमन ख- भ० महावीर और देवों का मन से प्रश्नोत्तर करना ग- देवों के सम्बन्ध में गौतम की जिज्ञासा ६४ ७० २६६ ७१-७२ ७३-७६ घ- गौतम और देवों का वार्तालाप ङ - देवों का स्वस्थान गमन केवली और छद्मस्थ ६५ केवली को मुक्त आत्मा का ज्ञान ६६ क - छद्मस्थ को मुक्त आत्मा का अज्ञान ख- दो साधनों से छद्मस्थ को ज्ञान होता है जिनसे ज्ञान सुनकर छद्मस्थ ज्ञान प्राप्त करता है चार प्रकार के प्रमाण ७७ श०५ उ०४ प्र० ७७० ६७ ६८ ६६ क - केवली को अंतिम कर्म वर्गणा का ज्ञान ख- छद्मस्थ को अंतिम कर्म वर्गणा का अज्ञान देवों को नो संगत कहना उचित है देवताओं की भाषा अर्धमागधी भाषा है केवली का उत्कृष्ट मनोबल व वचनबल वैमानिक देवों का उत्कृष्ट मनोबल व वचनबल अनुत्तर देव और केवली का आलाप - संलाप अनुत्तर देव उपशांत मोही हैं। Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०५ उ०५-६ प्र०६४ ३०० भगवती-सूची '७८-७९ ८०-८१ ८४ ८५-८६ केवली का अतीन्द्रिय ज्ञान केवली का आकाश प्रदेशावगाहन सामर्थ्य चौदह पुर्वी ८२-८३ चौदह पूर्वधारी का लब्धिसामर्थ्य पंचम छद्म स्थ उद्देशक छद्मस्थ की संयम से सिद्धि अन्य तीर्थिकसभी प्राणी एवं भूत वेदना का वेदन करते हैं भ० महावीर--- सभी प्राणी एवं भूत और अनेवंभूत वेदना का वेदन करते हैं ८७-८८ चौवीस दंडक मे दोनों प्रकार की वेदना का वेदन संसार मंडल कुलकर आदि ८६ क- जम्बूद्वीप. भरतक्षेत्र ख- इस अवसर्पिणी में सात कुलकर हुए ग- तीर्थंकरों के माता-पिता घ- चक्रवर्ती की माता और स्त्री रत्न ङ- बलदेव-वासुदेव, वासुदेव के माता-पिता च- प्रतिवासुदेव, सभी समवायांग के समान षष्ठ अायु उद्देशक अल्पायु के तीन कारण दीर्घायु के तीन कारण अशुभ दीर्घायु के तीन कारण ६३ शुभ दीर्घायु के तीन कारण क्रिया विचार ६४ क- चोरी में गये हुए माल की शोध करने में लगनेवाली क्रियाएँ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०५ उ०६ प्र०१०३ ३०१ भगवती-सूची ख- चोरी में गया माल मिलने पर लगनेवाली क्रियाएँ विक्रेता और क्रेता को लगने वाली, क्रियाएँ विक्रेता के बीजक देने पर किन्तु क्रेता के माल न जाने तक लगनेवाली क्रियाएँ क्रेता के घर माल पहुँचने पर क्रेता को और विक्रेता को लगनेवाली क्रियाएँ क्रेता के मूल्य देने या न देने पर लगनेवाली क्रियाएँ अग्निकाय-कर्मबंधन अग्नि प्रज्वलित करनेवाले के अधिक कर्म बंध अग्नि शांत करनेवाले के अल्प कर्म बंध क्रिया विचार ९-१०० शिकारी, धनुष, प्रत्यंचा आदि को लगनेवाली क्रियाएँ अन्य तीथिकचार सौ पांच सौ योजन का मनुष्य लोक है भ. महावीर चार सौ पांच सौ योजन का निरयलोक है १०२ नैरयिकों का वैक्रिय आधाकर्म श्राहार १०३ क- आधाकर्म आहार का सेवी आलोचना करे ती आराधक ___आधाकर्म आहार का सेवी आलोचना न करे तो अनाराधक ख- क्रीत ग- स्थापित घ. रचित ङ- कांतार भक्त च- भिक्ष भक्त छ- वादलिका भक्त ज- ग्लान भक्त Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०५ उ०७ प्र०११८ १०४ १०५ १०६ १०७ भ- शय्यातर भक्त ञ - राजपिंड भक्त ११२-११३ ११४ ११८ ३०२ आधाकर्म आहार को अनवद्य सब के दो-दो विकल्प 17 27 सब के दो-दो विकल्प आधाकर्म आहार को निष्पाप कहकर आदान प्रदान करने "" आचार्य उपाध्याय कर्तव्य निष्ठ आचार्य एवं उपाध्याय की तीन भव से मुक्ति मृषावादी मृषावाद से कर्म बंधन सप्तम पुद्गल कंपन उद्देशक १०८ परमाणु - पुद्गल का कंपन १०-१११ क- दो, तीन और चतुः प्रदेशी स्कंध का कंपन ख- पंच प्र देशी - यावत् - अनंत प्रदेशी स्कंध का कंपन भगवती-सूची "3 " ११५ ११६-११७ दो प्रदेशी स्कंध सार्ध, समध्य और सप्रदेशी हैं 33 वाला अनाराधक परमाणु पुद्गल यावत् - असंख्य प्रदेशी स्कंध का असिधारा से छेदन नहीं "" अनंत प्रदेशी स्कंध का असिधारा से छेदन अनंत प्रदेशी स्कंध का अग्नि से ज्वलन अनंत प्रदेशी स्कंध का पानी से आर्द्र होना अनंत प्रदेशी स्कंध का पुष्करावर्त मेघ से गीला होना परमाणु पुद्गल अनर्ध, अमध्य और अप्रदेशी हैं तीन प्रदेशी स्कंध अनर्ध, समध्य और सप्रदेशी हैं संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशी स्कंध, सार्ध, समध्य और सप्रदेशी हैं Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०५ उ०७ प्र०१३६ ३०३ भगवती-सूची १२४ ११६-१२१क- परमाणु पुद्गल का स्पर्शन-नव विकल्प ख- दो प्रदेशी-यावत्-अनंत प्रदेशी स्कंध का स्पर्शन १२२ परमाणु पुद्गल-यावत्-अनंत प्रदेशी स्कंध की स्थिति १२३ एक प्रदेशावगाढ पुद्गल-यावत्-असंख्यप्रदेशावगाढ पुद्गल का कंपन एक प्रदेशावगाढ-पुद्गल-यावत्-असंख्यप्रदेशावगाढ पुद्गल का निष्कम्प १२५ क- एक गुण काले पुद्गल की स्थिति ख- यावत्-अनंतगुण काले पुद्गल की स्थिति ग- शेष वर्णन-गध, रस, स्पर्श की स्थिति घ- सूक्ष्म परिणत पुद्गल की स्थिति ङ- बादर परिणत पुद्गल की स्थिति १२६ शब्द परिणत पुद्गल की स्थिति अशब्द परिणत पुद्गल की स्थिति १२७ स्कंध से परमाणु पुद्गल के विभक्त होने का काल द्विप्रदेशी-यावत्-अनंत प्रदेशी स्कंध के विभक्त होने का काल १२६ एक प्रदेशावगाढ पुद्गल-यावत्-असंख्य प्रदेशावगाढ पुद्गल का कंपन काल १३० क- एक प्रदेशावगाढ पुद्गल-यावत्-असंख्य प्रदेशावगाढ पुद्गल का निष्कंपन काल ख- वर्णादि परिणत तथा सूक्ष्म-बादर परिणत पुद्गल का काल १३१ शब्द परिणत पुद्गल का काल अशब्द परिणत पुद्गल का काल श्रायु अल्प-बहुत्व द्रव्यादि चार प्रकार के आयु का अल्प-बहुत्व परिग्रह १३४-१३६ चौवीस दण्डक में आरंभ-परिग्रह १२८ Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०५ उ०८-६ प्र०१७० ३०४ भगवती-सूची १५३ चौक हेतु-अहेतु १४०-१४६ हेतु-अहेतु के आठ सूत्र अष्टम निग्रंथी पुत्र उद्देशक १४६ भ० के शिष्य नारदपुत्र और निग्रंथी पुत्र के प्रश्नोत्तर १५० नारदपुत्र का मत-सर्व पुद्गल सार्ध, समध्य, सप्रदेश है निग्रंथीपुत्र का सापेक्षवाद ----- द्रव्यादेश आदि का पुद्गलों से अल्प-बहुत्व जीवों की वृद्धि-हानि १५२ जीव घटते नहीं हैं, सदा समान रहते हैं। चौवीस दण्डक में जीव बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और समान भी रहते है १५४ सिद्ध घटते नहीं हैं १५५ चौवीस दण्डक के जीवों का हानि वृद्धि और अवस्थिति काल १५६ सिद्धों का वृद्धि और अवस्थिति काल १५७ क- जीवों का सोपचय-निरुपचय. ४ विकल्प ख- चौवीस दण्डक के जीवों का सोपचय-निरुपचय सिद्ध सोपचय निरुपचय है जीवों का सोपचय-निरुपचय काल चौवीस दण्डक के जीवों सोपचय-निरुपचय काल सिद्धों का सोपचय-निरुपचय काल नवम राजगृह उद्देशक ६१२ राजगृह नगर की व्याख्या प्रकाश और अन्धकार १६३-१६४ प्रकाश और अन्धकार का शुभाशुभ १६५-१७० चौवीस दण्डक में प्रकाश और अन्धकार अर्थात् पुद्गलों का शुभाशुभपना xx rur Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०६ उ०१प्र० ४ . ३०५ भगवती-सूची समय ज्ञान १७१-१७४ चौवीस दण्डक में समय का ज्ञान पार्थापत्य और महावीर १७५-१७६क- पापित्य स्थविरों का भ० महावीर से प्रश्न असंख्य लोक में अनन्त रात्रि-दिन ख- लोक के सम्बन्ध में भ० पार्श्वनाथ और भ० महावीर का एकमत ग- पापित्य स्थविरों का पंच महाव्रत ग्रहण कुछ पापित्यों की मुक्ति और कुछ की देवगति देवलोक १७७ चार प्रकार के देवलोक दशम चंद्र उद्देशक चम्पा नगरी चन्द्र वर्णन पंचम शतक प्रथम उद्देशक के समान सूर्य के स्थान में चन्द्र का कथन षष्ठ शतक प्रथम वेदना उद्देशक १ क- वेदना और निर्जरा की समानता ख- महावेदना और अल्प वेदना में प्रशस्त वेदना की उत्तमता २ छठ्ठी-सातवीं नरक में महावेदना ३ नरयिकों और श्रमण निग्रंथों के निर्जरा की तुलना ४ क- वस्त्र का उदाहरण ख- एरण का उदाहरण ग- घास के पूले का उदाहरण घ- लोहे के गोले का उदारण Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३०६ श०६ उ०२-३ प्र०३.१ जीव और करण ५-११ चार प्रकार के करण वेदना और निर्जरा १२-१३ वेदना और निर्जरा की चौभंगी नैरयिकों व श्रमणों के निर्जरा की तुलना द्वितीय आहार उद्देशक राजगृह नगर आहार, वर्णन तृतीय महा आश्रव उद्देशक महा आश्रव वाले के महाबन्ध वस्त्र का उदाहरण अल्प आश्रव वाले के अल्पबंध वस्त्र का उदाहरण वस्त्र और पुद्गलोपचय जीव और कर्मोपचय १६-२० वस्त्रों के दो प्रकार का पुद्गलोपचय जीवों के प्रयोग से कर्मोपचय २१ । चौवीस दण्डक में प्रयोग से कर्मोपचय वस्त्र के पुद्गलोपचय सादि-सान्त जीव के कर्मोपचय की चौभंगी जीव के कर्मोपचय सादि अनन्त न होने का कारण वस्त्र सादि-सांत आदि चौभंगी २६-२७ जीव सादि-सांत आदि चौभंगी कर्मों की स्थिति २८ आठ कर्म प्रकृतियां आठ कर्म प्रकृतियों की स्थिति कर्मों के बांधने वाले ३०-३१ तीन वेदवाले जीवों के आठ कर्मों का बन्धन २६ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३०७ श०६उ०४ प्र० ५५ mr m mr mr or 9 m mr m 0 0 ४१ ४५ संयत आदि के आठ कर्मों का बन्धन सम्यगधि जीवों के आठ कर्मों का बन्धन संज्ञी आदि के आठ कर्मों का बन्धन भव सिद्धिक आदि के कर्मों का बन्धन चक्षु दर्शन आदि दर्शन वाले जीवों के आठ कर्मों का बन्धन पर्याप्त आदि के आठ कर्मों का बन्धन भाषक आदि के आठ कर्मों का बन्धन परित्त आदि के आठ कर्मों का बन्धन आभिनिबोधिक ज्ञानी आदि के आठ कर्मों का बन्धन मति अज्ञानी आदि के आठ कर्मों बन्धन मनयोगी आदि के आठ कर्मों का बन्धन साकारोपयुक्त आदि के आठ कर्मो का बन्धन आहारक आदि के आठ कर्मों का बन्धन सूक्ष्म आदि के आठ कर्मों का बन्धन चरिम आदि के आठ कर्मों का बन्ध वेदकों का अल्प-बहुत्व चतुर्थ सप्रदेशक उद्देशक ४८ काल की अपेक्षा जीव के सप्रदेश-अप्रदेश का चिन्तन ४६ चौबीस दण्डक में काल की अपेक्षा जीव के सप्रदेश-अप्रदेश का चिन्तन ५० काल की अपेक्षा जीवों के सप्रदेश-प्रअदेश का चिन्तन ५१-५२ चौवीस दण्डक में काल की अपेक्षा जीवों के सप्रदेश-अप्रदेश भागों का चिन्तन प्रत्याख्यान और आयुष्य ५३ जीव प्रत्याख्यानी आदि है ५४ चौवीस दण्डक के जीव प्रत्याख्यानी आदि हैं ५५ चौवीस दण्डकों के जीव प्रत्याख्यान आदि के ज्ञाता-अज्ञोता हैं Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३०८ श०६ उ०५ प्र०८४ ५६ चौवीस दण्डकों के जीव प्रत्याख्यान आदि के कर्ता हैं ५७ चौवीस दण्डक के जीवों का प्रत्याख्यान आदि से आयुष्य बंध पंचम तमस्काय उद्देशक ५८-५९ तमस्काय पानी है ६० तमस्काय का आदि-अन्त ६१ तमस्काय का संस्थान ६२ तमस्काय का विष्कम्भ ६३ तमस्काय की मोटाई ६४-६५ तमस्काय में घर, ग्राम आदि नहीं हैं ६६ तमस्काय में मेघ हैं ६७ तमस्काय के श्रषा देवादि हैं ६८ तमस्काय में गाज-बीज हैं ६६ गाज-बीज देव आदि करते हैं ७० तमस्काय में स्थूल पृथ्वी व अग्नि का निषेध ७१-७२ तभस्काय में चन्द्र-सूर्य और चन्द्र-सूर्य की प्रभा आदि नहीं हैं ७३ तमस्काय का वर्ण परम कृष्ण ७४ तमस्काय के तेरह नाम ७५ तमस्काय का परिणमन ७६ तमस्काय में किन जीवों की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति कृष्ण राजि ७७ आठ कृष्ण राजियाँ ७८ आठ कृष्ण राजियों के स्थान ७६ कृष्ण राजियों का आयाम-विष्कम्भ और परिधि ८० कृष्णराजियों की मोटाई ८१-८२ कृष्णराजियो में धर, ग्राम आदि नहीं है ८३ कृष्णराजियों में मेध हैं ८४ कृष्णराजी की रचना देब करते हैं Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०६ उ०६ प्र० ११० ३०६ ८५ कृष्णराजियों में गाज-बीज हैं ८६ कृष्णराजियों में स्थूल अप्काय आदि नहीं हैं ८७-८८ कृष्णराजियों में चन्द्र, सूर्य आदि व उनकी प्रभा नहीं हैं ८ कृष्णराजियों का वर्ण परम कृष्ण ६० कृष्णराजियों के आठ नाम ६१ कृष्णराजियों का परिणमन ९२ कृष्णराजियों में किन-किन जीवों की उत्पत्ति-अनुत्पत्ति लोकान्तिक देव ६३ क - आठ कृष्णराजियों के आठ अवकाशान्तरों में आठ लोकान्तिक विमान ख- अचि विमान का स्थान ६४ ६५ ६६ ६७ ६८ ε ε १०० १०१ १०२ अचिमाली विमान का स्थान रिष्ट विमान का स्थान सारस्वत देवों का विमान आदित्य देवों का विमान यावत्रिष्ट देवों का विमान सारस्वत आदित्य आदि देवों का परिवार लोकान्तिक विमानों का आधार लोकान्तिक विमानों की स्थिति लोकान्तिक विमानों से लोकान्त का अन्तर भगवती-सूची षष्ठ भव्य उद्देशक १०३ - १०४ सात पृथ्वियाँ - यावत् पांच अनुत्तर विमान १०५-११० चौवीस दंडक में मारणान्तिक समुद्घात के पश्चात् अर्थात् उत्पन्न होने पर आहार, आहार परिणमन और शरीर रचना Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३१० श०६ उ०७-८ प्र०१३३. सप्तम शाली उद्देशक १११ शाली ब्रीहि आदि धान्यों की स्थिति ११२ कलाद, मसूर आदि धान्यों की स्थिति ११३ अलसी, कुसुंभ आदि धान्यों की स्थिति गणनीय काल ११४ एक मुहूर्त के स्वासोच्छ्वास एक अहोरात्र के मुहूर्त एक पक्ष के अहोरात्र एक मास के पक्ष एक ऋतु के मास एक अयन के ऋतु एक संवत्सर के अयन एक युग के संवत्सर सौ वर्ष के युग-यावत्-शीर्ष प्रहेलिका ११५ दो प्रकार का औपमिक काल ११६ पल्योपम और सागरोपम का वर्णन सुषमा-सुषमा का भरत ११७ इस अवसर्पिणी के प्रथम आरे का वर्णन अष्टम पृथ्वी उद्देशक ११८ आठ पृथ्वियां ११६-१२५ सात पृथ्वियों का वर्णन-षष्ठ शतक, पंचम तमस्काय ___उद्देशक सूत्र ६४ से ७२ के समान १२६-१३१ सौधर्मकल्प-यावत्-सर्वार्थ सिद्ध विमान पर्यंत का वर्णन षष्ठ शतक पंचम तमस्काय उद्देशक सूत्र ६४ से ७५ के समान १३२ चौवीस दण्डक में छह प्रकार का अायुबंध १३३ चौवीस दण्डक में छह प्रकार का निधत्त बंध Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०६ उ०-१० प्र० १५२ ३११ भगवती-सूची १३४-१३५ चौवीस दण्डक में बारह आलापक १३६ लवण समुद्र का वर्णन १३७ द्वीप-समुद्रों के नाम नवम कर्म उद्देशक १३८ ज्ञानावरणीय के बंध के समय बंधनेवाली प्रकृतियाँ महर्धिक देव और विकुर्वणा १३६-१४० बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके महधिक देव का वैक्रिय करना १४१ देवलोकवर्ती पुद्गलों को ग्रहण करके महधिक देव का वैक्रिय करना १४२-१४३ वर्ण विपर्यय करने में महधिक देव का सामर्थ्य देवता का जानना और देखना १४४ अशुद्ध लेश्यावाले देवों का जानना और देखना (आठ विकल्प) १४५-१४८ विशुद्ध लेश्यावाले देवों का जानना और देखना दशम अन्य यूथिक उद्देशक अन्य यूथिक राजगृह में जितने जीव हैं उतने जीवों को भी सुख-दुःख होने में समर्थ नहीं हैं महावीर लोक के सभी जीवों को कोई सुख-दुःख देने में समर्थ नहीं है १४६ क जीव की व्याख्या ख चौवीस दंडक में जीव चैतन्य है १५० क जीव की व्याख्या ख चौबीस दंडक के जीव प्राणधारी हैं १५१ चौवीस दण्डक के जीव भवसिद्धिक भी हैं, अभवसिद्धिक भी हैं अन्य यूथिक १५२ सभी प्राणी एकान्त दुःख का वेदन करते हैं Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची महावीर सभी प्राणी कभी सुख कभी दुःख का वेदन करते हैं सुख-दुःख के वेदन का हेतु १५३ चौवीस दण्डक के जीव समीपवति पुद्गलों का आहार करते हैं केवली इन्द्रियों द्वारा नहीं जानता है। इन्द्रियों द्वारा न जानने का हेतु ३१२ सप्तम सतक प्रथम आहार उद्देशक १ उत्थानका २ क- परभव प्राप्ति के प्रारम्भिक समयों में जीव के आहारक और अनाहारक होने का निर्णय 1 ख- चौवीस दण्डक में जीव के आहारक- अनाहारक होने का वर्णन ३ ६-७ जीव के अल्पाहार का प्रथम और अंतिम समय लोक संस्थान ४ क- लोक का संस्थान ख- शास्वत लोक में जीव-अजीव के ज्ञाता हैं, केवली हैं, वे सिद्धबुद्ध और मुक्त होते हैं क्रिया विचार ५ क - श्रमणोपासक की सांपरायिक क्रिया ख- सांपरायिक क्रिया के हेतु प्रत्याख्यान G-E श०७ उ०१ प्र०११ प्रथम अणुव्रत के अतिचारों की मर्यादा श्रमण को श्राहार देने का फल श्रमण को आहार देने का श्रमणोपासक को फल कर्म रहित जीव की गति १०-११ कर्म रहित जीव की गति के छ प्रकार Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १° २० १२ श० ७ उ० २ प्र० ३० ३१३ भगवती-सूची १२ कर्मरहित की गति के सम्बंध में मृतिका से लिप्त तुम्बे का उदाहरण कर्म रहित की गति के सम्बंध में पकी हुई फलियों का उदाहरण १४ कर्मरहित की गति के सम्बंध में धूम का उदाहरण १५ कर्म रहित की गति के संबंध में धनुष-बाण का उदाहरण दुःखी और दुःख १६-१७ दुःखी ही दुःख से युक्त है क- चौवीस दण्ड के दुःखी जीव ही दुःख से युक्त हैं ख- दु:ख के संबंध में पांच विकल्प क्रिया विचार १८ अणगार की इरियावही क्रिया श्रमण का श्राहार अंगार, धूम और संयोजना दोषों की व्याख्या दोषरहित आहार क्षेत्रातिक्रान्त आदि सदोष आहार शस्त्रातीत शस्त्रपरिणत आदि आहार के विशेषणों की व्याख्या द्वितीय विरति उद्देशक प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान और दुष्प्रत्याख्यान की विचारणा दो प्रकार के प्रत्याख्यान मूल गुण प्रत्याख्यान दो प्रकार का सर्व मूल गुण प्रत्याख्यान पांच प्रकार का देश मूल गुण प्रत्याख्यान पाँच प्रकार का २८ उत्तरगुण प्रत्याख्यान दो प्रकार का २६ सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान दश प्रकार का देश उत्तरगुण प्रत्याख्यान दश प्रकार का २६ २७ Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ भगवती-सूची ३१४ श०७ उ.०३ प्र०.५८ ३१ जीव प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी है ३२ चौवीस दण्डक में प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी की विचारणा मूलगुण प्रत्याख्यानी आदि का अल्प-बहुत्व ३४-४३ चौवीस दंडक में मूलगुण प्रत्याख्यानी का अल्प-बहुत्व संयत-असंयत आदि ४४ क- जीव संयत-असंयत और संयतासंयत भी है ख- चौवीस दण्डक में संयत आदि हैं ग- संयत आदि की अल्प-बहुत्व चौवीस दण्डक में प्रत्याख्यानी आदि ४६ प्रत्याख्यानी आदि का अल्प-बहत्व जीव शास्वत या अशास्वत जीव को शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है चौवीस दण्डक में जीव का शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है तृतीय स्थावर उद्देशक वनस्पतिकाय अल्पाहारी और महा आहारी ग्रीष्म ऋतु में वनस्पति के पुष्पित फलित होने का कारण मूल कंद-यावत्-बीज भिन्न-भिन्न जीवों से व्याप्त है वनस्पतिकाय का आहार और परिणमनां ५३ आलू आदि अनन्त जीववाली वनस्पतियाँ हैं लेश्या और कर्म ५४ क- अल्प-कर्म और महाकर्म का कारण __ ख- चौवीस दण्डक में लेश्या तथा अल्प-कर्म का विचार ५५ वेदना और निर्जरा की भिन्नता ५६ चौवीस दण्डक में वेदना और निर्जरा की भिन्नता ५७-५८ क- वेदना और निर्जरा की भिन्नता तीन काल की अपेक्षा से _ विचार ४८ Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ श०७ उ०४,५६ प्र०७२ भगवती-सूची ख- इसी प्रकार चौबीस दण्उक में 'क' के समान ५६ वेदना और निर्जरा का विभिन्न समय चौवीस दण्डक में वेदना और निर्जरा का विभिन्न समय जीव को शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है चौवीस दण्डक में जीव को शास्वत या अशास्वत मानना सापेक्ष है चतुर्थ जीव उद्देशक राजगृह-उत्थानिका ६४ छ प्रकार के मंसार स्थित जीव ६५ पृथवी के छ भेद, छ भेदों की स्थिति, भवस्थिति,काय स्थिति, निर्लेपकाल, अनगार सम्बन्धि विचार, सम्यक्त्व क्रिया और मिथ्यात्व किया पंचम पक्षी उद्देशक ६६ तीन प्रकार का योनि संग्रह षष्ठ प्रायु उद्देशक ६७ क- राजगृह ख- चौवीस दण्डक के जोव इसी भव में आयु बंध करते हैं ६८ चौवीस दण्डक के जीव उत्पन्न होने के पश्चात् आयु का वेदन करते हैं ६६-७० चौवीस दण्डक के जीवों की अल्प या महा वेदना ७१ क- जीव के अनाभोग में आयु-बंध ख- चौवीस दण्डक में अनाभोग (अनुपयोग) से आयु का बंध वेदनीय कर्म ७२ क- प्राणातिपात-यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य से जीव के कर्कश वेद नीय कर्म का बंध ख- इसी प्रकार चौवीस दण्डक में 'क' के समान Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३१६ श०७ उ०७ प्र० ६२ ७६ ওও ७४ ७३ क- जीव के अकर्कश वेदनीय कर्म का बंध ख- अककर्श वेदनीय कर्म के बंध का हेतु ग- इसी प्रकार चौवीस दण्डक में 'क' 'ख' के समान ७४ अशाता वेदनीय कर्म का अस्तित्व ७५ क- अशाता वेदनीय के बंध का हेतु ख- चौवीस दण्डक में अशाता वेदनीय के बंध का हेतु काल चक्र इस अवसर्पिणी के दुषमदुषमा आरे का वर्णन छ8 आरे के मनुष्यों का आहार छ8 आरे के मनुष्यों की गति छ8 आरे के श्वापदों की गति छ? आरे के पक्षियों की गति सप्तम अणगार उद्देशक ७७ क- संवृत अणगार की इरियावही क्रिया ख- इरियावही क्रिया के हेतु काम-भोग ७८ काम रूपी है काम सचित्त भी है, अचित्त भी है ८० काम जीव भी है, अजीव भी है काम जीवों को होता है काम दो प्रकार के हैं ८३-८६ भोग प्रश्नोत्तरांक ७८ से ८१ के समान ८७ भोग तीन प्रकार के हैं ८८ काम-भोग पांच प्रकार के हैं .८६ क- जीव कामी भी है, भोगी भी है ख- जीवों के कामी भोगी होने का हेतु .६०-६२ चौवीस दण्डक में कामी-भोगी ७४ ८२ Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ १०१ दा०७ उ०८ प्र०१०८ ३१७ भगवती-सूची ६३ कामी-भोगी का अल्प-बहुत्व ६४ क- उत्थानादि से छद्मस्थ का भोग सामर्थ्य ख- भोगों के त्याग से निर्जरा अधो अवधि ज्ञानी का भोग सामर्थ्य परमावधि ज्ञानी का उसी भव से मोक्ष १७ केवल ज्ञानी का उसी भव से मोक्ष १८ असंज्ञी जीवों की अकाम वेदना संज्ञी जीवों की अकाम वेदना संज्ञी जीवों की तीवेच्छापूर्वक वेदना अष्टम छद्मस्थ उद्देशक छद्मस्थ की केवल संयम, संवर, ब्रह्मचर्य और समिति-गुप्तिके पालन से मुक्ति नहीं होती जीव १०२ हाथी और कुंथुवे का जीव समान है सुख और दुःख १०३ चौवीस दण्डक में पापकर्म से दुःख, और कर्म निर्जरा से सुख संज्ञा चौवीस दण्दक में दश संज्ञा वेदना नरक में दश प्रकार की वेदना क्रिया विचार १०६ हाथी और कुंथुवे की समान अप्रत्याख्यान क्रिया प्राधाकर्म आहार आधाकर्म आहार करने वाले के कर्म प्रकृतियों का बंधन नवम असंवृत उद्देशक बाह्य पुद्गलों को ग्रहण करके असंवृत साधु का वैक्रिय करना १०५ १०७ Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३१८ श०७ उ०१० प्र०१२५ or or १०६ समीपवर्ती पुद्गलों को ग्रहण करके असंत साधु का वैक्रिय करना महाशिला कंटक संग्राम और रथ मुशल संग्राम महाशिला-कंटक संग्राम का वर्णन महाशिला-कंटक नाम का हेतु महाशिला-कंटक में मनुष्यों का संहार महाशिला-कंटक में मरे हुए मनुष्यों की गति १४ रथ-मुशल संग्राम में जय-पराजय रथ-मुशल संग्राम नाम का हेतु रथ-मुशल संग्राम में मनुष्यों का संहार रथ-मुशल संग्राम में मरे हुए मनुष्यों की गति ११८ कोणिक के साथ शक्रेन्द्र और चमरेन्द्र के सहयोग का हेतु ११६ युद्ध में मरने वाले सभी स्वर्ग में नहीं जाते वैशाली निवासी नाग पौत्र वरुण का संग्राम में गमन १२१ क- वरुण का अभिग्रह ख- वरुण पर प्रहार ग- वरुण का युद्ध से प्रत्यावर्तन घ- वरुण की आलोचना एवं मृत्यु ङ- वरुण के बालमित्र की आराधना १२२ वरुण की देवगति १२३ वरुण के मित्र का महाविदेह में जन्म १२४ वरुण और उसके मित्र की मुक्ति दशम अन्य तीथिक उद्देशक १२५ क- राजगृह __ ख- कालोदायी आदि अन्य तीथिक ग- पंचास्तिकाय के संबंध में अन्य तीथिकों का प्रश्न और गौतम गणधर का समाधान or or or or or or or or om www wor or or or o r Gr Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०८ उ०१ प्र० २६ १२६ क- पुद्लास्तिकाय के कर्मबंध नहीं होता ख- कालोदायी का प्रव्रज्या ग्रहण १३१ ३१६ १२३ १२८ १२६ शुभ कर्मों का शुभ फल १३० क शुभ कर्मफल के संबंध में औषधिमिश्रित आहार का उदाहरण ख- प्राणातिपात विरति का फल afroat को प्रदिप्त अथवा उपशांत करने वाले के कर्मबंध पापकर्मों का अशुभ फल अशुभ कर्मफल के संबंध में विषमिश्रित भोजन का उदाहरण की विचारणा १३२ अचित पुद्गलों का प्रकाश १३३ क - तेजोलेश्या के पुद्गलों का का प्रकाश ख- कालोदायी की अन्तिम आराधना एवं मुक्ति अष्टम शतक प्रथम पुद्गल उद्देशक १ क- राजगृह ख- तीन प्रकार के पुद्गल भगवती-सूची २- १७ चौवीस दण्डक में प्रयोग परिणत पुद्गल १८- २५ चौवीस दण्डक में सूक्ष्म बादर तथा पर्याप्ता अपर्याप्ता की अपेक्षा प्रयोग २६ क चौवीस दण्डक में सूक्ष्म पर्याप्ता अपर्याप्ता की अपेक्षा प्रयोग परिणत पुद्गल ख- चौवीस दण्डक मैं बादर पर्याप्ता - अपर्याप्ता की अपेक्षा प्रयोग परिणत पुद्गल ग- चौवीस दण्डक में इन्द्रियों की अपेक्षा प्रयोग परिणत पुद्गल घ- चौवीस दण्डक में शरीरों की अपेक्षा प्रयोग परिणत पुद्गल Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३२० श०८ उ०१ प्र०७० ङ- चौवीस दण्डक में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा प्रयोग परिणत पुद्गल च- चौवीस दण्डक में शरीर तथा वर्ण, गंध, रस, स्पर्श संस्थापन की अपेक्षा से प्रयोग परिणत पुद्गल छ- चौवीस दण्डक में इन्द्रियां तथा वर्णादि की अपेक्षा से प्रयोग परिणत २१ मिश्रपरिणत पुद्गल-प्रश्नोत्तरांक-२ से ३१ तक के समान नव दंडक (विकल्प) २७ विश्रसापरिणत पुद्गल-प्रश्नोत्तरांक २ से ३१ तक के समान नवदंडक (विकल्प) २८ एक द्रव्य के प्रयोग परिणत पुद्गल २६-३४ तीन योग की अपेक्षा एक द्रव्य के प्रयोग परिणत पुद्गल ३५-४६ पांच शरीर की अपेक्षा एक द्रव्य के प्रयोग परिणत पुद्गल ५०-५१ एक द्रव्य के मिश्र परिणत पुद्गल ५२ एक द्रव्य के विस्रसा परिणत पुद्गल ५३-५७ एक द्रव्य के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श तथा संस्थान परिणत पुद्गल ५८ दो द्रव्यों के प्रयोग मिश्र तथा विस्रसा परिणत पुद्गल ५६-६१ तीन योग की अपेक्षा दो द्रव्यों के प्रयोग परिणत पुद्गल मिश्र परिणत दो द्रव्य ६३ विरसा परिणत दो द्रव्य ६४ तीन द्रव्यों के प्रयोग मिश्र तथा विश्रसा परिणत पुद्गल ६५ तीन योग की अपेक्षा तीन द्रव्यों के परिणत पुदूगल ६६-६६ चार, पांच, छह-यावत्-अनंत द्रव्य परिणत पुद्गल ७० तीन प्रकार के पुद्गलों का अल्प-बहुत्व Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०८ उ०२ प्र० १५६ ३२१ भगवती-सूची द्वितीय आशिविष उद्देशक ७१ दो प्रकार के आशिविष । ७२-७४ जाति आशिविष चार प्रकार के ७५-८५ चौवीस दण्डक में कर्म आशिविष का विचार छद्मस्थ और सर्वज्ञ ८६ क- छद्मस्थ दश वस्तुओं को नहीं जानता ___ख- सर्वज्ञ दश वस्तुओं को जानता है ज्ञान का विस्तृत वर्णन पांच प्रकार का ज्ञान मतिज्ञान चार प्रकार का तीन प्रकार का अज्ञान मति अज्ञान चार प्रकार का अवग्रह दो प्रकार का श्रुत अज्ञान ९३ विभंग ज्ञान (ज्ञान का संस्थान) ६४-६६ चौवीस दण्डक में ज्ञानी-अज्ञानी १०० सिद्ध-केवलज्ञानी १०१-१०४ पांच गति में ज्ञानी-अज्ञानी १०५-१०७ इन्द्रिय वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी १०८-१०६ काय वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी ११०-११२ सूक्ष्म आदि में ज्ञानी-अज्ञानी ११३-१२० चौवीस दण्डक के पर्याप्त-अपर्याप्त में ज्ञानी-अज्ञानी १२१-१२४ चार गति के भवस्थ जीवों में ज्ञानी-अज्ञानी १२५-१२७ भवसिद्धिक आदि में ज्ञानी-अज्ञानी १२८ संज्ञी आदि में ज्ञानी-अज्ञानी १२६-१३६ दश प्रकार की लब्धियों के भेद १३७-१५६ दश लब्धि सहित तथा दश लब्धि रहित में ज्ञानी-अज्ञानी Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३२२ श०८ उ०३ प्र० १६६ १६०-१६१ साकारोपयुक्त में ज्ञानी-अज्ञानी १६२-१६३ अनाकारोपयुक्त में ज्ञानी-अज्ञानी १६४ योग वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी १६५-१६६ लेश्या वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी १६७-१६८ कषाय वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी १६६ वेद वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी १७०-१७१ आहारक वर्गणा में ज्ञानी-अज्ञानी १७२-१७६ पांच ज्ञान का विषय १७७-१७६ तीन अज्ञान का विषय १८० ज्ञानी की स्थिति १८१ पांच ज्ञान की स्थिति १८२-१८४ पांच ज्ञान तीन अज्ञान के पर्यव पांच ज्ञान के पर्यवों का अल्प-बहुत्व तीन अज्ञान के पर्यवों का अल्प-बहुत्व १८७ पांच ज्ञान-तीन अज्ञान के पर्यवों का अल्प-बहुत्व ततीय वक्ष उद्देशक १८८ तीन प्रकार के वृक्ष १८६ संख्येय जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के १६० असंख्येय जीव वाले वृक्ष दो प्रकार के एक बीजवाले वृक्ष अनेक प्रकार के ख- अनेक बीजवाले वृक्ष अनेक प्रकार के १६२ अनंत जीववाले वृक्ष अनेक प्रकार के . जीवके प्रदेश १६३ देह का सूक्ष्मतर खण्ड भी जीव प्रदेश से व्याप्त है जीव प्रदेशों को शस्त्र से पीड़ा नहीं होती पृथ्वी आठ पृथ्वियां १६६ आठ पृथ्वियों का चरम, अचरम विचार १८५ ८८ १६४ १६५ Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०८ उ०४-५-६ प्र०२११ १६७ क- राजगृह १६८ २६६ २०० २०१ २०२ २०३ २०४ २०७ २०८ २०६ चतुर्थ क्रिया उद्देशक २१० क- राजगृह. स्थविर ख- श्रावक सामायिक के पश्चात् अपने ही उपकरणों की शोध करता है श्रावक के ममत्व भाव का प्रत्याख्यान नहीं है सामायिक व्रत स्वीकार करने पर भी स्त्री उसी की स्त्री है श्रावक का प्रेम बंधन अविच्छिन्न है प्राणातिपात के प्रत्याख्यान का स्वरूप अतीत-कालीन प्रतिक्रमण के भांगे वर्तमान-कालीन संवर के भांगे २०५ भविष्य कालीन प्रत्याख्यान के भांगे २०६ क- स्थूल मृषावाद प्रत्याख्यान के भांगे ख- स्थूल अदत्तादान प्रत्याख्यान के भांगे ग- स्थूल मैथुन प्रत्याख्यान के भांगे स्थूल परिग्रह प्रत्याख्यान के भांगे आजीविक का सिद्धान्त २११ ख- पांच प्रकार की क्रिया ३२३ पंचम आजीविक उद्देशक आजीविक बारह श्रमणोपासक श्रावकों के त्याज्य पंद्रह कर्मादान देवलोक भगवती-सूची चार प्रकार के देवलोक षष्ठ प्रासुक आहारादि उद्देशक उत्तम श्रमण को शुद्ध आहार देने से एकान्त निर्जरा Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३२४ श०८ उ०६ प्र० २३१ २१६ २१२ उत्तम-श्रमण को अशुद्ध आहार देने से अधिक निर्जरा और अल्प पाप २१३ असंयत को शुद्ध अथवा अशुद्ध आहार देने से एकान्त पाप २१४-२१५ गृहस्थ ने जिस श्रमण के निमित्त आहार दिया है, वह श्रमण न मिले तो उस आहार को एकान्त स्थान में परठने का विधान दश श्रमणों के निमित्त दिये हुये हुए आहार की भी यही विधि है पात्र, गुच्छा, रजोहरण, चोलपट्ट, कंबल, दण्ड, संस्तारक आदि के सम्बन्ध में भी पूर्वोक्त विधि २१७-२२२ अाराधक निग्रंथ २२३ . आराधक निग्रंथी २२४ क- आराधक होने का हेतु ख- छिद्यमान रोम आदि छिन्न माने जाते हैं ग- दह्यमान तृण आदि दग्ध माने जाते हैं घ- प्रक्षिप्यमान वस्त्र प्रक्षिप्त माने जाते हैं ङ- रज्यमान वस्त्र रक्त माने जाते हैं प्रकीर्णक २२५ दीपक में ज्योति जलती है २२६ प्रज्वलित घर में ज्योति जलती है क्रिया विचार औदारिक शरीर सम्बन्धि क्रिया २२८ चौवीस दण्डक में औदारिक शरीर सम्बन्धि क्रिया २२६ औदारिक शरीर सम्बन्धि एक जीव द्वारा किया। २३० चौवीस दण्डक में औदारिक शरीर सम्बन्धि एक जीव द्वारा क्रिया २३१ औदारिक शरीर सम्बन्धि अनेक जीवों द्वारा क्रिया २२७ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०८ उ०७-८ प्र०२५६ ३२५ भगवती-सूची चौवीस दण्डक में औदारिक शरीर सम्बन्धि अनेक जीवों द्वारा क्रिया २३३ अनेक जीवों के औदारिक शरीर से होने वाली क्रियायें २३४ चौवीस दण्डक में अनेक जीवों के औदारिक शरीर से होने वाली क्रियायें २३५ क- वैक्रिय आदि शरीर सम्बन्धि क्रियायें ख- वैक्रिय आदि शरीरों से होने वाली क्रियायें ग- प्रत्येक शरीर के चार-चार विकल्प सप्तम अदात्तान उद्देशक २३६ राजगृह. गुणशील चैत्य. भ० महावीर अन्यतीथिक और स्थविरों का संवाद २३७-२४७ अन्य तीथिक सभी स्थविर असंयत है क्योंकि वे अदत्त लेते हैं २४८-२४६ स्थविर क- हम दत्त लेते हैं इसलिये संयत हैं ख-. किन्तु तुम सब असंयत हो २५०-२५१ अन्य तीर्थिक सभी स्थविर बाल हैं २५२-२५६ स्थविर क- हम सभी कार्य विवेक पूर्वक करते हैं, इसलिये बाल नहीं हैं तुम सब बाल हों ख- स्थविरों द्वारा “गति प्रपात" अध्ययन की रचना २५७ पांच प्रकार का गति प्रपात अष्टम प्रत्यनीक उद्देशक २५८ तीन प्रकार के गुरु प्रत्यनीक तीन प्रकार के गति प्रत्यनीक Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३.२६ श०८ उ०८ प्र०३०४ २६० २६३ तीन प्रत्यनीक २६१ तीन प्रकार के अनुकम्पा प्रत्यनीक २६२ तीन प्रकार के श्रुत प्रत्यनीक तीन प्रकार के भाव प्रत्यनीक व्यवहार २६४ पांच प्रकार का व्यवहार २६५ व्यवहार का फल कर्मबन्ध २६६ इपिथिक और सांपरायिक कर्म-बन्ध २६७-२६९ इर्यापथिक कर्म बांधने वाले (अनेक विकल्प) २७०-२७२ इर्यापथिक कर्म के भांगे २७३-२७५ सांपरायिक कर्म बांधनेवाले २७६-२७८ सांपरायिक कर्म के भांगे कर्म प्रकृतियां २७६ आठ कर्म प्रकृतियां परीषह २८०-२८६ क- बावीस परीषह ख- चार कर्म के उदय से बावीस परीषह २८७-२६२ कर्मानुसार परीषहों का निर्णय सूर्य दर्शन २६३ सूर्य दर्शन-प्रातः, मध्याह्न, सायं २६४-२६५ सूर्य की सर्वत्र समान ऊंचाई ___ समीप और दूर से सूर्य के दिखाई देने का हेतु २६६-३०१ सूर्य का प्रकाश क्षेत्र ३०२ सूर्य का ताप क्षेत्र मानुषोत्तर पर्वत के अन्दर चन्द्र-सूर्य आदि ३०४ मानुषोत्तर पर्वत के बाहर चन्द्र-सूर्य आदि ३०३ : Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०८ उ०६-१० प्र०४२५ नवम प्रयोग बन्ध उद्देशक दो प्रकार के बन्ध दो प्रकार के विस्रसा बंध ३०७-३१० तीन प्रकार के अनादि विस्रसा बन्ध तीन प्रकार के सादि विस्रसा बन्ध ३०५ ३०६ ३११ ३१२ ३१३ ३१४ ३१५ ३२७ बन्धन प्रत्ययिक बन्ध भाजन प्रत्ययिक बन्ध परिणाम प्रत्ययिक बन्ध क- तीन प्रकार का प्रयोग बन्ध ख- चार प्रकार का सादि सान्त बन्ध ३१६ ३१७ ३१८-४०८ दो प्रकार का शरीर बन्ध ४०६ ४१० आलापन बन्ध चार प्रकार का आलीन बन्ध देश बन्धक, सर्व बन्धक और अबन्धक की अल्प - बहुत्व दशम आराधना उद्देशक क- राजगृह. अन्य तीर्थिक ख- अन्य तीर्थिक - शील ही श्रेय है. श्रुत ही श्रेय है ग- महावीर - शील और श्रुत सम्पन्न के चार भांगे आराधक - विराधक ४११ तीन प्रकार की आराधना ४१२ ज्ञान आराधना तीन प्रकार की ४१३ क- दर्शन आराधना तीन प्रकार की ख- चारित्र आराधना तीन प्रकार की ४१४-४१६ तीन आराधनाओं का परस्पर सम्बन्ध ४१७-४२२ तीन आराधनाओं के आराधकों का मोक्ष पुद्गल परिणाम ४२३-४२५ क- पांच प्रकार का पुद्गल परिणाम भगवती-सूची Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३२८ ख- वर्णादि पुद्गल परिणाम के भेद ४२६-४३० क- पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश- यावत् ख- पुद्गलास्तिकाय के अनन्त प्रदेश लोकाकाश के प्रदेश एक जीव के प्रदेश कर्म प्रकृतियां ४३३ आठ कर्म प्रकृतियां ४३४ चौवीस दण्डक में आठ कर्म प्रकृतियां ४३५-४३६ आठ कर्मों के अविभाज्य अंश ४३१ ४३२ चौवीस दण्डक में आठ कर्मों के अविभाज्य अंश ४३७ जीव के एक-एक प्रदेशपर आठ कर्मों का आवरण ४३८-४३६ चौवीस दण्डक में प्रत्येक जीव के एक-एक प्रदेशपर आठ कर्मों का आवरण ४४०-४५३ आठ कर्मों का परस्पर सम्बन्ध जीव- विचार जीव पुद्गती है या पुद्गल - इसका निर्णय चौवीस दण्डक के जीव पुद्गली है या पुद्गल - इसका निर्णय सिद्ध पुद्गली है या पुद्गल - इसका निर्णय ४५४ ४५५ ४५६ नवम शतक प्रथम जम्बू उद्देशक श० उ० १ प्र० १ १ क- जम्बूद्वीप, मिथिला नगरी, माणिभद्र चैत्य, भ. महावीर और गौतम ख- जम्बूद्वीप का स्थान ग- जम्बूद्वीप का संस्थान यावत् घ जम्बूद्वीप के पूर्व-पश्चिम में चौदह लाख छप्पन हजार नदियाँ Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची २-४ क- राजगृह ५ ३२६ द्वितीय ज्योतिषीदेव उद्देशक २७-१७ २० २१ २२ २३ २४ २५ ख- अढाईद्वीप में प्रकाश करने वाले चन्द्र-सूर्य ६ क - राजगृह ख- केवली आदि से धर्म श्रवण किये बिना धर्म की प्राप्ति इसी प्रकार बोधि प्राप्ति, बोधि प्राप्ति का हेतु, प्रव्रज्या प्राप्ति, प्रव्रज्या प्राप्ति का हेतु, ब्रह्मचर्य धारण करना, ब्रह्मचर्य धारण करने का हेतु संयमप्राप्ति, संयम प्राप्ति का हेतु, श० ६ उ० २-३१ प्र० २५ तृतीय से तीसवाँ पर्यन्त अन्तरद्वीप उद्देशक अट्ठाईस अन्तद्वीप इकतीसवाँ सोच्चा उद्देशक संवर प्राप्ति, संवर प्राप्ति का हेतु, आभिनिबोधक ज्ञान, आभिनिबोधक ज्ञान का हेतु, श्रुत ज्ञान, श्रुत ज्ञान का हेतु, अवधि ज्ञान, अवधिज्ञान का हेतु, मनः पर्यव ज्ञान, मनः पर्यव ज्ञान का हेतु, केवल ज्ञान, केवल ज्ञान का हेतु, १८ बोधि आदि की प्राप्ति और उसके हेतु १६ क - विभंग ज्ञान की उत्पत्ति, सम्यक्त्व की प्राप्ति ख- चारित्र स्वीकार, अवधिज्ञान की प्राप्ति अवधिज्ञानियों में लेश्या अवधिज्ञानियों में ज्ञान अवधिज्ञानियों में साकारोपयोग अवधिज्ञानियों में योग अवधिज्ञानियों में उपयोग अवधिज्ञानियों का संघयण Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०६ उ०३१ प्र०५४ २६ अवधिज्ञानियों का संस्थान २७ अवधिज्ञानियों की ऊँचाई २८ अवधिज्ञानियों का आयु २६ अवधिज्ञानियों में वेद ३० अवधिज्ञानियों में कषाय अवधिज्ञानियों के अध्यवसाय ३१ ३२ अवधिज्ञानियों की मुक्ति अवधिज्ञानियों का कषायक्षय ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३६ ४० ३३० ४१ ४२ ४३ ४४ अश्रुत्वा केवली धर्मोपदेश नहीं करते अश्रुत्वा केवली दीक्षा नहीं देते अश्रुत्वा केवली सिद्ध होते हैं अश्रुत्वा केवलियों के संभावित स्थान एक समय में अश्रुत्वा केवलियों की संख्या धर्म श्रवण केवली आदि से धर्म श्रवण करके धर्म की प्राप्ति केवली आदि से धर्म श्रवण करके सम्यक्त्व की प्राप्ति केवली आदि से धर्मश्रवण करके अवधिज्ञान की प्राप्ति अवधिज्ञानियों में लेश्या अवधिज्ञानियों में ज्ञान यावत् - अवधिज्ञानियों का आयुष्य अवधिज्ञानियों में वेद ४५ अवधिज्ञानियों में कषाय ४६ केवली आदि से धर्मश्रवण करके धर्मोपदेश करें ४७-४६ केवली आदि से धर्मश्रवण करके दीक्षा दें ५०-५२ केवली आदि से धर्मश्रवण करनेवाला सिद्ध होता है ५३ श्रुत्वा केवलियों के संभावित स्थान ૪ एक समय में श्रुत्वा केवलियों की संख्या भगवती-सूची Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञ०९ उ० ३२ प्र०६८ ३३१ भगवती-सूची बत्तीसवाँ गाँगेय उद्देशक ५५ वाणिज्य ग्राम, दूतिपलाश चैत्य, भ० महावीर और पार्वापत्य गांगेय जन्म-मरण ५६-५८ चौवीस दण्डक में-जीवों की सांतर (अंतर सहित) निरंतर (अंतर रहित) उत्पत्ति ५६-६२ चौवीस दण्डक में जीवों का सांतर-निरंतर च्यवन (मरण) ६३ चार प्रकार का प्रवेशनक ६४-७७ क- नै रयिक प्रवेशनक ख- एक संयोगी-यावत-सप्तसंयोगी विकल्प ७८ नैरयिक प्रवेशनक अल्प-बहुत्व ७६.८२ तिर्यंच योनिक प्रवेशनक एक संयोगी-यावत्-पंच संयोगी विकल्प ८३ तिर्यंच योनिक प्रवेशनक अल्प-बहुत्व ८२.८६ क- मनुष्य प्रवेशनक ___ ख- एक मनुष्य-आवत्-असंरव्यात मनुष्य ६० मनुष्य प्रवेशक अल्प-बहुत्व ६१-६२ क- देव प्रवेशनक ख- एक देव-यावत-असंख्य देव १३ देव प्रवेशनक अल्प-बहुत्व १४ सर्व प्रवेशनक अल्प-बहुत्व जन्म-मरण ६५ क-चौवीस दण्डक के जीवों का सान्तर-निरन्तर उत्पन्न होना ख- चौवीस दण्डक के जीवों का सान्तर निरन्तर मरण ६६ चौवीस दण्डक में विद्यमान की उत्पत्ति ६७ चौवीस दण्डक में विद्यमान का मरण १८ क- प्रश्नोत्तर ६६-६७ की पुनरावृत्ति Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची श०६उ०३३ प्र०३५ ख- उत्पात और उद्वर्तन के हेतु ६६ भ० महावीर स्वयं ज्ञाता है १००-१०२ चौवीस दण्डक के जीव स्वयं उत्पन्न होते हैं १०३ क-पार्वापत्य गांगेय का पंच महाव्रत ग्रहण ख- पाश्र्वापत्य गांगेय का निर्वाण तेतीसवाँ कुंड ग्राम उद्देशक सूत्रांक १ ब्राह्मण कंडग्राम, बहुसाल चैत्य ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानंदा ब्राह्मणी भ० महावीर का पदार्पण भ० महावीर की वंदना के लिये ऋषभदत्त और देवानन्दा का गमन देवानन्दा के स्तनों से दुग्धधारा का क्षरण ५ दुग्धधारा का हेतु पुत्र-स्नेह ६ ऋषभदत्त का प्रव्रज्या ग्रहण एवं मुक्ति ७ क- देवानंदा की प्रव्रज्या साधना ८-२२ क्षत्रिय कुंड ग्राम, जमाली क्षत्रिय कुमार जमाली का भ० महावीर की वंदना के लिये जाना २३-२६ जमाली की पांचसो पुरुषों के साथ प्रव्रज्या जमाली का भ० महावीर से स्वतंत्र विचरण के लिये अनुमति प्राप्त करना पांचसौ मुनियों के साथ जमाली का विहार ३१-३२ जमाली का श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक चैत्य में गमन भ० महावीर का चम्पानगरी, पूर्णभद्र चैत्य में गमन अस्वस्थ जमाली और उसकी विपरीत प्ररूपणा गौतम-जमाली संवाद-संवाद का विषय लोक और जीव का शास्वत या अशास्वत होना जमाली की आशंका ३५ भ० महावीर द्वारा समाधान ३४ Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०६ उ०३४ प्र०११२ भगवती-सूची ४४ ४५ ३६ क- जमाली की विराधकता ख-जमाली की किल्विषिक देवरूप में उत्पत्ति और स्थिति ३७ भ० महावीर का जमाली के संबंध में गौतम को कथन ३८ किल्विषिक देवों की स्थिति ३६-४१ किल्विषिक देवों का निवासस्थान ४२ किल्विषिक देव होने के हेतु किल्विषिक देवों की भव परम्परा जमाली की साधना के संबंध में भ० महावीर से गौतम का प्रश्न जमाली की लातंक कल्प में उत्पत्ति जमाली का कुछ भवों के पश्चात् निर्वाण चोतीसवां पुरुष घातक उद्देशयक १०४ क- राजगृह __ख- पुरुष को मारनेवाला पुरुष से भिन्न की भी हत्या करता है ग- पुरुष से भिन्न की हत्या का हेतु १०५ क- अश्व को मारनेवाला अश्व से भिन्न को भी मारता है १०६ क- त्रस को मारनेवाला त्रस से भिन्न को भी मारता है ख- त्रस से भिन्न को मारने का हेतु १०७ क- ऋषि को मारनेवाला ऋषि से भिन्न को भी मारता है ख- ऋषि से भिन्न को मारने का हेतु बैरभाव पुरुष को मारनेवाला पुरुष और पुरुष से भिन्न के साथ भी वैर बांधता है (इसके अनेक विकल्प) १०६ ऋषि के सम्बंध में प्रश्नोत्तरांक १०८ की पुनरावृत्ति श्वासोच्छ्वास ११० पृथ्वीकाय आदि के श्वासोच्छ्वास का विचार १११ पृथ्वीकाय आदि के श्वासोच्छ्वास के समय लगनेवाली क्रियाएँ ११२ वायुकाय से होनेवाली क्रियाएँ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३३४ श० १० उ०१-३ प्र०१८ दशम सतक प्रथम दिशा उद्देशक १-२ पूर्वादि दिशायें जीव-अजीव रूप है ३ दश दिशाएँ ४ दश दिशाओं के नाम ५ क- दिशायें जीव-अजीव के देश-प्रदेशरूप हैं ख- एकेन्द्रिय-यावत्-अनिन्द्रिय के देश-प्रदेशरूप हैं ग- रूपी अजीव चार प्रकार का घ- अरूपी अजीव सात प्रकार का ६ आग्नेयी दिशा जीवरूप नहीं है ७-८ दिशा-विदिशाओं के जीव-अजीवरूप ६ पांच प्रकार के शरीर द्वितीय संवृत अणगार उद्देशक १० कषाय भाव में संवृत अनगार को लगनेवाली क्रियाएँ ११ क- अकषाय भाव में संवृत अणगार को लगनेवाली क्रियाएँ ख- इर्यापथिकी अथवा सांपरायिकी क्रियाओं के हेतु तीन प्रकार की योनियाँ १३ तीन प्रकार की वेदनायें १४ भिक्षु पडिमा १५ क- अकृत्य स्थान की आलोचना से अाराधना ख- अकृत्य स्थान की आलोचना न करने से विराधना तृतीय प्रात्म-ऋद्धि उद्देशक क- राजगृह ख- एक देव में चार-पांच देवावासों के उल्लंघन का सामर्थ्य १७ अल्प ऋद्धिक देव की शक्ति १८ महद्धिक देव की शक्ति १२ Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१० उ०४ प्र०३५ १६ - २० देव विमोहित करके दूसरे देव के मध्य में होकर जाता है २१-२२ महद्धिक देव का दूसरे देव के मध्य में होकर गमन २३ २४ अल्प ऋद्धि वाले देव का देवी के मध्य में होकर गमन यावत् महद्धिक देव का देवी के मध्य में होकर गमन २५-२६ अल्प ऋद्धिवाली देवी का देवी के मध्य में होकर गमन २७-२८ महधिक देवी का देवी के मध्य में होकर गमन २६ ३० ३३५ उदर वायु घोड़े के पेट में कर्कट वायु बारह प्रकार की भाषा चतुर्थ श्यामहस्ती श्रणगार उद्देशक ३१ क- वाणिज्यग्राम, दुतिपलाश चैत्य, भ० महावीर और इन्द्रभुति ख- श्याम हस्ती अणगार और गौतम का संवाद ३२ क- असुर कुमार के त्रास्त्रिशक देव ख- जम्बुद्वीप, भरत, काकंदी, तेतीस श्रमणोपासक ग- सभी श्रमणोपासक विराधक हुए और वे त्रास्त्रिशक देव हुए ३३ क - संदिग्ध गौतम का भ० महावीर के समीप समाधान के लिये उप स्थित होना ख- अशुरेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देवों का पद शास्वत है ३४ क- बलेन्द्र के त्रास्त्रिशक देव भगवती-सूची ख- जम्बूद्वीप, भरत, बेभेल संनिवेश, तेतीस श्रमणोपासक विराधक हुए और वे सभी त्रास्त्रिशक देव हुए, ग- धरणेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देव शेष भवनवासी एवं व्यंतर देवों के वायस्त्रिशक देव ३५ क शकेन्द्र के वायस्त्रिशक देव ख- जम्बूद्रीप. भरत. पलाशक संनिवेश. तेतीस श्रमणोपासक आराधक अवस्था में मरकर त्रास्त्रिशक देव हुए Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • भगवती-सूची ३३६ श०१० उ०५ प्र०५० - ग- शक्रेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देवों का पद शास्वत है ३६ क- ईशानेन्द्र के प्रायस्त्रिशक देव ख- जम्बूद्वीप, भरत, चम्पानगरी, तेतीस श्रमणोपासक आराधक ___अवस्था में मरकर त्रायस्त्रिशक देव हुए ग- ईशानेन्द्र के त्रायस्त्रिशक देवों का पद शास्वत है घ- अच्युतेन्द्र पर्यन्त इसी प्रकार समझें पंचम देव उद्देशक ३७ राजगृह, गुणशील चैत्य, भ० महावीर और स्थविर ३८ क- चमरेन्द्र की पांच अग्रमहीषियों के नाम ख- मर्यादा का हेतू माणवक चैत्यस्तंभ ग- जिन अस्थियों का सम्मान ४० क- चमरेन्द्र के सोमलोकपाल की चार अग्रमहीषियों के नाम ग- चार हजार देवियों का एक त्रुटिक वर्ग कहा जाता है घ- सोमा राजधानी, सोम लोकपाल की मैथुन मर्यादा. मर्यादा का हेतु पूर्ववत् शेष लोकपालों का वर्णन-सोम लोकपाल के समान वैरोचनेन्द्र की पांच अग्रमहीषियों के नाम-परिवार पूर्ववत् बलेन्द्र के चार लोकपालों का वर्णन धरणेन्द्र की छह अग्रमहीषियों के नाम धरणेन्द्र के कालवाल लोकपाल की चार अग्र महीषियों के नाम भूतानेन्द्र की छह अग्रमहीषियों के नाम भूतानेन्द्र के नागवित्त लोकपाल की चार अग्रमहीषियों के नाम शेष वर्णन-धरणेन्द्र के लोकपालों के समान कालेन्द्र की अग्रमहीषियों के नाम सुरूपेन्द्र की चार अग्रमहीषियों के नाम पूर्णभद्र की चार अग्रमहीषियों के नाम ४४ ४५ ४ ४७ ४८ ४६ . Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची श० ११ उ०१ प्र०२ ५३ भीम की चार अग्रमहीषियों के नाम किन्नरेन्द्र की चार अग्रमहीषियों के नाम किम्पुरुषेन्द्र की चार अग्रमहीषियों के नाम सत्पुरुषेन्द्र की चार अग्र महीषियों के नाम अतिकायेन्द्र की चार अग्रमहीषियों के नाम ५५ गीतरतीन्द्र की चार अग्रमहीषियों के नाम ५६ क- चन्द्र की चार अग्रमहीषियों के नाम ख- सूर्य की चार अग्र महीषियों के नाम ५७ अंगारक ग्रह की चार अग्रमहीषियों के नाम शेष अठ्यासीमहाग्रहों का वर्णन ५६ क- शक्रन्द्र की आठ अग्रमहीषियों के नाम ख- प्रत्येक अग्रमहीषी का परिवार ग- एक लाख अट्ठाईस हजार देवियों का एक त्रुटिक वर्ग शेष वर्णन चमरेन्द्र के समान ईशानेन्द्र की आठ अग्रमहीषियों के नाम. लोकपालों का वर्णन षष्ठ सभा उद्देशक शक्र की सुधर्मा सभा शक्रेन्द्र का सुख सप्तम से चोतीसवें पर्यन्त अन्तर्वीप उद्देशक उत्तर दिशा के अट्ठाईस (एकोरुक से शुद्धदन्त) अन्तर्वीपों का वर्णन इग्यारहवाँ शतक प्रथम उत्पल उद्देशक १ क- राजगृह ख- उत्पल के जीव २ उत्पल में उत्पन्न होने वाले जीवों की पूर्व-गति OM ६४ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०११ उ०१ प्र०२६ ३३८ भगवती-सूची ना उत्पल में एक समय में उत्पन्न होने वाले जीव उत्पल के जीवों को निकालने में लगनेवाला काल उत्पल के जीवों की अवगाहना उत्पल के जीवों के सातकर्मों का बन्ध उत्पल के जीवों के आयुकर्म का बन्ध (आठ विकल्प) उत्पल के जीव आठ कर्मों के वेदक उत्पल के जीवों का शाता-अशाता वेदन उत्पल के जीवों के आठ कर्मों का उदय उत्पल के जीवों के आठ कर्मों की उदीरणा उत्पल के जीवों में लेश्या (अस्सी विकल्प) उत्पल के जीवों में दृप्रियां उत्पल के जीवों में ज्ञान-अज्ञान उत्पल के जीवों में योग उत्पल के जीवों में उपयोग उत्पल के जीवों का वर्ण, गंघ, रस स्पर्श उत्पल के जीवों का श्वासोच्छ्वास (२६ विकल्प) उत्पल के जीव आहारक-अनाहारक (आठ विकल्प) उत्पल के जीवों में विरति-अविरति उत्पल के जीव सक्रिय उत्पल के जीवों के सात-आठ कर्मों का बन्ध उत्पल के जीवों में चार संज्ञा (अस्सी विकल्प) उत्पल के जीवों में चार कषाय (अस्सी विकल्प) उत्पल के जीवों में वेद उत्पल के जीवों में वेदों का बन्ध उत्पल के जीव असंज्ञी उत्पल के जीव सेन्द्रिय उत्पल के जीवों का उत्पल के रूप में रहने का जघन्य-उत्कृष्ट काल Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ليس لله لله स०११ उ०२-७ प्र०४५ ३३६ भगवंती-सूची ३०-३४ उत्पल के जीवों में पृथ्वीकाय आदि से गमनागमन का काल उत्पल के जीवों का आहार उत्पल के जीवों की आयु ३७ उत्पल के जीवों में समुद्घात उत्पल के जीवों का उद्वर्तन (मरण) उत्पल में सर्व जीवों की उत्पत्ति द्वितीय शालूक उद्देशक ४० क- शालूक में जीव ख- शेष उत्पल के समान तृतीय पलाश उद्देशक ४१ क- पलाश में जीव ख- शेष उत्पल के समान ग- पलाश में लेश्या चतुर्थ कुभिक उद्देशक क- कुंभिक में जीव ख- शेष उत्पल के समान ग- स्थिति में विशेषता पंचम नालिक उद्देशक ४३ क- नालिक में जीव ख- शेष उत्पल के समान षष्ठ पद्म उद्देशक ४४ क- पद्म में जीव ख- शेष उत्पल के समान सप्तम कणिक उद्देशक ४५ क. कणिक में जीव Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०११ उ०८-६ प्र०१८ ३४० भगवती-सूची ख- शेष उत्पल के समान अष्टम नलिन उद्देशम ४६ क- नलिन में जीव ख- शेष उत्पल के समान नवम शिव राजषि उद्देशक सूत्रांक १ क- हस्तिनापुर, सहश्राम्र वन ___ ख- शिवराज, धारिणी पट्टराणी, शिवभद्र पुत्र शिवराज का दिशा प्रोक्षक प्रव्रज्या लेने का संकल्प शिवभद्र को राज्याभिषेक शिवराज की प्रव्रज्या शिव राजिर्षि का अभिग्रह शिव राजर्षि की तपश्चर्या शिव राजर्षि को विभंगज्ञान सात द्वीप-समुद्र का ज्ञान भ० महावीर का पदार्पण, इन्द्रभूति की आशंका भ० महावीर द्वारा समाधान अढाई द्वीप के द्रव्य जम्बूद्वीप में वर्ण, गंध, रस, स्पर्शयुक्त द्रव्य लवण समुद्र में वर्ण, गंध, रस, स्पर्श युक्त द्रव्य धातकी खण्ड-यावत्-स्वयम्भुरमण समुद्र में वर्णादि युक्त द्रव्य १४ भ० महावीर का शिवराजर्षि के विभंगज्ञान के सम्बन्ध में यथार्थ कथन शिवराजर्षि का विपरीत कथन, भ० महावीर का यथार्थ कथन सशंकित शिवराजर्षि १७-१८ समाधान के लिये शिवराजर्षि का भ० महावीर के समीप आगमन rryxx9 di.com Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची . ३४१ श०११ उ० १० प्र०६९ भ० महावीर के समीप शिवराजर्षि की दीक्षा तथा अन्तिम साधना वज्रऋषभ नाराच संघयणवाला सिद्ध होता है दशम लोक उद्देशक ४७ क- राजगृह ___ ख- चार प्रकार का लोक ४८-५० क्षेत्रलोक तीन प्रकार का ५२ अधोलोक का संस्थान ५३ तिर्यग्लोक का संस्थान उर्ध्वलोक का संस्थान ५५ लोक का संस्थान ५६ अलोक का संस्थान ५७-५८ तीनों लोक जीव, जीव के देश और प्रदेश रूप हैं ५६ सम्पूर्ण लोक जीव, जीव के देश और प्रदेश रूप हैं ६० अलोक जीव, जीव के देश और प्रदेश रूप है ६१-६२ तीन लोक में से प्रत्येक लोक के एक आकाश प्रदेश में जीव, जीव के देश और प्रदेश हैं सम्पूर्ण लोक का एक आकाश प्रदेश, जीव के देश, जीव के प्रदेश रूप हैं अलोक का प्रत्येक आकाश प्रदेश जीव-अजीव नहीं है द्रव्य आदि से तीनों लोक, लोक और अलोक का विचार ६६ लोक का विस्तार-चार दिक्कुमारियों का रूपक अलोक का विस्तार-आठ दिक्कुमारियों का रूपक लोक के एक आकाश प्रदेश में जीव के प्रदेशों का परस्पर संबंध और एक दूसरे को पीड़ा न पहुँचाना, नर्तकी का रूपक ६६ एक आकाश प्रदेश में रहे हुए जीव प्रदेशों का अल्प-बहुत्व '६३ Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०११ उ०११ प्र०१० ७० एकादश का उद्देशक वाणिज्य ग्राम दुतिपलास चैत्य, भ० महावीर से सुदर्शन श्रेष्ठी का प्रश्न ७१ चार प्रकार का काल ७२ क- दो प्रकार का प्रमाण काल ख- उत्कृष्ट पौरुषी, जघन्य पौरुषी मुहूर्त के एक सौ बावीस भाग हानि-वृद्धि से उत्कृष्ट तथा जघन्य पौरुषी ७३ ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ ७६ ८० ८ १ ८२ सूत्रांक १-६ ७-१० ३४२ अठारह मुहूर्त के दिन में उत्कृष्ट पौरुषी बारह मुहूर्त के दिन में जघन्य पौरुषी इसी प्रकार रात्रि की पौरुषियाँ समझना अषाढ पूर्णिमा को सबसे बड़ा दिन, पोष पूर्णिमा को सबसे छोटा दिन, इसी प्रकार रात्रि समान दिन, समान रात्रि यथायु निवृत्ति काल मृत्यु की व्याख्या अद्धाकाल समय यावत् उत्सर्पिणी पल्योपम और सागरोपम का प्रयोजन अपचय का हेतु महाबल वर्णन नै रयिकों की - यावत् - सवार्थसिद्ध के देवों की स्थिति पल्योपम एवं सागरोपम का अपचय भगवती-सूची हस्तिनागपुर, सहस्राम्रवन, बल राजा, प्रभावती रानी, सिंहस्वप्न राजा द्वारा स्वप्नफल कथन स्वप्नपाठकों को निमंत्रण Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३४३ श०११ उ०१२ प्र०५ ११ स्वप्नपाठकों को प्रीतिदान एवं उनका विसर्जन २२ गर्भ रक्षा, पुत्र जन्म बधाई १४ जन्मोत्सव, नामकरण १५ पंचधाय से पुत्र का पालन १६ महाबल का अध्ययन काल १७-१८ महाबल का आठ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण व प्रीतिदान (दहेज) १६ धर्मघोष अणगार के समीप वाणी श्रवण, वैराग्य, राज्याभिषेक दीक्षा ग्रहण, तपश्चर्या, संलेखना, ब्रह्मलोक में उत्पत्ति, महाबल देव की स्थिति, सुदर्शन को जातिस्मरण, सुदर्शन की प्रव्रज्या, श्रमण पर्याय, मुक्ति द्वादश आलभिका उद्देशक सूत्रांक १ क- पालभिका नगरी, शंखवन चैत्य, ऋषिभद्र प्रमुख श्रमणोपासक ख- श्रमणोपासकों में परस्पर चर्चा ग- देवताओं की जघन्य स्थिति घ- देवताओं की उत्कृष्ट स्थिति ङ- ऋषिभद्र के कथनपर श्रमणोपासकों की अश्रद्धा २ क- भ० महावीर का पदार्पण ख- देवताओं की स्थिति के सम्बन्ध में भ० महावीर का समाधान गौतम की जिज्ञासा, ऋषिभद्र प्रव्रज्या स्वीकार करने में असमर्थ ऋषिभद्र की सौधर्म के अरुणाभ विमान में उत्पत्ति ५ ऋषिभद्र देव का च्यवन, महाविदेह में जन्म और मुक्ति Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स०१२ उ०१-२ प्र०१ ३४४ भगवती-सूची बारहवाँ शतक प्रथम शंख उद्देशक १ क- सावत्थी नगरी, कोष्ठक चैत्य, शंख प्रमुख श्रमणोपासक, उत्पला श्रमणोपासिका, पोखली श्रमणोपासक ख- भ० महावीर की धर्मदेशना २ क- श्रमणोपासकों द्वारा पाक्षिक पोषध करने का निर्णय, चार प्रकार का आहार निष्पन्न हुआ ख- शंख का संकल्प-चारों आहार के त्याग का संकल्प ३-४ पोखली का शंख को भोजन के लिये निमंत्रण ५ पोखली को उत्पला की बंदना ६.८ पोखली को पोषध के संबंध में शंख का निवेदन ६ भ० महावीर की वंदना के लिये पोषधयुक्त शंख का गमन १० अन्य श्रमणोपासकों का भ० महावीर की वंदना के लिये गमन ११ भ० महावीर का शंख की निंदा न करने के लिये आदेश १ क- तीन प्रकार की जागरिका ख- जागरिका की व्याख्या २ क्रोध से कर्म बंधन ३ मान, माया, और लोभ से कर्म बंधन शंख से श्रमणोपासकों की क्षमा याचना एवं स्वस्थान गमन गौतम की जिज्ञासा का समाधानशंख प्रव्रज्या स्वीकार करने में समर्थ नहीं है द्वितीय जयंती उद्देशक सूत्रांक १ क-कोशाम्बी नगरी, चन्द्रावतरण चैत्य ख- सहस्त्रानीक राजा का पौत्र, शतानीक राजा का पुत्र, चेटकराजा Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३४५ श०१२ उ० ३-४ प्र०२४ की पुत्री का पुत्र, जयंती श्रमणोपासिका का भतीजा, उदायन राजा ग- सहस्रानीक राजा के पुत्र की पत्नि, शतानीक राजा की पत्नि, चेटक राजा की पुत्री, उदाई राजा की माता, जयंती श्रमणो पासिका की भोजाई, मृगावती देवी घ- सहस्रानीक राजा की पुत्री, शतानीक राजा की भगिनी, उदाई राजा की पितृष्वसा-भुवा, मृगावती देवी की नणंद, भ० महावीर को सर्व प्रथम वसती देनेवाली जयंती श्रमणोपासिका प्रश्नोत्तरांक २ क- मृगावती और जयंती सहित भ० महावीर की वंदना के लिये राजा उदाई का गमन, भ० महावीर और जयंती के प्रश्नोत्तर ख-प्राणातिपात-यावत्-मिथ्यादर्शन शल्य ___जीव के भारीपने के हेतु ४ जीव का भव्यत्व स्वाभाविक है सर्व भव्य जीव मुक्त होंगे संसार भव्य जीवों से रिक्त नहीं होगा, रिक्त न होने का हेतु जीव का सोना या जागना सहेतुक श्रेष्ठ है जीव का सबल होना या निर्बल होना सापेक्ष श्रेष्ठ है उद्यमी होना या आलसी होना सापेक्ष श्रेष्ठ है पंचेन्द्रिय वशवर्ती का संसार भ्रमण जयंती की प्रव्रज्या तृतीय पृथ्वी उद्देशक १२ सात पृथ्वियाँ सात पृथ्वियों के गोत्र । चतुर्थ पुद्गल उद्देशक १४-२४ द्विप्रदेशिक स्कंध-यावत्-अनंत प्रदेशिक स्कंध के अनेक विकल्प m x x wo is waar Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१२ उ०५ प्र०५८ और उनकी स्थापना अनन्तानन्त पुद्गल परिवर्त २५ २६ सात प्रकार का पुद्गल परिवर्त २७ चौवीस दण्डक में पुद्गल परिवर्त २८ - ३६ चोवीस दण्डक में औदारिक पुद्गल परिवर्त ४० चौवीस दण्डक में वैक्रिय पुद्गल परिवर्त यावत्-आन-प्राण पुद्गल परिवर्त औदारिक पुद्गल परिवर्त की व्याख्या यावत्-आन-प्राण पुद्गल परिवर्त की व्याख्या ४१ औदारिक पुद्गल परिवर्त का निष्पत्ति काल यावत्-आन-प्राण पुद्गल परिवर्त का निष्पत्ति काल ४२ औदारिक पुद्गल परिवर्त काल का अल्प - बहुत्व ४३ पुद्गल परिवर्तों का अल्प-बहुत्व ३४६ ५० ५१ ५२ ५३ ५४ पंचम अतिपात उद्देशक ४४-४६ प्राणातिपात यावत् - मिथ्यादर्शनशल्य में वर्णादि बीस है प्राणातिपात विरमण - यावत् - मिथ्यादर्शनशल्य त्याग वर्णादि नहीं हैं चार प्रकार की मति में वर्णादि नहीं है भगवती-सूची अवग्रहादि चार में वर्णादि नहीं है उत्थानादि पांच में वर्णादि नहीं है। सप्तम अवकाशान्तरों में वर्णादि नहीं है आठ पृथ्वियों में और घनवात-तनुवातों में वर्णादि हैं चौविस दण्डक में वर्णादि हैं। ५८ क- द्रव्य लेश्या में वर्णादि है ५५ ५६ ५७ क - धर्मास्तिकाय - यावत् - जीवास्तिकाय में वर्णादि नहीं है ख- पुद्गलास्तिकाय में वर्णादि हैं ग- ज्ञानावरणीय यावत् - अन्तराय में वर्णादि हैं Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१२ उ०६.७ प्र०६६ १२ २०६.७ प्र०६ ३४७ भगवती-सूची ख- भाव लेश्या में वर्णादि नहीं हैं ग- तीन दृष्टियों में वर्णादि नहीं हैं घ- चार दर्शनों में वर्णादि नहीं है ङ- पांच ज्ञानों में वर्णादि नहीं है च- चार संज्ञाओं में वर्णादि नहीं है छ- पांच शरीरों में वर्णादि हैं ज- तीन योगों में वर्णादि हैं झ- साकारोपयोग और निराकारोपयोग में वर्णादि नहीं है सर्व द्रव्यों में वर्णादि है ६० गर्भस्थ जीव में वर्णादि है जीव और जगत् का कर्मों से विविधरूप में परिणमन षष्ठ राहु उद्देशक ६२ क- राहु के सम्बन्ध में जनसाधारण की भ्रान्त धारणा ख- राहुदेव का वर्णन ग- राहु के नाम घ- राहु का विमान ङ- पूर्व-पश्चिम में गमन करता हुआ राहु चन्द्र के उद्योत को आवृत्त करता है दो प्रकार का राहु राहुसे चन्द्र और सूर्य के आवृत होने का जघन्य उत्कृष्ट काल चन्द्र को शशि कहने का हेतु सूर्य को आदित्य कहने का हेतु चन्द्र के अग्रमहीषियां सूर्य और चण्द्र के काम-भोग सप्तम लोक उद्देशक ६६ लोक का आयाम-विष्कम्भ x ur 9 ॥ Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ भगवती-सूची श०१२ उ०८-६ प्र०११० ७० क- लोक के सर्व आकाश प्रदेशों में सर्व जीवों का जन्म-मरण ख- अजाव्रज का उदाहरण ७१-८२ चौवीस दण्डक में सर्व जीवों का जन्म-मरण ८३ सर्व जीव, सर्व जीवों के माता-पिता आदि सम्बन्धी हो चुके हैं सर्व जीवों के शत्रु आदि हो चुके हैं ८५ सर्व जीव सर्व जीवों के राजा आदि हो चुके हैं सर्व जीव सर्व जीवों के दास आदि हो चुके हैं अष्टम नाग उद्देशक ८७-६१ क- महधिक देव की सर्प हाथी मणी और वृक्षरूप में उत्पत्ति ख- सर्प आदि रूप में अर्चा-पूजा ग- सर्प आदि का एक भव करके मोक्ष में जाना -६२-६४ वानर आदि, सिंह आदि और काक आदि की नरक में उत्पत्ति नवम देव उद्देशक पांच प्रकार के देव भव्य द्रव्य देव कहने का हेतु नरदेव कहने का हेतु धर्मदेव कहने का हेतु देवाधिदेव कहने का हेतु भावदेव कहने का हेतु भव्य द्रव्य देव की उत्पत्ति १०२-१०४ नरदेव की उत्पत्ति १०५ धर्मदेव की उत्पत्ति १०६-१०८ देवाधिदेव की उत्पत्ति भवदेव की उत्पत्ति ११० भव्य द्रव्य देव की स्थिति WWWW ० ० ० १०६ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१२ उ०१० प्र०१३६ १११ ११२ ११३ ११४ ११५ ११६ ११७ ११८ ११६ १२० १२१ • १२२ १२३ १२४ १२५ १२६ १२७ १२८ १२६ १३५ १३६ ३४६ नरदेव की स्थिति धर्मदेव की स्थिति देवाधिदेव की स्थिति भावदेव की स्थिति क- भव्य द्रव्य देव की विकुर्वणा शक्ति ख- नरदेव की विकुर्वणा शक्ति ग- धर्मदेव की विकुर्वणा शक्ति देवाधिदेव की विकुर्वणा शक्ति भावदेव की विकुर्वणा शक्ति भव्य द्रव्य देव की मरणोत्तर गति नरदेव की मरणोत्तर गति धर्मदेव की मरणोत्तर गति देवाधिदेव की मरणोत्तर गति भावदेव की मरणोत्तर गति भव्य द्रव्य देव का अन्तर नरदेव का अन्तर धर्मदेव का अन्तर देवाधिदेव का अन्तर भावदेव का अन्तर पांच देवों का अल्प- बहुत्व भावदेवों का अल्प - बहुत्व दशम आत्मा उद्देशक आठ प्रकार का आत्मा १३० १३१-१३४ आठ आत्माओं का परस्पर सम्बन्ध आठ आत्माओं का अल्प-ब प- बहुत्व आत्मा ज्ञान स्वरूप है भगवती-सूची Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३५० श०१३० उ०१प्र०१७ m १३७ चौबीस दण्डक में आत्मा का रूप १३८ आत्मा दर्शन स्वरूप है १३६ चौवीस दण्डक में आत्मा दर्शनरूप है १४०-१४४ रत्नप्रभा-यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी सदसद्रूप है १४५ क- एक परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंध सदसद् रूप हैं ख- सदसद् रूप कहने का हेतु तेरहवां शतक प्रथम पृथ्वी उद्देशक १ क- राजगृह ख- सात पृथ्वियां २ क- रत्नप्रभा के नरकावास रत्नप्रभा के संख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासो में एक समय में उत्पन्न होने वाले जीव (उनचालीस विकल्प) रत्नप्रभा के नरकावासों में एक समय में उद्वर्तन-मरने वाले जीव रत्नप्रभा में नारकजीवों की सत्ता रत्नप्रभा के असंख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासो में एक समय में जीवों की उत्पत्ति उद्वर्तन और सत्ता ७-१२ शर्करा प्रभा-यावत-तमः प्रभा का वर्णन १३ क- सप्तम नरक के पांच नरकावास ख- नरकावासों का विस्तार पांच नरकावासों में एक समय में जीवों की उत्पत्ति, उद्वर्तन और सत्ता रत्नप्रभा के संख्याता योजन विस्तार वाले नरकावासों में सम्यक् दृष्टि आदि की उत्पत्ति १६-१७ क- सम्यग्दृष्टि आदि का उद्वर्तन-मरण x x w Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श० १३ उ०२-३ प्र०३७ ३५१ भगवती-सूची ख- सम्यग्दृष्टि आदि का अविरह ग- शर्करा प्रभा-यावत्-तमः प्रभा में रत्नप्रभा के समान घ- रत्नप्रभा के असंख्याता योजन वाले नरकावासों में सम्यग्दृष्टि आदि की उत्पत्ति, उद्वर्तन, सत्ता सप्तम पृथ्वी के पांच नरकवासों में मिथ्यादृष्टि की उत्पत्ति, उद्वर्तन, सत्ता १६-२१ अन्य लेश्यावाले कृष्ण, नील, कापोत लेश्या रूप में परिणत होकर नरक में उत्पन्न होते हैं द्वितीय देव उद्देशक चार प्रकार के देव दश प्रकार के भवनवासी देव असुर कुमारों के आवास संख्यात या असंख्यात योजन वाले आवासों में एक समय में उत्पन्न होने वाले जीव नागकुमार-यावत् स्तनित कुमार असुर कुमारों के समान व्यंतर देवों के समान व्यंतर देवों के आवासों में एक समय में उत्पाद, उद्वर्तन और सत्ता २६ क- ज्योतिषिक देवों के आवास ख- ज्योतिषीदेवों के आवासों में एक समय में जीवों का उपपात, उद्वर्तन और मरण ३०-३५ सौधर्म-यावत्-सर्वार्थसिद्ध विमानों में एक समय में जीवों का उपपात, च्यवन, और सत्ता ३६. कृष्णादि लेश्यावाले जीव देवों में कृष्णादि लेश्यारूप में परिणत होने पर उत्पन्न होते हैं तृतीय नरक उद्देशक नरक और नैरयिक नैरयिक अनन्तराहारी है Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३८ is a ३.६ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ४५ ४६ ४७-४६ लोक लोक का मध्यभाग ३५२ चतुर्थ पृथ्वी उद्देशक सात पृथ्वियां सात नरकों के नरकावासों की संख्या तथा नैरयिकों के कर्मादि सात नरकों के नैरयिकों का थ्वी - यावत् - बनस्पति का स्पर्शानुभव सात नरकों की बाहुल्य - चौड़ाई समस्त नरकावासों के समीपवर्ती - यावत्-वनस्पति कायिक जीवों के कर्म और वेदना अधोलोक का मध्यभाग उर्ध्वलोक का मध्यभाग तिर्यक् लोक का मध्यभाग दिशा दिशा विदिशा विचार अस्तिकाय पंचास्तिकाय रूप लोक पंचास्तिकायों की प्रवृत्ति श०१३ उ०४ प्र०७७ ५० ५१-५५ ५६-६६ - पंचास्तिकाय के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श ख- पंचास्तिकाय के प्रदेशों का काल - समयों से स्पर्श ६७ क- पंचास्तिकाय द्रव्यों का पंचास्तिकाय के प्रदेशों से स्पर्श ख- पंचास्तिकाय द्रव्यों का काल - समयों से स्पर्श ६८-७५ क- प्रत्येक अस्तिकाय के एक प्रदेश में अन्य अस्तिकायों के प्रदेशों का अस्तित्व ख- प्रत्येक अस्तिकाय के एक प्रदेश में काल - समयों का अस्तित्व ७६-७७ क- एक अस्तिकाय के स्थान में अन्य अस्तिकायों के प्रदेशों का अस्तित्व ख- एक अस्तिकाय के स्थान में काल - समय का अस्तित्व Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WW श०१३ उ०५-६ प्र०१ ३५३ भगवती-सूची ७८-७६ एक स्थावर जीव के स्थान में अन्य स्थावर जीवों का अस्तित्व ८० क- प्रत्येक अस्तिकाय के स्थान में एक पुरुष का बैठना-उठना असम्भव ख- कूटागार शाला का उदाहरण लोक वर्णन ८१ क- लोक का समभाग ख- लोक का संक्षिप्त भाग लोक का वक्रभाग लोक का संस्थान तीनों लोक की अल्प-बहुत्व पंचम आहार उद्देशक नेरयिक अचित्ताहारी है षष्ठ उपपात उद्देशक क- राजगृह ख- नैरयिक सान्तर और निरन्तर उत्पन्न होते हैं क- असुरेन्द्र के चमरचंच आवास की दूरी ख- चमरचंच आवास का आयाम-विष्कम्भ ग- चमरचंच आवास के प्राकार की ऊंचाई क- मनुष्यलोक में चार प्रकार के लयन ख- चमरचंच आवास केवल क्रीड़ाघर है .८७ राजा उदायन क- चम्पा नगरी, पूणभद्र चैत्य, भ० महावीर ख- सिन्धु सौवीरदेश (सोलह देश) बीतिभय नगर (१६० नगर) मृगवन उद्यान, उदायन राजा, प्रभावती रानी, अभीचीकुमार. Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची श०१३ उ०७ प्र०६६ भाणेज (भागिनेय) केशीकुमार, महासेन श्रादि दश राजा . २ क- पौषधशाला में धर्म जागरणा करते समय राजा उदायन का एक संकल्प ख- भ० महावीर का मृगवन में पदार्पण ग- राजा उदायन का दर्शनार्थ गमन एवं प्रव्रज्या के लिये निवेदन ३ अभीचीकुमार के लिये उदायन का शुभसंकल्प और केशीकुमार को राज्याभिषेक ४ क- राजा उदायन का प्रव्रज्या ग्रहण ख- पद्मावती की शुभकामना ५ क- अभीचीकुमार की मानसिक वेदना ख- अभीचीकुमार का कोणिक के समीप गमन ग- अभीचीकुमार की श्रावकवृत्ति घ- अभीचीकुमार का असुर कुमार देव होना ङ- एक पल्य की स्थिति च- अभीची का महाविदेह में जन्म और मोक्ष __ सप्तम भाषा उद्देशक प्रश्नोत्तरांक ८१ क- राजगृह ख- भाषा का पौद्गलिक रूप ६० भाषा रूपी हे __ भाषा अचित्त हे भाषा अजीवरूप हे भाषा जीव के होती है बोलते समय भाषा हे भाषा का भेदन चार प्रकार की भाषा MMMMM Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श० १३ उ० ७ प्र० ११२ ६७ हद ६६ १०० १०३ १०४ १०१ १०२ क- काया कथंचित् रूपी अरूपी ख- काया कथंचित् सचित्त-अचित्त ३५५ मन मन पुद्गलरूप है मनन के समय मन है मन का भेदन चार प्रकार का मन काया काया का अत्मा से कथंचित् भिन्नाभिन्न संबंध ११० १११ मरण १०५ पांच प्रकार का मरण पांच प्रकार का आवीचिक मरण १०६ १०७ क चार प्रकार का द्रव्य आवीचिक मरण ख- चार प्रकार का क्षेत्र आवीचिक मरण ग- चार प्रकार का काल आवीचिक मरण घ- चार प्रकार का भाव आवीचिक मरण १०८ - १०६ नैरयिक क्षेत्र आवीचिक मरण कहने का हेतु पांच प्रकार का अवधिमरण चार प्रकार का द्रव्य अवधिमरण ११२ क- नैरयिक द्रव्य अवधिमरण कहने का हेतु ख- क्षेत्र अवधिमरण ग- काल अवधिमरण ग- काया कथंचित् जीवरूप- अजीवरूप घ- काया जीव और अजीव दोनों के होती है काया और जीव के संबंध से पूर्व या पश्चात् भी काय काय का भेदन सात प्रकार की काया भगवती-सूची Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३५६ श०१३ उ० ८-६ प्र०१२६ घ- भव अवधिमरण ङ- भाव अवधिमरण ११३ पांच प्रकार का आत्यन्तिक मरण ११४ चार प्रकार का द्रव्य आत्यन्तिक मरण ११५ क- नैरयिक द्रव्य आत्यन्तिक मरण कहने का हेतु ख-क्षेत्र आत्यन्तिक मरण ग- काल आत्यन्तिक मरण घ- भव आत्यन्तिक मरण ङ- भाव आत्यन्तिक मरण ११६ बारह प्रकार का बालमरण ११७ दो प्रकार का पंडित मरण ११८ दो प्रकार का पादपोपगमन मरण ११६ दो प्रकार का भक्तप्रत्याख्यान मरण अष्टम कर्मप्रकृति उद्देशक १२० आठ कर्म प्रकृितियाँ हैं नवम अनगार वैक्रिय उद्देशक भावित आत्मा अणगार का वैक्रिय लब्धि से आकाश गमन का सामर्थ्य १२२ भावित आत्मा अणगार की वैक्रिय लब्धि से रूप विकुर्वणा अणगार द्वारा विविध रूपों की विकुर्वणा का सामर्थ्य अणगार द्वारा वडवागल के रूप की विकुर्वणा का सामर्थ्य १२५ अणगार द्वारा जलौका के समान गति का सामर्थ्य १२६ अणगार द्वारा बीजबीजक पक्षि के समान गति का सामर्थ्य १२७ अणगार द्वारा विड़ालक पक्षी के समान गति का सामर्थ्य १२८ अणगार द्वारा जीवजीवक पक्षी के समान गति का सामर्थ्य १२६ अणगार द्वारा हंस पक्षी के समान गति का सामर्थ्य १२१ १२३ १२४ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३७ श० १४ उ०१ प्र०६ ३५७ भगवती-सूची अणगार द्वारा समुद्रवायस पक्षी के समान गति का सामर्थ्य १३१ अणगार द्वारा चक्रहस्त पुरुष के समान गति का सामर्थ्य १३२ अणगार द्वारा रत्नहस्त पुरुष के समान गति का सामर्थ्य १३३ अणगार द्वारा विस भंजिका गति का सामर्थ्य अणगार द्वारा मृणाल भंजिका गति का सामर्थ्य अणगार द्वारा वनखंड के रूप में गमन करने का सामर्थ्य अणगार द्वारा पुष्करणी रूप में गमन करने का सामर्थ्य अणगार द्वारा पुष्करणी रूप विकुर्वणा सामर्थ्य १३८ माया सहित-अणगार की विकुर्वणा-यावत्-आराधना दशम समुद्घात उद्देशक १३६ छह छानस्थिक समुद्घात चौदहवाँ शतक प्रथम चरम उद्देशक भावित आत्मा अनगार जिस लेश्या में मृत्यु को प्राप्त होता है उसी लेश्यावाले देवावास में उत्पन्न होता है भावित आत्मा अणगार की असुरकुमारावास-यावत्-वैमानिकावासपर्यन्त प्रश्नांक एक के समान विग्रहगति ३ क- नैरयिक-यावत्-वैमानिक की उत्कृष्ट तीन समय की विग्रहगति ख- एकेन्द्रियों की चार समय की विग्रह गति ग- तरुण पुरुष की मुष्टि का उदाहरण श्रायुबंध चौवीस दण्डक में अनन्तरोपपन्नक तथा परंपरोपपन्नक ५ अनन्तरोपपन्नक प्रथम नैरयिकों के आयु-बंध का निषेध ६ परपरोपपन्नक नैरयिक के आयु-बंध Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३५८ श०१४ उ०२-३ प्र०२२ ७ चौवीस दण्डक में अनन्तरोपन्नक लौर परम्परोपपन्नक के आयु का बंध चौवीस दण्डक में अनन्तरनिर्गत और परम्परा निर्गत जीव ६-११ चौवीस दण्डक में अनन्तर निर्गत और परम्परा निर्गत जीवों का आयु-बंध १२ क- चौवीस दण्डक में परम्पर खेदोपपन्नक और अनन्तर खेदोपपन्नक ख- चौवीस दण्डक में अनन्तर खेदोपपन्नक जीवों में आयुबंध का निषेध ग- चौवीस दण्डक में परम्पर खेदोपपन्नक जीवों में आयुबन्ध घ- चौवीस दण्डक में अनन्तर विग्रह गतिप्राप्त खेदोपपन्नक जीवों में आयु बंध का निषेध द्वितीय उन्माद उद्देशक १३ दो प्रकार का उन्माद १४-१५ चौवीस दण्डक में उन्माद पर्जन्य विचार १६ इन्द्र द्वारा वृष्टि १७ वृष्टि का कार्यक्रम असुरों-यावत्-वैमानिकों द्वारा दृष्टि वृष्टि के हेतु तमस्काय ईशानेन्द्र द्वारा तमस्काय की रचना २१ क- असुरों-यावत्-वैमानिकों द्वारा तमस्काय की रचना ख- तमस्काय की रचना के हेतु तृतीय शरीर उद्देशक मध्यगति २२ क- महाकाय देव का भावित आत्मा अनगार के मध्य में होकर गमन १६ २० Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१४ उ०४-५ प्र०५१ २३ २७ ३५६ ख- अनगार के मध्य में होकर गमन करने के हेतु असुर- यावत्-वैमानिक देव का भावित आत्मा अनगार के मध्य में होकर गमन करना विनय विचार २४- २६ चौवीस दण्डकों में विनय मध्यगति अल्पऋद्धिवाले देव का महधिक देव के मध्य में होकर गमन करना समान ऋद्धिवाले देव का समान ऋद्धिवाले देव में होकर गमन करना २९-३० शस्त्र प्रहार करने के पूर्व या पश्चात् देवगति २८ । पुद्गल नैरयिकों का पुद्गलानुभव चतुर्थ पुद्गल उद्देशक ३२-३३ अतीत, अनागत और वर्तमान में ३१ भगवती-सूची पुद्गल परिणमन ३४ अतीत, अनागत और वर्तमान में पुद्गल स्कंध का परिणमन अतीत, अनागत और वर्तमान में जीव का परिणमन ३५ ३६ पुद्गल कथंचित् शास्वत-अशास्वत ३७ परमाणु कथंचित् चरम - अचरम ३८ दो प्रकार के परिणाम पंचम अग्नि उद्देशक ३६-४२ चौबीस दण्डक के जीव अग्नि के मध्य में होकर गमन करते हैं ४३-४६ चौबीस दण्डक के जीवों को दश प्रकार के अनुभव देव वैय ५०-५१ महद्धिक देव का पर्वतोल्लंघन Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'भगवती-सूची ३६० श०१४ उ०६-८ प्र० ७५ षष्ठ आहार उद्देशक ५२ चौवीस दण्डक के जीवों का आहार, परिमाण, योनि, स्थिति ५३ चौवीस दण्डक के जीवों का वीचि और अवीचि द्रव्यों का आहार शकेन्द्र के रतिगृह का वर्णन ईशानेन्द्रके रतिगृह का वर्णन सप्तम गौतम आश्वासन उद्देशक केवल ज्ञान की प्राप्ति न होने से खिन्न गौतम को भ० महावीर का आश्वासन भ० महावीर और गौतम के ज्ञान से अनुत्तर देवों के ज्ञान की तुलना ५८-६४ छह प्रकार के तुल्य ६५ भक्त प्रत्याख्यानी अनगार की आहार में आसक्ति और मृत्यु ६६ क- लव सप्तम देव ख-धान्य काटने का उदाहरण ६७ अनुत्तरोपपातिक देव अनुत्तरोपपतिक देवों के शुभकर्म अष्टम अंतर उद्देशक सात नरकों का अन्तर सप्तम नरक से अलोक का अंतर रत्नप्रभा से ज्योतिषिक देवों का अन्तर ज्योतिषिक देवों से अनुत्तर विमान पर्यन्त प्रत्येक देवलोक का अन्तर वृक्ष ७७ शालवृक्ष की पूजा-अर्चा, महाविदेह में जन्म और निर्वाण ७८ शालयष्टिका-शालवृक्ष के समान ७० Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श० १४ उ०६ प्र०६८ ३६१ भगवती-सूची RK WW० ० ० अम्बरयष्टिका ---शालवृक्ष के समान परिव्राजक अंबड़ परिव्राजक देव सामर्थ्य अव्याबाध देव का वैक्रिय सामर्थ्य इन्द्र की स्फूर्ति जुभक देव-वर्णन जभक देवों के दशनाम जभक देवों का निवासस्थान जुभक देव की स्थिति नवम अणगार उद्देशक ८७ भावित आत्मा अनगार का ज्ञान पुद्गल ८८ पुद्गल स्कंध का प्रकाश ८६ चन्द्र-सूर्य के विमानों के पुद्गल ६०-६२ चौवीस दण्डक के जीवों को सुख-दुःख देनेवाले पुद्गल ६३ क- चौवीस दण्डक के जीवों को इष्ट-अनिष्ट पुद्गल ख- इसी प्रकार कांत, प्रिय और मनोज्ञ पुद्गल देव सामर्थ्य ६४ महद्धिक देव का भाषा सामर्थ्य भाषा भाषा की एकता ज्योतिषी देव सूर्य का भावार्थ सूर्य की प्रभा श्रमण और देव १८ श्रमणों के सुख से देवताओं के सुख की तुलना Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची दशम केवली उद्देशक ६-१११ केवली के ज्ञान की व्यापकता २. ३६२ श० १५३०१ प्र० ३ पंद्रहवाँ शतक प्रथम उद्देशक क- श्रावस्ती नगरी, कोष्ठक चैत्य, आजीविक उपासिका हालाहला कुंभकारी ख- गोशालक के समीप छह दिशाचरों का आगमन ग- आठ प्रकार निमित्त, नवचां गीत, दशवां नृत्य घ- छह प्रकार का फलादेश क- भ० महावीर का पर्दापण ख- गोशालक का अपने आपको जिन कहना ग- भ० महावीर ने गौतम की जिज्ञासा पूर्ति के लिये गोशालक का जीवन वृत्तांत सुनाया क- माता-पिता के स्वर्गवास के पश्चात् भ० महावीर की दीक्षा ख- प्रथम वर्षावास अस्थिग्राम में ग- द्वितीय वर्षावास राजगृह में घ- भ० महावीर का विजय गाथापति के घर पर प्रथम मासो-पवास का पारणा ङ - पांच प्रकार की दिव्य वर्षा च - गोशालक का विजय गाथापति के घर आगमन छ- आनन्द गाथापति के घर भ० महावीर के द्वितीय मासोपवास का पारणा ज- सुनन्द गाथापति के घर भ० महावीर के तृतीय मासोपवास का पारणा भ- बहुल ब्राह्मण के घर भ० महावीर के चतुर्थ मासोपवास का पारणा Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१५ उ०१ प्र०६ भगवती-सूची ४ क- भ० महावीर का गोशालक को शिष्यरूप में स्वीकार करना ख- भ० महावीर और गोशालक का प्रणीत भूमि में छह वर्ष तक विचरण ५ क- भ० महावीर और गौशालक का सिद्धार्थ ग्रामसे कूर्मग्राम की __ओर विहार ख- मार्ग में तिल के पौधे को लक्ष्य करके गोशालक का भ० महावीर से प्रश्न ग- भ० महावीर के कथन को अस्वीकार करके गोशालक ने तिल के पौधे को उखाड़ फेंकना घ- दिव्य उदक वृष्टि से तिल के पौधे का पुनः प्रत्यारोपण ६ क- कूर्मग्राम के बाहर गोशालक का वैश्यायन बाल तपस्वी से विवाद ख- वैश्यायन बाल तपस्वी द्वारा गौशालक पर तेजोलेश्या का प्रक्षेपण ग- भ० महावीर द्वारा शीतलेश्या से गौशालक का रक्षण घ- भ० महावीर का गोशालक को तेजोलेश्या की साधना का कथन ७ क- भ० महावीर का गोशालक के साथ सिद्धार्थ ग्राम की ओर विहार ख- भ० महावीर से अलग होकर गोशालक द्वारा तिल के पौधे का निरीक्षण, परीक्षा और परिवर्तवाद के सिद्धान्त का निरूपण ग- गोशालक का भगवान से पुनर्मिलन और भगवान् से अपने पूर्ववृत्त का परिश्रवण ८ गोशालक को तेजोलेश्या की प्राप्ति है क- छह दिशाचरों द्वारा गोशालक का शिष्यत्व स्वीकार ख- शिष्य परिवार के साथ गोशालक का स्वतंत्र विचरण Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ २० २१ २२ २३ २४ २५ २३ २७ ३६४ ग- गोशालक के सम्बन्ध में भ० महावीर का स्पष्टीकरण क- गोशालक और आनन्द का मिलन ख- भगवान को तेजोलेश्या से भष्म करने का गोशालक का दृढ़ निश्चय ग- वणिक का दृष्टान्त गोशालक के सामर्थ्य के सम्बन्ध में आनन्द की जिज्ञासा भ० महावीर का गौतम को गोशालक से विवाद करने का निषेधादेश क- भगवान के समीप गोशालक का स्वमत दर्शन ख- चौराशी लक्ष्य महाकल्प का प्रमाण ग- सात दिव्य भवान्तरित सात मनुष्य भव घ- सात शरीरान्तर प्रवेश भ० महावीर का गोशालक से आत्मगोपन का निषेध भगवान् के प्रति गोशालक के आक्रोश वचन क- सर्वानुभूति अनगार का गोशालक को सत्य कथन ख- गोशालक द्वारा सर्वानुभूति अनगार पर तेजोलेश्या का प्रहार सुनक्षत्र अणगार पर भी तेजोलेश्या का प्रहार गोशालक द्वारा भ० महावीर पर तेजोलेश्या का प्रक्षेपण भ० महावीर का श्रमणों को आदेश गोशालक और श्रमणों के प्रश्नोत्तर निरुत्तर गोशालक का क्रोध गोशालक का हालाहला के यहां जाना तेजोलेश्या का सामर्थ्य चार प्रकार के पानक चार प्रकार के अपानक स्थालपाणी त्वचापाणी श०१५ उ०१ प्र० २७ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१५ उ०१ प्र०४६ ३६५ भगवती-सूची २८ फलियों का पाणी शुद्धपाणी पूर्णभद्र और माणिभद्र देव की साधना गोशालक और अयंपुलक आजीविकोपासक का मिलन ३२ मृत्यु महोत्सव करने के लिये गोशालक का स्थविरों को आदेश गोशालक को सम्यक्त्व की प्राप्ति ३४ अन्तिम संस्कार के सम्बन्ध में गोशालक का नया आदेश ३५ क- मेंढिक ग्राम. साणकोष्ठक चैत्य. मालुकावन ख- भ० महावीर को पित्तज्वर और रक्तातिसार की वेदना ग- सिंह अनगार की आशंका घ- सिंह अनगार को रेवती के घर से बिजोरा पाक लाने के लिये भ० महावीर की आज्ञा सर्वानुभूति अनगार की सहस्रार कल्प में उत्पत्ति, महाविदेह में जन्म और मुक्ति सुनक्षत्र अनगार की अच्युत देवलोक में उत्पत्ति, महाविदेह में जन्म और मुक्ति गोशालक की अच्युत देवलोक में उत्पत्ति, गोशालक देव की स्थिति ३६- क- जम्बूद्वीप, भरत, विंध्याचल पर्वत, पुंड्रदेश, शतद्वार नगर, संभूति राजा, भद्रा भार्या की कुक्षिसे गोशालक की श्रात्मा का जन्म ख- महापद्म, देवसेन और विमलवाहन ये, तीन राजकुमार ४० महापद्म और देवसेन नाम देने का हेतु विमल वाहन नाम देने का हेतु विमल वाहन का श्रमणनिग्रंथों के साथ अनार्य व्यवहार ४३-४४ विमल वाहन के रथ से सुमंगल अणगार का अध: पतन सुमंगल अनगार के तपतेज से विमल वाहन का भष्म होना ४६ सुमंगल अनगार की सर्वार्थसिद्ध में उत्पत्ति तदनन्तर M ३८ को Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'भगवती-सूची श०१६ उ०१ प्र०७ महाविदेह में जन्म और मुक्ति ४७ क- विमल वाहन का भव भ्रमण ख- जम्बूद्वीप, भरत, विंध्याचल पर्वत, बेभेल ग्राम में ब्राह्मण कन्या के रूप में जन्म मरण के पश्चात् अग्निकुमार देव होना पुनः भवभ्रमण '४८-४६ महाविदेह में जन्म और निर्वाण सोलहवाँ शतक प्रथम अधिकरण उद्देशक १ क- वायुकाय की उत्पत्ति और मरण ख- वायुकाय के जीव का शरीर सहित भवान्तर - २ क- इंगाल कारिका (सगड़ी) में अग्निकाय की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ख- इंगाल कारिका में वायुकायिक जीवों की उत्पत्ति क्रिया विचार ३ क- तप्तलोहे को ऊंचा-नीचा करने में लगनेवाली क्रियायें ख- लोह भट्ठी, संडासा, घण, हथोड़ा, एरण अंगार आदि जिन जीवों के शरीरों से बने हैं उन जीवों को लगनेवाली क्रियाएँ ४ क- तप्तलोहे को एरण पर रखने से लगनेवाली क्रियाएं ख- लोह, संडासा, धन, हथोड़ा, एरण, एरणकाष्ठ, द्रोणी और अधिकरण शाला आदि जिन जीवों के शरीरों से बने हैं उन जीवों को लगनेवाली क्रियाएं ५ क- अधिकरण-हिंसा जीव अधिकरणी (हिंसा का हेतु) और अधिकरण ख- अधिकरणी और अधिकरण कहने का हेतु ६ चौबीस दण्डक के जीव अधिकरणी और अधिकरण ७ क- अविरति की अपेक्षा जीव साधिकरणी Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१६ उ०२ प्र०१६ ३६७ भगवती-सूची ___ख- चौवीस दण्डक के जीव साधिकरणी ८ क- अविरति की अपेक्षा जीव आत्माधिकरणी पराधिकरणी और तदुभयाधिकरणी ख- चौवीस दण्डक के जीव आत्म पर और तदुभयाधिकरणी है ६ क- अविरती की अपेक्षा जीवों का आत्म पर और तदुभय प्रयोग से अधिकरण ख- चौवीस दण्डक के जीवों का अविरती की अपेक्षा आत्म पर और तदुभयप्रयोग से अधिकरण १० शरीर पांच प्रकार का शरीर इन्द्रियां, पांच इन्द्रियां योग १३ आदार १२ तीन प्रकार के योग औदारिक शरीर का बंधक अधिकरण और अधिकरणी १४ क- औदारिक शरीर के बंधक दण्डक अधिकरणी और अधिकरण ख- वैक्रिय शरीर के बंधक, दण्डक, अधिकरणी और अधिकरण १५ क- आहारक शरीर के बंधक अधिकरणी और अधिकरण प्रमाद ख- तैजस शरीर के बंधक-प्रश्नोत्तरांक १३ के समान ग- कार्मण शरीर के बंधक-प्रश्नोत्तरांक १३ के समान १६ पंचेन्द्रिय के बंधक प्रश्नोत्तरांक १३ के समान १७ क- तीन योग के बंधक प्रश्नोत्तरांक १३ के समान ख- चौकीस दण्डक में तीन योग के बंधक ग- उन्नीस दण्डक में वचनयोग द्वितीय जरा उद्देशक १८-१९ क- जीवों को जरा और शोक ख- चौवीस दण्डक में जरा और शोक Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१-२२ २५ भगवती-सूची ३६८ श० १६ उ० ३-४प्र० ३७ ।। ग- असंज्ञी जीवों मे शोक का अभाव, शोक न होने का कारण शक्रेन्द्र भ० महावीर के समीप शकेन्द्र का आगमन पांच प्रकार के अवग्रह शकेन्द्र सत्यवादी २४ शकेन्द्र सत्य आदि चार भाषा का भाषक है शकेन्द्र सावद्य एवं निरवद्य भाषी है शकेन्द्रि भवसिद्धिक आदि २७ क- चैतन्य कृत कर्म-चैतन्य कृत होने के कारण ख- चौवीस दण्डक में चैतन्यकृत कर्म तृतीय कर्म उद्देशक २८ क- आठ कर्म प्रकृतियां ख- चौवीस दण्डक में आठ कर्म प्रकृतियां २६ ज्ञानावरण का वेदक, आठ कर्म प्रकृतियों का वेदक ३० क- भ० महावीर का राजगृह के गुणशील चैत्य से विहार ख- उल्लुकतीर नगर के एक जम्बूक चैत्य में पधारे क्रिया विचार ३१ कायोत्सर्ग में स्थित मुनि के अर्श काटने वाले वैद्य को और मुनि को लगनेवाली क्रियायें चतुर्थ जावंतिय उद्देशक ३२-३६ नैरथिक से नित्यभोजी श्रमण की निर्जरा अधिक ३७ क- अधिक निर्जरा होने का हेतु ख- वृद्ध कठियारे का उदाहरण ग- तरुण कठियारे का उदाहरण घ- घास के पूले का उदाहरण ङ- तप्त तवे पर पानी के बिन्दु का उदाहरण : Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१६ उ०५ प्र०४८ भगवती-सूची पंचम गंगदत्त उद्देशक ३८ क- उल्लुक तीर नगर-एक जम्बूक चैत्य में भ० महावीर पधारे शक्रेन्द्र का आगमन ख- बाह्यपुद्गल ग्रहण किये बिना देव का आगमन असम्भव ग- १ गमन २ भाषण ३ उत्तरदान ४ पलक झपकना ५ शरीर के अवयवों का संकोच-विकास ६ स्थान शय्या निषद्याभोग ७ विक्रिया ८ परिचारणा का न होना ३६ क- शक्र का उत्सुकतापुर्वक नमन ख- महाशुक्रकल्प में सम्यग्दृष्टि गंगदत्तदेव की उत्पत्ति और उसका मिथ्यादृष्टि देव के साथ वाद ग- वाद का विषय-परिणामप्राप्त पुद्गल परिणत या अपरिणत घ- गंगदत्तदेव का भ० महावीर के समीप आगमन ४० गंगदत्त देव का भ० महावीर से प्रश्न ४१ क- गंगदत्त देव की जिज्ञासा में भवसिद्धिक हूँ या अभव सिद्धिक ख- भ० महावीर के सम्मुख गंगदत्त देव का नाटयप्रदर्शन ग- गंगदत्त देव का स्वस्थान गमन ४२ गंगदत्त देव की दिव्य ऋद्धि के सम्बन्ध में कूटागार शाला का दृष्टान्त ४३ दिव्य ऋद्धि प्राप्त होने का कारण ४४ क- जम्बूद्वीप, भरत, हस्तिनापुर, सहस्राम्रवन ख- गंगदत्त गृहपति ग- भ० मुनिसुव्रत का पदार्पण घ- गंगदत्त का दर्शनार्थ गमन गंगदत्त को प्रतिबोध ४६ गंगदत्त की दीक्षा और अन्तिम आराधना गंगदत्त देव की स्थिति गंगदत्त देव' का च्यवन महाविदेह में जन्म और निर्वाण ४८ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३७० श०१६ उ०८ प्र०८९ ४६ '५२-५३ ६२ षष्ठ स्वप्न उद्देशक पांच प्रकार का स्वप्न स्वप्न देखने का समय जीव सुप्त, जागृत और सुप्त-जागृत चौवीस दण्डक के जीव सुप्त, जागृत और सुप्त-जागृत संवृतादि का सत्यासत्य स्वप्न जीव-संवृत, असंवत और संवृतासंवृत बयालीस प्रकार के स्वप्न तीस प्रकार के महास्वप्न स्वप्न और महास्वप्न की संयुक्त संख्या तीर्थंकर की माता के स्वप्न चक्रवर्ती की माता के स्वप्न वासुदेवकी माता के स्वप्न बलदेव की माता के स्वप्न मंडलिक की माता के स्वप्न भ० महावीर की छद्मस्थ अवस्था के स्वप्न और उनका फल मुक्त होने वालों के स्वप्न कोष्टपुट-यावत्-केतकीपुट के पुद्गलों का वायु के साथ वहन सप्तम उपयोग उद्देशक दो प्रकार के उपयोग अष्टम लोक उद्देशक लोक की महानता-यावत्-परिधि लोक के पूर्वान्त आदि जीव नहीं किन्तु जीवदेश, जीवप्रदेश, अजीव, अजीवदेश और अजीवप्रदेश हैं रत्नप्रभा के पूर्वान्त आदि से-यावत्-ईषत्प्राग्भारा के पूर्वान्त आदि पर्यन्त पुद्गल ६४-६५ ६६-८० ८४-८७ ८८ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१७ उ०१ प्र० १ ६० -९३ ६१ क- देव का अलोक में हाथ पसारना सम्भव नहीं ख- हाथ न पसारसकने का हेतु नवम बलिन्द्र उद्देशक ६२ क- बलीन्द्र ( वैरोचनेन्द्र ) की सुधर्मा सभा ख- बलिचंचा राजधानी का विष्कम्भ ग- बलीन्द्र की स्थिति २५ ६६ ६७ ३७१ एक समय में परमाणु की गति क्रिया विचार ६८ £ & वर्षा की जानकारी के लिए हाथ पसारनेवाले को लगने वाली क्रियाएं एकादशम द्वीपकुमार उद्देशक -९४ द्वीपकुमारों का समान आहार, समान उच्छ्वास - निश्वास द्वीपकुमारों के चार लेश्या चार लेश्यावाले द्वीपकुमारों का अल्प - बहुत्व चार लेश्यावाले द्वीपकुमारों में अल्पऋद्धिक - महर्षिक की दशम अवधिज्ञान उद्देशक दो प्रकार का अवधिज्ञान अल्प-बहुत्व द्वादशम उदधिकुमार उद्देशक उदधि कुमारों के सम्बन्ध में – एकादश उद्देशक के समान त्रयोदशम दिक्कुमार उद्देशक दिक्कुमारों के संबन्ध में एकादश उद्देशक के समान सतरहवाँ शतक प्रथम कुंजर उद्देशक राजगृह, भ० महावीर और गौतम भगवती-सूची क ख- उदायी हस्ती का पूर्वभव Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३७२ श०१७ उ०१ प्र०१५ २ उदायी हस्ती का परभव ३ उदायी हस्ती का तृतीय भव, महाविदेह में जन्म और निर्वाण भूतानन्द हस्ती का पूर्वभव और परभव उदायी के समान क्रिया विचार ५ क- ताड़ वृक्षपर चढ़कर ताड़ फल गिराने वाले को लगने वाली क्रियायें ख- ताडवृक्ष और ताड़ फल जिन जीवों के शरीर से बना है , उन जीवों को लगने वाली क्रियायें गिरते हुए ताड़-फल से यदि जीव वध हो तो-१ फल गिराने वाले पुरुष को ताड़ वृक्ष के जीवों को ३ ताड़-फल के जीवों को ४ ताड़-फल के उपकारी जीवों को लगने वाली क्रियायें ७ क- वृक्ष-मूल हिलाने वाले को तथा गिरानेवाले को लगने वाली क्रियायें ख- वृक्ष-मूल तथा बीज आदि के शरीर जिन जीवों से बने हुए हैं उन जीवों को लगने वाली क्रियायें गिरते हुए वृक्ष से यदि जीववध हो तो १ वृक्ष गिरने वाले पुरुष को २ मूल तथा बीज आदि के जीवों को ३ मूल आदि के उपकारों जीवों को लगने वाली क्रियायें वृक्ष का कन्द हिलाने वाले पुरुष को प्रश्नांक ६ के समान गिरते हुए कन्द से यदि जीववध हो तो प्रश्नांक ३ के समान ११-१३ शरीर इन्द्रिय और योग १४ दश दण्डकों में औदारिक शरीर का बंधक, एक जीव को लगने वाली क्रियायें १५ क- दश दण्डकों में औदारिक शरीर के बंधक, बहुत से जीवों को लगनेवाली क्रियायें ख- शेष शरीर के बंधकों को लगने जाली क्रियायें भ- पांचों इन्द्रियों के बंधकों को लगने वाली क्रियाये Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१७ उ०२-३ प्र०३५ ३७३ भगवती-सूची घ. एक वचन और बहु वचन की अपेक्षा से छब्बीस विकल्प १६ छह प्रकार के भाव १७ दो प्रकार के औदयिक भाव द्वितीय संयत उद्देशक १८ क- संयत-विरत धार्मिक, असंयत-अविरत अधार्मिक और संयता संयत-धर्माधार्मिक ख- धर्म में स्थित होने का हेतु १६ जीव धर्म, अधर्म और धर्माधर्म में स्थित हैं अन्य तीर्थिक २०-२१ चौवीस दण्डक के जीव धर्म, अधर्म और धर्माधर्म में स्थित हैं २२ अन्य तीथिकों की मान्यता-एक जीव के बध की अविरति जिसके है वह बालपंडित है जीव बाल, पंडित और बालपंडित है २४-२५ चौवीस दण्डक के जीव बाल, पंडित' और बाल पंडित हैं अन्य तीर्थिक अन्य तीथिकों की मान्यता-जीव और जीवात्मा कथंवित् भिन्न हैं भ० महावीर की मान्यता—जीव और जीवात्मा भिन्न हैं वैक्रेय शक्ति २७ क- देवरूपी रूप की विकुर्वणा करने में समर्थ है, ख- अरूपी रूप की विकुर्वणा नहीं कर सकता २८ अरूपी रूप की विकुर्वणा न कर सकने का हेतु तृतीय शैलेषी उद्देशक २६ शैलेषी अनगार का पर प्रयोग के बिना कंपन नहीं ३० पांच प्रकार की एजना-कम्पन ३१-३५ एजना और एजना के हेतु . Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३७४ श०१७ उ०६ प्र०५७ ३६-४३ तीन प्रकार की चलना, चलना के हेतु . पचपन बोल ४४ संवेग-यावत्-मारणांतिक अहियासणिया का अंतिम फल मोक्ष चतुर्थ क्रिया उद्देशक क- राजगृह ख- प्राणातिपात क्रिया ४६ क- स्पृष्ट क्रिया चौबीस दण्डक में स्पृष्ट किया ख- व्याघात और अव्याघातसे क्रिया का दिशा विचार ४७.४८ मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह सम्बन्धी क्रिया चौवीस दण्डक में उक्त क्रियायें क्षेत्र से स्पृष्ट क्रिया-प्राणातिपात-यावत्-परिग्रह से प्रदेश सृष्ट क्रिया प्राणातिपात-यावत्-परिग्रह से दुःख ५२ क- आत्मकृत दुःख ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत दुःख ५३ क- आत्मकृत दुःख का वेदन । ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत दुःख का वेदन ५४ क- प्रात्मकृत वेदना ५५ क- आत्मकृत वेदना का वेदन ख- चौवीस दण्डक में आत्मकृत वेदना का वेदन पंचम सुधर्मा सभा उद्देशक ५६ क- ईशानेन्द्र की सुधर्मा सभा-यावत् ख- ईशानेन्द्र की स्थिति षष्ठ पृथवी कायिक उद्देशक ५७ क- पृथ्वीकायिक जीव का उत्पन्न होने से पूर्व या पश्चात् आहार ग्रहण करना ख- रत्नप्रभा पृथ्वी का जीव, सौधर्म कल्प की पृथ्वी में उत्पन्न Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१७ उ०१२ प्र०६५ ३७५ भगवती-सूची जीव-रत्न प्रभा पृथ्वी से ईशानकल्प की पृथ्वी में उत्पन्न जीव-यावत्-ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में उत्पन्न जीव ग- आहार ग्रहण का हेतु सप्तम पृथ्वी कायिक उद्देशक ५८ सौधर्म कल्प की पृथ्वी से रत्नप्रभा की पृथ्वी में उत्पन्न जीव यावत्-तम प्रभाः पृथ्वी में उत्पन्न जीव अष्टम अप्कायिक उद्देशक ५६ क- अप्कायिक जीवों का उत्पन्न होने के पूर्व या पश्चात् आहार ग्रहण करना ख- आहार ग्रहण का हेतु ग- रत्नप्रभा पृथ्वी में से अप्कायिक जीवका सौधर्मकल्प में अप्का यिक रूप में उत्पन्न होना नवम अप्कायिक उद्देशक सोधर्म कल्प से अप्कायिक जीव का रत्नप्रभा में अप्कायिक रूप में उत्पन्न होना-यावत्-तमस्तमप्रभा में उत्पन्न होना दशम वायुकायिक उद्देशक रत्नप्रभा से वायुकायिक जीवका सौधर्म कल्प में वायुकायिक रूप में उत्पन्न होना एकादश वायुकायिक उद्देशक सौधर्म कल्प से वायुकायिक जीव का रत्नप्रभा में-यावत्तमस्तमप्रभा में वायुकायिक जीव का उत्पन्न होना द्वादश एकेन्द्रिय उद्देशक सर्व एकेन्द्रियों का आहार, उच्छवास-यावत्-आयु उत्पत्ति सम्बन्धी वर्णन ६४ एकेन्द्रियों की लेश्या ६५ . . लेश्यावाले एकेन्द्रियों का अल्प-बहुत्व ६२ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१० भगवती-सूची ३७६ श०१८ उ०१ प्र० ३५ लेश्यावाल एकेन्द्रियों की ऋद्धि का अल्प-बहुत्व त्रयोदश नागकुमार उद्देशक नागकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि का अल्प-बहुत्व चतुर्दश सुवर्णकुमार उद्देशक सुवर्णकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि का अल्प-बहुत्व पंचदश-विद्युत्कुमार उद्देशक ६६ विद्युत्कुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि०अल्प-बहुत्व षोडस वायुकुमार उद्देशक वायुकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि ०अल्प-बहुत्व सप्तदश अग्निकुमार उद्देशक अग्निकुमारों का आहार-यावत्-ऋद्धि ० अल्प-बहुत्व अठाहरवा शतक प्रथम प्रथम उद्देशक १ क- जीव जीवभाव से अप्रथम है ख- चौवीस दण्डक के जीव जीवभाव से अप्रथम है २ सिद्ध, सिद्धभाव से प्रथम है ३ क- समस्त जीव जीवभाव से अप्रथम है ____ ख- चौवीस दण्डक के समस्त जीव, जीवभाव से अप्रथम है ४ समस्त सिद्ध सिद्धभाव से अप्रथम है ५-१६ १जीव,२ आहारक, ३ भवसिद्ध क, ४ संज्ञी, ५ लेश्या, ६ दृष्टि, ७ संयत, ८ कषाय, ६ ज्ञान, १० योग, ११ उपयोग, १२ वेद, १३ शरीर, १४ पर्याप्त उक्त द्वारों में एक वचन-बहु वचन की अपेक्षा चौवीस दण्डकों में प्रथमाप्रथम भाव की विचारणा २०-३५ १ जीव २ आहारक ३ भवसिद्धक. ४ संज्ञी ५ लेश्य ६ दृष्टि ७ संयत ८ कषाय ६ ज्ञान १० योग ११ उपयोग १२ वेद Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१८ उ०२-३ प्र०१० ३७७ भगवती-सूची १३ शरीर १४ पर्याप्त उक्त द्वारों में एक वचन बहु वचन की अपेक्षा चौवीस दण्डकों में चरमाचरम की विचारणा सूत्रांक द्वितीय विशाखा उद्देशक १ विशाखा नगरी, बहुपुत्रिक चैत्य, भ० महावीर का पदार्पण, शकेन्द्र का आगमन नाट्य प्रदर्शन २ क- भ० गौतम को शकेन्द्र की ऋद्धि तथा पूर्वभव की जिज्ञासा ख- भ० महावीर द्वारा समाधान ३ क- हस्तिनागपुर, सहस्राम्रवन, कार्तिक सेठ, एक हजार आठ व्या पारियों में प्रमुख ख- भ० मुनि सुव्रत का पदार्पण ४ कार्तिक शेठ का धर्मश्रवण और वैराग्य ५-७ एक हजार आठ वणिकों के साथ कार्तिक शेठ का प्रव्रज्या ग्रहण चौदहपूर्व, का अध्ययन, तपश्चर्या, अन्तिम आराधना, शकेन्द्र रूप में उत्पन्न होना, पश्चात् महाविदेह में जन्म और निर्वाण तृतीय माकंदिपुत्र उद्देशक ८ क- राजगृह, गुणशील चैत्य, म० महावीर से माकंदीपुत्र अनगार के प्रश्न ख- कापोत लेश्या वाले पृथ्वीकायिक जीव का मनुष्यभव प्राप्त ___ करके मुक्त होना ६-१० क- कापोत लेश्यावाले अप्कायिक और वनस्पतिकायिक जीव का ___ मनुष्यभव प्राप्त करके मुक्त होना ख- भ० महावीर के प्राप्त समाधान के सम्बन्ध में माकंदीपुत्र की स्थविरों से वार्ता ग- भ० महावीर के समीप समाधान के लिये स्थविरों का आगमन घ- माकंदीपुत्र से स्थविरों का क्षमा याचन . Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८ भगवती-सूची श०१८ उ०४ प्र०३५ ११ भावित आत्मा अनगार के सर्वलोकव्यापी चरम निर्जरा पुद्गल १२ उपयोगयुक्त छद्मस्थ का निर्जरा पुद्गलों को जानना १३-१५ क- पुद्गलों का श्राहार करना ख. चौवीस दण्डक के जीवों को निर्जरा पुद्गलों का ज्ञान तथा निर्जरा पुद्गलों का आहार करना १६-२० दो प्रकार का बंध २१ चौवीस दण्डक के जीवों को भावबंध २२-२३ चौवीस दण्डकों में ज्ञानावरणीय-यावत्-अन्तराय की मूल उत्तर प्रकृतियों का बंध अतीत तथा भविष्य के कर्मों में भिन्नता धनुष बाण का उदाहरण २५ चौवीस दण्डक के अतीत तथा भविष्य के कर्मों में भिन्नता चौवीस दण्डक के जीवों द्वारा आहाररूप में गृहीत पुद्गलों की आहररूप में परिणति तथा निर्जरा २७ अतिसूक्ष्म निर्जरित पुद्गल चतुर्थ प्राणातिपात उद्देशक २८ क- राजगृह ख- अठारह पाप, पृथ्वीकाय-यावत्-ब नस्पतिकाय, धर्मास्तिकाय, -यावत्-परमाणु पुद्गल, शैलेषी अवस्थाप्राप्त अनगार और स्थूल-शरीरधारी बेइन्द्रियादि इनमें से कुछ जीव के परिभोग में आते हैं और कुछ परिभोग में नहीं आते हैं ग- ऐसा कहने का हेतु २६ चार प्रकार का कषाय ३० कृतयुग्मादि चार राशि ३१-३३ चौवीस दण्डक में कृतयुग्मादि चार राशि ३४ स्त्री दण्डकों में कृतयुग्मादि चार राशि ३५ अल्प और उत्कृष्ट आयुवाले अंधक वह्निजीव Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६ पंचम असुर कुमार उद्देशक ३६ क- एक असुरकुमारावास में दो प्रकार के एक दर्शनीय और एक दर्शनीय ख- दर्शनीय और अदर्शनीय होने का हेतु श०१८ उ०७ प्र० ५१ ३६ ४०-४१ - विभूषित और अविभूषित मनुष्य का उदारहण नागकुमार आदि भवनवासी देव व्यन्तरदेव ३७ ३८ क - एक नरकावास में दो प्रकार के नैरयिक, एक महाकर्मा और एक अल्पकर्मा ख- नैरयिकों के अल्पकर्मा और महाकर्मा होने का हेतु सोलह दण्डकों में अल्पकर्मा और महाकर्मा जीव चौवीस दण्डक में मृत्यु से कुछ समय पूर्व दो प्रकार की आयु. असुरकुमार का बंध ४२-४३ देवताओं की इष्ट और अनिष्ट विकुर्वणा ४४ ४५ ४६ षष्ठ गुड़ वर्णादि उद्देशक निश्चय और व्यवहार नय से गुड़ के वर्ण आदि निश्चय और व्यवहार से भ्रमर के वर्णादि निश्चय और व्यवहार नयसे सुकपिच्छ के वर्णादि ख- मंजिष्ठ, हल्दी, शंख, कुष्ठ, मृतकलेवर, निम्ब, सूठ, कपित्थ, इमली, खांड, वज्र, नवनीत, लोह, उलूकपत्र, हिम, अग्नि, तेल, आदि का निश्चय और व्यवहारनय से वर्ण, गंध, रस और स्पर्श ४७ निश्चय और व्यवहारनय से राख के वर्णादि ४८ परमाणु के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श ४६-५० भगवती-सूची द्विप्रदेशिक स्कन्ध - यावत् - अनन्त प्रदेशिक स्कंध के वर्ण आदि सप्तम केवली उद्देशक ५१ क- राजगृह- भ० महावीर और गौतम गणधर Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "भगवती-सूची ३८० श०१८ उ०७ प्र०६६ ख- अन्यतीर्थिक अन्य तीर्थिक की मान्यता यक्षाविष्ट केवली की मृषा एवं मिश्र भाषा भ० महावीर की मान्यता केवली यक्षाविष्ट नहीं होता केवली की सत्य और असत्यामृषा भाषा ५२ उपधि तीन प्रकार की उपधि ५३ चौबीस दण्डक में तीन प्रकार की उपधि ५४ क- तीन प्रकार की उपधि .. ख- चौवीस दण्डक में तीन प्रकार की उपधि परिग्रह ५५ तीन प्रकार का परिग्रह ५६ चौवीस दण्डक में तीन प्रकार का परिग्रह ५७-६० क- तीन प्रकार के प्रणिधान ख- चौवीस दण्डक में तीन प्रकार के प्रणिधान ६१ क- तीन प्रकार के दुष्प्रणिधान ख- चौवीस दण्डक में तीन प्रकार के दुष्प्रणिधान ६२-६३ क-तीन प्रकार का सुप्रणिधान । ख- सोलह दण्डक में तीन प्रकार का सुप्रणिधान ६४-६५ क- राजगृह, गुणशील चैत्य ख- अन्यतीर्थिक-~मद्रुक श्रमणोपासक भ० महावीर का पदार्पण, मद्रुक का भ० महावीर की बंदना के लिये जाना, मार्ग में मद्रुक से अन्य तीथिकों का अस्तिकाय के संबंध में प्रश्न ग- अन्य तीथिकों से मद्रुक के प्रतिप्रश्न ६६ मद्रुक के यथार्थ उत्तर के प्रति भ० महावीर का साधुवाद Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१८ उ०८ प्र०८८ ३८१ भगवती-सूची ६७ मद्रुक की अन्तिम साधना और निर्वाण देवताओं का वैक्रेय सामर्थ्य विकुर्वितरूपों द्वारा देवता का युद्ध सामर्थ्य वैकेय शरीरों का एक जीव के साथ सम्बन्ध वैकेय शरीरों के अन्तरों का एक जीव के साथ सम्बन्ध शरीरों के मध्य अन्तरों का शस्त्रादि से छेदन संभव नहीं देवासुर संग्राम देवासुर संग्राम की संभावना देवासुर संग्राम में शस्त्ररूप परिणत पदार्थ ७४ असुरों के विकुर्वित शस्त्र ७५-७६ देवताओं का गमन सामर्थ्य ७७-८० क- देवताओं के पुण्यकर्म का क्षय ख- असुरकुमार-यावत्-अनुत्तर देवों के कर्मक्षय का भिन्न २ काल अष्टम अनगार क्रिया उद्देशक ८१ क- राजगृह, भ० गौतम ख- भावित आत्मा अनगार की ऐपिथिकी क्रिया अन्य तोर्थिकों ने भ० गौतम को एकान्त असंयत-यावत्-एकान्त-. बाल कहा अन्य तीथिकों ने एकान्त असंयत तथा बाल कहने का कारण बताया भ० गौतम ने एकान्त असंयत-यावत्-एकान्त बाल कहने का कारण बताया अन्य तीथिकों को यथार्थ उत्तर देने पर भ० महावीर ने भ० गौतम को साधुवाद दिया छद्मस्थ का परमाणुज्ञान-दो विकल्प द्विप्रदेशिक स्कंध-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कन्ध के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तरांक ८७ के समान दो विकल्प Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ..३८२ श०१८ उ०६-१० प्र०११६ २ अनन्त प्रदेशिक स्कंध के सम्बन्ध में चार विकल्प अवधिज्ञानी का परमाणुज्ञान प्रश्नोत्तरांक ७, ८, ६ के समान विकल्प परमावधिज्ञानी तथा दर्शन का भिन्न-भिन्न समय केवलज्ञानी के ज्ञान तथा दर्शन का भिन्न-भिन्न समय नवम भव्य द्रव्य उद्देशक ६३-६४ चोबीस दण्डक के भव्य द्रव्य जीव ६५-६६ चौबीस दण्डक के भव्य द्रव्य जीवों की स्थिति दशम सोमिल उद्देशक चैक्रिय और पुद्गल भावित आत्मा अनगार की वैक्रिय लब्धि का सामर्थ्य वायु और पुद्गल परमाणु-यावत् अनन्त प्रदेशिक स्कंध से वायु का स्पर्श ६६ बस्ति (मशक) और वायुकाय १००-१०२ रत्नप्रभा-यावत्-ईषत्प्राग्भारी पृथ्वी के नीचे अन्योऽन्य सम्बद्ध द्रव्य १०३ क- वाणिज्यग्राम, दूतिपलाश चैत्य, चार वेद आदि ब्राह्मण शास्त्रों में निपुण सोमिल ब्राह्मण, उसके पांच सौ शिष्य. भ० महावीर का पदार्पण ख- शिष्य परिवार सहित सोमिल का भ० महावीर के समीप आगमन १०४-११० यात्रा, यापनीय, अव्याबाध और प्रासुक विहार के सम्बन्ध में भगवान् से प्रश्न १११-११५ क- सरसव, मास, कुलत्थ और एक अनेक के सम्बन्ध में भग वान् का स्पष्टीकरण क- सोमिल को बोध की प्राप्ति सोमिल की अन्तिम साधना और निर्वाण Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१६ ३०३ प्र०३४ ४-१८ १६ २० १ - २१ २२ २३-२७ -२८-३१ ३४ ३८३ उन्नीसवाँ शतक प्रथम लेश्या उद्देशक छ प्रकार की लेश्या द्वितीय गर्भ उद्देशक कृष्णले श्यावाला कृष्णलेश्यावाले गर्भ को उत्पन्न करता है। तृतीय पृथ्वी उद्देशक बनस्पतिकायिकों में शरीर, आहार, स्थिति में भिन्नता, शेष अग्निकाय के समान पृथ्वीकायिक आदि की अवगाहना का अल्प-बहुत्व पृथ्वीकायिक आदि परस्पर सूक्ष्मता पृथ्वीकायिक आदि की परस्पर स्थूलता पृथ्वीकाय के शरीर का प्रमाण ३२ ३३ क - पृथ्वीकाय के शरीर की सूक्ष्म अवगाहना ख- चक्रवर्ती की दासी द्वारा पृथ्वीपिंड पीसने का उदाहरण पृथ्वीकाय की वेदना, वृद्धपर तरुण पुरुष के प्रहार का दृष्टान्त भगवती-सूची क- राजगृह ख- पृथ्वीकाय के जीवों के प्रत्येक शरीर का बंध पृथ्वीकायिक जीवों की निम्नांकित विषयों से विचारणालेश्या, दृष्टि, ज्ञान, उपयोग, आहार, स्पर्श, प्राणातिपातयावत्-मिथ्यादर्शनशल्य, उत्पाद, स्थिति समुद्घात, उद्वर्तना क- अकायिक जीवों की पृथ्वीकायिकों के समान विचारणा ख- स्थिति में भिन्नता क- अग्निकायिकों की पृथ्वीकायिकों के समान विचारणा ख- उपपात स्थिति और उद्वर्तना में भिन्नता ग- वायुकायिकों में समुद्घात की विशेषता, शेष अग्निकाय के समान Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३८४ श० १६ उ० ८ प्र० ६८ः अप्काय-यावत्-वनस्पतिकाय की वेदना-पृथ्वीकाय के समान चतुर्थ महाश्रव उद्देशक ३६-५४ चौबीस दण्डक में-महा आश्रव, महाक्रिया, महा वेदना और महानिर्जरा का विचार पंचम चरम उद्देशक ५५-५७ चौबीस दण्डक में अल्पायु तथा उत्कृष्टायु के साथ-साथ महाकर्म क्रिया प्राश्रव और वेदना का विचार ५८ क- दो प्रकार की वेदना ख- चोबीस दण्डक में दो प्रकार की वेदना षष्ठ द्वीप उद्देशक ५६ द्वीप-समुद्रों के स्थान-संस्थान आदि का विचार सप्तम भवन उद्देशक ६०-६१ असुरकुमारों के भवनावासों की संख्या तथा संक्षिप्त भवनावासों का परिचय ६२-६३ व्यंतरवासों का संक्षिप्त परिचय ६४ ज्योतिष्कावासों का संक्षिप्त परिचय ६५-६७ सौधर्म कल्प के विमानों की संख्या, सर्व विमानावासों का संक्षिप्त परिचय अष्टम निर्वृत्ति उद्देशक ६८ चौवीस दण्डक में एकेन्द्रिय-यावत् पंचेन्द्रिय निर्वृत्ति चौवीस दण्डक में कर्म निवृत्ति चौवीस दण्डक में शरीर निवृत्ति चौवीस दण्डक में सर्वेन्द्रिय निर्वृत्ति चौवीस दण्डक में भाषा निर्वृत्ति चौवीस दण्डक में मन नित्ति Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०१६ उ०६ प्र०७५ ३८५ भगवती-सूची चौवीस दण्डक में कषाय निवृत्ति चौवीस दण्डक में वर्ण निवृत्ति चौवीस दण्डक में संस्थान निर्वृत्ति चौवीस दण्डक में संज्ञा निर्वृत्ति । चौवीस दण्डक में लेश्या निवृत्ति चौवीस दण्डक में दृष्टि निवृत्ति चौवीस दण्डक में ज्ञान नित्ति चौवीस दण्डक में अज्ञान निवृत्ति चौवीस दण्डक में योग निवृत्ति चौवीस दण्डक में उपयोग निर्वृत्ति नवम करण उद्देशक ६६ पांच प्रकार का करण ७० चौवीस दण्डक में पांच प्रकार का करण ७१ चौवीस दण्डक में शरीर करण ७२ चौवीस दण्डक में इन्द्रिय करण चौवीस दण्डक में भाषा करण चौवीस दण्डक में कषाय करण चौवीस दण्डक में समुद्घात करण चौवीस दण्डंक में संज्ञा करण चौवीस दण्डक में लेश्या करण चौवीस दण्डक में दृष्टि करण चौवीस दण्डक में वेद करण ७३ चौवीस दण्डक में एकेन्द्रिय-यावत्-पचेन्द्रिय प्राणातिपात करण ७४ पांच प्रकार का पुद्गल करण ७५ पांच प्रकार का वर्ण करण पांच प्रकार का गंध करण पांच प्रकार का रस करण Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३८६ पांच प्रकार का स्पर्श करण ७६ पांच प्रकार का संस्थान करण दशम व्यंतर उद्देशक ७७ व्यंतरों का आहार, उच्छ्वास- याचत्-महधिक अपधिक अल्प बहुत्व बीसवाँ शतक प्रथम बेइन्द्रिय उद्देशक १ बेइन्द्रियादि जीवों के शरीरबंध का क्रम २ बेइन्द्रियादि जीवों के दृष्टि, ज्ञान, योग, आहार में भिन्नता शेष अग्निकायवत् ३ बेइन्द्रियादि जीवों की स्थिति में भिन्नता ४ सर्वार्थसिद्ध पर्यन्त पंचेन्द्रिय जीवों के शरीर बंध, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, योग में भिन्नता, शेष बेइन्द्रिय के समान ५ पंचेन्द्रियो में संज्ञा, प्रज्ञा, मन और वचन ६ पंचेन्द्रियों में इष्ट-अनिष्ट रूप, गंध, स्स, स्पर्श का अनुभव ७ पंचेन्द्रियों में प्राणातिपात यावत् मिथ्यादर्शनशल्य, स्थिति, समुद्घात और उद्वर्तना शेष बेइन्द्रियों के समान 1 द्वितीय प्रकाश उद्देशक ०२० उ०३ प्र०१६ म दो प्रकार का आकाश ६ क - लोकाकाश, जीव, जीवदेशरूप है खं- धर्मास्तिकाय यावत् पुद्गलास्तिकाय कितना बडा है १० क- अधोलोक की महानता - ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी की महानता ११-१५ पंचास्तिकाय के पर्यायवाची तृतीय प्राणवध उद्देशक १६ क- अठारह पाप Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२० उ०४-५ प्र०२४ ३८७ भगवती-सूची ख- अठारह पाप विरति ग- चार बुद्धि घ- चार अवग्रहादि ङ- पांच उत्थानादि च- चौवीस नैरयिकत्व आदि छ- आठ कर्म ज- छह लेश्या झ- तीन दृष्टि ब- चार दर्शन ट- पांच ज्ञान ठ- तीन अज्ञान ड- चार संज्ञा ढ- पांच शरीर ण- तीन योग त- दो उपयोग इन सबका आत्मा के साथ परिणमन है १७ गर्भ में उत्पन्न जीव के वर्णादि चतुर्थ उपचय उद्देशक १८ पांच प्रकार का इन्द्रियोपचय पंचम परमाणु उद्देशक १६ परमारण के सोलह विकल्प २० वर्णादि की अपेक्षा द्विप्रदेशिक स्कंध के बियालीस विकल्प २१ वर्णादि की अपेक्षा त्रिप्रदेशिक स्क्रंथ के एक सो बियालीस विकल्प २२ वर्णादि की अपेक्षा चतुष्प्रदेशिक स्कंध के दो सो बाईस विकल्प २३ वर्णादि की अपेक्षा पंच प्रदेशिक स्कंध के तीन सो चौबीस विकल्प २४ वर्णादि की अपेक्षा षष्ठ प्रदेशिक स्कंध के चारसो चौदह विकल्प Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५ भगवती-सूची ३८८ श०२० उ०६-७ प्र०४७ वर्णादि की अपेक्षा सप्त प्रदेशिक स्कंध के चारसो चोहत्तर विकल्प वर्णादि की अपेक्षा अष्ट प्रादेशिक स्कंध के पांचसौ चार विकल्प वर्णादि की अपेक्षा नव प्रदेशिक स्कंध के पांचसौ चौदह विकल्प वर्णादि की अपेक्षा दश प्रदेशिक स्कंध के पांच सौ सोलह विकल्प २६ क- संख्यात प्रदेशिक स्कंध, असंख्यात प्रदेशिक स्कंध, अनन्त प्रदेशिक स्कंध के सोलह विकल्प ख- पांच स्पर्श के एक सौ अठाईस विकल्प ग- छह स्पर्श के तीन सो चौरासी विकल्प घ- सात स्पर्श के पांच सौ बारह विकल्प ङ- आठ स्पर्श के एक सहस्र दो सो छियानवे विकल्प ३०-३४ चार प्रकार के परमाणु षष्ठ अंतर उद्देशक ३५-४० रत्नप्रभा-यावत्-ईषत्प्रग्भारा के अन्तरालों में पृथ्वीकायिक जीवों की उत्पत्ति और आहार का पौर्वापर्य ४१-४२ रत्नप्रभा-यावत्-ईषत्प्राग्भारा के अन्तरालों में अप्कायिक जीवों की उत्पत्ति और आहार का पौर्वापर्य रत्नप्रभा-यावत्-ईषत्प्राग्भारा के अन्तरालों में वायुकायिक जीवों की उत्पत्ति और आहार का पौर्वापर्य सप्तम बंध उद्देशक ४४ तीन प्रकार का बंध चौबीस दण्डक में तीन प्रकार का बंध ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का तीन प्रकार का बंध चौबीस दण्डक में ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का बंध ४३ ४५ ४६ ४७ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२० उ०८ प्र०६० ३८६ भगवती-सूची चौबीस दण्डक में ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का तीन प्रकार का बंध चौबीस दण्डक में तीन प्रकार के स्त्रीवेद का बंध असुर-यावत्-वैमानिक पर्यन्त तीनों वेदों का तीन प्रकार का बंध ५१ क- चौबीस दण्डक में दर्शन और चारित्र मोहनीय का तीन प्रकार का बंध ख- चौबीस दण्डक में पाँच शरीरों का तीन प्रकार का बंध ग- चौबीस दण्डक में चार संज्ञाओं का तीन प्रकार का बंध घ- चौबीस दण्डक में छह लेश्याओं का तीन प्रकार का बंध ङ. चौबीस दण्डक में तीन दृष्टियों का तीन प्रकार का बंध च- चौबीस दण्डक में पांच ज्ञान, तीन अज्ञान का तीन प्रकार का बंध पांच ज्ञान और तीन अज्ञान के विषयों का तीन प्रकार का बंध अष्टम भूमि उद्देशक पंद्रह कर्मभूमि तीस अकर्मभूमि तीस अकर्मभूमियों में उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी का निषेध ५६ क- भरत एरवत में उत्सर्पिणी काल का अस्तित्व ख- महाविदेह में अवस्थित काल महाविदेह में चार महाव्रत का धर्मोपदेश तीर्थंकर जम्बूद्वीप के भरत में इस अवसर्पिणी के चौबीस तीर्थंकर चौबीस तीर्थंकरों के अन्तर غر غر C غر غر जिनांतरो में कालिक श्रुत का विच्छेद और अविच्छेद Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ x ur घ . ~ भगवती-सूची ३६० श०२० उ० प्र०८३ ६१-६४ पूर्वगत श्रुत की स्थिति तीर्थ भ० महावीर के तीर्थ की स्थिति भावी अन्तिम तीर्थंकर के तीर्थ की स्थिति तीर्थ और तीर्थंकर प्रवचन प्रवचन और प्रवचनी धर्म अराधना उग्र आदि कुलों के क्षत्रियों की धर्म आराधना और निर्वाण चार प्रकार के देवलोक नवम चारण उद्देशक दो प्रकार के चारणमुनि विद्या चारण कहने का हेतु विद्या चारण की शीघ्रगति ७४ विद्या चारण की तिरछी गति ७५ क- विद्याचरण की उर्ध्वगति __ ख- गमनागमन के प्रतिक्रमण से प्राराधकता ७६ जंघा चारन कहने का हेतु जंघा चारन की शीघ्र गति जंघा चारन की तिरछी गति ७६ क- जंघा चारन की उर्ध्व गति ख- गमनागमन के प्रतिक्रमण से आराधकता सोपक्रम और निरुपक्रम आयु चौवीस दण्डक के जीवों का सोपक्रम और निरुपक्रम आयु चौबीस दण्डक के जीवों का पूर्व भव में आयु का आत्मोपक्रमपरोपक्रम और निरुपक्रम आत्मोपक्रम, और परोपक्रम यानी निरुपक्रम से चौबीस दण्डक r mr ७७ ७८ ० wr mr Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२१ उ०१ प्र०३ ३६१ भगवती-सूची के जीवों का उद्वर्तन और च्यवन ८४ चौबीस दण्डक के जीवों की आत्मशक्ति से उत्पत्ति ८५ चौबीस दण्डक के जीवों का आत्मशक्ति से उद्वर्तन और च्यवन ८६ चौबीस दण्डक के जीवों की स्व स्व कर्मों से उत्पत्ति ८७ चौबीस दण्डक के जीवों का आत्मप्रयोग से उत्पन्न होना ८८-८६ क- चौबीस दण्डक के जीव संख्यात और असंख्यात ख- संख्यात होने के हेतु ६० सिद्ध-सिद्ध क्षेत्र में प्रवेश होने की अपेक्षा एक या संख्यात ६१ चौबीस दण्डक में कति संचित आदि की अपेक्षा अल्प-बहुत्व ६२ कति संचित आदि की अपेक्षा सिद्धों की अल्प-बहुत्व ६३-६४ चौबीस दण्डक के जीव और सिद्ध षट्क समजितादि ६५-६६ षटक समर्जित आदि की अपेक्षा चौबीस दण्डक के जीवों की और सिद्धों की अल्प-बहुत्व ६७-६८ द्वादश समजित की अपेक्षा चौबीस दण्डक के जीवों की और सिद्धों की अल्प-बहुत्व ६६-१०० चौबीस समर्जित की अपेक्षा चौबीस दण्डक के जीवों की तथा सिद्धों की अल्प-बहुत्व इक्कीसवाँ शतक प्रथम वर्ग प्रथम शाली उद्देशक १ क- राजगृह, भ० महावीर, भ० गौतम ख- शाल्यादि वर्ग में उत्पन्न होने वाले जीवों की गति का निर्णय २ शाल्यादि वर्ग में उत्पन्न होने वाले जीवों का परिमाण ३ शाल्यादि वर्ग के जीवों की अवगाहना Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ३६२ श० २१ उ०७ प्र०८ ४ शाल्यादि वर्ग के जीवों के बंध, उदय, उदीरणा ५ शाल्यादि वर्ग के जीवों की लेश्या ६ शाल्यादि वर्ग के मूल जीव की स्थिति ७ शाल्यादि वर्ग के जीव पृथ्वी काय में उत्पन्न होते रहने का जघन्य उत्कृष्ट काल ८ प्राणीमात्र का शाल्यादि वर्ग में उत्पन्न होना द्वितीय कंद उद्देशक तृतीय स्कंध उद्देशक चतुर्थ त्वचा उद्देशक पंचम साल उद्देशक षष्ठ प्रवाल उद्देशक सप्तम पत्र उद्देशक अष्टम पुष्प उद्देशक नवम फल उद्देशक दशम बीज उद्देशक प्राणीमात्र का शाल्यादि वर्ग के कंद, स्कंध, त्वचा, साल, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज रूप में उत्पन्न होना द्वितीय वर्ग मूल, कंद श्रादि दस उद्देशक प्रथम वर्ग के समान तृतीय वर्ग अलसी वर्ग के दस उद्देशक प्रथम वर्ग के समान चतुर्थ वर्ग .. वंश वर्ग के दस उद्देशक प्रथम वर्ग के समान पंचम वर्ग इक्षु वर्ग के दस उद्देशक प्रथम वर्ग के समान षष्ठ वर्ग सेडिय वर्ग के दस उद्देशक प्रथम वर्ग के समान सप्तम वर्ग अभ्ररह वर्ग के दस उद्देशक प्रथम वर्ग के समान Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०२२-२३ व० ३ ३६३ अष्टम वर्ग तुलसी वर्ग के दस उद्देशक बाईसवाँ शतक निंब वर्ग के समान दस उद्दे शक तृतीय अगस्तिक वर्ग अगस्तिक वर्ग के दस उद्देशक चतुर्थं वेंगन वर्ग वेंगन वर्ग के दस उद्देशक पंचम सिरियक वर्ग प्रथम ताड़ वर्ग राजगृह ताड़ वर्ग के दस उद्देशक उन्नीसवें शतक के प्रथम वर्ग के समान प्रथम पाँच वर्गों में विशेषता द्वितीय निब वर्ग सिरियक वर्ग के दस उद्दे शक षष्ठ पूष फलिका वर्ग पूष फलिका वर्ग के दस उद्देशक तेईसवाँ शतक वर्ग प्रथम आलु आलु वर्ग के दस उद्देशक द्वितीय लोही वर्ग लोही वर्ग के दस उद्देशक तृतीय प्राय वर्ग श्राय वर्ग के दस उद्देशक भगवती-सूची प्रथम वर्ग के समान ताड़ वर्ग के समान प्रथम ताड़ वर्ग के समान प्रथम ताड़ वर्ग के समान प्रथम ताड़ वर्ग के समान ताड़ वर्ग के समान ताड वर्ग के समान ताड़ वर्ग के समान Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४ भगवती-सूची श०२४ उ०१३ प्र०५६ चतुर्थ पाठा वर्ग पाठा वर्ग के दस उद्देशक ताड़ वर्ग के समान चौबीसवाँ शतक प्रथम नैरयिक उद्देशक १ तिर्यचों और मनुष्यों का नै रयिकों में उपपात २ पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का नरकों में उपपात ३-५ संज्ञी असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रियों का नरकों में उपपात ६-६५ रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले असंज्ञो तिथंच पंचेन्द्रियों के सम्बन्ध में प्र० ७ से ६५ तक विकल्पों का चिंतन । ६६ रत्नप्रभा में उत्पन्न होने वाले संज्ञी तिर्यंच पंचन्द्रियों के संबंध में प्र० ६७ से ८६ तक के विकल्पों का चिंतन ८७-११० संज्ञी मनुष्यों का सात नरकों में उपपात द्वितीय परिमाण उद्देशक असुर कुमार १-२५ क- राजगृह ख- असुर कुमारों में तिर्यंचों और मनुष्यों का उपपात विस्तृत वर्णन ततीय से इग्यारहवें पर्यन्त नाग कुमारादि उद्देशक १-१७ क- राजगृह ख- नाग कुमार-यावत्-स्तनित कुमार में तिर्यंचों और मनुष्यों का उपपात-विस्तृत वर्णन बारहवाँ पृथ्वीकाय उद्देशक १-५६ पृथ्वीकायिकों में तिर्यंचों मनुष्यों और देवों का उपपात विस्तृत वर्णन तेरहवाँ अप्काय उद्देशक अप्कायिकों में पृथ्वीका यिकों के समान उपपात Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२४ उ०२४३०२६ भगवती-सूची चौदहवाँ तेउकाय उद्देशक तेजस् कायिकों में तिर्यंचों और मनुष्यों का उपपात विस्तृत वर्णन पन्दरहवाँ वायुकाय उद्देशक वायुकायिकों में तियंचों और मनुष्यों का उपपात सोलहवाँ वनस्पतिकाय उद्देशक वनस्पतिकायिकों में-तिर्यंचों, मनुष्यों और देवों का उपपात सतरहवाँ बेइन्द्रिय उद्देशक बेइन्द्रियों में तिर्यंचों और मनुष्यों का उपपात अठारवाँ तेइन्द्रिय उद्देशक तेइन्द्रियों में बेइन्द्रियों के समान उपपात उन्नीसवाँ चतुरिन्द्रिय उद्देशक चउरिन्द्रियों में तेइन्द्रियों के समान उपपात बीसवां तिर्यंच पंचेन्द्रिय उद्देशक १-५४ तिर्यंच पंचेन्द्रियों में नैरयिकों, तिर्यंचों, मनुष्यों और देवों का (२४ दण्डकों का) उपपात इक्कीसवां मनुष्य उद्देशक १-१६ मनुष्यों में नैरयिकों, तिर्यंचों, मनुष्यों और देवों का (२४ दन्डकों का) उपपात बाईसवां व्यन्तर उद्देशक १-५ व्यन्तरों में तिर्यंचों और मनुष्यों का उपपात तेईसवां ज्योतिष्क उद्देशक १-१२ ज्योतिष्कों में तिर्यंचों और मनुष्यों का उपपात चौबीसवां वैमानिक उद्देशक १३-२६ वैमानिकों में ज्योतिष्कों के समान उपपात Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ on os m x x w १ दा भगवती-सूची ३६६ श० २५ उ०१-२ प्र० १६ पच्चीसवाँ शतक प्रथम लेश्या उद्देशक सोलह प्रकार की लेश्या चौदह प्रकार के संसारी जीव संसारी जीवों के योगों का अल्प-बहत्व चौवीस दण्डक में एक समय में उत्पन्न दो जीवों के योगों का अल्प-बहुत्व पन्द्रह प्रकार के योग योगों का अल्प-बहुत्व द्वितीय द्रव्य उद्देशक दो प्रकार के द्रव्य दो प्रकार के अजीव द्रव्य ३ क- जीव द्रव्य की संख्या ख- जीव द्रव्य के अनन्त होने के कारण ४ जीव द्वारा अजीव द्रव्यों का परिभोग ५ चौबीस दण्डक में अजीव द्रव्यों का परिभोग असंख्य प्रदेशात्मक लोकाकाश में अनन्त द्रव्यों की स्थिति '७-८ एक आकाश प्रदेश में पुद्गलों का चयापचय ६ औदारिक शरीर रूप में स्थित अस्थित द्रव्यों का ग्रहण १० द्रव्य क्षेत्र काल और भाव से द्रव्य का ग्रहण ११ वैक्रिय शरीर रूप में स्थित, अस्थित द्रव्यों का ग्रहण १२ तैजस शरीर रूप में स्थित, अस्थित द्रव्यों का ग्रहण १३ द्रव्य क्षेत्र काल और भाव से द्रव्यों का ग्रहण १४ छ दिशाओं से पुद्गलों का ग्रहण चौवीस दण्डक में पांच इंद्रियों के रूप में यथायोग्य द्रव्यों का ग्रहण १६ चौवीस दण्डक में श्वासोच्छ्वास के रूप में द्रव्यों का ग्रहण Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२५ उ०३ प्र०४३ ३९७ भगवती-सूची तृतीय संस्थान उद्देशक १ छ प्रकार के संस्थान २-३ परिमण्डल आदि संस्थानों के अनन्त द्रव्य ४ संस्थानों का अल्प-बहुत्व ५ पांच प्रकार के संस्थान ६-७ परिमण्डल-यावत् - आयत संस्थान के अनन्त द्रव्य ८-१२ रत्नप्रभा-यावत्---ईषप्राग्भारा में संस्थान के अनन्त द्रव्य १३-१४ यव मध्य क्षेत्र परिमण्डल-यावत्--आयत संस्थान के अनन्त द्रव्य १५-१७ पांच संस्थानों का परस्पर सम्बन्ध, रत्न-प्रभा-यावत्-ईषत् प्राग्भारा में एक यवाकृति निष्पादक, संस्थान में अन्य संस्थानों के अनन्त द्रव्य दो प्रकार का वृत्त संस्थान क- वृत्त संस्थान के कितने प्रदेशों का कितने आकाश प्रदेशों में अवगाहन व्यस्र संस्थान के कितने प्रदेशों का कितने आकाश प्रदेश में अवगाहन २० चतुरस्र संस्थान के कितने प्रदेशों का कितने आकाश प्रदेशों में अवगाहन आयत संस्थान के कितने प्रदेशों का कितने प्रदेशों में अवगाहन परिमण्डल संस्थान के कितने प्रदेशों में कितने प्रदेशों का अवगाहन २३-२६ परिमण्डल आदि संस्थानों की कृतयुग्म रूपता २७-३८ परिमण्डल-यावत्-आयत संस्थानों के प्रदेश-कृतयुग्म प्रदेशावगाढ-यावत्--कल्योज रूप हैं ३६-४२ आकाश-प्रदेश की अनन्त श्रेणियां ४३ अलोकाकाश की श्रेणियां २२ . Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ G m . o W भगवती-सूची श०२५ उ०४ प्र०१४ ४४ आकाश की श्रेणियों के प्रदेश ४५-४६ अलोकाकाश श्रेणियों की संख्या ५० लोकाकाश की श्रेणियों और सादिसपर्यवसित आदि भाँगे ५१ अलोकाकाश की श्रेणियां और सादिसपर्यवसित आदि भांगे ५२-५६ कृतयुग्मादि रूप आकाश की श्रेणियां सात प्रकार की श्रेणियां परमाणु की गति द्विप्रदेशिक स्कंध-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंध की गति चौवीस दण्डक के जीवों की श्रेणी के अनुसार गति नरकावास-यावत्-विमानावास ६२ गणिपिटक ६३ श्राचारांगादि अंगों की प्ररूपणा ६४ क- पांच गति का अल्प-बहुत्व ख- आठ गति का अल्प-बहुत्व ६५ सेन्द्रिय-यावत्-अनेन्द्रिय जीवों का अल्प-बहुत्व जीव और पुद्गलों के सर्वपर्यायों का अल्प-बहुत्व आयु कर्म के बंधक और अबंधक जीवों का अल्प-बहुत्व चतुर्थ युग्म उद्देशक चार प्रकार के युग्म चौवीस दण्डक में कृतयुग्मादि ६ प्रकार के द्रव्य ५-७ ६ प्रकार के द्रव्यों का कृतयुग्मादि रूप ८ (६ प्रकार के) द्रव्यों के प्रदेशों का कृतयुग्मादि रूप ६ ६ प्रकार के द्रव्यों का अल्प-बहुत्व १०-१२ ६ प्रकार के द्रव्य अवगाढ अनवगाढ १३ रत्नप्रभा-यावत्-ईषत्प्रारभारा पृथ्वी अवगाढ अनवगाढ १४ क- जीव द्रव्य से कल्योज रूप हैं २-३ Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श० २५ ३०४ प्र०३६ ३६६ भगवती-सूची ख - चौवीस दण्डक के जीव और सिद्ध ( एक वचन की अपेक्षा ) द्रव्य से कल्योन रूप हैं : १५ १६ १७ क- जीव के प्रदेश कृतयुग्मरूप हैं जीव (बहुवचन की अपेक्षा) द्रव्य से कत्योज रूप हैं चौबीस दण्डक के जीव तथा सिद्ध द्रव्य से कल्योज रूप हैं १८ १६ २० २१ २२-२५ २६ २७-२८ ख- शरीर के प्रदेश कृतयुग्मादि ( ४ ) रूप हैं सिद्ध के प्रदेश कृतयुग्मरूप हैं ३८ ३६ (बहुबचन की अपेक्षा ) जीवों तथा सिद्धों (बहुवचन की अपेक्षा) के प्रदेश कृतयुग्म हैं एक या अनेक जीवों की अपेक्षा आकाश प्रदेश में कृतयुग्मादि चौवीस दण्डक तथा सिद्ध एक या अनेक जीवों के स्थितिकाल में कृतयुग्मादि चौवीस दण्डक तथा सिद्ध एक या अनेक जीवों के कृष्ण आदि वर्ण-पर्याय कृतयुग्मादि रूप हैं पर्याय २६-३० ३१-३२ ३३ ३४ ३५-३७ क- सकम्प निष्कम्प जीव एक या अनेक जीवों के आभिनिबोधिक आदि ज्ञान के पर्याय एक या अनेक जीवों के केवलज्ञान के पर्याय एक या अनेक जीवों के मतिअज्ञान यावत् - केवल दर्शन के पर्याय पांच प्रकार के शरीर ख- सकम्प और निष्कम्प होने का हेतु ग- देश या सर्व से सकम्प घ- चौवीस दण्डक के जीव सकम्प निष्कम्प पुद्गल परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशी स्कंधों का परिणाम एक आकाश प्रदेश में रहे पुद्गल Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४०० श०२५ श०२५ उ०४ प्र० ८३. । .४० एक समय की स्थिति वाले पुद्गल ४१ एक गुण कृष्ण-यावत्-अनन्त गुण रुक्ष पुद्गल ४२-४६ परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंध का अल्प-बहुत्व ४७-४८ परमाणु-यावत् अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों के प्रदेशों का अल्प बहुत्व प्रदेशावगाढ पुद्गलों का द्रव्य रूप में अल्प-बहुत्व प्रदेशावगाढ पुद्गलों का प्रदेश रूप में अल्प-बहुत्व एक समय की स्थितिवाले पुद्गलों का अल्प-बहुत्व ५२-५३ वर्ण गंध रस और स्पर्श विशिष्ट पुद्गलों का अल्प-बहुत्व ५४ परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों का द्रव्यार्थ रूप में अल्प-बहुत्व प्रदेशावगाढ पुद्गलों का द्रव्यार्थरूप में अल्प-बहुत्व एक समय की स्थितिवाले पुद्गलों का द्रव्यार्थरूप में अल्प-बहुत्व ५७-५८ वर्णादि विशिष्ट पुद्गलों का द्रव्यार्थ और प्रदेशार्थरूप में अल्प-बहुत्व ५६ परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंधों की द्रव्यार्थरूप में कृतयुग्मादि राशि परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंधों की सामान्य तथा विशेष विवक्षा से कृतयुग्मादि राशि ६१-७० परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंधों के प्रदेशों की कृतयुग्मादि राशि ७१-७८ परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंधों का कृतयुग्म प्रदेशाव गाढ आदि ७९-८० परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंधों की कृतयुग्म समय आदि की स्थिति ८१-८३ परमाणु पुद्गल-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कंधों के पर्यायों का Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श० २५ ३०५ प्र० ३ कृतयुग्म आदि होना ८४ अनर्ध परमाणु पुद्गल ८५-८७ द्विप्रदेशिक स्कंध यावत् - अनन्त प्रदेशिक स्कंध सार्ध- अनर्ध ८८ परमाणु - यावत् अनन्त प्रदेशिक स्कंध सकम्प निष्कम्प बहुवचन की अपेक्षा - सकम्प निष्कम्प दह ६०-६३ परमाणु पुद्गलों का सकम्प - निष्कम्प काल ६४-६७ ६८ - १०० परमाणु - यावत् - अनन्त प्रदेशिक स्कंधों के कम्पन का अन्तर सकम्प - निष्कम्प परमाणु-यावत् अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों का अल्प-बहुत्व १०१-१०४ परमाणु- यावत् - अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों का एक देशीय कम्पन अथवा सर्वदेशीय कम्पन १०५-११४ परमाणु- यावत् अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों के एक देशीय या सर्वदेशीय कम्पन का अथवा निष्कम्पन का काल ११५- १२४ परमाणु- यावत् - अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों के एक देशीय सकम्प निष्कम्प का अन्तर १२८ ४०१ १२५-१२७ एक देशीय या सर्वदेशीय सकम्प निष्कम्प परमाणु-यावत्अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों का अल्प - बहुत्व परमाणु-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों का द्रव्य, प्रदेश की अपेक्षा अल्प - बहुत्त्व १३५ १२६ - १३२ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय और जीवा - स्तिकाय के मध्य-प्रदेश जीवास्तिकाय के मध्यप्रदेशों की अवगाहना १ २ भगवती-सूची पंचम पर्यव उद्देशक दो प्रकार के पर्यव कालद्रव्य एक आवलिका के समय एक श्वासोच्छ्वास के समय Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४०२ श०२५ उ० ५ प्र० २० एक स्तोक-यावत्-उत्सर्पिणी के समय एक पुद्गल परिवर्त्त के समय आवलिकाओं के समय श्वासोच्छवासों के समय स्तोकों के समय पुद्गल परिवर्तों के समय श्रावलिका ___ क- एक श्वासोच्छवास की आवलिकायें ख- एक स्तोक-यावत्-शीर्ष प्रहेलिका की आवलिकायें क- एक पल्योपम की आवलिकायें ख- एक सागरोपम-यावत्-एक उत्सर्पिणी की आवलिकायें एक पुद्गल परिवर्त-यावत्-सर्वकाल की आवलिकायें अनेक श्वासोच्छवासों की-यावत्-अनेक शीर्ष प्रहेलिकाओं की आवलिकायें अनेक पल्योपमों की-यावत्-अनेक उत्सपिणीयों की आवलिकायें अनेक पुद्गल-परिवर्तों की आवलिकायें श्वासोच्छ्वास एक स्तोक-यावत्-एक शीर्ष प्रहेलिका के श्वासोच्छवास पल्योपम क- एक सागरोपम के पल्योपम ख- एक अवसर्पिणी या उत्सपिणी के पल्योपम क- एक पुद्गल परिवर्त के पल्योपम ख- सर्व काल के पल्योपम-यावत्-अनेक अवसर्पिणीयों के पल्योपम अनेक सागरोपमों के पल्योपम २० अनेक पुद्गल परिवर्तों के पल्योपम Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श० २५ उ०६ प्र०१८ ४०३ भगवती-सूची २४ २५ सागरोपम एक अवसर्पिणी के सागरोपम उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी एक पुद्गल परिवर्त की उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी अनेक पुद्गल परिवर्तों की उत्सर्पिणीयाँ और अवसर्पिणीयाँ पुद्गल परिवर्त अतीत अनागत और सर्वकाल के पुद्गल परिवर्त अनागत और अतीत का अन्तर अतीत और सर्वकाल का अन्तर सर्वकाल और भविष्य काल का अन्तर दो प्रकार के निगोद दो प्रकार के निगोद छ प्रकार का नाम (छ प्रकार के भेद) षष्ठ निग्रंथ उद्देशक प्रथम प्रज्ञापन द्वार १ क- राजगृह, भ० महावीर और गौतम ख- पांच प्रकार के निर्ग्रन्थ पांच प्रकार के पुलाक ४ ५ दो " " पांच प्रकार के प्रतिसेवना कुशील " " " कषाय कुशील " " " निग्रंथ " " " स्नातक द्वितीय वेदद्वार पांच निग्रंथ के वेद ६-१८ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची १६-२१ २२-२६ २७-२६ ३०-३४ ३५-३७ ३८-४१ ४२-४४ ४५ ४६-४८ ४६-५० ५१-५८ ५६-६८ ६६-७२ ७३-७४ तृतीय राग द्वार पांच निर्ग्रथ- सराग-वीत राग चतुर्थ कल्पद्वार पंच निर्ग्रथों का कल्प पंचम चारित्र द्वार पंच निग्रंथों के चारित्र षष्ठ प्रतिसेवना द्वार पंच निग्रंथों में प्रति सेवक अप्रति सेवक सप्तम ज्ञान द्वार पंच निर्ग्रथों में ज्ञान पंच निग्रंथों का श्रुत-अध्ययन अष्टम तीर्थ द्वार पंच निर्ग्रथों तीर्थ - अतीर्थ नत्रम लिंग द्वार पंचम निग्रंथों के लिंग दशम शरीर द्वार पंच निर्ग्रथों के शरीर ग्यारहवां क्षेत्र द्वार पंच निर्ग्रथों के क्षेत्र बारहवां काल द्वार पंच निर्ग्रथों के काल ४०४ तेरहवां गति द्वार पंच निग्रंथों की गति चौदहवां संयम द्वार पंच निर्ग्रथों में संयम पन्द्रहवां संनिकर्ष द्वार पंच निग्रंथों में संनिकर्ष श०२५ उ०६ प्र०७४ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२५ उ०६ प्र० १२७ ४०५ भगवती-सूची ७५-८१ पंच निग्रंथों के चारित्र पर्याय ८२ पंच निग्रंथों के चारित्र-पर्यवों का अल्प-बहत्व सोलहवां योग द्वार ८३-८४ पंच निग्रंथों के योग सतरहवां उपयोग द्वार पांच निग्रंथों में उपयोग अठारहवां कषाय द्वार ८६-८८ पांच निग्रंथों में कषाय उन्नीसवां लेश्या द्वार ८६-६२ पांच निग्रंथों में लेश्या बीसवां परिणाम द्वार ९३-१०१ पांच निग्रंथों के परिणाम इक्कीसवां बन्ध द्वार १०२-१०५ पांच निग्रंथों के कर्म प्रकृतियों का बन्ध बाईसवां वेद द्वार १०७-१०६ पांच निग्रंथों द्वारा कर्म प्रकृतियों का वेदन तेईसवां उदीरणा द्वार ११०-११४ पांच निग्रंथों द्वारा कर्म प्रकृतियों की उदीरणा चौवीसवां उपसंपद-हानि द्वार ११५-१२० पांच निग्रंथों द्वारा निग्रंथ जीवन का स्वीकार और त्याग पच्चीसवां संज्ञा द्वार १२१-१२२ पांच निग्रंथों में संज्ञा छब्बीसवां श्राहार द्वार १२३-१२४ पांच निग्रंथों में आहार सत्ताईसकां भव द्वार १२५-१२७ पांच निग्रंथों के भव Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४०६ श०२५ उ०७ प्र०६ अठाईसवां अाकर्ष द्वार १२८-१३५ पांच निग्रंथों के आकर्ष उनत्तीसवां काल द्वार १३६-१४१ पांच निग्रंथों की स्थिति तीसवां अन्तर द्वार १४२-१४६ पाँच निग्रंथों का अन्तर द्वार इकतीसवां समुद्घात द्वार १४७-१५१ पांच निग्रंथों में समुद्घात बत्तीसवां क्षेत्र द्वार १५२-१५३ पाँच निग्रंथों के क्षेत्र तेतीसवां स्पर्शना द्वार पांच निग्रंथों की स्पर्शना चौतीसवां भाव द्वार १५५-१५७ पांच निग्रंथों का भाव पैंतीसवां परिमाण द्वार १५८-१६२ पांच निग्रंथों का परिमाण छत्तीसवां अल्प-बहुत्व द्वार १६३ पांच निग्रंथों की अल्प-बहुत्व सप्तम संयत उद्देशक पांच प्रकार के चारित्र दो प्रकार का सामायिक चारित्र दो प्रकार का छेदोपस्थापनीय चारित्र दो प्रकार का परिहारविशुद्ध चारित्र दो प्रकार का सूक्ष्म संपराय चारित्र ६ क- दो प्रकार का यथाख्यात चारित्र ख-१ गाथायें, पांच चारित्रों का अर्थ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२५ उ०७ प्र० ३२ ७ ६-१४ १५-१६ १७ १८-२० २१ २२-२३ २४ २५ २८-३० ३१-३२ ४०७ वेद पांच चारित्र वालों में वेद राग पांच चारित्रों में सराग वीतराग शरीर पांच चारित्रवालों के शरीर क्षेत्र पांच चारित्र के क्षेत्र काल २६-२७ पांच चारित्रों के काल कल्प पांच चारित्रों में कल्प प्रतिसेवना पांच चारित्रवालों में प्रतिसेवना ज्ञान पांच चारित्रवालों में ज्ञान श्रुत पांच चारित्रवालों का श्रुतज्ञान तीर्थ पांच चारित्र तीर्थ में या अतीर्थ में लिंग शरीर पांच चारित्रवालों के लिङ्ग गति पांच चारित्रवालों की गति स्थिति पांच चारित्रवालों की स्थिति भगवती-सूची Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४.०८ श० २५ उ०७ प्र०६६ ४३ संयम स्थान ३३-३५ पांच चारित्र के संयम स्थान संयम स्थानों का अल्प-बहुत्व संनिकर्ष ३७-४२ पांच चारित्रों के पर्यव योग पांच चारित्रों में योग अल्प-बहुत्व ४४ पांच चरित्रों में पर्यवों का अल्प-बहुत्व उपयोग पांच चारित्रों में उपयोग कषाय ४६-४८ पांच चारित्रों में कषाय लेश्या ४६ पांच चारित्रों में लेश्या परिणाम ५०-५१ पांच चारित्रों में परिणाम ५२-५४ पाँच चारित्रियों के परिणामों की स्थिति बन्ध ५५-५६ पांच चारित्रवालों के कर्म प्रकृतियों का बन्ध वेदन ५७-५८ पांच चारित्र वालों के कर्म प्रकृतियों का वेदन उदीरणा ५६-६१ पांच चारित्रवालों के कर्म प्रकृतियों की उदीरणा उपसम्पद हानि ६२-६६ पांच चारित्रवालों को किस-किस चारित्र का हानि-लाभ Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२५ उ०७ प्र०६८ ४०६ भगवती-सूची ६८ संज्ञा ६७ पांच चारित्रवालों में संज्ञा आहारक पांच चारित्रवालों में आहारक-अनाहारक भव ६९-७० पांच चारित्रवालों के भव आकर्ष ७१-७७ पांच चारित्रवालों के आकर्ष (चारित्रों की पुनः पुनः प्राप्ति) स्थिति ७८.८२ पोच चारित्रों की स्थिति अन्तर ८३-८६ पांच चारित्रों के अन्तर समुद्घात पांच चारित्रवालों में समुद्घात क्षेत्र पांच चारित्रालों का क्षेत्र स्पर्शना पांच चारित्रवालों के द्वारा लोक का क्षेत्र स्पर्श भाव ६०-६१ पांच चारित्रवालों के भाव परिमाण .६२-६४ पांच चारित्रवालों का परिमाण अल्प-बहुत्व पांच चारित्रों की अल्प-बहुत्व दश प्रकार की प्रतिसेवना आलोचना के दश दोष Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२५ उ०११ प्र० १ भगवती-सूची ४१० ९६ अालोचक श्रमण के दश गुण आलोचना सुनने वाले के आठ गुण दश प्रकार की समाचारी दश प्रकार के प्रायश्चित्त १०३ दो प्रकार का तप १०४-१२३ छ प्रकार का ब्राह्यतप १२४-१५४ छ प्रकार का आभ्यन्तर तप ००० الله عمر अष्टम ओघ उद्देशक राजगृह-भ० महावीर और गौतम मण्डकानुवृत्ति अध्यवसायों से नारकों की उत्पत्ति नारकों की विग्रह गति नारकों के पर भव का आयु बंधने का कारण नारकों की गति नारकों की उत्पत्ति के कारण, शेष दण्डकों में उत्पत्ति-यावत्-.. उत्पत्ति के कारणों का स्व-पर प्रयोग नवम भव्य उद्देशक मण्डूकानुवृत्ति अध्यवसायों से भवसिद्धिक नैरयिकों की उत्पत्तिशेष अष्टम उद्देशक के समान दशम अभव्य उद्देशक मण्डूकानुवृत्ति अध्यवसायों से अभव सिद्धिक नैरयिकों की .. उत्पत्ति शेष अष्टम उद्देशक के समान इग्यारहवां सम्यग्दृष्टि उद्देशक मण्डूकानुवृत्ति अध्यवसायों से सम्यग्दृष्टि नैरयिकों की उत्पत्ति शेष अष्टम उद्देशक के समान Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०२६ उ०२ प्र०१ ४११ भगवती-सूची बारहवां मिथ्यादृष्टि उद्देशक मण्डूकानुवृत्ति अध्यवसायों से मिथ्यादृष्टि नैरयिकों की उत्पत्ति शेष अष्टम उद्देशक के समान छब्बीसवाँ शतक प्रथम जीव उद्देशक १ क- राजगृह. भ० महावीर और गौतम ख- जीव के पाप कर्म का बन्ध, चार भांगा २ लेश्या वाले जीवों के पापकर्मों का बन्ध, चार भांगा कृष्णलेश्या-यावत्-शुक्ललेश्यावाले जीवों के पापकर्मों का बन्ध लेश्या रहित जीवों के पाप कर्मों का बन्ध कृष्ण पाक्षिक जीवों के पाप कर्मों का बन्ध शुक्ल पाक्षिक जीवों के पाप कर्मों का बन्ध तीन दृष्टि वाले जीवों के पाप कर्मों का बन्ध ८ पांच ज्ञान एवं तीन अज्ञान वाले जीवों के पाप कर्मों का बन्ध ह चार संज्ञा वाले तथा नौ संज्ञावाले जीवों के पापकर्मों का बन्ध १० सवेदी और अवेदी जीवों की कर्म बन्ध विचारणा ११-१२ सकषाय तथा अकषाय जीवों की कर्म बन्ध विचारणा १३ सयोगी, अयोगी तथा उपयोगी जीवों की कर्म बंध विचारणा चौवीस दण्डक में लेश्या-यावत्-उपयोग विवक्षा से पाप कर्मों का बंध १५-२५ चौवीस दण्डक में लेश्या-यावत्-उपयोग विवक्षा से आठ कर्मों का बंध द्वितीय उद्देशक अनन्तरोपपन्नक चौबीस दण्डक में लेश्या-यावत्-उपयोग विवक्षा से पापकर्मों का तथा आठ कर्मों का बंध rm x x wo is w Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४१२ श०२६ उ०११ प्र०१ तृतीय उद्देशक . परम्परोपपन्न चौबीस दण्डक के जीवों में पापकर्मों का तथा आठकर्मों का बंध चतुर्थ उद्देशक अनन्तरावगाढ-चौबीस दण्डक के जीवो में पाप कर्मों का तथा आठकर्मों का बंध पंचम उद्देशक परम्परावगाढ चौवीस दण्डक के जीवों में पापकर्मों का तथा आठ कर्मों का बंध षष्ठ उद्देशक अनन्तराहारक चौबीस दण्डक के जीवों में पापकर्मों का तथा आठ कर्मों का बंध सप्तम उद्देशक परम्पराहारक चौबीस दण्डक के जीवों में पापकर्मों का बंध, तथा आठ कर्मों का बंध अष्टम उद्देशक अनन्तर पर्याप्त चौबीस दण्डक के जीवों में पाप कर्मों का बंध तथा आठ कर्मों का बन्ध नवम उद्देशक परम्पर पर्याप्त चौबीस दण्डक के जीवों में पाप-कर्मों का बंध तथा आठ कर्मो का बंध दशम उद्देशक चौबीस दण्डक के चरम जीवों में पापकर्मों का तथा आठ कर्मों का बन्ध इग्यारहवां उद्देशक चौबीस दण्डक के अचरम जीवों में पाप कर्मों का बंध तथा आठ कर्मों का बन्ध Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श० ३० उ० १ प्र०२ ४१३ भगवती-सूची सत्तावीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक जीव का पाप कर्म करना तथा आठ कर्मों का बन्ध करना छव्वीसवें शतक के इग्यारह उद्देशकों के समान अठावीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक जीव ने किस गति में पापकर्मों का उपार्जन और किस गति में पपाकर्मो का आचरण किया (आठ विकल्प) लेश्या-यावत-उपयोग वाले जीवों द्वारा पापकर्मों का उपार्जन तथा पापकर्मों का आचरण चौबीस दण्डक के जीवों द्वारा पापकर्मों का उपार्जन, आचरण तथा आठकर्मों का उपार्जन व आचरण शेष दश उद्देशक छब्बीसवें शतक के उद्देशकों के समान उनत्तीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक पापकर्मों के वेदन का प्रारम्भ और अन्त (चार विकल्प) प्रारम्भ और अन्त कहने का हेतु लेश्या-यावत्-उपयोगवाले जीवों के वेदना का प्रारम्भ और अन्त चौबीस दण्डक के जीवों में वेदना का प्रारम्भ और अन्त शेष दश उद्देशक-छब्बीसवें शतक के उद्देशकों के समान तीसवाँ शतक इग्यारह उद्देशक प्रथम उद्देशक चार प्रकार के समवसरण-मत समस्त जीव चार समवसरण वाले हैं Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४१४ श०३१ उ०५ प्र०२ ३-६ लेश्या-यावत्-उपयोगवाले जीव चार समवसरण वाले हैं ७-६ चौबीस दण्डक के जीव चार समवसरण वाले हैं १०-२६ चार समवसरणवालों के आयु का बन्ध ३०-३४ चार समवसरण वाले भव्य या अभव्य शेष दश उद्देशक प्रथम उद्देशक के समान इकत्तीसवाँ शतक प्रथम उद्देशक १ क- राजगृह-भ० महावीर और गौतम ख- चार प्रकार के क्षुद्र युग्म ग- क्षुद्र युग्म कहने का हेतु २-६ चौबीस दण्डक में चार प्रकार के युग्म जीवों का उपपात द्वितीय उद्देशक धूमप्रभा- यावत् तमस्तम प्रभा १-५ नरक में चार प्रकार के क्षुद्र युग्म कृष्ण लेश्य वाले जीवों का उपपात तृतीय उद्देशक बालुका प्रभा-यावत्-धूमप्रभा नरक में चार प्रकार के क्षुद्र युग्म लेश्या वाले जीवों का उपपात चतुर्थ उद्देशक रत्नप्रभा-यावत-बालूका प्रभा में चार प्रकार के क्षुद्र युग्म कापोत लेश्यावाले जीवों का उपपात पंचम उद्देशक १-२ चार प्रकार के क्षुद्र युग्म भव सिद्धिक जीवों का नैरयिकों में १.२ उपपात Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३३ उ०१ प्र०२ भगवती-सूची षष्ठ उद्देशक कृष्णलेश्या वाले चार प्रकार के क्षुद्र युग्म भव सिद्धिक जीवोंका नरयिकों में उपपात सप्तम से अट्ठाईसवें उद्देशक तक नील लेश्या वाले चार प्रकार के क्षुद्र युग्म भव सिद्धिक जीवोंका नैरयिकों में उपपात (सप्तम उद्देशक) कापोत लेश्या वाले चार प्रकार के क्षुद्र युग्म भवसिद्धिक जीवों का नैरयिकों में उपपात (अष्टम उद्देशक) भवसिद्धिक के चार उद्देशक सम्यग्दृष्टि के चार उद्देशक मिथ्यादृष्टि के चार उद्देशक कृष्ण पक्ष के चार उद्देशक शुक्ल पक्ष के चार उद्देशक बत्तीसवाँ शतक अट्ठाईस उद्देशक चार प्रकार के क्षुद्र युग्म नैरयिकों का उद्वर्तन तथा उत्पत्ति एक समय में नैरयिकों के उद्वर्तनों की संख्या मण्डूकप्लुति से उद्वर्तन (इक्कीसवें शतक के समान) लेश्या-यावत्-शुक्ल पक्ष के उद्देशक तेतीसवाँ शतक बारह एकेन्द्रिय शतक प्रथम एकेन्द्रिय शतक प्रथम उद्देशक पांच प्रकार के एकेन्द्रि य दो प्रकार के पृथ्वीकाय २ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४१६ श०३३ उ०७ प्र०२५. ३ दो प्रकार के सूक्ष्म पृथ्वीकाय ४ क- दो प्रकार के बादर पृथ्वीकाय ___ ख- पृथ्वीकाय के समान अपकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के भेद अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय की आठ कर्म प्रकृतियां पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी काय की आठ कर्म प्रकृतियां ७-८ अपर्याप्त, पर्याप्त पृथ्वीकाय यावत्-वनस्पतिकाय के आठ कर्म प्रकृतियों का बंध ६-११ पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के कर्म प्रकृतियों का बंध १२-१३ पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के कर्म प्रकृतियों का वेदन द्वितीय उद्देशक १४-१५ अनन्तरोपपन्न एकेन्द्रियों के भेद १६-१७ अनन्तरोपपन्न एकेन्द्रियों की कर्म प्रकृतियां अनन्तरोपपन्न एकेन्द्रियों के कर्म प्रकृतियों का बन्धन अनन्तरोपपन्न एकेन्द्रियों के कर्म प्रकृतियों का वेदन तृतीय उद्देशक परम्परोपपन्न एकेन्द्रियों के भेद परम्परोपपन्न एकेन्द्रियों के कर्म-प्रकृत्तियों का बन्धन तथा वेदन चतुर्थ उद्देशक अनन्तरावगाढ पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में पंचम उद्देशक परम्परावगाढ पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में षष्ठ उद्देशक अनन्तराहारक, पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में सप्तम उद्देशक परम्पराहारक पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३३ उ०७ प्र०१ ४१७ भगवती-सूची अष्टम उद्देशक अनन्तर पर्याप्त पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में नवम उद्देशक परम्पर पर्याप्त पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में दशम उद्देशक चरम पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में इग्यारहवां उद्देशक अचरम पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय के सम्बन्ध में द्वितीय एकेन्द्रिय शतक कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में इग्यारह उद्देशकप्रथम एकेन्द्रिय शतक के समान, तृतीय एकेन्द्रिय शतक नील लेश्यावाले एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में ग्यारह उद्देशकप्रथम एकेन्द्रिय शतक के समान चतुर्थ एकेन्द्रिय शतक कापोत लेश्यावाले एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में ग्यारह उद्देशकप्रथम ऐकेन्द्रिय शतक के समान पंचम एकेन्द्रिय शतक भव सिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में इग्यारह उद्देशकप्रथम एकेन्द्रिय शतक के समान षष्ठ एकेन्द्रिय शतक कृष्ण लेश्यावाले भव सिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में इग्यारह उद्देशक प्रथम एकेन्द्रिय शतक के समान सप्तम एकेन्द्रिय शतक नील लेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में ग्यारह उद्देशक प्रथम एकेन्द्रिय शतक के समान Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ भगवती-सूची ४१८ श०३४ उ०१ प्र०४ अष्टम एकेन्द्रिय शतक कापोत लेश्यावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में इग्यारह उद्देशक प्रथम एकेन्द्रिय शतक के समान नवम एकेन्द्रिय शतक अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में नव उद्देशक दशम एकेन्द्रिय शतक कृष्ण लेश्या वाले अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में नव उद्देशक एकादशम एकेन्द्रिय शतक नील लेश्या वाले अभव सिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में नव उद्देशक द्वादशम एकेन्द्रिय शतक कापोत लेश्या वाले अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में नव उद्देशक चौतीसवाँ शतक अवान्तर द्वादश शतक प्रथम एकेन्द्रिय शतक प्रथम उद्देशक १ क- पांच प्रकार के एकेन्द्रिय ___ ख- एकेन्द्रियों के चार भेद २ अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी कायिक जीवों की विग्रह गति ३ क- एक दो तीन समय की विग्रह गति होने का हेतु ख- सात प्रकार की श्रेणियां ४ अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय की पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय के रूप में विग्रह गति Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ १७ श०३४ उ०१ प्र०३२ भगवती-सूची अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकाय की बादर तेजस्कायिक रूप में विग्रह गति पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का उपपात अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीवों का उपपात पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक जीवों का उपपात १० अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का उपपात ११-१३ अपर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय का पूर्वचरमान्त से पश्चिम चरमान्त में उपपात १४ क- अपर्याप्त मूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की विग्रह गति ख- तीन अथवा चार समय की विग्रह गति होने का कारण १५-१६ अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के विग्रह गति के समय अपर्याप्त बादर तेजस्काय की विग्रह गति अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक जीव पर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिक रूप में उत्पन्न हो तो विग्रह गति के समय १६ अपर्याप्त बादर तेजस्कायिक की विग्रह गति २०-२१ अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव की उर्दू लोक से अधोलोक में विग्रह गति २२ क- लोक के पूर्व चरमान्त में पृथ्वीकायिक जीव की विग्रह गति ख- विग्रह गति का कारण २३-२४ अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक का उपपात २५-२६ लोक के पूर्व चरमान्त से पश्चिम चरमान्त की विग्रह गति बादर एकेन्द्रियों के स्थान अपर्याप्त एकेन्द्रियों की कर्म प्रकृतियां अपर्याप्त एकेन्द्रियों का कर्म बन्ध एकेन्द्रियों के कर्म वेदन एकेन्द्रियों का उपपात एकेन्द्रियों के समुद्घात rr m Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४२० श०३४ उ०७ प्र०५ ३३ एकेन्द्रियों के कर्म बन्ध का अल्प-बहुत्व द्वितीय उद्देशक १-५ अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रियों का वर्णन प्रथम उद्देशक के प्र०. २६ से ३४ तक के समान तृतीय उद्देशक परम्परोपपन्न एकेन्द्रियों का वर्णन चतुर्थ से एकादश उद्देशक पर्यन्त अचरम पर्यन्त एकेन्द्रियों का वर्णन द्वितीय एकेन्द्रिय शतक इग्यारह उद्देशक १-३ कृष्ण लेश्यावाले एकेन्द्रियों का वर्णन तृतीय एकेन्द्रिय शतक इग्यारह उद्देशक नील लेश्यावाले एकेन्द्रियों का वर्णन चतुर्थ एकेन्द्रिय शतक इग्यारह उद्देशक कापोत लेश्या वाले एकेन्द्रियों का वर्णन पंचम एकेन्द्रिय शतक इग्यारह उद्देशक भवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन षष्ठ एकेन्द्रिय शतक इग्यारह उद्देशक १-५ कृष्ण लेश्यावाले भवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन सप्तम एकेन्द्रिय शतक Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३५ उ०१ प्र०३ ४२१ भगवती-सूची . इग्यारह उद्देशक नील लेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन अष्टम एकेन्द्रिय शतक इग्यारह उद्देशक कापोत लेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन नवम एकेन्द्रिय शतक . नव उद्देशक अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन दशम एकेन्द्रिय शतक नव उद्देशक कृष्णलेश्यावाले अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन एकादश एकेन्द्रिय शतक नव उद्देशक नीललेश्यावाले अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन द्वाशदम एकेन्द्रिय शतक नव उद्देशक कापोतलेश्यावाले अभवसिद्धिक एकेन्द्रियों का वर्णन पैंतीसवाँ शतक अवान्तर द्वादश शतक प्रथम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक प्रथम उद्देशक सोलह प्रकार के महायुग्म सोलह कहने का हेतु कृतयुग्म कृतयुग्म राशिरूप एकेन्द्रियों का उपपात WWW २ Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४२२ श०३५ उ०४ प्र०१ & w o is a ora a anar a on or on एक समय में उपपात जीवों की संख्या कृतयुग्म कृतयुग्म राशिरूप एकेन्द्रियों के आठ कर्मों का बन्ध कृतयुग्म कृतयुग्म राशिरूप एकेन्द्रियों के आठ कर्मों का वेदन कृतयुग्म कृतयुग्म राशि एकेन्द्रियों का साता असाता वेदन कृतयुग्म कृतयुग्म राशि एकेन्द्रियों की लेश्या-यावत-उपयोग कृतयुग्म कृतयुग्म राशि एकेन्द्रियों के शरीर के वर्णादि कृतयुग्म कृतयुग्म राशि एकेन्द्रियों का अनुबन्ध काल सर्व जीवों का कृतयुग्म कृतयुग्म राशि एकेन्द्रियों में उत्पाद कृतयुग्म त्र्योज राशि एकेन्द्रियों का उत्पाद उत्पाद संख्या कृतयुग्म द्वापर प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद ऊपपात संख्या कृतयुग्म कल्योज रूप एकेन्द्रियों का उत्पाद योज कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद योज त्र्योज प्रमाण एकेन्द्रियों उत्पाद कल्योज कल्योज प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद द्वितीय उद्देशक प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का उत्पाद प्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का अनुबन्ध तृतीय उद्देशक अप्रथम समयोत्पन्न कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद चतुर्थ उद्देशक चरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद an १ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२३ श०३५ उ०११ प्र० १ भगवती-सूची पंचम उद्देशक अचरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद षष्ठ उद्देशक प्रथम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद सप्तम उद्देशक प्रथम अप्रथम समय कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद अष्टम उद्देशक प्रथम चरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद नवम उद्देशक प्रथम अचरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद दशम उद्देशक चरम चरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद एकादशम उद्देशक चरम अचरम समय कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद द्वितीय एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक कृष्णलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का वर्णन तृतीय एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक नीललेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का वर्णन चतुर्थ एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक कापोतलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का वर्णन १ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४२४ श०३६ उ० ११ प्र०१ पंचम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का वर्णन षष्ठ एकेन्द्रिय मह युग्म शतक. इग्यारह उद्देशक कृष्णलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का वर्णन सप्तम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक नीललेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का वर्णन अष्टम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक कापोतलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का वर्णन नवम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देश्क अभवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का वर्णन दशम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक कृष्णलेश्य अभवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का वर्णन एकादशम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. नव उद्देशक नीललेश्य अभवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म एकेन्द्रियों का उत्पाद द्वादशम एकेन्द्रिय महायुग्म शतक. नव उद्देशक कापोतलेश्य अभव सिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म प्रमाण एकेन्द्रियों का उत्पाद छतीसवाँ शतक अवान्तर द्वादश शतक दो सो इकतीस उद्देशक प्रथम बेइन्द्रिय महायुग्म शतक. इग्यारह उद्देशक कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का उत्पाद Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०३६ उ०११ प्र०१ १ इन्द्रियों का अनुबन्ध ३ प्रथम समय कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का उत्पाद शेष – एकेन्द्रिय महायुग्म उद्देशकों के समान -- १ १ १ चतुर्थ बेइन्द्रिय महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक कापोतलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन पंचम बेइन्द्रिय महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक भव सिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन षष्ठ बेइन्द्रिय महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक १ कृष्णलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन सप्तम बेइन्द्रिय महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक १ नीलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन १ ४२५ १ भगवती-सूची द्वितीय बेइन्द्रिय महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक कृष्णलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन तृतीय बेइन्द्रिय महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक नीलेश्य कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन अष्टम बेइन्द्रिय महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक कापोतलेश्य भवसिद्धिक कृतयुग्म कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन नवम बेइन्द्रिय महायुग्म शतक नव उद्देशक अभवसिद्धिक कृतयुग्म २ बेइन्द्रियों का वर्णन दशम बेइन्द्रिय महायुग्म शतक नव उद्देशक कृष्णलेश्य अभवसिद्धिक कृतयुग्म २ बेइन्द्रियों का वर्णन एकादशम बेइन्द्रिय महायुग्म शतक नव उद्देशक नीलेश्य अभवसिद्धिक कृतयुग्म द्वीन्द्रियों का वर्णन Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४२६ श०४० उ०५ प्र०१ प द्वादश बेइन्द्रिय महाग्युम शतक नव उद्देशक कापोत लेश्य अभवसिद्धिक कृतयुग्म बेइन्द्रियों का वर्णन सैंतीसवाँ शतक अवान्तर द्वादश शतक एक सो चौबीस उद्देशक कृतयुग्म २ प्रमाण त्रीन्द्रियों के उत्पाद का वर्णन अडतीसवाँ शतक अवान्तर द्वादश शतक एक सो चौबीस उद्देशक कृतयुग्म २ प्रमाण चतुरिन्द्रियों के उत्पाद का वर्णन उनचालीसवाँ शतक अवान्तर द्वादश शतक एक सो चौबीस उद्देशक १ कृतयुग्म २ प्रमाण असंज्ञी पंचेन्द्रियों के उपपात का वर्णन चालीसवाँ शतक अवान्तर इकवीस संज्ञी पंचेन्द्रिय महग्युम शतक प्रथम संज्ञी महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक १ कृष्णलेश्य संजी पंचेन्द्रिय महायुग्म का उत्पाद तृतीय संज्ञी महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक १ नीललेश्य संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद चतुर्थ संज्ञी महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक १ कापोतलेश्य संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद पंचम संज्ञी महायुग्म शतक उद्देशकइग्यारह १ तेजस्लेश्य संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०४१ उ० १ प्र०८ १ १ १ १ १ 2 २-३ x of us 9 ७ ४ ४२७ षष्ठ संज्ञी महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक पद्मलेश्य संज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद सप्तम संज्ञी महायुग्ग शतक इग्यारह उद्देशक शुक्ललेश्य संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद अष्टम संज्ञी महायुग्म शतक इग्यारह उद्देशक भवसिद्धिक कृतयुग्म २ प्रमाण संज्ञीपंचेन्द्रिय महायुग्मों का उत्पाद नवम संज्ञी महायुग्म शतक चौदहवें संज्ञी महायुग्म शतक पर्यन्त प्रत्येक के इग्यारह उद्देशक कृष्णलेश्य यावत्-शुक्ल लेश्य संज्ञी पंचेन्द्रिय महायुग्म का उत्पाद पंद्रहवें संज्ञी महायुग्म शतक से इक्कीसवें संज्ञी महायुग्म शतक पर्यन्त प्रत्येक के इग्यारह उद्देशक कृतयुग्म - २ प्रमाण कृष्णलेश्य यावत् शुक्ललेश्य अभवसिद्धिक संज्ञि पंचेन्द्रिय का उत्पाद भगवती-सूची इगतालीसवाँ शतक. प्रथम उद्देशक क- चार प्रकार का राशियुग्म भवसिद्धिक कृतयुग्म २ प्रमाण ख- चार प्रकार का राशियुग्म कहने का हेतु कृतयुग्म राशि प्रमाण चौबीस दण्डक के जीवों का उपपात सान्तर अथवा निरन्तर उपपात कृतयुग्म और त्र्योज राशि के सम्बन्ध का निषेध कृतयुग्म और द्वापर राशि के सम्बन्ध का निषेध कृतयुग्म और कल्योज राशि के सम्बन्ध का निषेध जीवों के उपपात की पद्धति Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती-सूची ४२८ श०४१ उ०१२ प्र० १ ६-१० उपपात का हेतु, आत्मा का असंयम सलेश्य आत्म असंयमी १२-१७ सक्रिय आत्म असंयमी १८-२३ क्रिया रहित की सिद्धि द्वितीय उद्देशक १-३ व्योज राशि प्रमाण चौबीस दण्डक के जोवों का उपपात तृतीय उद्देशक द्वापर युग्मराशि प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात चतुर्थ उद्देशक कल्योज राशि प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात पंचम उद्देशक - कृष्णलेश्यावाले कृतयुग्म प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात षष्ठ उद्देशक कृष्णलेश्यावाले व्योज राशि प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात सप्तम उद्देशक कृष्णलेश्यावाले द्वापर युग्म प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात अष्टम उद्देशक कृष्णलेश्यावाले कल्योज प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात नवम से बारहवें उद्देशक पर्यंत नीललेश्यावाले चार राशि युग्म प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात • Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श०४१ उ०१४० प्र०१ १ १ १ १ १ १ ४२६ तेरहवें से सोलहवें उद्देशक पर्यंत कापोतलेश्यावाले चार राशि युग्म प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात १ भगवती-सूची सतरहवें से बीसवें उद्देशक पर्यंत तेजोलेश्यावाले चार राशि युग्म प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात इक्कीसवें से चौबीसवें उद्देशक पर्यंत पद्मलेश्यावाले चार राशि युग्म प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात पच्चीसवें से अट्ठावीसवें उद्देशक पर्यंत शुक्ललेश्यावाले चार राशि युग्म प्रमाण चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात उनत्तीसवें से छप्पनवें उद्देशक पर्यंत चार राशि युग्म प्रमाण भव सिद्धिक, कृष्ण लेश्या यावत्-शुक्ल लेश्या वाले चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात सत्तावन से चौरासीवें उद्देशक पर्यंत चार राशि युग्म प्रमाण अभवसिद्धिक, कृष्ण लेश्या यावत्-शुक्ल लेश्या वाले चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात . पच्यासी से एक सो बारहवें उद्देशक पर्यंत चार राशि युग्म प्रमाण सम्यग्दृष्टि भवसिद्धक कृष्ण लेश्या वाले- य यावत् शुक्ल लेश्या वाले चौवीस दण्डक के जोवों का उपपात एक सो तेरहवें से एक सो चालीसवें उद्देशक पर्यंत चार राशि युग्म प्रमाण मिध्यादृष्टि भवसिद्धिक कृष्णलेश्या वाले यावत् - शुक्ल लेश्यावाले चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३० श०४१ उ०१६६ प्र०१ भगवती-सूची एक सो इकतालीस से एक सो अडसठवें उद्देशक पर्यंत चार राशि युग्म प्रमाण कृष्ण पक्षी चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात एक सो उनसित्तर से एक सो छियानवें उद्देशक पर्यंत चार राशि युग्म प्रमाण शुक्ल पक्षी चौवीस दण्डक के जीवों का उपपात उपसंहार-दो गाथा भगवती सूत्र-उद्देशक विधि जिणवयणे अणुरत्ता, जिणवयणं जे करेंति भावेणं । अमला असंकिलिट्ठा, तेहुंति परित्तसंसारि ।। बाल-मरणाणि बहुसो, अकाम-मरणाणि चेव य बाणि । मरिहंति ते वराया, जिण-वयणं जे न जाणं ति ।। ANNY Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो तवस्स धर्मकथानुयोगमय ज्ञाता-धर्मकथाङ्ग श्रुतस्कंध २ अध्ययन उद्ददेशक पद उपलब्ध पाठ २५०० श्लोक गद्य सूत्र पद्य सूत्र प्रथम ज्ञान श्रुतस्कंध अध्ययन १६ उद्दशक १६ गद्य सूत्र १४७ पद्य सूत्र ५६ २६ १६ ५ लाख ७६ हजार १५६ ६२ द्वितीय धर्म कथा श्रुतस्कंध वर्ग १० अध्ययन २०६ गद्य सूत्र १२ पद्य सूत्र १ उक्खित्त - णाए २ संघाड़े, ३ अंडे ४ कुम्मे य ५ सेलगे । ६ तुंबेय ७ रोहिणी - मल्ली, ६ मायंदी १० चंदिमाइ य ॥ ११ दावद्दवे १२ उदग णाए, १३ मंडुक्के १४ तेयली वि य । १५ नंदीफले १६ अवरकंका, १७ आइन्ने १८ सुसुमाइ य ॥ अवरे य १६ पुंडरीए, णायए गूणवीस मे । Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनशन उत्तराध्ययन अ० ३०/६-१३ । भगवती श० २/१ इत्वरिक मरणकालान्त बालमरण पंडित मरण १. अखि तप २. प्रतर तप १. सविचार या अविचार ३. धन तप ४. वर्ग तप २. सपरिकर्म या अपरिकर्म १. वलयमरण २. वशातैमरण पादपोगमन भक्त प्रत्याख्यान ५. वर्ग-वर्ग तप ६. प्रकीर्ण तप ३. निर्दारि या अनिर्वारि ३. अंतःमरण १. निहरिम १. निहरिम अनशन ४. तद्भव मरण २. अनिर्झरिम २. अनियरिम औपपातिक सूत्र १९-- । ५. गिपरितन नियमत नियमत६. तरुपतन अप्रतिकर्म सप्रतिकर्म इत्वरिक ७. जल प्रवेश ८. अग्नि प्रवेश यावत्कथित ६. विषभक्षण १०. शस्त्रावपाटन ११. वहायस १२, गृद्धरपृष्ट । १. चतुर्थ भक्त १. व्याघात सहित १. व्याघात सहित मरण यात. निर्याघात २. नियाघात स्थानांग २१४१०२ । १४. घट्मासिक भक्त ३. नियमतः अप्रतिकर्म ३. नियमतः सप्रतिकर्म वालमरण पंडित मरण अनशन भगवती श०२५/७ बारहमेद (भगवती के समान) पादपोपगमन भक्त प्रत्याख्यान इत्वरिक यावत्कथित तीसरा निदानमरण निहारिम चौदहमेद (औपपातिक के समान) पादपोपगमन अनियरिम निहरिम नियमतअप्रति कर्म अनियरिम नियमत सप्रति कर्म भक्त प्रत्याख्यान (स्थानांग के समान) मरण समवायांग १७ १ अविचिमरण २ अवधिमरण ३ श्रात्यन्तिक मरण ४ वलय मरण ५ वशात मरण ६ अंतःशल्य मरण ५ तद्भव मरण ८ बाल मरण.. ६ पंडित मरण १० बाल-पंडित मरण ११ छदास्थ मरण १२ केवली मरण १३ वैहायस मरस १४ गृध्रस्पृष्ट मरण १५ भक्त प्रत्याख्यान १६ इंगिनी मरण १७ पादपोपगमन .. Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता धर्म-कथा विषय-सूची प्रथम ज्ञात श्रुतस्कंध प्रथम उत्तिप्तज्ञात अध्ययन शय्या परीषह उत्थानिका-चम्पा नगरी वर्णन २ पूर्णभद्र चैत्य का वर्णन ३ कोणिक राजा का वर्णन ४ भ० महावीर के अंतेवासी आर्य सुधर्मा स्थविर का वर्णन ५ क- कोणिक का धर्म श्रवण ख- आर्य जंबू की ज्ञाता धर्म कथा के सम्बन्ध में जिज्ञासा ग- सुधर्मा द्वारा ज्ञाता धर्मकथा का कथन घ- दो श्रुतस्कंधों के नाम ङ- उन्नीस अध्ययनों के नाम क- प्रथम अध्ययन की उत्थानिका ख- राजगृह वर्णन ग- श्रेणिक राजा और नंदा रानी का वर्णन ७ क- अभयकुमार का राजनयिक तथा सामाजिक जीवन ख- चार नीति के नाम ग- ईहा के चार भेद. चार प्रकार की बुद्धि ८ श्रेणिक की धारिणी रानी ६ धारिणी का स्वप्न दर्शन. श्रेणिक से स्वप्न फल पृच्छा १० श्रेणिक का स्वप्न-फल कथन ३१ धारिणी की प्रशस्त स्वप्न जागरणा १२ क- श्रेणिक द्वारा उपस्थान शाला सजाने का आदेश Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४३४ श्रु०१ अ०१ # F ख-श्रेणिक का व्यायाम शाला में व्यायाम करना ,,, ,, स्नानघर में स्नान एवं श्रृंगार घ- , , उपस्थानशाला में आगमन ङ- ,, ,, स्वप्न पाठकों को बुलाना. स्वप्न-फल पृच्छा च- चौदह महा स्वप्नों के नाम छ- स्वप्न फल श्रवण स्वप्न. पाठकों का सत्कार ज- धारिणी देवी का गर्भ-सुरक्षा के लिये प्रयत्न धारिणी देवी का दोहद १४ क- दोहद पूर्ण करने करने का प्रयत्न ख- अभयकुमार का अष्टम तप 'ग- सोलह प्रकार के श्रेष्ठतम पुद्गल अभय कुमार के मित्र देव का आगमन और दोहद पूर्ण करने के लिये आश्वासन अभय कुमार द्वारा देव का विसर्जन धारिणी का गर्भ प्रतिपालन १८ · क- मेघ कुमार का जन्म. जन्मोत्सव. बंदि विमोचन. कर मुक्ति दसोटन. याचकों को इच्छित दान. जात कर्म. जागरण. चन्द्र सूर्य दर्शन आदि संस्कार. प्रीति भोज. नामकरण ख- पांच धाय. खोजे. नाना देशों की दसियाँ ग- मेघ कुमार का पाठ पठन. बहत्तर कलाओं का शिक्षण. कला चार्यों का सम्मान क- मेघ कुमार को अठारह देश भाषाओं का ज्ञान. युद्ध कला में निपुणता ख- मेघ कुमार के लिए आठ अन्तःपुर प्रासादों का निर्माण २० क- मेघ कुमार का आठ राज कन्याओं के साथ पाणिग्रहण ख- आठ हिरण्य कोटी और आठ सुवर्ण कोटी का दहेज. दहेज में आठ दासियाँ Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४३५ श्रु०१ अ०१ ग- आठ राज कन्याओं द्वारा बत्तीस प्रकार के नृत्यों का प्रदर्शन २१ भ० महावीर का गुणशील चैत्य में समवसरण. धर्म परिषद में प्रवचन २२ क- भ० महावीर के दर्शनार्थ मेघ कुमार का जाना ख- पांच प्रकार के अभिगम ___ग- भ० महावीर की धर्म कथा मेघ कुमार को वैराग्य. प्रव्रज्या के लिए माता-पिताओं से आज्ञा प्राप्त करना २४ क- मेघ कुमार को माता पिताओं का समझाना ख- मनुष्य जीवन की नश्वरता ग- काम भोगों का स्वरूप घ- निग्रंथ प्रवचन की महत्ता ङ- साधु जीवन का वर्णन च- आहार एषणा की कठिनता छ- मेघ कुमार का दृढ़ वैराग्य क- मेघ कुमार का राज्याभिषेक ख- रजोहरण, पात्र और काश्यप के लिए तीन लाख सुवर्ण मुद्राएँ देने का आदेश ग- मेघ कुमार का दीक्षा महोत्सव क- मेघ कुमार की प्रव्रज्या ख- मेघ मुनि को रात्रि में शय्या परीषह ग- मेघ मुनि का भ० महावीर की वंदना के लिए जाना क- भ० महावीर द्वारा मेघ कुमार मुनि के पूर्वभवों का प्रतिपादन ख- सुमेरुप्रभ हाथी का वर्णन ग- वैताढ्यगिरि की तलहटी का वर्णन घ- तृषा पीडित सुमेरुप्रभ हाथी की मृत्यु, पुनः हाथी के रूप में जन्म Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञता० - सूची २८ २६ ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ४३६ ङ - एक योजन का मण्डल बनाना च - शशक की रक्षा करना छ- तीन दिन पश्चात् मृत्यु. मेघ कुमार के रूप में जन्म क- मेघ मुनि को पूर्व जन्मों की स्मृति ख- श्रमण संघ की सेवा के लिये मेघ मुनि की दृढ़ प्रतिज्ञा ग- मेघ मुनि का पुनः प्रव्रज्या ग्रहण घ- इग्यारह अंगों का अध्ययन. विविध प्रकार के तप ङ - भ० महावीर का विहार मेघमुनि की द्वादश श्रमण प्रतिमा आराधना क- मेघ मुनि की विपुलगिरि पर अन्तिम आराधना क - मेघ मुनि की विजय विमान में उपपत्ति ख- तेतीस सागर की स्थिति. च्यवन. महाविदेह में जन्म. निर्वाण द्वितीय संघाटक अध्ययन रत्नत्रय की आराधना के लिए आहार करना उत्थानिका—- राजगृह, गुणशील चैत्य, जीर्ण उद्यान. भग्नकूप.. मालुका कच्छ धन्ना सार्थवाह, भद्रा भार्या श्रु० १ अ०२ पंथक दास, धन्ना सार्थवाह का व्यक्तित्व विजय चौर का क्रूर जीवन क- भद्रा की पुत्र प्राप्ति के लिये चिन्ता ख- भद्रा द्वारा अनेक देव देवियों की पूजा अर्चना. गर्भ स्थिति भद्रा के दोहद की पूर्ति ग- देवदिन्न का जन्म जन्मोत्सव क- देवदिन्न को क्रीड़ा के लिए पथक का ले जाना. विजय चौर द्वारा देवदिन्न का अपहरण Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ श्रु० १ अ०३ ज्ञाता०-सूची ख- देवदिन्न के आभूषण ले लेना और मार कर भग्नकूप में डाल देना देवदिन्न की शोध. बाल हत्यारे विजय चोर को कारागृह का कठोर दण्ड ४० क- कर चोरी के अपराध में धन्ना सार्थ को कारागृह का दण्ड धन्ना सार्थवाह और विजय चोर का एक बेड़ी से बन्धन ख- धन्ना सार्थवाह के लिए पंथक का भोजन ले जाना ग- धन्ना सार्थवाह का विजय चोर को भोजन देना क- विजय चोर को भोजन देने से भद्रा सार्थवाही का रुष्ट होना ख- धन्ना सार्थवाही की कारागृह से मुक्ति ग- विजय चोर को भोजन देने का कारण बताने से भद्रा की नाराजगी का मिटना घ- विजय चोर की मृत्यु. नरक गति ङ- भ० महावीर द्वारा निर्ग्रथ निग्रंथियों को शिक्षा ४२ क- धर्मघोष स्थविर का पदार्पण ख- धन्ना सार्थवाह की प्रव्रज्या ग- अन्तिम आराधना घ- सौधर्म कल्प में देव होना. चार पल्य की स्थिति. च्यवन. ङ- महाविदेह में जन्म और निर्वाण . ४३ भ० महावीर द्वारा निर्ग्रथ निग्रंथियों को शिक्षा तृतीय अण्ड अध्ययन शंका न करना ४४ क- उत्थानिका—चंपा नगरी. सुभूमि भाग उद्यान. मालुका कच्छ मयूरी के दो अंडे. दो सार्थवाह पुत्र ४५ जिनदत्त और सागरदत्त की मैत्री ४६-४७ देवदत्ता गणिका के साथ दोनों मित्रों की वन क्रीड़ा Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ श्रु०१ अ०५ ज्ञाता०-सूची ४८ दोनों मित्रों द्वारा मयूरी के दोनों अण्डों को उठाना ४६ क- मुर्गी के अण्डों के साथ वन मयूरी के अण्डों का पालन ख- सागरदत्त की अण्डे के सम्बन्ध में शंका. अण्डे का नष्ट होना क- जिनदत्त का अण्डे के सम्बन्ध में संदेह न करना ख- मयूरपालक द्वारा नृत्य तथा द्यूत क्रीड़ा शिक्षा घ- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की सिम्यक्त्व के प्रथम शंका अतिचार की निवृत्ति के सम्बन्ध में शिक्षा चतुर्थ कूर्म अध्ययन इन्द्रिय जय . ५१ क- उत्थानिका-वाराणसी नगरी ख- मालुका कच्छ में दो शृगाल ग- संध्या के समय द्रह से निकलकर दो कूर्मों का. खाद्य-गवेषणा के लिए मालुका कच्छ की ओर जाना घ- शृगालों का कूर्मों की घात में बैठना ङ- चंचल चित्त कूर्म का शृगाल द्वारा मारा जाना च- स्थिरचित्त कूर्म का बचना छ- निग्रंथ निर्गथियों को भ० महावीर की [पाँचों इन्द्रियों को वश करने के सम्बन्ध में] शिक्षा पंचम ज्ञात अध्ययन प्रमाद परिहार ५२ क- द्वारका नगरी वर्णन. रैवतक पर्वत. नंदनवन उद्यान वर्णन सुरप्रिय यक्षायतन कृष्ण वासुदेव दक्षिणार्धभरत की राजधानी द्वारिका का वैभव समुद्र विजय प्रमुख दश दशार बलदेव " पाँच महावीर Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४३६ श्रु०१ अ०५ उग्रसेन प्रमुख सोलह हजार राजा प्रद्युम्न " साढ़े तीन क्रोड़ कुमार सांब साठ हजार पराक्रमी वीरसेन " इक्कीस हजार वीर महासेन छप्पन हजार बलवान रुक्मणी " बत्तीस हजार रानियाँ अनङ्ग सेना " हजारों गणिकायें अन्य अनेक " सार्थवाह आदि । ५३ क- थावच्चा गाथापत्नि. थावच्चापुत्र कुमार का अध्ययन ख- बत्तीस श्रेष्ठी कन्याओं के साथ थावच्चा पुत्र का पाणिग्रहण ग- भ० अरिष्ट नेमी का समवसरण, दशधनुष की ऊँचाई, अठारह हजार श्रमण, चालीस हजार श्रमणियाँ घ- सुधर्मा सभा, कौमुदी भैरी का वादन ५४ क- थावच्चा पुत्र का वैराग्य, दीक्षा महोत्सव के लिए श्रीकृष्ण से थावच्चा भार्या का निवेदन ख- श्री कृष्ण द्वारा थावच्चा पुत्र के वैराग्य की परीक्षा ग- थावच्चा पुत्र की प्रव्रज्या घ- भ० अरिष्टनेमी से आज्ञा प्राप्त करके एकहजार अणगार के साथ थावच्चापुत्र का जनपद में विहार ५५ क- सेलकपुर, सुभूमिभाग उद्यान, सेलक राजा, पद्मावती रानी, युवराज मण्डूककुमार, पंथक प्रमुख पाँच सो मंत्रीगण ख- थावच्चा पुत्र अणगार को शेलकपुर में पदार्पण, धर्मकथा, राजा और मंत्रियों का द्वादश ब्रत स्वीकार करना ग- सौगंधिका नगरी वर्णन, नीलाशोक उद्यान घ- सुदर्शन नगर शेठ ङ- शुकदेव, परिव्राजक-वस्ति, चार वेदों के नाम, षष्ठी तंत्र, Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०५ ४४० ज्ञाता०-सूची सांख्य सिद्धान्त, पांच यम, पांच नियम, दस प्रकार का परि व्राजक धर्म च- सुदर्शन को शौचमूलक धर्म का उपदेश छ- दो प्रकार का शौच, द्रव्य शौच और भाव शौच की व्याख्या, . शौचधर्म से स्वर्ग की प्राप्ति, सुदर्शन का शौचधर्म स्वीकार करना ज- शुक परिव्राजक का जनपद में विहार झ- श्री थावच्चापुत्र अणगार का आगमन, परिषद् में सुदर्शन की उपस्थिति. दो प्रकार का विनयमूल धर्म. अगार धर्म के बारह व्रत, इग्यारह उपासक प्रतिमाओं का आराधन. अणगार धर्म में अठारह पाप विरति, दस प्रत्याख्यान. बारह भिक्षु प्रतिमा, विनयमूल धर्म से मोक्ष अ- सुदर्शन द्वारा शौचधर्म का प्रतिपादन ट- थावच्चा द्वारा शौचधर्म का परिहार, रक्तरंजित वस्त्र का उदाहरण ठ- सुदर्शन की विनयमूलक धर्म में श्रद्धा ड- पुनः शुक परिव्राजक का सौगंधिका में आना, सुदर्शन को पुनः शौचमूल धर्म में प्रतिष्ठापित करने का प्रयत्न करना ढ- सुदर्शन के साथ शुक परिव्राजक का थावच्चा पुत्र अणगार के समीप पहुंचना ण- थावच्चापुत्र से शुक के कुछ प्रश्न त- शुक की अर्हत् प्रव्रज्या, चौदह पूर्व का अध्ययन थावच्चा पुत्र का विहार, पुंडरीक पर्वत पर अन्तिम आराधना सिद्धि ५६ क- शुक श्रमण का शेलकपुर के सुभूमि भाग उद्यान में पदार्पण शेलक का धर्म श्रवण, मण्डूक को राज्य देकर शेलक राजा का पंथक प्रमुख पांचसो मंत्रियों के साथ प्रबजित होना Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०७ ४४१ झाता-सूची ख- शुक श्रमण की पुण्डरीक पर्वत पर अन्तिम आराधना. निर्वाण ५७ शेलक राजर्षि का अस्वस्थ होना, चिकित्सा के लिए सेलकपुर पहुँचना, स्वस्थ होने पर भी सेलकपुर न छोडना ५८ क- शेलक राजर्षि की सेवा में अकेले पंथक मुनि का रहना, अन्य श्रमणों का विहार ५६ चातुर्मासिक प्रतिक्रमण के दिन शेलक राजर्षि का प्रबुद्ध होना, विहार करना ६० निग्रंथ गिग्रंथियों को भ० महावीर द्वारा प्रतिबोध ६१ क- शेलक-राजर्षि की पुण्डरीक पर्वत पर अन्तिम आराधना, सिद्ध पद की प्राप्ति ख- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की शिक्षा षष्ठ तुम्बक अध्ययन जीव का गुरुत्व लघुत्व ६२ क- उत्थानिका----राजगृह, भ० महावीर और इन्द्रभूति ख- जीव के गुरुत्व-लघुत्व का कारण, मृत्तिका लिप्त तुम्ब का उदाहरण सप्तम रोहिणी अध्ययन पाँच महाव्रतों की वृद्धि ६३ क- राजगृह नगर, सुभूमि भाग उद्यान, धन्ना सार्थवाह द्वारा पाँच शालिकणों से चार पुत्रवधुओं की परीक्षा चारों को चार प्रकार के कार्य देना ख- भ० महावीर का रोहिणी के समान निग्रंथ निग्रंथियों को पाँच महाव्रतों की वृद्धि का उपदेश Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४४२ श्रु०१ अ०८: अष्टम मल्ली अध्ययन १. माया शल्य निवारण २. दुर्गंधमय देह ६४ क- उत्थानिका----जंबूद्वीप, महाविदेह, निषध वर्षधर पर्वत, सीतोदा महानदी, सुखावह वक्षस्कार पर्वत, लवण समुद्र, सलिलावति विजय, वीतशोका राजधानी, इन्द्र कुम्भ उद्यान. ख- बनराजा, धारिणी राणी, महाबल राजकुमार, पाँचसो राज कन्याओं से पाणिग्रहण, पाँच प्रासाद. पाँचसो हिरण्य कोटी, पाँचसो सुवर्ण कोटी का दहेज, दहेज में पाँचसो दासियाँ ग- स्थविरों का आगमन, धर्म श्रवण, महाबल को राज्य देकर बलराजाका प्रवजित होना, इग्यारह अंगों का अध्ययन घ- चारु पर्वत पर अन्तिम आराधना संलेखना शिवपद की प्राप्ति ङ- कमलश्री को सिंह का स्वप्न. बलभद्र पुत्र की प्राप्ति च- महाबल के बालमित्र छः राजा । छ- स्थबिरों का आगमन, महाबल के साथ छहों राजाओं की प्रव्रज्या ज- महाबल और छहों मुनियों द्वारा समान तप करने का निश्चय झ- महाबल मुनि का मायापूर्वक तपोवृद्धि में स्त्रीलिंग नाम कर्म ___ का बंधन, महाबल द्वारा तीर्थ करनाम कर्म का उपार्जन अ- तीर्थ करनाम कर्म की उपार्जना के बीस कारण ट- महाबल आदि सातों मुनियों द्वारा भिक्षु प्रतिमाओं की आराधना ठ- क्षुद्रसिंह-निष्क्रीड़ित और महासिंह निष्क्रीड़ित तप की आराधना ड- चारु पर्वत पर महाबल आदि मुनियों की अन्तिम आराधना दो मास संलेखना. चौरासी हजार वर्ष का श्रमण पर्याय, Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०८ ४४३ ज्ञाता०-सूची चौरासी लाख पूर्व का पूर्णायु, सबका जयन्त विमान में देव होना ६५ क- बत्तीस सागर की स्थिति ख- १. प्रतिबुद्धि साकेताधिपति २. चन्द्रच्छाय अंगदेशाधिपति ३. शंख काशिराज ४. रुक्मी कुणाल अधिपति ५. अदीन शत्रु कुरुराज ६. जितशत्रु पंचाल अधिपति ग- जंबूद्वीप, भरत, मिथिला राजधानी, कुम्भराजा, प्रभावती देवी चौदह महास्वप्न, महाबल देव का प्रभावती की कुक्षि में अवतरण, पूर्ण दोहद, उन्नीसवें तीर्थंकर का मल्लीरूप में जन्म ६६ नन्दीश्वर द्वीप में जन्मोत्सव, नाम करण । ६७ क- शतायु मल्ली को अवधिज्ञान द्वारा छहों राजाओं की जानकारी ख- अशोकवाटिका में “मोहनघर" का निर्माण ग- मोहनयर के मध्यभाग में स्वर्णमय मल्ली प्रतिमा की मल्ली द्वारा स्थापना ६८ क- कोशल जनपद, साकेत नगर, दिव्य नागघर ख- प्रतिबुद्धि राजा, पद्मावती रानी, नागयज्ञ का आयोजन, श्री दोमगंड की रचना ग- प्रतिबुद्धि राजा की सुबुद्धि अमात्य द्वारा मल्ली विदेह राज कन्या का परिचय घ- प्रतिबुद्धि महाराज का दूत प्रेषण, मल्ली विदेह राजकन्या की याचना ङ- प्रतिबुद्धि का मिथिला गमन ६६. क- अंगदेश-चंपानगरी, चन्द्रच्छाय राजा Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४४४ श्रु०१ अ०८ ख- अरहन्नक, श्रमणोपासक की व्यापार के लिए लवण समुद्र की यात्रा ग- जहाज में अरहन्नक की एक देव द्वारा परीक्षा तथा दृढ़ अरहन्नक को दो दिव्य कुण्डल युगलों की भेंट ७० क- अरहन्नक का मिथिला गमन ख- महाराजा कुम्भ को बहुमूल्य पदार्थों की तथा दिव्य कुण्डल युगल की भेंट ग- अरहन्नक का चम्पा में प्रत्यागमन. महाराज चन्द्रच्छाय को एक दिव्य कुण्डल की भेंट घ- मल्ली विदेहराजकन्या के सम्बन्ध में अरहन्तक का निवेदन ङ- मल्ली विदेहराजकन्या की याचना के लिये महाराज चन्द्र च्छाय का दूत सम्प्रेषण ७१ क- कुणाल जनपद. सावत्थी नगरी. रुक्मी राजा. धारिणी. सुबाहु नाम की राज कन्या ख- सुबाहु राज कन्या का चातुर्मासिक स्नान महोत्सव ग- वर्षधर द्वारा मल्ली विदेहराज कन्या की महिमा घ- मल्ली विदेहराजकन्या की याचना के लिये रुक्मी राजा का मिथिला को दूत भेजना ७२ क- काशी जनपद. वाराणसी नगरी. शंख राजा ख- मल्ली विदेहराजकन्या के दिव्य कुण्डल का संधिभेद ग- कुण्डल की संघी को ठीक करने के लिए महाराजा कुंभ का स्वर्णकारों को आदेश घ- कुण्डल की भग्न संधि को ठीक करने में असमर्थ सभी स्वर्णकारों को निर्वासित करना ङ- निर्वासित स्वर्णकारों का वाराणसी निवास . च- मल्ली विदेहराजकन्या के सम्बन्ध में काशी राज की जानकारी छ- मल्ली विदेहराजकन्या की याचना के लिये काशी राज का Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०८ ४४५ ज्ञाता०-सूची मिथिला को दूत भेजना ७३ क- कुरुजनपद, हस्तिनापुर नगर, अदीन शत्रु राजा ख- मिथिला में महाराजा कुम्भ के सुपुत्र मल्लदिन्न कुमार द्वारा __ चित्र सभा निर्माण करने का आदेश ग- एक चित्रकार द्वारा मल्ली विदेहराजकन्या के चित्र का निर्माण घ- मल्ल दिन्न कुमार के आदेश से चित्रकार के अंगूठे का छेदन तथा देशनिकाले का दण्ड ङ- निर्वासित चित्रकार का हस्तिनापुर में आगमन च- निष्काषित चित्रकार का अदीनशत्रु को मल्ली विदेहराजकन्या के चित्रपट का दिखाना छ- मल्ली विदेहराजकन्या की याचना के लिये अदीनशत्रु का मिथिला को दूत भेजना ७४ क- पांचाल जनपद, कंपिलपुर नगर, जितशत्रु राजा, धारिणी राणी ख- चार वेदों की पारंगता चोखा नाम की परिव्राजिका द्वारा मल्ली विदेहराजकन्या के सन्मुख शौचधर्म का प्रतिपादन ग- मल्ली विदेहराजकन्या द्वारा-रक्त रंजित वस्त्र के उदाहरण से शौचधर्म का परिहार घ- अपमानित चोखा परिव्राजिका का कपिलपुर में आगमन ङ- जितशत्रु राजा को कूपमण्डूक का उदाहरण देकर चोखा ने ___ मल्ली विदेहराजकन्या का परिचय दिया च- मल्ली की याचना के लिये-जितशत्रु ने मिथिला को दूत भेजा ७५ क- प्रतिबुद्धि आदि छहों राजाओं द्वारा मिथिला के चारों ओर घेरा डालना ख- छहों राजाओं का मोहनघर में प्रवेश. मल्ली कुमारी द्वारा राजाओं को प्रतिबोध एवं पूर्वजन्म का वृतान्त कथन ग- छहों राजाओं को जातिस्मरण (पूर्व जन्म की स्मृति) घ- प्रतिविजित छहों राजाओं का स्व स्व स्थान में गमन Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४४६ श्रु०१ अ०८ ___ङ- मल्ली विदेहराजकन्या का निष्क्रमण संकल्प ७६ क- शक्रासन का कंपन ख- मल्ली अर्हत का एक वर्ष पर्यन्त श्रमण ब्रह्मणों को भोजनदान ___और इच्छित दान स्वर्णदान ७७ क- निष्क्रमण महोत्सव का वर्णन ख- मल्ली अहंत का स्वयमेव पंचमुष्टि केश झुंचन. शक्र का केश ग्रहण ग- मल्ली अर्हत की दीक्षा तिथि. मल्ली अहंत का पूर्वाह में सामा यिक चारित्र ग्रहण करना घ- मनः पर्यवज्ञान की प्राप्ति ङ- छ सो स्त्रियाँ और आठ राजकुमारों का साथ में दीक्षित होना च- नंदीश्वर द्वीप में अष्टाह्नि का दीक्षा महोत्सव छ- मल्ली अर्हत को दीक्षा के दिन ही अपराह्न में केवल ज्ञान होना ७८ क- नंदीश्वर द्वीप में अष्टाह्निका केवलज्ञान महोत्सव ख- कुंभ राजा का श्रमणोपासक होना. मल्ली अहंत का धर्मोपदेश ___ जितशत्रु आदि छः राजाओं का दीक्षित होना० मल्ली अहंत का विहार ग- मल्ली अहंत के गण गणधर श्रमण श्रमणियाँ श्रावक श्राविकायें चौदह पूर्व धारी मुनि अवधिज्ञानी मुनि केवल ज्ञानी वक्रियलब्धि सम्पन्न मुनि Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १ अ०६ मल्ली अर्हत " 17 22 "" घ- मल्ली अहंत की ऊँचाई का वर्ण का संस्थान का संहनन ङ - मल्ली अहंत का विहार क्षेत्र च - सम्मेत शैल शिखर पर भ० मल्ली अर्हंत की अन्तिम आराधना छ- मल्ली अहंत का गृहवास केवल पर्याय " " 11 " ४४७ मनः पर्यव ज्ञानी वादलब्धि सम्पन्न मुनि अनुरक्तरोपपातिक मुनि दो प्रकार की अंतकृत् भूमियाँ ज्ञाता०-सूची नंदीश्वर द्वीप में अष्टाह्निका निर्वाण महोत्सव पूर्णायु के साथ निर्वाण होने वालों की संख्या नवम माकंदी अध्ययन ७६ क - उत्थानिका, चंपा नगरी, पूर्णभद्र चैत्य, माकंदी सार्थवाह, भार्या, सार्थवाह के दो पुत्र, जिन पालित और जिन रक्षित ख- व्यापारार्थ जिनपालित और जिनरक्षित की बारहवीं बार लवण समुद्र यात्रा ग- यात्रा में विघ्न, पोत भंग ८० क- फलक के सहारे जिन पालित और जिन रक्षित का रत्नद्वीप के भद्रा तट पर पहुंचना ख- रयणादेवी का दोनों भाईयों को अपने साथ ले जाना और अपने प्रासाद में रखना ८१ क- लवण समुद्र की सफाई के लिये लवणाधिप सुस्थित देव का रयणादेवी को आदेश देना Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञता०-सूची श्रु० १ अ० ११ ख- दोनों भाइयों को दक्षिण दिशा के वन खण्ड में जाने का निषेध दोनो भाईयों को पूर्वादि क्रम से दक्षिण दिशा के वन खण्ड में जाना और शूलारोपित पूरुष से वास्तविक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होना ८३ क - सेलक यक्ष की उपासना ख- यक्ष पर आरूढ़ दोनों भाईयों का चंपानगरी के लिये प्रस्थान चलचित्त जिनरक्षित पर रयणादेवी का असि प्रहार निर्ग्रथ निर्ऋथियों को जिनरक्षित के समान चलचित्त न होने का भ० महावीर का उपदेश ८२ ८४ ८५ ८६ दृढमना जिनपालित का स्वगृह गमन ८७ क- भ० महावीर का समवसरण जिनपालित का धर्मश्रवण करना प्रव्रज्या लेना. देवभव. महाविदेह से मुक्ति ख- निर्ग्रथ निग्रंथियों को जिन पालित के समान स्थिरचित्त रहने का भ० महावीर का उपदेश । उपसंहार 1 ४४८ दशम चन्द्र अध्ययन आत्मगुणों की वृद्धि ८६ - उत्थानिका ख- कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष के चन्द्र की हानि वृद्धि के समान जीव के निज गुणों की हानि वृद्धि । उपसंहार एकादशम दावद्रव अध्ययन जिन मार्ग की आराधना- विराधना ६० क- उत्थानिका ख- उपमा दावद्रव वृक्ष, उपमेय-साधक श्रमणादि ग- उपमा-समुद्र का वायु, उपमेय-अन्यतिर्थी घ- उपमा-द्वीप का वायु, उपमेय-स्वतिर्थी Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०१३ ४४६ ज्ञाता०-सूची ङ- देश आराधक, देश विराधक सर्व आराधक, सर्व विराधक । उपसंहार द्वादशम परिखोदक अध्ययन पुद्गल परिणति ६१ क- उत्थानिका, चंपानगरी, पूर्णभद्र चैत्य, जितशत्रु राजा, धारिणी राणी, युवराज जितशत्रु (अदीन शत्रु,) सुबुद्धि अमात्य, अति दुर्गंधित परिखोदक १२ क- सुबुद्धि अमात्य का परिखोदक को परिष्कृत करवाना तथा राजा को सेवन कराना ख- पुद्गल परिणति का ज्ञापन ग- जितशत्रु राजा को प्रतिबोध. व्रतधारणा घ- स्थविरों का आगमन, जितशत्रु राजा और सुबुद्धि अमात्य की प्रव्रज्या ङ- दोनों का ग्यारह अंग अध्ययन. अनेक वर्षों की श्रमण पर्याय एक मास की संलेखना. दोनों को शिवपद की प्राप्ति त्रयोदशम ददुर अध्ययन सत्संग के अभाव में आत्मगुणों का अपकर्ष ६३ क- उत्थानिका-राजगृह. गुणशील चैत्य ख- भ० महावीर का समवसरण-धर्मकथा ग- दर्दुरदेव द्वारा नाटय प्रदर्शन घ- भ० गौतम की जिज्ञासा. दर्दुर देव का पूर्वभव ङ- महाराज श्रेणिक, नंद मणिकार का धर्म श्रवण. व्रतधारणा च- भ० महावीर का विहार छ- नंद मणिकार को मिथ्यात्व की प्राप्ति ज- अष्टमभक्त तप में प्यास. व्याकुलता Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची श्रु०१ अ०१४ झ- वैभारगिरि की तलहटी में नंदा पुष्करिणी तथा चार वन १. पश्चिम दिशा के वनखण्ड में चित्रसभा का निर्माण २. दक्षिण दिशा के वनखण्ड में भोजनशाला ,, , ३. पूर्व दिशा के वनखण्ड में चिकित्साशाला ,, , ४. उत्तर दिशा के वनखण्ड में अलंकार सभा ,, ,, १४ क- नंद मणिकार के शरीर में सोलह रोगों की उत्पत्ति. सोलह रोगों के नाम ख. नंद की मृत्यु. नंदा पुष्करिणी में दर्दु ररूप में जन्म ग- नंद की प्रशंसा सुनने पर दर्दुर को पूर्वजन्म की स्मृति. धर्मा राधन. तपश्चर्या ६५ क- भ० महावीर का समवसरण. भगवान की वंदना के लिए जाते समय दर्दुर का अश्व के पैर से घायल होना ख- दर्दुर की अन्तिम आराधना, सौधर्म कल्प में उपपात, चारपल्य की स्थिति, महाविदेह में जन्म और निर्वाण चतुर्दशम तेतलीपुत्र अध्ययन ६६ क- उत्थानिका-तेतलीपुर, प्रमदवन, कनकरथ राजा, पद्मावती देवी तेतली पुत्र अमात्य, कलाद स्वर्णकार, भद्रा भार्या, पोट्टिला पुत्री ख- तेतली पुत्र का पोट्टिला से विवाह ९७ क- कनकरथ राजा का पुत्रों को अंगविकल करना ख- तेतली पुत्र द्वारा पोट्टिला और पद्मावती की संततियों में परिवर्तन तेतली पुत्र का पोट्टिला से रुष्ट होना. पौट्टिला की दानदेने में अभिरुची सुव्रता आर्या का आगमन. वशीकरण के लिए पोट्टिला की पृच्छा. सुव्रता का उपदेश. पोट्टिला का श्रमणोपासिका होना १०० क- पोट्टिला की प्रव्रज्या, ग्यारह अंगों का अध्ययन. अनेक वर्षो हद Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १ अ०१५ ४५१ ज्ञाता०-सूची एक मास की संलेखना देवलोक में का श्रमण - जीवन. उपपात १०१ क- कनकरथ राजा की मृत्यु ख- कनकध्वज का राज्याभिषेक. तेतली पुत्र के सन्मान की वृद्धि १०२ क- पोट्टिलदेव का तेतलीपुत्र को प्रतिबोध देना ख- कनकध्वज राजा का तेतली पुत्र से विमुख होना ग- तेलीपुत्र के गृह में तेतली का अनादर घ - विष, असि, फांसी, पानी, अग्नि से आत्महत्या के लिये तेतली पुत्र के प्रयत्न ङ. प्रव्रज्या के लिये पोट्टिल देव की प्रेरणा १०३ क - तेतली पुत्र को जातिस्मरण , ख- पूर्वभव का वर्णन, जम्बूद्वीप, महाविदेह, पुष्कलावती बिजय, पुण्डरीकणी राजधानी, महापद्म राजा स्थविरों के पास प्रव्रज्या, चौदह पूर्व का ज्ञान, अन्तिम आराधना, महाशुक्रकल्प में उत्पन्न. च्यवन. तेतलीपुत्र रूप में उत्पन्न ग- तेतली पुत्र की प्रव्रज्या. चौदह पूर्व का ज्ञान. केवल ज्ञान १०४ क- केवलज्ञान का महोत्सव ख- तेलीपुत्र मुनि की वंदना के लिए कनक ध्वज राजा का जाना, धर्म श्रवण करना. व्रत धारणा ग- तेतली का केवल ज्ञान सम्पन्न जीवन. सिद्धपद पंचदशम नंदीफल अध्ययन अज्ञात फल के खाने का निषेध १०५ क- उत्थानिका - चंपानगरी, पूर्णभद्र चैत्य, जितशत्रु राजा, धन्ना सार्थवाह ख- अहिछत्रा नगरी. कनक केतु राजा ग- धन्ना सार्थवाह का व्यापार के लिये अहिछत्रा जाने का संकल्प Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची . ४५२ श्रु०१ अ०१६ घ- अहिछत्रा के मार्ग में नंदीफल खाने वाले साथियों की मृत्यु न खाने वालों का बचाव ङ- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की शिक्षा च- अहिछत्रा के महाराज कनक केतु को बहुमूल्य पदार्थों की भेंट. कर से मुक्ति छ- चंपानगरी में धन्ना सार्थवाह का आगमन ज- स्थविरों का आगमन, धन्ना का धर्मश्रवण. ज्येष्ठ पुत्र को गृह भार सौंपना, प्रव्रज्या, ग्यारह अंगों का अध्ययन, अनेक वर्षों का श्रमण जीवन, एक मास की संलेखना, देवलोक में उपपात. च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण । उपसंहार षोडशम अपरकंका अध्ययन फलेच्छा का निषेध १०६ क- उत्थानिका-चंपानगरी, सुभूमिभाग उद्यान ख- तीन ब्राह्मण और उनकी तीन भार्याएं ग- नागश्रिी ने तिक्त अलाबु का शाक बनाया. परीक्षा के पश्चात् एकान्त में रख दिया। घ- मधुर अलाबु का और शाक बनाया ०७ क- धर्मघोष स्थविर का आगमन ख- धर्ममचि अणगार का भिक्षार्थ गमन ग- नागश्री का कटुक अलाबु व्यञ्जन देना घ- अलाबु व्यंजन आचार्य को दिखाना. व्यञ्जन परीक्षा. खाने का निषेध ङ- अलाबु व्यंजन डालने के लिए धर्म रुचि का श्मसान भूमि में जाना च- कीडियों को हिंसा देख कर अलाबु व्यंजन स्वयं खा लेना धर्मरुची की मृत्यु Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ श्रु०१ अ०१६ ४५३ ज्ञाता०-सूची छ- धर्मरुची की शोध . झ- धर्मरुची का सर्वार्थ सिद्ध में उपपात, च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण नागश्री की निन्दा. गृह से निष्कासन. सोलह रोगों की उत्पत्ति. मृत्यु. नरक गति. भव भ्रमण १०६ चंपा नगरी. सागरदत्त सार्थवाह. भद्राभार्या. नागश्री की आत्मा का सुकुमालिका के रूप में जन्म ११० क- चंपा नगरी. जिनदत्त सार्थवाह. सागर पुत्र ख- सागर पुत्र का सुकुमालिका से विवाह १११ सुकुमालिका के अनिष्ट स्पर्श से सागर का स्वगृह गमन ११२ क- भिखारी को सुकुमालिका सोंपदेना ख- अनिष्ट स्पर्श से भिखारी का पलायन ११३ क- सुकुमालिका की दान में अभिरुचि ख- गोपालिका आर्या का आगमन. सुकुमालिका का धर्म श्रवण प्रव्रज्या. अध्ययन. ग्राम के बाहर आतापना लेना ग- गोपालिका आर्या की आताप लेने के लिए निषेधाज्ञा सुकुमालिका का न मानना ११४ क- चम्पा नगरी में ललिता गोष्ठी, देवदत्ता गणिका के साथ गोष्ठी पुरुषों की भोग लीला, सुकुमालिका आर्या का निदान करना ११५ क- सुकुमालिका का शरीर-बकुषा होना ख- उपाश्रय से निष्कासन. पार्ववर्ति उपाश्रय में निवास ग- अनेक वर्षों का श्रामण्य पर्याय. पन्द्रह दिन की संलेखना. अकृत्य स्थान की आलोचना न करना घ- मृत्यु. ईशान कल्प में देवगणिका होना. नव पल्य की स्थिति द्रौपदी कथा ११६ जम्बूद्वीप भरत. पांचाल जनपद. कंपिलपुर. द्रुपद राजा. चुलनी Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४ ज्ञाता०-सूची श्रु०१ अ०१६ रानी. युवराज घृष्टद्युम्न कुमार. सुकुमालिका की आत्मा का द्रौपदी के रूप में जन्म. स्वयंवर रचना प्रमुख पुरुषों को निमन्त्रण ११७ प्रथम दूत को द्वारावति भेजना द्वितीय दूत को हस्तिनापुर भेजना तृतीय दूत को चम्पानगरी भेजना चतुर्थ दूत , शक्तिमति नगरी भेजना पंचम दूत , हस्तिशीर्ष नगर भेजना षष्ठ दूत , मथुरा नगरी भेजना सप्तम दूत ,, राजगृह नगर भेजना अधम दूत , कौडिन्य नगर भेजना नवम दूत , विराट नगर भेजना दशम दूत ,. शेष नगरों में " ११८ क- गंगा महानदी के समीप स्वयंवर मण्डप की रचना ख- स्वयंवर मण्डप में सभी राजाओं का आगमन ११६ द्रौपदी का स्वयंवर मण्डप में प्रवेश १२० पांच पाण्डवों का वरण, आठ हिरण्य कोटि आदि तथा आठ दासियाँ दहेज में मिलना १२१ क- पांडु राजा, पांच पाण्डव और द्रौपदी आदि का हस्तिनापुर आना ख- वासुदेव द्वारा नारद का सन्मान व विसर्जन १२२ क- कच्छुल्ल नारद का हस्तिनापुर आगमन. पाण्डुराजा आदि के द्वारा नारद जी का आदर सन्मान ख- द्रौपदी द्वारा नारद का अनादर १२३ क- नारद का द्रौपदी से बदला लेने का संकल्प ख- धातकीखण्ड द्वीप. अमरकंका राजधानी. पद्मनाभ राजा. सात सो रानियों का अन्तःपुर. युवराज सुनाभ Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०१६ ४५५ ज्ञाता०-सूची ग- नारद का पद्मनाभ के अतःपुर में प्रवेश घ- अपने अन्तःपुर के सम्बन्ध में पद्मनाभ की जिज्ञासा ङ- नारद ने पद्मनाभ को कूपमण्डूक की उपमा दी च- द्रौपदी के रूप की महिमा. मित्रदेव द्वारा सुप्त युधिष्ठिर के समीप से द्रौपदी का साहरण छ- राजकन्याओं के साथ द्रौपदी की तप-आराधना १२४ क- जागृत युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी की शोध ख- द्रौपदी की शोध के लिये कुंती की श्री कृष्ण से प्रार्थना ग- श्री कृष्ण का आश्वासन घ- कच्छुल्ल नारद का आगमन श्री कृष्ण को द्रौपदी का पता देना ङ- पाण्डवों को ससैन्य पूर्व वैताली समुद्रतट पाने का आदेश च- श्री कृष्ण का ससैन्य पूर्व वैताली पहुंचना छ- श्री कृष्ण का अष्टमभक्त तप. सुस्थित देव का आगमन ज- श्री कृष्ण और पाण्डवों के रथों का अमरकंका पहुँचना छ- पद्मनाभ को सूचना देने के लिये दारुक दूत को भेजना ञ- पद्मनाभ के साथ पाण्डवों का युद्ध ट- श्री कृष्ण का शंखनाद, धनुषटंकार. पद्मनाभ का आत्म समर्पण ठ- पाण्डवों और द्रौपदी को साथ लेकर श्रीकृष्ण का भारत की और प्रयाण १२५ क- धातकीखण्ड द्वीप का पूर्वार्ध. भरत क्षेत्र. चंपानगरी. पूर्ण भद्र चैत्य ख- कपिल वासुदेव ग- भ० मुनिसुव्रत का समवसरण. धर्म श्रवण करते समय शंख नाद श्रवण से कपिल वासुदेव के मन में उत्पन्न जिज्ञासा का" भ० मुनिसुव्रत द्वारा समाधान घ- एक क्षेत्र में एक साथ दो अरिहंत, चक्रवर्ती, बलदेव और Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४५६ श्रु०१ अ०१६ वासुदेव के होने का निषेध तथा मिलने का निषेध ङ- श्री कृष्ण और कपिल वासुदेव का पांचजन्य शंखनाद से मिलन : च- कपिल वासुदेव द्वारा पद्मनाभ का देश निष्कासन और पद्मनाभ के पुत्र का राज्याभिषेक १२६ क- पाण्डवों का नौका द्वारा गंगा नदी उत्तीर्ण होना. बल परीक्षा के लिये श्री कृष्ण हेतु नौका न ले जाना ख- क्रुद्ध श्री कृष्ण द्वारा पाण्डवों के रथों का चूर्ण कर देना, देश निकाला देना और रथमर्दन कोट की स्थापना करना ग- श्री कृष्ण का ससैन्य द्वारिका पहुँचना १२७ क- पाण्डवों का हस्तिनापुर में आगमन. अमरकंका की विजय. पाण्डु राजा से यात्रा के वृतान्त का निवेदन ख- पाण्डुराजा और कुंतीदेवी का द्वारिका आगमन ग- श्री कृष्ण का पाण्डु-मथुरा बसाने का आदेश घ- दक्षिण समुद्र तट पर पाण्डु-मथुरा बसाना और उसमें निवास करना १२८ क- द्रौपदी के आत्मज-पण्डुसेन का जन्म ख- अध्ययन. विवाह. युवराज पद ग- स्थविरों का आगमन. पाण्डवों का धर्मश्रवण. प्रव्रज्या लेने का संकल्प घ- पाण्डुसेन का राज्याभिषेक ङ- पाण्डवों की प्रव्रज्या. चौदह पूर्वो का अध्ययन. तपश्चर्या १२६ द्रौपदी की सूव्रता आर्या के समीप प्रव्रज्या. ग्यारह अंगों का अध्ययन. तपाराधना १३० क- स्थविरों का पाण्डु-मथुरा के सहस्राम्रवन से विहार ख- 'भ० नेमनाथ इस समय सौराष्ट्र में हैं' यह संवाद पाण्डव मुनियों को प्राप्त हुआ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -श्रु०१ अ०१७ ४५७ ज्ञाता०-सूची ग- भ० नेमनाथ की वंदना हेतु जाने के लिए स्थविरों से आज्ञा प्राप्त करके विहार करना घ- पाण्डव मुनियों का हस्तिकल्प नगर के सहस्राम्रवन में पहुँचना ङ- पाण्डव मुनियों को भ० अरिष्ट नेमनाथ के (शैलशिखर पर) निर्वाण होने के समाचार मिलना च- पाण्डव मुनियों की शत्रुञ्जय पर्वत पर अंतिम आराधना. दो मास की संलेखना. सिद्धपद की प्राप्ति २३१ क- द्रौपदी आर्या की अन्तिम आराधना, ब्रह्मलोक कल्प में द्रपद देव होना, दस सागर की स्थिति, च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण सप्तदशम अश्व अध्ययन १३२ क- उत्थानिका, हस्तिशीर्ष नगर, कनककेतु राजा ख- सांयात्रिक (नौका) व्यापारियों की लवणसमुद्र यात्रा ग- अकालवायु-निर्यामक का दिङ्मूढ होना घ- इन्द्रादि की पूजा करना, दिशाबोध होने पर कालिक द्वीप पहँचना ङ- कालिक द्वीप में हिरण्य स्वर्ण आदि की खान तथा अश्वरत्न देखना च- हिरण्य स्वर्ण आदि बहुमूल्य पदार्थ जहाजों में भरकर हस्ति शीर्ष नगर पहुँचना छ- कनककेतु महाराजा को बहुमूल्य पदार्थों की भेंट २३३ क- कालिक द्वीप के अश्वरत्नों के सम्बन्ध में महाराजा से निवेदन ख- राजपुरुषों के साथ जाकर अश्वरत्न लाने का राजा का आदेश ग- शब्द गन्ध रस एवं स्पर्शजन्य आसक्ति की अभिवृद्धि करने वाले पदार्थ जहाज में भर कर सांयात्रिक व्यापारियों का कालिक द्वीप पहुंचना Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची ४५८ श्रु०१ अ०१८ घ- उत्कृष्ट शब्द गंध रस स्पर्श के पुद्गलों से अश्वों को आधीन करना ङ- निग्रंथ निग्रंथियों को भगवान महावीर की शिक्षा १३४ क- अश्वरत्न लेकर हस्तिशीर्ष नगर पहुँचना ख- अश्वशिक्षकों से अश्वों को शिक्षा दिलाना ग- निग्रंथ निग्रंथियों को म० महावीर की शिक्षा १३५ इन्द्रियलोलुप और इन्द्रियविजयी के गुणावगुण । उपसंहार अष्टादशम सुसुमा अध्ययन १३६ क- उत्थानिका-राजगृह. धन्ना सार्थवाह. भद्रा भार्या. सार्थवाह धन्ना-के पांच पुत्र और एक पुत्री सँसुमा, दास पुत्र चिलात ख- चोरी की आदत के कारण चिलात का घर से निकालना १३७ क- सिंहगुफा नाम की चोर पल्ली. पांच सो चोरों का अधिपति विजय चोर ख. चिलात विजय का प्रियशिष्य बना. विजय से उसने अनेक चोर विद्याएँ सीखी और विजय की मृत्यु के पश्चात् उसका उत्तरा धिकारो बना १३८ साथियों सहित चिलात ने धन्ना सार्थवाह के घर चोरी की _ और सुसुमा का अपहरण किया १३६ क- ग्राम रक्षकों को साथ लेकर धन्ना सार्थवाह और उसके पांच पुत्रों ने चिलात का पीछा किया ख- चिलात सुसुमा का मस्तक काट कर ले भागा ग- भूखा प्यासा चिलात अटवी में मर गया । घ- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की शिक्षा ङ- क्षुधा पिपासा से पीडित धन्ना सार्थवाह और उसके पुत्रों ने बहन सुसुमा के कलेवर को पका कर खाया च- धन्ना और उसके पांचों पुत्रों का राजगृह में आगमन nal. Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०१६ ४५६ ज्ञाता०-सूची १४० क- भ० महावीर का समवसरण, धन्ना सार्थवाह का धर्मश्रवण, प्रव्रज्या ग्रहण, इग्यारह अंगों का अध्ययन, एक मास की संलेखना, सौधर्म देवलोक में देव होना, च्यवन, महाबिदेह में जन्म और निर्वाण ख- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की धर्मशिक्षा। उपसंहार एकोनविंशतितम पुण्डरीक अध्ययन १४१ क- उत्थानिका-जम्बूद्वीप. पूर्व विदेह. पुष्कलावती विजय. पुण्डरि किणी राजधानी. नलिनी वन उद्यान. महापद्म राजा. पद्मावती रानी. पुण्डरीक और कुण्डरीक दो राजकुमार ख- पुण्डरीक युवराज ग- स्थविरों का आगमन. धर्मश्रवण. पुण्डरीक को राज्यपद. कुण्ड रीक को युवराजपद. महापद्म की प्रव्रज्या. चौदहपूर्व का अध्य यन-यावत्-सिद्धपद १४२ स्थविरों का आगमन. धर्मश्रवण. पुण्डरीक का श्रमणोपासक बनना. कुण्डरीक की प्रव्रज्या. स्थविरों का विहार १४३ क- पित्तदाह से पीडित कुण्डरीक मुनि का स्वास्थ्य लाभ के लिए पुण्डरीकणी में आगमन. चिकित्सा. स्वास्थ्य लाभ. मनोज्ञ पदार्थों में आसक्ति. ख- पुण्डरीक का समझाना ग- कुण्डरी का राज्याभिषेक १४४ पुण्डरीक की प्रव्रज्या. चारयाम धर्म के आराधना की प्रतिज्ञा पुण्डरिकिणी से विहार. स्थविरों से मिलन १४५ क- पुण्डरीक को पित्तज्वर. मृत्यु. सप्तम नरक में उत्पत्ति. उत्कृष्ट स्थिति ख- निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की शिक्षा १४६ क- पुण्डरीक की पुनः चातुर्याम धर्म आराधना करने की प्रतिज्ञा Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “१४७ ज्ञाता०-सूची ४६० श्रु०२ अ०१ ख- पुण्डरीक को पित्तज्वर, सफल अन्तिम-आराधना, मृत्यु, स्वार्थ सिद्ध में उपपात, च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण निग्रंथ निग्रंथियों को भ० महावीर की शिक्षा. उपसंहार । प्रथम श्रुतस्कंध का उपसंहार द्वितीय धर्मकथा श्रुतस्कन्ध १४८ क- श्रुतस्कन्ध उत्थानिका-दस वर्गों के नाम प्रथम चमरेन्द्र अग्रमहिषी वग प्रथम काली अध्ययन ख- उत्थानिका ग- राजगृह, गुणशील चैत्य. श्रेणिक राजा. चेलणा रानी घ- भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन ङ- चमर अग्र महिषी काली देवी का आगमन. वंदन. नृत्य दर्शन. गमन च- कालीदेवी की ऋद्धि के सम्बन्ध में भ० गौतम की जिज्ञासा छ- भ० महावीर द्वारा समाधान. कूटागार शाला का दृष्टान्त. पूर्व भव का वर्णन ज- जंबूद्वीप. भरत आमलकप्पा नगरी. अंब-शाल वन. चैत्य. जित शत्रु राजा झ- काल गाथापति, कालश्रीभार्या, त्यक्ता काली पुत्री अ- भ० पार्श्वनाथ का समवसरण (भ० पार्श्वनाथ की ऊँचाई, श्रमण सम्पदा, श्रमणी सम्पदा) ट- काली का आगमन. धर्मश्रवण. पुष्पचूला आर्या के समीप प्रव्रज्या ग्रहण. इग्यारह अंगों का अध्ययन. तपश्चर्या की आराधना ठ- काली आर्या का पुनः पुनः अंगोपांग प्रक्षालन ड- पुष्पचूला आर्या की आज्ञा का उल्लंघन. भिन्न उपाश्रय में निवास ढ- पन्द्रह दिन की संलेखना. अनाचार का प्रायश्चित्त किये बिना देह त्याग Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० २ व०२अ० १ ४६१ ज्ञाता०-सूची ढाई ण - चमरचंचा राजधानी के कालावंतसक भवन में उपपात. महाविदेह से शिवपद की प्राप्ति । पल्य की स्थिति. च्यवन उपसंहार द्वितीय राजी अध्ययन १४६ क- उत्थानिका ख- राजगृह. गुणशील चैत्य भ० महावीर का समवसरण प्रवचन ग- चमर अग्र महिषी राजी देवी का आगमन, वंदन, नृत्य दर्शन गमन घ- भ० गौतम द्वारा पूर्वभव पृच्छा. आमलकप्पा नगरी. अंबशाल वन चैत्य. जितशत्रु राजा ङ - राजी गाथापति, राजश्री भार्या. राजी पुत्री च - भ० पार्श्वनाथ का समवसरण राजी की प्रव्रज्या - यावत्- शिव-पद की प्राप्ति । उपसंहार तृतीय रजनी अध्ययन छ- उत्थानिका शेष पूर्व अध्ययन के समान ज - उत्थानिका झ - उत्थानिका - शेष पूर्व अध्ययन के समान । उपसंहार द्वितीय बलेन्द्र अग्रमहिषी वर्ग १५० क उत्थानिका चतुर्थ विद्युत अध्ययन - शेष पूर्व अध्ययन के समान पंचम मेघा अध्ययन प्रथम शुंभा अध्ययन ख- उत्थानिका— राजगृह गुणशील चैत्य भ० महावीर का समव-सरण प्रवचन बलेन्द्र अग्रमहिषी शुंभादेवी का वंदन नृत्य दर्शन गमन Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची श्रु०२ व०४ ग- भ० गौतम द्वारा पूर्वभव पृच्छा. श्रावस्ती नगरी. कोष्टक चैत्य जितशत्रु राजा. शुंभा पुत्री. शेष पूर्ववत् द्वितीय निशुंभा अध्ययन तृतीय रंभा अध्ययन चतुर्थ निरंभा अध्ययन पंचम मदना अध्ययन ॥ उपसंहार ।। तृतीय धरणादि अग्रमहिषी वर्ग १५१ क- उत्थानिका प्रथम दूला अध्ययन ख- उत्थानिका- राजगृह, गुणशील चैत्य, भ० महावीर का समव सरण, प्रवचन, धरण अग्र महिषी इलादेवी का आगमन, वंदन, नृत्य प्रर्शन, गमन ग- पूर्वभव-वाराणसी नगरी, काम महावन चैत्य. दूल गाथापति दूलश्री भार्या, दूला पुत्री. भ० पार्श्वनाथ का समवसरण-यावत् शिव पद की प्राप्ति । उपसंहार द्वितीय कमा अध्ययन तृतीय सेतरा अध्ययन चतुर्थ सौदामनी अध्ययन पंचम इन्द्रा अध्ययन षष्ट धना अध्ययन वेणुदेव अग्रमहिषीयों के ६ अध्ययन-यावत्-घोष अग्रमहिषियों के ६ अध्ययन । सर्वयोग चौपन अध्ययन चतुर्थ भूतानंदादि अग्रमहिषी वर्ग १५२ क- उत्थानिका प्रथम रुचा अध्ययन ख- उत्थानिका, राजगृह, गुणशील चैत्य, भ. महावीर का समव Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०- सूची, सरण, प्रवचन, भूतानंद अग्रमहिषी, रुचादेवी का आगमन, वंदन, नृत्य दर्शन । पूर्व भव ग- चंपा नगरी, पूर्णभद्र चैत्य, रुचक गाथापति, रुचक श्री भार्या, रुचा पुत्री भ० पार्श्वनाथ का समवसरण - यावत् - शिवपद की प्राप्ति उपसंहार श्रु०२ व०५ द्वितीय सुरुचा अध्ययन चतुर्थ रुचकावती अध्ययन अग्रमहिषियों के ६ अध्ययन - यावत्-महाघोष की अग्रमहि षियों के ६ अध्ययन १५३ क- उत्थानिका ४६३ पंचम पिशाचादि अग्रमहिषी वर्ग अष्टम सुभगा दशम बहुपुत्रिका द्वादशम भार्या चतुर्दशम वसुमती प्रथम कमला अध्ययन ख- उत्थानिका, राजगृह, भ० महावीर का समवसरण पिशाचेन्द की अग्र महीषी कमलादेवी का आगमन, वंदन, नृत्यदर्शन ' पूर्वभव ग- नागपुर, सहस्राम्रवन, कमल गाथापति, कमलश्री भार्यां, कमला पुत्री, भ० पार्श्वनाथ का समवसरण - यावत् - शिव पद की प्राप्ति द्वितीय कमल प्रभा अध्ययन तृतीय उत्पला अध्ययन चतुर्थ सुदर्शना पंचम रूपवती षष्ठ बहुरूपा सप्तम सुरूपा नवम पूर्णा एकादशम उत्तमा त्रयोदशम पद्मा पंच दशम कनका " " 17 " तृतीय रुचांसा अध्ययन पंचम रुचकांता अध्ययन 17 11 77 "" 36 17 " 11 Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञाता०-सूची षोडश कनकप्रभा अष्टादशम केतुमती विंशतिम रतिप्रिया द्वाविंशतितम नमिता चतुर्विंशतितम पुष्पवती षडविंशतितम भुजगवती अष्टविंशतितम अपराजित त्रिशतम विमला द्वात्रिंशतम सरस्वती १५४ उत्तर कुरु उद्यान १५६ १५५ क - उत्थानिका प्रथम सूरप्रभा तृतीय अचिमाली ४६४ उत्थानिका प्रथम चन्द्रप्रभा तृतीय अचिमाली अध्ययन सप्तदशम वत्तंसा एकोनदशम वज्रसेना एक विंशतितम रोहिणी त्रयोविंशतितम ही पंचविशतितम भुजगा सप्तविंशतितम महाकच्छा एकोनत्रिंशतम सुघोषा एकत्रिशतम सुस्वरा " " १५७ क- उत्थानिका 37 37 11 11 75 सप्तम सूर्य अग्रमहिषी वर्ग पूर्वभव - अरक्खुरी नगरी " षष्ठ महाकालेन्द्रादि अग्रमहिषी वर्ग पंचम वर्ग के समान ३२ अध्ययन । पूर्वभव - साकेत नगर, अष्टम चन्द्र अग्रमहिषी वर्ग 11 श्रु०२ व०६ " पूर्वभव - मथुरानगरी, भंडीवतंसक उद्यान नवम शक्र अग्रमहिषी वर्ग अध्ययन अध्ययन. द्वितीय आतपा अध्ययन चतुर्थ प्रभंकरा अध्ययन. द्वितीय ज्योत्स्नाभा चतुर्थ प्रभंकरा 31 11 "" 77 " " " Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२ व०१० ४६५ ज्ञाता०-सूची प्रथम पद्मा अध्ययन द्वितीय शिवा अध्ययन तृतीय सती अध्ययन चतुर्थ अंजू अध्ययन पंचम रोहिणी, षष्ठ नवमिका , सप्तम अचला, अष्टम अप्सरा , पूर्वभव प्रथम द्वितीय की श्रावस्ति नगरी तृतीय चतुर्थ का हस्तिनापुर पंचम षष्ठ का कंपिलपुर सप्तम अष्टम का साकेत नगर दशम ईशानेन्द्र अग्रमहिषी वर्ग १५८ क- उत्थानिका प्रथम कृष्णा अध्ययन द्वितीय कृष्णराजी अध्ययन तृतीय रामा , चतुर्थ रामरक्षिता, पंचम वसु , षष्ठ वसुगुप्ता सप्तम वसुमित्रा, अष्टम वसुन्धरा " ख- पूर्वभव ग- प्रथम-द्वितीय की वाराणसी नगरी तृतीय-चतुर्थ की राजगृह नगरी पंचम-षष्ठ की श्रावस्ति नगरी सप्तम अष्टम की कौशाम्बी नगरी उपसंहार Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जहा आसाविणिं नावं, जाइ अंधो दुरुहिया । इच्छई पारमागंतु, अंतरा य विसीयइ ।। एवं तु समणा एगे, मिच्छदिट्ठी अणारिया। सोयं कसिणमावन्ना, आगंतारो महब्भयं ।। इमं च धम्ममायाय, कासवेण पवेइयं । तरे सोयं महाघोरं, अत्तत्ताए परिव्वए ।। सूत्रकृताङ्ग श्रु० २ अ० ११ - Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो चरित्तस्स धर्मकथानुयोग प्रधान उपासकदशांग श्रु तस्कंध अध्ययन उद्द शक १० पद ११ लाख ५२ हजार ८१२ श्लोक परिमाण उपलब्ध पाठ गद्य सूत्र पद्य सूत्र २७२ ग्रामनाम श्रमणोपासक भार्या गोधन धन उपसर्ग विमान १ वाणिज्यग्राम आनन्द शिवानन्दा ४व्रज १२ क्रोड़ अरूण २ चम्पानगरी कामदेव भद्रा ६ व्रज १८ क्रोड़ देवका अरुणाभ ३ वाराणसी चुलनीपिता श्यामा ८ व्रज २४ ,, , अरुणप्रभ ४ वाराणसी सुरादेव धन्या ६ व्रज १८,, , अरुणकांत ५ आलभी चुल्लशतक बहुला ६ व्रज अरुणश्रेष्ठ ६ काम्पिल्यपुर कुण्डकोलिक पुष्या ६ व्रज अरुणध्वज ७ पोलासपुर सद्दालपुत्र अग्निमित्रा १ ब्रज अरुणभूत ८. राजगृह महाशतक रेवत्यादि१३८ व्रज २४ ,, स्त्रीका अरुणावतंसक ६ श्रावस्ती नन्दिनीपिता अश्विनी ४ व्रज १२ ,, ,, अरुणगव १० श्रावस्ती सालिहीपिता फाल्गुनी ४ व्रज १२ ,, ,, अरुणकील Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रमणोपासक पंचाचार अतिचार तालिका ज्ञानाचार के अतिचार दर्शनाचार के १३ अतिचार संक्षेप में ८ अतिचार ८ दर्शनाचारों का अनाचरण विस्तार से १४ अतिचार ५ दर्शनातिचारों का आचरण चारित्राचार के १२५ अतिचार तपाचार के ७० अतिचार ६० द्वादश व्रतातिचार १५ बाह्य और अभ्यन्तर तपों का अनाचरण १५ कर्मादान ५ संलेखना के अतिचार ३२ सामायिक के दोष २१ कायोत्सर्ग के दोष १८ पौषध के दोष ३२ वन्दना के दोष वीर्याचार के तीन अतिचार मन, वचन, काया से सशक्त होते हुए ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपाचार का आचरण न करना ___ उपासक दशा और आवश्यक-सूत्र में उपर्युक्त अतिचारों का वर्णन है । Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशांग विषय-सूची प्रथम आनन्द अध्ययन प्रथम उद्देशक १ उत्थानिका-चम्पानगरी, पूर्णभद्र चैत्य २ क- आर्यसुधर्मा और जम्बू __ख- दश अध्ययनों के नाम ३ वाणिज्यग्राम, तिपलाश चैत्य, आनन्द गाथापति ४ क- आनन्द की सम्पत्ति के तीन विभाग ख- चार व्रज आनन्द का समाजिक जीवन आनन्द की पत्नि शिवानन्दा कोल्लाक सन्निवेश आनन्द के स्वजन है क- भ० महावीर का समवशरण ख- राजा कौणिक (जितशत्रु) का धर्मश्रवणार्थ गमन भगवत् धर्मश्रवणार्थ आनन्द का जाना भ० महावीर की धर्मकथा आनन्द की व्रत ग्रहण करने की अभिलाषा प्रथम अणुव्रत द्वितीय अणुव्रत तृतीय अणुव्रत चतुर्थ अणुव्रत पंचम अणुव्रत चतुष्पद परिमाण 16 ० or mo ur 9 Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासक दशा-सूची ४७० अ०१ सू०४४ २१ २५ २७ २६ ३ १६ क्षेत्रवास्तु परिमाण शकट परिमाण वाहन परिमाण २२ क- सप्तम उपभोग-परिमाण व्रत ख- उपवस्त्र (अंगोछा) परिमाण दन्तधावन के लिए दातुन का परिमाण फलों का परिमाण अभ्यंग (तैल आदि का मर्दन) परिमाण २६ उबटन का परिमाण स्नान (मार्जन) का परिमाण वस्त्र परिमाण विलेपन परिमाण पुष्प परिमाण ३१ आभरण परिमाण धूप परिमाण भोजन परिमाण भक्ष्य परिमाण ओदन परिमाण सूप परिमाण घृत परिमाण शाक परिमाण मधुर पदार्थ परिमाण व्यंजन (जेमन) परिमाण पानी परिमाण मुखवास परिमाण अनर्थदण्ड विरमण व्रत सम्यक्त्त्व के पांच अतिचार WWW m mm ३७ ३६ ४३ Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०१ सू० ६२ ४७१ उपासक दशा-सूची cK W ४५ प्रथम अणुव्रत के पांच अतिचार द्वितीय अणव्रत के पांच अतिचार तृतीय अणुव्रत के पांच अतिचार चतुर्थ अणुव्रत के पांच अतिचार पंचम अव्रणुत के पांच अतिचार षष्ठ दिग्वत के पांच अतिचार ५१ क- सप्तम उपभोग-परिभोग व्रत के पांच अतिचार ख- पन्द्रह कर्मादान अष्टम अनर्थदण्ड व्रत के पांच अतिचार नवम सामायिक व्रत के पांच अतिचार दशम देशावकासिक व्रत के पांच अतिचार एकादशम पोषध व्रत के पांच अतिचार द्वादशम यथासंविभाग व्रत के पांच अतिचार संलेखना के पांच अतिचार क- आनन्द द्वारा द्वादश विध श्रावक धर्म की स्वीकृति ख- सम्यक्त्व ग्रहण ग- सम्यक्त्वी के ६ आगार घ- आनन्द का स्वगृह गमन ङ- स्वभार्या शिवानन्दा को द्वादशविध गृहस्थधर्म स्वीकार करने, के लिये प्रेरणा ५६ भ० महावीर के दर्शनार्थ शिवानन्दा का जाना भ० महावीर की धर्मकथा शिवानन्द का व्रत ग्रहण करना क- आनन्द के सम्बन्ध में गौतम स्वामी की जिज्ञासा और भ० महावीर द्वारा समाधान ख- आनन्द का सौधर्मकल्प के अरुणाभ विमान में उत्पन्न होगा घ- वहाँ आनन्द की चार पल्य की स्थिति होगी ४. rror Ww. Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ उपासक दशा-सूची ४७२ अ०१ सू०८८ भ० महावीर का विहार आनन्द का ज्ञानार्जन एवं गृहधर्म की आराधना ६५ क- गृहस्थधर्म आराधना के चौदह वर्ष ख- पंदरहवें वर्ष में ज्येष्ठ पुत्र को गृहभार सौंप कर कोल्लाक सन्निवेश में ज्ञातकुल की पौषधशाला में निवृत्तिमय जीवन बिताने का संकल्प करना ६६-६७ ज्येष्ठपुत्र द्वारो आनन्द के आदेश की स्वीकृति ६८ आनन्द का कोल्लाक सन्निवेश की पौषधशाला में जाकर आराधना करना ६९-७० आनन्द का पडिमा आराधन ७१-७२ आनन्द की संलेखना आनन्द को अवधिज्ञान. अवधिज्ञान की सीमा ७४ भगवान महावीर का पुनरागमन. ७५ गौतमस्वामी का संक्षिप्त परिचय ७६-७७ गौतमस्वामी का भिक्षार्थ जाना ७८-८० गणधर गौतम का आनन्द के समीप पहँचना ८१ आनन्द ने अपने अवधिज्ञान की सूचना गौतम स्वामी को दी ८२-८३ गौतम का संदेह. ८४-८६ क- आनन्द के अवधिज्ञान के सम्बन्ध में भ० महावीर द्वारा गौतम के संदेह का समाधान ख- आनन्द से क्षमा याचना के लिए गौतम को भ० महावीर का आदेश क- आनन्द का बीस वर्ष का श्रमणोपासक जीवन ख- इग्यारह उपासक प्रतिमा की आराधना ग- आनन्द की अन्तिम आराधना, एक मास की संलेखना घ- सौधर्म कल्प के अरुण विमान में आनन्द का उत्पन्न होना ८८ क- आनन्द की आत्मा के सम्बन्ध में गौतम स्वामी की जिज्ञासा ८७ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०२ सू०१०६ ४७३ उपासक दशा-सूची ख- महावीर द्वारा समाधान-आनन्द की आत्मा का देवलोक से च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण द्वितीय कामदेव अध्ययन प्रथम उद्देशक ८६ उत्थानिका क- चम्पा नगरी, पूर्णभद्र चैत्य. जितशत्रु राजा ख- कामदेव गाथापति और भद्राभार्या ग- कामदेव की सम्पत्ति के तीन विभाग. ६ व्रज घ- भ० महावीर का समवसरण. आनन्द के समान कामदेव का व्रत ग्रहण ङ- ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब का भार सौंप कर कामदेव का धर्म आराधन ६१ मिथ्यादृष्टि देव का उपसर्ग ६२-६३ क- देवता द्वारा पिशाचरूप की सृष्टि. पिशाचरूप के प्रत्येक अङ्ग का वर्णन. ख- पिशाचरुपदेव द्वारा कामदेव की प्रथम वार परीक्षा कामदेव की दृढता पिशाचरूप देव द्वारा कामदेव की दूसरी वार परीक्षा ६६-६७ कामदेव की दृढ़ता देव द्वारा हस्तिरूप की सृष्टि. हस्तिरूप का वर्णन. हस्ति रूप देव द्वारा तिसरी वार कामदेव की परीक्षा ६६-१०१ कामदेव की दृढता १०२-१०७ क- देव द्वारा सर्प-रूप की सृष्टि. सर्परूप का वर्णन. ख- सर्परूप देव द्वारा कामदेव की चौथी वार परीक्षा १०८ कामदेव की दृढता से प्रसन्न देव का स्वरूप दर्शन १०६ देव द्वारा कामदेव की प्रशंसा और क्षमा प्रार्थना Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासक दशा-सूची ११० १११ ११२ ११३-११५ ११६ ११७ ११८ ११ १२२ १२३ १२४ १२०-१२१ क- कामदेव के सम्बन्ध में गौतम स्वामी जिज्ञासा ख- भ० महावीर का समाधान १२८-१३० १३१-१३४ ४७४ कामदेव द्वारा निरूपसर्ग प्रतिमा की पूर्ति भ० महावीर के समवसरण कामदेव का दर्शनार्थ जाना भ० महावीर द्वारा धर्मकथा, कामदेव की प्रशंसा. निग्रंथ निग्रंथियों को उपसर्ग के समय कामदेव के समान दृढ रहने के लिए प्रेरणा भ० महावीर से कामदेव के कुछ (अज्ञात) प्रश्न भ० महावीर का विहार अ०३ सू०१३४* कामदेव द्वारा इग्यारह उपासक प्रतिमाओं की आराधना कामदेव का बीस वर्ष का श्रमणोपासक जीवन, एक मास की संलेखना, अरुणाभ विमान में उपपात, चार पल्योपम की स्थिति तृतीय चुलिनी पिता अध्ययन प्रथम उद्देशक उत्थानिका - वाराणसी नगरी, कोष्ठक चैत्य जितशत्रु राजा क- चुलिनी पिता. श्यामा भार्या. सम्पति के तीन विभाग, आठ व्रज ख- भ० महावीर का समवसरण द्वादश व्रत ग्रहण कुटुम्ब से से विरक्ति. आराधना देव का उपसर्ग, चुलिनी पिता की दृढता, ज्येष्ठपुत्र को मारने की धमकी ज्येष्ठपुत्र के वध का दृश्य. चुलिनी पिता की दृढता देव द्वारा माता के प्राणहरण की धमकी से चुलिनी Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०४ सू०५४ १३५-१४४ १४५ १४६ १४५ १४८ १४६ १५०-१५३ १५३ १५४ ४७५ पिता का विचलित होना माता द्वारा चुलिनी पिता को आश्वासन चुलिनी पिता द्वारा प्रायश्चित ग्रहण चुलिनी पिता द्वारा उपासक प्रतिमाओं की आराधना चुलिनी पिता की अन्तिम आराधना. एक मास की संलेखना. अरुणप्रभ विमान में देव होना. चार पल्य की स्थिति, च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण उपासक दशा - सूची चतुर्थ सुरादेव अध्ययन प्रथम उद्देशक क- उत्थानिका — वाराणसी नगरी, कोष्ठक चैत्य, जितशत्रु राजा ख- सुरादेव गाथापति सम्पति के तीन भाग, छ व्रज, धन्ना भार्या ग- भ० महावीर का समवसरण द्वादश व्रत ग्रहण. कुटुम्ब निवृत्ति धर्माराधन देव द्वारा सुरादेव की परीक्षा. तीनों पुत्रों के वध का दृश्य... सुरादेव की दृढता देव द्वारा सोलह रोग उत्पन्न करने को धमकी से सुरादेव का विचलित होना धन्ना भार्या द्वारा सुरादेव को सान्त्वना सुदेव का प्रायश्चित्त, परिवार से निवृत्ति, प्रतिमाओं की आराधना. संलेखना. अरुणकान्त विमान में देव होना. चार पत्य की स्थिति. च्यवन महाविदेह में जन्म और निर्वाण Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासक दशा-सूची १५५ १५६-१५७ १५८-१६० १६१ १६२ १६३ १६४ १६५ ४७६ पंचम चुल्लशतक अध्ययन प्रथम उद्देशक क- उत्थानिका— आलभिका नगरी. संखवन उद्यान. जित शत्रु राजा ख- चुल्लशतक गाथापति सम्पति के तीन विभाग छ व्रज. बहुला भार्या ग- भ० महावीर का समवसरण. व्रतग्रहण देव द्वारा चुल्लशतक की परीक्षा. ज्येष्ठ पुत्र के वध का दृश्य. चुल्लशतक की दृढता. समस्त सम्पति को बाहर फेंक देने की धमकी से चुल्लशतक का विचलित होना. भार्या द्वारा सान्त्वना, प्रायश्चित्त, परिवार से पृथकत्व. उपासक प्रतिमाओं की आराधना संलेखना. अरुणश्रेष्ठ विमान में उत्पन्न होना. चार पल्य की स्थिति. च्यवन. महाविदेह में जन्म और निर्वाण. अ०५- ६सू० १६५ षष्ठ कुण्डकोलिक अध्ययन प्रथम उद्देशक क- उत्थानिका --- काम्पिल्यपुर नगर. जितशत्रु राजा. ख- कुण्डको लिक गाथापति पूषा भार्या. सम्पत्ति के तीन विभाग छ व्रज ग- भ० महावीर का समवसरण व्रतग्रहण. अशोक वाटिका में धर्माराधना देव द्वारा कुण्डकोलिक की परीक्षा. गौशालक के नियति सहस्राम्रवन उद्यान Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०७ सू०१८४ ४७७ उपासक दशा-सूची . १६६-१८६ १७० १७१-१७२ १७३-१७४ वाद की प्रशंसा. भ० महावीर के पुरुषार्थवाद की अवज्ञा कुण्डकोलिक द्वारा नियतिवाद का परिहार. पुरुषार्थ का प्रतिपादन परास्त देव का गमन भ० महावीर का समवसरण. कुण्डकोलिक का धर्मश्रवण भ० महावीर द्वारा निर्गन्थियों के सामने कुण्डकोलिक की . प्रशंसा कुण्डकोलिक का स्वस्थान गमन. भगवान महावीर का विहार चौदह वर्ष का कुण्डकोलिक का श्रमणोपासक जीवन. पंदरहवें वर्ष में पारिवारिक मोह का त्याग. उपासक प्रतिमाओं की आराधना. संलेखना. अरुणध्वज विमान में देव. चार पल्य की स्थिति. च्यवन. महाविदेह में जन्म. निर्वाण. १७५ १७६ १७७ १७८ १७६ सप्तम सद्दाल पुत्र अध्ययन प्रथम उद्देशक उत्थानिका-पोलासपुर नगर. सहस्राम्रवन. जितशत्रु राजा. आजीविकोपासक सद्दालपुत्र कुम्भकार. सम्पत्ति के तीन विभाग. एक व्रज. अग्नि भार्या मिट्टी के बर्तनों की ५०० दुकानें सद्दालपुत्र द्वारा अशोक बाटिका में आजीविक धर्म की आराधना महामाहण की पर्युपासना के लिये एक देव की ओर से सद्दालपुत्र को प्रेरणा १८० १८१ १८२ १८३-१८४ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०७ सू० २२२ उपासक दशा-सूची १८५- १८६ सद्दालपुत्र के मन में गोशालक के आने का संकल्प पैदा हुआ किन्तु दूसरे दिन भ० महावीर पधारे. धर्म कथा भ० महावीर की वंदना के लिये सद्दालपुत्र का अपनी अशोक वाटिका में गमन सद्दालपुत्र को धर्मकथा सुनाना भ० महावीर द्वारा सद्दालपुत्र को पूर्वदिन के देवागमन का वृतान्त सुनाना भ० महावीर से कुभ्मकारापण में कुछ दिन के लिये ठहरने की सद्दालपुत्र की विनती १९२-१६७ क- प्रत्यक्ष उदाहरणों से भगवान महावीर द्वारा नियतिवाद का खण्डन १८८ १८६-१६० १६१ १८७ १६८-२०७ २०८ २०६-२१४ २१८ २१६ गोशालक के प्रति सद्दालपुत्र का सद्व्यवहार २१५-२१७ क- भ० महावीर से विवाद करने के लिये सद्दालपुत्र की गोशालक को प्रेरणा २२० २२१-२२२ ४७८ ख- सद्दालपुत्र को बोध सद्दालपुत्र और अग्निमित्रा भार्या द्वारा द्वादश व्रत ग्रहण भ० महावीर का सहस्राम्रवन से बिहार सद्दालपुत्र को पुन: आजीविकोपासक बनाने के लिये गोशालक का प्रयत्न ख- भ० महावीर के सामर्थ्य और अपने असामर्थ्य का गोशालक द्वारा सोदाहरण प्रतिपादन गोशालक का गमन क- सद्दालपुत्र का चौदह वर्ष का श्रमणोपासक जीवन ख- पन्दरहवें वर्ष में परिवार से विरक्ति सद्दालपुत्र की एक देवद्वारा परीक्षा सर्ब पुत्रों के वध का दृश्य. सद्दालपुत्र की दृढता Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ उपासक दशा-सूची अ०८ सू०२४१ २२३-२२६ क- अग्निमित्रा के वध की धमकी से सद्दालपुत्र का विचलित होना ख- अग्निमित्रा द्वारा सद्दालपुत्र को सान्त्वना ग- सद्दालपुत्र की परिवार से विरक्ति. उपासक प्रतिमाओं की आराधना, संलेखना, अरुणभूत विमान में देव. चार पल्य की स्थिति. च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण २२६ अष्टम महाशतक अध्ययन प्रथम उद्देशक २२७ उत्थानिका-राजगृह नगर, गुणसील चैत्य, श्रेणिक राजा २२८ महाशतक गाथापति, सम्पत्ति के तीन विभाग, आठ व्रज महाशतक के रेवती प्रमुख तेरह भार्यायें २३० क- आठ कोटी सुवर्णमुद्रा रेवती को पितृकुल से प्राप्त धन और आठ व्रज ख- शेष बारह भार्याओं में से प्रत्येक के पास पितृकुल से प्राप्त एक एक कोटी सुवर्ण मुद्रा और एक एक ब्रज २३१-२३३ भ० महावीर का समवसरण, महाशतक का व्रत ग्रहण करना २३४-२३५ रेवती द्वारा छ सपत्नियों की शस्त्र प्रयोग और छ सप त्नियों की विषप्रयोग से हत्या रेवती की मद्य मांस आहार में आसक्ति राजगृह में अमारि [हिंसा निषेध] का डिण्डिम नाद २३८.२४० रेवती का पीहर से गायों के बछड़े मंगवाना तथा उनका मांस पकाकर खाना २४१ महाशतक का चौदह वर्ष का श्रमणोपासक जीवन, ज्येष्ठ पुत्र को गृहभार सौंपना, पोषधशाला में धर्म आराधना २३६ २३७ Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० सू०२६७ २४२-२४५ २५२ २५३ २५४ २५५-२६० २४६-२४८ क- उपासक प्रतिमाओं की आराधना ख- महाशतक को अवधि ज्ञान, संलेखना २४६-२५१ क- मदमस्त रेवती का पुनः महाशतक के समीप पोषधशाला पहुँचना तथा धर्म आराधना में बाधा पहुँचाना - ख- क्रुद्ध महाशतक ने कहा- - रेवती ! तेरी अलसरोग से मृत्यु होगी तथा तू प्रथम नरक में जावेगी भयभीत रेवती का प्रत्यागमन २६१ २६२ २६३ २६४ उपासक दशा-सूची कामुकी रेवती का महाशतक के प्रति कुत्सित व्यवहार महाशतक की दृढता २६५ ४८० रेवती का नरक गमन भ० महावीर का समवसरण भ० महावीर ने महाशतक के लिये गौतम के साथ संदेश भेजा कि रेवती को कहे गये अप्रिय सत्य का प्रायश्चित करो महाशतक का प्रायश्चित्त करना गौतम स्वामी का भ० महावीर के समीप पहुँचना भ० महावीर का विहार क- महाशतक का बीस वर्ष का श्रमणोपासक जीवन ख- महाशतक का अरुणावतंसक विमान में देव होना, चार पत्य की स्थिति, महाविदेह में जन्म और निवार्ण नवम नंदिनी पिता अध्ययन एक उद्देशक क- उत्थानिका - श्रावस्ती नगरी, कोष्ठक चैत्य, जितशत्रु राजा ख- नंदिनीपिता गृहस्थ, सम्पति के तीन विभाग, चार व्रज अश्विनी भार्या २६६-२६७ क- भ० महावीर का समवसरण Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपासकदशा-सूची ४८१ अ० १० सू०२७३ २६८ ख- नंदिनी पिता का व्रतग्रहण ग- भ० महावीर का विहार क- पंदरहवें वर्ष में ज्येष्ठ पुत्र को गृहभार सौंपना ख- उपासक प्रतिमाओं की आराधना ग- बीस वर्ष का श्रमणोपासक जीवन घ- अरुणगव विमान में उपपात, महाविदेह में जन्म और निर्वाण २७० दशम सालिही पिता अध्ययन __ एक उद्देशक क- उत्थानिका-श्रावस्ती नगरी, कोष्ठक चैत्य, जितशत्रु राजा ख- सालिही पिता गृहस्थ, सम्पत्ति के तीन विभाग, चार व्रज, फाल्गुनी भार्या क- भ० महावीर का समवसरण ख- सालिही पिता का द्वादश व्रत ग्रहण करना ग- पंदहरवें वर्ष में जेष्ठ पुत्र को गृहभार सौंपना ध- उपासक प्रतिमाओं की आराधना, संलेखना ङ- अरुणकील विमान में देव होना, चार पल्य की स्थिति, __च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण क- दसों श्रावको को पन्दरहवें वर्ष में विशिष्ट धर्म आरा धना का संकल्प ख- दसों श्रावकों का बीस वर्ष का श्रमणोपासक जीवन उपसंहार क- एक श्रुतस्कंध, दस अध्ययन, दस दिन में पठन ख- दो दिन में इस अंग का पूर्ण स्वाध्याय २७१ २७२ २७३ Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशाङ्ग में वर्णित तप मुक्तावली-तप १ से १५ तक तपश्चर्या, मध्य में एक-एक उपवास एक उपवास, १६ की तपश्चर्या, एक उपवास, १५ से एक तक तपश्चर्या प्रत्येक के मध्य में एक एक उपवास एक परिपाटी ११ मास १५ दिन तपश्चर्या के 8 मास १६ दिन । पारणा के ५६ दिन चार परिपाटी ३ वर्ष १० मास तपश्चर्या के ३ साल २ मास ४ दिन । पारणे के २३६ दिन रत्नावली-तप १-२-३ उपवास, ८ बेले, १ से १६ तपश्चर्या, ३४ बेले ८ बेले, १ से १६ तपश्चर्या, उपवास ३-२-१ । एक परिपाटी ४७२ दिन । तपश्चर्या ३८४ दिन, पारणा ८८ दिन चार परिपाटी ५ वर्ष, दो मास, २८ दिन । तपश्चर्या ४ साल, ३ माह, ६ दिन, पारणा ३५२ दिन कनकावली-तप १-२-३ उपवास, ८ तेले, १ से १६ तक तपश्चर्या प्रत्येक के मध्य में एक-एक उपवास ३४ तेले, १६ से एक तक तपश्चर्या प्रत्येक के मध्य में एक-एक उपवास ८ तेले, ३-२-१ उपवास एक परिपाटी-१ वर्ष, ५ मास, ६२ दिन तपश्चर्या १ वर्ष, २ मास, १४ दिन, पारणे के ८८ दिन चार परिपाटी-५ वर्ष, ६ मास, २६ दिन, पारणे के ३५२ दिन Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मकथानुयोगमय अन्तकृद्दशाङ्ग श्रुतस्कंध अध्ययन २३ लाख २८ हजार २०० अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण उपलब्ध मूल पाठ गद्य सूत्र गाथा सप्त सप्तमिका-तप प्रथम सप्ताह में एक-एक दात-यावत्-सप्तम सप्ताह में सात-सात दात । तपश्चर्या के दिन ४६, दात संख्या १६६ अष्ट अष्टमिका-तप प्रथम अठाह्न में एक-एक दात-यावत्-अष्टम अष्टाह्न में ८-८ दात तपश्चर्या के ६४ दिन, दात संख्या २८८. नवम-नवमिका-तप प्रथम नवाह्न में एक-एक दात आहार-यावत्-नवम नवाह्न में नो-नो दात आहार तपश्चर्या के ८१ दिन, दात्त संख्या ४०५ दशम-दशमिका-तण प्रथम दशाह्न में एक एक दात्त आहार-यावत्-दशम दशाह्न में दसदस दात्त आहार, तपश्चर्या १०० दिन, दात संख्या ५५० Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ लघुसिंह निष्क्रीडित-तप एक से 8 तक तपश्चर्या, मध्य में ८, ६ से एक तक तपश्चर्या एक परिपाटी–६ मास ७ दिन, तपश्चर्या ५ मास ४ दिन पारणे ३३ दिन चार परिपाटी दो वर्ष २८ दिन, तपश्चर्या १ साल ८ मास १६ दिन पारणे के १३२ दिन महासिंह निष्क्रीडित-तप एक से १६ तक तपश्चर्या, प्रत्येक के मध्य में पूर्व तप की पुनरावृत्ति । १६ से एक तक तपश्चर्या, प्रत्येक के मध्य में पूर्व तप की पुनरावृत्ति एक परिपाटी-१ वर्ष, ६ मास, १७ दिन तपश्चर्या १ वर्ष, ४ मास, १७ दिन, पारणे के ६१ दिन चार परिपाटी ६ वर्ष, २ मास, १२ दिन तपश्चर्या ५ वर्ष, ६ मास, ८ दिन, पारणे के २४४ दिन लघु सर्वतोभद्र तप एक परिपाटी १०० दिन । तपश्चर्या के ७५ दिन, पारणे के २५ दिन चारपाटी ४०० दिन । तपश्चर्या के ३०० दिन, पारणे के १०० दिन महा सर्वतोभद्र तप एक परिपाटी २४५ दिन । तपश्चर्या १६६ दिन, पारणे के ४६ दिन चार परिपाटी २ वर्ष, ८ मास, २० दिन । तपश्चर्या २ साल ४ दिन पारणे के १६६ दिन भद्रोत्तर तप एक परिपाटी २०० दिन । तपश्चर्या १७५ दिन, पारणे के २५ दिन चार परिपाटी २ वर्ष, २ मास, २० दिन । तपश्चर्या १ साल, २१ मास १० दिन, पारणे के १०० दिन आयम्बिल वर्धमान-तप १ से १०० तक आयम्बिल, मध्य में एक-एक उपवास तपश्चर्या काल १४ वर्ष, ३ मास, २० दिन Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशाङ्ग विषय-सूची एक श्रुतस्कंध १ क- उत्थानिका प्रथम वर्ग ख- दस अध्ययनों के नाम प्रथम गौतम अध्ययन ग- उत्थानिका-द्वारिका वर्णन. रैवतक पर्वत. नन्दनवन उद्यान. सुरप्रिय यक्षायतन. अशोक वृक्ष ध- कृष्ण वासुदेव वर्णन. द्वारिका वैभव ङ.- अंधकवृष्णी राजा. धारिणी रानी. गौतमकुमार का आठ कन्याओं के साथ पाणिग्रहण. दहेज. च- भ० अरिषनेमी का समवसरण. प्रवचन. गौतमकुमार को वैराग्य. दीक्षा. इग्यारह अंगों का अध्ययन, तपाराधन. भ० अरिपनेमी का विहार गौतमकुमार का पडिमा आराधन गुणरत्न तप का आराधन. अन्तिम साधना शत्रुञ्जय पर्वत पर एक महिने की संलेखना बारह वर्ष का श्रमण जीवन. निर्वाण. २ क- वृष्णी पिता. धारिणी माता. द्वितीय समुद्र अध्ययन तृतीय सागर चतुर्थ गंभीर पंचम स्तिमित Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशा-सूची ४८६ वर्ग२-३ षष्ठ अचल अध्ययन सप्तम कंपिल अष्टम अक्षोभ नवम प्रसेनजित् दशम विष्णु द्वितीय वर्ग १ क- उत्थानिका-वृष्णी पिता. धारिणी माता प्रथम अक्षोभ अध्ययन द्वितीय सागर तृतीय समुद्र चतुर्थ हिमवंत पंचम अचल धरण सप्तम पूरण - अष्टम आभचन्द्र " ख- गुणरत्न तप. सोलह वर्ष का श्रमण जीवन. अन्तिम आराधना शत्रुञ्जय पर्वत पर, एक मास की संलेखना. सिद्धपद की प्राप्ति. तृतीय वर्ग ४ क. उत्थानिका, तेरह अध्ययनों के नाम प्रथम अनीयश अध्ययन ख- उत्थानिका-भद्दिलपुर नगर. श्रीवन उद्यान. नाग गाथापति सुलसा भार्या. अनियश कुमार. अध्ययन. बत्तीस कन्याओं से पाणिग्रहण: दहेज. षष्ठ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८७ वर्ग ३ अ०८ अन्तकृद्दशा-सूची ग- भ० अरिपनेमी का समवसरण. प्रवचन. कुमार को वैराग्य. प्रव्रज्या-चौदहपूर्व का अध्ययन. बीस वर्ष का श्रमण जीवन. शत्रुञ्जय पर्वत पर अन्तिम साधना. एक मास की संलेखना. सिद्ध पद की प्राप्ति. उपसंहार. घ- द्वितीय अनन्तसेन अध्ययन तृतीय अनिहत चतुर्थ देवय। षष्ठ शत्रुञ्जय सप्तम सारण ५ क- द्वारिका नगरी. वसुदेव राजा. सारण कुमार. पचास कन्याओं से एक साथ पाणिग्रहण. दहेज. चौदह पूर्व का अध्ययन. बीस वर्ष का श्रमण पर्याय. शत्रुञ्जय पर्वत पर अन्तिम आराधना. सिद्ध पद की प्राप्ति विदु पंचम अष्टम गजसुकुमार अध्यन ६. क- उत्थानिका-द्वारिका. भ० अरिपनेमी का समवसरण. अतेवासी ६ अणगार. यावज्जीवन छट्ठ छ8 करने की प्रतिज्ञा. सहस्राम्रवन से तीन संघाटकों का भिक्षा के लिए गमन (दो श्रमणों का एक संघाटक) तीनों संघाटकों का क्रमशः देव की महारानी के यहाँ जाना. देवकी महारानी के संदेह की निवृत्ति. भ० अरिषनेमी की वंदना के लिये देवकी महारानी का जाना. ख- पोलासपुर में कही हुई अतिमुक्त मुनि की भविष्यवाणी के प्रति ___ महारानी का संदेह. ग- भ० अरिष्टनेमी द्वारा संदेह का निवारण घ- मृतवत्सा सुलषा भार्या का हरिण गवेषी देवाराधना का कथन. Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशा-सूची ४८८ वर्ग ३ अ०६ ङ- देवकी महारानी का आर्तध्यान. श्रीकृष्ण का आश्वासन च- श्री कृष्ण का अपमभक्त तप. हरिणगवेषी देव का आराधन छ- हरिणगवेषी का आश्वासन ज- गजसुकुमार का जन्म. नामकरण झ- चार वेदों का पारंगत सोमिल ब्राह्मण. सोमश्री ब्राह्मणी. सोमा पुत्री ज- सोमा की कन्दुक क्रीडा ट- भ० अरिहनेमी का समवसरण. प्रवचन ठ- श्रीकृष्ण के साथ गजसुकुमार का गमन ण- गजसूकूमार का वैराग्य. श्रीकृष्ण द्वारा गजसूकुमार का राज्या भिषेक त- गज सुकुमार की प्रबज्या, एक रात्रि की महापडिमा का आरा, . धन. सोमिलद्वारा उपसर्ग. निर्वाण. देवताओं द्वारा देहसंस्कार. केवलज्ञान तथा निर्वाण का महोत्सव थ- भगवत्वंदना के लिये श्रीकृष्ण का निर्गमन. मार्ग में एक वृद्ध पुरुष पर अनुकम्पा करना एवं सहयोग देना. द- गजसुकुमार के लिए भगवान से प्रश्न. भगवान का यथार्थ कथन. भातृघातक की जिज्ञासा. भगवान द्वारा संकेत ... ध- वियोग व्यथित श्री कृष्ण का रथ्याओं में होकर स्वस्थान गमन करते हुए सोमिल को देखना, सोमिल की मृत्यु, भूमि का परिमार्जन नवम सुमुख अध्ययन . ७ क- उत्थानिका-द्वारिका नगरी. बलदेव राजा. धारिणी रानी. सुमुख कुमार. पचास कन्याओं के साथ पाणिग्रहण. दहेज ख- भ० अरिनेमी का समवसरण, प्रवचन, सुमुख कुमार को वैराग्य. प्रव्रज्या. बीस वर्ष का साधुजीवन. शत्रुञ्जय पर्वत पर अंतिम साधना. सिद्धपद की प्राप्ति Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग ४ अ०७ . ४८६ अन्तकृद्दशा-सूची दशम दुमुख अध्ययन ग- एकादशम कपदारक अध्ययन द्वादशम दारुक अध्ययन घ. वासुदेव राजा. धारिणी रानी त्रयोदशम अनाधृष्टी अध्ययन ङ-. वसुदेव राजा. धारिणी रानी. च- उपसंहार चतुर्थ वर्ग ८ क- उत्थानिका-दस अध्ययनों के नाम प्रथम जालि अध्ययन ख- उत्थानिका-द्वारिका नगरी. वसुदेव राजा. धारणी रानी. जाली कुमार. पचास कन्याओं के साथ विवाह. दहेज ग- भगवान अरिष्टनेमी का समवसरण. प्रवचन. जाली कुमार को वैराग्य. प्रत ज़्या. द्वादशाङ्गों का अध्ययन. सोलह वर्ष का साधु जीवन. शत्रुञ्जय पर्वत पर समाधिमरण. निर्वाण की प्राप्ति. घ- द्वितीय मयाली अध्ययन तृतीय उपयाली पुरिससेन पंचम वारिसेन षष्ठ प्रद्युम्न ङ- श्री कृष्ण पिता. रुक्मिनी माता. सप्तम शाम्ब अध्ययन च- श्रीकृष्ण पिता. जांबवती माता चतुर्थ . Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशा-सूची ४६० अष्टम अनिरुद्ध अध्ययन छ- प्रद्युम्न पिता. वैदर्भी माता नवम सत्यनेमी अध्ययन दशम दृढनेमी ज - समुद्र विजय पिता . सिवा माता झ- उपसंहार ६ क - उत्थानिका - द्वारिका नगरी "" पंचम वर्ग प्रथम पद्मावती अध्ययन ख- उत्थानिका-द्वारिका नगरी. श्री कृष्ण वासुदेव. पद्मावती रानी ग- भ० अरिष्टनेमी का समवसरण श्री कृष्ण का सपरिकर दर्शनार्थ वर्ग ५ अ० १ गमन, प्रवचन घ- भ० अरिष्टनेमी से द्वारिका के विनाश के सम्बन्ध में श्री कृष्ण का प्रश्न ङ- भगवान का उत्तर च- श्रीकृष्ण की चिन्ता प्रव्रज्याभिलाषा छ- भ० अरिष्टनेमी द्वारा प्रव्रज्या निषेध का कारण कथन ज - भ० अरिष्टनेमी से श्रीकृष्ण का स्वयं के सम्बन्ध में प्रश्न. झ - भ० अरिष्ट नेमी का उत्तर. श्रीकृष्ण की चिन्ता ञ - भ० अरिष्टनेमी की भविष्यवाणी से श्री कृष्ण की प्रसन्नता. ( जम्बूद्वीप-भरत. आगामी उत्सर्पिणी. पुण्ड्र जनपद, शतद्वारा नगरी. अमम अरिहन्त ) ट- श्रीकृष्ण का द्वारिका के विनाश के सम्बन्ध में तथा प्रजाजनों को प्रव्रजित होने के लिये प्रेरणा देने, प्रव्रजित होने वालों के परि वारों को संरक्षण देने और दीक्षाभिलाषियों का दीक्षा महोत्सव करने के सम्बन्ध में घोषणा करने का आदेश Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व०६ अ०१ ४६१ . अन्तकृद्दशा-सूची ठ- पद्मावती देवी की यक्षिणी आर्या के समीप प्रव्रज्या. इग्यारह अंगो का अध्ययन. तपश्चर्या का आराधन. बीस वर्ष का श्रमणी जीवन एक महिने की संलेखना. शिवपद की प्राप्ति द्वितीय गोरी अध्ययन तृतीय गंधारी चतुर्थ लक्षणा पंचम सुसोमा षष्ठ जांबवती , सप्तम सत्यभामा , अष्ठम रुक्मिीणी , नवम मूलश्री अध्ययन ११ क- उत्थानिका, द्वारिका नगरी, रैवतक पर्वत, नन्दनवन, कृष्ण वासुदेव, जांबवत्ती देवी, शाम्ब कुमार, मूल श्री भार्या, भ० अरिष्ट नेमी का समवसरण-यावत्-सिद्धगति ख दशम मूलदत्ता अध्ययन षष्ठ वर्ग क- उत्थानिका, सोलह अध्ययनों के नाम ख प्रथम मकाई अध्ययन उत्थानिका, राजगृह, गुणशील चैत्य, श्रेणिक राजा, मकाई गाथापति ग- भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन. मकाई गाथापति को वैराग्य. ज्येष्ठ पुत्र को गृहभार सौंप कर दीक्षित होना, इग्यारह अंगों का अध्ययन. गुणरत्न तप की आराधना. सोलह वर्ष का साधु जीवन, विपुल गिरिपर समाधि मरण, शिवपद Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशा - सूची ४६२ द्वितीय किकिम अध्ययन तृतीय मोग्गर पाणी अध्ययन १३ क - उत्थानिका - राजगृह, गुणशील चैत्य, श्रेणिक राजा, चेलना देवी ख- अर्जुन माली, बंधूमती भार्या, पुष्पाराम, मोग्गरवाणि यक्ष का यक्षायतन. सहस्र पल का मुद्गर ग- ललिता गोष्ठी वर्ग६ अ०३ घ- अर्जुन का बंधुमती के साथ पुष्पचयन के लिये जाना ङ - ललिता गोष्ठी का अशुभ संकल्प च - बंधुमति भार्या सहित अर्जुनमाली द्वारा यक्ष पूजा छ - ललिता गोष्ठी का अर्जुन और बंधुमती के साथ दुर्व्यवहार ज- यक्ष से अर्जुन की प्रार्थना, बन्धन से मुक्ति - क्षाविष्ट अर्जुन द्वारा ललिता गोष्ठी और बंधुमती के प्राणों का संहार ञ - अर्जुन के उपसर्ग से बचने के लिये राजगृह की सुरक्षा व्यवस्था ट- अर्जुन द्वारा ६ मास पर्यंत ६ पुरुषों और एक स्त्री का प्रतिदिन संहार ठ- भ० महावीर का समवसरण ड- भगवान् की वंदना के लिये श्रमणोपासक सुदर्शन के जाने का दृढ संकल्प - मार्ग में अर्जुन का उपसर्ग, उपसर्ग निवृति पर्यन्त सुदर्शन का कायोत्सर्ग, उपसर्ग निवृत्ति ण- सुदर्शन और अर्जुन का साथ साथ भगवद् वंदना के लिये जाना धर्मश्रवण त- अर्जुन का वैराग्य, प्रव्रज्याग्रहण, यावज्जीवन छुट्ट छुट्ट करने का अभिग्रह थ - अर्जुन मुनि की भिक्षाचर्या, आक्रोश परीषह, राजगृह से भ० महावीर का विहार Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व०६अ०१४ ४६३ अन्तकृद्दशा - सूची द- अर्जुन मुनि की ६ मास की श्रमण पर्याय, पन्द्रह दिन की संलेखना, सिद्धपद की प्राप्ति चतुर्थ काश्यप अध्ययन १४ क - सोलह वर्ष की श्रमण पर्याय, विपुलगिरि पर समाधिमरण पंचम क्षेमक अध्ययन ख- काकंदी नगरी, विपुलगिरि पर समाधिमरण ग घ- साकेत नगर, बारह वर्ष का श्रमण पर्याय, विपुलगिरि पर समाधि मरण, शिव पद ङ च ज झ दशम सुदर्शन अध्ययन छ- वाणिज्य ग्राम, दुतिपलाश चैत्य, पाँच वर्ष का निर्ग्रथ जीवन विपुलगिरि पर समाधिमरण ञ षष्ठ धृतिघर अध्ययन सप्तम कैलाश श्रध्ययन ट अष्टम हरिचंदन अध्ययन नवम बारलक अध्ययन राजगृह, बारह वर्ष का श्रमण पर्याय, विपुलगिरि पर समाधिमरण, सिद्धपद एकादशम पूर्णभद्र अध्ययन द्वादशम सुमनभद्र अध्ययन त्रयोदशम सुप्रतिष्ठ अध्ययन श्रावस्ति नगरी, सत्तावीस वर्ष का श्रमण-जीवन, विपुलगिरि पर निर्वाण चतुर्दशम मेघ अध्ययन राजगृह-यावत्-विपुलगिरि पर निर्वाण Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशा-सूची ४६४ वर्ग७ अ०४ पंचदशम अतिमुक्त अध्ययन पोलाशपुर नगर, श्रीवन उद्यान, विजय राजा, श्रीदेवी, अतिमुक्त कुमार, भ० महावीर का समवसरण, गोतम गणधर का भिक्षा के लिए जाना, इन्द्र स्थान में अतिमुक्त कुमार का बच्चों के साथ खेलना, गौतम गणधर को देखना, भिक्षा के लिये अन्तः पुर में लेजाना, श्रीदेवी का भिक्षा देना, गौतम गणधर के साथ अतिमुक्त का भ० महावीर के समीप जाना, धर्म श्रवण करना प्रव्रजित होने के लिये आज्ञा प्राप्त करना, वैराग्य की परीक्षा अतिमुक्त का राज्याभिषेक, अतिमुक्तका दीक्षा महोत्सव इग्यारह अंगों का अध्ययन, गुणरत्न तप की आराधना, विपुल गिरि पर निर्वाण षोडष अलक्ष अध्ययन वाराणसी नगरी, काम महावन चैत्य, अलक्ष राजा, भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन. अलक्ष राजा को वैराग्य. ज्येष्ठपुत्र को राज्य देकर दीक्षा लेनाः इग्यारह अंगों का अध्ययन-यावत्- विपुलगिरि पर निर्वाण सप्तम वर्ग प्रथम नंदा अध्ययन १५- क- उत्थानिका-- राजगृह, गुणशील चैत्य, श्रेणिक राजा, नंदारानी भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन. नंदादेवी को वैराग्य. प्रव्रज्या. इग्यारह अंगों का अध्ययन, बीस वर्ष का श्रमणी जीवन, सिद्ध गति द्वितीय नंदमती अध्ययन तृतीय नंदोत्तरा चतुर्थ नन्दश्रेणिका , . Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग अ०४ ४६५ अन्तकृद्दशा-सूची पंचम महका अध्ययन षष्ठ सुमरुता सप्तम महामरुता अष्टम मरुदेवा नवम शुभद्रा एकादशम सुजाता द्वादशम सुमना त्रयोदशम भूतदिन्ना अष्टम वर्ग १६ क- उत्थानिका ---दश अध्ययनों के नाम प्रथम काली अध्ययन ख- उत्थानिका, चंपा नगरी पूर्णभद्र चैत्य, कोणिक राजा, काली देवी माता. भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन. काली देवी को वैराग्य. प्रव्रज्या. इग्यागह अंगों का अध्ययन, आर्या चन्दन बाला से आज्ञा प्राप्त करके रत्नावली तप की आराधना करना. आठ वर्ष का श्रमणी जीवन. एक महिने की संलेखना, सिद्ध पद की प्राप्ति द्वितीय सुकाली अध्ययन कनकावली तप की आराधना तलीय महाकाली अध्ययन क्षुद्र सिंह निष्क्रीडित तप की आराधना चतुर्थ कृष्णा अध्ययन १६ महासिंह निष्क्रीडित तप की आराधना . १८ Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तकृद्दशा-सूची वर्ग८ अ०१० २० पंचम सुकृष्णा अध्ययन सप्त सप्तमिका भिक्षु प्रतिमा की आराधना अष्ट अमिका भिक्षु प्रतिमा की आराधना नव नवमिका भिक्षु प्रतिमा की आराधना दस दशमिका भिक्षु प्रतिमा की आराधना षष्ठ महाकृष्णा अध्ययन क्षुद्र सर्वतोभद्र प्रतिमा की आराधना सप्तम वीरकृष्णा अध्ययन महा सर्वतोभद्र प्रतिमा की आराधना __ अष्टम रामकृष्णा अध्ययन भद्रोतर प्रतिमा की आराधना नवम पितृसेनकृष्णा अध्ययन मुक्तावली तप की आराधना दशम महासेनकृष्णा अध्ययन आयंबिल वर्धमान तप की आराधना. सत्रह वर्ष का श्रमणी जीवन. एक मास की संलेखना, सिद्धपद उपसंहार- एक श्रुत स्कंध. आठ वर्ग, आठ दिनों में पठन आठ वर्गों के उद्देशक. Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो तित्थयराणं धर्मकथानुयोगमय अनुत्तरोपपातिकदशाङ्ग श्रुतस्कन्ध वर्ग अध्ययन उद्देशक पद उपलब्ध पाठ गद्य सूत्र पद्य 9 ३ ३३ १० ४६ लाख ८ हजार १६२ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण किं सक्का काउं जे, जं णेच्छह ओसह मुहा पाउं । जिणवयणं गुणमहुर, विरेयणं सव्वदुक्खाणं ॥ पंचेव य उज्झिऊणं, पंचेव य रक्खिऊण भावेण । कम्मरयविप्पमुक्का, सिद्धिवरमणुत्तर सिद्धिवरमणुत्तर' जंति ॥ Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAILAIMIMARILALLANAKAITRINA K AILY तएणं से सेणिय राया समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासीप्रश्न-इमासि णं भंते ! इंदभूइ-पामोक्खाणं चोद्दसण्हं समण साहस्सीणं कयरे अणगारे महादुक्करकारए चेव ? उत्तर-एवं खलु सेणिया! इमासि इंदभूइ-पामोक्खाणं चोद्दसण्हं समणसाहस्सीणं धणे अणगारे महादुक्करकारए चेव महा णिज्जरयराए चेव । Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुत्तरोपपातिक दशाङ्ग विषय-सूची एक श्रुतस्कंध प्रथम वर्ग २ क- उत्थानिका दश अध्ययनों के नाम प्रथम जालि अध्ययन ख- उत्थानिका- राजगृह. गुणशील चैत्य श्रेणिक राजा धारिणी रानी. जाली कुमार. आठ कन्याओं के साथ पाणी ग्रहण. दहेज. ग- भ० महावीर का समवसरण प्रवचन. जालिकुमार को वैराग्य. प्रव्रज्या - इग्यारह अंगों का अध्ययन. गुणरत्न तप की आराधना. सोलह वर्ष का श्रमण जीवन, विपुल गिरि पर समाधिमरण. विजय विमान में उत्पत्ति निर्वाण कायोत्सर्ग. आचार भांडों का लाना. घ- जालि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में भ० गौतम की जिज्ञासा ङ - भ० महावीर का उत्तर. बत्तीस सागर की स्थिति. च्यवन. महाविदेह में जन्म और सिद्धपद की प्राप्ति. द्वितीय मयालि अध्ययन च - १६ वर्ष का श्रमण जीवन, वैजयंत विमान में उत्पत्ति तृतीय उवयालि अध्ययन १६ वर्ष का श्रमण जीवन, जयंत विमान में उत्पत्ति चतुर्थ परिससेण अध्ययन १६ वर्ष का भ्रमण जीवन, अपराजित विमान में उत्पत्ति Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुत्तर०सूची ५०० वर्ग२ अ०४ पंचम वारिसेण अध्ययन १६ वर्ष का श्रमण जीवन सवार्थसिद्ध विमान में उत्पत्ति षष्ठ दीर्घदत्त अध्ययन छ- बारह वर्ष का श्रमण पर्याय. सवार्थसिद्ध विमान में उत्पत्ति सप्तम लष्टदंत अध्ययन बारह वर्ष का श्रमण पर्याय. अपराजित विमान में उत्पत्ति ___अष्टम वेहल्ल अध्ययन चेलना माता. बारह वर्ष का श्रमण पर्याय. जयंत विमान में उत्पत्ति नवम वेहास अध्ययन चेलना माता, पांच वर्ष का श्रमण पर्याय वेजयंत विमान में उत्पत्ति दशम अभय अध्ययन नंदा माता. पांच वर्ष का श्रमण जीवन, विजय विमान में उत्पत्ति द्वितीय वर्ग २ क- उत्थानिका-तेरह अध्ययनों के नाम प्रथम दीर्घसेन अध्ययन द्वितीय महासेन अध्ययन उत्थानिका-राजगृह. गुणशीलचैत्य. श्रेणिक राजा. धारिणी देवी. दीर्घसेन कुमार. भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन. दीर्घसेन कुमार को वैराग्य-प्रव्रज्या-सोलह वर्ष की श्रमण-पर्याय. एक मास की संलेखना-यावत्-विजय विमान में उत्पत्ति. तृतीय लष्टदंत अध्ययन चतुर्थ गढदंत " विजय विमान में उत्पत्ति Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -वर्ग ३ अ० १ जयंत विमान में उत्पत्ति पंचम शुद्धदंत अध्ययन षष्ठ हल्ल अध्ययन ५०१ सप्तम द्रुम अध्ययन अष्टम द्रुमसेन अध्ययन अपराजित विमान में उत्पत्ति नवम महाद्रुमसेन अध्ययन दशम सिंह अध्ययन एकादशम सिंहसेन अध्ययन द्वादशम महासिद्धसेन अध्ययन त्रयोदशम पुण्यसेन अध्ययन सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पत्ति तृतीय वर्ग ३ क - दस अध्ययनों के नाम प्रथम धन्य अध्ययन ख- उत्थानिका. काकंदी नगरी सहस्राम्रवन उद्यान जितशत्रु राजा. भद्रा सार्थवाही. धन्यपुत्र. बत्तीस कन्याओं से पाणिग्रहण. दहेज. अनुत्तर०सूची ग- भगवान् महावीर का समवसरण धन्य कुमार को वैराग्य- दीक्षा महोत्सव, यावज्जीवन छट्ट तप. पारणे में सर्वथा नीरस अन्न लेने की प्रतिज्ञा घ- काकंदी से विहार, ग्यारह अंगों का अध्ययन ङ - धन्य अणगार के तपोमय देह का ( पैर से लेकर मस्तक तक ) वर्णन. क- राजगृह. गुणशील चैत्य भगवान् महावीर का समवसरण. श्रेणिक राजा का आगमन. प्रवचन. Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग ३ अ०१० ५०२ अनुत्तर० सूची ख- श्रेणिक की चौदह हजार श्रमणों में अति उत्कृष्ट तपश्चर्या करने वाले श्रमण के जानने की जिज्ञासा. भ० महावीर द्वारा धन्य अणगार का नाम निर्देश, धन्य अणगार को श्रेणिक का वंदन . ग- श्रेणिक का स्वस्थान गमन ५ क- स्थविरों के साथ धन्य अणगार की विपुल गिरि पर अन्तिम आराधना. एक मास की संलेखना समाधिमरण. नव मास का श्रमण जीवन. सर्वार्थसिद्ध विमान में उत्पत्ति. ख- स्थविरों द्वारा धन्य अणगार के आचार भांड का लाना ग- च्यवन. महा विदेह में जन्म सिद्ध पद की प्राप्ति. उपसंहार. द्वितीय सुनक्षत्र अध्ययन ६ क - काकंदी. श्रमण पर्याय बहुत वर्षों का ख- तृतीय ऋषिदास अध्ययन चतुर्थ पेल्लक अध्ययन राजगृह बहुत वर्षों का श्रमण पर्याय ग- पंचम रामपुत्र अध्ययन षष्ठ चन्द्र अध्ययन साकेत बहुत वर्षों का श्रमण पर्याय ख- सप्तम पृष्ठिम अध्ययन अष्टम पेढालपुत्र अध्ययन वाणिज्य ग्राम - श्रमण पर्याय बहुत वर्षों का ङ- नवम पोट्टिल अध्ययन हस्तिनापुर . श्रमण पर्याय बहुत वर्षों का च - दशम वेहल्ल अध्ययन राजगृह. पिता द्वारा दीक्षा महोत्सव. ६ मास की श्रमण पर्याय छ- उपसंहार. Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो जिणाणं चरणानुयोगमय प्रश्नव्याकरणांग श्रुतस्कंध अध्ययन उद्देशक पद उपलब्ध पाठ गद्य सूत्र पद्य सूत्र ६२ लाख १६ हजार २३०० लोक परिमाण ० श्राश्रव श्रुतस्कंध अध्ययन ५ उद्देशक ५ सूत्र २० गाथा ३ संवर श्रुतस्कंध अध्ययन ५ अध्ययन सूत्र १० गाथा ६ Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवती अहिंसा एसा जा सा भीयाण विव सरणं पक्खीणं पिव गमणं तिसियाणं पिव सलिलं खुहियाणं पिव असणं समुद्दमज्झे व पोतवहणं चउप्पयाणं व आसमपयं दुहटियाणं च ओसहिबलं अडवीमज्झे विसत्थगमणं एत्तो विसिटठतरिका अहिंसा सव्वभूय खेमकरी Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्नव्याकरणांग विषय-सूची प्रथम आश्रव श्रुतस्कंध प्रथम प्राणातिपात अध्ययन एक उद्देशक १ क- उत्थानिका ख- नमस्कार मन्त्र ग- आश्रव और संवर का वर्णन करने की प्रतिज्ञा घ- पांच प्रकार का आश्रव ङ - प्राणातिपात के पांच विभाग च- प्राणातिपात के स्वरूप परिचायक बाबीस पर्यायवाची २ प्राणातिपात के तीस नाम ३ क जिन जीवों की हिंसा की जाति है ख- जलचर जीव ग- स्थलचर जीव घ- उरपुर जीव ङ. भुजपुर जीव च - खेचर जीव छ- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय हिंसा के प्रयोजन ज - स्थावर जीवों की हिंसा ञ - पृथ्वीकाय की हिंसा के प्रयोजन ट - अपकायकी हिंसा के प्रयोजन 33 37 - तेजस्काय की ड- वायुकाय की 37 "3 71 33 Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्न० सूची श्रु०१ अ०२ सू०७० ढ- वनस्पतिकाय की हिंसा के प्रयोजन ण- हिंसक की मानसिक स्थिति त- हिंसा के कुछ और प्रयोजन क- हिंसक वन्य जातियां ख- म्लेच्छ जातियां ग- हिंसा का फल घ- हिंसकों की नरक गति ङ- नरक का वर्णन च- विविध प्रकार की नरक वेदना छ- नरक के पश्चात् हिंसकों की तिर्यंच गति ज- तिर्यंच गति में विविध प्रकार की वेदना झ- नरक से निकलने के पश्चात् हिंसकों की मनुष्य गति अ- मनुष्य गति में विविध प्रकार की वेदना ट- प्रथम अधर्म द्वार का उपसंहार द्वितीय मृषावाद अध्ययन-एक उद्देशक मृषावाद का स्वरूप मृषावाद के तीस नाम ७ क- विविध प्रकार के व्यापारों के लिए मृषावाद ख- कुदर्शनों की सिद्धी के लिये मृषावाद ग- दुराचारों के सेवन के लिये " घ- चार प्रकार के प्रमुख मृषावाद ङ- प्रशंसा के लिए मृषावाद च- शस्त्र विक्रय के लिये मृषावाद छ- हिंसा के लिये मृषावाद ज- विविध लौकिक संस्कारों के लिये मृषावाद झ- सावध भाषा का प्रयोग ही मृषावाद है Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०४ सू० १६ ५०७ प्रश्न० सूची. . अ- स्वार्थ सिद्धि के लिये मृषावाद ८ क- मृषावाद का इह लौकिक फल ख- मृषावादी की दुर्गतियां ग- मृषावाद का परिचय घ- द्वितीय अधर्मद्वार का उपसंहार तृतीय अदत्तादान अध्ययन एक उद्देकश ६ अदत्तादान का परिचय १० अदत्तादान के तीस नाम ११ क- चोरी करने वाले राजा आदि ख- संसार समुद्र का रूपक १२ क- चोरी का फल, विविध प्रकार के इह लौकिक दण्ड ख- नरक तिर्यंच और मनुष्य भव में अनेक भयंकर वेदनायें ग- तृतीय अधर्म द्वार का उपसंहार चतुर्थ अब्रह्मचर्य अध्ययन एक उद्देशक १३ अब्रह्मचर्य का स्वरूप १४ अब्रह्मचर्य के तीस नाम १५ क- अत्यधिक मैथुनसेवियों का वर्णन ख- देवताओं का वर्णन ग- चक्रवर्ती का वर्णन-उत्तम पुरुषों के लक्षण घ- बलदेव वासुदेव का वर्णन ङ. माण्डलिक राजाओं का वर्णन च- देवकुरु-उत्तरकुरु के मनुष्यों का वर्णन १६ क- मैथुन का फल ख- चतुर्थ अधर्म द्वार का उपसंहार Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रश्न०-सूची ५०८ श्रु० २ अ० २ सू०२४ पंचम परिग्रह अध्ययन-एक उद्देशक १७ परिग्रह का स्वरूप १८ परिग्रह के तीस नाम १६ परिग्रह संग्रह वृत्तिवाले २० क- परिग्रह का फल ख- पंचम अधर्म द्वार का उपसंहार द्वितीय संवर श्रुतस्कंध प्रथम अहिंसा अध्ययन एक उद्देशक २१ क- पांच संवर कथन प्रतिज्ञा ख- पांच संवर के नाम ग- सर्व प्रथम अहिंसा के सम्बन्ध में कथन घ- पांच संवरों का संक्षिप्त परिचय ङ. अहिंसा के ६० नाम २२ क- अहिंसा की कुछ उपमायें ख- अहिंसा के आराधक ग- अहिंसा के उपासकों के कुछ कर्त्तव्य घ- अहिंसा का स्वरूप २३ क- अहिंसा महाव्रत की पांच भावनायें ख- अहिंसा के साधक का अप्रमत्त जीवन ग- प्रथम संवर द्वार का उपसंहार द्वितीय सत्य अध्ययन एक उद्देशक २४ क- सत्य का स्वरूप ख- सत्य का प्रभाव ग- दस प्रकार का सत्य घ- सत्य की कुछ उपमायें Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०२ अ०५ सू०२६ प्रश्न०-सूच ङ- अवक्तव्य सत्य ' च- प्रशस्त सत्य बारह प्रकार की भाषा, सोलह प्रकार के वचन, २५ क- सत्य महाव्रत की पांच भावना असत्य बोलने के पांच कारण ख- द्वितीय संवर का उपसंहार तृतीय अस्तेय अध्ययन एक उद्देशक क- दत्त अनुज्ञात का स्वरूप ख- दत्त अनुज्ञात व्रत का विराधक ग- दत्त अनुज्ञात व्रत के आराधक घ. इस महाव्रत की पांच भावना ङ- तृतीय संवर का उपसंहार चतुर्थं ब्रह्मचर्य अध्ययन एक उद्देशक २७ क- ब्रह्मचर्य का स्वरूप ख- ब्रह्मचर्य की कुछ उपमायें ग- ब्रह्मचर्य का प्रभाव घ- ब्रह्मचारी के अकर्तव्य, अकृत्य छ- ब्रह्मचारी के कर्तव्य, कृत्य च- ब्रह्मचारी महाव्रत की पांचभावना छ. चतुर्थ संवर द्वार का उपसंहार पंचम अपरिग्रह अध्ययन एक उद्देशक २८ क- परिग्रह का स्वरूप ख- एक से लेकर तेतीस बोल का संकलन २६ क- संवरवृक्ष का रूपक ख- परिग्रह विरत के अकल्प्य कार्य Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० २ अ०५ सू २० प्रश्न०-सूची ग- परिग्रह विरत के कल्प्य कार्य घ. शुद्ध निर्दोष भिक्षा लेने का विधान ङ- औषधादि के संग्रह का तथा समीप में रखने का निषेध च- धर्म साधना में उपयोगी उपकरण रखने का विधान छ- पाँच समिति तीन गुप्ति के नाम झ- अपरिग्रह की कुछ उपमायें ज- अपरिग्रही के जीवन की महिमा अ- अपरिग्रह महाव्रत की ५ भावना ट- पंचम संवर द्वार का उपसंहार ठ- पांच संवरों की प्रशस्ति २० क- प्रश्नव्याकरण अंग का संक्षिप्त परिचय ख. प्रश्न व्याकरण अंग की पठनविधि AIMILIATumnummaNILIMILAILANILIMILAILANILAMITRAMILARIANRAILO सच्च लोगम्मि सारमूयं Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो वायणारियाणं धर्मकथानुयोगमय विपाक श्रुताङ्ग YY २० श्रुतस्कंध अध्ययन उद्देशक पद उपलब्ध पाठ गद्य सूत्र पद्य १ करोड ८४ लाख ३२ हजार १२१६ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण दुख बिपाक श्रुतस्कंध अध्ययन उद्देशक १० सुख विपाक श्रतरकंध अध्ययन उद्देशक १० गद्य गद्य पद्य Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ से बेमि जे य अतीता, जे य पडुपन्ना, जे य आगमिस्सा भगवंता ते सव्वे वि वि एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवंति, एवं परूवेंति सब्वे पाणा, सव्वे भूया, सव्वे जीवा, सव्वे सत्ता न हंतव्वा, न अज्जावेयव्वा, न परितगव्वा, न परतावेयव्वा, न उद्दवेयव्वा, एस धम्मे सुद्धे णितिए सासए समेच्च लोयं खेयन्नेहिं पवेइए। चिट्ठ कुरेहि कम्मेहि चिट्ठ परिविचिठ्ठइ । अचिट्ठ कूरेहि कम्मेहिं णो चिट्ठ परिविचिट्ठइ । दुचिण्णा कम्मा दुचिण्णा फला भवंति । सुचिण्णा कम्मा सुचिण्णा फला भवंति । अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्ठि य सुप्पछि य ।। आरंभजं दुक्खमिणंति णच्चा, माइ पमाई पुणरेइ गभं । उवेहमाणे सद्द रूवेसु अंजू, माराभिसंकी मरणा पमुच्चइ ।। बाले पुण णिहे कामसमणुन्ने असमितदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव अणुपरियट्ट ति त्तिबेमि । Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ विपाक तांग विषय-सूची जंबूस्वामी का प्रश्न प्रथम दुख - विपाक श्रुतस्कंध २ क- उत्थानिका श्रुतस्कंधों के नाम दस अध्ययनों के नाम प्रथम मृगापुत्र अध्ययन [क्रूर शासन का फल ] ख- उत्त्थानिका. मृगग्राम नगर चन्दन पादप उद्यान सुधर्मयक्ष का यक्षायतन. विजय राजा. मृगादेवी. मृगापुत्र ग- सर्वाङ्गोपाङ्ग विकल मृगापुत्र को तलघर में रखना ३ क - एक जन्मांध भिखारी और उसका सचमुच साथी ख- भ० महावीर का समवसरण प्रवचन विजय राजा का दर्शनार्थ जाना ग- अपने साथी सहित जन्मान्ध भिक्षुक का धर्म परिषद में जाना ४ क- जन्मान्ध के सम्बन्ध में भ० गौतम की जिज्ञासा ख- भ० महावीर ने सर्वाङ्गोंपांगविकल मृगापुत्र का परिचय दिया ग- मृगापुत्र को देखने के लिये भ० गौतम गणधर का जाना घ- मृगापुत्र को तथा उसके आहार परिणमन को देखना ङ - कर्मफल का चिन्तन. भ० महावीर के समक्ष मृगापुत्र का वर्णन ५ क - मृगापुत्र के पूर्वभव का वर्णन, जंबूद्वीप, भरत, शतद्वार नगर धनपती राजा ख- विजय वर्द्धमान खेड़ [ एक धूलकोट - जागीरदार का राज्य ] ग- इकाई राष्ट्रकूट [ एक जागीरदार] का क्रूर शासन Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०२ ५१४ विपाक-सूची घ- इकाई के शरीर में सोलह रोगों की उत्पत्ति, चिकित्सा के लिये किये गये प्रयत्नों की असफलता, मृत्यु, नरक में उत्पत्ति ङ- नरकायु भोग के पश्चात् मृगा देवी की कुक्षी में उत्पन्न होना च- मृगा देवी का अपमानिता होना और गर्भ गिराने का प्रयत्न करना ६ क- गर्भ में भस्मक रोग का होना ख- जन्म के पश्चात् शिशु को उकरड़ी पर डालने के लिए दासी को कहना ग- दासी का मृगादेवी के आदेश के सम्बन्ध में विजय राजा से __ निवेदन ... घ- मृगापुत्र को भूमिघर में रखने की व्यवस्था । ७ क- 'मृगापुत्र का पुायु भोग के पश्चात् सिंह होना ख- मृगापुत्र का भवभ्रमण ग- सुप्रतिष्ठ नगर में एक मजदूर के घर जन्म लेना तथा गंगा तट की मिट्टी के नीचे दब कर मरना घ- पुनः सुप्रतिष्ठ नगर में एक सेठ के घर जन्म लेना ङ- युवावस्था में स्थविरों से धर्मश्रवण, वैराग्य-प्रव्रज्या, श्रमण पर्याय, समाधि-मरण, सौधर्म कल्प में उत्पत्ति च- च्यवन महाविदेह से मुक्ति द्वितीय उज्झितक अध्ययन [गोमांस भक्षण, मद्यपान और वैश्यागमन का फल ८ क- उत्थानिका, वाणिज्य ग्राम, दूतिपलास उद्यान, सुधर्म यक्ष का यक्षायतन, विजय मित्र राजा, श्रीदेवी । ख- कामध्वजा गणिका [७२ कला, ६४ गणिका कला, २६ विशेषता २१ रतिकला, ३२ वशीकरण ६ अंग, १८देशी भाषा विशारद] ६ क- विजयमित्र सार्थवाह सुभद्रा भार्या, उज्झितक पुत्र Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपाक-सूची श्रु०१ व०२ ख- भ० महावीर का समवसरण. प्रवचन ग. गौतम गणधर का भिक्षाचर्या के लिये जाना, राजमार्ग में उज्झितक के वध का दृश्य देखना १० क- भ० महावीर से उज्झितक के वध का वृत्तान्त कहना ख- पूर्व भव जिज्ञासा. जंबूद्वीप. भरत. हस्तिनापुर. सुनंद राजा. नगर में एक गौशाला ग- भीम कूटग्राह-गुप्तचर. उत्पला भार्या का गौमांस भक्षण का दोहद. भीम द्वारा दोहद की पूर्ति ११ क- पुत्र जन्म. शिशु रोदन से गोवर्ग का त्रसित होना. गोत्रास नाम देना ख- भीम की मृत्यु.सुनंद राजा द्वारा भीम के स्थान पर गोत्रास की नियुक्ति ग- गोत्रास का जीवन पर्यन्त गोमांस भक्षण. मृत्यु. नरक गमन १२ क- मृतवत्सा सुभद्रा के कुक्षि में गोत्रास की उत्पत्ति. जन्म. उकरड़ी पर डालना. पुनः ग्रहण करना. उरिझतक नाम देना. कतिपय संस्कारों के नाम, पांच धायों से पालन ख- विजय मित्र सार्थवाह की व्यापार के निमित्त लवण समुद्र की यात्रा [चार प्रकाग के विक्रय योग्य पदार्थ] पोत भंग. विजय मित्र सार्थवाह की मृत्यु. सुभद्रा सार्थवाही का विलाप. सुभद्रा की मृत्यु १३ क- उज्झितक का सर्वस्वहरण. गृह से निष्कासन ख- सप्त व्यसन सेवन, कामध्वजा से काम क्रीड़ा ग- श्रीदेवी के योनिसूल की वेदना. राजा द्वारा काम ध्वजा की उपपत्नि के रूप में नियुक्ति घ- कामध्वजा के घर में उज्झितक का गुप्तरूप से प्रवेश ङ- उज्झितक को कामध्वजा के साथ देखकर राजा द्वारा मृत्यु दण्ड का आदेश Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु१ अ०३ विपाक-सूची १४ क- उज्झितक की पुर्णायु. मृत्यु के पश्चात् भवभ्रमण. गणिका कुल में उत्पत्ति, नपुंसक बनाना, पुर्णायु भोग के पश्चात् नरक गति, अनेक भव ख- चंपा में सेठ के घर जन्म, युवावय में स्थविरो से धर्मश्रवण वैराग्य. दीक्षा. श्रमण-जीवन. समाधिमरण. सौधर्म कल्प में उत्पत्ति. च्यवन. महाविदेह से मुक्ति. तृतीय अभग्न अध्ययन [अण्डों के व्यापार. का तथा मद्यपान फल ] १५ क- उत्थानिका. पुरिमताल नगर. अमोध दर्शन उद्यान. अमोघ दर्शन यक्ष का यक्षायतन महाबल राजा ख- साला अटवी. पांच सो चोर का अधिपति "विजय" स्कंद श्री भार्या १६ क- विजय चोर के अकृत्य ख- भ० महावीर का समवसरण. गौतम गणधर का भिक्षा चर्या के लिये जाना. राजमार्ग. अठारह चौराहों पर अभग्नसेन का वध देखना १७ क- अभग्नसेन पूर्वभव की जिज्ञासा. जंबूद्वीप. भरत. पुरिमताल नगर. उदितोदित राजा. अण्डों का व्यापारी निन्नक ख- अनेक प्रकार के अण्डों का व्यापार ग- अण्डे और मद्य का उपभोक्ता निन्नक की मृत्यु. नरक में उत्पत्ति १८ क- निन्नक की आत्मा का स्कंद श्री की कुक्षि में आगमन ख- स्कंदश्री का दोहद. पुत्र जन्म. अभग्नसेन नाम रखना. बाल्यकाल १६ क- आठ कन्याओं से पाणि ग्रहण. भोगमय जीवन ख- विजय की मृत्यु. अभग्नसेन का अभिषेक ग- अभग्नसेन के उपद्रवों से त्रस्त जनता की महबलराजा से पुकार Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १ अ०४ ५१७ घ- अभग्नसेन को बन्दि बनाने का आदेश ङ- अभग्नसेन के अपने गुप्तचरों से राजाज्ञा की जानकारी च - अटवी की सीमा पर अभग्नसेन की राजपुरुषों से मुठभेड़ छ- परास्त राजपुरुषों द्वारा राजा के सामने अभग्नसेन की अजेयता का वर्णन विपाक सूची २० क- महबल राजा द्वारा कूटागारशाला का निर्माण ख- अभग्नसेन को छल से बंदि बनाना तथा सूली का आदेश देना. अभग्नसेन की पुर्णायु. मृत्यु. नरकगति ग- अभग्नसेन का भवभ्रमण ध- वाराणसी में सेठ के घर जन्म. स्थविरो से धर्मश्रवण. वैराग्य. दीक्षा. संयमाराधन. समधिमरण. महाविदेह से मुक्ति चतुर्थ शकट अध्ययन [ मांसविक्रय और व्यभिचार का फल ] २१ क- उत्थानिका साहजनी नगरी. देवरमण उद्यान. अमोघयक्ष का यक्षायतन. महचंद राजा. सुसेण अमात्य, सुदर्शणा गणिका. सुभद्र सार्थवाह भद्रा भार्या. शंकर पुत्र ख- भ० महावीर का समवसरण धर्म कथा ग- गौतम गणधर का गौचरी जाना. राजमार्ग के मध्य में नरवध का दृश्य देखना घ- भ० महावीर से वध्यपुरुष का पूर्वभव पूछना ङ - पूर्वभव. जंबूद्वीप. भरत. छगलपुर. सोहगिरि राजा. छणिक नाम का छागलिक कसाई . [ बहुत बडा मांस विक्रेता ] च- मद्य मांस के आहारी क्षणिक की पूर्णायु. मृत्यु. नरक गति छ- क्षणिक की आत्मा का भवभ्रमण २२ क- छणिक की आत्मा का मृतवत्सा भद्रा की कुक्षि से जन्म, शिशु को शकट के नीचे रखना और शकट नाम रखना ख- सुभद्रसार्थवाह की लवणसमुद्र यात्रा, जहाज का टूटना, सुभद्र का मरना, भद्रा का भी मरना Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपाक - सूची ग- शकट का सर्वस्व छीन लेना और घर से निकाल देना घ- शकट का सुदर्शना से स्नेह ५१८ ङ. - सुसेण का सुदर्शना के साथ शकट को देखना च - महचंद राजा की सम्मत्ति से शकट का प्रतप्त स्त्रीमूर्ति के साथ आलिंगन का दण्ड देना, पूर्णायु, मृत्यु, नरक गति २३ क शकट की आत्मा का भव- भ्रमण ख- शकट और सुदर्शना की आत्मा का राजगृह के मातंग कुल में बहन-भाई होना. दोनों का पति-पत्नी के रूप में जीवन बिताना ग- शकट का गुप्तचर बनना. मृत्यु के पश्चात् भव भ्रमण घ- वाराणसी में सेठ के घर जन्म यावत् - महाविदेह से मोक्ष प्राप्त करना. उपसंहार. श्रु० १ अ०५. पंचम बृहस्पति अध्ययन [ यज्ञ हिंसा तथा परस्त्री गमन का फल ] २४ क- उत्थानिका कौशाम्बी नगरी, चन्द्रोत्तरण उद्यान, श्वेत भद्र यज्ञ शतानीक राजा, मृगावती देवी. उदायन. कुमार पद्मावती देवी [उदायन की पत्नी] चार वेदों में प्रवीण सोमदत्त पुरोहित वसुदत्ता भार्या, वृहस्पतिदत्त पुत्र ख- भगवान महावीर का समवसरण, गौतम गणधर का भिक्षाचरी के लिये जाना, राजमार्ग में प्राण दण्ड का दृश्य देखना ग- पूर्वभव पृच्छा. जम्बूद्वीप, भरत, सर्वतोभद्र नगर जितशत्रु राजा महेसर दत्त पुरोहित [ चार वेदों का ज्ञाता ] घ- जितशत्रु राजा की समृद्धि के लिये शान्ति होम करना क - महेश्वर दत्त की पूर्णायु. मृत्यु. नरक गति ख महेश्वर दत्त की आत्मा का बृहस्पति दत्त के रूप में जन्म ग- उदायन राजकुमार के साथ बृहस्पतिदत्त की मंत्री घ- शतानीक की मृत्यु उदायन का राज्याभिषेक Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु०१ अ०७ विपाक-सूची ङ- बृहस्पतिदत्त का पद्मावती के साथ अनुचित सम्बन्ध. प्राणदण्ड च- वृहस्पतिदत्त की आत्मा का भवभ्रमण छ- हस्तिनापुर में सेठ के घर जन्म-यावत्-महाविदेह से निर्वाण षष्ठ नन्दिवर्धन अध्ययन [कठोर दण्ड और पितृवध संकल्प का फल] २६ क- उत्थानिका. मथुरानगरी. भण्डीर उद्यान. सुदर्शन यक्ष. श्री दाम राजा. बन्धु श्री भार्या. नन्दीवर्धन कुमार. सुबन्धु अमात्य. बहुमित्र पुत्र. चित्र अलंकारिक [नापित] ख- भ० महावीर का समवसरण. धर्म प्रवचन. गौतम गणधर की भिक्षाचर्या. राजमार्ग में देह दाह दण्ड का दृश्य ग- पूर्वभव पृच्छा. जम्बूद्वीप. भरत. सीहपुर. सीहरथ राजा. दुर्योधन प्रमुख कारागृहाधीक्षक घ- बन्दियों को दिये जाने वाले विविध प्रकार के कठोर दण्ड ङ- पुर्णायु. मृत्यु. नरक गमन २७ क- दुर्योधन की आत्मा का नन्दिसेन के रूप में जन्म ख- युवा नन्दिसेन की राज्यलिप्सा ग- चित्र अलंकारिक ने राजा को नन्दिसेन के षड्यंत्र की जान कारी दी ङ- नन्दिसेन वध की राजाज्ञा. पूर्णायु. मृत्यु. पश्चात् नरक गमन च- नन्दिसेन की आत्मा का भवभ्रमण छ- हस्तिनापुर में सेठ के घर जन्म. बोधि की प्राप्ति. आगार धर्म की आराधना. समाधि मरण. सौधर्म कल्प में उत्पत्ति. महा विदेह से निर्वाण पद की प्राप्ति सप्तम उम्बरदत्त अध्ययन [मांस चिकित्सा का फल २८ क- उत्थानिका, पाडलसंड नगर, वन खण्ड उद्यान, उंबरदत्त यक्ष, Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपाक-सूची श्रु०१ अ०७ सिद्धार्थ राजा. सागरदत्त सार्थवाह. गंगदत्ता भार्या. उंबरदत्त ख- पुत्र भ० महावीर का समवसरण, गौतम गणधर का भिक्षाचर्या के लिये नगर के पूर्व द्वार से प्रवेश ग- एक कोढ़ी पुरुष को देखना घ- पश्चिम दक्षिण और उत्तर द्वार से क्रमशः प्रवेश करने पर उसी कोढी पुरुष को देखना ङ- पूर्वभव पृच्छा, जम्बूद्वीप, भरत, विजयपुर नगर, कनकरथ राजा, धनवन्तरी वैद्य च- अष्टांग आयुर्वेद के नाम छ- चिकित्सा के लिये अनेक प्रकार के मांसों का प्रयोग ज- स्वयं धनवन्तरी द्वारा मद्य मांस आहार का आसक्ति पूर्वक प्रयोग, पूर्णायु, मृत्यु, नरक गमन झ- संतान प्राप्ति के लिये मृतवत्सा गंगदत्ता सार्थवाहिनी द्वारा यक्ष पूजा, तथा चढावा करने का संकल्प अ- सार्थवाह की आज्ञा से विधिवत यक्ष पूजा करना ट- धनवन्तरी की आत्मा का सार्थवाही की कृक्षि में आगमन ठ- सार्थवाही का दोहद और उसकी पूर्ति ड- पुत्र जन्म, यक्ष के चढ़ावा, यक्ष कृपा से प्राप्त पुत्र का यक्ष के अनुसार नाम ढ- सागरदत्त और गंगदत्त की मृत्य. उम्बरदत्त को घर से निकाल देना उम्बरदत्त के शरीर में सोलह रोगों की उत्पति, सोलह रोगों के नाम ण- उम्बरदत्त की पूर्णायु, मृत्यु, भवभ्रमण त- हस्तिनापुर में सेठ के घर जन्म, सम्यक्त्व की प्राप्ति, श्रावक धर्म की अराधना, सौधर्म में उत्पत्ति, च्यवन, महाविदेह से मुक्ति. उपसंहार। Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'श्रु०१ अ०६ ५२१ विपाक-सूची अष्टम नन्दिवर्धन अध्ययन [मच्छीमार के व्यवसाय का फल] २६ क- उत्थानिका, सूर्यपुर, सूर्यावंतसक उद्यान. सूर्यदत्त राजा ख-मच्छीमारों का मोहल्ला, समुद्रदत्त मच्छीमार, समुद्रदत्ता भार्या सूर्यदत्त पुत्र ग- भ० महावीर का समवसरण. गौतम गणधर का भिक्षाचर्या से लौटते समय मच्छीमारों के मोहल्ले के समीप एक रुग्ण मच्छीमार को रक्त वमन करते हुए देखना घ- पूर्व भव पृच्छा. जम्बूद्वीप. भरत. नन्दिपुर मित्रराजा. महाराजा का सिरिया रसोईया ङ- राजा व राजपरिवार के लिये विविध प्रकार के मांस पकाना स्वयं सिरिया रसोईये की मांसाहार में आसक्ति च- पूर्णायु, मृत्यु, नरक गमन छ- मृतवत्सा समुद्रदत्ता का संतान प्राप्ति के लिये यक्ष प्रजा का ___ संकल्प-यावत्-सूर्य दत्त नाम रखना ज- समुद्रदत की मृत्यु. सूर्यदत का मच्छीमारों का प्रमुख बनना यमुना नदी आदि में मच्छीयाँ पकड़ना भ- मच्छीयाँ पकड़ने के अनेक साधनों का उल्लेख अ- मच्छीयां सुखाना, मच्छीयों के बने हुए विविध भोज्य पदार्थ ट- सूर्यदत के गले में मत्स्य कंटक लगना. चिकित्सा के लिये अनेक प्रयत्न ठ- वेदना व्यथित सूर्यदत्त की पूर्णायु, मृत्यु, नरक गति. भवभ्रमण ड- हस्तिनापुर में सेठ के घर में जन्म. बोधि की प्राप्ति. देश विरती की आराधना. सौधर्म कल्प में उत्पत्ति. च्यवन महाविदेह से मोक्ष. उपसंहार Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० १ अ०६ ५२२ नवम बृहस्पतिदत्त अध्ययन [ ईर्ष्या-द्वेष का फल ] ३० क- उत्थानिका. रोहीडक नगर. पृथ्वी अवतंसक उद्यान. धरण यक्ष वैश्रमण दत्त राजा. श्रीदेवी. पुष्पनन्दी कुमार. दत्त गाथापति. कृष्ण श्री भार्या. देवदत्ता पुत्री ख- भ० महावीर का समवसरण गौतम गणधर की भिक्षा चर्या राजमार्ग में एक स्त्री के सूली दण्ड का दृश्य देखना ग- पूर्व भव पृच्छा. जम्बूद्वीप. भरत. सुप्रतिष्ठ नगर महसेन राजा. अन्तःपुर में धारिणी आदि एक हजार रानिताँ, सोहसेन राज कुमार. पाँच सौ राज्य कन्याओं से पाणिग्रहण. दहेज घ- महसेन राजा की मृत्यु ङ - सिंहसेन की एक श्यामा रानि में अत्यासक्ति, अन्य से विरक्ति. च - श्यामादेवी के प्रति अन्य रानियों का दुर्भाव छ- प्राणरक्षा के लिये श्यामा का सिंहसेन से निवेदन सिंहसेन का आश्वासन ज - कूटागार शाला का निर्माण ४६६ रानियों को कूटागार शाला में बन्द करके जला देना भ सिंहसेन की पूर्णायु-मृत्यु-नरक गति ञ - कृष्ण श्री की कुक्षि में सिंहसेन की आत्मा का आगमन पुत्रि रूप में जन्म, देवदत्ता नाम रखना विपाक - सूची ट- पुष्यनन्दी राजकुमार के लिये वैश्रमपादत्त राजा द्वारा देवदत्ता की याचना देवदत्ता से पुष्यनन्दी का विवाह ठ- वैश्रमण राजा की मृत्यु. पुष्यनन्दी की मातृभक्ति ड- देवदत्ता द्वारा श्री देवी के प्राणों का संहार. पुष्यनन्दी का देव दत्ता के लिये सूली भेदन का आदेश, पूर्णायु, मरण, भव भ्रमण ढ गंगपुर में देवदत्ता की आत्मा का श्रेष्ठी के गृह में जन्म. श्रमणो - Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपाक-सूची ५२३ श्रु०२ अ०१ पासक धर्म की आराधना. समाधिमरण, सौधर्म कल्प में उत्पत्ति महाविदेह से मुक्ति । उपसंहार दशम उम्बरदत्त अध्ययन [वैश्या वृत्ति का फल ३२ क- उत्थानिका-वर्द्धमानपुर, विजय वर्धमान उद्यान, माणिभद्र यक्ष विजयमित्र राजा ख- धनदेव सार्थवाह, प्रियंगु भार्या, अंजू पुत्री ग- भ० महावीर का समोसरण. भ० गौतम की भिक्षाचर्या, अशोक वाटिका में एक अतिरुग्ण स्त्री का करुण क्रंदन करते हुए देखना घ- पूर्वभव की जिज्ञासा. जम्बूद्वीप. भरत. इन्द्रपुर. इन्द्रदत्त राजा पृथ्वी श्री गणिका ङ- पृथ्वी श्री गणिका की पूर्णायु. मृत्यु. भवभ्रमण च- पृथ्वी श्री की आत्मा का अंजुश्री के रूप में जन्म छ- वैश्रमण राजा का अंजूश्री से विवाह. अंजूश्री के योनीसूल के वेदना. चिकित्सा की असफलता. अशोक वाटिका में अंजूश्री का रोदन ज- अंजूश्री का भवभ्रमण. सर्वतोभद्र नगर में सेठ के घर जन्म सम्यक्त्व की प्राप्ति. प्रव्रज्या. सौधर्म में उत्पति. च्यवन. महाविदेह से मुक्ति । प्रथम दुःख विपाक श्रुत स्कंध का उपसंहार द्वितीय सुखविपाक शुतस्कंध ३३ क- उत्थानिका. दस अध्ययनों के नाम प्रथम सुबाह अध्ययन ख- उत्थानिका. हस्तिशीर्ष नगर, पुष्प करण्ड उद्यान. कृतवन माल प्रिय यक्ष का यक्षायतन. अदीन शत्रुराजा. अन्तःपुर में धारिणी देवी आदि एक हजार रानियां ग- धारिणी कासिंह स्वप्न. सुबाहु कुमार का जन्म. संवर्धन. अध्ययन Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपाक-सूची ५२४ श्रु०२ अ०३ घ- पांच सौ कन्याओं से पाणिग्रहण ङ- भ० महावीर का समवसरण. सुबाहु कुमार का धर्मकथा श्रवण. गृहस्थधर्म आराधन की प्रतिज्ञा च- सुबाहु के पूर्वभव की जिज्ञासा. जम्बूद्वीप. भरत. हस्तिनापुर. सुमुख गाथापती. सहस्राम्रवन. पांचसो मुनियों के साथ स्थविरों का आगमन छ- महा तपस्वी सुदत्त अणगार को शुद्ध आहार दान, पांच दिव्यों की वर्षा ज- भ० महावीर का समवसरण, झ- सुबाहु कुमार का अष्टमतप. पौषध. प्रव्रज्या लेने का संकल्प ज- भ० महावीर के समीप प्रव्रज्या ग्रहण. भ० महावीर का विहार इग्यारह अंगों का अध्ययन, तपश्चर्या. श्रमण जीवन. एक मास की संलेखना. सौधर्म में उत्पति ट- प्रत्येक देव भव के पश्चात् प्रत्येक मनुष्य भव में प्रव्रज्या ग्रहण करना ठ- क्रमश: सर्वाथसिद्ध में उत्पति, च्यवन, महाविदेह से शिव साधना-उपसंहार । द्वितीय भद्रनंदि अध्ययन ३४ क- उत्थानिका, ऋषभपुर, स्तूप करण्डक उद्यान, धन्य यक्ष धनावह राजा, सरस्वती देवी, भद्रनंदी कुमार, शेष सुबाहु के समान, उपसंहार । विशेष पूर्व भव-महाविदेह, पुण्डरिकिणी नगरी, युगबाहू तीर्थंकर को दान देना तृतीय सुजात अध्ययन ३५ क- उत्थानिका, वीरपुर, मनोरम उद्यान. वीर कृष्ण मित्र राजा, श्री देवी, सुजात कुमार, बल श्री प्रमुख पांच सो कन्याओं से पाणि ग्रहण Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विपाक - सूची श्रु ०२ अ०७ ख- पूर्वभव - इषुकार नगर, ऋषभदत्त गाथापति, पुष्पदत्त अणगार को दान शेष सुबाहु के समान ५२५ चतुर्थ सुवासव अध्ययन ३६ क - उत्थानिका, विजयपुर, नन्दन वन, अशोक यक्ष, वासव दत्त राजा कृष्णा देवी, सुवासव कुमार, भद्रा प्रमुख पांच सो कन्याओं से पाणि ग्रहण ख पूर्व भव- कौशाम्बी नगरी, धनपाल राजा, वैश्रमण भद्र अणगार. को दान, शेष सुबाहु के समान पंचम जिनदास अध्ययन ३७ क- उत्थानिका, सौंगधिका नगरी, नीलाशोक उद्यान, सुकाल यक्ष अप्रतिहत राजा, सुकन्या देवी, महचन्द कुमार, अरहदत्ता भार्या जिनदास पुत्र ख- पूर्वभव, मध्यमिका नगरी, मेघरथ राजा, सुधर्म अणगार को दान, शेष सुबाहु के समान षष्ठ वैश्रमण अध्ययन ३८ - उत्थानिका, कनकपुर, श्वेताशोक उद्यान, वीर भद्र यक्ष, प्रिय चन्द्र राजा, सुभद्रादेवी, वैश्रमण कुमार, श्रीदेवी प्रमुख पांचसो कन्याओं के साथ पाणि ग्रहण, धनपति पुत्र ख- पूर्वभव – मणिवत्ता नगरी, मित्र राजा, संभूतविजय अणगार को दान, शेष सुबाहु के समान सप्तम महब्बल अध्ययन ३६ क - उत्त्थानिका, महापुर, रक्ताशोक उद्यान, रक्तपात यक्ष, बल राजा, सुभद्रा देवी, महाबल कुमार, रक्तवती प्रमुख ५०० कन्याओं से पाणि ग्रहण Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रु० २ अ०१० ख - पूर्वभव -- मणिपुर, नागदत्त गाथापति, इन्द्रपुर अणगार का दान शेष - स के समान अष्टम भद्रनंदी अध्ययन विपाक-सूची - सुबाहु ५२६ ४० क- उत्थानिका सुघोष नगर, देवरमण उद्यान, वीरसेन यक्ष, अर्जुन राजा, तप्तवती देवी, भद्रनंदी कुमार, श्रीदेवी प्रमुख पाँच सो कन्याओं से विवाह ख- पूर्वभव - महाघोष नगर, धर्मघोष गाथापती, धर्मसिंह अणगार को दान, शेष सुबाहु के समान नवम महचंद अध्ययन -४१ क- उत्थानिका, चंपानगरी, पूर्णभद्र उद्यान, पूर्णभद्र यक्ष, दत्तराजा रक्तवती देवी, महचंद कुमार, श्रीकांता प्रमुख पाँचसो कन्याओं के साथ पाणी ग्रहण ख- पूर्वभव - तिमिच्छी नगरी, जितशत्रु राजा, धर्मवीर्य अणगार का दान, शेष सुबाहु के समान दशम वरदत्त अध्ययन ४२ क- उत्थानिका - साकेत नगर उत्तरकुरु उद्यान, पासमिक यक्ष, मित्रनंदी राजा, श्रीकान्ता देवी, वरदत्त कुमार, वरसेना प्रमुख पांच सो कन्याओं से विवाह ख- पूर्वभव - शतद्वार नगर, विमलवाहन राजा, धर्मरुचि अणगार शेष - सुबाहु के समान । उपसंहार को दान, Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कथानुयोग प्रधान औपपातिक उपाङ्ग अध्ययन उद्देश उपलब्ध पाठ गद्य सूत्र पद्य सूत्र www १ १ ११६७ श्लोक प्रमाण ४३ ३२ मोहविजय पंचक जहा मत्थय सूइए, हंताए हम्मइ तले । एवं कम्माणि हम्मंति, मोहणिज्जे खयं गए ॥ सेणावतिमि निहते, जहा सेणा पणस्सति । एवं कम्माणि नस्संति, मोड़णिज्जे खयं गए ॥ धूमहीणो जहा श्रग्गी, खीयति से निरिंधणे । एवं कम्माणि खीयंति, मोहणिज्जे खयं गए ॥ सुक्क मूले जहा रूक्खे, सिंचमाणे न रोहति । एवं कम्मा ण रोहति, मोहणिज्जे खयं गए ॥ पुर्ण कुरा । भवंकुरा || जहा दड्ढाणं बीजाणं, न जायंति कम्मबीए दडढेसु, न जायंति Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपपात-सूची १ हिंसक का उपपात-नरक में । २ असंयत का उपपात-व्यंतर देवों में ३ मुक्ति की कामना से आत्मघात करनेवालों का उपपात व्यंतर देवों मे। ४ भद्र प्रकृतिवाले मनुष्यों का उपापत-व्यंतर देवों मे। ५ विधवा या विरहिणी स्त्रियों का उपपात-व्यंतर देवों में । ६ मिताहार करने वालों का उपपात-व्यंतर देवों में । ७ वानप्रस्थ तापसों का उपपात-उत्कृष्ट ज्योतिषी देवों में । ८ कांदर्पिक श्रमणों का उपपात-उत्कृष्ट सौधर्मकल्प में। ६ परिव्राजकों का उपपात-उत्कृष्ट ब्रह्मकल्प में । १० प्रत्यनीको (अविनयी जनों) का उपपात-किल्विषिक देवों में। ११ देशविरत संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यचों का उपपात-उत्कृष्ट सहस्रारकल्प में । १२ पाजीविक मतानुयायियों का उपपात-उत्कृष्ट अच्युत__कल्प में। १३ अभिमानी (आत्मोत्कर्षक) श्रमणों का उपपात-उत्कृष्ट अच्युतकल्प में । १४ निन्हवों का उपपात-उत्कृष्ट अवेयक देवों में । १५ अल्पारंभी गृहस्थों का उपपात-उत्कृष्ट अच्युत कल्प में। १६ अनारंभी श्रमण का उपपात-सर्वार्थसिद्धविमान या सिद्ध गति । १७ सर्वकाम विरत श्रमण का उपपात-सिद्ध गति । Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औपपातिक उपांग विषय सूची चम्पा नगरी वर्णन १ क- कृषि भूमि ख- मुर्गे और सांड नागरिक पशु-पक्षी ग- ईख. जौ. चावल खाद्य पदार्थ घ- गायें. भैंसे. भेड़ें पालतू पशु . ङ- सुन्दर चैत्य. वैश्यालय. सार्वजनिक स्थान च- उत्कोचिक (रिश्वत लेने वाले) अपरावी वृत्तिवाले छ- नट आदि १३ कलाजी वि ज- आराम उद्यान सार्वजनिक सैरगाह झ- अगड़ आदि ४ सार्वजनिक जलाशय अ- परिखा. चक्र आदि से इन्द्रकील पर्यन्त नागरिक सुरक्षा के साधन ट- विपणि आदि क्रय विक्रय के स्थान ठ- शृंगाटक आदि राजमार्ग में विशेष स्थान ड- तुरग आदि यातायात के साधन पूर्णभद्र चैत्य वर्णन २ क- काला गुरु आदि सुगन्धित धूप ख- नट आदि कला जीवि वनखण्ड वर्णन ३ क- मूल, कंद आदि वृक्ष के अंगोंपांग ख- नित्य कुसुमिका आदि बारहमासी वनस्पतिया. ग- शुक. बहि आदि वन्य पक्षी घ- गुच्छ आदि विविध वनस्पतियां ङ. वापी आदि सार्वजनिक जलाशय च- रथ आदि यातायात के साधन Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४-१० ५३० औपपातिक-सूची अशोक वृक्ष वर्णन ४ क- तिल आदि विविध वनस्पतियां ख- लोध आदि सुगन्धित वृक्ष ग- फनस. दाड़म आदि. फलवाले वृक्ष घ- शिविका यान ङ- पद्मलता आदि विविध लता वर्ग शिलापट्ट वर्णन ५ क- अंजन आदि विविध रंग ख- मरकत आदि फर्स में लगाये जानेवाले ग- ईहा मृग आदि भित्तिचित्र कोणिक राजा का वर्णन भंभसार पुत्र कोणिक की रानी धारिणी का वर्णन. एक संवाद दाता का वर्णन भ० महावीर के कार्यक्रमों की सूचना देनेवाले का वर्णन है कोणिक का उपस्थानशाला में आगमन. गणनायक. दण्डनायक आदि राज्य का अधिकारी वर्ग क- भ० महावीर का चम्पानगरी की ओर विहार ख- भ०. महावीर की ऊँचाई ग- भगवान् के प्रत्येक अंगोपांग का वर्णन घ- चोतीस बुद्ध वचनातिशम ङ- पैंतीस सत्य वचनातिशय च- चक्र आदि प्रातिहार्य छ- श्रमण-श्रमणी परिवार की संख्या ज- भ० महावीर का चम्पानगरी के बाहर पूर्णभद्र चैत्य के समीप आगमन, प्रवृत्तिवादुक द्वारा कोणिक को चम्पानगरी के उपनगर में भ० महावीर के पदार्पण की सूचना देना Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३१ सूत्र १२-१६ औपपातिक-सूची १२ क- भ० महावीर को स्व-स्थान से वंदना करने का कोणिक का उपक्रम ख- पांच राज्यचिह्नों के नाम ग- भगवान की स्तुति घ- प्रवृत्तिवादुक का सत्कार ङ- पूर्णभद्र चैत्य में भगवान के पधारने पर सूचना देने का आदेश १३ भगवान महावीर का पूर्णभद्र चैत्य में पदार्पण भ० महावीर के अंतेवासी १४ क. अन्तेवासियों का पूर्व-परिचय ख- अन्तेवासियों का दीक्षा काल १५ क- अन्तेवासियों की ज्ञान-संपदा ख- , ,, इच्छा शक्ति , ,, विशिष्ट लब्धियां , ,, विविध तपश्चर्या विशिष्ट तपों के नाम, पडिमाओं के नाम अन्तेवासी स्थविरों का वर्णन १६ क- स्थविरों का पूर्व-परिचय ख- , की शरीर सम्पदा. व्यक्तित्व ग- , का संयमी जीवन ,, का बौद्धिक परिचय की आनुगामिता का बहुश्रुत ज्ञान ,, का वाद सामर्थ्य का स्व सिद्धान्त ज्ञान , की स्मरण शक्ति का परिचय 부 된 위 팬 색 원영 된 원 Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १७-१६ औपपातिक-सूची ५३२ भगवान महावीर के अन्तेवासी क- अंतेवासियों की संयम आराधना , का विरक्त जीवन ग- , के जीवन की २१ उपमायें , का निवृत्तिमय जीवन ङ- चार प्रकार के प्रतिबंध च- अंतेवासियों की आध्यात्मिक स्थिति अन्तेवासियों की तपश्चर्या १८ क- आभ्यन्तरतप छ प्रकार का ख- बाह्यतप छ प्रकार का बाह्यतप के भेद १६ क- अनशन के भेद ख- इत्वरिक अनशन के भेद ग- यावत्कथिक अनशन के भेद घ- पादोपगमन के भेद ङ- भक्त प्रत्याख्यान के भेद च- अवमोदरिका के भेद छ- द्रव्य अवमोदरिका के भेद ज- उपकरण द्रव्य अवमोदरिका भेद झ- भक्त पान द्रव्य अवमोदरिका के भेद अ- भाव अवमोदरिका के भेद ट- भिक्षाचर्या के भेद ठ- रस परित्याग के भेद ड- कायवलेश के भेद ढ- प्रतिसंलीनता के चार भेद ण- इन्द्रिय प्रतिसंलीनता के पांच भेद Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २० औपपातिक-सूची • त- कषाय प्रतिसंलीनता के चार भेद थ- योग प्रतिसंलीनता के तीन भेद द- मनोयोग प्रतिसंलीनता के दो भेद ध- वचनयोग , " " न- काययोग ,, ,, प- विविक्त शय्या-आसन-सेवन की व्याख्या आभ्यन्तरतप के छ भेद २० क- प्रायश्चित्त के दस भेद ख- विनय के सात भेद ग- ज्ञानविनय के पांच भेद घ- दर्शनविनय के दो भेद ङ. शुश्रुषाविनय के भेद च. अनत्याशातना विनय के पैंतालीस भेद छ- चारित्रविनय के पांच भेद ज- मनविनय के दो भेद भा- वचन विनय के दो भेद अ- कायविनय के दो भेद ट- अप्रशस्त कायविनय के सान भेद ठ- प्रशस्त कायविनय के सात भेद ड- लोकोपचार विनय के सात भेद ढ- वैयावृत्य के दस भेद ण- स्वाध्याय के पांच भेद त- ध्यान के चार भेद | थ- आर्तध्यान के चार भेद द- , ,, लक्षण ध- रौद्रध्यान के चार भेद Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औपपातिक-सूची ५३४ सूत्र२१-२२ न- , , , लक्षण प- धर्मध्यान के चार भेद लक्षण भ- , चार आलम्बन की चार अनुप्रेक्षाएँ ध्यान के चार भेद ,, लक्षण य- , ____ , आलम्बन , अनुप्रेक्षाएँ व. व्युत्सर्ग के दो भेद श- द्रव्य व्युत्सर्ग के चार भेद ष- भाव व्युत्सर्ग के तीन भेद स- कषाय व्युत्सर्ग के चार भेद ह- संसार व्युत्सर्ग के चार भेद क्ष- कर्म व्युत्सर्ग के आठ भेद भ० महावीर के अन्तेवासी क- अंतेवासियों का श्रुतज्ञान ख- की चार प्रकार की धर्मकथाएं ग- , ,, ध्यान साधना घ- , ,, की संसार सागर पारगामिता संसार सागर का शब्द चित्र ङ- अन्तेवासियों की स्थिति मर्यादा भ० महावीर की प्रवचन परिषद् में असुरकुमार देवों का आगमन २२ क- असुरकुमारों की आकृति ख- , की वय Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २३-२७ ५३५ औपपातिक-सूची ग- असुरकुमारों के चिन्ह घ- के वस्त्राभूषण ङ- के विलेपन च- , की दिव्य उपलब्धियाँ छ- भगवान को वन्दना २३ क- भ० महावीर की प्रवचन परिषद में नाग आदि नव प्रकार के भवनवासी देवों का आगमन ख- भवनवासी देवों के क्रमशः मुकुट चिन्ह २४ क- भ० महावीर की प्रवचन परिषद में व्यन्तर देवों का आगमन ख- सोलह व्यन्तर देवों के नाम ग- व्यन्तर देवों का विनोदी जीवन घ- , के वस्त्राभूषण ङ- , के मुकुट चिन्ह भ० महावीर की धर्मकथा में ज्योतिषी देवों का आगमन २५ क- नव ग्रहों के नाम ख- अट्ठावीस नक्षत्र ग- ज्योतिषी देवों के मुकुट चिन्ह ____ भ० महावीर की धर्मकथा में वैमानिक देवों का आमगन २६ क- बारह देव लोकों के नाम ख- वैमानीक देवों के विमानों के नाम ग- वैमानिक देवों के मुकुट चिन्ह , के शरीर का वर्ण , के वस्त्राभूषण भगवान को वंदना २७ क- भ० महावीर के पधारने की नगरी में चर्चा ख- धर्म परिषद् होना Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औपपातिक-सूची सूत्र २८-३४ २८ क- प्रवृत्तिवादुक ने भगवान के पूर्णभद्र चैत्य में पधारने की सूचना ___कोणिक को दी ख- कोणिक ने साढे बारह लाख स्वर्ण मुद्रा का प्रीतिदान प्रवृत्ति वादुक को दिया कोणिक का सेनापती को पट्टहस्ती लाने का, सेना सुसज्जित करने का, सुभद्रा देवी प्रमुख को तैयार होकर आने का और नगर को सजाने का आदेश देना आदेशानुसार कार्य होने पर कोणिक को सेनापती का निवेदन ३१ क- कोणिक का सुसज्जित होना व्यायाम, तेलमर्दन, स्नान, वस्त्र और आभूषणों का वर्णन ख- पट्टहस्ति पर बैठना ग- अष्ट मांगलिक के नाम घ- राज्य चिन्हों के नाम ङ.. सब के यथाक्रम से व्यवस्थित होकर चलने का वर्णन च- अश्व सेना, गज सेना, रथ सेना और पैदल सेना का वर्णन छ- विविध वाद्यों का वर्णन ज- चम्पा नगरी के राजमार्ग से सपरिकर कोणिक का जाना ३२ क- स्तुतिपाठकों का वर्णन ख- समवसरण के समीप आने पर पांच राज्य चिन्ह छोड़ना ग- पांच अभिगम विधि के पश्चात् भगवान को वंदना करना ३३ क- सुभद्रा देवी आदि रानियों के सुसज्जित होने का वर्णन ख- अनेक देशों की दासियों के साथ पूर्णभद्र चैत्य में पहुंचना ग- पांच अभिगम विधि के पश्चात् भगवान को वन्दना करना ३४ क- भ० महावीर का धर्मपरिषद् में योजन पर्यन्त सुनाई देने __ वाले स्वर से अर्धमागधी भाषा में धर्मोपदेश ख- धर्मपरिषद् में आर्यों और अनार्यों की उपस्थिति Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औपपातिक-सूची ५३७ सूत्र ३५-३७ ग- अर्धमागधी भाषा का सभी आर्य अनार्य भाषाओं में अनुवादित होकर सुनाई देना घ- धर्मोपदेश के प्रमुख विषय लोकालोक, जीवादि नव तत्व, उत्तम पुरुष, चार गति, माता, पिता व गुरुजनों की भक्ति, निर्वाण साधना, जगत की अठारह पाप प्रवृत्तियों का परिचय, समस्त पापमय प्रवृत्तियों से निवृत्ति अस्ति नास्तिवाद, शुभाशुभ कर्मफल निग्रंथ-प्रवचन की महिमा सर्वथा कर्मक्षय से मुक्ति, शुभकर्म अवशेष रहनेपर स्वर्ग नरकगति के चार कारण तिर्यंचगति के चार कारण मनुष्यगति के चार कारण देवगति के चार कारण कर्मबन्ध का कारण राग दो प्रकार का धर्म पंच महाव्रत और रात्रि भोजन विरति रूप-अणगार धर्म, अणगार धर्म के आराधक बारह प्रकार का आगार धर्म [पांच अणुव्रत, तीन गुणवत, चार शिक्षाबत, संलेखना] प्रागार धर्म के प्राराधक ३५ क- धर्म कथा की समाप्ति. कई व्यक्तियों द्वारा आगार धर्म की प्रतिज्ञा करना ख- निग्रंथ प्रवचन की महिमा करना ग- धर्म, उपशम, विवेक और विरति का क्रम कोणिक का स्वस्थान गमन ३७ सुभद्रा प्रमुख रानियों का स्वस्थान गमन समवसरण वर्णन समाप्त Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ओपपातिक सूची ३८ क- गौतम गणधर का कायिक व आध्यात्मिक परिचय ख- गौतम गणधर की जिज्ञासा. विनय भक्तिपूर्वक प्रश्न ग- प्रश्नोत्तर ५३८ (१) असंयत- यावत् - एकान्त सुप्त के पाप कर्मों का आगमन [ आश्रव] का ( २ ) असंयत- यावत् - एकान्त सुप्त के मोहकर्म का (३) मोहबन्ध के साथ वेदना बन्ध का ( ४ ) असंयत- यावत् प्राणघाती की नरक गति का ( ५ ) असंयत की देवगती का. असंयत के व्यन्तर देव होने के कारण (६) व्यन्तर देवो की स्थिति ( ७ ) व्यन्तर देवो की ऋद्धि आदि ( ८ ) व्यन्तर देवों का आराधक न होना ( 2 ) कठोर दण्ड सहने वाले अपराधियों तथा आत्मघातकों की व्यन्तर देवों में उत्पत्ति (१०) व्यन्तर देवों की स्थिति ( ११ ) व्यन्तर देवों की शुद्धि आदि ( १२ ) व्यन्तर देवों का अनाराधक होना सूत्र ३८: (१३) प्रकृति भद्र यावत् - अल्प आरम्भ --सारम्भ जीवि मनुष्यों की व्यन्तर देवों में उत्पत्ति (१४) व्यन्तर देवों की स्थिति [ अनाराधक ] (१५) गतपतिका - यावत् अनिच्छा से ब्रह्मचर्य पालन करने वाली स्त्रियों की व्यन्तर देवों में उत्पत्ति (१६) व्यन्तर देवों की स्थिति [ अनाराधक ] (१५) द्विद्रव्य भोजी - यावत्- केवल सर्पपतेलभोजी मनुष्यों की व्यन्तर देवों में उत्पत्ति Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ३६ ५३६ औपपातिक-सूची (१८) व्यन्तर देवों की स्थिति [अनाराधक] (१६) अग्निहोत्री-यावत्-कण्डू-त्यागियों की ज्योतिषी देवों में उत्पत्ति [विविध तापस सम्प्रदायों के नाम] (२०) ज्योतिषी देवों की स्थिति (२१) ज्योतिषी देवों का अनाराधक होना (२२) कान्दपिक-यावत्-नृत्यरुचि श्रमणों की वैमानिकों में उत्पत्ति (२३) वैमानिक देवों की स्थिति (अनाराधक] परिव्राजकों की ब्रह्मलोक में उत्पत्ति (२४) क- आठ ब्राह्मण परिव्राजकों के नाम ख- आठ परिव्राजकों के नाम ग- षट् शास्त्रों के नाम घ- सांख्य शास्त्र तथा अन्य ग्रन्थ ङ- परिव्राजकों की संक्षिप्त आचार संहिता (२५) परिव्राजकों की स्थिति [अनाराधक] अंबड परिव्राजक की चर्या ३६ क- अंबड के सात सो शिष्य ख- कंपिलपुर से पुरिमताल नगर जाना ग- अटवी में भटक जाना घ- सभी परिव्राजकों की पिपासा-पानी पाने की इच्छा पानीदाता की शोध ङ- अदत्तादान की प्रतिज्ञा च- गंगा नदी की संतप्त वालुरेत पर संलेखना. पादपोगमन, समाधिमरण छ- सभी परिव्राजकों की ब्रह्मलोक में उत्पत्ति. स्थिति. परलोक की आराधकता | Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ औपपातिक-सूची ५४० सूत्र४०-४१ ४० क. अम्बड परिव्राजक की साधना ख- अम्बड द्वारा कपिलपुर में वैक्रिय लब्धि का प्रदर्शन ग. अम्बड परिव्राजक को अवधिज्ञान घ- अम्बड की आगार धर्म आराधना ङ- अम्बड की दृढ़ सम्यक्त्व च- अम्बड का समाधिमरण. ब्रह्मलोक में उत्पत्ति. च्यवन. छ- महाविदेह के समृद्ध कुल में जन्म. लौकिक संस्कार-दृढ प्रतिज्ञ नामकरण. कलाचार्य के समीप अध्ययन. बहत्तर कलाओं के नाम. अठारह देशी भाषाओं का ज्ञान. कलाचार्य को प्रीति दान. काम भोगों से विरक्ति. विरक्ति के लिये कमल की उपमा. स्थविरों से सम्यक्त्व की प्राप्ति. अणगार धर्म की दीक्षा- रत्नत्रय की आराधना केवल ज्ञान. [श्रमण साधना का संक्षिप्त वर्णन अम्बड की आत्मा को निर्वाण पद की प्राप्ति. ४१ क- आचार्य प्रत्यनीक आदि श्रमणों किल्विषी देवों में उत्पत्ति ख- किल्विषी देवों की स्थिति ग- परलोक में अनाराधक होना. घ. जातिस्मरण से देशविरत. संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की सहस्रार कल्प पर्यन्त उत्पत्ति ङ- स्थिति. परलोक में आराधक होना च- आजीविक श्रमणों की अच्युत कल्प पर्यन्त उत्पत्ति. छ- अच्युत कल्प में देवों की स्थिति. परलोक में आराधक न होना ज- आत्मोत्कर्षक-अपनी बड़ाई करने वाले-यावत्-कौतुक करने वाले श्रमणों की अच्युतकल्प पर्यन्त उत्पत्ति. झ- अच्युत कल्प में इन देवों की स्थिति. परलोक में अनाराधक. Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४२-४३ ५४१ औपपातिक-सूची अ- प्रवचन निन्हवों की प्रैवेयक देव पर्यन्त उत्पत्ति. ट- इन ग्रैवेयक देवों की स्थिति. परलोक में अनाराधक ठ- अल्पारम्भी-यावत्-देशविरत श्रमणोपासकों की अच्युत कल्प पर्यन्त उत्पत्ति ड- इन देवों की स्थिति. परलोक में आराधक ढ- अनारम्भी-यावत्-नग्नभाव वाले निर्ग्रन्थों की मुक्ति ण- अवशेष शुभकर्मा निर्ग्रन्थों की सर्वार्थ सिद्ध में उत्पत्ति. त- इनकी स्थिति. परलोक में आराधक थ- सर्व कामविरत-यावत्-क्षीण लोभ निग्रंथों की मुक्ति ४२ क- केवल समुद्घात के समय आत्मा का पूर्णलोक से स्पर्श. ख. ,, , , ,, निर्जरा पुद्गलों का पूर्णलोक से स्पर्श ग- छद्मस्थ के अदृष्ट निर्जरा पुद्गल. घ. निर्जरा पुद्गलों को अतिसूक्ष्म सिद्ध करने के लिये गन्ध पुद् गलों का उदाहरण [जम्बूद्वीप का आयाम-विष्कम्भ. परिधि. देवताकी दिव्य गति. गन्ध पुद्गलों का पूर्ण लोक से स्पर्श. छद्मस्थ के अदृष्ट गध पुद्गल] ड- केवली समुद्घात करने का कारण. च- सभी केवलियों का केवली समुद्घात न करना छ- केवली समुद्घात के आठ समय ज- केवली समुद्घात के समय. मन, वचनयोग के प्रयोग का निषेध झ- काययोग के प्रयोग का निश्चित क्रम ब- केवली समुद्घात के आठ समयों में मुक्त होने का निषेध ट- केवली समुद्घात के पश्चात् मन, वचन, काय का प्रयोग ४३ क- सयोगी की मुक्ति का निषेध Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४३ १-२ ५४२ ख- योग निरोध का काल और क्रम ग. मुक्त आत्मा की अविग्रह गति घ- मुक्त होते समय एक साकारोपयोग ङ - सिद्धों की सादी अपर्यवसित स्थिति का द्योतक दग्ध बीज का उदाहरण च - सिद्ध होने वाले जीव का संघयण के संस्थान छ ज झ 17 " 1) 37 33 17 " " :) 31 ञ - सिद्धों का निवास स्थान ट - सर्वार्थ सिद्ध विमान के ऊपरी भाग से ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी तल अन्तर ठ- ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी का आयाम विष्कम्भ की परिधि "" 37 17 77 37 73 33 की जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना' की जघन्य उत्कृष्ट आयु के मध्य भाग की मोटाई के बारह नाम का वर्ण का संस्थान की पौद्गलिक रचना का स्पर्श की अनुपम सुन्दरता औपपातिक सूची ण. ईषत् प्राग्भारा के ऊपरीतल से लोकांत का अन्तर त- गाउ-कोश के छठे भाग में सिद्धों की अवस्थिति बावीस गाथाओं के विषय सिद्ध अलोक के नीचे और लोक के ऊपर. शरीर त्याग तिरछा लोक में और सिद्धि सिद्धलोक में १. यह कथन तिर्थंकरों की अपेक्षा से है - टीका Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ३-२२ ३ ४-८ ६-१० ५४३ सिद्धात्माओं का संस्थान सिद्धों की जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट अवगाहना एक में अनेक सिद्धात्मा सिद्धात्माओं का लोकान्त से स्पर्श. सिद्ध-आत्माओं का परस्पर स्पर्श. ११ सिद्धों का लक्षण १२ सिद्धों का ज्ञान, सिद्धों की दृष्टि १३-२२ सिद्धों का सोदाहरण सुख स्वरूप औपपातिक सूची कंदप्पमाभिओगं च, किव्विसिय मोहमासुरत्त' च मरणमि विराहिया होंति ।। एयाओ दुग्गईओ, कंदप्प - कुक्कुयाई, विम्हावेंतो य परं, मंता जोगं काउँ, तहसील-सहाव-हास - विगहाई | कंदप्पं भावणं कुणई || भूईकम्मं च जे परंजंति । अभियोगं भावणं कुणई || धम्मायरियस्स संघ-साहूणं । साय-रस- इड्डिहेउं, नाणस्स केवलीणं, माई अवण्णवाई, किव्विसियं भावणं कुणई || अणुबद्ध रोस - पसरो, तह य निमित्तम्मिहोइ पड़िसेवी । एए हिं कारणेहिं, आसुरियं भावणं कुणई || सत्थगहणं विसभक्खणं, जलणं जलपवेसो अणायार-भंडसेवी, जन्म-मरणाणि य । बंधंति ॥ Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुहसायगस्स समणस्स, सायाउलगस्स निगामसाइस्स | उच्छोलणा पहोयस्स, दुल्लहा सुगइ तारिसगस्स || तवो गुण - पहाणस्स, उज्जुमइ खंति-संजम - रयस्स | परीसहे जिणंतस्स, सुलहा सुगइ तारिसगस्स ॥ থম যকথন ww Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो णिग्गंथाणं द्रव्यानुयोग-प्रधान राजप्रश्नीय-उपांग अध्ययन उद्देशक उपलब्ध मूल पाठ २१००श्लोक प्रमाण गद्य सूत्र पद्य-गाथा ----0--0-0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0--0-0-0--0--0--- वणे मूढ़े जहा जंतु, मूढे णेयाणुगामिए । दो वि एक अकोविया, तिव्वं सोयं नियच्छइ ।। अंधो अंधं पहं नेतो, दूरमद्धाणुगच्छइ । आवज्जे उप्पहं जंतू, अदुवा पंथाणुगामिए । एवमेगे णियायट्ठी, धम्ममाराहगा वयं । । अदुवा अहम्ममावज्जे, न ते सव्वजुयं वए ।। ------------------------------------------------------ Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देहात्मवाद के तर्क से जहानामए-केइ पुरिसे कोसीओ असिं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा । अयमाउसो! असी अयं कोसी, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टित्ता णं उवंदसेत्तारो अयमाउसो ! आया इयं सरीरं । से जहानामए-केइ पुरिसे मु जाओ इसियं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा । अयमाउसो ! मुजे इयं इसियं, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! आया इयं शरीरं । से जहानामए-केइ पुरिसे मंसाओ अट्ठि अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा । जयमाउसो ! करयले अयं आमलए, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! आया इयं सरीरं। से जहानामए-केइ पुरिसे दहीओ नवणीयं अभिनिव्वट्टित्ता णं उवदंसेज्जा । अयमाउसो ! नवणीयं अयं तु दही, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! आया इयं सरीरं। से जहानामए-केइ पुरिसे तिलेहितो तेल्लं अभिनिव्व ट्टित्ता ण उवदंसेज्जा । अयमाउसो ! तेल्लं अयं पिण्णाए, नस्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! आया इयं सरीरं । से जहानामए-केइ पुरिसे इक्खूओ खोयरसं अभिनिवट्टित्ता णं उवदंसेज्जा । अयमाउसो खोयरसे अयं छोए, एवमेव नत्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! आया इयं सरीरं । से जहानामए-केइ पुरिसे अरणीओ अग्गिं अभिनिवट्टित्ता णं उवदंसेज्जा । अयमाउसो ! अरणी अयं अग्गी, एवमेव नस्थि केइ पुरिसे उवदंसेत्तारो अयमाउसो ! आया इयं सरीरं । एवं असंते असंविज्जमाणे तं सुयक्खायं भवइ, तंजहाअन्नो जीवो अन्नं सरीरं, तम्हा ते मिच्छा सूत्रकृताङ्ग श्रुतस्कंध -२ अ० १ Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजप्रश्नीय-उपांग विषय-सूची आमलकल्पा नगरी वर्णन २ क- आम्रशाल वन वर्णन ___ ख- आम्रशाल वन चैत्य वर्णन ३ क- अशोक वृक्ष वर्णन ख- शिलापट्ट वर्णन (औपपातिक के समान) ४ क- श्वेत राजा. धारिणी देवी ख- भ० महावीर का समवसरण, धर्म परिषद्. धर्मकथा. राजा की पर्युपासना ५ क- सूर्याभ देव. सौधर्म कल्प. सूर्याभ विमान. सुधर्मा सभा. ख- चार हजार सामानिक देव. चार अनमहीषियाँ, तीन परिषद सात सेना. सात सेनापती. सोलह हजार आत्मरक्षक देव. ग. सूर्याभ का अवधिज्ञान से सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को देखना. घ- भ० महावीर को आमलकल्पा के आम्रशाल वन चैत्य में देखना. ङ- सूर्याभदेव का स्वस्थान से भगवद् वंदन ६ भगवद् दर्शन के लिये आने का संकल्प. ७ भगवान् के आसपास का एक योजन प्रदेश साफ करके पुनः सूचित करने का आभियोगिक देव को आदेश. ८ क- आभयोगिक देव का (वैकेय समुद्घात. सोलह प्रकार के रत्नों के नाम) सुसज्जित होकर आम्रकल्पा आना ख- आम्रशाल वन चैत्य में विराजमान भगवान को वंदना करना ६ अभियोगिक देव को देवताओं के कर्तव्य का निर्देश. Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज प्र० सूची १० ५४८ सूत्र १०-१६. आभियोगिक देव का वैक्रेय समुद्घात करना, सफाई करने के लिये तैयार होना ११ क- संवर्तक वायु की विकुर्वणा- रचना. एक तरुण कुशल व्यक्ति के समान संवर्तक वायु द्वारा कचरे की सफाई होना ख- अभ्र, मेघ की रचना, एक योजन प्रदेश का सिंचन ग- पुष्प बादल की रचना. एक योजन में पुष्पवर्षा. घ- एक योजन के क्षेत्र को विविध प्रकार के धूपों से सुवासित करना ङ - भगवान् को वन्दना करके आभियोगिक देव का स्वस्थान जाना और सूर्याभ देव को सविनय सफाईकार्य से अवगत करना १२ क- सूर्याभ देव का पैदल सेनाध्यक्ष को बुलाना ख- आमलकल्पना चलने के लिये सभी देवों को शीघ्र उपस्थित होने की सुघोषा घंटा द्वारा सूचना दिलवाना. १३ क- पैदल सेनाध्यक्ष का सुघोषा घंटा वादन १४ ख- सभी देव देवियों को भगवद् वन्दना के लिये आह्वाहन सुसज्जित देव देवियों का सूर्याभ के सामने उपस्थित होना १५ आभियोगिक देव को दिव्य यानविमान की रचना का आदेश १६ क - दिव्य यानविमान की रचना का विस्तृत वर्णन ( शिल्प वर्णन ) ख- आठ मंगलों के नाम ग- विविध चर्मों के स्पर्श से विमान के स्पर्श की तुलना घ- भित्तिचित्रों का परिचय ङ - कृष्ण वर्ण के विविध पदार्थों से कृष्ण मणियों की तुलना च - नील वर्ण के अनेक पदार्थों से नील मणियों की तुलना छ- रक्तवर्ण के नानाविध द्रव्यों से लोहित मणियों की तुलना ज - पीत वर्ण के प्रशस्त पदार्थों से हारिद्र मणियों की तुलना झ - शुक्ल वर्ण के स्वच्छ द्रव्यों से श्वेत मणियों की तुलना ञ - सुगंधित द्रव्यों से मणियों के गन्ध की तुलना Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १७-१८ ५४६ राज प्र० सूची ट - अति मृदु स्पर्शवाले पदार्थों से मणियों के स्पर्श की समानता. ठ- विमान के मध्य में प्रेक्षावर मंडप की रचना [विशाल वास्तु शिल्प का अंकन ] ड- प्रेक्षाघर मंडप के मध्य में अखाड़े का निर्माण ढ - चार योजन की मणिपीठिका का निर्माण ण - सिंहासन की रचना [ शिल्प कला ] त- विजय वस्त्र का विन्यास थ- वज्रमय अंकुश और मुक्तामाला की रचना द- उत्तर-पूर्व में [ ईशान कोण ] में सामानिक देवों के सिंहासन पूर्व में अग्र महीषियों के भद्रासन दक्षिण - पूर्व में आभ्यन्तर परिषद के आठ हजार भद्रासन. दक्षिण में मध्यम परिषद के दस हजार भद्रासन दक्षिण-पश्चिम में बाह्य परिषद के बारह हजार भद्रासन पश्चिम में सात सेनापतियों के सात भद्रासन चारों दिशाओं में आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार भद्रासन [ प्रत्येक दिशा में चार-चार हजार भद्रासन ] ध विमान के वर्ण गन्ध की उपमा. न- आभियोगिक देव द्वारा विमान की तैयारी की सूर्याभदेव को सूचना १७ क- गंधर्व और नर्तकों के साथ सूर्याभ का विमान में प्रवेश. ख- देव परिवार का यथास्थान बैठना ग- विमान के आगे अष्ट मंगल, दण्ड, महेन्द्र, ध्वज, पांच सेनापतियों के विमानों और आभियोगिक देवियों के विमान का चलना १८ - सौधर्मकल्प के उत्तर के निर्याण मार्ग से सूर्याभ का प्रस्थान ख- विमान की उत्कृष्ट गति ग- नंदीश्वर द्वीप के रतिकर पर्वत पर दिव्य ऋद्धि को संक्षिप्त करना Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज प्र० सूची ५५० सूत्र १६-२४ घ- आमलकल्पा के आम्रवन, शालवन चैत्य में सूर्याभ का पहँचनाः ङ- यान विमान से सूर्याभ का सपरिवार बाहर आना च- भ० महावीर को सविधि वंदन करना छ- भ० महावीर को अपना परिचय देना भ० महावीर का सूर्याभ को देव' कृत्यों का निर्देश २० सूर्याभ का सविनय भगवान् के सम्मुख उपस्थित रहना भ० महावीर का सूर्याभ परिषद् में धर्म प्रवचन भ० महावीर से सूर्याभ देवके अपने सम्बन्ध में कतिपय प्रश्न कमैं भवसिद्धिक. सम्यक्दृष्टि, परित्त संसारी, सुलभ बोधि, आरा धक और चरिम हूँ या इससे विपरीत? ख- भ० महावीर द्वारा स्पष्टीकरण २३ क- भगवान् के ज्ञान की महिमा करना ख- गौतमादि श्रमण निग्रंथों को बत्तीस प्रकार का दिव्य नृत्य ___ दिखाने के लिये भ० महावीर से आज्ञा प्राप्त करने का प्रयत्न करना २४ क- महावीर का हाँ, ना न करना. मौन रहना ख- नृत्य दिखाने के लिये आज्ञा प्राप्ति का पुनः प्रयत्न. भ० महावीर का पूर्ववत् मौन रहना. ग- सूर्याभ का सविधि वंदन घ- सूर्याभ का वैक्रेय समुद्घात ङ- नृत्य के लिये भूभाग का समीकरण च. नाट्यशाला-प्रेक्षाघर मण्डप की रचना छ- भ० के सम्मुख अपने सिंहासन पर बैठने की भगवान से आज्ञा प्राप्त करना. . ज- सूर्याभ का दक्षिण भूजा प्रसारण. नृत्य के लिये सुसज्जित १०८ देव कुमारों का प्रकट होना. Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २४ झ ५५१ राज प्र० सूची सूर्याभ का वाम भूजा प्रसारण. नृत्य के लिये सश्रृंगार १०८ देव कन्याओं का प्रकट होना. ञ - देव कुमार और देव कुमारियों की भगवद् वन्दना गौतमादि के सम्मुख नृत्य प्रदर्श के लिये उपस्थित होना ट- सत्तावन प्रकार के वाद्य और उनके वादकों का एक सो आठ आठ की संख्या में उपस्थित होना. ठ- अष्ट मांगलिक नृत्य ड- भित्तिचित्र नृत्य ढ - चक्रवाल नृत्य ण - चन्द्रावली - यावत् - रत्नावली नृत्य त- सूर्योदय नृत्य थ - चन्द्रसूर्यागमन नृत्य द- चन्द्रसूर्यावरण नृत्य ध- चन्द्रसूर्यास्त नृत्य न - चन्द्रसूर्य मण्डलादि नृत्य प- ऋषभ ललित यावत्- द्रुत विलम्बित नृत्य फ- सागर विभक्ति - यावत्-नन्दा चम्पा विभक्ति नृत्य ब- मत्स्यण्डादि नृत्य भ- पञ्चाक्षर वर्ग नृत्य म- अशोक पल्लवादि नृत्य य- पद्मलतादि नृत्य र- द्रुतादि गति नृत्य ल- अंगचेष्टा नृत्य व- भ० महावीर के पूर्वभवों का नृत्य द्वारा प्रदर्शन श- भ० महावीर के कल्याणकों का नृत्य स- चार प्रकार के वाद्यों का वादन Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __E राज प्र० सूची ५५२ सूत्र २५-२८ ष- चार प्रकार के गवैयों का गायन क्ष- " नृत्यों का प्रदर्शन त्र- " अभिनयों का प्रदर्शन ज्ञ- देवकुमार और कुमारियों का भगवान् को वंदना करके सूर्याभ के समीप पहुंचना २५ क- सुर्याभ द्वारा दिव्य ऋद्धि का संहार ख- भगवद् वंदना. सौधर्म कल्प गमन क- सूर्याभ प्रदर्शित दिव्य ऋद्धि विलय हेतु जिज्ञासा ख- कूटागार शाला के हेतु से समाधान. क- सूर्याभ विमान का स्थान ख- सूर्याभ विमान-विस्तार दिशायें ग- का संस्थान घ- सौधर्म कल्प के ३२ लाख विमान ङ- पांच अवतंसक विमानों के नाम च- सौधर्मावतंसक विमान से पूर्व में सूर्याभ विमान छ- सूर्याभ विमान का आयाम-विष्कम्भ ज- सूर्याभ विमान की परिधि २८ क- सूर्याभ विमान के प्राकार की ऊँचाई प्राकार के मूल का विष्कम्भ प्राकार के मध्य का विष्कम्भ ख- स्वर्णमय प्राकार, पंच वर्ण मणिमय कपि शीर्षक-कांगुरे, कपिशीर्षकों का आयाम-विष्कम्भ, कपिशीर्षकों की ऊँचाई ग- सूर्याभ विमान के एक पार्श्व के द्वार, द्वारों की ऊँचाई, द्वारों का विष्कम्भ, द्वारों के शिखर, द्वारों के भित्तिचित्र घ. द्वार कपाट वर्णन ङ- द्वारों के दोनों और चन्दन कलशों की पंक्तियाँ नाग दंतों (खूटियाँ) की पंक्तियाँ Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २४ राज प्र० सूची च. नागदंतों के उपर नागदन्तों की पंक्तियाँ छ- नागदंतों पर लटकने वाले सुगन्धित धूप के छींके ज- द्वारों के दोनों ओर सोलह २ सालभंजिकाएँ झ- द्वारों के दोनों ओर सोलह २ जालियाँ घंटियाँ घटियों का मधुर स्वर अ- द्वारों के दोनों ओर सोलह २ वनमालाएँ ट- द्वारों के दोनों ओर दो, दो पगंठक- चबूतरे पगंठकों का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य प्रत्येक पगंठक पर एक एक प्रासाद प्रासादों की ऊंचाई, विष्कम्भ ठ- द्वारों के दोनों ओर सोलह २ तोरण प्रत्येक तोरण पर दो दो सालभंजिकाएं प्रत्येक तोरण के आगे हय-यावत्-वृषभ के समुदाय प्रत्येक तोरण के आगे पद्मलता-यावत्-श्यामलताएं प्रत्येक तोरण के आगे दो प्रशस्त स्वस्तिक चन्दन कलश भृगार आदर्श काँच थाल पानी पात्र पीठिकाएं रत्नकरण्डक हय-यावत-वृषभ रत्न पुष्प चंगेरियां सिंहासन छत्र Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज प्र० सूची ५५४ सूत्र २६-३२ प्रत्येक तोरण के आगे दो प्रशस्त चमर तेल पात्र ढ- सूर्याभ विमान के प्रत्येक द्वार पर विविध प्रकार की १०८ .१०८ ध्वजाएं ण- सूर्याभ विमान में ६५-६५ तलघर तलघरों के द्वारों पर सोलह-सोलह रत्न ,, अष्ट-अष्ट मंगल त- सूर्याभ विमान के चार दिशाओं के चार हजार द्वार थ- सूर्याभ विमान के चार दिशाओं में चार वनखण्ड प्रत्येक वनखण्ड का आयाम-विष्कम्भ २६ वनखण्ड की तृणमणियों के स्वर का वर्णन ३० क- वनखण्ड की वापियों का वर्णन ख. वनखण्ड के उत्पात पर्वतों का वर्णन ग- वनखण्डवर्ती मण्डपों का वर्णन घ. झूलों का वर्णन ङ- , . शिलापट्टों का वर्णन क- वनखण्ड के प्रासादों की ऊंचाई आयाम-विष्कम्भ ख- प्रत्येक प्रासाद में एक-एक देवता, उन. देवताओं की स्थिति ग- प्रत्येक वनखण्डवर्ती उपकारिकालयन का आयाम-विष्कम्भ, परिधि, बाहल्य, मोटाई ३२ क- पद्मवरवेदिका की ऊँचाई, विष्कम्भ, परिधि ख- पद्मवरवेदिका का वर्णन ग- पद्मवरवेदिका कथंचित् नित्य और कथंचित् अनित्य-अर्थात् --शास्वत घ- वनखण्ड का चक्रवाल विष्कम्भ ङ- उपकारिकालयन का वर्णन Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ३३-३४ ५५५ राज प्र० सूची ३३ क - उपकारिकालयन मध्यवर्ती मुख्य प्रासाद की ऊँचाई, विष्णु भ आदि ख- मुख्य प्रासाद के पाश्र्ववर्ती प्रासादों की ऊँचाई- विष्कम्भावादित ३४ क- मुख्य प्रासाद के उत्तर-पूर्व में सुधर्मा सभा ख- सुधर्मा सभा का आयाम - विष्कम्भ ऊँचाई, आदि ग- सुधर्म सभा के तीन दिशाओं में तीन द्वार प्रत्येक द्वार की ऊँचाई और विष्कम्भ प्रत्येक द्वार के अग्रभाग में एक-एक मुख्य म मुख-मण्डपों का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई मुख-मण्डपों का आयाम - 1 म - विष्कम्भ और बाई मुख-मण्डपों के तीन तिन दिशाओं में तीन द्वार, द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ प्रत्येक द्वार के अग्रभाग में एक-एक प्रेक्षाधर मंडप प्रत्येक प्रेक्षाघर मण्डप के मध्य भाग में एक-एक अखाड़ा प्रत्येक अखाड़े के मध्य भाग में एक-एक मणिपीठिका मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई प्रत्येक मणिपीठिका पर एक-एक सिंहासन प्रत्येक प्रेक्षाघर मण्डप के अग्रभाग में एक-एक मणिपीठिका प्रत्येक मणिपीठिका का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य प्रत्येक मणिपीठिका पर एक स्तूप प्रत्येक स्तूप का आयाम -- विष्कम्भ और ऊँचाई प्रत्येक स्तूप के चारों दिशाओं में एक-एक मणिपीठिका प्रत्येक मणिपीठिका पर चारों दिशाओं में स्तूपाभिमुख चार चार जिन प्रतिमाएँ प्रत्येक स्तूप के सामने एक-एक मणिपीठिका प्रत्येक मणिपीठिका का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य प्रत्येक मणिपीठिका पर एक एक चैत्य वृक्ष Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज प्र० सूची ५५६ सूत्र ३५-३७ प्रत्येक चैत्य वृक्ष की ऊँचाई और उवध स्कंध गोलाई आदि का परिमाण प्रत्येक चैत्य वृक्ष के सामने एक मणिपीठिका प्रत्येक मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य प्रत्येक महेन्द्र ध्वज की ऊँचाई उद्वेध और विष्कम्भ प्रत्येक महेन्द्र ध्वज के सामने एक एक पुष्करिणी प्रत्येक पुष्करिणी का आयाम-विष्कम्भ और उद्वेध पद्मवर वेदिका, वनखण्ड आदि का वर्णन सुधर्मा सभा में मनोगुलिकाएं, नागदंत, छींके आदि सुधर्मा सभा में एक महामणिपीठिका । मणिपीठिका पर एक माणवक चैत्य स्तम्भ चैत्य स्तम्भ की ऊँचाई उद्वध विष्कम्भ आदि चैत्य स्तम्भ के मध्य भाग में नागदंत, नागदन्तों के छींके पर डिब्बे, डिब्बों में जिन अस्थियाँ अस्थियों की अर्चा, चैत्यस्तम्भपर अष्ट २ मंगल ३५ क- माणवक स्तम्भ के पूर्व में एक महापीठिका महापीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य ख- पश्चिम में महा मणपीठिका, उसका आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य ग- मणिपीठिकापर एक देव शयनीय और उसका वर्णन ३६ क- देवशयनीय के उत्तर-पूर्व में एक महामणिपीठिका उसका विष्कम्भ और बाहल्य ख- महामणिपीठिका पर एक महेन्द्र ध्वज, उसकी ऊँचाई और विष्कम्भ महेन्द्र ध्वज के पश्चिम में सूर्याभ देव का एक शस्त्रागार सुधर्मा सभा आदि ३७ क- सुधर्मा सभा के उत्तर-पूर्व में एक महासिद्धायतन Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ३८ राज प्र० सूची ख- सिद्धायतन का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई ग- सिद्धायतन के मध्य भाग में एक मणिपीठिका, उसका आयाम विष्कम्भ और बाहल्य घ- मणिपीठिकापर एक देवछंदक, उसका आयाम-विष्कम्भ और उसकी ऊँचाई ङ- देवछंदकपर १०८ जिनप्रतिमाएँ, जिनप्रतिमाओं का वर्णन जिन प्रतिमाओं के पृष्ठभाग में छत्रधारी प्रतिमाएँ दोनों पार्श्व में चमरधारी प्रतिमाएँ अग्र भाग में दो-दो नाग भूत यक्ष आदि की प्रतिमाएँ जिन प्रतिमाओं के सामने १०८ घंट, कलश-यावत्-धूपकड़छूवे च- सिद्धायतन के ऊपर अष्ट मंगल आदि ३८ क- सिद्धायतन के उत्तर-पूर्व में एक उपपात सभा [सुधर्मा सभा के समान वर्णन ख- उपपात सभा के उत्तर-पूर्व में एक महाह्रद महाह्रद का आयाम-विष्कम्भ और उवध ग- ह्रद के उत्तर-पूर्व में एक अभिषेक सभा [सुधर्मा सभा के समान _वर्णन] घ- अभिषेक सभा के उत्तर-पूर्व में एक अलंकारिक सभा [सूधर्मा के समान वर्णन] ङ- अलंकार सभा के उत्तर-पूर्व में एक व्यवसाय सभा [उपपात सभा के समान वर्णन] च- व्यवसाय सभा में एक धर्मशास्त्रों का महापुस्तक रत्न. पुस्तक रत्न का वर्णन. व्यवसाय सभा पर अष्ट मंगल छ- व्यवसाय सभा के उत्तर-पूर्व में एक नन्दा पुष्करिणी. ज- नंदा पुष्करिणी से उत्तर-पूर्व में एक पाद पीठ सिंहासन Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ३६-४५ ५५८ राज प्र० सूची ४० ३६ क- सूर्याभ का संकल्प ख- सामानिक देवों द्वारा सूर्याभ के कर्तव्य का निर्देश क- सूर्याभ का स्नान और अभिषेक का विस्तृत वर्णन ख- सूर्याभ विमान की सजावट ग- देवताओं का [चार प्रकार का वाद्य-वादन, गायन, नृत्य, अभि नय आदि घ- सामानिक देवों द्वारा सूर्याभ देव की शुभ कामना. ङ.- अलंकार सभा में सूर्याभ का शृंगार करना व्यवसाय सभा में सूर्याभ का पुस्तक वाचन ४२ क- सिद्धालय में जिन प्रतिमाओं की अर्चना, स्तुति पाठ, वंदना. ख- सिंहासन, अखाड़े आदि का प्रमार्जन. ग- चैत्यस्तूप की अर्चना. घ- जिन प्रतिमाओं की, चैत्य वृक्षों की और महेन्द्र ध्वज की अर्चना. ङ- चैत्य स्तम्भ का प्रमार्जन. जिन अस्थियों की अर्चना. च- बली विसर्जन छ- सामानिक देवों को विमान के अन्य सर्व अर्चनीय स्थानों की ___अर्चना का आदेश ज- सूर्याभ का सुधर्मा सभा में सिंहासनासीन होना. ४३ क- सूर्याभ के परिवार का यथा स्थान उपवेशन ख- आत्मरक्षकों का कर्तव्य पालन ४४ क- सूर्याभ की स्थिति ख- सामानिक देवों की स्थिति ४५ क- सूर्याभ के सम्बन्ध में गौतम की जिज्ञासाएं, दिव्य ऋद्धि की प्राप्ति का कारण ? ख- पूर्वभव के नाम, गोत्र व स्थान. ग- पूर्व भव के सत्कृत्य ? Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४६-५४ ५५६ ४६ क- भ० महावीर द्वारा सूर्याभ के पूर्वभव का वर्णन मृगवन उद्यान, प्रदेशी राजा [ राजा का जीवन परिचय ] सूर्यकान्ता देवी ४७ ४८ युवराज सूर्यकान्त कुमार ४६ प्रदेशी राजा के बड़े भाई चित्त सारथी का राजनीतिक जीवन ५० क- कुणाल जनपद श्रावस्ती नगरी. कौष्टक चैत्य. जितशत्रु राजा. ख- प्रदेशी राजा का चित्त सारथी के साथ जित शत्रु राजा को महर्घ्य उपहार भेजना. ग- महर्घ्य उपहार लेकर श्वेताम्बिका पहुँचना और जितशत्रु राजा को भेंट करना. -५१ क- कौष्ठक चैत्य में पाश्र्वापत्य केशी कुमारश्रमण का पधारना. ख- धर्मपरिषद् में चित्त का जाना और चातुर्याम धर्म एवं द्वादशविध गृहीधर्म का श्रवण करना. ग- पंचारणुव्रत, सप्त शिक्षाव्रत रूप द्वादशविध गृहीधर्म धारण करना. -५२ चित्तसारथी का श्रमणोपासक बनना ५३ क - जितशत्रु राजा का चित्त के साथ प्रदेशी राजा को भेंट देने के लिये बहुमूल्य उपहार भेजना. ख- केशीकुमार श्रमण को श्रावस्ती पधारने का आग्रह करना. ग- श्वेताम्बिका को सोपसर्ग वनखण्ड की उपमा देकर अनिच्छा राज प्र० सूची प्रगट करना. घ- श्वेताम्बिका में अनेक श्रमणोपासकों के होने से किसी प्रकार का कष्ट न होने का आश्वासन दिलाना. ङ. चित्त की विनती स्वीकार करना ૪ चित्त का मृगवन के उद्यानपालक को केशी कुमार श्रमण की भक्ति करने का तथा प्राने पर सूचना देने का कहना Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज प्र० सूची सूत्र ५५-६२ ५५ जितशत्रु का भेजा हुआ उपहार प्रदेशी राजा को भेंट करना ५६ क- केशी कुमार श्रमण का मृगवन उद्यान में पधारना ख- उद्यान पालक का चित्त को सूचना देना ग. चित्त का धर्मकथा श्रवण करना ५७ क. राजा प्रदेशी को धर्मोपदेश देने के लिए चित्त की प्रार्थना ५८ क- केशी कुमार श्रमण द्वारा केवली प्रज्ञप्त धर्म श्रवण न कर सकने के चार कारण तथा केवली प्रज्ञप्त धर्म श्रवण कर सकने के चार कारणों का कथन ख- चित्त की ओर से प्रदेशी राजा को लाने का आश्वासन ५६ क- राजा प्रदेशी को कम्बोज देश के अश्वों की गति दिखाने वे बहाने वन में ले जाना. ख- विश्रान्ति के लिये मृगवन उद्यान में ले जाना ग- केशी कुमार श्रमण के सम्बन्ध में प्रदेशी की जिज्ञासा ६० क- चित्त को साथ लेकर प्रदेशी का केशी कुमार श्रमण के समीप पहुंचना-और प्रश्न करना. ख- कर की चोरी करने वाले वणिक के समान अविनय से प्रश्न न पूछने के लिये केशी कुमार श्रमण का कथन तथा राजा के मनोगत भावों का कथन. ६१ क- मनोगत भावों को जानने वाले ज्ञान के सम्बन्ध में राजा प्रदेशी की जिज्ञासा ख- केशी कुमार श्रमण द्वारा पांच ज्ञानों का संक्षिप्त परिचय और स्वयं के चार ज्ञान होने का कथन. ६२ क- देह और आत्मा के भिन्न होने का हेतु जानने के लिये प्रदेशी का प्रश्न ख- अधर्मी पितामह का नरक से और धर्मात्मा पितामही का स्वर्ग Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ६३-६७ राज प्र० सूची से आकर पाप-पुण्य का फल कथन. देह और आत्मा की भिन्नता का हेतु स्वीकार करना झ- केशी कुमार श्रमण द्वारा नरक से आने में बाधक चार कारणों __ का सहेतुक कथन ६३ स्वर्ग से आने में बाधक चार कारणों का सहेतुक कथन ६४ क- देह और आत्मा की अभिन्नता के सम्बन्ध में राजा प्रदेशी द्वारा दिया गया लोह कभी में बन्द चोर की मृत्यु का उदारहण ख- देह और आत्मा की भिन्नता सिद्ध करने के लिये केशी कुमार श्रमण द्वारा दिया गया-कूटागार शाला से आने वाली वाद्यध्वनि का उदाहरण. ग- देह और आत्मा की अभिन्नता के सम्बन्ध में राजा प्रदेशी द्वारा दिया गया लोह कुभी में बन्द चोर के मृत शरीर में कृमियों की उत्पत्ति का उदाहरण घ. देह और आत्मा को भिन्न सिद्ध करने के लिये केशी कुमार श्रमण द्वारा दिया गया संतप्त लोह गोलक में अग्नि प्रवेश का उदाहरण. ६५ क- देह और आत्मा की अभिन्नता के सम्बन्ध में राजा प्रदेशी का दिया हुआ तरुण और बालक द्वारा लक्ष्यवेधन की असमानता का उदाहरण ख- देहात्मा की भिन्नता के सम्बन्ध में केशीकुमार श्रमण का दिया हुआ-नवीन और प्राचीन धनुष का उदाहरण. ६६ क- राजा प्रदेशी की ओर से दिया गया वृद्ध और युवा के असमान लोह भारवहन का उदाहरण. ख- केशीकुमार श्रमण की ओर से दिया गया नवीन और प्राचीन कावड़ से भार वहन का उदाहरण ६७ क- राजा प्रदेशी की ओर से जीवित और मृत चोर को तोलने का उदाहरण Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज प्र० सूची ५६२ सूत्र ६८-७२ ख- केशी कुमार श्रमण की ओर से खाली और हवा से भरी हुई मशक के तोलने का उदाहरण ६८ क - राजा प्रदेशी की ओर से चोर के छोटे-छोटे टुकड़े करके जीव को देखने के लिये किए गये प्रयत्न का उदाहरण ख- केशी कुमारभ्रमण की ओर से अरणी काष्ठ को खण्ड-खण्ड़ करके अग्नि देखने के लिये प्रयत्न करने वाले कठियारे का उदाहरण ६६ क - केशी कुमार श्रमण द्वारा कहे गये कठोर वचनों की युक्तता के सम्बन्ध में प्रदेशी का प्रश्न ख- केशी कुमार श्रमण द्वारा चार परिषदाओं और उनके अपराधियों के दण्ड-विधान का ज्ञापन. ग- चार प्रकार के व्यवहारियों का प्ररूपण. राजा प्रदेशी की व्यवहारिकता. ७० क- जीव को कर कंकणवत् प्रत्यक्ष दिखाने के लिये प्रदेशी की केशी कुमारश्रमण से प्रार्थना ख- राजो प्रदेशी से वायु को हस्तामलकवत् दिखाने के लिये केशी कुमारश्रमण का कथन ग- सवर्श के लिये दस स्थानों की पूर्ण जानकारी की शक्यता और सर्वज्ञ के लिये अशक्यता का कथन ७१ क- हाथी और कुथुवे का जीव समान होने के संबंध में प्रदेशी का प्रश्न ख- आवरणानुसार दीपक के प्रकाश का संकोच विकाश होने के समान हाथी और कुंथुवे के जीव की समानता का केशी श्रमण द्वारा प्रतिपादन ७२ क- प्रदेशी का परंम्परागत मान्यता से मोह ख- केशी कुमारभ्रमण द्वारा प्रतिपादित लोह वाणिये के रूपक से मोह का निवारण Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ७३-८२ ५६३ राज प्र० सूची ७३ केशी कुमारश्रमण से धर्म श्रवण, व्रत धारणा, स्व स्थान गमन के लिए उद्यत होना. ७४ क- केशी कमारश्रमण द्वारा तीन प्रकार के आचार्यों का तथा उनके साथ किये जाने वाले विनयों का प्रतिपादन स- अविनय के लिये क्षमायाचना तथा प्रदेशी का स्वस्थान गमन ७५ क- अंत:पुर व परिवार के साथ राजा प्रदेशी का आना । ख- केशी कुमारश्रमण द्वारा वन खण्ड, नृत्य शाला, इक्षुवाड़ा और खलिहान के रूपक से सदा रमणीय रहने का उपदेश देना ७६ सात हजार ग्रामों से प्राप्त होने वाले राज्यधन के चार विभाग करना. ७७ क- प्रदेशी को मारने के लिये सूर्यकान्ता का सूर्यकान्त कुमार से आग्रह ख- सूर्यकान्त कुमार का मौन विरोध ग- सूर्यकान्ता द्वारा विष प्रयोग, प्रदेशी राजा के शरीर में उनवेदना ७८ क- पौषध शाला में राजा प्रदेशी का समाधि मरण ख- सौधर्म कल्प के सूर्याभ विमान में उत्पत्ति सूर्याभ देव की स्थिति, च्यवन के पश्चात महाविदेह में उत्पत्ति होगी. पांच धायों से पालन, नाना देशों की दासियों से संवर्धन शुभ मुहूर्त में कलाचार्य के समीप गमन. बहत्तर कलाओं का अध्ययन करेगा. माता पिता की और से विवाह की तैयारियां होगी, दृढ प्रतिज्ञ का अलिप्त जीवन, स्थविरों के समीप प्रव्रज्या ग्रहण करके द्वादशांग का अध्ययन करेगा. अनुत्तर धर्म आराधना से अनुत्तर केवल ज्ञान दर्शन की प्राप्ति करके सिद्धपद की प्राप्ति करेगा. ८२ उपसंहार-जिन भगवान् को, श्रुत देवता को, प्रज्ञप्ति भगवति को और भ० पार्श्वनाथ को नमस्कार Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ते णावि संधिं णच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा। जे ते उ वाइणो एवं, न ते ओहंतरा हिया ।। ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा। जे ते उ वाइणो एवं, न ते संसारपारगा ।। ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्म विओ जणा । जे ते उ वाइणो एवं, न ते गब्भस्स पारगा ॥ ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा । जे ते उ वाइणो एवं, न ते जम्मस्स पारगा ।। ते णावि संधि णच्चा णं, न ते धम्मविओ जणा। जे ते उ वाइणो एवं, न ते दुक्खस्स पारगा ।। ते णावि संधिं णच्चा णं न ते धम्मविओ जणा । जे ते उ वाइणो एवं, न ते मारस्स पारगा ।। Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो माहाणं द्रव्यानुयोगमय जीवाभिगम उपाङ्ग प्रतिपत्ति अध्ययन उद्देशक उपलब्ध पाठ गद्य सूत्र पद्य गाथा तुमंसि नाम तं चेव, तुमंसि नाम तं चेव, तुमंसि नाम तं चैव " ह 9 जीवाभिगम की उपादेयता जं जं १८ ४७५० श्लोक प्रमाण २७२ जं हंतव्वं ति मन्नसि । जं अज्जावेयव्वं ति मन्नसि । जं परितावेयव्वं ति मन्नसि । परिचेतव्वं ति मन्नसि । तुमंसि नाम तं चेव, तुमंसि नाम तं चेव, उद्दवेधव्वं ति मन्नसि । अंजू ! चे य पड़िबुद्धजी वि ! तम्हा न हंता, न विघायए । अणुसंवेयणमप्पाणेणं, जं हंतव्वं नाभिपत्थए । ८१ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जो जीवे वि ने याणेइ, अजीवे वि न याणइ । जीवाजीवे अयाणतो, कहं सो नाइहि संजमं ।। जो जीवे वि वियाणेइ, अजीवे वि वियाणेइ । जीवाजीवे वियाणंतो, सो हु नाहिइ संजमं ॥ जयाजीवमजीवे य, दो वि एए वियाणइ । तया गइं बहुविहं, सव्व जीवाण जाणइ ।। जया गइं बहुविहं, सव्व जीवाण जाणइ । तया पुन्नं च पावं च, बंधं मुक्खं च जाणइ ।। जया पुन्नं च पावं च, बंधं मुक्खं च जाणइ ।। तया निविदिए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे । जया निविदिए भोए, जे दिव्वे जे य माणुसे ।। तया चयइ संजोगं, सब्भितर-बाहिरं। जया चयइ संजोगं, सभितर-बाहिरं ।। तया मुंडे भवित्ताणं, पव्व इए अणगारियं । जया मुंडे भवित्ताणं, . पव्वइए अणगारियं ।। संवरमुक्किट्ठ, धम्मं फासे अणुत्तरं । जया संवरमुक्किट्ट, धम्म फासे अणूत्तरं ।। तया धुणइ कम्मरयं, अबोहि कलुसं कडं । जया धुणइ कम्मरयं, अबोहि कलुसं कडं ।। तया सव्वतगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ । जया सव्वतगं नाणं, दसणं चाभिगच्छइ ।। तया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली। जया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ।। तया जोगे निरुभित्ता, सेलेसिं पड़वज्जइ । जया जोगे निरुभित्ता, सेलेसिं पड़वज़्जइ ।। तया कम्मं खवित्ताणं, सिद्धि गच्छइ नीरओ। जया कम्म खवित्ताणं, सिद्धि गच्छइ नीरओ ।। तया लोगमत्थयत्थो, सिद्धो हवइ सासओ। तया Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ ५ ६ ७ ८ & १० ११ १२ १३ जीवाभिगम उपांग विषय-सूची प्रथम द्विविध जीव प्रतिपत्ति जीवाभिगम कथन प्रतिज्ञा सूत्र जीवाभिगम दो प्रकार का अजीवाभिगम दो प्रकार का अरूपी अजीवाभिगम दस प्रकार का क- रूपी अजीवाभिगम चार प्रकार का ख पांच प्रकार का दो प्रकार का दो प्रकार के "1 ३ जीवाभिगम क- मोक्ष प्राप्त जीव ख- अनन्तर मोक्षप्राप्त जीव पन्द्रह प्रकार के ग. परम्पर मोक्षप्राप्त जीव अनेक प्रकार के क- संसार स्थित जीवों की नो प्रतिपत्तियां ख- संसार स्थित जीव दो प्रकार के यावत्-दस प्रकार के संसार स्थित जीव दो प्रकार के स्थावर जीव तीन प्रकार के पृथ्वी कायिक जीव दो प्रकार के पृथ्वीकायिक जीव सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के तेवीस द्वार १- सूक्ष्म पृथ्वीका यिक जीवों के शरीर २ की अवगाहना के संहनन 17 "" 33 77 17 Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगमसूची ५६८ ४- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के संस्थान ५ के कषाय ६ के सज्ञा के लेश्या की इन्द्रियां ८ E के समुद्घात असंज्ञी १०- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव ११- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों के वेद १२- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की पर्याप्तियां 21 १३ -61 可西可不可 च 19 छ "" झ 71 ञ 31 13 १४- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक "" १५ १६ १७ १८ आहार क- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों का द्रव्य से आहार 13 क्षेत्र से आहार ख 11 31 "7 " 33 33 31 " " काल से आहार ग ध भाव से आहार ङ - सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों की अपेक्षा से वर्णवाले पुद्गलों का आहार " "7 13 " "" विधान की अपेक्षा से वर्णवाले गंध रस और स्पर्श की दो विवक्षा ज- सूक्ष्म पृथ्वी कायिकों द्वारा स्पृष्ट पुद्गलों का आहार "" "" 17 33 के दर्शन के अज्ञान का योग 11 " दृष्टि उपयोग "" "" सूत्र १३ 97 अवगाढ पुद्गलों का आहार अणु और स्थूल पुद्गलों का आहार " Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “सूत्र १४-१७ ५६६ जीवाभिगम सूची ट-सूक्ष्म पृथ्वी कायिकों द्वारा ऊँचे-नीचे, तिरछे स्थित पुद्गलोंकाआहार " आदि मध्य अन्त में स्थित पुद्गलोंका आहार स्व विषय स्थित पुद्गलों का आहार "J क्रम से स्थित ठ to to ड ढ - ण " 73 "" "" " 19 " " "7 33 17 त थ १६- सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीवों में उत्पत्ति "" २० २१ २२ २३ २४ २५ " "" जीवों की स्थिति जीवों का मरण जीवों का उद्वर्तन जीवों की गति आगति जीव प्रत्येक शरीरी जीव असंख्याता १४ बादर पृथ्वीकायिक जीव दो प्रकार के १५ क - २ श्लक्ष्ण - पृथ्वीकायिक जीव सात प्रकार के ख संक्षेप में दो प्रकार के २ श्लक्ष्ण पृथ्वीकायिक जीवों के तेवीस द्वार " "" 37 "" "" "" 31 ?? 17 11 " 11 33 व्याघात न होने पर ६ दिशाओं से आहार व्याघात होने पर ३, ४, ५ दिशाओ में आहार कारण से 33 विपरिणमन- परिवर्तन करके पुन आहार अपकायिक जीव १६ क - अप्कायिक जीव दो प्रकार के 72 ख- सूक्ष्म अष्कायिक जीव दो प्रकार के ग- सूक्ष्म अष्कायिक जीव संक्षेप में दो प्रकार के सूक्ष्म अष्कायिक जीवों के तेवीस द्वार "१७ क- बादर अष्कायिक जीव अनेक प्रकार के ख- बादर अप्कायिक जीव अनेक प्रकार के Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची १८ - वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के ख- सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीवों के तेईस द्वार बादर वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकार के बादर कायिक जीवों के तेवीस द्वार वनस्पतिकायिक जीव २२ १६ २० क- प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक जीव बारह प्रकार के २३ २४ २५ क ख- वृक्ष दो प्रकार के ग- एकास्थिक वृक्ष अनेक प्रकार के घ- बहुबीज वृक्ष २१ क- साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के ख ५७० 31 जीव संक्षेप में दो प्रकार के साधारण शरीर वनस्पति कायिक जीवों के तेवीस द्वार त्रस जीव तीन प्रकार के 27 "" "" तेजस्कायिक जीव दो प्रकार के सूक्ष्म तेजस्कायिक जीवों के तेवीस द्वार बादर तेजस्कायिक जीव अनेक प्रकार के संक्षेप में दो प्रकार के बादर तेजस्कायिक जीवों के तेवीस द्वार 31 79 तेजस्कायिक जीव वायुकायिक जीव २६ क- वायुकायिक जीव दो प्रकार के ख- सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के तेवीस द्वार ग- बादर वायु कायिक जीव अनेक प्रकार के संक्षेप में दो प्रकार के "" घ ङ - बादर वायुकायिक जीवों के तेवीस द्वार सूत्र १८-२६. Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २७-३६ २७ ५७१ औदारिक सजीव चार प्रकार के हैं द्वीन्द्रिय जीव २८ क - द्वीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के ख संक्षेप में दो प्रकार के ग- द्वीन्द्रिय जीवों के तेवीस द्वार हैं त्रीन्द्रिय जीव २६ क - त्रीन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं "3 31 ३३ ३४ "" ख ग- त्रीन्द्रिय जीवों के तेवीस द्वार चतुरिन्द्रिय जीव ३० क- चतुरिन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के हैं 13 29 ख ग- चतुरिन्द्रिय जीवों के तेवीस द्वार पंचेन्द्रिय जीव ३१ पंचेन्द्रिय जीव चार प्रकार के हैं ३२ क- नैरयिक जीव सात प्रकार के हैं 27 ३५ क संक्षेप में दो प्रकार के हैं "" 33 संक्षेप में दो प्रकार के हैं ख ग- नैरयिक जीवों के तेवीस द्वार पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के हैं संमूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव तीन प्रकार के हैं संमूर्छिम जलचर पांच प्रकार के हैं ख- संमूर्छिम मच्छ अनेक प्रकार के हैं संक्षेप में दो प्रकार के हैं 33 ग घ- संमूर्छिम जलचर मच्छों के तेवीस द्वार ३६ क - संमूर्छिम स्थलचर दो प्रकार के हैं संक्षेप में दो प्रकार के हैं जीवाभिगम सूची Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५७२ सूत्र ३७-३६ ख- संमूछिम चतुष्पद स्थलचर दो प्रकार के हैं ग- संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचरों के तेवीस द्वार घ- संमूछिम स्थलचर परिसर्प दो प्रकार के हैं संमूछिम उरग स्थलचर परिसर्प चार प्रकार के हैं च- " सर्प अनेक प्रकार के हैं छ- " दर्वी (फण) कर सर्प अनेक प्रकार के हैं ज- " मकूलीकर सर्प अनेक प्रकार के हैं संमूछिम अजगर अनेक प्रकार के हैं आसालिक महोरग अनेक प्रकार के हैं " संक्षेप में दो प्रकार के हैं भुजग परिसर्प अनेक प्रकार के हैं " संक्षेप में दो प्रकार के खेचर चार प्रकार के हैं चर्मपक्षी अनेक प्रकार के हैं रोमपक्षी समुद्गकपक्षी " " विस्तृतपक्षी " " संक्षेप में दो प्रकार के हैं त- सम्मूर्छिम स्थलचर परिसर्प के तेवीस द्वार ३७ गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय तीन प्रकार के हैं ३८ क- गर्भज जलचर पांच प्रकार के हैं ख- " संक्षेप में दो प्रकार के हैं ग- गर्भज जलचरों के तेवीस द्वार ३६ क- गर्भज स्थलचर दो प्रकार के हैं ख- " चतुष्पद चार प्रकार के हैं Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४०.४३ ५७३ जीवाभिगम-सूची ग- गर्भज चतुष्पद संक्षेप में दो प्रकार के हैं घ- गर्भज चतुष्पदों के तेवीस द्वार हैं ङ- गर्भज परिसर्प दो प्रकार के हैं " उरपरिसर्प दो प्रकार के हैं च- गर्भज उरपरिसों के तेवीस द्वार छ- गर्भज भुजपरिसर्प दो प्रकार के हैं ज- " भुजपरिसों के तेवीस द्वार ४० क- गर्भज खेचर चार प्रकार के हैं ख- गर्भज खेचरों के तेवीस द्वार ४१ क- मनुष्य दो प्रकार के हैं ख- संमूछिम मनुष्यों की मनुष्यक्षेत्र में उत्पत्ति ग- संमूर्छिम मनुष्यों के तेवीस द्वार घ- गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के हैं ङ- गर्भज मनुष्य संक्षेप में दो प्रकार के हैं च- गर्भज मनुष्यों के तेवीस द्वार ४२ क- देवता चार प्रकार के हैं। ख- भवनवासी देव दस प्रकार के हैं ग- वाणव्यन्तर देव सोलह प्रकार के हैं घ- " " संक्षेप में दो प्रकार के हैं क- स्थावर जीवों की स्थिति ख- त्रस जीवों की स्थिति ग- स्थावर संस्थिति का जघन्य उत्कृष्ट काल घ- त्रस संस्थिति का जघन्य उत्कृष्ट काल ङ- स्थावर पर्याय से पुनः स्थावर पर्याय प्राप्त होने का अन्तर काल च. त्रस पर्याय से पुनः त्रस पर्याय प्राप्त होने का अन्तर काल छ- त्रस और स्थावर जीवों का अल्प-बहुत्व Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५७४ सूत्र ४४-४६ द्वितीया त्रिविध जीव प्रतिपत्ति ४४ संसार स्थित जीव तीन प्रकार के हैं स्त्रियां ४५ क- स्त्रियां तीन प्रकार की ख- तिर्यंच स्त्रियां ग- जलचर स्त्रियां पांच प्रकार की घ- स्थलचर स्त्रियां दो प्रकार की ङ- चतुष्पद स्त्रियां चार प्रकार की च- परिसर्प स्त्रियां चार प्रकार की छ- उरग परिसर्प स्त्रियां तीन प्रकार की ज- भुज परिसर्प स्त्रियां अनेक प्रकार की झ- खेचर स्त्रियां चार प्रकार की अ- मानव स्त्रियां तीन प्रकार की ट- अन्त:पवासिनी स्त्रियां अट्ठावीस प्रकार की ठ- अकर्मभूमिवासिनी स्त्रियां तीस प्रकार की ङ- कर्मभूमिवासिनी स्त्रियां पन्द्रह प्रकार की ढ- देवियां चार प्रकार की ण- भवनवासिनी देवियां दस प्रकार की त- व्यन्तर देवियां आठ प्रकार की। थ- ज्योतिष्क देवियां पांच प्रकार की द- विमानवासिनी देवियाँ दो प्रकार की ४६ क- तिर्यंच जाति स्त्री पर्याय की संस्थिति का जघन्य उत्कृष्ट काल ख- मानव जाति स्त्री पर्याय की संस्थिति का " गदेव जाति स्त्री पर्याय की संस्थिति का V Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४७ ५७५ ४७ क- तिर्यंच योनिक स्त्रियों की ख- जलचर तिर्यंच योनिक स्त्रियों की ग- चतुष्पद स्थलचर तिर्यंच योनिक स्त्रियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति 17 33 घ- उरग परिसर्प स्थलचर ङ- भुजपरिसर्प च - खेचर तिर्यंच योनिक स्त्रियों की " जघन्य उत्कृष्ट स्थिति "" छ- मानव स्त्रियों की "" ज- धर्माचरण करनेवाली (मानव) स्त्रियों की "" 17 "f - कर्मभूमिनिवासिनी (मानव) 17 ܕ 17 ण- देवकुरु-उत्तरकुरुवासिनी स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा त- अंतद्वपवासिनी स्त्रियों की देवियों की " アン " 33 73 जीवाभिगम-सूची धर्माचरण की अपेक्षा ठ - अकर्मभूमिवासिनी (मानव) स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा 33 ड- हैमवत हैरण्यवत क्षेत्र वासिनी (मानव) स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा 37 ढ - हरिवर्ष - रम्यक् वर्ष क्षेत्र वासिनी मानव स्त्रियों की संहरण की अपेक्षा धर्माचरण की अपेक्षा कर्मभूमिवासिनी स्त्रियों की अ- भरत - ऐरवत वासिनी (मानव) स्त्रियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति धर्माचरण की अपेक्षा भरत ऐरवत वासिनी स्त्रियों की ," " 33 ट- पूर्वविदेह अपरविदेह कर्मभूमिवासिनी स्त्रियों की उत्कृष्ट स्थिति ܕܙ 33 ار 37 "" 16 " 37 33 " 37 " " " " " "" 17 77 "3 "" 31 37 73 31 " 91 1) "" Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४८-५२ ५७६ जीवाभिगम-सूची थ- भवनवासिनी देवियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति द- व्यन्तर देवियों की घ- ज्योतिष्क देवियों की न- चन्द्र विमानवासिनी देवियों की सूर्य विमानवासिनी देवियों की ग्रह , , नक्षत्र , तारा . प- विमानवासिनी देवियों की सौधर्म , , ईशान , , ४८ क- स्त्री संस्थिति काल की पांच विवक्षा ख- तिर्यंचयोनिक स्त्रियों का संस्थिति काल ग- मनुष्ययोनिक स्त्रियों का संस्थिति काल घ- देवियों का संस्थिति काल ४६ क- स्त्री पर्याय से पुनः स्त्री पर्याय के प्राप्त होने का जघन्योत्कृष्ट अंतर काल ख- तिर्यंच स्त्री से पुनः तिर्यंच स्त्री होने का जघन्योत्कृष्ट अंतर काल ग- मनुष्य स्त्री से पुन: मनुष्य स्त्री होने का , घ- देव स्त्री से पुन: देव स्त्री होने का ५० तिर्यंच मनुष्य और देव स्त्रियों का अल्प-बहत्व ५१ क- स्त्री वेदनीय कर्म की जघन्योत्कृष्ट बन्ध स्थिति ख- स्त्री वेदनीय कर्म का अबाधा काल ग- स्त्री वेदनीय कर्म का पुरुष ५२ क. पुरुष तीन प्रकार के ख- तिर्यंच योनिक पुरुष Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूची ५३-५८ ५७७ जीवाभिगम-सूची ग- मनुष्य योनिक पुरुष घ- देव पुरुष चार प्रकार के ५३ क- पुरुष की जघन्योत्कृष्ट स्थिति ख- तिर्यंचयोनिक पुरुष की जघन्योत्कृष्ट स्थिति ग- मनुष्य , घ- रे , ५४ क- पुरुष का जघन्योत्कृष्ट स्थितिकाल ख- तिर्यंच योनिक पुरुषों का , , ग- मनुष्य " " घ. देव , " . " ५५ क- पुरुष पर्याय से पुन: पुरुष पर्याय के प्राप्त होने का जघन्योत्कृष्ट अन्तर काल ख- तिर्यंच योनिक पुरुष पर्याय से पुन: मनुष्य योनिक पुरुष पर्याय प्राप्त होने का जघन्योत्कृष्ट काल ग- मनुष्य योनिक पुरुष पर्याय से पुन: मनुष्य योनिक पुरुष पर्याय प्राप्त होने का जघन्योत्कृष्ट अन्तरकाल घ- देव योनिक पुरुष पर्याय से पुनः देव योनिक पुरुष पर्याय प्राप्त होने का जघन्योत्कृष्ट अन्तरकाल ५६ क- देव पुरुषों का अल्प-बहुत्व ख- तिर्यंच योनिक मनुष्य योनिक ओर देव योनिक पुरुषों का पर स्पर अल्प-बहुत्व क- पुरुष बेदनीय कर्म की जघन्योत्कृष्ट बंध स्थिति ख- , का अबाधा काल ग- , का स्वभाव नपुंसक ५८ क- नपुसक तीन प्रकार के ___ ख- नै रयिक नपुंसक सात प्रकार के Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५७८ सूत्र ५६-६३ ग तिर्यंच योनिक नपुंसक पांच प्रकार के घ मनुष्य योनिक नपुंसक तीन प्रकार के ५६ क नपुंसकों की जघन्योत्कृष्ट स्थिति ख नैरयिक नपुंसकों की ग तिर्यंच योनिक नपुंसकों की , घ मनुष्य योनिक नपुसकों की , नपुसंकों का संस्थिति काल ङ नैरयिक नपुंसकों का संस्थिति काल च तिर्यंच योनिक नपुसकों का छ मनुष्य योनिक ,, , ___ नपुसंकों का जघन्योत्कृष्ट अन्तर काल ज नपुसंक से पुनः नपुसक होने का जघन्योत्कृष्ट अन्तर काल झ नरयिक नपुसंक से पुनः नै रयिक नपुसक होने का जघन्योत्कृष्ट ___अन्तर काल अ तिर्यंच योनिक नपुसक से पुनः तिर्यंच योनिक नपुंसक होने का जघन्योत्कृष्ट अन्तर काल ट मनुष्य योनिक नपुसक से पुन: मनुष्य योनिक नपुसंक होने का जघन्योत्कृष्ट अन्तर काल ६० नैरयिक तिर्यंच और मनुष्य योनिक नपुसकों का अल्प-बहुत्व ६१ क नपुसक बेदनीय कर्म की बंध स्थिति ख , ., का अबाधा काल ग , का स्वभाव ६२ स्त्री, पुरुष और नपुसकों के अल्प-बहुत्व के नो सूत्र ६३ क स्त्रीत्व, पुरुषत्व और नपुसकत्व पर्याय का जघन्योत्कृष्ट संस्थिति काल ख स्त्री, पुरुष और नपुसक पर्याय का जघन्योत्कृष्ट अन्तर काल Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “सूत्र ६४-७२ ५७६ ६४ क तिर्यंच योनिक स्त्री, पुरुषों का अल्प- बहुत्व ख मनुष्य योनिक ग देव योनिक ६५ ६६ ६७ 061 ७१ तृतीया चतुविध जीव प्रतिपत्ति संसार स्थित जीव चार प्रकार के नैरयिक जीव प्रथम उद्देशक नैरयिक सात नैरयिकों के नाम गोत्र नरक वर्णन ६८ सात नरकों का बाहल्य ६६ क रत्नप्रभा पृथ्वी के तीन काण्ड ख खर काण्ड ग शर्कराप्रभा-यावत्-तमस्तमा एक एक प्रकार का सात नरकों के नरकावास सात नरकों के नीचे घनोदधि, घनवात, तनवात और अवका घ ङ च छ 1815 , " शान्तर ७२ क रत्नप्रभा के खरकाण्ड का बाहल्य ख ग "1 21 "" रत्नकाण्ड का यावत् - रिष्टकाण्ड का बाहल्य पंकबहुलकाण्ड का अप्बहुलकाण्ड का धनोदधि का घनवात का तनुवात का ज शर्कराप्रभा-यावत् - तमस्तमा के घनोदधि का बाहल्य झ घनवात का "" 33 " 21 13 सात प्रकार के सोलह प्रकार के जीवाभिगम सूची " 17 17 17 19 Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५८० सूची ७३-७९. ट- " ब तनुवात का , अवकाशान्तर का , ७३ सात नरकों और उनके अवकाशान्तरों में पुद्गल द्रव्यों की व्यापक स्थिति ७४ क- सात नरकों से चारों दिशाओं में लोकान्त का अन्तर ७५ क- सात नरकों के संस्थान ख- सातों नरकों के चारों दिशाओं में चरमान्त तीन तीन प्रकार के ७६ क- सात नरकों के घनोदधिवलय का बाहल्य ख- धनवातवलय का , ग. ततुवातवलय का , घ- सात नरकों के घनोदधिवलयों पुद्गल द्रव्यों की व्यापक स्थिति ङ- सात नरकों के घनवातवलयों में पुद्गल द्रव्यों की व्यापकता तनुवात वलयों में घनोदधि वलयों का संस्थान घनवात वलयों का तनवात वलयों का ,, का आयाम-विष्कम्भ का सर्वत्र समान बाहल्य ওও सात नरकों में सर्व जीवों के उत्पन्न होने का प्रश्नोत्तर ख- " से " निकलने का " में सर्व पुद्गलों के प्रविष्ट होने का " घ- " से " निकलने का ७८ क- सात नरकों की सास्वत अशास्वत सिद्धि का हेतु ख- सात नरकों की नित्यता ७६ क- प्रत्येक नरक के ऊपर के चरमान्त से नीचे के चरमान्त का अन्तर Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ८०-२५ जीवाभिगम-सूची घ- ". ख- प्रत्येक नरक काण्ड के चरमन्ताओं का अन्तर. ग. प्रत्येक नरक के घनोदधि के " घनवात के " तनवात के " अवकाशान्तर का अन्तर छ- प्रत्येक नरक के ऊपर के चरमान्त से अवकाशान्तर के नीचे के चरमान्त का अन्तर सात नरकों के अपेक्षाकृत बाहल्य की अल्प-बहुत्व द्वितीय नैरयिक उद्देशक ८१ क- सात पृथ्वीयों (नरकों) के नाम ख- सात पृथ्वीयों के नरकावासों के विभाग की सीमा ग- सात नरकों के अन्दर बाहर का आकार घ- सात नरकों में वेदना-यावत्-तमप्रभा ८२ क- रत्नप्रभा के नरकावासों का संस्थान दो प्रकार का ख- आवलिका प्रविष्ट नरकावासों का संस्थान तीन प्रकार का ग- आवलिका बाह्य नरकावासों के संस्थान अनेक प्रकार के घ. तमस्तमाप्रभा के नरकावासों का संस्थान दो प्रकार का .. ङ- सात नरकों के नरकावासों का बाहल्य च- सात नरकों के नरकावासों का आयाम-विष्कम्भ और परिधि दो प्रकार की ८३ क- सात नरकों का वर्ण ख- , , गंध ग- , , स्पर्श ८४ क- सात नरकों की महानता ख- देवता की दिव्यगति से नरकों की महानता का माप ८५ क- सात नरकों की पौद्गलिक रचना ख- सात नरक शास्वत-अशास्वत ? Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५८२ सूत्र ८६-८६ ८६ क- सात नरकों में चार गति की अपेक्षा से गति-आगति ख- सात नरकों में एक समय में जीवों की उत्पत्ति ग- सात नरकों का जीवों से सर्वथा रिक्त न होना घ- सात नरकों में नैरयिकों की अवगाहना दो प्रकार की ८७ क- सात नरकों के नैरयिकों में संहननों का अभाव. पुद्गलों की अशुभ परिणति ख- सात नरकों के नैरयिकों का संस्थान दो प्रकार का ग- सात नरकों में नैरयिकों के शरीरों का वर्ण , , , की गंध का स्पर्श ८८- क- सात नरकों में नैरयिकों के श्वासोच्छ्वास के पुद्गल के आहार के पुद्गल , की लेश्याएं , के ज्ञान , के अज्ञान सात नरकों में न रयिकों के योग उपयोग झ- " अवधिज्ञान का प्रमाण अ- , , समुद्घात ८६ क- सात नरकों में क्षुधा पिपासा की वेदना ख- , नैरयिकों की विकुर्वणा ग- शीतोष्ण वेदना घ- नारकीय जीवन का वर्णन ङ- तमस्तमा के पांच नरकावासों के नाम च- तमस्तमा में पांच महापुरुषों की उत्पत्ति छ- " नैरयिकों का वर्ण नैरयिकों की वेदना Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ६०-६६ ५८३ जीवाभिगम-सूची झ- नारकीय उष्ण वेदना का वर्णन ज- , तृषा वेदना का वर्णन ट- मानवलोक की उष्णता से नारकीय उष्णता की तुलना ठ- नारकीय शीतवेदना का वर्णन ण- मानवलोक की शीत से नारकीय शीत की तुलना ६० सात नरकों में नैरयिकों की स्थिति ६१ सातों नरकों से नैरयिकों का उद्वर्तन व अन्यत्र उत्पत्ति १२ क- सात नरकों में पृथ्वी का स्पर्श ख- , पानी , ग- सात नरक एक दूसरे से महान् सात नरकों के पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकायों में सर्व जीवों की उत्पत्ति पृथ्वीकाय-यावत्-वनस्पतिकाय में उत्पन्न जीवों की वेदना तृतीय नैरयिक उद्देशक ६५ क- नैरयिकों का अनिष्ट पूदगल परिणमन ख- ग्यारह गाथाओं में नैरयिकों का संक्षिप्त वर्णन प्रथम तिर्यंच योनिक जीव उद्देशक ६६ क- तियंच योनिक जीव पांच प्रकार के ख- एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव पांच प्रकार के ग- पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के घ. सूक्ष्म पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के ङ- बादर पृथ्वीकाय एकेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव-यावत्-चतुर न्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के च- पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव तीन प्रकार के छ- जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के ज- संमूछिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगमसूची ५८४ सूत्र ६७-६८ झ- गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय योनिक जीव दो प्रकार के ब- स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के ट- चतुस्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के ठ- परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के ड- उरग परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के ढ- भुजग परिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के ण- खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के त- समूछिम खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिक जीव दो प्रकार के थ- गर्भज खेचर , द- खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की तीन प्रकार की योनियां ध- अण्डज तीन प्रकार के न- पोतज , प- संछिम एक प्रकार का ६७ क- खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के इग्यारह द्वार--लेश्या १, दृष्टि २, ज्ञानी-अज्ञानी ३, योग ४, उपयोग ५, उत्पत्ति ६, स्थिति ७, समुद्घात ८, मरण ६, उद्वर्तन १०, कुल कोडी ११ ख- भुजग परिसर्प की तीन योनियाँ. लेश्या आदि इ ग्यारह द्वार ग- उरग परिसर्प की तीन योनियां, लेश्या आदि इग्यारह द्वार घ- चतुष्पद स्थल चर तीन प्रकार के ङ- जरायुज स्थलचर तीन प्रकार के. इनके लेश्या आदि इग्यारह द्वार च- जलचरों के भेद और लेश्या आदि इग्याह द्वार - छ- चतुरिन्द्रियों की कुल कोटी त्रीन्द्रियों की , द्वीन्द्रियों की , १८ क- गंधाङ्ग सात प्रकार का 'ख- पुष्पों की कुल कोटी Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ६६-१०३ ५८५ जीवाभिगम-सूची ग- वल्लरियां चार प्रकार की घ- लतायें आठ प्रकार की ङ- हरितकाय तीन प्रकार की च. त्रस-स्थावर जीवों की कुल कोटियां ६६ क- स्वस्तिकादि विमानों की महानता ख- अर्ची आदि विमानों की , ग- विजयादि विमानों की , द्वितीय तिर्यंच योनिक जीव उद्देशक १०० क- संसार स्थित जीव ६ प्रकार के ख- पृथ्वीकायिक-यावत्-वनस्पतिकायिक जीव दो दो प्रकार के ग- त्रसकायिक जीव चार प्रकार के १०१ क- पृथ्वीयाँ ६ प्रकार की ख- श्लक्ष्ण पृथ्वीयों की जघन्योत्कृष्ट स्थिति ग- शुद्ध घ- बालुका ङ- मनः शिला , छ- शर्करा , च- खरा ज- नैरयिक-यावत्-सर्वार्थ सिद्ध देवों की स्थिति झ- जीव का संस्थितिकाल अ- पृथ्वीकाय-यावत्-त्रसकाय का संस्थिति काल १०२ क- प्रत्युत्पन्न पृथ्वीकायिक-यावत्-प्रत्युत्पन्न त्रसकायिक जीवों का जघन्योत्कृष्ट निर्लेप काल ख- जघन्य उत्कृष्ट निर्लेप का अन्तर १०३ क- कृष्णलेश्या आदि तीन लेश्यावाले अनगार का देव-देवियों को देख सकना (छ विकल्प) Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम सूची सूत्र १०४-१११ ख- तेजोलेश्या आदि तीन लेश्यावाले अनगार का देव - देवियों को देख सकना (छ विकल्प ) अन्यतीर्थिक - विषय - एक समय में एक क्रिया १०४ क - स्वसिद्धान्त प्रतिपादन - एक समय में एक क्रिया प्रथम मनुष्य योनिक जीव उद्देशक मनुष्य दो प्रकार के संमूर्छिम मनुष्यों का उत्पत्ति स्थान गर्भज मनुष्य तीन प्रकार के १०८ अन्तद्वीप के मनुष्य अठावीस प्रकार के १०५ १०६ १०७ प्रथम एकोरुकद्वीप वर्णन उद्देशक १०६ क- एकोरुक द्वीप का स्थान ख- एकोरुक द्वीप का आयाम - विष्कम्भ और परिधि ग- पद्मवर वेदिका, वनखण्ड घ- पद्मवर वेदिका की ऊँचाई और विष्कम्भ ङ - पद्मवर वेदिका वर्णन ११० क- वनखण्ड का चक्रवाल विष्कम्भ ख- वनखण्ड वर्णन १११ क- एकोरुक द्वीप के भूमितल का वर्णन में अनेक प्रकार के वृक्ष ख-ग घ में अनेक प्रकार की लताएँ ङ - में अनेक प्रकार के गुल्म च में वृक्ष समूह छ- (१) एकोरुक द्वीप में मत्तंग द्रुम (२) में भिंगांग द्रुम (३) (४) ܕܙ 21 21 23 ५८६ "" " 2) में त्रुटितांग द्रुम में दीप शिखा द्रुम Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ४७ to 19 ड ढ ( ५ ) एकोरुकद्वीप में ज्योतिशिखा द्रुम में चित्रांग द्रुम (६) में चित्ररस द्रुम में मणिकांग द्रुम में गृहाकार म (७) (5) (e) ण 11 21 17 (१०) में अनग्न द्रुम एकोरुक द्वीप के मनुष्यों का सर्वांगीन वर्णन 32 "" 31 17 21 21 " 79 ञ - एकोरुक द्वीपवासी मनुष्यों के भोज्य पदार्थ ट - एकोरुक द्वीप की पृथ्वी का आस्वाद के फलों का ठ 11 21 33 rator द्वीप की स्त्रियों का सर्वांगीन वर्णन की ऊँचाई " 19 27 15 "" "" "" 27 "" "" 23 ५८७ "" की ऊँचाई की पसलियाँ 17 की आहारेच्छा का काल जीवाभिगम सूची की आहारेच्छा का काल " के मनुष्यों का निवास स्थान के वृक्षों का संस्थान में गृह ग्राम, नगर आदि का अभाव में असि आदि कर्मों का अभाव में हिरण्य सुवर्ण आदि धातुओं का अभाव के मनुष्यों में अल्पं ममत्व में राजा आदि सामाजिक व्यवस्था का अभाव में दास्यकर्मों का अभाव में स्वजनों से अल्पप्रेम में वैरभाव का अभाव में मित्रादिका अभाव Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५८८ सूत्र ११२ एकोरुकद्वीप में नटादि के नृत्यों का अभाव में यान साधनों का अभाव में अश्वादि का सद्भाव में सिंहादि का सद्भाव में धान्यों का अभाव में गर्त आदि का अभाव में स्थारण आदि का अभाव में डाँस मच्छर आदि का अभाव में सर्पादिका सद्भाव में गृहदण्ड आदि का अभाव में युद्ध का अभाव में रोगों का अभाव में में अतिवृष्टि आदि का अभाव में लोहे आदि की खानों का अभाव में अल्पार्ध्य-महार्ण्य का अभाव में क्रय विक्रय का अभाव के मनुष्यों की स्थिति के मनुष्यों की गति द- दक्षिण के आभासिक द्वीप का स्थान आदि ध- दक्षिण के मंगोलिक द्वीप का स्थान आदि न- दक्षिण के वैशालिक द्वीप का स्थान आदि ११२ क- दक्षिण के हयकर्ण द्वीप को स्थान आदि ख- दक्षिण के गजकर्ण द्वीप का स्थान आदि ग- , गोकर्ण द्वीप का स्थान आदि , शष्कुलीकर्ण द्वीप का स्थान आदि ङ- , आदर्शमुख द्वीप का स्थान आदि च- , अश्वमुख द्वीप का स्थान आदि त- थ. , , Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ११३-१२१ ५८९ . जीवाभिगम-सूची छ- , अश्वकर्ण द्वीप का स्थान आदि ज- , उल्कामुख " झ- , घनदंत अ- आदर्श मुख आदि द्वीपों का अवग्रह, विष्कम्भ, परिधि आदि ट- उत्तर के एकोरुक द्वीप आदि द्वीपों का वर्णन ११३ क- अकर्मभूमि मनुष्य तीस प्रकार के हैं ख- कर्मभूमि मनुष्य पन्द्रह प्रकार के हैं देवयोनिक जीव ११४ चार प्रकार के देव भवनवासी-यावत्-अनुत्तरविमानवासी देवों के भेद ११६ भवनवासी देवों के भवनों का स्थान ११७ दक्षिण के असुरकुमारों के भवनों का वर्णन १८ क- असुरेन्द्र की तीन परिषद ख-घ- तीन परिषदों के देवों की संख्या ङ-छ- तीन परिषदों की देवियों की संख्या ज-ड- तान परिषद के देव-देवियों की स्थिति ढ-ण- तीन परिषद की भिन्नता का हेतु ११६ क- उत्तर के असुरकुमारों का वर्णन ख- वैरोचनेन्द्र की तीन परिषद ग- तीन परिषद के देव देवियों की संख्या घ. वैरोचनेन्द्र की और तीन परिषद् के देव-देवियों की स्थिति १२० क- दक्षिण उत्तर के नाग कुमारेन्द्र व उनकी तीन परिषद के देव-देवियों का वर्णन ख- शेष दक्षिण-उत्तर के भवनेन्द्रों व उनकी तीन परिषद के देव देवियों का वर्णन १२१ व्यन्तर देवों के भवन, इन्द्र और परिषदों का वर्णन Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६० जीवाभिगम-सूची सूत्र १२२-१२५ १२२ क- ज्योतिष्क देवों के विमानों का स्थान ख- " " संस्थान ग- सूर्य चन्द्र ज्योतिषी देवों के इन्द्रों की तीन-तीन परिषदाओं का वर्णन १२३ क- द्वीप समुद्रों का स्थान ख- द्वीप-समुद्रों की संख्या ग- " का संस्थान घ- " का वर्णन ___ जंबूद्वीप वर्णन १२४ क- जंबूद्वीप के वृत्ताकार की उपमाएं ख- " के संस्थान की " का आयाम-विष्कम्भ " की परिधि " की जगति की ऊँचाई " की जगति के मूल, मध्य और ऊपर का विष्कम्भ " का संस्थान ज- जगति की जाली की ऊँचाई, विष्कम्भ क- पद्मवर वेदिका की ऊँचाई, विष्कम्भ ख- पद्मवर वेदिका का वर्णन " की जालिकायें " के हय आदि के भित्तिचित्र " में पद्मलता आदि लताएँ " में अक्षय स्वस्तिक " में विविध प्रकार के कमल " का शास्वत या अशास्वत होना " की नित्यता Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १२६-१३३ ५६१ जीवाभिगम-सूची १२६ क- वनखण्ड का चक्रवाल विष्कम्भ ख- वनखण्ड का विस्तृत वर्णन [शब्दोपमा वर्णन-अष्ट रस, षट्दोष, एकादस अलंकार, अष्टगुण] १२७ क- वनखण्ड में विविध वापिकायें ख- वापिकाओं के सोपान, तोरण ग- वापिकाओं के समीप पर्वत घ. पर्वतों पर विविध आसन शिलापट ङ- वनखण्ड में अनेक प्रकार के लतागृह च- लतागृहों में आसन, शिलापट छ- वनखण्ड में विविध प्रकार के मण्डप ज- वनखण्ड में विविध प्रकार के शिलापट झ- शिलापटों पर देव-देवियों की क्रीड़ा ज- पद्मवर वेदिका पर बने वनखण्ड का विष्कम्भ ट- वनखण्ड में देव-देवियों की क्रीड़ा जंबूद्वीप के चार द्वार १२६ क- जम्बूद्वीप के विजयद्वार का स्थान ख- " " की ऊँचाई ग- " " का विष्कम्भ के कपाट रचना १३०.१३१ का विस्तृत वर्णन विजय देव के सामानिक देवों के भद्रासन की अग्रमहीषियों के भद्रासन की तीन परिषदों के " की सात सेनापतियों के " की आत्मरक्षक देवों के " १३३ विजयद्वार के उपरिभाग का वर्णन १२८ سه Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५६२ सूत्र १३४-१३७ १३४ क- विजयद्वार नाम का हेतु ख- विजय देव का परिवार ग- विजय द्वार का शास्वत नाम द्वितीय मनुष्ययोनिक उद्देशक १३५ क- विजया राजधानी का स्थान ' का आयाम-विष्कम्भ ,, , की परिधि १३६ ख- " " के प्राकार की ऊँचाई प्राकार के मुल मध्य और उपरिभाग-विष्कम्भ विजया राजधानी के प्राकार का संस्थान ग- प्राकार के कपिशीर्षक का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई घ. विजया राजधानी के द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ - विजया राजधानी के द्वार का वर्णन क- विजया राजधानी के चारों दिशाओं में चार वनखण्ड ख- वनखण्डों का आयाम-विष्कम्भ ग. वनखण्डों में दिव्य प्रासाद घ- प्रासादों में चार महधिक देव ङ- विजया राजधानी के मध्यभाग में उपकारिकालयन च- उपकारिकालयन का आयाम-विष्कम्भ " की परिधि ज- पद्मवर वेदिका, वनखण्ड, सोपान, तोरण झ- मूल प्रासादवतंसक मणिपीठिका, सिंहासन परिवार, अष्टमंगल ज- समीपवर्ती प्रासादों की ऊंचाई, आयाम, विष्कम्भ आदि ट- अन्य पार्श्ववर्ती प्रासादों की ऊँचाई, ,, १३७ क- विजय देव की सुधर्मा सभा ख- सुधर्मा सभा की ऊँचाई, आयाम-विष्कम्भ Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १३८ ५६३ ग- सुधर्मा सभा के तीन द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ घ- मुखमण्डपों का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई ङ - प्रेक्षाघर मण्डपों का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई च - मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य छ - चैत्य स्तूपों का आयाम - विष्कम्भ बाहल्य ज - मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य - चार जिन प्रतिमाओं की ऊँचाई ञ - चैत्य वृक्षों की ऊँचाई, उद्वेध, स्कंधों का विष्कम्भ, मध्य भाग, आयाम - विष्कम्भ, उपरिभाग का परिमाण, चैत्यवृक्षों का वर्णन जीवाभिगम सूची ट- मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य ठ- महेन्द्र ध्वजाओं की ऊँचाई, उद्वेध और विष्कम्भ ड- नन्दा पुष्करणियों का आयाम - विष्कम्भ और उद्वेध ढ - मनोगुलिकाओं की संख्या - गोमानसिकाओं की संख्या त- मणिपीठिकाओं का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य थ- माणवक चैत्य स्तम्भों की ऊँचाई उद्वेध और विष्कम्भ - जिन शक्थियों का स्थान ध- महा मणिपीठिकाओं का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य न सिंहासन वर्णन प- देवशयनीय वर्णन फ - मणिपीठिकाओं का आयाम विष्कम्भ और बाहल्य ब- महेन्द्रध्वज की ऊँचाई, उद्वेध, विष्कम्भ भ- विजय देव का शस्त्रागार म- शस्त्रों का वर्णन य- सुधर्मा सभा, अष्ट मंगल १३८ क - सिद्धायतन का आयाम, विष्कम्भ और ऊँचाई Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५६४ सूत्र १३६-१४१ ख- मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य ग- देवछंदक का आयाम-विष्कम्भ और उसकी ऊँचाई घ- जिन प्रतिमाओं की संख्या और ऊँचाई ङ- जिन प्रतिमाओं का वर्णन च- नाग, यक्ष, भूत आदि की प्रतिमाओं की संख्या छ- घंटा, चंदनकलश, भृङ्गारक आदि की संख्या ज- अष्टमङ्गल सोलह रत्नभय १३६ क- उपपात सभा का वर्णन ख- मणिपीठिका का आयाम विष्कम्भ और बाहल्य ग- देवशयनीय का वर्णन घ- ह्रद का आयाम-विष्कम्भ और उदवेध ङ- अभिषेक सभा का वर्णन च- मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य छ- सिंहासन वर्णन ज- अलंकारिक सभा वर्णन झ- व्यवसाय सभा वर्णन अ- पुस्तक रत्न वर्णन ट- मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य १४० क- विजयदेव की उत्पत्ति व पर्याप्ति ख- विजयदेव का मानसिक संकल्प ग- सामानिक देवों का आगमन घ- जिन प्रतिमाओं और सक्थियों की अर्चा के कर्तव्य का निर्देश ङ- विजयदेव के अभिषेक का विस्तृत वर्णन १४१ क- विजयदेव का शृङ्गार वर्णन ख- विजय देव का पुस्तक-स्वाध्याय ग- विजय देव का सिद्धायतन में आगमन, जिन प्रतिमाओं की अर्चा का वर्णन Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -सूत्र १४२-१४८ घ- चैत्य स्तूप का प्रमार्जन ङ - जिनप्रतिमा व जिन सक्थियों की अर्चापूजा १४३ क- जंबूद्वीप के ख ग च - विजयदेव का सुधर्मा सभा में आगमन, सिंहासन पर पूर्वा भिमुख आसीन होना, १४२ क- विजयदेव के समस्त परिवार का यथाक्रम से बैठना ख- विजयदेव की स्थिति ग- विजय देव के सामानिक देवों की स्थिति. विजयंत द्वार का वर्णन जयंत द्वार का वर्णन अपराजित द्वार का वर्णन ५६५ " 17 जीवाभिगम सूची - १४४ जंबूद्वीप के एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर १४५ क- जंबूद्वीप से लवण समुद्र का और लवण समुद्र से जंबूद्वीप का स्पर्श ख- जंबूद्वीप के जीवों की लवण समुद्र में और लवण समुद्र के जीवों की जम्बूद्वीप में उत्पत्ति. उत्तरकुरुक्षेत्र वर्णन १४६ क- जंबूद्वीप में उत्तर कुरुक्षेत्र का स्थान ख- उत्तर कुरुक्षेत्र का संस्थान और विष्कम्भ ग- जीवा और वक्षस्कार पर्वत का स्पर्श घ- धनुपृष्ठ की परिधि ङ उत्तरकुरुक्षेत्र के मनुष्यों की ऊँचाई, पसलियां, आहारेच्छा काल, स्थिति और शिशुपालन काल. च- उत्तरकुरुक्षेत्र में छ प्रकार के मनुष्य उत्तरकुरु में दो यमक पर्वत १४७ १४८ क- यमक पर्वतों का स्थान, ऊँचाई, उद्वेध, मूल, मध्य और उपरिभाग का आयाम, विष्कम्भ, परिधि. Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५६६ ख- यमक पर्वतों पर प्रासाद और प्रासादों की ऊँचाई ग- यमक नाम होने का हेतु दो यमक देव, उनकी स्थिति, उनका देव परिवार घ- यमक पर्वतों की नित्यता सिद्धि ङ - यमका राजधानियों का स्थान १४६ क- उत्तरकुरु में नीलवन्तद्रह का स्थान, आयाम-विष्कम्भ और उद्वेध ख- पद्म का आयाम, विष्कम्भ, परिधि, बाहल्य, ऊंचाई और सर्वोपरिभाग. ग- पद्मकणिका का आयाम - विष्कम्भ परिधि और बाहल्य घ- भवन का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई ङ - भवन के द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ च - मणिपीठिका का आयाम विष्कम्भ और बाहल्य छ- देवशयनीय वर्णन. - एक सो आठ कमलों की ऊँचाई आदि - कणिकाओं का आयाम - विष्कम्भ ञ - पद्म का परिवार. सर्व पद्मों की संख्या ट - नीलवंतद्रह नाम होने का हेतु सूत्र १४६-१५१ १५० क - कंचनग पवर्ती का स्थान ख़ की ऊँचाई, उद्बोध, मूल, मध्य और सर्वोपरि भाग का विष्कम्भ ग- प्रासादों की ऊँचाई, विष्कम्भ घ- कंचनग पर्वत नाम होने का हेतु ङ - कंचनग देव, कंचनगा राजधानी च - उत्तरकुरुद्रह का स्थान आदि छ- चन्द्र द्रह, एरावण द्रह, माल्यवन्त द्रह १५१ क- पीठ का स्थान "" Page #625 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १५२ ५६७ जीवाभिगम-सूची ख- जम्बूपीठ का आयाम, विष्कम्भ, परिधि, मध्यभाग का और अन्तिम भाग का बाहल्य ग- मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य घ- जंबू-सुदर्शन वृक्ष की ऊँचाई उद्वेध, स्कंध का विष्कम्भ. मध्य भाग का और सर्वोपरि भाग का विष्कम्भ. जंबू-दर्शन वृक्ष का वर्णन २५२ क- जम्बू-सुदर्शन की चार शाखायें ख- शाखाओं पर भवन, उनका आयाम, विष्कम्भ और ऊँचाई आदि ग- भवन द्वारों की ऊँचाई विष्कम्भ आदि घ- जम्बू-सुदर्शन के उपरिभाग में सिद्धायतन. सिद्धायतन का आपाम-विष्कम्भ, ऊँचाई, सिद्धायतन के द्वारों की ऊँचाई, विष्कम्भ आदि देव छंदक, जिनप्रतिमा आदि. ङ- पार्ववर्ती अन्य जम्बू सुदर्शनों की ऊँचाई आदि च- अनाधृत देव और उसका परिवार छ- जम्बू-सुदर्शन वृक्ष के चारों और तीन वनखण्ड ज. प्रत्येक वनखण्ड में भवन झ- चार नन्दा पुष्करिणियाँ, उनका आयाम-विष्कम्भ आदि ज- नन्दा पुष्करिणी के मध्य प्रासाद की ऊँचाई आदि. ट- सर्व पुष्करिणियों के नाम ठ. एक महान कूट कूटों की ऊँचाई विष्कम्भ आदि कूटों पर सिद्धायतन का वर्णन ङ- जम्बू-सुदर्शन वृक्ष पर अष्टमंगल ढ- जम्बू-सुदर्शन वृक्ष के बारह नाम ण- जम्बू-सुदर्शन नाम का हेतु त- अनाधृत देव की स्थिति Page #626 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ५६८ सूत्र १५३-१५६. थ- अनाधृता राजधानी का स्थान आदि द- जम्बूद्वीप नाम की नित्यता क- जम्बूद्वीप में चन्द्र संख्या ख- " सर्य नक्षत्र महाग्रह " नारागण लवणसमुद्र वर्णन क- लवण समुद्र का संस्थान का चक्रवाल-विष्कम्भ की परिधि की पद्मवर वेदिका की ऊँचाई और वनखण्ड " के द्वार, द्वारों का अन्तर लवण समुद्र और धातकीखण्ड का परस्पर स्पर्श लवण समुद्र के जीवों की धातकीखण्ड में और धातकी खण्ड के जीवों की लवण समुद्र में उत्पत्ति. ज- लवण समुद्र नाम होने का हेतु झ- लवणाधिपति सुस्थित देव की स्थिति अ- लवण समुद्र की नित्यता १५५ क- लवण समुद्र में चन्द्र संख्या सूर्य " नक्षत्र " महाग्रह" तारा " १५६ क. अष्टमी आदि तिथियों में लवण ससुद्र की वेला वृद्धि ख. लवण समुद्र में चार पाताल कलश पाताल कलशों के मूल, मध्य और उपरिभाग का विष्कम्भ Page #627 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १५७-१५६ ५६६ जीवाभिगम-सूची ग- पातालकलशों में जीवों और पुद्गलों का चयापचाय. घ. पातालकलशों के तीन भाग ङ- प्रत्येक भाग में वायु और पानी च- अनेक क्षुद्र पातालकलशों के मूल, मध्य ओर उपरिभाग का परिमाण छ- क्षुद्र पातालकलशों में जीवों और पुदगलों का चयापचय ज- प्रत्येक पातालकलश में एक देव, देव की स्थिति झ- प्रत्येक पातालकलश के तीनों भाग में वायु, पानी का अस्तित्व ब- सर्व पातालकलशों की संख्या ट- पातालकलशों में वायु-पानी का घट्टन, स्पंदन, वेलावृद्धि का कारण १५७ तीसमुहूर्त में लवण समुद्र की वेला-वृद्धि व वेला-हानि १५८ क- लवण शिखा की वृद्धि-हानि का परिमाण ख- लवणसमुद्र की बाह्याभ्यन्तर वेला वृद्धि को रोकने वाले नागदेवों की संख्या १५६ क- चार वेलंधर नागराज ख- नागराजों के आवास पर्वत ग- गोस्थूभ वेलंघर नागराज का गोस्तूभ आवास का पर्वत का स्थान, मूल, मध्य और उपरिभाग का परिमाण, पद्मवर वेदिका, वनखण्ड घ. प्रासादावतंसक का परिमाण ङ- गोस्तूभ नाम का हेतु, गोस्तुभ देव, स्थिति, देवपरिवार, गौस्तुभा राजधानी का परिमाण च- शिवक वेलंघर नागराज के दकभास आवास पर्वत की ऊंचाई आदि झ- शंखदेव, शंखा राजधानी Page #628 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १६०-१६२ ६०० जीवाभिगम-सूची ज शंख वेलंधर नागराज का दगसीम आवास पर्वत का स्थान ऊँचाई आदि झ- शंखदेव, शंखा राजधानी ब- मनोसील वेलंधर नागराज का ३ दकसीम आवास पर्वत का ऊँचाई आदि ट- मनोसील देव, मनोसीला राजधानी १६० क- चार अनुवेलंधर नागराज ख- इनके चार आवास पर्वत ग- कर्कोटक अनुवेलंधर नागराज का कर्कोटक आवास पर्वत का स्थान, परिमाण, कर्कोटक नाम का हेतु, कर्कोटक देव, कर्कोटका राजधानी घ- कर्दम अनुवेलंधर नागराज का कर्दम आवास पर्वत का स्थान परिमाण आदि, कर्दम देव, कर्दमा राजधानी ङ. केलाश पर्वत गोस्तूभ के समान च- अरूणप्रभ लवणाधिप सुस्थित देव के गोतमद्वीप का वर्णन १६१ क- गौतम द्वीप का स्थान, ओयाम-विष्कम्भ, परिधि, पद्मवर वेदिका, वनखण्ड क- क्रीड़ावास की ऊँचाई, विष्कम्भ ग- मणिपीठिका का आयाम, विष्कम्भ और बाहल्य, देवशयनीय का वर्णन घ- गौतम द्वीप नाम का हेतु ङ- सुस्थित देव, सुस्थिता राजधानी जम्बूद्वीप के चन्द्रद्वीपों का वर्णन क- चन्द्र द्वीप का स्थान ख. " की ऊँचाई १६२ Page #629 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १६३-१६५ ६०१ जीवाभिगम-सूची ग- चन्द्रद्वीप का आयाम-विष्कम्भ घ- ज्योतिषी देवों का क्रीड़ा स्थल ङ- प्रासादावतंसक का आयाम-विष्कम्भ च- मणिपीठिका का परिमाण छ- चन्द्रद्वीप नाम का हेतु, चन्द्र देव, चन्द्रा राजधानी जम्बूद्वीप के सूर्य और उनके सूर्यद्वीपों का वर्णन क- सूर्य द्वीप का स्थान ख- " का आयाम-विष्कम्भ, और परिधि ग- पद्मवर वेदिका, वनखण्ड, प्रासादावतंसक, मणिपीठिका घ- सूर्यद्वीप नाम का हेतु, सूर्य उत्पल, सूर्यदेव, सूर्या राजधानी लवण समुद्र के ग्राभ्यन्तर चन्द्र, सूर्य और उनके चन्द्र सूर्य द्वीपों का वर्णन १६३ क- चन्द्र द्वीपों के स्थान आदि [जम्बू के चन्द्रद्वीप के समान वर्णन] ख- सूर्य द्वीपों के स्थान आदि [जम्बू के सूर्यद्वीप के समान वर्णन ग- लवण समुद्र के बाह्य चन्द्र, सूर्य और उनके चन्द्र सूर्य द्वीप धातकीखण्ड के चन्द्र सूर्य और उनके चन्द्र सूर्य द्वीप :१६४ क- चन्द्रद्वीपों के स्थान आदि ख- सूर्य द्वीपों के स्थान आदि ग- चन्द्रद्वीपों के स्थान आदि घ- सूर्यद्वीपों के स्थान आदि १६५ कालोद समुद्र के चन्द्र सूर्य और उनके चन्द्र सूर्य द्वीप क- चन्द्र द्वीपों के स्थान आदि ख- सूर्य द्वीप स्थान आदि पुष्कर वर द्वीप के चन्द्र सूर्य और उनके चन्द्र सूर्यद्वीप ग- चन्द्र द्वीपों के स्थान आदि घ- सूर्य द्वीपों के स्यान आदि Page #630 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०२ . जीवाभिगम-सूची सूत्र १६६-१७२ १६६ द्वीप समुद्रों के नाम १६७ क- देव द्वीप के चन्द्र सूर्य और उनके चन्द्रसूर्य द्वीप, चन्द्रसूर्य द्वीप के स्थान आदि ख- सूर्यद्वीप के स्थान आदि, देव समुद्र के चन्द्र सूर्य और उनके चन्द्र सूर्य द्वीप ग- चन्द्र द्वीप के स्थान आदि घ- सूर्य द्वीप के स्थान आदि ङ- नाग, यक्ष, भूत द्वीप और समुद्र-चन्द्र-सूर्य द्वीप च- स्वयंभूरमण द्वीप में चन्द्र-सूर्य द्वीप छ- स्वयंभूरमण समुद्र में चन्द्र-सूर्य द्वीप १६८ क- लवणसमूद्र के वेलंधर मच्छ, कच्छप ख- बाह्य समूद्रों में वेलंधरों का अभाव १६६ क- लवणसमुद्र में उच्छितोदक है ख. बाह्य समुद्रों में प्रस्तटोदक है । ग- लवण समुद्र में मेघ आदि का सदभाव घ- बाह्य समुद्रों में मेघ आदि का अभाव ङ- मेघ आदि के अभाव का हेतु १७० क- लवण समुद्र के उद्वेध का परिमाण ख- , उत्सेध का परिमाण १७१ क- लवण समुद्र के गोतीर्थ का परिमाण ख- गोतीर्थ विरहित क्षेत्र का परिमाण ग- लवण समुद्र के उदकमाल का परिमाण १७२ क- लवण समुद्र के संस्थान का चक्रवाल-विष्कम्भ की परिधि का उदवेध का उत्सेध का सर्वाग्र भाग Page #631 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १७३-१७५ जीवाभिगम-सूची १७३ लवण समुद्र के पानी को जम्बूद्वीप में फैलने से रोकने वाले निमित्त कारण-हेतु धातकीखण्ड का वर्णन १७४ क- धातकीखण्ड का संस्थान " का चक्रवाल-विष्कम्भ ग- " का चक्रवाल-परिधि घ- " की पद्मवर वेदिका और वनखण्ड ङ- धातकीखण्ड के चार द्वार च- प्रत्येक द्वार का अन्तर छ- धातकीखण्ड और कालोद समुद्र का परस्पर स्पर्श ज- धातकीखण्ड और कालोद समुद्र के जीवों की धातकीखण्ड और कालोद समुद्र में उत्पत्ति. झ- धातकीखण्ड नाम होने का हेतु अ- धातकी महाधात की वृक्ष. इन पर रहने वाले देव. देवों की स्थिति ट- धातकीखण्ड की नित्यता ठ- धातकीखण्ड के चन्द्र महाग्रह नक्षत्र तारा कालोद समद्र का वर्णन १७५ क- कालोद समुद्र का संस्थान का चक्रवाल-विष्कम्भ का चक्रवाल-परिधि की पवार वेदिका, वन खण्ड. के चार द्वार के प्रत्येक द्वार का अन्तर घ- " Page #632 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम सूची ६०४ छ- कालोद समुद्र और पुष्कर वर द्वीप का परस्पर स्पर्शं ज- कालोद समुद्र और पुष्करवर द्वीप के जीवों की एक दूसरे में उत्पत्ति - कालोद समुद्र नाम होने का हेतु ञ - काल - महाकाल देव, स्थिति ट- कालोद समुद्र की नित्यता ठ- कालोद समुद्र में चन्द्र सूर्य 33 22 27 >" 23 १७६ क- पुष्करवर द्वीप का संस्थान ख ग "" 21 11 महाग्रह नक्षत्र तारा "" पुष्करवर द्वीप का वर्णन का चक्रवाल- विष्कम्भ की परिधि की पद्म वेदिका, वनखण्ड के चार द्वार घ ङ - त्र के प्रत्येक द्वार का अन्तर छ- कालोद समुद्र और पुष्करवर द्वीप के प्रदेशों का परस्पर स्पर्श " सूत्र १७६ ज- कालोद समुद्र और पुष्करवर द्वीप के जीवों की एक दूसरे में उत्पत्ति झ- पुष्करवर द्वीप नाम होने का हेतु - पद्म और महापद्म वृक्ष, पद्म और पुंडरीक देवों की स्थिति, पुष्करवर द्वीप की नित्यता Page #633 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १७७. जीवाभिगम-सूची ६०५ ट- पुष्करवर द्वीप में चन्द्र सूर्य महाग्रह नक्षत्र तारा ठ- मानुषोत्तर पर्वत से पुष्करबर द्वीप के दो विभाग ड- अभ्यन्तर पुष्काघ की चक्रवाल परिधि ढ- अभ्यन्तर पुष्करार्घ नाम होने का हेतु ण- अभ्यन्तर पुष्करार्ध में चन्द्र सूर्य महाग्रह नक्षत्र तारा १७७ क- समय क्षेत्र का आयाम-विष्कम्भ ख- " की परिधि ग- मनुष्य क्षेत्र नाम होने का हेतु घ- मनुष्य क्षेत्र में चन्द्र सूर्य महाग्रह नक्षत्र तारा ङ- मनुष्यलोक के अन्दर और बाहर के लारा. ताराओं की गति. च- मनुष्य लोक में चन्द्र सूर्य के पिटक में प्रत्येक पिटक में चन्द्र सूर्य में नक्षत्रों के पिटक में प्रत्येक पिटक में नक्षत्र में महाग्रहों के पिटक Page #634 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १७७ मनुष्यलोक 17 31 " 19 "" 17 17 32 93 73 33 नक्षत्र और ग्रहों की गति ताप क्षेत्र की हानि वृद्धि का संस्थान ६०६ में प्रत्येक पिटक में ग्रह में चन्द्र सूर्य की पंक्तियाँ मैं प्रत्येक पंक्ति में चन्द्र सूर्य में नक्षत्रों की पंक्तियाँ में प्रत्येक पंक्ति में नक्षत्र में ग्रहों की पंक्तियाँ में प्रत्येक पंक्ति में ग्रह चन्द्र की हानि वृद्धि का कारण मनुष्य क्षेत्र में चर चन्द्रादि " 33 में चन्द्र सूर्य ग्रह के चरमण्डल में नक्षत्र और तारों के अवस्थित मण्डल में चन्द्र सूर्य का मण्डल संक्रमण में मनुष्यों के सुख का निमित्त चन्द्र सूर्य अढाई द्वीप में चन्द्र सूर्य मनुष्य क्षेत्र में चन्द्र सूर्य का अन्तर 27 सूर्य से सूर्य का अन्तर के बाहर चन्द्र, सूर्य से बाहर स्थिर चन्द्रादि 39 एक चन्द्र का परिवार मनुष्य क्षेत्र के बाहर स्थिर चन्द्र सूर्य "" चन्द्र के साथी ग्रह सूर्य के साथी ग्रह जीवाभिगम सूची Page #635 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ६०७ सूत्र १७८-१८० १७८ क- मानुषोत्तर पर्वत की ऊंचाई की उद्वेध के मूल का विष्कम्भ के मध्य का" के उपर का" के अन्दर की परिधि के बाहर की परिधि के मध्य की " के उपर की ॥ की पद्मवर वेदिका, वन खण्ड ट- मानुषोत्तर पर्वत नाम होने का हेतु, लोक सीमा का अंकन ठ. लोक सीमा के अनेक विकल्प क- मनुष्य क्षेत्र में चन्द्रादि ज्योतिषी देवों की मण्डलाकार गति ख- इन्द्र के अभाव में सामानिक देवों द्वारा शासन ग- इन्द्र का जघन्य उत्कृष्ट विरहकाल घ- मनुष्य क्षेत्र बाहर के चन्द्रादि ज्योतिषी देवों की एक स्थान स्थिति ङ- इन्द्र के अभाव में सामानिक देवों द्वारा शासन च- इन्द्र का जघन्य उत्कृष्ट विरहकाल १८० क- पुष्करोद समुद्र का संस्थान ख- का चक्रवाल विष्कम्भ ग- की चक्रवाल परिधि के चार द्वार ङ- प्रत्येक द्वार का अन्तर च- पुष्कर वर द्वीप ओर पुष्करवर समुद्र का परस्पर स्पर्श छ- दोनों के जीवों की एक-दूसरे में उत्पत्ति Page #636 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १८१-१८५ . जीवाभिगम-सूची ज- पुष्करोद समुद्र नाम होने का हेतु झ- पुष्करोद समुद्र में चन्द्र-यावत्-तारा अ- वरुणवर द्वीप का संस्था आयाम-विष्कम्भ. परिधि. स्पर्श. जीवोत्पत्ति. नाम हेतु. पद्मवर वेदिका. वनखण्ड वरुणदेव और वरुणप्रभदेव स्थिति वरुणवर द्वीप में चन्द्र-यावत्-तारा ट- वरुणोद समुद्र का वर्णन १८१ क- क्षीरवर द्वीप का वर्णन ख- क्षीरोद समुद्र का वर्णन १८२ क- घतवर द्वीप का वर्णन ख- घृतोद ससुद्र का वर्णन ग- क्षोतवर द्वीप का वर्णन घ- क्षोतोद समुद्र का वर्णन १८३ क- नंदीश्वर द्वीप का वर्णन ख- नंदीश्वर द्वीप में चार अंजनक पर्वत ग- प्रत्येक का आयाम-विष्कम्म आदि । घ- प्रत्येक पर्वत पर सिद्धायतन. द्वार वर्णन. चार देव. स्थिति मुखमण्डप. प्रेक्षाघर मंडप. अखाड़े मणिपीठिकायें. सिंहासन. चैत्यस्तूप. जिन प्रतिमायं. चैत्यवृक्ष. महापुष्करणियां, देव-छंदक १०८ जिन प्रतिमायें. पर्व तिथियों में तथा जिन कल्याणक दिनों में देवों द्वारा अयान्हिका उत्सव का आयोजन, ङ- रतिकर पर्वतों का वर्णन १८४ नंदीश्वरोद समुद्र का वर्णन १८५ क- अरुणद्वीप का वर्णन ख- अरुणोद समुद्र का ग- अरुणावभासद्वीप का वर्णन Page #637 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १८५ ६०६ जीवाभिगम-सूची घ- अरुणावभास समुद्र का वर्णन ङ- कुंडलद्वीप का च- कुंडलोद समुद्र का छ- कुंडलवर द्वीप का ज- कुंडलवरोद समुद्र का झ- कुंडलवरावभास का द्वीप अ- कॅडल वरावभास समुद्र का , ट. रुचक द्वीप का ठ- रुचकोद समुद्र का ड- रुचकवर द्वीप का ढ- रुचकवरोद समुद्र का ण- रुचकवरावमास द्वीप का , त- समुद्र का थ- हारद्वीप का द- हार समुद्र का घ- हारवर द्वीप का न- हारवर समुद्र का प- हारवरावभास द्वीप का , समुद्र का ब- सूर द्वीप का भ- सूर समुद्र का म- सूरवर द्वीप का य- सूरवर समुद्र का १. प्रत्येक आभरण के नाम पर तीन के क्रम से द्वीप-समुद्र यावत् प्रत्येक चन्द्र सूर्य के नाम पर तीन तीन के क्रम से द्वीप-समुद्र-टीका Page #638 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ६१० सूत्र १८६-१८८ र- सूरवरावभास द्वीप का , ल- ,, समुद्र का , व- देवद्वीप का श- देवोद समुद्र का स- स्वयंभूरमण द्वीप का , ह- , समुद्र का , १८६ एक नाम के द्वीप-समुद्रों का संख्या परिमाण १८७ क- लवण समुद्र के पानी का आस्वाद ख- कालोद " " ग- पुष्करोद " " घ- वरुणोद " , ङ- क्षीरोद " , च- घृतोद " छ- क्षोतोद " ज- शेष समुद्र के झ- प्रत्येक रसवाले' चार समुद्र अ- उदक रसवाले तीन समुद्र क- बहुत मच्छ-कच्छ वाले तीन समुद्र ख- अल्प मच्छ कच्छ वाले शेष समुद्र ग- लवण समुद्र में मत्स्यों की कुलकोटी घ- कालोद " " ङ. स्वयंभूरमण " " च. लवण समुद्र में मत्स्यों की जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना छ- कालोद " ज- स्वयम्भूरमण समुद्र में १८८ १. नामानुसार पदार्थ के रसवाले Page #639 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १८६-१६५ ६११ जीवाभिगम-सूची १८६ क- द्वीप-समुद्रों के उद्धार समय ख- द्वीप-समुद्रों के उद्धार समय १६० क- द्वीप-समुद्रों का पृथ्वी परिणमन-यावत्-पुद्गल परिणमन ख- सर्व द्वीप समुद्रों में सर्वजीवों की उत्पत्ति इन्द्रियों के विषय १६१ क- पाँच इन्द्रियों के विषय ख. श्रोत्रेन्द्रिय के दो विषय-यावत् स्पर्शन्द्रिय के दो विषय ग- सुशब्द का दुःशब्द रूप में परिणमन-यावत्-सुस्पर्श का दुःस्पर्श रूप में परिणमन ज्योतिष्क उद्देशक देवता श्री गति १६२ क- देवता की दिव्य गति देवता की वैक्रेय शक्ति ख- बाह्य पुद्गलों के ग्रहण से ही विकुर्वणा का कर सकना ग. सूक्ष्म देव वैकेय को छद्मस्थ द्वारा न देख सकना घ- बालक का छेदन-भेदन किये बिना बालक का ह्रस्व-दीर्घकरण का सामर्थ्य १६३ क- चन्द्रसूर्थों के नीचे समान और ऊपर छोटे बड़े ताराओं का अस्तित्व ख- ऐसा होने का कारण १६४ एक एक चन्द्र-सूर्य का परिवार परिमाण १६५ क. जम्बूद्वीप के मेरु से ज्योतिषी देवों के गतिक्षेत्र का अन्तर ख- लोकान्त से ज्योतिषी देवों के गतिक्षेत्र का अन्तर ग- रत्नप्रभा के उपरिभाग से ताराओं का अन्तर घ. रत्नप्रभा के उपरिभाग से सूर्य विमान का अन्तर Page #640 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ६१२ सूत्र १६६-२०३ रत्नप्रभा के उपरिभाग से चन्द्र विमान अन्तर सर्वोपरितारे का ,, ङ- अधोवर्ती तारे से सूर्य विमान का अन्तर " चन्द्र विमान , सर्वोपरि तारे च- सूर्य विमान से चन्द्रविमान का अन्तर , सर्वोपरितारे का , छ- चन्द्र विमान से सर्वोपरि तारे का १६६ जम्बूद्वीप में सर्वाभ्यन्तर गति करने वाले नक्षत्र , सर्व बाह्य , सर्वोपरि , , सर्वअधो , १६७ क- चन्द्रविमान-यावत्-ताराविमान का संस्थान ख. चन्द्रविमान-यावत्-ताराविमानों का आयाम-विष्कम्भ परिधि और बाहल्य १६८ क- चन्द्रविमान का परिवहन करनेवाले देवों की संख्या तथा उनका विस्तृत वर्णन ख- सूर्यविमान का परिवहन करनेवाले देवों की संख्या ग- ग्रहविमानों का परिवहन करनेवाले देवों की संख्या घ- नक्षत्रविमानों का १६६ चन्द्रादि की एक-दूसरे से शीघ्रगति २०० ताराओं से चन्द्रपर्यन्त एक दूसरे से महधिक एक तारा से दूसरे तारे का अन्तर २०२ क- चन्द्र की अग्र महीषियाँ ख- अग्रमहीषियों की विकुर्वणा शक्ति २०३ सुधर्मा सभा के माणवक चैत्यस्तम्भ में स्थित जिन अस्थियों का चन्द्र द्वारा सन्मान २०१ www.jainelibrary:org Page #641 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २०४-२१० २०४ क - सूर्य की अग्रमहीषियां २०५ २०६ ख- अग्रमहीषियों की विकुर्वणा शक्ति ग. जिन अस्थियों का सन्मान २१० घ ग्रहों की अग्र महीषियाँ, अग्रमहीषियों की विकुर्वणा, जिन - २०७ २०८ क शक्रेन्द्र की तीन परिषद अस्थियों का सम्मान ङ. नक्षत्रों और ताराओं का ग्रहों के समान वर्णन - चन्द्रविमान में देवों की स्थिति यावत्-ताराविमानों में के देवों की स्थिति चन्द्रादि की अल्प - बहुत्व प्रथम वैमानिक देव उद्देशक वैमानिक देवों का वर्णन परिषदों के देवों की संख्या स्थिति ६१३ "" 77 ख- यावत्-अच्युतेन्द्र की तीन परिषद तीन परिषद के देवों की संख्या स्थिति " ग- अहमेन्द्र ग्रैवेयक देवों का वर्णन घ अनुत्तर द्वितीय वैमानिक देव उद्देशक २०६ क - सौधर्म - ईशानकल्प के विमानों का आधार ख- सनत्कुमार- माहेन्द ब्रह्मलोककल्प के " ग- लांतक-यावत्-सहस्रारकल्प के "" घ- आनत यावत्-अच्युतकल्प के ङ ग्रैवेयक-यावत्-अनुत्तरकल्प के सौधर्म- यावत्-अनुत्तर विमान पृथ्वी का भिन्न भिन्न बाहल्य 12 " 71 जीवाभिगम सूची " 17 Page #642 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची सूत्र २११-२१७ २११ सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों की भिन्न भिन्न संस्थान २१२ सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों के भिन्न भिन्न ऊँचाई २१३ क- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों का भिन्न भिन्न आयाम-विष्कम्भ और परिधि ख- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमानों के भिन्न-भिन्न वर्ण, प्रभा, गन्ध और स्पर्श ग- सर्व विमानों की पौद्गलिक रचना घ. सर्व विमानों में जीवों और पुद्गलों का चयोपचय ङ- सर्व विमानों की नित्यता च- सर्व विमानों में जीवों की उत्पत्ति का भिन्न भिन्न क्रम छ- सर्व विमानों का जीवों से सर्वथा रिक्त न होना ज- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर देवों की भिन्न २ अवगाहना-शरीरमान झ- ग्रेवेयक और अनुत्तर देवों का वैकेय न करना २१४ क- सौधर्म-यावत-अनुत्तर देवों के संघयण का अभाव-पुद्गलों का शुभ परिणमन ख- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर देवों का संस्थान २१५ क- सौधर्म-यावत्-अनुत्तर देवों के शरीररों का भिन्न २ वर्ण, गंघ, स्पर्श ख- वैमानिक देवों के श्वासोच्छ्वास के पुद्गल " आहार के पुद्गल घ- वैमानिक देवों के लेश्या-यावत्-उपयोग द्वार २१६ वैमानिक देवों के अवधिज्ञान की भिन्न-भिन्न अवधि २१७ क- वैमानिक देवों के भिन्न २ समुद्घात ख- वैमानिक देवों में सूधा-पिपासा की वेदन का अभाव ग- वैमानिक-देवों की भिन्न २ प्रकार की वैक्रिय शक्ति घ- वैमानिक देवों का साता वेदन। ङ- वैमानिक देवों की उत्तरोत्तर महर्षी , Page #643 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २१८-२२६ जीवाभिगम-सूची २१८ वैमानिक देवों की वेषभूषा २१६ वैमानिक देवों के काम भोग २२० क- वैमानिक देवों की भिन्न २ स्थिति " गति २२१ सर्व विमानों में षटकाय रूप में सर्वजीवों की उत्पति २२२ क- सर्व नै रयिकों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ख- सर्व तिर्यंचों की ग- सर्व मनुष्यों की " घ- सर्व देवों की " ङ- नैरयिकों का जघन्य उत्कृष्ट संस्थिति काल च- तिर्यचों का " छ- मनुष्यों का " ज- देवों का " झ- नैरयिक, मनुष्य और देवों का जघन्य उत्कृष्ट अन्तर काल अ- तिर्यंचों का जघन्य उत्कृष्ट अन्तर काल नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देवों का अल्प-बहुत्व चतुर्थ पंचविध जीव प्रतिपत्ति २२४ क- संसार स्थित जीव पाँच प्रकार के ख- एकेन्द्रिय-यावत्-पंचेन्द्रिय दो-दो प्रकार के ग- एकेन्द्रिय-यावत्-पंचेन्द्रियों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति घ- एकेन्द्रिय-यावत-पंचेन्द्रियों का भिन्न २ जघन्य उत्कृष्ट संस्थिति काल ङ- एकेन्द्रिय-यावत्-पंचेन्द्रियों का भिन्न २ जघन्य उत्कृष्ट अन्तर काल २२५ एकेन्द्रिय-यावत-पंचेन्द्रियों का अल्प-बहुत्व २२६ क- संसार स्थित जीव ६ प्रकार के २२३ Page #644 -------------------------------------------------------------------------- ________________ الله الله mr m २३४ mm १३५ जीवाभिगम-सूची सूत्र २२७-२३६ ख- पृथ्वीकाय-यावत्-त्रसकाय के प्रत्येक के दो-दो भेद २२७ पृथ्वीकायिक-यावत्-त्रसकायिक जीवों की भिन्न २ स्थिति २२८ क- षटकायिक जीवों का भिन्न २ संस्थिति काल ख- षटकायिक जीवों का भिन्न २ अन्तर काल २२६ षटकायिक जीवों का अल्प बहत्व सूक्ष्म षट्कायिक जीवों की स्थिति सूक्ष्म षट्कायिक जीवों का संस्थिति काल २३२ अन्तर काल २३३ अल्प-बहुत्व बादर षट्कायिक जीवों की स्थिति का संस्थिति काल २६६ का अन्तर काल का अल्प-बहुत्व निगोद वर्णन २३८ क- निगोद दो प्रकार के ख- निगोदाश्रय ग- सूक्ष्म निगोदाश्रय घ- बादर निगोदाश्रय ङ. निगोद जीव च- सूक्ष्म निगोद जीव , छ- बादर निगोद जीव , २३६ क- अनन्त निगोद ख- पर्याप्त अपर्याप्त निगोद ग- अनन्त सूक्ष्म निगोद ध- पर्याप्त-अपर्याप्त सूक्ष्म निगोद ङ- अनन्त बादर निगोद च- पर्याप्त अपर्याप्त बादर निगोद २३७ Page #645 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -सूत्र २४०-२४२ जीवाभिगम-सूची " छ- निगोद जीव क-से-च तक के समान ज- द्रव्य की अपेक्षा से निगोद-क-से-च तक के समान झ- द्रव्य की अपेक्षा से निगोद जीव क-से-च तक के समान अ- प्रदेशों की अपेक्षा से निगोद क-से-च तक के समान ट- प्रदेशों को अपेक्षा से निगोद जीव क-से-च तक के समान ठ- निगोद की अल्प-बहुत्व ड- निगोद जीवों की अल्प-बहुत्व षष्ठा सप्तविध जीव-प्रतिपत्ति २४० क- संसार स्थित जीव सात प्रकार के ख- सात प्रकार के संसारी जीवों की स्थिति ग- सात प्रकार के संसारी जीवों का संस्थिति काल अन्तर काल अल्प-बहुत्व सप्तमा अष्टविध जीव-प्रतिपत्ति २४१ क- संसार स्थित जीव आठ प्रकार के ख- आठ प्रकार के संसारी जीवों की स्थिति " का संस्थिति काल " का अन्तर काल " का अल्प-बहुत्व अष्टमा नवविध जीव-प्रतिपत्ति २४२ क- संसार स्थित जीव नो प्रकार के ख- नो प्रकार के संसारी जीवों की स्थिति का संस्थिति का अन्तर काल का अल्प बहुत्व अर ' Page #646 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २४३-२४६ ६१८ जीवाभिगम-सूची नवमा दसविध जीव-प्रतिपति २४३ क- संसार स्थित जीव दस प्रकार के ख- दस प्रकार के संसारी जीवों की स्थिति का संस्थिति काल का अन्तर काल का अल्प-बहुत्व द्विविध सर्वजीव २४४ क- द्विविध सर्व जीवों का संस्थिति काल ख- असिद्ध जीव दो प्रकार के ग- द्विविध सर्व जीवों का अन्तर काल ध- " का अल्प-बहुत्व क- द्विविध सर्वजीव ख- " सर्वजीवों का संस्थिति काल ग- " का अन्तर काल प्र. " " का अल्प-बहुत्व ङ- द्विविध सर्वजीव ख-से-घ तक के समान ज- द्विविध सर्वजीव अ- सवेदक तीन प्रकार के ट- सवेदकों का संस्थिति काल ठ- अवेदक दो प्रकार के ड- सवेदकों का अन्तर काल ढ- अवेदकों का ण- सवेदक अवेदकों की अल्प-बहुत्व त- द्विविध सर्वजीव अ-से-ण तक के समान ५ थ २४६ क- द्विविध सर्वजीव Page #647 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची ६१६ सूत्र २४७-२५६ ख- ज्ञानी दो प्रकार के ग- दो प्रकार के ज्ञानियों का संस्थिति काल घ- अज्ञानियों का ङ- ज्ञानियों का अन्तर काल च- अज्ञानियों का छ- दोनों का अल्प-बहुत्व ज- द्विविध सर्व जीव झ- " सर्वजीवों का संस्थिति काल अ- " का अन्तर काल का अल्प-बहुत्व २४७ क- द्विविध सर्वजीव ख- " सर्वजीवों का संस्थिति कल ग- " का अन्तर काल . " का अल्प-बहुत्व २४८ द्विविध सर्वजीव सूत्र २४७ के समान २४६ त्रिविध सर्वजीव त्रिविध सर्व जीव सूत्र २४७ के समान २५० २५१ २५२ २५३ २५४ २५५ २५६ Page #648 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवाभिगम-सूची २५७ २५८ २५६ २६० २६१ २६२ २६४ २६५ २६६ २६७ २६८. २६६ २७० २७१ २७२ चतुविध सर्वजीव चतुर्विध सर्वजीव सूत्र २४७ के समान 13 "" 13 " षड्विध सर्वजीव २६३ क षड्विध सर्वजीवसूत्र २४७ के समान ख पंचविध सर्वजीव पंचविध सर्वजी सूत्र २४७ के समान 71 23 ६२० 31 "" 31 "1 12 " सप्तविध सर्वजीव सप्तविध सर्वजीव सूत्र २४७ के समान 27 31 71 अष्टविध सर्वजीव अष्टविध सर्वजीव सूत्र २४७ के समान " 27 नवविध सर्वजीव नवविध सर्वजीव सूत्र २४७ के समान 17 दसविध सर्वजीव दसविध सर्वजीव सूत्र २४७ के समान 17 "" सूत्र २५७ Page #649 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२१ योग जीवाभिगम उपाङ्ग सूत्र संख्या विवरण प्रथमा द्विविध जीव प्रत्तिपत्ति सूत्र १- ४३ द्वितीया त्रिविध जीव " सूत्र ४४- ६४ तृतीया चतुर्विध जीव ६५-११३ चतुर्था पंचविध जीव ११४-११५ पंचमा षड्विध जीव सूत्र ११६-१३६ षष्ठा सप्तविध जीव सूत्र १४०- १ सप्तमा अवविध जीव १४१- १ अष्टमा नवविध जीव ११२- १ नवमा दश विध जीव १४३- १ 4444 441 Eur ᄏ ᄏ 244444 सूत्र ᄏ द्विविध सर्वजीव विविध चतुविध , पंचविध , षडविध , सप्तविध ,, अवविध ,, नवविध , दसविध , ᄏ xxx x १४४-१४६ १५०-१५६ १५७-१६० १६१-१६२ १६३-१६४ १६५-१६६ १६७-१६८ १६६-१७० १७१-१७२ सू Page #650 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #651 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यानुयोगमय प्रज्ञापना उपाङ्ग अध्ययन पद उद्देशक उपलब्ध मूल पाठ गद्य सूत्र पद्य सूत्र १ ३६ ४४ ७७८७ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण ६१४ १६५ Page #652 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ २ ४ ५ ७ ८ १० ११ ११ १३ १४ १५ १६ १७ १८ प्रज्ञापना पद सूत्र संख्या विवरण पदनाम प्रज्ञापना स्थान बहुवक्तव्य स्थिति विशेष व्युत्क्रान्ति उच्छ्वास संज्ञा योनि चरम भाषा शरीर परिणाम कषाय इन्द्रिय प्रयोग लेश्या कायायस्थिति सूत्र ७८ ५८ ८ १ १८ ३५ ४६ द १० १६ ३४ ८ ५ ५७ १४ ५७ २ पदनाम १६ सम्यक्त्व १० अन्तक्रिया ११ अवगाहना संस्थान ११ क्रिया १३ कर्म १४ कर्मबन्धक १५ कर्मवेदक १६ वेदबन्धक २७ वेदवेदक १८ आहार २६ उपयोग ३० पश्यता ३१ संज्ञा १३ संयम ३३ अवधि ३४ प्रविचारणा ३५ वेदना ३६ समुद्धात सूत्र १ १३ १३ १६ ३६ १ १ १ १ १८. १ ३ १ १ 15 is ” ८ ४ १६ m Page #653 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना उपाङ्ग विषय-सूची वीर वन्दना २ जिन प्रज्ञप्त प्रज्ञापना प्रज्ञापना कथन प्रतिज्ञा ४-७ पदों के नाम प्रथम प्रज्ञापना पद प्रज्ञापना के दो भेद अजीव प्रज्ञापना के दो भेद अरूपी अजीव प्रज्ञापना के दस भेद क- रूपी चार भेद ख- ,, , संक्षेप में पाँच भेद ५ क- वर्ण परिणत पुद्गलों के पाँच भेद ख- गध परिणत , दो भेद ग- रस परिणत , पाँच भेद घ- स्पर्श परिणत , आठ भेद ङ. संस्थान परिणत , पाँच भेद ६ क- वर्ण परिणत पुद्गलों का परस्पर सम्बन्ध ख- गध परिणत ग- रस परिणत घ- स्पर्श परिणत ङ- संस्थान परिणत , जीव प्रज्ञापना के दो भेद मोक्षप्राप्त जीवों के , वर्तमान समय में मोक्ष प्राप्त जीवों के पन्द्रह भेद १० द्वितीयादि समय में , अनेक भेद Page #654 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना- सूची ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ क १८ is w १६ ङ संसार स्थित एकेन्द्रिय पृथ्वी कायिक जीवों के सूक्ष्म पृथ्वीकायिक बादर श्लक्ष्ण पृथ्वी कायिक खर ध २० क- बादर ङ - 91 " 13 19 " जीवों के सात भेद अनेक भेद संक्षेप से दो भेद ख 1) ग- वर्ण- यावत्-स्पर्श प्राप्त पृथ्वीकायिक जीवों के हजारों भेद इन जीवों की योनियाँ, इन जीवों के आश्रित अनेक जीवों की उत्पत्ति घ " ६२६ १. चालीस भेद 31 " 33 " 77 " एक जीव के साथ अनेक जीवों का अस्तित्व अपकायिक जीवों के दो दो भेद सूक्ष्म अप्कायिक जीवों के दो भेद अनेक भेद ख संक्षेप में दो भेद 19 ग- वर्ण- यावत्-स्पर्श प्राप्त अप्कायिक जीवों के हजारों भेद इन जीवों की योनियाँ इन जीवों के आश्रित अनेक जीवों की उत्पत्ति 11 33 जीवों के पाँच भेद 32 २१ २२ क- सूक्ष्म तेजस् कायिक जीवों के दो भेद ख- बादर अनेक भेद ग संक्षेप में दो भेद शेष सूत्र २० के ग-से-च तक के समान पद १ सूत्र ११-२२ "" दो भेद च- एक जीव के साथ अनेक जीवों का अस्तित्व तेजस् कायिक जीवों के दो भेद " " 9 Page #655 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद १सूत्र २४-४६ प्रज्ञापना-सूची २७ २४ वायुकायिक जीवों के दो भेद सूक्ष्म वायुकायिक जीवों के दो भेद बादर , अनेक भेद शेष सूत्र २० के ग-से-च तक के समान वनस्पति कायिक जीवों के दो भेद सूक्ष्म वनस्पति कायिक जीवों के दो भेद बादर , प्रत्येक बादर बनस्पति कायिक जीवों के बारह भेद वृक्ष के दो भेद एकास्थि वृक्ष के अनेक भेद बहु बीज बाले वृक्ष के अनेक भेद गुच्छ के गुल्म के लता के वल्लियों के पर्ववाली वनस्पतियों के तृण " वलय वनस्पति के हरित औषधियों के अनेक भेद जलरुह के कुहण के साधारण बादर वनस्पतिकायिक जीवों के अनेक भेद शेष सूत्र २० ग-से-च तक के समान ४६ क- द्वीन्द्रिय जीवों के अनेक भेद ख- " संक्षेप में दो भेद शेष सूत्र २० के ग-से-च तक के समान Page #656 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२८ पद १ सूत्र ४७-५३ प्रज्ञापना-सूची ४७ क- त्रीन्द्रिय जीवों के अनेक भेद ____ ख- " संक्षेप में अनेक भेद शेष सूत्र २० के ग-से-च तक के समान त्रीन्द्रिय जीवों की कुलकोटी ४८ क- चतुरिन्द्रिय जीवों के अनेक भेद ख- " संक्षेप में दो भेद शेष सूत्र २० के ग-से-च तक के समान चतुरिन्द्रिय जीवों की कुलकोटी ५० क- नैरयिकों के सात भेद . ख- " संक्षेप में दो भेद ५१ पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के तीन भेद ५२ क- जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के पांच भेद ख- मत्स्यों के अनेक भेद ग. कच्छपों के पांच भेद घ. ग्राहों के पांच भेद ङ- मगरों के दो भेद च- सँसुमारों का ___ एक भेद इनके संक्षेप में दो भेद छ- गर्भजों के तीन भेद ज- जलचरों की कुलकोटी क- स्थलचरों के दो भेद ख. चतुष्पद स्थलचरों के चार भेद । ग- एकक्षुर वालों के अनेक भेद घ- दो सूर बालों के अनेक भेद ङ- गंडीपदों के Page #657 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'पद १ सूत्र ५४-५७ च - श्वापदों के इनके संक्षेप में छ- गर्भजों के ज- स्थलचरों की कुलकोटी ५४ क परिसर्पों के ख- उरगों के ग- अही के घ- दर्वीकरों के ङ. मुकलियों के च- अजगरों का छ- आसालिक का " 37 17 " "" 73 "1 ६२६ दो भेद तीन भेद दो भेद चार भेद दो भेद अनेक भेद 33 ५५ क- महोरगों के ख ग घ 19 ङ- उरपरिसर्पों की कुलकोटी ५६ क- भुजपरिसर्पों के अनेक भेद " का आयु में दृष्टि में अज्ञान एक भेद उत्पत्ति स्थान' के शरीर का जघन्य उत्कृष्ट प्रमाण ख - "J ग- गर्भजों के तीन भेद घ- भुजपरिसर्पों की कुलकोटी असंज्ञी अनेक भेद शरीर का प्रमाण संक्षेप में दो भेद गर्भजों के तीन भेद संक्षेप में दो भेद ५७ क- खेचरों के चार भेद ख- चर्म पक्षियों के अनेक भेद १. यह श्रासालिक असंशीतिर्यंच पंचेन्द्रिय है । प्रज्ञापना- सूची Page #658 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद १ सूत्र ५८-६७ ६३० प्रज्ञापना-सूची ग- लोम पक्षियों के , घ- समुद्गक पक्षियों का एक भेद ङ- वितत पक्षियों का एक भेद च- इनके संक्षेप में दो भेद छ- गर्भजों के तीन भेद ज- खेचरों की कुलकोटी झ- कुलकोटी संग्रह गाथा ___मनुष्यों के दो भेद क- संमूच्छिम मनुष्यों के उत्पति स्थान ख- संमूच्छिम मनुष्य असंज्ञी मिथ्या दृष्टि , अज्ञानी , अर्याप्त च- संमूच्छिम मनुष्यों का आयु गर्भज मनुष्यों के तीन भेद अन्तर द्वीप निवासी मनुष्यों के अट्ठावीस भेद अकर्म भूमि निवासी मनुष्यों के तीन भेद उनके संक्षेप में दो भेद ६४ म्लेच्छों के अनेक भेद ६५ क- आर्यों के दो भेद ख- ऋद्धि प्राप्त आर्यों के ६ भेद ग- अनृद्धि प्राप्त आर्यो के नो भेद घ- क्षेत्रार्यों के संक्षेप में पच्चीस भेद जात्यायों के ,, ६ भेद ६७ कुलार्यों के Page #659 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद १ सूत्र ६८-७५ ६ ६६ कर्मार्थों के सिल्पार्यों के ७० क भाषा आर्यों का ख- ब्राह्मी लिपि के ज्ञानार्यों के ज ७१ ७२ दर्शनार्यों के दो भेद ७३ सराग दर्शनार्यों के दस भेद १ ७४ क- वीतराग दर्शनार्यों के दो भेद ख- उपशान्त कषाय वीतराग दर्शनार्यों के दो भेद ग 11 "" ६३१ अनेक भेद 31 घ- क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्यों के दो भेद ङ - क्षमस्थ क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्थों के दो भेद च- स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्यों के दो भेद छ- प्रथम समय स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्यों के दो भेद 19 एक भेद अठारह भेद पांच भेद 33 31 - बुद्ध बोधित छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्थों के दो भेद ञ - ७५ क चारित्रायों के " " > 17 ट- केवली क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्थों के दो भेद ठ- सजोगी केवली क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्यों के दो भेद ड 13 द- अजोगी केवली क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्यों के दो भेद ण " ख - सराग चारित्रार्यों के ग- सूक्ष्म संप राय सराग चारित्रार्यों के घ 37 १. निसर्गरुचि - यावत् — धर्मरुचि प्रज्ञापना- सूची " "" 11 12 दो भेद " "" 37 Page #660 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची पद १ सूत्र ७६ दो भेद ङ- सूक्ष्म संपराय सराग चारित्रार्यों के च- बादर संपराय सराग चारित्रार्यों के छ- " ७६ क- वीतराग चारित्रार्यों के ख- उपशांत कषाय बीतराग चारित्रार्यों के गघ- क्षीण कषाय वीतराग चारित्रार्यों के ङ- छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग चारित्रार्यों के च- स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग चारित्रार्यों के दो भेद छज- बुद्ध बोधित छद्मस्थ क्षीण क. वी. चारित्रार्यों के झज- केवली क्षीण कषाय वीतराग चारित्रार्यों के ट- सजोगी केवली क्षीण कषाय वीतराग चारित्रार्यों के दो भेद ड- अजोगी केवली क्षीण क०वी० चारित्रार्यों के पाँच भेद ण- चारित्रार्यों के त- सामयिक चारित्रार्यों के थ- छेदोपस्थापनीय चारित्रार्यों के द- परिहारविशुद्धि चारित्रार्यों के ध- सूक्ष्मसंपराय चारित्रार्यों के न- यथाख्यात चारित्रार्यों के Page #661 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना- सूची देव क. देवताओं के ख- भवनवासी देवों के इनके संक्षेप में ग- व्यन्तर देवों के इनके संक्षेप में घ- ज्योतिषिक देवों के इनके संक्षेप में ङ. वैमानिक देवों के च- कल्पोपन्न वैमानिक देवों के इनके संक्षेप में छ. कल्पातीत वैमानिक भेद ज- ग्रैवेयक देवों के इनके संक्षेप में झ- अनुत्तरोपपातिक देवों के इनके संक्षेप में द्वितीय स्थानपद तिर्यंचों के स्थान ६३३ " י, १ क- पर्याप्त पृथ्वी कायकों के स्थान आठ पृथ्वीयों में ख- प्रवोलोक में - पर्याप्त बादर पृथ्वी कायिकों के स्थान ग- उर्द्धलोक में पर्याप्त बादर पृथ्वीकायिकों के स्थान घ- तिर्यगलोक में- ङ - उत्पत्ति की अपेक्षा च - समुद्घात की अपेक्षा छ- स्वस्थान की अपेक्षा " 11 पद २ सूत्र १ चार भेद दस भेद दो भेद आठ भेद दो भेद पांच भेद दो भेद दो भेद बारह भेद दो भेद दो भेद नो भेद दो भेद पाँच भेद दो भेद Page #662 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " प्रज्ञापना-सूची ६३४ पद २ सूत्र २-६. २ क- अपर्याप्त बादर पृथ्वी कायिकों के स्थान ख- उत्पत्ति की अपेक्षा—अपर्याप्त बाद र कायिकों के स्थान ग- समुद्घात की अपेक्षा घ- स्वस्थान की अपेक्षा ३ क- पर्याप्त-अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों के स्थान ख- उत्पत्ति की अपेक्षा ४ क- पर्याप्त बादर अप्कायिकों के स्थान ख- अधोलोक में बादर अपकायिकों के स्थान ग- उर्द्धलोक में घ- तिर्यग्लोक में ङ- उत्पत्ति की अपेक्षा च- समुद्घात की अपेक्षा छ- स्वस्थान की अपेक्षा ज- अपर्याप्त यादर अप्कायिकों के स्थान झ- उत्पत्ति की अपेक्षा अप्ति बादर अप्कायिकों के स्थान अ- समुद्धात की अपेक्षा ट- स्वस्थान की अपेक्षा ठ- पर्याप्त अपर्याप्त सूक्ष्म अकायिकों के स्थान ५ क- पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान ख- निर्व्याघात की अपेक्षा पर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान ग- व्याघात की अपेक्षा घ- उत्पत्ति की अपेक्षा ङ- समुद्घात की अपेक्षा च- स्वस्थान की अपेक्षा ६ क- अपर्याप्त वादर तेजस्कायिकों के स्थान ख. उत्पत्ति की अपेक्षा अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकों के स्थान ग- समुद्घात की अपेक्षा Page #663 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २ सूत्र ८-१४ प्रज्ञापना-सूची घ. स्वस्थान की अपेक्षा पर्याप्त-अपर्याप्त सूक्ष्म तेजस्कायिकों के स्थान ८ क- पर्याप्त बादर वायुकायिकों के स्थान । ख- अधोलोक में पर्याप्त बादर वायुकायिकों के स्थान ग- ऊर्ध्वलोक में घ- तिर्यक्लोक में ङ- उत्पत्ति की अपेक्षा च- समुद्घात की अपेक्षा छ- स्वस्थान की अपेक्षा क- अपर्याप्त बादर वायुकायिकों के स्थान ख- उत्पत्ति की अपेक्षा अपर्याप्त बादर वायुकायिकों के स्थान ग- समुद्घात की अपेक्षा घ- स्वस्थान की अपेक्षा १० पर्याप्त अपर्याप्त सूक्ष्म वायुकायिकों के स्थान ११ क- पर्याप्त बादर वनस्पति कायिकों के स्थान ख- अधोलोक में पर्याप्त बादर बनस्पतिकायिकों के स्थान ग. उर्वलोक में घ. तिर्यग्लोक में ङ. उत्पत्ति की अपेक्षा च- समुद्घात की अपेक्षा छ- स्वस्थान की अपेक्षा क- अपर्याप्त बादर वनस्पति कायिकों के स्थान ख- उत्पत्ति की अपेक्षा अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिकों के स्थान ग- समुद्घात की अपेक्षा घ. स्वस्थान की अपेक्षा १३ पर्याप्त-अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों के स्थान १४ क- पर्याप्त-अपर्याप्त द्वीन्द्रियों के स्थान तीनलोक Page #664 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची पद २ सूत्र १५-२३ ख- उत्पत्ति की अपेक्षा पर्याप्त-अपर्याप्त द्वीन्द्रियों के स्थान ग- समुद्घात की अपेक्षा घ. स्वस्थान की अपेक्षा १५ तीन लोक में पर्याप्त-अपर्याप्त त्रीन्द्रियों के स्थान शेष सूत्र १४ के समान तीन लोक में पर्याप्त-अपर्याप्त चतुरिन्द्रियों के स्थान शेष सूत्र १४ के समान तीन लोक में पर्याप्त-अपर्याप्त पंचेन्द्रियों के स्थान शेष सूत्र १४ के समान नैरयिकों के स्थान १८ क- सात पृथ्वियों में पर्याप्त-अपर्याप्त नैरथिकों के स्थान ख- नैरयिकों के नरकावास ग- नरकावासों की रचमा घ- उत्पत्ति की अपेक्षा पर्याप्त अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान ङ- समुद्घात की अपेक्षा अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान च- स्वस्थान की अपेक्षा छ- नै रयिकों का वर्णन १६ क- रत्नप्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नै रयिकों के स्थान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान क- शर्कराप्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान २१ क- बालुका प्रभा का प्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नै रयिकों के स्थान " में नरकाबास । शेष सूत्र १८ के समान २२ क- पंकप्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नै रयिकों के स्थान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान २३ क- धूमप्रभा में पर्याप्त नैरथिकों के स्थान ___ Page #665 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २ सूत्र २४-२६ ६३७ प्रज्ञापना-सूची ख- धूमप्रभा में नरकावास। शेष सूत्र १८ के समान २४ क- तमःप्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नैरयिकों के समान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान २५ क- तमस्तम. प्रभा में पर्याप्त-अपर्याप्त नै रयिकों के स्थान ख- " में नरकावास । शेष सूत्र १८ के समान ग- नरकावासों की सूचक चार गाथा २३ क- पर्याप्त-अपर्याप्त तिर्यंच पचेन्द्रियों के स्थान शेष सूत्र १४ के समान १ मनुष्यों के स्थान २७ क- पर्याप्त-अपर्याप्त मनुष्यों के स्थान ख- उत्पत्ति की अपेक्षा पर्याप्त-अपर्याप्त मनुष्यों के स्थान ग- समुद्घात की अपेक्षा घ- स्वस्थान की अरेक्षा देवों के स्थान प्रादि का वर्णन भवनवासी देवों का वर्णन क- पर्यापन-अपर्याप्त भवनवासी देवों के स्थान ख- भवनवासी देवों के सर्वभवन ग- भवनों की रचना एवं महिमा घ- दस भवनपतियों के नाम हु- " के परिचय चिन्ह का वैभव २६ क- पर्याप्त-अपर्याप्त असुरकुमारों के स्थान 3. यह सूत्र रचनाक्रम के अनुसार सत्रहवें सूत्र के स्थान में होता तो अधिक संगत होता किन्तु सत्रहवें सूत्र की रचना का क्या हेतु है यह विचारणीय है। सं० मुनि कमल Page #666 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६३८ पद २ सूत्र ३०-३८ ३० ख- असुरकुमारों के भवन ग- भवनों की रचना एवं महिमा घ- असुरकुमारों का वर्णन ङ- " का वैभव. एवं परिवार च- चमरेन्द्र और बलेन्द्र का वर्णन क- दक्षिण के पर्याप्त-अपर्याप्त असुरकुमारों के भवन ख- दक्षिण के असुरों के भवन ग- भवनों की रचना और महिमा घ- चमरेन्द्र का वर्णन ङ- भवनों की संख्या च- सामानिक देवों की संख्या छ- आत्म रक्षक देवों की" ३१ क- उत्तर के पर्याप्त-अपर्याप्त असुरों के स्थान ख- उत्तर के असुरों के भवन ग- भवनों की रचना और महिमा घ- बलेन्द्र का वर्णन ङ- भवनों की संख्या च- सामानिक देवों की" १ छ- अग्रमही षियों की" ज - आत्मरक्षक देवों की संख्या ३२-३८क- नागकुमार-यावत्-स्तनितकुमारों के स्थान. भवन आदि का वर्णन ख- गाथा १ में असुरकुमार, नागकुमार, सुवर्णकुमार और कुमारों के भवनों की संख्या १. त्रायस्त्रिशक, लोकपाल, परिषद्, सेना और सेनापतियो की संख्या समस्त भवनेन्द्रों की समान हैं। Page #667 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६३६ प्रज्ञापना- सूची ग- गाथा २,३-४ में द्वीपकुमार, दिशाकुमार उदधिकुमार स्तनितकुमार और अग्निकुमारों के भवनों की संख्या घ- गाथा ५ में सामानिक देवों और आत्मरक्षक देवों की संख्या ङ - गाथा ६ में दक्षिण के दस इन्द्रों के नाम "" च- गाथा ७ में उत्तर के पद २ सूत्र ३६-५३ छ- गाथा ८,६,१०,११ में भवनवासियों और उनके वस्त्रों के वर्ण व्यन्तरदेवों का वर्णन ३६-४१क- पर्याप्त अपर्याप्त ब्यन्तरदेवों के नगरों का वर्णन ख- सोलह व्यन्तरदेवों के नाम और उनके वैभव का वर्णन ग- व्यन्तरदेवों के दक्षिण-उत्तर के बत्तीस इन्द्रों के नाम ज्योतिषी देवों का वर्णन ४२ क- पर्याप्त - अपर्याप्त ज्योतिष्क देवों के स्थान ख- इनके विमानों का वर्णन ग- नवग्रहों के नाम घ- अट्ठावीस नक्षत्र ङ - चन्द्र-सूर्य इन्द्र. और इनका वैभव वैमानिक देवों का वर्णन ४३ क- पर्याप्त - अपर्याप्त देवों का वर्णन व- बारह देवलोकों के नाम ग- इनके सर्वविमानों की संख्या घ- इनके मुकुट चिन्हों के नाम ४४-५३ क- सौधर्म-यावत् अच्युतकल्प के विमानों का वर्णन - प्रत्येक कल्लों में पाँच प्रमुख विमान ग- सौधर्मेन्द्र के कुछ नाम - सौधर्मेन्द्र दक्षिणार्धलोक का अधिपति ङ- सौधर्मेन्द्र का वाहन च- ईशानेन्द्र के कतिपय नाम Page #668 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद ३ सूत्र ३ ६४० प्रज्ञापना-सूची छ- सौधर्मेन्द्र और ईशानेन्द्र की अग्रमहीषियों की संख्या ज- गाथा १-२ में प्रत्येक कल्प के विमानों की संख्या का उल्लेख झ- गाथा १ में प्रत्येक इन्द्र के सामानिक देव और आत्मरक्षक देवों की संख्या का उल्लेख ५४-५५ पर्याप्त अपर्याप्त नववेयक देवों के स्थान ५७ " पांच अनुत्तर देवों के स्थान. सिहों का वर्णन ५८ क- सिद्धों का स्थान ख- ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी का आयाम-विष्कम्भ, परिधि ग- मध्य भाग और अन्तिम भाग का बाहल्य घ- ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी के बारह नाम का वर्ण, संस्थान च गाथा १, २, ३, में सिद्धों की अवस्थितिका वर्णन गाथा ४ में सिद्धों की अवगाहना गाथा ५ में सिद्धों के आत्म-प्रदेशों का संस्थान गाथा ६-६ में सिद्धों की अवगाहना और संस्थान गाथा १०-१२ में एक में अनेक सिद्ध गाथा १२-१३ में अनन्त ज्ञान दर्शन का वर्णन गाथा १४-१६ सिद्धों के सुख का वर्णन गाथा १७-२२ में सिद्ध सुखों की सोदाहरण तुलना तृतीय अल्प-बहुतत्व पद गाथा १, २ में सत्तावीस द्वारों के नाम १ दिशा द्वार चार दिशाओं में सर्वजीवों का अल्प-बहत्व पांच स्थावर जीवों का " तीन विकलेन्द्रियों का " marr Page #669 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद ३ सूत्र ४-२६ प्रज्ञापना-सूची ४ १० ११ १२ चार दिशाओं में नैरयिकों का अल्प-बहुत्व पंचेन्द्रिय तिर्यचों का " मनुष्यों का चार प्रकार के देवों का " सिद्धों का २ गति द्वार नरक-यावत्-सिद्ध इन पांच गतियों की अल्प-बहुत्व नै रयिक-यावत्-सिद्ध इन आठ गतियों का अल्प-बहुत्व ३ इन्द्रिय द्वार सइन्द्रिय-यावत्-अनिन्द्रयों का अल्प-बहुत्व " " के अपर्याप्तों का अल्प-बहुत्व के पर्याप्तों का के प्रत्येक के पर्याप्तों का अल्प-बहुत्व के पर्याप्तों का संयुक्त अल्प-बहुत्व ४ काय द्वार सकाय-यावत्-अकाय जीवों का अल्प बहुत्व के पर्याप्तों का अल्प-बहुत्व ,, , के अपर्याप्तों का के प्रत्येक के पर्याप्तों अपर्याप्तों का , .. के पर्याप्तों अपर्याप्तों का संयुक्त , सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों-यावत्-सूक्ष्म निगोदों का अल्प-बहुत्व इनके अपर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके प्रत्येक के पर्याप्तों-आर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों का संयुक्त-अल्प-बहुत्व बादर पृथ्वीकायिकों-यावत्-बादर त्रसकायिकों का अल्प-बहुत्व २४ २५ Page #670 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .६४२ २८ له الله الله له سه ره سه प्रज्ञापना-सूची पद ३ सूत्र २७-४४ २७ इनके अपर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इन प्रत्येक के पर्याप्तों-अपर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों अपर्याप्तों का संयुक्त अल्प-बहुत्व सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-यावत्-सूक्ष्म निगोदों तथा बादर पृथ्वी कायिकों-यावत्-बादर त्रसकायिकों का अल्प-बहुत्व इनके अपर्याप्तों का अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों का , इन प्रत्येक के पर्याप्तों-अपर्याप्तों का संयुक्त अल्प-बहुत्व इनके पर्याप्तों-अपर्याप्तों का संयुक्त अल्प-बहुत्व ५ योग द्वार ३६ सयोगी-यावत्-अयोगी जीवों का अल्प-बहुत्व ६ वेद द्वार सवेदी-यावत्-अवेदियों का अल्प-बहुत्व ७ कषाय द्वार सकषायी-यावत-अकषायी जीवों का अल्प-बहत्व ८ लेश्या द्वार सलेश्य-यावत्-अलेश्य जीवों का अल्प-बहुत्व ६ दृष्टि द्वार ४० सम्यग्दृष्टि-यावत्-मिश्रदृष्टि जीवों का अल्प-बहुत्व १० ज्ञान द्वार आभिनिबोधिक ज्ञानि-यावत्-केवल ज्ञानियों का अल्प-बहुत्व . ११ अज्ञान द्वार मति अज्ञानी-यावत्-विभंग ज्ञानी जीवों का अल्प-बहुत्व ज्ञानियों-अज्ञानियों का संयुक्त अल्प-बहुत्व १२ दर्शन द्वार ४४ चक्षुदर्शनी-यावत्-केवल दर्शनी जीवों का अल्प-बहुत्व Page #671 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यद ३ सूत्र ४५-५८ ६४३ प्रज्ञापना-सूची १३ संयत द्वार संयत-यावत्-नो संयतासंयत जीवों का अल्प-बहुत्व १४ उपयोग द्वार साकारोपयोगी और अनोपयोगी जीवों का अल्प-बहुत्व : १५ श्राहारक द्वार आहारक और अनाहारक जीवों का अल्प-बहुत्व १६ भाषक द्वार भाषक और अभाषक जीवों का अल्प-बहुत्व १७ परित्त द्वार परीत्त-यावत्-नो परीत्तापरीत्त जीवों का अल्प-बहुत्व १८ पर्याप्त द्वार पर्याप्त-यावत्-नो पर्याप्तन्नो अपर्याप्त जीवों का अल्प-बहुत्व १६ सूक्ष्म द्वार सूक्ष्म-यावत्-नो सूक्ष्म-नो बादर जीवों का अल्प-बहुत्व २० संज्ञी द्वार संज्ञी-यावत्-नो संज्ञी-नो असंज्ञी जीवों का अल्प-बहुत्व. २१ भव सिद्धिक द्वार भवसिद्धिक-यावत्-नो भवसिद्धिक-नो अभावसिद्धिक जीवों का अल्प-बहुत्व २२ अत्रिकाय द्वार द्रव्य अपेक्षा से धर्मास्तिकाय-यावत्-अद्धा समय का अल्प-बहुत्व प्रदेशों की अपेक्षा से इनका अल्प-बहुत्व द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा से इन प्रत्येक का अल्प-बहुत्व द्रव्य और प्रदेश की अपेक्षा से इनका संयुक्त अल्प-बहुत्व २३ चरम द्वार चरम और अचरम जीवों का अल्प-बहुत्व ५८ Page #672 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६४४ पद ४ सूत्र २ ७५ २४ जीव द्वार ५६ जीव-यावत्-पर्यायों का अल्प-बहुत्व २५ क्षेत्र द्वार ६० अधोलक-यावत्-त्रैलोक्य में जीवों का अल्प-बहुत्व ६१-७४ अधोलोक-यावत्-त्रेलोक्य में गति, इन्द्रिय, और काय द्वारों का कथन २६ बन्ध द्वार आयु कर्म के बन्धक-यावत्-अनाकारोपयोगयुक्त जीवों का अल्प-बहुत्व २७पुद्गल द्वार ७६ क- क्षेत्र की अपेक्षा से अधोलोक में-यावत् त्रैलोक्य में पुद्गलों का अल्प-बहुत्व ख- दिशाओं की अपेक्षा से पुद्गल द्रव्यों का अल्प-बहुत्व ७७ संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशी पुद्गल स्कंधों का द्रव्य प्रदेश और द्रव्य-प्रदेशों की अपेक्षा से संयुक्त अल्प-बहुत्व संख्यात प्रदेशावगाढ-यावत्-असंख्यात प्रदेशावगाढ पुद्गलों का द्रव्य-प्रदेशों की अपेक्षा से संयुक्त अल्प-बहुत्व, एक समय-यावत्-असंख्यात समय की स्थितिवाले पुद्गल का द्रव्य, प्रदेश और द्रव्य-प्रदेश की संयुक्त अपेक्षा से अल्प-बहुत्व २८ महादण्डक द्वार ८१ चौवीस दण्डकों का अल्प-बहुत्व ७८ चतुर्थ स्थितिपद १ क- नैरयिकों की स्थिति ख- अपर्याप्त नरयिकों की , ग. पर्याप्त नैरयिकों की , २ क- सात नरक के अपर्याप्त पर्याप्त नै रयिको की स्थिति Page #673 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४-७ २ पद ५ सूत्र २४ ६४५ प्रज्ञापना-सूची ३ अपर्याप्त-पर्याप्त देव-देवियों की स्थिति भवनवासी देव देवियों की स्थिति ८-१६ " पृथ्वीकाय-यावत्-तिर्यंच पंचेन्द्रियों की स्थिति २० मनुष्यों की स्थिति २१ व्यन्तर देवों की स्थिति ज्योतिषी देवों की स्थिति वैमानिक देवों की स्थिति पंचम विशेष पद पर्याय के दो भेद जीव पर्यायों के अनन्त होने का हेतु ३-११ चौवीस दण्डकों में अनन्त पर्याय होने का कारण १२-२० क- जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना वाले चौवीस दण्डकों में अनन्त पर्याय होने का कारण ख- जघन्य उत्कृष्ठ स्थिति वाले चौवीस दण्डकों में अनन्त पर्यायें होने का कारण ग- जघन्य उत्कृष्ट वर्ण गन्ध रस स्पर्श परिणत चौवीस दण्डक के जीवों के अनन्त पर्याय होने का कारण घ- ज्ञान, अज्ञान और दर्शन सम्पन्न चौवीस दण्डक के जीवों के __ अनन्त पर्यायें होने का कारण २१ अजीव पर्यायों के दो भेद २२ अरुपी अजीव पर्यायों के दस भेद क- रूपी अजीव पर्यायों के चार भेद ,, के अनन्त होने का कारण जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना, स्थिति और वर्ण-गंध-रस-स्पर्श परिणत पुद्गल-पर्यायों के अनन्त होने का हेतु ख. Page #674 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६४६ पद ६सूत्र १० एक प्रदेशावगाढ-यावत्-असंख्य प्रदेशावगाढ पुद्गल-पर्यायों के अनन्त होने का हेतु २६ एक समय की स्थिति वाले यावत्-असंख्य समय की स्थिति वाले पुद्गल-पर्यायों के अनन्त होने का हेतु एक गुण-यावत्-अनन्तगण वर्ण-गंध-रस-स्पर्श परिणत पुद्गल पर्यायों के अनन्त होने का हेतु २८-३० हिप्रदेशिक-यावत-अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों की अनन्त पर्याय होने का हेतु जघन्य, उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्धों की अनन्त पर्यायें होने का हेतु जघन्य, उत्कृष्ट अवगाहना वाले पुद्गलों स्कन्धों की अनन्त पर्यायें होने का हेतु जघन्य, उत्कृष्ट स्थिति वाले पुद्गलों स्कन्धों की अनन्त पर्यायें होने का हेतु जघन्य, उत्कृष्ट वर्ण-गंध-रस-स्पर्श परिणत पुद्गल स्कंधों की. अनन्त पर्याय होने का हेतु षष्ठ व्युत्क्रान्ति पद आठ द्वारों के नाम प्रथम गति अपेक्षा उपपात-उद्वर्तन विरहकाल द्वार १ क- चार गति का उपपात-विरहकाल ख- सिद्ध गति का , , २ चार गति का उद्वर्तन २-विरहकाल द्वितीय दण्डकापेक्षा उपपात-उद्वर्तन विरहकाल द्वार ३-१० क- चौवीस दण्डकों का उपपात विरहकाल ख- सिद्धों का १. जन्म २. मरण Page #675 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद ६ सूत्र ४६ ६४७ प्रज्ञापना-सूची चौवीस दण्डकों का उद्वर्तन विरहकाल तृतीय सान्तर-निरन्तर उपपात उद्वर्तन द्वार चार गतियों में सान्तर-निरन्तर उपपात सिद्धों में चौवीस दण्डकों में सान्तर-निरन्तर उपपात सिद्धों में , १८ चौवीस दण्डकों में सान्तर-निरन्तर उद्वर्तन चतुर्थ एक समय में उपपात-उद्वर्तन द्वार १६-२१ चौवीस दण्डकों में एक समय में उपपात २२ सिद्धों २३ चौवीस दण्डकों में ऐक समय में उतन पंचम प्रागति द्वार २४-४० चौवीस दण्डकों में आगति [कहीं से आकर उत्पन्न होना] षष्ठ गति द्वार ४१-४४ चौवीस दण्डकों से गति [कहां उत्पन्न होना] सप्तम परभवायुबंध द्वार ४५-४६ चौवीस दण्डकों में परभव के आयू-बंध की अवधि अष्टम अायुबंध अाकर्ष२ द्वार ४७ क- आयुबंध के ६ भेद ख- चौवीस दण्डकों में ६ प्रकार का आयुबंध सर्वजीवों के षड्विध आयुबंध के आकर्ष ४६ षड्विध आयुबन्ध के आकर्षों का अल्प-बहुत्व ........ .--- १. २३ वें २४ वें दण्डक में च्यवन विरहकाल २. श्रायुकर्म के दलिकों का खेंचना ४८ Page #676 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना- सूची ६४८ सप्तम श्वासोच्छ्वास पद चौवीस दण्डक के जीवों काजघन्य - उत्कृष्ट श्वासोच्छ्वास काल अष्टम संज्ञा पद १ दस संज्ञाओं के नाम २ चौवीस दण्डक के जीवों में दस संज्ञायें ३ - ६ क - चौवीस दण्डकों में बाह्य आभ्यन्तर कारणों की अपेक्षा चार संज्ञायें ख- चार संज्ञाओं वाले चौवीस दण्डक के जीवों का अल्प- बहुत्व १-८ १ २ ७ ८ नवम योनी पद तीन प्रकार की योनियां चौवीस दण्डक के जीवों की योनियां 11 तीन प्रकार की योनियाँ चौवीस दण्डक के जीवों की योनियां " तीन प्रकार की योनियां की योनियों का अल्प- बहुत्व चौवीस दण्डक के जीवों की योनियां " पद ७-१० सूत्र २ की योनियों का अल्प - बहुत्व की योनियों का अल्प - बहुत्व १० क- तीन प्रकार की योनियां ख- तीन प्रकार की योनियों से उत्पन्न होने वाले पुरुष दसम चरमाचरम पद आठ पृथ्वीयों के नाम रत्नप्रभादि सात पृथ्वियाँ, सोधर्म- यावत् - अनुत्तर विमान, ईषत्प्राग्भारा, लोक और अलोक के संबंध में चरमादि ६ Page #677 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद १० सूत्र ३-१६ ६४६ प्रज्ञापना-सूची विकल्प द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से रत्नप्रभादि सात पृथ्वियाँ सौधर्म-यावत्-अनुत्तर विमान, ईषत्प्राग्भरा और लोक के चरमादि ६ विकल्पों का अल्प-बहुत्व द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से अलोक के चरमादि ६ विकल्पों का अल्प-बहुत्व द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से लोकालोक के चरमादि ६ विकल्पों का अल्पबहुत्व परमाणु पुद्गल के चरमादि तीन विकल्पों के छब्बीस भांगे ७-१३ क- द्विप्रदेशिक स्कन्धों-यावत्-अनन्त प्रदेशिक स्कन्धों के चरमादि तीन विकल्पों के भागे ख- भंग संख्या सूचक ६ गाथा १४ पांच संस्थानों के नाम १५ क- परिमण्डलादि पाँच संस्थान अनन्त ख. परिमण्डलादि पाँच संस्थानों के संख्यात प्रदेश-यावत-अनन्त प्रदेश ग- पाँच संस्थान संख्यात प्रदेशावगाढ़-यावत्अनन्त प्रदेशावगाढ़ १६-१८ द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा संख्यात प्रदेशावगाढ़-यावत् अनन्त प्रदेशावगाढ़ पांच संस्थानों के चरमाचरम का अल्प-बहुत्व जीव चरमाचरम' १६ क- चौवीस दण्डक के जीव या जीवों का गति की अपेक्षा चरमा चरम का स्थिति की अपेक्षा चरमा चरम १. चरम-जिसका अन्त है । अचरम---जिसका अन्त नहीं है २. एक वचन ३. बहुवचन Page #678 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६५० . पद ११ सूत्र ६ ग- चौबीस दण्डक के जीव या जीवों का भव की अपेक्षा चरमा चरम , का भाषा की अपेक्षा चरमा चरम ,, का श्वासोच्छवास की अपेक्षा चरमा चरम ,, का आहार की अपेक्षा चरमा चरम , का भाव की अपेक्षा चरमा चरम ,, का वर्ण गंध-रस-स्पर्श की अपेक्षा चरमा चरम झ- गति आदि इग्यारह द्वारों की सूचक गाथा ३ एकादशम भाषा पद अवधारिणी भाषा का स्वरूप , के चार भेद ख- के चार भेद होने का हेतू सत्य भाषा क. प्रज्ञापनी भाषा ख- पशु-पक्षी वाचक प्रज्ञापनी भाषा स्त्री आदि लिङ्गवाचक प्रज्ञापनी भाषा स्त्री आज्ञापनी आदि , स्त्री प्रज्ञापनी आदि , , स्त्री जाति आदि स्त्री जाति आदि आज्ञापनी ,, , स्त्री जाति आदि प्रज्ञापनी ,, , Page #679 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद ११ सूत्र १०-३१ प्रज्ञापना-सूची १०-११ संज्ञी जीवों की भाषा १२ एक वचन, बह वचन १३ स्त्री, पुरुष और नपुंसक वाची १४ लिङ्गवाची भाषा बोलने वाला श्रमण १५ क- भाषा का मूल कारण, भाषा का उत्पत्ति स्थान भाषा का संस्थान, भाषा का अन्त ख- भाषा का उत्पत्ति स्थान, भाषा के समय भाषा के भेद योग्य भाषा १६ क- भाषा के दो भेद ख- पर्याप्त भाषा के दो भेद दस भेद मृषा भाषा के १६ क- अपर्याप्त भाषा के ___ दो भेद ख- सत्यामृषा भाषा के दस भेद असत्या मृषाभाषा के बारह भेद क- भासक-अभासक जीव ख. जीव के भाषक-अभाषक होने का हेतु २२ चौवीस दण्डक के जीव भाषक-अभाषक २३ क- भाषा के चार भेद ख- चौवीस दण्डक के जीवों की चार प्रकार की भाषा २४-५२ ग्रहण करने योग्य और अयोग्य भाषा द्रव्य भाषा द्रव्यों का सान्तर निरन्तर ग्रहण भिन्न, अभिन्न भाषा द्रव्यों का निकलना भाषा के पांच भेद पांच भेदों का अल्प-बहुत्व चौवीस दण्डक के जीवों द्वारा भाषा द्रव्यों का ग्रहण ا ل ا ا س سد का त्याग Page #680 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६५२ पद १२-१३ सूत्र ३ १ २. ३-८ . सोलह वचन भाषा के चार भेद आराधक-विराधक की भाषा चार प्रकार की भाषा के भाषकों और अभाषकों का अल्प. बहुत्व द्वादसम शरीर पद क. पांच शरीरों के नाम ख- चौवीस दण्डक में जीवों के शरीर प्रत्येक शरीर के दो दो भेद चौवीस दण्डक में प्रत्येक शरीर के बद्ध-मुक्त का अल्प-बहुत्व त्रयोदशम परिणाम पद क- परिणामों के दो भेद ख. जीव परिणाम के दस भेद क- गति परिणाम के चार भेद ख- इन्द्रिय । पांच भेद ग- कषाय " चार भेद घ- लेश्या " छ भेद ङ- योग " तीन भेद च- उपयोग " दो भेद छ- ज्ञान पांच भेद अज्ञान परिणाम के तीन भेद ज- दर्शन " तीन भेद झ- चारित्र " पांच भेद ज- वेद तीन भेद चौवीस दण्डक में दस परिणाम Page #681 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची पद १४ सूत्र५ ६५३ ४ अजीव परिणाम के दस भेद ५ क- बंध दो भेद रुक्षबंध और स्निग्ध बंध की व्याख्या ख- (१) गति परिणाम के दो भेद ग- संस्थान परिणाम के पांच भेद घ. भेद पांच भेद ङ.- वर्ण पांच भेद च- गंध " दो भेद छ- रस पांच भेद ज- स्पर्श आठ भेद झ- अगुरु लघु , एक भेद ज- शब्द दो भेद चतुर्दशम-कषाय पद क- कषाय के चार भेद ख. चौवीस दण्डक में चार कषाय क- क्रोध के चार स्थान ख- चौवीस दण्डक में क्रोध के क- क्रोध की उत्पत्तिके चार निमित्त ख- चौवीस दण्डक में क्रोध की उत्पत्ति के चार निमित्त क- क्रोध के चार भेद ख- चौवीस दण्डक में क्रोध के चार भेद क- क्रोध के चार भेद ख- चौवीस दण्डक में क्रोध के ग- इसी प्रकार माना, माया और लोभ का कथन, Page #682 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची पद १५ सूत्र १८ चौविस दण्डक में तीन काल की अपेक्षा से अपकर्म प्रकृतियों का उपचय, बंध, वेदना और निर्जरा का चिन्तन पंचदसम इन्द्रिय पद प्रथम उद्देशक पचीस द्वारों के नाम पाँच इन्द्रियों के नाम पाँच इन्द्रियों के संस्थान , का बाहल्य ,, का विस्तार के प्रदेश के प्रदेशावगाढ का परिमाण ,, की अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से अल्प-बहुत्व ,, के कर्कश और गुरु गुण का परिमाण ,, के कर्कश और गुरु गुण का अल्प-बहुत्व चौवीस दण्डक में पांच इन्द्रियों के आठ द्वारों का कथन पाच इन्द्रियों में प्राप्य कारी और अप्राप्यकारी का कथन पांच इन्द्रियों का विषय क्षेत्र निर्जरा पुद्गल . १५ क- मारणान्तिक समुद्घात वाले अनगार के निर्जरा पुद्गलों की सूक्ष्मता और व्यापकता ख- छद्मस्थ को निर्जरा पुद्गलों की भिन्नता आदि का अज्ञान, अज्ञान का हेतु १६-१८ चौवीस दण्डक के जीवों द्वारा निर्जरा पुद्गलों का जानना, देखना और आहार करना १३ Page #683 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६५५ पद १६ सूत्र १४ प्रतिबिम्ब दर्शन कांच आदि में प्रतिबिंब का दर्शन श्राकाश से स्पर्श क- संकुचित और विस्तृत वस्त्र का आकाश प्रदेशों से स्पर्श ख- खड़े या पड़े स्तंभ का आकाश प्रदेशों से स्पर्श क- धर्मास्तिकाय अादि से लोक का स्पर्श ख. धर्मास्तिकाय आदि से जम्बूद्वीप-यावत्-स्वयंभूरमण समुद्र का स्पर्श २२ क- लोक का धर्मास्तिकाय आदि से स्पर्श ख- लोक का स्वरूप द्वितीय उद्देशक बारह अधिकारों के नाम १-३५ चौवीस दण्डक में बारह अधिकारों का कथन षड् दसम प्रयोग प्रद प्रयोग के पन्द्रह भेद २ चौवीस दण्डक में पन्द्रह प्रयोग ३-५ चौवीस दण्डक में पन्द्रह प्रयोगों के विभिन्न अंग गति प्रवाद क- गति प्रवाद के पांच भेद ख- प्रयोग गति के पन्द्रह भेद ग- चौवीस दण्डक में प्रयोग गति के पन्द्रह भेदों का कथन ततगति की व्याख्या बंधन छेदन गति की व्याख्या ६-१३ उपपात गति के भेद प्रभेद विहायो गति के सतरह भेद प्रत्येक भेद की व्याख्या और भेद-प्रभेद was a Page #684 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६५६ पद १७ सूत्र ३३. सप्तदसम लेश्या पद प्रथम उद्देशक सात अधिकारों के नाम १-११ चौवीस दण्डक में सात अधिकारों का कथन' द्वितीय उद्देशक १२ ६ लेश्याओं के नाम चौवीस दण्डकों में ६ लेश्याओं का कथन १४-२२ ६ लेश्याओं की अपेक्षा चौवीस दण्डक के जीवों का अल्प बहुत्व २३-२५ चौवीस दण्डक में ६ लेश्या की अपेक्षा से अल्प ऋद्धिक और महद्धिकों का अल्प-बहुत्व तृतीय उद्देशक २६ क- चौवीस दण्डक में उत्पत्ति ख- उद्वर्तन २७-२८ ६ लेश्याओं की अपेक्षा से चौवीस दण्डक में उत्पत्ति और उद्वर्तन. लेश्याओं की अपेक्षा से उदाहरणपूर्वक नै रयिकों के अवधि ज्ञान का क्षेत्र ३० ६ लेश्या वाले जीवों में पांच ज्ञान का कथन चतुर्थ उद्देशक पन्द्रह अधिकारों के नाम ३१-३३ क- ६ लेश्याओं के नाम २६ १. सात अधिकारों में से केवल एक लेश्या अधिकार का इस पद से संबंध है. शेष अाहार-शरीर-उच्छ्वास, कर्म, वर्ण वेदना, क्रिया और श्रायु अन्य पदों में कथन किया जाता तो संगत प्रतीत होता. Page #685 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद १८ सूत्र २ ६५७ प्रज्ञापना-सूची ख- ६ लेश्याओं के रुप, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श का एक दूसरों में परिणमन ३४.४० ६ लेश्याओं के वर्ण ४१-४६ ६ लेश्याओं का आस्वाद ४७ क- , के गंध ख. शेष ६ अधिकारों का कथन ६ लेश्याओं के परिणाम ,, के प्रदेश , के स्थान ५१-५३ द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा से ६ लेश्या स्थानों का अल्प बहुत्व ५४ ५६ पंचम उद्देशक क- ६ लेश्याओं के नाम ख- ६ लेश्याओं के रुप, वर्ण, गंध, रस और स्पर्श का परिणमन दृष्टान्त ६ लेश्याओं के परिणमन के हेतु षष्ठ उद्देशक क- ६ लेश्याओं के नाम, अढाई द्वीप के [कर्मभूमि, अकर्म भूमि और अन्तर्वीपों के] मनुष्यों में ६ लेश्या ६ लेश्या की अपेक्षा से अढाई द्वीप के मनुष्यों में गर्भ स्थिति के भांगे अष्टादसम कायस्थिति पद बावीस अधिकारों के नाम जीव की जीव रूप में संस्थिति क- नै रयिक की नैरयिक रूप में संस्थिति तिर्यंच की तिर्यंच रूप में ५७ Page #686 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना- सूची ६५८ मनुष्य की मनुष्य रूप में संस्थिति " देव की देव रूप में सिद्ध को सिद्ध रूप में ख- चतुर्गति प्राप्त जीवों की अपर्याप्त एवं पर्याप्त रूप में संस्थिति ग- सइन्द्रिय- यावत् — अइन्द्रिय की अइन्द्रिय रूप में संस्थिति सइन्द्रिय — यावत् — ?? घ- सर्व इन्द्रिय अपर्याप्त का अपर्याप्त रूप में और सर्व इन्द्रिय पर्याप्त की पर्याप्त रूप में संस्थिति ङ- सकाय की सकाय रूप में और अकाय की अकाय रुप में संस्थिति पद १६ सूत्र १ च - सूक्ष्म की सूक्ष्म रूप में और बादर की बादर रूप में संस्थिति छ- सुयोगी की सयोगी रूप में और अयोगी की आयोगी रूप में संस्थिति ज - सवेदी की सवेदी रूप में और अवेदी की अवेदी रूप में संस्थिति - सकषाय की सकषायी रूप में और अकषायी की अकषायी रूप में संस्थिति ञ - सलेशी की सलेशी रूप में और अलेशी की अलेशी रूप में स्थिति ट. दृष्टि, ज्ञान, दर्शन, संयत, साकारानाकारोपयुक्त, आहारक अनाहारक, भासक अभासक, परित्त अपरित्त, पर्याप्त अपर्याप्त सूक्ष्म ३, संज्ञी ३, भवसिद्धिक ३, धर्मास्तिकाय - यावत्अध्दा समय, चरम - अचरम, अधिकारों की संस्थिति एकोनविंशतितम सम्यक्त्व पद क- चौवीस दण्डक में तीन दृष्टि ख- सिद्धों में एक दृष्टि Page #687 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २० सूत्र १२ ५५९ प्रज्ञापना-सूची विंशतितम अन्तक्रिया-पद अधिकारों के नाम १ क- जीव अन्तक्रिया करता है, नहीं भी करता है ख- चौवीस दण्डकों में अन्तक्रिया का कथन ग- प्रत्येक दण्डक की प्रत्येक दण्डक में अन्तक्रिया २ चौवीस दण्डक में अनन्तरागत या परम्परागत की अन्तक्रिया चौवीस दण्डग में अनन्तरागतों की एक समय में जघन्य उत्कृष्प अन्तक्रिया । ४-११ क चौवीस दण्डक में उद्वर्तन, अनन्तर, उत्पत्ति ख- केवलि प्रज्ञप्त धर्म का श्रवण ग- बोधि, श्रद्धा, प्रतीति, रुचि घ- मतिज्ञानादि की प्राप्ति ङ- शीलव्रत, गुणवत, विरमण व्रत की आराधना च- अवधि ज्ञान की प्राप्ति, छ- मुण्डित होना ज- चक्रवति, बलदेव, वासुदेव, माण्डलिक, चक्ररत्नादि में उत्पत्ति झ- तीर्थंकर पद की प्राप्ति का कथन १२ क- असंयत भव्य द्रव्य देव ख- अविराधित संयम वाले ग- विराधित संयमवाले, घ- अविराधित-देश विरतिवाले ङ- विराधित-देश विरतिवाले च- असंजी छ- तापस ज- कांदपिक झ- चरकादिक परिव्राजक Page #688 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ५६० पद २१ सूत्र : अ- किल्विषिक अ- तिर्यंच ठ- आजीविक ड- आभियोगिक ढ- दर्शन भ्रष्ट स्वलिङ्गी इनके जघन्य, उत्कृष्ट उपपात का कथन १३ क- चार प्रकार का असंज्ञी आयुष्य ख- असंज्ञी आयुष्य का प्रमाण ग- असंज्ञी आयुष्यवालों का अल्प-बहुत्व एक विंशतितम शरीर पद ६ अधिकारों के नाम १ क- पांच प्रकार के शरीर ख- औदारिक शरीर के भेद-प्रभेद २ औदारिक शरीर के संस्थान औदारिक शरीर की जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना वैक्रिय शरीर के भेद प्रभेद वैक्रिय शरीर के संस्थान वैक्रिय शरीर की अवगाहना ७ क- आहारक शरीर के भेद प्रभेद ख- आहारक शरीर के संस्थान ___ ग. आहारक शरीर की अवगाहना ८ क- तेजस शरीर के भेद ख- तैजस शरीर के संस्थान < x १. असंज्ञी आयुष्य-असंज्ञी अवस्था में बंधनेवाला नरक, तिथंच, मनुष्य और देव का आयुष्य. Page #689 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'पद २२ सूत्र ११ प्रज्ञापना-सूची पाप ६ क- तैसज शरीर की अवगाहना पांच शरीरों के पुद्गलों के आने की दिशाओं का कथन पांच शरीरों का परस्पर सम्बन्ध १२ द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा पांच शरीरों का अल्प-बहुत्व पांच शरीर की जघन्य उत्कृष्ट अवगाहना का अल्प-बहुत्व द्वाविंशतितम-क्रिया-पद अाश्रव १ क- पाँच क्रियाओं के नाम ख- पांच क्रियाओं की व्याख्या ग- पांच क्रियाओं के भेद जीव के सक्रिय या अक्रिय होने के कारण ३ चौवीस दण्डक में प्राणातिपात-यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य के विषयों का कथन चौवीस दण्डक में [एक वचन और बहुवचन की अपेक्षा] प्राणातिपात-यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य से कितनी कितनी कर्म प्रकृतियों का बन्धन चौवीस दण्डक में एक वचन और बह वचन की अपेक्षा से एक कर्म प्रकृति के बन्धन के समय संभावित क्रियाओं की संख्या चौवीस दण्डक में जीव से संबंधित क्रियाओं की संख्या चौबीस दण्डक में पांच क्रियाओं का परस्पर सम्बन्ध ८ चौवीस दण्डक में एक क्रिया के समय अन्य क्रियाओं की संभावित संख्या चौवीस दण्डक में आयोजिका क्रियाओं की संख्या चौवीस दण्डक में एक समय एक क्रिया से दूसरी क्रिया का परस्पर स्पर्श ११ क- आरंभिका आदि पांच क्रियाओं के कर्ता ___ Page #690 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २३ सूत्र ७ प्रज्ञापना-सूची ख- आरंभिका आदि पांच क्रियाओं के कर्ता १२ क- चौवीस दण्डक में आरंभिकादि क्रियाएँ ख- चौवीस दण्डक में आरंभियादि पाँच क्रियाओं का परस्पर संबंध ग- चौवीस दण्डक में एक समय में आरंभियादि पाँच क्रियाओं की संभावित संख्या घ- चौवीस दण्डक में आरंभियादि पांच क्रियाओं में से एक क्रिया के समय अन्य क्रियाओं की नियमित संभावना, संवर प्राणातिपात विरति-यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य की विरति के के विषयों का कथन प्राणातिपात विरत यावत्-मिथ्यादर्शनशल्य विरत के कितनी कितनी कर्म प्रकृतियों का बंधन प्राणातिपातविरत-यावत् मिथ्यादर्शनशल्य विरत के आरंभि.. यादि पांच क्रियायें आरंभियादि पांच क्रियाओं का अल्प-बहुत्व त्रयोविंशतितम कर्म प्रकृति पद प्रथम उद्देशक १ क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम __ख- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्म प्रकृतियाँ २ क- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्म प्रकृतियों के बंधन हेतुओं का क्रम ३ क- अष्ट कर्म बंध के चार कारण ____ ख- चौवीस दण्डक में अप्ट कर्म बन्ध के चार कारण ४ चौवीस दडण्क में अष्ट कर्म प्रकृतियों का वेदन ५ ज्ञानावरणीय के दस अनुभाव ६ दर्शनावरणीय के नव अनुभाव ७ क- शातावेदनीय के आठ अनुभाव Page #691 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २३ सूत्र १६ प्रज्ञापना-सूची ख- अशातावेदनीय के आठ अनुभाव ८ मोहनीय के पांच अनुभाव ६ आयु कर्म के चार अनुभाव १० क- शुभ नाम कर्म के चौदह अनुभाव ख. अशुभ नाम कर्म के चौदह अनुभाव ११ क- उच्चगोत्र के आठ अनुभाव ख- नीचगोत्र के आठ अनुभाव १२ अंतराय कर्म की प्रकृतियों के नाम द्वितीय उद्देशक १३ क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम ख- ज्ञानावरणीय के पांच भेद १४ क- दर्शनावरणीय के दो भेद ख- निद्रा पंचक के पांच भेद ग- दर्शन चतुष्क के चार भेद १५ क- वेदनीय . के दो भेद ख- शातावेदनीय के आठ भेद ग- अशातावेदनी के आठ भेद क- मोहनीय के दो भेद ख- दर्शन मोहनीय के तीन भेद ग- चारित्र मोहनीय के दो भेद घ- कषाय वेदनीय के सोलह भेद ङ- नो कषाय वेदनीय के नव भेद __आयुकर्म के चार भेद १८ क- नाम कर्म के बियालीस भेद ख. बियालीस भेदों के भेद १६ क- गोत्र कर्म के दो भेद Page #692 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २४,२५ सूत्र १ ६६४ प्रज्ञापना-सूची ख- उच्चगोत्र के आठ भेद ग- नीच गोत्र के " २० अंतराय कर्म पाँच भेद २१-२८ क-अष्ट कर्मों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ख- " का अबाधाकाल' २६-३४ एकेन्द्रियों-यावत्-पंचेन्द्रियों के अप कर्म की जघन्य उत्कृष्ट बन्ध स्थिति उपशमादि भावों की अपेक्षा अष्ट कर्म की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति बांधने वालों का कथन चार गतियों में अधकर्म की उत्कृष्ट स्थिति बाँधने वालों का कथन ३५ ३ चतुर्विशतितम कर्म बंध पद १-३ क- अप कर्म प्रकृतियों के नाम ख- चौबीस दण्डक में अकर्म प्रकृतियाँ ग- चौबीस दण्डक में (एक जीव या अनेक जीवों द्वारा) एक कर्म प्रकृति के बंधकाल में अन्य प्रकृतियों के बंध की संभावित संख्या १ पंचविंशतितम कर्म वेद पद क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम ख- चौवीस दण्डक में अष्टकर्म प्रकृतियां ग- चौवीस दण्डक में (एक जीव द्वारा या अनेक जीवों द्वारा) एक कर्म प्रकृति के बंधकाल में अन्य कर्म प्रकृतियों के वेदन की संभावित संख्या १ अनुभव अयोग्य कर्म स्थिति Page #693 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २६, २८ सूत्र २ १ ६६५ षड्विंशतितम कर्म वेद बंध पद क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम ख- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्म प्रकृतियाँ ग- चौवीस दण्डक में ( जीव- द्वारा) एक कर्म प्रकृति के वेदनकाल में अन्य प्रकृतियों के बंधन की संभावित संख्या सप्तविंशतितम कर्म वेद पद क- अष्ट कर्म प्रकृतियों के नाम ख- चौवीस दण्डक में अष्ट कर्मप्रकृतियां ग- चौवीस दण्डक में ( एक जीव द्वारा या अनेक जीवों द्वारा ) एक कर्म प्रकृति के वेदन काल में अन्य कर्म प्रकृतियों के वेदना की संभावित संख्या अष्टाविंशतितम आहार पद प्रज्ञापना- सूची प्रथम उद्देशक ग्यारह अधिकारों के नाम १ क- चौवीस दण्डक में तीन प्रकार के आहार का कथन ख- चौवीस दण्डक के जीव आहारार्थी ग- चौवीस दण्डक के जीवों का आहारेच्छाकाल २ क- चौवीस दण्डक में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा ङ - आहार का कथन ख - विधान मार्गणा की अपेक्षा आहार का कथन ग- चौबीस दण्डक में स्पृष्ट पुद्गलों का आहार घ- एक दिशा - यावत्-६ दिशा से आहार का ग्रहण पुराने पुद्गलों को छोड़कर नये पुद्गलों का ग्रहण च - आत्म प्रदेशावगाढ़ - समीपवर्ती आहार का ग्रहण छ - चौवीस दण्डक में आहार का परिणमन और श्वासोच्छ्वास Page #694 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना- सूची ६६६ पद २८ सूत्र १४ चौबीस दण्डक में आहार में गृहित पुद्गलों का आस्वादन और परिणमन क- चौबीस दण्डक में एकेन्द्रिय शरीरों का यावत्-पंचेन्द्रिय शरीरों का आहार ख- चौबीस दण्डक में रोम आहार और प्रक्षेप आहार चौवीस दण्डक में ओज आहार और मन के अनुकूल आहार द्वितीय उद्देशक तेरह अधिकारों के नाम १० क- चौबीस दण्डक में आहारक- -अनाहारक ख- सिद्ध आनाहरक क- चौवीस दण्डक में भवसिद्धिक ख - अभवसिद्धिक 13 ग नोभवसिद्धिक नो अभवसिद्धिक 11 क- चौबीस दण्डक में संज्ञी जीव [ एक जीव या अनेक जीव ] ३-७ ८ १२ > १४ " आहारक-अनाहारक आहारक या अनाहारक ख- चौबीस दण्डको असंज्ञी जीव ग- नो संज्ञी नो असंज्ञी जीव आहारक-अनाहारक घ- सिद्ध अनाहारक ११ क- चौबीस दण्डक में सलेश्य यावत् अलेश्य जीव आहारक-अनाहारक ख- सिद्ध अनाहारक चौबीस दण्डक में सम्यग् दृष्टि, मिथ्या दृष्टि और मिश्र दृष्टि 33 आहारक-अनाहारक १३ क - चौबीस दण्डक में संयत, असंयत, संयतासंयत जीव आहारक ख- सिद्ध अनाहारक चौबीस दण्डक में सकषायी यावत्-अकषायी जीव आहारक अनाहारक " Page #695 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २६,३० सूत्र १ ६६७ प्रज्ञापन-सूची १५ चौवीस दण्डक में ज्ञानी और अज्ञानी जीव आहारक अनाहारक १६ क- चौवीस दण्डक में सयोगी-यावत्-अयोगी जीव आहारक अनाहारक ख- चौवीस दण्डक में साकारोपयुक्त अनाकारोपयुक्त जीव आहारक-अनाहारक ग- चौवीस दण्डक में सवेदी-यावत्-नपुसंक वेदी जीव आहारक अनाहारक घ- अवेदी सिद्ध अनाहारक १७ क- चौवीस दण्डक में सशरीरी जीव-यावत्-कार्मण शरीरी आहारक ख- अशरीरी जीव सिद्ध अनाहारक एकोनत्रिंशत्तम उपयोग पद क- उपयोग के दो भेद ख- साकारोपयोग के आठ भेद ग- अनाकारोपयोग के चार भेद चौवीस दण्डक में साकारोपयोग और अनाकारोपयोग का कथन त्रिंशत्तम पश्यता पद क- पश्यता के दो भेद ख- साकार पश्यता के ६ भेद ग- अनाकार पश्यता के तीन भेद १ 1. वर्तमान काल विषयक और त्रिकाल विषयक स्पष्ट-अस्पष्ट ज्ञान दर्शन २. त्रिकाल विषयक स्पष्ट ज्ञान-दर्शन Page #696 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६६८ पद ३१-३३ सूत्र ७ घ- चौवीस दण्डक में साकार-अनाकार पश्यता २ चौवीस दण्डक में साकार-अनाकार दर्शी ___क- केवली का एक समय में एक उपयोग ख- ईषत्प्राग्भारा-यावत्-रत्नप्रभा के जानने और देखने का भिन्न-भिन्न समय ग- परमाणु पुद्गल-यावत्-अनंत प्रदेशी स्कंध के जानने और देखने का भिन्न-भिन्न समय १ एकत्रिंशत्तम संज्ञी पद क- चौवीस दण्डक में संज्ञी-असंज्ञी ख- सिद्ध नो संज्ञी नो असंज्ञी द्वात्रिंशत्तम संयत पद १ क- सामान्य जीव-संयत-यावत्-नो संयत-नो असंयत-नो संयता. संयत ख- चौवीस दण्डक में संयत असंयत संयतासंयत १ तयस्त्रिशत्तम-अवधिपद दस अधिकारों के नाम क. अवधिज्ञान ख- दो को भवप्रत्ययिक ग. दो को क्षायोपशमिक नारकों-यावत्-देवों के अवधिज्ञान का क्षेत्र नारकों-यावत्-देवों के अवधिज्ञान का संस्थान नारक-यावत्-देव अवधि मध्यवर्ती, स्पर्द्ध कावधि और विछिन्नावधि की विचारणा नारक-यावत्-देवों का देशावधि और सर्वावधि २-४ Page #697 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद ३४,३५ सूत्र २ प्रज्ञापना-सूची नारक-यावत् देवों का आनुगामिक-यावत्-नो अनवस्थित अवधिज्ञान चतुस्त्रिंशत्तम परिचारणा पद सात अधिकारों के नाम चौवीस दण्डक में अनन्तराहार-यावत्-विकुर्वणा क- चौवीस दण्डक में-इच्छापूर्वक और अनिच्छापूर्वक आहार ख- चौवीस दण्डक में आहार रूप में गृहीत पुद्गलों का जानना एवं देखना ग- जानने देखने और न जानने न देखने का हेतु क- चौवीस दण्डक में जीवों के अध्यवसाय ख- चौवीस दण्डक के जीव सम्यक्त्वी-यावत्-सम्यगमिथ्यात्वी देवों की परिचारणा के भांगे' परिचारणा के पांच भेद पांच प्रकार की परिचारणा के हेतु देवताओं के शुक्र का परिणमन स्पर्श परिचारक देवों के मनका विकल्प देवों में पांच प्रकार की परिचारणा का अल्प-बहुत्व ३ १ पंचविंशत्तम वेदना पद क- तीन प्रकार की वेदना चौवीस दण्डक में तीन प्रकार की वेदना ख- चार प्रकार की वेदना चौवीस दण्डक में चार प्रकार की वेदना ग- तीन प्रकार की वेदना २ १. परिचारणा-मैथुन Page #698 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रज्ञापना-सूची ६७० पद ३६ सूत्र १६ चौवीस दण्डक में तीन प्रकार की वेदना घ- तीन प्रकार की वेदना चौवीस दण्डक में तीन प्रकार की वेदना ङ- तीन प्रकार की वेदना चौवीस दण्डक में तीन प्रकार की वेदना दो प्रकार की वेदना चौवीस दण्डक में दो प्रकार की वेदना दो प्रकार की वेदना चौवीस दण्डक में दो प्रकार की वेदना षट्त्रिंशत्तम समुद्घात पद सात अधिकार १ क- सात प्रकार का समुद्घात ख- सात समुद्घातों का काल ग- चौवीस दण्डक में समुदघातों का कथन चौवीस दण्डक में एक जीव के अतीत और भविष्यत् के समुद्धात चौवीस दण्डक में अनेक जीवों के अतीत और भविष्यत् के समुद्घात चौवीस दण्डक में एक जीव के एक भाव में समुद्घातों की संख्या चौवीस दण्डक में एक जीव के एक भाव में अतीत और भविष्यत् के समुद्घात ६-११ चौवीस दण्डक में अनेक जीवों के एक भव में अतीत और भविष्यत् के समुद्घात जीवों के सात समुद्धातों का अल्प-बहुत्व १६ क- ६ प्रकार का छाद्मस्थिक समुद्घात ३ Page #699 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पद २२ सूत्र ११ प्रज्ञापना-सूची ख- चौवीस दण्डकों में ६ छानस्थिक समुद्घात १७-२२ क- समुद्घात के समय पुद्गलों से व्याप्त और स्पृष्ट क्षेत्र ख- पुद्गलों से व्याप्त और स्पृष्ट होने का काल ग- पुद्गलों के निकालते समय होनेवाली क्रियायें २३ केवली समुद्घात से निर्जरित पुद्गलों की सूक्ष्मता और लोक व्यापकता २४ क- छद्मस्थ द्वारा निर्जरित पुद्गलों का न देख सकना ख- न देख सकने का कारण क- गंध पुद्गलों का उदाहरण ख- केवलो समुदघात के बिना भी निर्वाण क- आयोजीकरण के समय ख- केवली समुद्घात के समय ग- प्रत्येक समय में की जानेवाली क्रिया का वर्णन केवली समुद्घात के समय योंगों का व्यापार केवली समुद्घात के पश्चात् योग व्यापार का निषेध __ केवली समुद्घात के पश्चात् सिद्ध पद २६ क. सयोगी को सिद्ध पद की प्राप्ति नहीं ख- योग निरोध का क्रम, सेलेशी अवस्था का काल परिमाण ग- अयोगी को सिद्धपद की प्राप्ति घ- सिद्धों के शरीरादि न होने का कारण ङ- अग्नि दग्ध बीज का उदाहरण १. अात्मा को मोक्षाभिमुख करने के लिये शुभ योग-व्यापार Page #700 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #701 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो संजयाणं गणितानुयोग प्रधान जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति उपाङ्ग अध्ययन वक्षस्कार उपलब्ध मूलपाठ ४१४६ अनुष्टुप श्लोक प्रमाण गद्यसूत्र १७८ पद्यसूत्र Page #702 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #703 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो सिद्धाणं जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति विषय-सूची ख प्रथम भरतक्षेत्र वक्षस्कार क- परमेष्ठी वंदना ख- मिथिला नगरी, मणिभद्र चैत्य, जितशत्रु राजा, धारणी देवी ग- भ० महावीर का पदार्पण, परिषद्, धर्मकथा गौतम गणधर की जिज्ञासा ३ क- जंबूद्वीप का प्रमाण, आयाम-विष्कम्भ, परिधि ख- , का संस्थान ग- , का स्वरूप वर्णन क- जम्बूद्वीप की जगति के मूल का विष्कम्भ के मध्य का , के ऊपर का , घ. गवाक्ष कटक-गोखड़ों की ऊँचाई ,, , का विष्कम्भ ङ- पद्मवर वेदिका की ऊँचाई " का विष्कम्भ वनखण्ड का विष्कम्भ और परिधि वर्णन वनखण्ड में देवताओं की क्रीड़ा जम्बूद्वीप के चार द्वार और राजधानियों का वर्णन ८ क- जम्बूद्वीप के विजय द्वार का स्थान ख की ऊँचाई, विष्कम्भ ग. विजय। राजधानी का वर्णन ६ एक द्वार से दूसरे द्वार का अन्तर Mur १ Page #704 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६७६ १० क- भरत क्षेत्र का स्थान, दिशा निर्णय वर्णन, विष्कम्भ ख- भरत क्षेत्र का आयताकार और विस्तार ग- भरत के उत्तर-दक्षिण का संस्थान घ- भरत के ६ विभाग ङ - भरत के प्रधान दो विभाग ११ क- दक्षिणार्ध भरत का स्थान, दिशा निर्णय, आयताकार और विस्तार संस्थान ख- दक्षिणार्ध भरत के तीन विभाग और विष्कम्भ ग- दक्षिणार्ध भरत की जीवा का आयाम के धनुष्पृष्ठ की परिधि का स्वरूप के मनुष्यों का संघयण- संस्थान. शरीर की आयु और गति ऊँचाई. १२ क- वैताढ्य पर्वत का स्थान दिशा निर्णय. आयत विस्तार. ख- वैताढ्य पर्वत की ऊँचाई, उद्वेध और विष्कम्भ ग की बाहा का आयाम घ की जीवा का आयाम ङ के की परिधि घ - ङ च च "3 21 "" " " 77 " 37 " छ के वनखण्ड का विष्कम्भ ज - के पूर्व, पश्चिम में दो गुफा - गुफाओं का आयत. विस्तार. आयाम - विष्कम्भ ञ - के कपाट की ऊँचाई ट के नाम, दो देव, देवों की स्थिति ठ - वैताढ्य पर्वत के दोनों पार्श्व में दो विद्याधर श्रेणियां s - विद्याधर श्रेणियों का स्थान. आयत. विस्तार विष्कम्भ 37 " वक्ष० १ सूत्र १२ धनुपृष्ठ की पद्मवर वेदिका का विष्कम्भ Page #705 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० १ सूत्र १३ ६७७ जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति-सूची ढ- विद्याधर श्रेणियों के दोनों पार्श्व में दो पद्मवर वेदिका, दो वनखण्ड ण- पद्मवर वेदिकाओं की ऊँचाई, विष्कम्भ. त. वनखण्डों का आयाम-विष्कम्भ थ- दक्षिण में विद्याधरों के नगर द- उत्तर में " ध. विद्याधर राजाओं का वर्णन न- विद्याधर श्रेणियों का वर्णन प- आभियोगिक श्रेणियों का वर्णन फ- व्यन्तर देवों का क्रीडास्थल । ब. शक्रेन्द्र के आभियोगिक देवों के भवन भ- भवनों का वर्णन म- आभियोगिक देवों का वर्णन य- " की सिथित र. आभियोगिक श्रेणियों से शिखर की दूरी. ल- शिखर का आयत-विस्तार. विष्कम्भ आयाम. व- " की पद्मवर वेदिका और वनखण्ड श- शिखर तल का वर्णन. व्यन्तर देवों का क्रीडास्थल ष- वैताढ्य पर्वत पर नो कूट. १३ क- सिद्धायतन कृट का स्थान ख. " की ऊँचाई के मूल,मध्य और ऊपर की परिधि के मूल, मध्य और ऊपर की परिधि ङ- पद्मवर वेदिका-वनखण्ड वर्णन च- सिद्धायतन का अायाम-विष्कम्भ और ऊँचाई छ- " के तीन द्वारों की ऊँचाई और धिष्कम्भ ज- देवछंदक का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई Page #706 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञास्ति सूत्री ६७८ वक्ष० १ सूत्र.१७ झ- एक सो आठ जिन प्रतिमाओं की ऊँचाई १४ क- दक्षिणार्ध भरतकूट का स्थान प्रमाण ख- प्रासाद की ऊंचाई और विष्कम्भ ग- मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई घ- सिंहासन वर्णन ङ- दक्षिणार्ध भरत देव और उसकी स्थिति च- सामानिक देव अग्रमहीषी, परिषद्. सेना, सेनापति, आत्म रक्षक देव. छ- दक्षिणार्ध राजधानी का स्थान ज- शेषकूटों का समान वर्णन झ- तीन कूट स्वर्णमय, ६ कूट रत्नमय अ- दो कूट के देवों के नाम, शेष ६ कूटों के नामों के अनुसार देवों के नाम, देवों की स्थिति. ट- देवों की राजधानियों का स्थान क. वैताढ्य पर्वत नाम होने का हेतु ख- वैताढ्य गिरि कुमार देव और उसकी स्थिति ग- वैताढ्य नाम शास्वत १६ क- उत्तरार्ध भरत का स्थान " के तीन विभाग का आयाम की बाहा का आयाम की जीवा का आयाम. के धनुपृष्ठ की परिधि का वर्णन-यावत्-मनुष्यों की गति क- ऋषभकूट पर्वत का स्थान " की ऊँचाई और उद्वेध के मूल, मध्य और ऊपर का विष्कम्भ ५७ Page #707 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० २ सूत्र १६ ६७६ घ- मूल मध्य और ऊपर की परिधि १ ङ- पद्मवर वेदिका का - वनखण्ड वर्णन यावत् च - प्रसाद की ऊँचाई विष्कम्भ आदि छ- देव वर्णन. राजधानी वर्णन द्वितीय काल वक्षस्कार १८ क - काल के दो भेद ख- अवसर्पिणी काल के ६ भेद ग- उत्सर्पिणी काल के ६ भेद घ- एक मुहूर्त के श्वासोच्छ्वास ङ. स्तोक, लव, मुहूर्त अहोरात्र, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर, युग, शतवर्ष, सहस्रवर्ष, लक्षवर्षं, पूर्वांग, पूर्व, यावत् शीर्ष प्रहेलिका प्रमाण च - औपमिक काल १६ क - औपमिक काल के दो भेद ख- पल्योपम प्रमाण ग- परमाणु-यावत्-पल्याप्रमाण घ- सागरोपम प्रमाण (१) सुषम - सुषमा काल का प्रमाण (२) सुषमा (१) सुषम-दुषमा (४) दूषम-सुषमा (५) दुषमा (६) दुषम-दुषमा च- उत्सर्पिणी काल प्रमाण १. परिधि प्रमाण का पाठान्तर. " " 17 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची 13 "" Page #708 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६८० वक्ष० २ सूत्र २४ छ- उत्सपिणी-अवसर्पिणी काल प्रमाण ज- अवसर्पिणी के सुषमसुषमा काल का विस्तृत वर्णन २० दस कल्पवृक्ष वर्णन २१ सुषम-सुषमा के मनुष्यों और स्त्रियों का वर्णन, बत्तीस लक्षणों के नाम सुषम-सुषमा के मनुष्यों की आहारेच्छा का काल में मनुष्यों का आहार में पृथ्वी का आस्वाद में पुष्प-फलों का आस्वाद में मनुष्यों का निवास स्थान में वृक्षों का आकार क- सुषम-सुषमा में गृह, ग्रामादिका अभाव में यथेच्छाक्रिया करने वाले मनुष्य में असि, मसि, कृषिकर्मों का अभाव में सामाजिक व्यवस्थापक का अभाव में माता आदि से राग का अभाव में वैर का अभाव में मित्रादि का अभाव में तीव्र राग का अभाव में विवाहादि का अभाव में इन्द्रमहोत्सव आदि का अभाव में नटादि का अभाव में यानों का अभाव में गाय आदि की उपयोगिता का अभाव में अश्व आदि की उपयोगिता का अभाव में सिंहादि श्वापदों की क्रूरता का अभाव में धान्यो का अनुपयोग Page #709 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० २ सूत्र ३० ६८१ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची सुषम-सुषमा में विषम भूमि का अभाव में स्थाणु कंटकादि का अभाव में दंसमशकादि का अभाव में व्याधिकों का अभाव में युद्धादि का अभाव में पैतृकरोंगों का अभाव में महारोगों का अभाव में भूतबाधा का अभाव सुषम- सुषमा में मनुष्यों की स्थिति " की अवगाहना " का संहनन " का सस्थान के पसलियां में प्रसवकाल में शिशु पालन काल में मनुष्यों की मरणोत्तर गति में मनुष्यों की छःजातियां सुषमा काल का वर्णन सुषम-दुषमा काल का वर्णन " के तीन विभाग के प्रथम-मध्यम भाग का वर्णन के अन्तिम भाग का वर्णन सुषम-दुषमा काल के अन्तिम भाग में पन्द्रह कुलकर क- (१) पांच कुलकरों की दण्डनीति ख- (२) " " ग- (३). " , ३० क- भ० ऋषभ देव की उत्पत्ति Page #710 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ख- भ० ऋषभदेव का कुमार काल ग घ- बहत्तर कलाओं का उपदेश ङ - चौसठ कलाओं का उपदेश च झ च- भ० ऋषभदेव द्वारा पुत्र का राज्याभिषेक छ- भ० ऋषभदेव का अनगार प्रव्रज्या ग्रहण "" ज का केशलोच झ का दीक्षा - काल का तप ञ - के साथ दीक्षित होनेवालों की संख्या ट का एक देवदू ३१ क- भ० ऋषभदेव का वर्ष पर्यन्त देव दृष्य धारण ख के उपसर्ग ग घ ङ च छ - to 19 ठ ड to ₤ - ण او 21 " 19 " "" पुरिमताल नगर, शकट मुख उद्यान, न्यग्रोध पादप के नीचे फाल्गुन कृष्णा एकादशी - पूर्वाह काल ज- भ० ऋषभदेव द्वारा पांच महावत और षट् जीवनिकाय का उपदेश ञ - भ० ऋषभ देव के गण गणधर 21 " "3 " " 17 17 ६८२ 17 राज्यपद काल वक्ष० २ सूत्र ३१. के संयमी जीवन का वर्णन के संयमी जीवन की उपमायें के चार प्रतिबन्धों का अभाव के केवल ज्ञान का काल के केवल ज्ञान का स्थान के उत्कृष्ट श्रमण प्रमुख ऋषभसेन के उत्कृष्ट श्रमणियां प्रमुख ब्राह्मी, सुन्दरी के उत्कृष्ट श्रमणोपासक प्रमुख श्रेयांस के उत्कृष्ट श्रमणोपासिका प्रमुख सुभद्रा के उत्कृष्ट चौदह पूर्वी मुनि Page #711 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० २ सूत्र ३३ ६८३ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची त- भ० के ऋषभ देव उत्कृष्ट अवधिज्ञानी मुनि ,, के उत्कृष्ट केवलज्ञानी मुनि ,, के उत्कृष्ट वैक्रियल ब्धिवाले मुनि. के उत्कृष्ट मन: पर्यवज्ञानी मुनि के उत्कृष्ट वादलब्धिवाले मुनि के उत्कृष्ट अनुत्तरौपपातिक मुनि के उत्कृष्ट सिद्धपद प्राप्त करने वाले मुनि ,, के उत्कृष्ट सिद्धपद प्राप्त आर्याएं के उत्कृष्ट सिद्धपद प्राप्त शिष्य-शिष्याओं की संयुक्त ___ संख्या ,, की दो प्रकार की अन्तकृत भूमि' ३२ क- भ० ऋषभ देव के पांच प्रधान जीवनप्रसंग उत्तराषाढ़ा में ख- " का निर्वाण अभिजित् में ३३ क भ० ऋषभदेव का संहनन का संस्थान की ऊँचाई का कुमार काल का राज्य काल का अनगार प्रव्रज्या काल का छद्मस्थ जीवन का केवली जीवन का निर्वाण का का निर्वाण दिन माघकृष्णा त्रयोदशी का पूर्णायु का निर्वाण स्थान अष्टा पद पर्वत १. अन्तकृतभूमि-मुक्त होनेवाले शिष्य प्रशिष्य Page #712 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६८४ वक्ष० २ सूत्र ३५ ड- भ० ऋषभदेव के साथ निर्वाण होने वाले मुनि के निर्वाण काल का तप ढ- , का निर्वाण काल का आसन ण- , का निर्वाणोत्सव । त- भ० ऋषभदेव व अन्य श्रमणों की भस्मि का क्षीरोद समूद्र में प्रक्षेप थ- देवेन्द्रों द्वारा जिन अस्थियों का ग्रहण द- देवेन्द्रों द्वारा तीन चैत्यस्तुपों के निर्माण का आदेश घ- नंदीश्वर द्वीप में अष्टान्हिका निर्वाण महोत्सव न- शकेन्द्र द्वारा पूर्व अंजनक पर्वतपर अष्टान्हिका महोत्सव प- लोकपालों द्वारा चार दधिमुख पर्वतों पर फ- ईशानेन्द्र द्वारा उत्तर के अंजनक पर्वत पर ब- लोकपालों द्वारा चार दधिमुख पवतों पर भ- चमरेन्द्र द्वारा दक्षिण के अंजनक पर्वत पर म- लोकपालों द्वारा चार दधि मुख पर्वतों पर य- बलेन्द्र द्वारा पश्चिम के अंजनक पर्वत पर र- लोकपालों द्वारा चार दधिमुख पर्वतों पर ल- देवेन्द्रों द्वारा सुधर्मा सभा के माणवक चैत्य स्तम्भों में जिन अस्थियों की स्थापना और अर्चना ३४ क- दुषम-सुषमा काल का वर्णन में तीन वंशों की उत्पति में तेवीस तीर्थंकर में इग्यारह चक्रवर्ती मैं नव बलदेव, नव वासुदेव दुषमा काल का वर्णन _ के तीन विभाग ग. के अन्तिम भाग में धर्म-विच्छेद ख- ग- घ- , " " ३५ ख. , Page #713 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ३ सूत्र ४२ ६८५ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ३६ दुषमा-दुषमा काल का विस्तृत वर्णन ३७ क- उत्सर्पिणी काल ख- दुषम-दुषमा काल का वर्णन ग- दुषमा का काल वर्णन ३८ क- उत्सर्पिणी के दुषम काल में--पंच मेघ वर्षा १. पुष्कर संवर्तक मेघ वर्षा वर्णन २. क्षीर मेघ ३. घृत मेघ ४. अमृत मेघ ५. रस मेघ ३६ क- मांसाहार का सर्वथा निषेध ख- मांसाहारियों की छाया के स्पर्श का निषेध ४० क- उत्सपिणी के दुषम-दुषमा काल का वर्णन ख- उत्सर्पिणी के सुषमा काल का वर्णन ग- , सुषम-सुषमा काल का वर्णन तृतीय भरत चक्रवर्ती वक्षस्कार ४१ क. भरत नाम होने का हेतु विनीता नगरी वर्णन ख- विनीता राजधानी के स्थान का निर्णय ग- का आयात विस्तार दिशा घ- का आयाम-विष्कम्भ भरत चक्रवर्ती वर्णन ख- देह वर्णन ग- बत्तीस प्रशस्त लक्षण घ. भरत चक्रवर्ती की कुछ उपमाएं Page #714 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६८६ वक्ष० ३ सूत्र ४५ ४३ क- आयुधशाला में चक्ररत्न की उत्पत्ति ख- आयुधशाला के अध्यक्ष द्वारा चक्ररत्न को वंदना ग- , ,, का भरत से निवेदन घ. भरत का चक्ररत्न को वंदन ङ.- आयुध शालाके अध्यक्ष को प्रीतिदान च- विनीता नगरी को सजाने का आदेश छ- भरत चक्रवर्ती का स्नान, शृंगार ज- भरत का चक्ररत्न के समीप जाना झ- भरत के साथ राजा महाराजा आदि का तथा पीछे पूजा सामग्री लेकर दासियों का जाना अ- भरत द्वारा चक्ररत्न की पूजा ट- अष्ट मांगलिक की रचना ठ- अठारह श्रेणी प्रश्रेणियों को करमुक्ति आदि का आदेश ४४ क- चक्ररत्न का मागधतीर्थ की ओर प्रयाण ख- अभिषेक हस्ति और सेना को सन्नद्ध होने का आदेश ग- भरत का मागधतीर्थ के समीप पहुँचना । घ- बढई-रत्न-श्रेष्ठ को स्कंधावार-(छावनी) निर्माण का आदेश ङ- भरत का पौषध शाला में अष्टम भक्त तप च- चौथे दिन प्रात: भरत का अश्व रथ पर आरूढ होकर आगे बढना ४५ क- लवण समुद्र के किनारे से मागध तीर्थाधिपति देव के भवन में बाण का प्रक्षेपण ख- मागध तीर्थाधिपति देव द्वारा भरत का सत्कार, बहुमूल्य वस्त्रा भरण और मागध तीर्थोदक का समर्पण ग- भरत द्वारा मागध तीर्थाधिपति देव का सत्कार घ- भरत का स्कन्धावार में लौट कर आना ङ- अष्टम भक्त तप का पारणा Page #715 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ३ सूत्र ५२ ६८७ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची च- मागधतीर्थ देव का अधान्हिका महोत्सव छ- सुदर्शन चक्र का वरदामतीर्थ की और बढाना ४६-४६ वरदाम और प्रभासतीर्थ का वर्णन मागधतीर्थ के समान ५० क- चक्ररत्न का सिन्धुदेवी भवन की और बढना ख- स्कन्धावार और पौषधशाला का निर्माण, अष्टम भक्ततप ग- सिन्धूदेवी द्वारा भरत का सत्कार सन्मान घ. पारणा, सिन्धुदेवी का अष्टान्हिका महोत्सव ५१ क- चक्ररत्न का वैताढ्य पर्वत की ओर बढना, स्कंधावार पौषध शाला, अष्टम भक्त, वैताढ्य गिरिकुमार देवद्वारा भरत का सत्कार ख- भरत द्वारा वैताढ्य देव का अष्टान्हिका महोत्सव ग- चक्ररत्न का तमिस्रा गुफा की और बढना भरत का अष्टम भक्त तप कृतमाल देव का आराधन घ- कृतमाल देव द्वारा भरत का सत्कार, सन्मान स्त्रीरत्न के लिये चौदह प्रकार के आभूषणों का समर्पण ङ- भरत द्वारा कृतमाल देव का अष्टान्हिका महोत्सव ५२ क- सुसेण सेनापति को सिन्धु नदी, समुद्र और वैताढ्य पर्यन्त के सभी राज्यों को आधीन करने का भरत का आदेश ख. सुसेण का विजय प्रयाण, चर्मरत्न द्वारा सिन्धुनदी को पार करना ग- सिंहल, बर्बर, अङ्गलोक, वलावलोक, यवनद्वीप, अरब, रोम अलसण्ड, पिक्खुर, कालसुख, जोनक आदि म्लेच्छदेश और कच्छ देश अादि जनपदों को जीत कर सुसेण का ससैन्य वापिस लौटना. भरत को सब उपहार भेंट करना पश्चात् स्वयं के पटमण्डप में जाकर विश्राम करना Page #716 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची वक्ष० ३ सूत्र ६० ५३ क- भरत का सुसेण को तमिस्रा गुफा के द्वार खोलने का आदेश ख- सुसेण द्वारा कृतमाल देव की आराधनार्थ अष्टम भक्त तप ग- चौथे दिन सुसेण द्वारा तमिस्र गुफा के द्वार की पूजा घ- गुफा के द्वार पर दण्डरत्न का प्रहार ङ- भरत को द्वार खुलने की सूचना देना ५४ क- काकणी रत्न के आलोक से गजरत्नारूढ होकर मणिरत्न और भरत का तमिस्र गुफा में प्रवेश ख- मणि रत्न और काकणी रत्न का प्रमाण, मणिरत्न और काकणी रत्न के अचिन्त्य प्रभाव ५५ ग- उमग्नजला निमग्नजला नाम देने का हेतु घ- भरत द्वारा उमग्नजला और निमग्नजला के सुख संक्रमणार्थ पुल बाँधने का आदेश ङ- तमिस्रा गुफा के उत्तर द्वार का स्वयं खुलना ५६ क- उत्तरार्ध भरत में आपातचिलातों के प्रदेशों में उत्पातों के होना ख- चिलात सेना का भरत सेना से युद्ध, भरत सेना की पराजय ५७ क- असिरत्न और दण्डरत्न लेकर सुसेण सेनापती का चिलात सेना को परास्त करना ख- असिरत्न और दण्डरत्न का प्रमाण ५८ क- त्रस्त चिलातों द्वारा स्व-कुलदेव मेघमुख नाग कुमार की आरा धना ख- नाग कुमारों द्वारा भरत सेना पर मूसलाधार वर्षा ५६ क- सतत वर्षा से त्रस्त भरत सेना की नौकारूप चर्मरत्न और छत्ररत्न से रक्षा ख- चर्म रत्न और छत्ररत्न का प्रमाण ६० क- मणिरत्न से प्रकाश, गाथापति रत्न, सेना की भोजन व्यवस्था Page #717 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र ६५ ६८६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची स्व- सात रात्रि की सतत वर्षा से भरत सेना की सुरक्षा ग- विविध धान्यों के नाम ६१ क- चिन्तित भरत के सहयोग के लिये सोलह हजार देवों का आना और मेघमुख नाग कुमार को वर्षा करने से रोकना ख- चिलातों द्वारा आत्म समर्पण और भरत से क्षमा याचना ग- भरत की आज्ञा से सुसेण सेनापति का सिन्धु नदी के पश्चिम तटवर्ती प्रदेशों को आज्ञाधीन करना ६२ क- चूल्ल हिमवंत गिरि की और चक्ररत्न का बढना ख- चुल्ल हिमवंत देव की आराधना के लिये भरत का अपम तप करना ग. चौथे दिन प्रात: चूल्ल हिमवंत देव की सीमा में शर फेंकना घ- बहत्तर योजन पर्यन्त शर का जाना ङ- चुल्ल हिमवंत देव द्वारा भरत का सत्कार सन्मान और उत्तरी सीमा की सुरक्षा का आश्वासन ६३ क- भरत का ऋषभकूट पर्वत के समीप पहुँचना और अग्र शिला पर कांकणी रत्न से नामांकन करना ख- चुल्ल हिमवंत देव का अधान्हिका महोत्सव ग- दक्षिण में वैताढ्य पर्वत की और चक्ररत्न का बढना ६४ क- वैताढय पर्वत के समीप भारत का अष्टम तप ख. विद्याधर राज नमि-विनाम द्वारा भरत का उचित आतिथ्य, स्त्री रत्न का समर्पण ग- भरत द्वारा विद्याधर राज नमि-विनमि का मान संवर्धन ६५ क- खण्ड प्रपात गुफा के दक्षिण द्वार का उद्घाटन ख- नृत्यमाल देव की आराधना ग- भरत की आज्ञा से गंगातट वर्ती प्रदेशों को आज्ञाधीन करने के __लिये सुसेण का सफल प्रयाण घ- उमग्न-निमग्नजला नदियों को पार करना Page #718 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६६० वक्ष० ३ सूत्र ६८ ङ- खण्ड प्रपात गुफा के उत्तर द्वार का उद्घाटन ६६ गंगा के पश्चिमी किनारे पर भरत के आदेश से स्कंधावार का निर्माण ख- भरत का नवनिधि आराधनार्थ अष्टम तप ग- नवनिधियों की प्राप्ति, अष्टान्हिका महोत्सव घ. भरत का विनीता के लिए प्रस्थान ६७ क- भरत के वैभव का वर्णन ख- विनीता के समीप भरत का अष्टम तप ग- भरत का विनीता प्रवेश घ- सेनापति आदि राज्याधिकारियों तथा श्रेणी प्रश्रेणि का योग्य सत्कार सन्मान ङ- भरत चक्रवर्ती की विजय-यात्रा समापन्न ६८ १. क- भरत का राज्याभिषेक ख- अभिषेक मण्डप और अभिषेक पीठ का निर्माण ग- अष्टम तप घ. सेनापति-यावत्-पुरोहित अन्य सभी नगर प्रमुखों द्वारा भरत का अभिषिचन ङ- सोलह हजार देवियों द्वारा मुकुट और माला पहनाना च- बारह वर्ष पर्यन्त विजय महोत्सव मनाते रहने की घोषणा छ- अभिषेक के पश्चात् तप का पारणा ज- भरत चक्रवर्ती द्वारा सबका यथोचित आदर-सत्कार ६८ २. क- चक्रादि चार रत्नों का उत्पत्ति स्थान-आयुधशाला ख- छत्रादि तीन रत्नों का " श्रीघर ग- सेनापति आदि चार रत्नों का " विनीता घ- अश्व-गज आदि का " वैताढ्य पर्वत ङ- सुभद्रा स्त्री रत्न का उत्पत्ति स्थान उत्तर विद्याधर श्रेणी भरत चक्रवर्ती का वैभव Page #719 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ३ सूत्र ७० ६६१ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६६ क- रत्न संख्या ख- निधि ग- देव घ- आज्ञाधीन राजा ङ. ऋतु कल्याणक च- जनपद कल्याणक छ- नाटक के स्थान ज- सूपकार-रसोईया झ- श्रेणी-प्रश्रेणी ज- अश्व सेना ट- गज सेना ठ- रथ सेना ड- पैदल सेना ढ- पुरवर.श्रेष्ठ नगर ण- जनपद देश त- ग्राम थ- द्रोणमुख द- पट्टण ध- कर्बट न- मंडप प. आकर फ- खेड़ा व- संबाह भ- अन्तरोदक-द्वीप म- कुराज्य भिल्लादि का राज्य ,, य- विनीता राजधानी के अधीन राज्य सीमा ७० क. भरत का आदर्श घर में आत्म दर्शन Page #720 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६६२ वक्ष० ४ सूत्र ७२ ख- केवल ज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति ग- आभरणादिका त्याग घ. पंच मुष्टिक लुंचन ङ.- साथ दीक्षित होने वाले च- अष्टापद पर्वत पर अन्तिम साधना छ- भरत का कुमार जीवन __ मंडलीक राज जीवन चक्रवर्ती गृहवास जीवन केवली , श्रमण ॥ सर्वायु ,, संलेखना काल नक्षत्र भरत का निर्वाण-मरण समय भरत का शाश्वत नाम - चतुर्थ चुल्ल हिमवंत वक्षस्कार क- चुल्ल हिमवंत वर्षधर पर्वत के स्थान का निर्णय की ऊँचाई, उद्वेध और विकास की बाहा का आयाम की जीवा का आयाम के धनुपृष्ठ की परिधि का संस्थान की पद्मवर वेदिका और वनखण्ड का वर्णन व्यंतरों का क्रीड़ा स्थल Page #721 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र ७४ ६६३ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची पभद्रह वर्णन क- पद्मद्रह का आयत-विस्तार ख. , आयाम-विष्कम्भ ग- , उद्वेध की पद्मवर वेदिका-वनखण्ड पद्मवर्णन ङ.- पद्म का आयाम-विष्कम्भ च- ,, का उद्वेध-ऊँचाई और अग्रभाग का परिमाण छ- पद्म की कणिका का आयाम विष्कम्भ ज- भवन का आयाम विष्कम्भ और ऊँचाई भवन के तीन द्वार द्वारों की ऊँचाई विष्कम्भ झ- मणि पीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य ज- शयनीय वर्णन ट- पद्म को घेरनेवाले पद्म पद्मों का आयाम-विष्कम्भ, बाहल्य, उद्वेध और ऊँचाई ठ- पद्मों की कणिका का आयाम-बाहल्य ड- श्रीदेवी के सामानिक देवियों के पद्म ढ- श्रीदेवी की महत्तरिकाओं के पद्म ण- श्रीदेवी की तीन परिषद् के पद्म त- सर्व पद्मों की संख्या थ- पद्मद्रह नाम होने का हेतु द- श्रीदेवी-श्रीदेवी की स्थिति ध- पद्मद्रह शाश्वत नाम ___ गंगा नदी वर्णन ७४ क- गंगा नदी का उद्गम स्थान ख- पद्मद्रह गंगावत कुण्ड पर्यन्त गंगा प्रवाह का परिमाण Page #722 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६६४ वक्ष० ४ सूत्र ७४ ग- जिव्हिका का परिमाण घ- गंगावर्त कुण्ड से गंगा प्रपात कुण्ड पर्यंत गंगा प्रवाह का परिमाण ङ- गंगा प्रपात कुण्ड का अायाम-विष्कम्भ, परिधि, उद्वेध च- पद्मवेदिका और वनखण्ड का वर्णन छ- तीन सोपानों का वर्णन ज- तोरणों का वर्णन झ- अष्ट मंगलों का वर्णन ___गंगाद्वीप का वर्णन ब- गंगाद्वीप का आयाम विष्कम्भ और परिधि ट- गंगादेवी के भवन का आयाम विष्कम्भ और ऊताई ठ- मणिपीठिका का वर्णन । ड- गंगाद्वीप का शाश्वत नाम ढ- उत्तरार्ध भरत में सात हजार नदियों का गंगा में मिलना ण- दक्षिणार्ध भरत में सात हजार नदियों के और मिलने से चौदह हजार नदियों का गंगा में संगम त- गंगा का लवण समुद्र में मिलना थ- गंगा नदी के उद्गम स्थान में प्रवाह का विष्कम्भ और उद्वेध द- समुद्र संगम में गंगानदी के प्रवाह का विष्कम्भ और उद्वेध ध- सिंधु नदी वर्णन सिंधु नदी में चौदह हजार नदियों का संगम न- सिंधु यावर्त कुण्ड वर्णन प- सिंधु प्रपात " फ- सिंधु द्वीप ब- रोहिताशा नदी रोहितांशा नदी में अट्ठावीस हजार नदियों का संगम Page #723 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र ७६ ६६५ भ- रोहितांशा प्रपात कुण्ड में नदियों का संगम म रोहितांशा द्वीप ७५ क- चुल्ल हिमवन्त पर ग्यारह कूट ख- सिद्धायतन कूट का स्थान " ग घ "" पद्मवर वेदिका और वन खण्ड का वर्णन ङ - सिद्धायतन का आयाम - विष्कम्भ और ऊँचाई च - जिन प्रतिमाओं का वर्णन ङ - च छ - चुल्ल हिमवन्त कूट का स्थान, आयाम - विष्कम्भ ज- प्रासादावंतसक की ऊँचाई और विष्कम्भ छ ज झ - सिंहासन, परिवार अ- चुल्ल हिमवन्त देव और उसकी स्थिति ट- चुल्ल हिमवन्ता राजधानी का स्थान ट- शेष कूटों का चुल्लहिमवन्त कूट के समान वर्णन ड- चार कूटों पर देवता. शेष कूटों पर देवियां ढ - चुल्ल हिमवन्त नाम का हेतु ण - चुल्ल हिमवन्त देव और उसकी स्थिति त- चुल्ल हिमवन्त देव और उसकी स्थिति ७६ क - हेमवंत क्षेत्र का स्थान ख- हेमवंत क्षेत्र का आयत, विस्तार दिशा. ग घ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची 17 " के मूल, मध्य और ऊपर का विष्कभ के "" मूल, मध्य और ऊपर की परिधि 37 " 77 का संस्थान का विष्कम्भ की बाहा का आयाम को जीवा का 19 के धनुपृष्ठ को परिधि में सुषम-दुषमा काल के समान सर्वदा स्थिति Page #724 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची वक्ष० ४ सूत्र ८० ७७ क- शब्दापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत का स्थान ख- " की ऊँचाई, उद्वेध, संस्थान आयाम विष्कम्भ और परिधि ग- पद्मवर वेदिका और वनखण्ड वर्णन घ- प्रासादावतंसक की ऊंचाई, आयाम-विष्कम्भ और सिंहासन परिवार ङ- शब्दापाति वृत्त वैताढ्य नाम होने का हेतु. च- शब्दापाति देव-देव की स्थिति और देव परिवार छ- शब्दापाति राजधानी का स्थान ७८ क- हैमवत नाम होने का हेतु ख- हैमवत देव और उसकी स्थिति ७६ क- महा हिमवन्त वर्षधर पर्वत का स्थान के आयत विस्तार की दिशा की ऊँचाई, उद्वध, विष्कम्भ की बाहा का आयाम की जीवा का , के धनुपृष्ठ की परिधि छ- पद्मवर वेदिका और वनखण्ड वर्णन ज- व्यन्तर देवों का क्रीड़ा स्थल क- महापद्मद्रह का स्थान ख- , का आयाम-विष्कम्भ ग- पद्म का प्रमाण घ- ह्री देवी और उसकी स्थिति ङ- महापद्म द्रह का शास्वत नाम रोहिता नदी वर्णन च- उद्गम स्थान में प्रवाह का परिमाण छ- जिबिका का परिमाण Page #725 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष ० ४ सूत्र ८२ ६ ६७ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ज- रोहिता प्रताप कुण्ड का अायाम-विष्कम्भ परिधि और उद्वेध झ- रोहित द्वीप का स्थान आयाम विष्कम्भ परिधि और ऊंचाई अ- पद्मवर वेदिका और वनखण्ड का वर्णन ट- भवन का आयाम-विष्कम्भ ठ- अट्ठावीस हजार नदियों का रोहिता नदी में संगम शेष वर्णन रोहितांशा नदी के समान हरिकान्ता नदी का वर्णन ड- हरिकान्ता नदी का स्थान ढ- जिबिका का परिमाण ण- हरिकान्ता प्रपात कुण्ड का अायाम विष्कम्भ और परिधि त- हरिकान्ता द्वीप का आयाम विष्कम्भ परिधि और ऊचाई शेष वर्णन सिन्धु द्वीप के समान हरिकान्ता नदी में छप्पन हजार नदियों का संगम ८१ क- महा हिमवन्त वर्षधर पर्वत के पाठ कूट ख- कूटों का आयाम-विष्कम्भ ग- महाहिमवन्त देव और उसकी स्थिति क- हरि वर्ष क्षेत्र का स्थान ख- का विष्कम्भ की बाहा का आयाम की जीवा का ,, के धनुपृष्ठ की परिधि च. में सुषमाकाल के समान सदा स्थिति छ- विकटापाती वृत्त वैताड्य पर्वत का स्थान ज. अरुण देव और उसकी स्थिति झ- विकटापाती राजधानी का स्थान अ. हरि वर्ष क्षेत्र नाम होने का हेतु Page #726 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ६६८ वक्ष० ४ सूत्र ८४ ट- हरिवर्ष देव और उसकी स्थिति क- निषध वर्षधर पर्वत का स्थान ख- निषध व० ५० के आयत और विस्तार की दिशा ग- निषध व०प० की ऊँचाई, उद्वेध और विष्कम्भ घ- निषध व० ५० की बाहा का आयाम की जीवा का आयाम के धनुपृष्ठ की परिधि का संस्थान ज- पद्मवर वेदिका और वनखण्ड का वर्णन झ- तिगिच्छ द्रह का स्थान अ- , के आयत और विस्तार की दिशा ट- तिगिच्छ द्रह का आयाम-विष्कम्भ ठ- धृति देवी और उसकी स्थिति क- हरि नदी का स्थान ख. हरि प्रपातकुण्ड वर्णन ग- हरि द्वीप भवन वर्णन घ- छप्पन हजार नदियों का हरि नदी में संगम शेष वर्णन हरिकान्ता नदी के समान ङ- सीतोदा महानदी का स्थान उद्गम स्थान से कुण्ड पर्यन्त प्रवाह का परिमाण च- सीतोदा प्रपात कुण्ड का प्रायास विष्कम्भ और परिधि छ- सीतोदा द्वीप का पायाम-विष्कम्भ परिधि और ऊंचाई ज- चित्र, विचित्र कूट पर्वत झ- निषध, देवकुरु, सूर, सुलस, विद्य प्रभद्रह अ- सितोदा में चौरासी हजार नदियों का संगम ट- विद्य त् प्रभ वक्षस्कारपर्वत Page #727 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र ८५ ६६६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ठ- प्रत्येक चक्रवर्ती विजय' से अट्ठावीस हजार नदियों का सीतोदा में संगम ड. सीतोदा में पचपन लाख बत्तीस हजार नदियों का मिलना ढ- उद्गम स्थान में सीतोदा नदी का विष्कम्भ और उध ण- समुद्र में मिलने के स्थान में सीतोदा नदी का विष्कम्भ और उध त- पद्मवर वेदिका और वन खण्डवर्णन थ- निषध पर्वत पर नो कूट द- प्रत्येक कूट का परिमाण चुल्ल हिमवन्त कूट के समान ध- निषध राजधानी का स्थान न- निषध पर्वत नाम होने का हेतु प- निषध देव और उसकी स्थिति क. महाविदेह दोन का स्थान ख- , के आयत और विस्तार की दिशा ग- महाविदेह का विष्कम्भ घ- महाविदेह की बाहो का आयाम ङ- , की जीवा का , च- , के धनुपृष्ठ की परिधि छ- महाविदेह के चार विभाग ज- , में मनुष्यों के संहनन, संस्थान, अवगाहना, और गति झ- महा विदेह नाम होने का हेतु अ- महाविदेह देव और उसकी स्थिति ट- महाविदेह का शास्वत नाम ८५ १. दक्षिण तट के आठ विजय और उत्तर तट के पाठ विजय इस प्रकार सोलह विजय Page #728 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ८६ क- गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत का स्थान ख- गन्धमादन व प. के आयत और विस्तार की दिशा ग- गन्धमादन व. प. का आयाम घ- नीलवन्त वर्षधर पर्वत के समीप गन्धमादन को ऊँचाई और विष्कम्भ ङ. मेरु पर्वत के समीप गन्धमादन की ऊँचाई और विष्कम्भ च- गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत का संस्थान छ- दो पद्मवर वेदिका और वनखण्ड का वर्णन ज- व्यन्तर देवों का क्रीडा स्थल झ- गन्धमादन पर्वत पर सात कूट ञ - चुल्ल हिमवन्त पर्वत के सिद्धायतन कूट के समान कूटों का परिणाम. ट - कूटों की दिशा ठ- प्रत्येक कूट पर देवियों का निवास ड- प्रासादावतंसक और राजधानियों का वर्णन ढ - गंधमादन नाम होने का हेतु - गंधमादन देव और उसकी स्थिति त- गंधमादन शास्वत नाम ८७ क- उत्तरकुरु क्षेत्र का स्थान ख ग- उत्तरकुरु क्षेत्र का संस्थान घ ङ - च क- यमक पर्वतों का स्थान ख - 37 17 ७०० " 33 11 वक्ष० ४ सूत्र ८८ के आयात और विस्तार की दिशा की जीवा का आयाम के धनुपृष्ठ की परिधि में सुषम-सुषमा काल के समान सदा स्थिति की ऊँचाई और उद्बोध Page #729 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०१ to me is 6 वक्ष० ४ सूत्र ८८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ग- यमक पर्वतों के मूल, मध्य और ऊपर का विष्कम्भ घ , के मूल, और ऊपर की परिधि ङ. का संस्थान च- पद्मवर वेदिका और वन खण्डों का वर्णन छ- प्रासादावतंसकों की ऊँचाई, विष्कम्भ और सिंहासन परिवार ज- यमक देवों के आत्म रक्षक देव भ- यमक नाम होने का हेतु अ- यमक देव और उनके सामानिक देव ट- यमक पर्वत शास्वत नाम ठ- यमका राजधानियों का स्थान का आयाम-विष्कम्भ की परिधि के प्राकारों की ऊँचाई के प्राकारों का मूल, मध्य, और ऊपर का विष्कम्भ थ. कपिशीर्षकों की ऊँचाई और बाहल्य द- यमिका राजधानियों के द्वार ध- द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ न- चार बनखण्डा का वर्णन प- प्रासादावतंसकों का वर्णन फ- उपकारिकालयनों का आयाम, विष्कम्भ, परिधि और बाहल्य ब- प्रत्येक के पद्मवर वेदिका और वनखण्ड का वर्णन भ- प्रासादावतंसकों का परिमाण म- सिंहासन परिवार य- प्रासाद पंक्तियां र- सुधर्मासभा, मुखमण्डप, प्रेक्षाधर, मण्डप, मणिपीठिका, स्तूप, जिन प्रतिमा, चैत्यवृक्ष, मणिपीठिका. महेन्द्र ध्वज, मनो = Page #730 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८९ वक्ष० ४ सूत्र ६० ७०२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची गुलिका. गोमानसिका, धूपघटिका, मणिपीठिका, चैत्य स्तम्भ, जिन अस्थियां, शयनीय, क्षुद्र महेन्द्र ध्वज, शस्त्रागार, सिद्धाय तन, मणिपीठिका, देवछंदक, जिनप्रतिमा, आदि का वर्णन ल- उपपात सभा, शयनीय, ह्रद वर्णन व- अभिषेक सभा वर्णन श- अलंकारिक सभा वर्णन ष- व्यवसाय सभा वर्णन स- नंदा पुष्करिणियों और बलिपीठों का वर्णन क- नीलवन्त दह का स्थान " के आयत और विस्तार की दिशा ग- दो पद्मवर वेदिका और दो वनखण्डों का वर्णन घ- नीलवन्त नाग कुमार देव ङ- नीलवन्त द्रह के दोनों पार्श्व में वीस वीस कांचनग पर्वत च- कांचनग पर्वतों का परिमाण, यमक पर्वतों के समान छ- पांच ह्रदों के नाम ज- प्रत्येक में एक एक देव और उनकी स्थिति झ. यमका राजधानियों के समान इनकी राजधानियों का वर्णन क- जम्बूपीठ का स्थान ' की परिधि ग- " का अन्दर बाहर का बाहल्य घ- पद्मवर वेदिका वनखण्ड, त्रिसोपान और तोरणों का वर्णन ङ- मणिपीठिका की ऊँचाई और बाहल्य च- जम्बू सुदर्शन की ऊँचाई और उद्वेध " के स्कन्धों का बाहल्य ज- " की शाखाओं का आयाम-विष्कम्भ और अग्रभाग के चार दिशाओं में चार शालाएँ Page #731 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र ६० जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची अ- चार शालाओं के मध्य भाग में एक सिद्धायतन ट- सिद्वायतन का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई ठ- " के द्वार, द्वारों की उँचाई-विष्कम्भ ड- मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य ढ- छंदक का परिमाण ण- जिनप्रतिमाओं का वर्णन त- पूर्व दिशा की शाला में एक भवन थ- शेष शालाओं में प्रासादावतंसक सिंहासनादि द- पद्मवर वेदिका वर्णन ध- एक सो आठ जम्बू वृक्षों की ऊँचाई आदि न- छ: पद्मवर वेदिकाओं का वर्णन प- अनाधृत देव के सामानिक देव फ- प्रत्येक सामानिक देव के जम्बू वृक्ष ब- अनाधृत देव की अन महीषि याँ भ• अग्रमहीषियों के जम्बू वृक्षों का परिणाम म- सात सेनापतियों के सात जम्बू वृक्षों का परिमाण य- आत्म रक्षक देवों के जम्बू वृक्षों परिमाण र- जम्बू वृक्ष के वनखण्डों का वर्णन ल. प्रथम वन खण्ड के भवन और शयनीय का वर्णन व- शेष वनखण्डों के भवनों का वर्णन श- चार पुष्करिणियों के मध्य स्थित प्रासादों का वर्णन ष. पुष्करिणियों के मध्य स्थित प्रासादों का वर्णन स- प्रासाद कूटों का वर्णन है- जम्बू सुदर्शन वृक्ष के बारह नाम क्ष- जम्बू सुदर्शन नाम होने का हेतु त्र. जम्बू सुदर्शन शास्वत नाम ज्ञ- अनाधता राजधानी का वर्णन यमिका राजधानी के समान Page #732 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ७०४ वक्ष० ४ सूत्र ६३ ६१ क. उत्तर करु नाम होने का हेतु ख- उत्तर कुरुदेव और उसकी स्थिति ग- उत्तरकुरु शास्वत नाम है घ- माल्यवन्त वक्षस्कार पर्वत का स्थान ङ- माल्यवन्त व० ५० के आयत और विस्तार की दिशा च- शेष वर्णन गंधमादन पर्वत के समान छ- माल्यबन्त पर्वत नो कूछ । ज- सागर कूट पर सुभोगा देवी, सुमोगा राजधानी झ- रजतकूट पर भांगमालिनी देवी और उसकी राजधानी ज- शेष कूटों के सदृश नाम वाले देव ट- देवों की राजधानियाँ ठ- शेष वर्णन चुल्ल हिमवन्त के समान ६२ क- हरिस्सह कूट का परिमाण ख- हरिस्सह राजधानी का वर्णन चमर चंचा राजधानी के समान ग- माल्यवंत नाम होने का हेतु घ- माल्यवन्त देव और उसकी स्थिति ङ- माल्यवन्त शास्वत नाम है क- कच्छ विजय का स्थान " के आयत और विस्तार की दिशा " के छ विभाग " का विष्कम्भ कुर- वैताड्य पर्वत से कच्छ विजय के दो भाग च. दक्षिणार्थ के कच्छ विजय का स्थान का आयाम-विष्कम्भ ३ १. भरत क्षेत्र के बैतादय पर्वत से यह वैताढ्य पर्वत भिन्न है Page #733 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र ६४ ७०५ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ज- दक्षिणार्ध के कच्छविजय का संस्थान झ- " के मनुष्यों का वर्णन अ. वैताढ्य पर्वत का स्थान ट- वैताढ्य पर्वत के आयत और विस्तार की दिशा ठ- वैताढ्य पर्वत की बाहा, और धनुपृष्ठ का परिमाण ड- विद्याधर श्रेणियों का वर्णन ढ- विद्याधरों के नगर त- उत्तरार्ध कच्छविजय का वर्णन-दक्षिणार्ध कच्छ विजय के समान थ- सिन्धु कुण्ड का स्थान भरत क्षेत्र के सिन्धु कुण्ड के समान द- सिन्धु नदी चौदह हजार नदियों का में संगम घ- सिन्धु नदी का सीता नदी में संगम न- ऋषभकूट पर्वत का स्थान आदि प- गंगा कुण्ड का वर्णन सिन्धु कुण्ड के समान फ- कच्छ विजय नाम होने का हेतु ब- क्षेमा राजधानी का वर्णन विनीता राजधानी के समान भ- कच्छ राजा का वर्णन भरत चक्रवर्ती के समान म- कच्छ देव और उसकी स्थिति य- कच्छ विजय का शास्वत नाम होना क- चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत का स्थान, ख- चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत की आयत और विस्तार की दिशा. ग- नीलवन्त वर्षधर पर्वत के समीप चित्रकूट पर्वत का आयाम विष्कम्भ. घ- सीतानदी के समीप चित्रकूट पर्वत का आयाम-विष्कम्भ. ङ- चित्रकूट पर्वत का संस्थान च- चित्रकूट पर्वत के दोनों पार्श्व में दो पद्मवर वेदिकायें और दो वनखण्ड Page #734 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ७०६ वक्ष० ४ सूत्र ६५ १५ छ- चित्रकूट पर्वत के चार कूट ज- चित्रकूट देव और इसकी स्थिति झ- चित्रकूटा राजधानी का स्थान क- सुकच्छ विजय का स्थान ख- खेमपुरा राजधानी ग- सुकच्छ राजा घ- शेष वर्णन कच्छ विजय के समान ङ- गाथापति कुण्ड का रोहितांश कुण्ड के समान वर्णन च- गाथापति द्वीप भवन का वर्णन छ- गाथापति नदी ज- अट्ठावीस हजार नदियों का गाथापति नदी में मिलना और गाथापति नदी का सीतानदी में मिलना झ- गाथापति नदी का उद्वेध और प्रवाह का विष्कम्भ ञ- गाथापति नदी के दोनों पार्श्व में दो पद्मवर वेदिका और दो वनखण्ड का वर्णन. ट- महा कच्छविजय का स्थान पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत का स्थान पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत के आयत और विस्तार की दिशायें. पद्मकूट व. प. के चार कूट पद्मकूट देव और उसकी स्थिति . शेष वर्णन चित्रकूट पर्वत के समान ठ- कच्छगावती विजय का स्थान कच्छगावती विजय के आयत और विस्तार की दिशा कच्छगावती देव-शेष वर्णन कच्छ विजय के समान दहावती कुण्ड का स्थान दहावती नदी का सीता नदी में मिलना. शेष वर्णन-गाथावती नदी के समान Page #735 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र ६५ ७०७ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ड- प्रावर्त विजय का स्थान शेष वर्णन-कच्छ विजय के समान नलिनकूट वक्षस्कार पर्वत का स्थान नलिनकूट व० प० की आयत और विस्तार की दिशा. शेष वर्णन-चित्रकूट पर्वत के समान नलिनकूट पर्वत के चार कूट ढ- मंगलावर्त विजय का स्थान मंगलावर्त देव शेष वर्णन कच्छ विजय के समान. ण- पुष्करावर्त विजय का स्थान पुष्करावर्त देव और उसकी स्थिति शेष वर्णन. कच्छ विजय के समान एक शैल वक्षस्कार पर्वत का स्थान एक शैल व०प० के चारकूट एक शैल देव और उसकी स्थिति त- पुष्कलावति विजय का स्थान पुष्कलावति विजय के आयत और विस्तार की दिशा. पुष्कलावती देव और उसकी स्थिति. शेष वर्णन-कच्छ विजय के समान. थ- सीतामुख वन का स्थान सीतामुख वन के आयत और विस्तार की दिशा सीता नदी के समीप सीतामुख वन का विष्कम्भ नीलवन्त वर्षधर पर्वत के समीप सीतामुख वन का विष्कम्भ पद्मवर वेदिका और वनखण्ड का वर्णन द- आठ राजधानियों के नाम ध- पाठ राजा न- सोलह विद्याधर श्रेणियां Page #736 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ७०८ वक्ष० ४ सूत्र ६६ 4- अभियोगिक श्रेणियां फ- सोलह वक्षस्कार पर्वत ब- बारह नदियाँ १६ क- सीतामुख वन (उत्तर) का स्थान ख- उत्तर के आठ विजय ग- उत्तर की अाठ राजधानियां घ- उत्तर के चार वक्षस्कार पर्वत ङ- उत्तर की तीन नदियां क- सोमनस वक्षस्कार पर्वत का स्थान ख- सोमनस व० प० के आयत और विस्तार की दिशा ग- निषध वर्षधर पर्वत के समीप सोमनस पर्वत का विष्कम्भ घ- व्यन्तर देवों का क्रीड़ा स्थल ङ- सोमनस देव और उसकी स्थिति च- सोमनस नाम शाश्वत छ- सोमनस वक्षस्कार पर्वत पर सातकूट ज- दो कूटों पर देवियां, शेष कूटों पर देवता झ- प्रत्येक देव की राजधानियां ज- देवकुरु का स्थान शेष वर्णन उत्तरकुरु के समान १८ क- चित्रकूट और विचित्रकूट पर्वत का स्थान ख- राजधानियां मेरु से दक्षिण में ग- शेष वर्णन यमक पर्वतों के समान क- निषधद्रह का स्थान ख- देवकुरु द्रह का स्थान ग- सूर्यद्रह का स्थान घ- सुलसद्रह का स्थान ङ- विद्य प्रभ द्रह का स्थान Page #737 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र १०३ ७०६ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची च- इन ग्रहों के देवों की राजधानियां मेरु से दक्षिण में ३०० क- कूटशाल्मलि पीठ का स्थान ख. देवकुरु देव और उसकी स्थिति ग- शेष वर्णन-जम्बूसुदर्शन पीठ के समान गरुड़ देव वर्णन पर्यन्त 10१ क- विद्य त्प्रभ वक्षस्कार पर्वत का स्थान ख- विद्युत्प्रभ देव और उसकी स्थिति ग- शेष वर्णन--माल्यवन्त पर्वत के समान घ- विद्य त्प्रभ वक्षस्कार पर्वत पर नो कूट ङ- दो कूटों पर देवियां, शेष कूटों पर देवता च- इनकी राजधानियाँ मेरु से दक्षिण में छ- विद्युत्प्रभ नाम होने का हेतु ज- विद्यत्प्रभ देव और उसकी स्थिति क- विद्युत्प्रभ नाम शाश्वत नाम १०२ क- दक्षिण-उत्तर के आठ विजय आठ राजधानियाँ वक्षस्कार पर्वत अन्तर नदियाँ कूटाकूट देव १०३ क- मेरु पर्वत का स्थान " की ऊँचाई के मूल का उद्वेध और विष्कम्भ के धरणितल का और ऊपर का विष्कम्भ " के भूल धरणितल और ऊपर की परिधि " की पद्मवर वेदिका और वनखण्ड " के ऊपर चार वन ग- , Page #738 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची वक्ष० ४ सूत्र १०६. ज- भद्रशाल वन का स्थान के आयत और विस्तार की दिशा के आठ विभाग का आयाम-विष्कम्भ की पद्मवर वेदिका और वनखण्ड के देवताओं का क्रीडा स्थल सिद्धायतन का आयाम-विष्कम्भ और ऊँचाई चार दिशाओं में चार सिद्धायतन सिद्धायतनों के द्वार, द्वारों की ऊँचाई और विष्कम्भ मणिपीठिका का आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य देवछन्दक वर्णन, जिनप्रतिमा वर्णन चार दिशाओं की नंदा पुष्करिणियों का वर्णन १०४ क- नंदन वन का स्थान " का चक्रवाल विष्कम्भ ग- " के अन्दर, बाहर का विष्कम्भ घ- नंदन वन में नवकूटों वर्णन ङ- शेष वर्णन भद्रशाल वन के समान १०५ क- सोमनस वन का स्थान " का चक्रवाल विष्कम्भ ग- " का अन्दर-बाहर का विष्कम्भ घ- इस वन में कूट नहीं है ङ.- शेष वर्णन नंदन वन के समान पंडक वन का स्थान ख- " का चक्रवाल विष्कम्भ " की परिधि घ- मेरु चूलिका का मध्य भाग १०६ Page #739 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र १०८ ङ - मेरु चूलिका की ऊँचाई च 37 के मूल का और ऊपर का विष्कम्भ छ के मूल की और ऊपर की परिधि ज - मेरु चूलिका के मध्य भाग में सिद्धायतन का वर्णन झ- चार दिशाओं में चार भवन का वर्णन ञ - शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के प्राशादावतंसकों का वर्णन 33 ङ - १०७ क पण्डक वन में चार अभिषेक शिला ख- पण्डुशिला का आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य पर दो सिंहासन ग घ के उत्तर के सिंहासन पर कच्छादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक पण्डुशिला के दक्षिण के सिंहासन पर कच्छादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक च - पण्डुकम्बल शिला का स्थान, आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य का एक सिंहासन पर भरत क्षेत्र के तीर्थकरों का अभिषेक छ 11 " " ७११ 21 ज- रक्तशिला का स्थान आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य पर दो सिंहासन झ ञ - के दक्षिण सिंहासन पर पक्ष्मादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक ट- रक्तशिला के उत्तर के सिंहासन पर वक्षादि विजयों के तीर्थंकरों का अभिषेक 13 "" जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ठ- रक्तकंबलशिला का स्थान, आयाम - विष्कम्भ और बाहल्य के एक सिंहासन पर ऐरावत क्षेत्र के तीर्थंकरों ड का अभिषेक १०८ क मेरु पर्वत के तीन काण्ड ख- प्रथम काण्ड चार प्रकार का Page #740 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ४ सूत्र १११ ७१२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ग- मध्यम काण्ड चार प्रकार का घ- उपरिम काण्ड एक प्रकार का ड- तीनों काण्डों का बाहल्य च- मेरु का परिमाण १०६ क- मेरु पर्वत के सोलह नाम ख- मेरु नाम का हेतु ग- मेरुदेव और उसकी स्थिति क- नीलवंत वर्षधर पर्वत का स्थान ख- नीलवंत व. प. के आयत और विस्तार की दिशा ग- शेष वर्णन निषध पर्वत के समान घ- नारिकान्ता नदी का वर्णन ङ- नीलवंत व. प. के नो कूट और केशरी ग्रह का वर्णन च- नीलवन्त नाम होने का हेतु छ- नीलवन्त शाश्वत नाम है क- रम्यकवर्ष का स्थान ख- शेष वर्णन हरिवर्ष के समान ग- गन्धावति वृत वैताढ्य पर्वत का स्थान घ. शेष वर्णन विकटापाति के समान ङ- रूक्मी वर्षधर पर्वत का स्थान, महापुण्डरीक द्रह. नरकान्ता नदी, रूप्यकुला नदी च- रूक्मी वर्षधर पर्वत पर पाठ कूट छ- रूक्मी व. प. नाम होने का हेतु शेष वर्णन महाहिमवन्त पर्वत के समान ज- हैरण्यवत वर्ष का स्थान हेमवत वर्ष के समान वर्णन झ- माल्यवन्त वृत्त वैताढ्य पर्वत का स्थान अ- शब्दापाती वृत्त वैताढ्य पर्वत के समान वर्णन । Page #741 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ११२ ११३ ७१३ ट- हैरण्य वर्ष नाम होने का हेतु हैरण्यवत देव और उसकी स्थिति ठ- शिखरी वर्षधर पर्वत का स्थान ड- पुण्डरीक ग्रह और सुवर्णकुला नदी द- शिखरी वर्षधर पर्वत के ग्यारह कूट ण - शिखरी देव और उसकी स्थिति त- शेष चुल्लीहमवन्त पर्वत के समान वर्णन थ - एरावत वर्ष का स्थान एरावत में चक्रवर्ती. एरावती देव, भरत के समान वर्णन पंचम जिन जन्माभिषेक वक्षस्कार जिन्म जन्माभिषेक के समय अधोलोक वासी आठ दिक्कुमारियों का आगमन जिन जन्माभिषेक के समय उर्ध्वलोक वासी आठ दिक्कुमारियों वक्ष० ५ सूत्र ११७ का आगमन ११४ क- पूर्व, दक्षिण, पश्चिम और उत्तर के रुचक पर्वतों पर रहने वाली आठ आठ दिवकुमारियों का आगमन ख- चार विदिशाओं के रुचक पर्वतों पर रहनेवाली चार दिक्कुमारियों का आगमन ग- मध्य रुचक पर्वत पर रहने वाली चार दिक्कुमारियों का आगमन दिशा कुमारियों के कर्त्तव्य घ- नाल कर्तन, तेलमर्दन, सुगंधित उबटन ङ - गंधोदक, पुष्पोदक और शुद्धोदक से स्नान च- अग्निहोम, रक्षापोटली, पाषाण गोलकों का ताड़न और आशी वचन, गीत गायन ११५ - ११० क- जिन भगवान के जन्म समय में शक्रेन्द्र का आगमन Page #742 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ११६ १२० १२१ १२२ ख- यान विमान का वर्णन ग- तीर्थंकर की माता को अवस्वापिनी निद्रा देना घ- पांच शकेन्द्र रूपों का विकुर्वण ङ - पंडक वन में अभिषेक शिलापर अभिषेक करना ११८ क ईशानेन्द्र आदि सभी इन्द्रों का मेरु पर्वत पर आगमन ख- यान विमान बनाने वाले दस देव ग- सुघोषा घण्टा, महाघोषा घण्टा, चमरेन्द्रों और ज्योतिष्केन्द्रों का मेरु पर्वत पर आगमन तीर्थोदक आदि से अभिषेक वाद्य, गीत, नृत्य आदि करके जन्मोत्सव मनाना अष्टमंगल, भगवद् वंदना, इन्द्र परिवार द्वारा अभिषेक, चार वृषभों की विकुर्वणा, वृषभ श्रृंगों से जलधारा का पातन और कुण्डल युगल का तीर्थंकर माता के समीप रखना तीर्थंकरों मेरु से जन्म भवन में लाना, कुण्डल युगल का तीर्थंकर माता के समीप रखना ख- तीर्थंकर के भवन में हिरण्य, सुवर्ण कोटी से भण्डार भरने के लिये शक्रेन्द्र का वैश्रमण को आदेश १२३ क - अभिषेक के पश्चात् क्षोम युगल और ७१४ वक्ष० ६ सूत्र १२५ ग- तीर्थंकर और तीर्थंकर माता का अनिष्ट न करने के लिये घोषणा, देवों द्वारा अष्टाह्नि का महोत्सव षष्ठ जम्बूद्वीपगत पदार्थ संग्रह वर्णन वक्षस्कार १२४ क - जम्बूद्वीप के प्रदेशों का लवण समुद्र से स्पर्श ख- लवण समुद्र के प्रदेशों से जम्बूद्वीप का स्पर्श ग- जम्बूद्वीप के जीवों का लवण समुद्र में जन्म घ- लवण समुद्र के जीवों का जम्बूद्वीप में जन्म १२५ क- जम्बूद्वीप मध्यवर्ती दस पदार्थ Page #743 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष ० ६ सूत्र १२५ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची 왼관 전원 본 원 원형 연퀴 원생은 위 우연언엇왼 위 역 왠 연 무 ख- जम्बूद्वीप के भरत प्रमाण खण्ड ग- जम्बूद्वीप के वर्ग योजन घ- , में वर्ष क्षेत्र में वर्षधर पर्वत में मेरु पर्वत में चित्रकूट में विचित्रकूट में यमक पर्ववत में कंचन पर्वत में वक्षस्कार पर्वत में दीर्घ वैताढ्य पर्वत में वैताढ्य पर्वत में वर्षधर कूट में वक्षस्कार कूट में वैताढ्य कूट में मंदर कूट में तीर्थ में विद्याधर श्रेणियाँ में अभियोग देव श्रेणियाँ में चक्रवर्ती विजय में राजधानियां में तमिस्रा गुफा में खण्ड प्रपात गुफा में कृतमाल देव में नृत्यमाल देव में ऋषभकूट में महाद्रह Page #744 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची श में क्षेत्रवाही महानदियां ष - में कुण्डवाही महानदियाँ स में नदियों की संयुक्त संख्या 13 ( १ ) जम्बूद्वीप के भरत - ऐरवत में चार महानदियां (२) (३) जम्बूद्वीप के हेमवत हैरण्यवत में चार महानदियां चार महानदियों का परिवार १२८ 19 "1 घ (४) ( ५ ) जम्बूद्वीप के हरिवर्ष रम्यक् वर्ष में चार महानदियां (६) चार महानदियों का परिवार ( ७ ) जम्बूद्वीप के महाविदेह में दो महानदियां (८) ( 2 ) जम्बूद्वीप में मेरु से दक्षिण में बहनेवाली नदियां (१०) उत्तर "J 17 31 33 23 "" 11 ( ११ ) जम्बूद्वीप में पूर्वाभिमुख बहने वाली नदियां (१२) पश्चिमाभिमुख 31 (१३) में बहने वाली नदियों की संयुक्त संख्या १२६ क- जम्बू द्वीप में चन्द्र ख सूर्य ग नक्षत्र तारा ७१६ 11 ، ܐ सप्तम ज्योतिष्क वर्णन वक्षस्कार चार महानदियों का परिवार १२७ क- जम्बूद्वीप में सूर्यमण्डल वक्ष० ७ सूत्र १२८ दोनों महानदियों का परिवार सूर्य-वर्णन पंचदस अधिकार " सूर्य मण्डलों की दूरी 11 ख ग- लवण समुद्र में सर्व आभ्यन्तर मण्डल से सर्व बाह्यमण्डल की दूरी Page #745 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ७ सूत्र १३३ ७१७ १२६ प्रत्येक सूर्य मण्डल की दूरी १३० प्रत्येक सूर्य मण्डल का आयाम - १३१ क- मेरु से प्रथम मण्डल की दूरी 11 ख- द्वितीय मण्डल की दूरी 11 ग- मेरु से प्रत्येक सूर्य मण्डल की दूरी अन्तिम सूर्यमण्डल की दूरी " घ ङ अन्तिम सूर्यमण्डल से दूसरे सूर्य मण्डल की दूरी तीसरे च 17 छ- अन्तिम सूर्य मण्डल से प्रत्येक सूर्य मण्डल की दूरी १३२ क- जम्बूद्वीप में प्रथम सूर्यमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि "1 27 ख द्वितीय ग तृतीय अन्तिम घ " ञ - जम्बूद्वीप के अंतिम से द्वितीय मण्डल की दूरी अन्तिम से तृतीय च छ- प्रत्येक सूर्यमण्डल का आयाम - विष्कम्भ-परिधि १३३ क - प्रथम सूर्यमण्डल में एक मुहर्त में सूर्य की गति और सूर्यदर्शन की दूरी का परिमाण 12 म - विष्कम्भ, परिधि और बाहल्य 17 "" 19 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची - " "> " 77 "" ख- द्वितीय ग- तृतीय "" घ- अन्तिम सूर्यमण्डल में एक मूहूर्त में सूर्य की गति और सूर्यदर्शन " 21 " की दूरी का परिमाण ङ - अन्तिम से द्वितीय में 21 च- अन्तिम सूयमण्डल से तृतीय सूर्य मण्डल में एक मुहूर्त में सूर्य की गति और सूर्य दर्शन का प्रमाण छ- प्रत्येक अयन, मण्डल में एक मुहूर्त में सूर्य की गति और सूर्य दर्शन की दूरी का प्रमाण Page #746 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ७१८ वक्ष० ७ सूत्र १४० १३४ क प्रथम सूर्य मण्डल में दिन-रात्रि का जघन्य-उत्कृष्ट पकिमाण ख- द्वितीय सूर्य मण्डल में दिन-रात्रि का जघन्य-उत्कृष्ट परिमाण ग- इस प्रकार प्रत्येक सूर्यमण्डल में दिन रात्रि का जघन्य-उत्कृष्ट दूरी का परिमाण अन्तिम सूर्य मण्डल में दिन-रात्रि का जघन्य-उत्कृष्ट परिमाण विपरीत क्रम से १३५ च- प्रथम सूर्य मण्डल में सूर्य के ताप क्षेत्र का संस्थान और अंध कार क्षेत्र का संस्थान ख- अन्तिम सूर्य मण्डल के ताप क्षेत्र का संस्थान और अन्धकार क्षेत्र का संस्थान १३६ क- जम्बूद्वीप में प्रातः, मध्यान्ह और सायंकाल में सूर्यदर्शन की प्रमाण १३७ क- जम्बूद्वीप में सूर्य वर्तमान क्षेत्र में गति करता है ख- जम्बूद्वीप में सूर्य वर्तमान क्षेत्र का स्पर्श करता है ग- आहारादि अधिकारों का कथन १३८ जम्बूद्वीप में सूर्य वर्तमान क्षेत्र में क्रिया करता है-यावत्-वर्तमान क्षेत्र का स्पर्श करता है। १३६ जम्बूद्वीप में सूर्य का उर्ध्व अधो और तिर्यक् ताप क्षेत्र १४० क- मानुषोत्तर पर्वत पर्यन्त ज्योतिषी देवों का उत्पत्ति स्थान ख- मानुषोत्तर पर्वत पर्यन्त ज्योतिषी देवों की मेरु प्रदक्षिण १४१ क- ज्योतिष्केन्द्रों के च्यवन-मरण के पश्चात्-सामानिक देवों द्वारा व्यवस्था ख- इन्द्र का जघन्य उत्कृष्ट उपपात-विरहकाल ग- मानुषोत्तर पर्वत के पश्चात् ज्योतिषी देवों का उत्पत्ति स्थान ताप क्षेत्र, गति अभाव घ. इन्द्र के अभाव में सामानिक देवों द्वारा व्यवस्था ङ- इन्द्र का जघन्य-उत्कृष्ट उपपात-विरहकाल Page #747 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ७ सूत्र १४६ १४२ क- सर्व चन्द्रमण्डल चन्द्र वर्णन सप्त अधिकार घ ङ - ख - जम्बूद्वीप में चन्द्रमण्डल ग- लवण समुद्र में चन्द्रमण्डल प्रथम चन्द्रमण्डल से अन्तिम चन्द्र मण्डल का अन्तर प्रत्येक चन्द्रमण्डल का अन्तर चन्द्रमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि १४३ १४४ १४५ १४६ क- मेरु से प्रथम चन्द्र मण्डल का अन्तर ख द्वितीय ग तृतीय अन्तिम अन्तिम से द्वितीय मण्डल का अन्तर अन्तिम से तृतीय " 17 17 33 13 ७१६ 11 "" जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची 17 च छ- प्रत्येक चन्द्रमण्डल का अन्तर - १४७ क- प्रथम चन्द्र मण्डल का आयाम विष्कम्भ और परिधि ख- द्वितीय चन्द्रमण्डल का आयाम विष्कम्भ और परिधि ग- तृतीय चन्द्रमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि घ- अन्तिम चन्द्रमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि ङ - अन्तिम से द्वितीय चन्द्रमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि च - अन्तिम से तृतीय चन्द्रमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि छ - इस प्रकार प्रत्येक चन्द्रमण्डल का आयाम - विष्कम्भ और परिधि १४८ क- प्रथम चन्द्रमण्डल में एक मुहूर्त में चन्द्र की गति ख- द्वितीय चन्द्रमण्डल में एक मुहूर्त में चन्द्रगति ग- तृतीय चन्द्रमण्डल में एक मूहूर्त में चन्द्र की गति वृद्धि ङ - अन्तिम चन्द्रमण्डल में एक मुहूर्त में चन्द्र की गति च - अन्तिम से द्वितीय चन्द्रमण्डल में एक मुहूर्त में चन्द्र की गति छ- अन्तिम से तृतीय से चन्द्रमण्डल में एक मुहूर्त में चन्द्र की गति Page #748 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ७२० वक्ष ७ सूत्र १४६ ज- इस प्रकार प्रत्येक चन्द्रमण्डल में एक मुहूर्त में चन्द्र की हीनगति नक्षत्र वर्णन सप्त अधिकार १४६ क- सर्व नक्षत्र मण्डल ख- जम्बू द्वीप में नक्षत्रमण्डल ग- लवण सन्द्र ऐ नक्षत्र-मण्डल घ- प्रथम और अन्तिम नक्षत्र-मण्डल का अन्तर ङ- प्रत्येक नक्षत्र-मण्डल का अन्तर च- नक्षत्र मण्डल का आयाम-विष्कम्भ और परिधि छ- मेरु पर्वत से प्रथम नक्षत्र मण्डल का अन्त र ज- मेरु पर्वत से अन्तिम नक्षत्र मण्डल का अन्तर झ- प्रथम नक्षत्र मण्डल का आयाम-विष्कम्भ और परिधि ज- अन्तिम नक्षत्र मण्डल का आयाम विष्कम्भ और परिधि ट- प्रथम मण्डल में एक मुहूर्त में नक्षत्र की गति ठ- अन्तिम मण्डल में एक मुहूर्त में नक्षत्र गति ड- चन्द्रमण्डलों के साथ नक्षत्र मण्डलों का योग ढ- एक मुहूर्त में मण्डल का अवगाहन ण- एक मुहूर्त में सूर्य द्वारा मण्डल का अवगाहन त- एक मुहर्त में नक्षत्रों द्वारा मण्डल का अवगाहन १५० क- जम्बूद्वीप में दो सूर्यों की उदय दिशायें ख. " दो चन्द्रों की " ग- शेष वर्णन भगवती श० ५ उद्देशक २ के समान घ- जम्बूद्वीप के चन्द्र-सूर्यों का कथन समाप्त संवत्सर के भेद-प्रभेद १५१ क- संवत्सर के भेद (१) नक्षत्र संवत्सर के बाहर भेद (२) युग संवत्सर के पांच भेद Page #749 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ७ सूत्र १५३ . ७२१ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची (२-१) चन्द्र संवत्सर के चौवीस पर्व (२-२) " " (२-३) " " छवीस पर्व (२-४) " " चौवीस " (२-४) " " छब्बीस " (३) प्रमाण संवत्सर के पांच भेद (४) लक्षण , पांच भेद (५) शनैश्चर संवत्सर के अट्ठावीस भेद मास १५२ क- प्रत्येक संवत्सर के बारह मास ख- लौकिक मासों के नाम ग- लोकोत्तर मासों के नाम पक्ष घ- मास के दो पक्ष ङ- एक पक्ष के पन्द्रह दिन च- पन्द्रह दिनों के नाम छ- पन्द्रह तिथियों के नाम ज- एक पक्ष की पन्द्रह रात्रियाँ झ- पन्द्रह रात्रियों के नाम ञ- पन्द्रह रात्रियों की तिथियों के नाम अहोरात्र ट- एक अहोरात्र के तीस मुहूर्त ठ- तीस मुहर्तों के नाम करण १५३ क- करण ग्यारह ख- चर, स्थिर करण ग- शुक्ल पक्ष के करण Page #750 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ७ सूत्र १५६ ७२२ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ट- " घ- कृष्ण पक्ष के करण १५४ क- आदि संवत्सर ख- आदि अयन ग- आदि ऋतु घ- आदि मास ङ- आदि पक्ष च- आदि अहोरात्र छ- आदि मुहूर्त ज- आदि करण भ- अतर्द नक्षत्र ब. पांच संवत्सर के युग के अयन के ऋतु के मास के पक्ष के अहोरात्र के मुहूर्त योग १५५ क- दश योग नक्षत्र ख- अठावीस नक्षत्र १५६ क- चन्द्र के साथ दक्षिण से योग करने वाले ६ नक्षत्र ख- चन्द्र के साथ उत्तर से योग करने वाले बारह नक्षत्र ग- चन्द्र के साथ दक्षिण और उत्तर से प्रमर्द योग करने वाले सात नक्षत्र घ- चन्द्र के साथ दक्षिण से प्रमर्द योग करने वाले दो नक्षत्र ङ- चन्द्र के साथ सदा प्रमर्द योग करने वाला एक नक्षत्र १५७ नक्षत्रों के देवता १५८ अठावीस नक्षत्रों के तारे १५६ क- अठावीस नक्षत्रों के गोत्र ख- अठावीस नक्षत्रों के संस्थान Page #751 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ७ सूत्र १६२ ७२३ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-सूची १६० क- चन्द्र के साथ अठावीस नक्षत्रों का योग काल ख- सूर्य के साथ अठावीस नक्षत्रों का योग काल १६१ क- नक्षत्रों के बारह कुल ख- नक्षत्रों के बारह उपकुल ग- नक्षत्रों के चार कुलोपकुल घ. बारह पूणिमायें ङ- बारह अमावस्याएँ च- बारह पूणिमाओं में नक्षत्रों का योग छ- " कुलों का योग उपकुलों का योग कुलोपकुलों का योग बारह अमावस्याओं में नक्षत्रों का योग कुलों का योग उपकुलों का योग कुलोपकुलों का योग ढ- ६ पूर्णिमा और ६ अमावस्या के नक्षत्र पौरुषी प्रमाण १६२ क- वर्षा ऋतु के प्रथम मास को पूर्ण करने वाले चार नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण ख- वर्षा ऋतु का द्वितीय मास पूर्ण करने वाले चार नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण ग- वर्षा ऋतु का तृतीय मास पूर्ण करने वाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण घ- वर्षा ऋतु का चतुर्थमास पूर्ण करने वाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण ङ- हेमन्त ऋतु का प्रथम मास पूर्ण करने वाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण 4 oct Page #752 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ७२४ वक्ष० ७ सूत्र १६४ च- हेमन्त ऋतु का द्वितीय मास पूर्ण करने वाले चार नक्षत्र प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण छ- हेमन्त ऋतु का तृतीय मास पूर्ण करनेवाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण । ज- हेमन्त ऋतु का चतुर्थ मास पूर्ण करने वाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण झ- ग्रीष्म ऋतु का प्रथम मास पूर्ण करने वाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण अ- ग्रीष्म ऋतु का द्वितीय मास पूर्ण करने वाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण ट- ग्रीष्म ऋतु का तृतीय मास पूर्ण करने वाले चार नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण ठ- ग्रीष्म ऋतु का चतुर्थमास पूर्ण करने वाले तीन नक्षत्र-प्रत्येक नक्षत्र के दिन तथा पौरुषी प्रमाण सोलह अधिकार ड. चन्द्र-सूर्य के नीचे तारागण ढ- " सम " ण- " ऊपर " त- नीचे, सम और ऊपर होने का कारण १६३ एक चन्द्र का परिवार १६४ क- मेरु पर्वत से ज्योतिषचक्र का अन्तर ख- लोकान्तसे ज्योतिषचक्र का अन्तर ग- धरणीतल से ताराओं का अन्तर घ- धरणीतल से सूर्य का अन्तर ङ- " चन्द्र का " च- " सर्वोपरि तारेका " छ- सूर्य विमान से चन्द्र विमान का अन्तर Page #753 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची ७२५ ज- सूर्य विमान से सर्वोपरि तारे का अन्तर - चन्द्र विमान से सर्वोपरि तारे का अन्तर १६५ क- मण्डल में गति करनेवाले नक्षत्र ख- मण्डल से बाहर गति करने वाले नक्षत्र ग- मण्डल से नीचे नक्षत्र घ- मण्डल से ऊपर नक्षत्र ङ - चन्द्र विमान का आयाम - विष्कम्भ च - सूर्य विमान का छ- ग्रह विमान का ज - नक्षत्र विमान का भ- तारा विमान का 33 "3 17 "" 11 17 १६६ क- पूर्व दक्षिण पश्चिम और उत्तर दिशा में चन्द्र विमान का वहन करने वाले देव ख- सूर्य विमान का वहन करनेवाले देव ग- ग्रह विमान का वहन करनेवाले देव घ- नक्षत्र विमान का वहन करनेवाले देव ङ - तारा विमान का वहन करनेवाले देव वक्ष० ७ सूत्र १७० १६७ ज्योतिषी देवों की शीघ्र गति १६८ ज्योतिषी देवों में अल्प ऋद्धि वाले और महान् ऋद्धि वाले १६६ जम्बूद्वीप में एक तारे से दूसरे तार का जघन्य - उत्कृष्ट अन्तर १७० क- चन्द्र की चार अग्र महीषियाँ ख- प्रत्येक अग्र महीषी का परिवार ग- प्रत्येक अग्रमहोषी की वैक्रिय शक्ति घ- चन्द्र का चन्द्र विमान में मैथुन सेवन न करने का कारण ङ- प्रत्येक ग्रह की चार-चार अग्रमहीषियां च - प्रत्येक अग्रमहिषी का परिवार Page #754 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति-सूची ७२६ वक्ष० ७ सूत्र १७४ छ- चन्द्र विमान में देवों की स्थिति ज- " देवियों की " झ- सूर्य विमान में देवों की स्थिति अ- " देवियों की " ट- ग्रह विमानों में देवों की स्थिति ठ- " देवियों की स्थिति ड- नक्षत्र विमान में देवों की स्थिति ढ- " देवियों की स्थिति ण- तारा विमान में देवों की स्थिति त- " देवियों की स्थिति १७१ नक्षत्र-स्वामियों के नाम ज्योतिषी देवों का अल्प-बहुत्व क- जम्बूद्वीप में जघन्य उत्कृष्ट तीर्थंक र चक्रवर्ती बलदेव वासुदेव जघन्य-द्वीप में जघन्य-उत्कृष्ट निधि निधियों का परिभोग पंचेन्द्रिय रत्न पंचेद्रिय रत्न का परिभोग जम्बूद्वीप में जघन्य उत्कृष्ट एकेन्द्रिय रत्न " एकेन्द्रिय रत्नों का परिभोग जम्बूद्वीप का आयाम-विष्कम्भ " की परिधि ग- " का उद्वेध " की ऊँचाई " का पूर्ण परिमाण Page #755 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वक्ष० ७ सूत्र ९७८ ७२७ १७५ क - जम्बूद्वीप के शास्वत, अशास्वत कथन की अपेक्षा जम्बूद्वीप की नित्य अवस्थिति ख जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूची १७६ क- जम्बूद्वीप का पृथ्वी आदि में परिणमन ख- जम्बूद्वीप में सर्व जीवों की पाँच स्थावर कायों में अनन्तवार उत्पत्ति १७७ १७८ जम्बूद्वीप नाम होने का हेतु उपसंहार- - मिथिला नगरी के मणिभद्र चैत्य में चतुविध संघ और देव-देवियों की समक्ष भ० महावीर द्वारा जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति का प्रतिपादन Page #756 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #757 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो णिग्गंथाणं गणितानुयोगमय चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति अध्ययन ນ प्रामृत २०२० प्राभृत प्राभृत उपलब्ध मूल पाठ उपलब्ध मूल पाठ गद्य-सूत्र ३१३१ २२०० श्लोक परिमाण २२०० श्लोक परिमाण १०८१०८ पद्य-गाथा १०३।१०३ Page #758 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #759 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणितानुयोगमय चन्द्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्ति प्रथम-प्राभृत प्रथम प्राभूत-प्राभूत १ क- अरिहंत वंदना ख- मिथिला वर्णन, मणिभद्र चैत्य वर्णन, जितशत्रु, राजा वर्णन, धारणी वर्णन ग- भ० महावीर का समवसरण, धर्मकथा २. इन्द्रभूति गौतम की जिज्ञासा वीस प्राभूतों का विषय निर्देश ४. प्रथम प्राभूत के आठ प्राभूत-प्राभूतों का विषय निर्देश प्रथम प्राभृत में अन्य प्रतिपत्तियाँ द्वितीय-तृतीय प्राभृत में अन्य प्रतिपत्तियाँ दसवें प्राभृत में अन्य प्रतिपत्तियाँ नक्षत्र मास सूर्यमास चन्द्रमास और ऋतुमास के मुहूर्तों की वृद्धि. ६. प्रथम से अन्तिम और अन्तिम से प्रथम मण्डल पर्यन्त सूर्य की गति का काल. प्रथम और अन्तिम मण्डल में सूर्य की एक बार और शेष मण्डलों सूर्य की दो वार गति. आदित्य संवत्सर में अहोरात्र के जघन्य उत्कृष्ट मुहूर्त. अहोरात्र के मुहूर्तों की हानि वृद्धि का हेतु द्वितीय प्राभूत प्राभूत १२-१३ आदित्य संवत्सर के दक्षिणायन और उत्तरायण में अहोरात्र के Page #760 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४. प्राभृत १ सूत्र २० ७३२ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची जघन्य उत्कृष्ट मुहूर्त. अहोरात्र के मुहूर्तों की हानि वृद्धि का हेतु तृतीय प्राभृत-प्राभूत भरत और ऐरवत क्षेत्र के सूर्य का उद्योत क्षेत्र. चतुर्थ प्राभूत-प्राभृत १५ क- आदित्य संवत्सर के दोनों अयनों में प्रथम से अन्तिम और अन्तिम से प्रथम पर्यन्त एक सूर्य की गति का अन्तर ख- अन्तर के सम्बन्ध में ६ अन्य प्रतिपत्तियाँ-मान्यताएँ ग- स्व मान्यता का सहेतुक समर्थन पंचम प्राभूत-प्राभूत १६-१७ क- प्रथम से अन्तिम और अन्तिम से प्रथम मण्डल पर्यंत सूर्य द्वारा द्वीप-समुद्रों के अवगाहन के सम्बन्ध में पांच अन्य प्रति पत्तियाँ ख- स्व मान्यता का कथन. षष्ठ प्राभूत-प्राभूत १८ क- आदित्य संवत्सर के दिन में---एक अहोरात्र में (प्रत्येक मण्डल में) सूर्य द्वारा स्पर्शित क्षेत्र के सम्बन्ध में अन्य सात प्रति प्रत्तियाँ ख- स्वमत समर्थन. सप्तम प्राभूत-प्राभृत १६ क- सूर्य मण्डलों के संस्थान के सम्बन्ध में अन्य आठ प्रतिपत्तियाँ स्व मान्यता का निरूपण अष्टम प्राभृत-प्राभृत २० क- सूर्यमण्डलों के आयाम-विष्कम्भ और बाहल्य के सम्बन्ध में अन्य तीन प्रतिपत्तियाँ Page #761 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राभृत ४ सूत्र २२ सूर्यप्रज्ञप्ति सूची ख- आदित्य संवत्सर के प्रत्येक अयन में प्रत्येक मण्डल के आयाम विष्कम्भ और बाहुल्य की भिन्नता से अहोरात्र के मुहूर्तों की हानि वृद्धि. २१ क २२. ७३३ द्वितीय-प्राभृत प्रथम प्राभृत प्राभृत सूर्य की तिरछी गति के सम्बन्ध में अन्य आठ प्रतिपत्तियाँ स्वमत का स्पष्टीकरण द्वितीय प्रभूत प्राभूत सूर्य का एक मण्डल से दूसरे मण्डल में संक्रमण इस सम्बन्ध में सम्बन्ध में अन्य दो प्रतिप्रत्तियाँ तृतीय- प्राभृत-प्राभृत २३ क- एक मुहूर्त में सूर्य की गति का परिमाण इस सम्बन्ध में अन्य चार प्रतिपत्तियाँ ख- स्व मान्यता का विशद समर्थन तृतीय प्राभृत २४ क सूर्य का ताप क्षेत्र और चन्द्र का उद्योत क्षेत्र इस विषय में अन्य बारह प्रतिपत्तियां ख- स्वमत निरूपण चतुर्थ प्राभृत २५ क - चंद्र और सूर्य का संस्थान दो प्रकार का ख- विमान-संस्थान और प्रकाशित क्षेत्र का संस्थान ग- दोनों प्रकार के संस्थानों के सम्बन्ध में अन्य सोलह प्रतिपत्तियाँ घ- स्वमत से प्रत्येक मण्डल में उद्योत और ताप क्षेत्र का संस्थान तथा अन्धकार क्षेत्र के संस्थान का निरूपण Page #762 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ७३४ प्राभृत ८ सूत्र २६ ङ- सूर्य के उर्ध्व व अघो एवं तिर्यक् ताप क्षेत्र का परिमाण पंचम प्राभृत २६ क- सूर्य की लेश्या-ताप का प्रतिघातक इस विषय में अन्य वीस प्रतिप्रत्तियाँ ख- स्वमत का प्रतिपादन षष्ठ प्राभत २७ क. सूर्य की ओज संस्थिति-संबन्ध में अन्य पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ख- अवगाहित मण्डल की अपेक्षा अवस्थित और अनवगाहित मण्डल की अपेक्षा अनवस्थित ओज संस्थिति-इस प्रकार स्वमत सापेक्ष कथन सप्तम प्राभृत २८ क- सूर्य से प्रकाशित स्थूल और सूक्ष्म पदार्थ इस विषय में अन्य वीस प्रतिपत्तियाँ ख- स्व पक्ष प्रतिपादन अष्टम प्राभूत २६ क- सूर्य की उदयदिशा के सम्बन्ध में अन्य तीन प्रतिपत्तियां ख- स्वमत में—भिन्न भिन्न क्षेत्रों की अपेक्षा सूर्योदय की भिन्न भिन्न दिशाओं का कथन ग- दक्षिणायन और उत्तरायण में सूर्य की उदय दिशा तथा जघन्य उत्कृष्ट अहोरात्र का परिमाण घ. जम्बूद्वीप के दक्षिणार्ध और उत्तरार्ध में ऋतु अयन आदि का कथन ङ- जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से पूर्व-पश्चिम में जिस समय दिन है उस समय दक्षिण उत्तर में रात्रि है Page #763 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राभृत १० सूत्र ३४ ७३५ सूर्य प्रज्ञप्ति सूची च - लवण समुद्र के दक्षिण उत्तर में जिस समय दिन है उस समय पूर्व-पश्चिम में रात्रि है छ- भिन्न भिन्न क्षेत्रों की अपेक्षा उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल का कथन ज- धातकी खण्ड में दिन-रात्रि तथा उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी झ - कालोद में लवणोद के समान ञ - पुष्करार्ध में दिन रात्रि तथा उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी नवम पौरुषी छायाप्रमाण प्राभृत ३० क- पौरुषी छाया का मूल कारण इस विषय में अन्य तीन प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत का सम्यक् प्रतिपादन ३१ क- सूर्य से पौरुषी छाया के मूल विभाग इस विषय में अन्य पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ३३ ३४ ख- स्वमत का सम्यक् निरूपण ग- दिन के विभागों के अनुसार पौरुषी छाया इस विषय में अन्य छियानवे प्रतिपत्तियाँ घ- स्वमत का सम्यक् समर्थन ङ. पच्चीस प्रकार की छाया दशम प्राभृत प्रथम प्राभृत-प्राभृत ३२ क- चन्द्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग, अन्य पाँच प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत कथन द्वितीय प्राभृत-प्राभृत चंद्र के साथ योग करने वाले नक्षत्रों का मुहूर्त परिमाण सूर्य के साथ योग करने वाले नक्षत्रों का मुहूर्त परिमाण Page #764 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ७३६ प्राभृत १० सूत्र ४४ तृतीय प्राभृत-प्राभूत पूर्व भाग पश्चिम भाग और उभयभाग से चन्द्र के साथ योग करने वाला नक्षत्र चतुर्थ प्राभूत-प्राभूत युग के प्रारम्भ में योग करने वाले नक्षत्रों का पूर्वादि विभाग पंचम प्राभृत-प्राभूत नक्षत्रों के कुल, उपकुल और कुलोपकुल षष्ठ प्राभत-प्राभत । ३८ क- बारह पूर्णिमाओं में नक्षत्रों का योग ख. बारह अमावस्याओं में नक्षत्रों का योग ३६ क- बारह पूर्णिमाओं में नक्षत्रों का कुल, उपकुल और कुलोपकुल ख- बारह अमावास्याओं में नक्षत्रों का कुल , उपकुल और कुलोपकुल सप्तम प्राभूत-प्राभूत समान नक्षत्रों के योगवाली पूर्णिमा और अमावस्यायें अष्टम प्राभत-प्राभूत नक्षत्रों के संस्थान नवम प्राभूत-प्राभृत नक्षत्रों के तारे दशमाँ प्राभृत-प्राभृत वर्षा, हेमन्त और ग्रीष्म ऋतुओं में मासक्रम से नक्षत्रों का योग तथा पौरुषी प्रमाण इग्यारहवाँ प्राभृत-प्राभूत ४४ दक्षिण, उत्तर और उभयमार्ग से चन्द्र के साथ योगकरने वाले नक्षत्र Page #765 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राभृत १० सूत्र ५३ ४५ क- नक्षत्र रहित चन्द्र मण्डल ४६ ४७ ५० ख- सूर्य-चन्द्र के समान चन्द्र मण्डल ग- सूर्य रहित चन्द्र मण्डल ४८ क पन्द्रह दिनों के नाम ख- पन्द्रह रात्रियों के नाम ५१ ७३७ बारहवाँ प्राभूत-प्राभृत नक्षत्रों के देवता तेरहवाँ प्राभृत-प्राभृत तीस मुहूर्ती के नाम चौदहवाँ प्राभृत-प्राभृत पन्द्रहवाँ प्राभृत-प्राभृत ४६ क पन्द्रह दिवस तिथियों के नाम ख- पन्द्रह रात्रि तिथियों के नाम सोलहवाँ प्राभृत-प्राभृत नक्षत्रों के गोत्र सत्तरहवाँ प्राभृत-प्राभृत नक्षत्रों में भोजन का विधान अठारहवाँ प्राभृत-प्राभृत ५२ क- एक युग में चन्द्र के साथ नक्षत्रों का योग ख- एक युग में सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग उन्नीसवाँ प्राभृत-प्राभृत ५३ क - एक संवत्सर के मास ख- लौकिक मासों के नाम ग- लोकोत्तर मासों के नाम सूर्य प्रज्ञप्ति सूची Page #766 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राभृत १० सूत्र ६७ ७३८ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची बीसवाँ प्राभृत-प्राभूत ५४ पाँच प्रकार के संवत्सर ५५ नक्षत्र संवत्सर के मास ५६ क- पाँच प्रकार का युग संवत्सर ख- चन्द्रादि पाँच संवत्सर के पर्व ५७ पाँच प्रकार का प्रमाण संवत्सर ५८ क- पाँच प्रकार का लक्षण संवत्सर ख- पाँच प्रकार का नक्षत्र संवत्सर ग- अठावीस प्रकार का शनैश्चर संवत्सर इकवीसवाँ प्राभूत-प्राभूत ५६ क- नक्षत्रों के द्वार, अन्य पाँच प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत निरूपण बावीसवाँ प्राभूत-प्राभूत ६० क- दो चन्द्र और दो सूर्य के साथ योग करनेवाले नक्षत्रों का मुहूर्त परिमाण नक्षत्रों का सीमा विष्कम्भ प्रातः सायं और उभयकाल में चंद्र के साथ योग करने वाले नक्षत्र पांच संवत्सर के एक युग की बासठ पूणिमा और बासठ अमावस्याओं में चन्द्र-सूर्य का मण्डल विभागों में संक्रमण पाँच संवत्सर की पूर्णिमाओं में सूर्य का मण्डल विभागों में संक्रमण पाँच संवत्सर की अमावस्याओं में चन्द्र का मण्डल विभागों में संक्रमण पाँच संवत्सर की अमावस्याओं में सूर्य का मण्डल विभागों में संक्रमण पाँच संवत्सर की पूर्णिमाओं में चन्द्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग ६ ६७ Page #767 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राभृत १३ सूत्र ७६ ७३६ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ६८ पाँच संवत्सर की अमावस्याओं चन्द्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग ७१ जिस क्षेत्र में चंद्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग हो उसी क्षेत्र में पुन: चंद्र-सूर्य के साथ नक्षत्रों का योग हो तो उस काल का परिमाण ७० क- दोनों चंद्र समान नक्षत्र के साथ योग करते हैं ख- दोनों सूर्य समान नक्षत्र के साथ योग करते हैं ग- इसी प्रकार महादि का योग इग्यारहवाँ प्रामृत पाँच संवत्सरों का आदि अन्त और नक्षत्रों का योग बारहवाँ प्राभृत पाँच संवत्सरों के मुहूर्त पाँच संवत्सरों के दिन-रात पाँच संवत्सरों का आदि और अन्त ७५ क- छ ऋतुओं का प्रमाण ख- छ क्षय तिथियाँ ग- छ अधिक तिथियाँ ७६ क. एक युग में सूर्य और चन्द्र की आवृत्तियाँ ख- प्रत्येक आवृत्ति का परिमाण ७७ पाँव संवत्सरों में सूर्य और चन्द्र की आवृत्ति के समय नक्षत्रों का योग-तथा योग काल ७८ . पाँच प्रकार के योग । ख. पाँच योगों का क्षेत्र निर्देश तेरहवाँ प्राभृत ७६ कृष्ण और शुक्ल पक्ष में चन्द्र की हानि-वृद्धि Page #768 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४० ८ ८२ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची प्राभृत १७ सूत्र ८८ ८० बासठ पूर्णिमा और बासठ अमावस्याओं में चन्द्र-सूर्यों के साथ राहु का योग प्रत्येक अयन में चन्द्र की मण्डल गति चौदहवाँ प्राभृत कृष्ण और शुक्ल पक्ष में चन्द्रिका और अंधकार का प्रमाण पन्द्रहवाँ प्राभृत चन्द्रादि ज्योतिषी देवों की गति चन्द्रादि ज्योतिषी देवों की एक मुहूर्त में गति ८५ क- नक्षत्रमास में चन्द्र सूर्य ग्रहादि की मण्डल गति ख- चन्द्रमास में चन्द्र सूर्य ग्रहादि की मण्डल गति ग- ऋतु मास में , घ- आदित्य मास में , ङ- अभिवधितमास में ,, ८६ क- चन्द्र सूर्य ग्रहादि की एक अहोरात्र में मण्डल गति ख- चन्द्र सूर्य ग्रहादि की एक युग में मण्डल गति सोलहवाँ प्रामृत ८७ क- चन्द्रिका के पर्याय ख- आतप के , ग- अन्धकार के ,, सत्तरहवाँ प्राभृत ८८ क- चन्द्र-सूर्य का च्यवन-मरण ख- , का उपपात-जन्म ___इस विषय में अन्य पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ग- स्वमत का प्रतिपादन Page #769 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची ७४१ प्राभृत १८ सूत्र ६७ अठारहवाँ प्राभृत ८६ क- भूमि से चन्द्र सूर्यादि की ऊँचाई का परिमाण । इस सम्बन्ध में अन्य पच्चीस प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत का यथार्थ प्रतिपादन ग- ज्योतिषी देवों की एक-दूसरे से दूरी का अन्तर ६० क- चन्द्र सूर्य के विमान के नीचे ऊपर और सम विभाग में ताराओं के विमान ख- नीचे, ऊपर और समविभाग में ताराविमानों के होने का हेतु ६१ एक चन्द्र का ग्रह, नक्षत्र और ताराओं का परिवार ६२ क- मेरु पर्वत से ज्योतिषचक्र का अन्तर ख- लोकान्त से ज्योतिषचक्र का अन्तर जम्बुद्वीप में सर्वाभ्यन्तर, सर्वबाह्य, सर्वोपरि और सबसे नीचे चलने वाले नक्षत्र ६४ क- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं के विमानों के संस्थान ख- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और ताराओं के विमानों का आयाम विष्कम्भ और बाहल्य ग- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा विमानों का वहन करनेवाले देवों की संख्या और उनका दिशाक्रम से रूप घ- पाँच ज्योतिष्क देवों में शीघ्र या मन्द गति __ङ- पाँच ज्योतिष्क देवों का गति की अपेक्षा से अल्प-बहुत्व जम्बूद्वीप में एक तारा विमान से दूसरे तारा विमान का जघन्य उत्कृष्ट अन्तर ६६ क- चन्द्र की अग्रमहीषियाँ, प्रत्येक अग्रमहीषी का परिवार प्रत्येक अग्रमहीषी की विकुर्वणा शक्ति, चन्द्रावतंसक विमान की सुधर्मा सभा में जिन अस्थियों का सम्मान ख- सूर्य की अग्रमहीषियाँ आदि चन्द्र वर्णन के समान ६७ क- ज्योतिषी देव-देवियों की जघन्य- उत्कृष्ट स्थिति Page #770 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राभृत १६ सूत्र १०३ ६८ ७४२ ख- चन्द्र - विमान के ग. सूर्यं विमान के घ- ग्रह विमान के देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति च - तारा विमान के देव - देवियों की जघन्य - उत्कृष्ट स्थिति पाँच ज्योतिषी देवों का अल्प- बहुत्व उन्नीसवाँ प्राभृत ६६ क- चन्द्र-सूर्य सारे लोक को प्रकाशित करते हैं या लोक के विभाग को इस सम्बन्ध में अन्य बारह प्रतिप्रत्तियाँ निरूपण सूर्यप्रज्ञप्ति सूची - ख- स्वमत का सम्यक् ग- लवण समुद्र का संस्थान, आयाम विष्कम्भ और परिधि घ- लवण समुद्र में चन्द्र-सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारे ङ - धातकी खण्ड का संस्थान, आयाम, विष्कम्भ, और परिधि च - धातकी खण्ड में चन्द्र सूर्य ग्रह नक्षत्र और तारे छ- कालोद का संस्थान, आयाम, विष्कम्भ और परिधि ज- कालोद में चन्द्र-सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे भ- पुष्कर द्वीप का संस्थान आयाम - विष्कम्भ और परिधि ञ - पुष्कर द्वीप में चन्द्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र और तारे ट- पुष्करार्ध का संस्थान, आयाम, विष्कम्भ और परिधि ठ- पुष्करार्ध में, चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे ड- मनुष्य क्षेत्र के चन्द्र आदि की उत्पत्ति और गति ढ - इन्द्र के अभाव में व्यवस्था, इन्द्र का जघन्य उत्कृष्ट विरह काल ण - मनुष्य क्षेत्र के बाहर चन्द्र आदि की उत्पत्ति और गति त - ढके समान १००.१०३ पुष्करोद का संस्थान, आयाम - विष्कम्भ और परिधि ख- पुष्करोद में चन्द्रादि ग- स्वयम्भूरमण पर्यन्त द्वीप समुद्रों का आयाम - विष्कम्भ और परिधि Page #771 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राभृत २० सूत्र १०८ ७४३ सूर्यप्रज्ञप्ति-सूची घ- स्वयम्भूरमण पर्यन्त चन्द्रादि बीसवाँ प्राभूत १०४ क- चन्द्रादि का स्वरूप अन्य दो प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत प्रतिपादन क- राहु का वर्णन अन्य दो प्रतिपत्तियाँ ख- स्वमत का विस्तार से कथन ग- दो प्रकार के राहू घ- राहु का जघन्य-उत्कृष्ट काल १०६ क- चन्द्र को शशि कहने का हेतु ख- सूर्य को आदित्य कहने का हेतु १०७ क- चन्द्र की अग्रमहीषियाँ आदि सूत्र-६७ के समान ख- सूर्य की अग्रमहीषियाँ आदि सूत्र-६७ के समान ग- चन्द्र-सूर्य के काम भोगों की मानव भोगों से तुलना १०८ क- अस्सी ग्रहों के नाम ख- उपसंहार ग- चन्द्र-सूर्य प्रज्ञप्ति के पात्र-अपात्र घ- वीर वंदना Page #772 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #773 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो सव्वोसहिपत्ताणं धर्मकथानुयोगमय निरयावलिकादि पाँच उपाँग १ श्रुत स्कंध अध्ययन वर्ग ५ ११०० श्लोक प्रमाण मूल पाठ Page #774 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #775 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरयावलिकादि पाँच उपांग-विषय सूची प्रथम निरयावलिका वर्ग प्रथम काल अध्ययन १ क- उत्थानिका - राजगृह-गुणशील चैत्य - अशोक वृक्ष ख- आर्य सुधर्मा का समवसरण, धर्मकथा ग- भ० जम्बू की जिज्ञासा उपाङ्गों के सम्बन्ध में भ० महावीर का कथन घ- उपाङ्गों के पांच वर्ग ङ- प्रथम वर्ग के दस अध्ययन च- प्रथम अध्ययन का वर्णन छ- चम्पा नगरी. पूर्ण भद्र चैत्य, श्रेणिक, चेलणा कूणिक राजा. पदमावती देवी. ज- कालीदेवी का पुत्र काल कुमार झ- काल कुमार का रथ मुशल संग्राम में युद्धार्थ गमन ब- काल कुमार के सम्बन्ध में काली देवी के संकल्प ट- भ० महावीर का समवसरण, धर्मदेशना ठ- कालीदेवी की काल कुमार के सम्बन्ध में जिज्ञासा ड- भ० महावीर का समाधान ढ- चेड़ा राजा के बाण प्रहार से काल कुमार की मृत्यु - शोकविह्वल कालीदेवी का स्व-स्थान गमन त- भ० गौतम की जिज्ञासा कालकुमार की मृत्यु के पश्चात् गति ? थ - भ० महावीर द्वारा समाधान Page #776 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरया०-सूची ७४८ द- काल कुमार का चौथी नरक में गमन ध- गमन का हेतु ? न- चेलणा का दोहद प- अभयकुमार द्वारा दोहद की पूर्ति फ - चेलणा का गर्भपात के लिए प्रयत्न ब- पुत्र जन्म, उकरड़ी पर शिशु को डलवाना, शिशु की उंगली पर मुर्गे की चोंच का प्रहार, श्रेणिक द्वारा शिशु को उकरडी से मंगवाना. शिशु की अंगुली का पकना. अंगुली की चिकित्सा भ - कूणिक नाम देना, पालन-पोषण, शिक्षा, विवाह म- कूणिक का श्रेणिक को बन्दी बनाने का तथा अपने राज्या भिषेक का संकल्प वगं १ अ० १ - काल आदि दस भ्राताओं को राज्य विभाग देने का प्रलोभन र- श्रेणिक को बन्दी बनाना - कूणिक का राज्याभिषेक ल - चेलना का कुणिक को पूर्व वृत्तान्त सुनाना व- श्रेणिक को बन्धन मुक्त करने के लिये जाना श- श्रेणिक का तालपुट विष से आत्मघात ष - अंतपुर सहित बहुलकुमार और सेचनक गंध हस्ती की जल क्रीड़ा से पद्मावती को ईर्ष्या स- पद्मावती की प्रेरणा से हार हाथी लौटाने की बहल से कूणिक की मांग ह - बेहल का विदेह जनपद को वैशाली राजधानी में राजा चेटक से संरक्षण चाहना चेटक और कूणिक का युद्ध काल आदि का कूणिक को सहयोग काल कुमार की मृत्यु, चतुर्थ नरक में उत्पत्ति नरक से उद्वर्तन के पश्चात् महाविदेह में जन्म, वैराग्यप्रव्रज्या, साधना और शिवपद Page #777 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग ३ अ० १ ७४६ निरया० सूची द्वितीय सुकाल अध्ययन काल के समान सुकाल का वर्णन तृतीय से दशम अध्ययन पर्यन्त शेष आट राजकुमारों का कालकुमार के समान वर्णन द्वितीय कल्पावतंसिका वर्ग प्रथम पद्म अध्ययन १ क- उत्थानिका दस अध्ययनों के नाम ख- प्रथम अध्ययन का वर्णन ग- काल कुमार की रानी पद्मावती के सुपुत्र पद्म कुमार की भ० महावीर के समीप अणगार प्रव्रज्या घ- रत्नत्रय की साधना ङ- सौधर्म के चंद्रिम विमान में उत्पति च- देवलोक से च्यवन, महाविदेह में जन्म, वैराग्य साधना, शिवपद द्वितीय से दशम अध्ययन पर्यन्त क- शेष नो का पद्म के समान वर्णन ख- शेष नो की दीक्षा पर्याय ग- क्रम से उपर के देवलोकों में उत्पत्ति घ- सबका महाविदेह में जन्म और निर्वाण तृतीय पुष्पिका वर्ग प्रथम चन्द्र अध्ययन १ क- उत्थानिका-दश अध्ययनों के नाम ख- प्रथम अध्ययन-राजगृह-गुणशील चैत्य-श्रेणिक राजा ग- भ० महावीर का पदार्पण, धर्म परिषद, प्रवचन घ- ज्योतिष्केन्द्र चन्द्र का जम्बूद्वीप अवलोकन ङ- भ० महावीर के दर्शनार्थ आगमन, नृत्य, दर्शन, स्वस्थान गमन Page #778 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरया० सूची ७५० वर्ग ३ अ०३ च. भ० गोतम की चन्द्र के पूर्व भव सम्बन्धी जिज्ञासा छ- भ० महावीर द्वारा समाधान, पूर्वभव वर्णन ज- श्रावस्ती नगरी, कोष्ठक चैत्य झ- अंगती नाम गाथापती का वर्णन अ- भ. पार्श्वनाथ का पदार्पण-धर्म कथा ट- अंगती का धर्म श्रवण, वैराग्य, ज्येष्ठ पुत्र को गृहभार सौंपना अनगार प्रव्रज्या, सयंम साधना, श्रामण्य-विराधना, चन्द्रा वतंसक विमान में उपपात ठ- चन्द्र की स्थिति, च्यवन, महाविदेह में जन्म, वैराग्य, संयम साधना, अंतिम आराधना निर्वाण द्वितीय सूर्य अध्ययन १ क- उत्थानिका-शेष वर्णन चन्द्र अध्ययन के समान ख- विशेष सूर्य का पूर्व भव वर्णन, श्रावस्ती नगर, सुप्रतिष्ठ गाथा पति, भ० पाश्वनाथ के समीप अनगार प्रव्रज्या, श्रामण्यविराधना, सूर्यावतंसक विमान में उपपात और च्यवन ग- महाविदेह में जन्म और निर्वाण तृतीय शुम्भ अध्ययन १ क- उत्थानिका-शेष वर्णन चन्द्र अध्ययन के समान ख- विशेष शुक्र का पूर्वभव वर्णन-- वाराणसी नगरी, सोमिल ब्राह्मण, भ० पार्श्वनाथ का पदार्पण, धर्मकथा ग- सोमिल की जिज्ञासा प्रश्नोत्तर घ- श्रावक धर्म की स्वीकृति ङ- भ० पार्श्वनाथ का वाराणसी के आम्रशाल वन से विहार च- सोमिल का पुनः मिथ्यात्वी होना छ- आम्र आराम-यावत्-पुष्प आराम का निर्माण Page #779 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग ३ अ० ४ निरया०सूची ज- जातिभोज, ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब भार सोपना, वान प्रस्थ तापस बनना झ- अनेक प्रकार के वानप्रस्थ तापस ज- सोमिल का दिशा प्रोक्षिका प्रव्रज्या स्वीकार करना ट- सोमिल का अभिग्रह ठ- सोमिल का काष्ठमुद्रा से मुख बांधना ड- सोमिल के समीप एक देव का आगमन-दुष्प्रव्रज्या कथन, ढ- दुष्प्रव्रज्या के सम्बन्ध में देव से प्रश्न 'ण- देव द्वारा समाधान त- सोमिल का पुनः श्रावक धर्म आराधन थ- शुक्रावतंसक विमान में उपपात द- देवलोक से च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण चतुर्थ बहुपुत्रिका अध्ययन १ क- उत्गानिका--राजगृह-गुणशीलचैत्य, श्रेणिक राजा, महावीर का समवसरण, धर्म-देशना ख- बहुपुत्रिका देव का आगमन ग- भ० गौतम की जिज्ञासा घ- भ० महावीर द्वारा पूर्व भव वर्णन-वाराणसी नगरी,—आम्र शालवन, भद्र सार्थवाह, सुभद्रा भार्या ङ.- सुभद्रा का आर्तध्यान, बंध्यापन से व्याकुलता च- सुब्रता आर्या का पदार्पण छ- एक साधवी संघ का भिक्षार्थ जाना, सुभद्रा की निग्रंथ प्रवचन में रुचि उत्पन्न होना ज- गृहस्थ धर्म की स्वीकृति झ- अनगार प्रव्रज्या लेने का संकल्प अ- सुभद्रा की अनगार प्रव्रज्या, संयम सावना ट. सुभद्रा की शिशु पालन पोषण में अभिरुचि Page #780 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निरया० सूची ७५२ वर्ग ३ अ० ५ ठ- सुभद्रा का भिन्न उपाश्रय में निवास, स्वच्छन्द जीवन, श्रामण्य विराधना, सौधर्मकल्प में उपपात ड- बहुपुत्रिका देवी का नाट्य प्रदर्शन ढ- बहुपुत्रिका देवी की स्थिति ण- देवलोक से च्यवन त- जम्बूद्वीप, भरत, विध्यगिरि, बिभेल संनिवेश, ब्राह्मण कुल में जन्म, सोमा नाम देना, युवा होने पर राष्ट्रकूट से विवाह थ- सोमा का बतीस पुत्रों के पालन पोषण से व्यथित होना द- सोमा का अनगार प्रव्रज्या लेने का संकल्प ध- सुव्रता आर्या का पदार्पण न- सोमा का धर्मश्रवण, श्रमणोपासिका बनना प. सुव्रता आर्या का विहार फ- सुव्रता का पुनः पदार्पण ब- सोमा की अनगार प्रव्रज्या-~-संयम साधना भ- शकेन्द्र के सामनिक देवरुप में उपपात म- देवलोक से च्यवन-महाविदेह में जन्म और निर्वाण पंचम पूर्णभद्र अध्ययन १ क- उत्थानिका-राजगृह, गुणशील चैत्य-भ० महावीर का समव सरण, धर्मदेशनाख- पूर्णभद्र देव का आगमन-नाट्य प्रदर्शन ग- भ० गोतम की जिज्ञासा घ- भ० महावीर द्वारा पूर्व भव वर्णन ङ- जम्बुद्वीप, भरत, मणिवतिका नगरी, चन्द्रोतारण चैत्य च- पूर्णभद्र गाथापति छ- बहुश्रुत स्थविरों का आगमन, धर्म श्रवण, वैराग्य, अनगार प्रव्रज्या, संयम साधना Page #781 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग ४ अ०१ ७५३ निरया-सूची ज- सौधर्मकल्प के पूर्णभद्र विमान में उपपात झ- पूर्णभद्र देव की स्थिति देवलोक से च्यवन, महाविदेह में जन्म और निर्वाण षष्ठ अध्ययन से दशम अध्ययन पर्यन्त क- पांच अध्ययनों का वर्णन-पूर्णभद्र अध्ययन के समान ख- मणिभद्र गाथापति–मणिवति नगरी ग- दत्त गाथापति--चंदना नगरी घ- शिव गाथापति ---मिथला नगरी ङ- बल गाथापति हस्तिनापुर च- अनाधत गाथापति-काकंदी नगरी चतुर्थ पुष्पचूला वर्ग प्रथम भूता अध्ययन १- क उत्थानिका-दश अध्यनों के नाम ख- प्रथम अध्ययन राजगृह, गुणशील चैत्य, भ० महावीर का सम वसरण-धर्मदेशना ग- सौधर्म कल्प से श्री देवी का आगमन, नाट्य दर्शन घ- भ० गोतम द्वारा पूर्वभव पृच्छा ङ- महावीर द्वारा पूर्व भव का वर्णन च- राजगृह, जितशत्रु कूणिक-राजा छ- सुदर्शन गाथापति, प्रिया भार्या, भूता-पुत्री ज- भूता का अविवाहित रहना छ- भ० पार्श्वनाथ का समवसरण-धर्म कथा, भूता का धर्म श्रवण, वैराग्य, अनगार प्रव्रज्या ज- भूता की शरीर सुश्रूषा ट- भूता का अलग उपाश्रय में निवास, स्वच्छन्द जीवन, श्रामण्य विराधना Page #782 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग ० ७५४ ठ - सौधर्म कल्प में उपपात स्थिति, च्यवन ण - महाविदेह में जन्म और निर्वाण द्वितीय से दसम अध्ययन पर्यन्त १ सब का भूता के समान वर्णन पंचंम वह्नि दशा वर्ग प्रथम निषढ़ अध्ययन ० ५ अ० १ 1 १ क- उत्थानिका - बारह अध्ययनों के नाम ख- प्रथम अध्ययन वर्णन द्वारिका नगरी, रैवतक पर्वत, नंदन वन उद्यान सुरप्रिय यक्ष का यक्षायतन ग- कृष्ण का शासन, द्वारिका वैभव वर्णन घ- बलदेव राजा, रेवती रानी, निषढ कुमार ङ. भ० अरिष्ट नेमिनाथ का समवसरण धर्म देशना च - निषढ का धर्म श्रवण, श्रावक धर्म की स्वीकृति छ- वरदत्त अणगार द्वारा निषद के पूर्वभव की पृच्छा ज - भ० अरिष्ट नेमीनाथ द्वारा पूर्वभव वर्णन - जम्बूद्वीप, भरत, रोहीड़ा नगर, मेघवन उद्यान, मणिदत्त यक्ष का यक्षायतन, महाबल राजा पद्मावती देवी, वीरंगत कुमार 1 ट- सिद्धार्थ आचार्य का आगमन, वीरंगत का धर्म-श्रवण, वैराग्य, निरया० सूची अनगार प्रव्रज्या - संयम साधना ठ - ब्रह्मलोक कल्प के मनोरम विमान में उपपात, स्थिति, देवलोक से च्यवन ड- निषद कुमार रूप में जन्म ढ - निषद का प्रव्रज्या लेने का संकल्प ण - भ० अरिष्ट नेमिनाथ का समवसरण, धर्मदेशना, निषढ की अनगार प्रव्रज्या, संयम साधना, देह त्याग Page #783 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वर्ग ५ अ० ११ ७५५ निरया० सूची त- निषढ का सर्वार्थ सिद्ध में उपपात, स्थिति, च्यवन थ- महाविदेह में जन्म और निर्वाण द- उपसंहार----शेष इग्यारह अध्ययनों का वर्णन-निषढ अध्ययन के समान ध- एक श्रुतस्कंध-पाँच वर्ग चार वर्गों में दश-दश उद्देशक व पाँचवें वर्ग में बारह उद्देशक Page #784 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #785 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरणानुयोगमय दशवैकालिक अध्ययन चूलिका उद्देशक उपलब्ध मूल पाठ पद्य-सूत्र गद्य-सूत्र अध्ययन १ दुमपुष्पिका २ श्रामण्य पूर्वक णमो समणाणं ३ क्षुल्लकाचार ४ धर्मप्रज्ञप्ति या षड् जीवनिका ५ पिण्डैषणा ६ महाचार ७ वाक्य शुद्धि ८ आचार - प्रणिधि विनय-समाधि १० सभिक्षु १ प्रथमा चूलिका रति वाक्या २ द्वितीया चूलिका विविक्त चर्या १० २ १४ ७०० श्लोक प्रमाण ५१४ ३१ गाथा ५ ११ १५ २८ सूत्र २३ १५० ६८ ५७ ६३ ६२ सूत्र ७ २१ १८ सूत्र १ १६ o Page #786 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #787 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १-५ १ २-३ ४-५ ६६ १० ११ चरणानुयोगमय दशवैकालिक विषय-सूची प्रथम द्रुमपुष्पिका अध्ययन ( धर्म प्रशंसा और माधुकरी वृत्ति ) धर्म का स्वरूप और लक्षण तथा धार्मिक पुरुष का महत्व. माधुकरी वृत्ति. द्वितीय श्रामण्यपूर्वक अध्ययन ( संयममें धृति और उसकी साधना ) श्रामण्य और मदन काम. त्यागी कौन. कामराग निवारण या मनोनिग्रह के साधन. मनोनिग्रह का चिन्तन सूत्र, अगन्धनकुल के सर्प का उदाहरण. रथनेमि का संयम में पुनः स्थिरी करण. संबुद्ध का कर्तव्य तृतीय क्षुल्लकाचार-कथा अध्ययन ( आचार और अनाचार का विवेक ) निग्रंथ के अनाचारों का निरूपण. १-१० ११ निग्रंथ का स्वरूप. १२ निग्रंथ की ऋतुचर्या. १३ महर्षि के प्रक्रम का उद्देश्य. १४-१५ संयम साधना का गौण व मुख्यफल. Page #788 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ४ गाथा १६ सूत्र 9 १-३ ४-७ ८ १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ ७६० चतुर्थ षड् जीवनिका अध्ययन ( जीव- संयम और आत्म-संयम ) जीवाजीवाभिगम षड्जीवनिकाय का उपक्रम, षड्जीवनिकाय नाम निर्देश. पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु की चेतना का निरूपण. वनस्पति की चेतनता और उसके प्रकारों का निरूपण. सजीवों के प्रकार, लक्षण. जीववध न करने का उपदेश. २ चारित्र -धर्म प्राणातिपात विरमण -- अहिंसा महाव्रत का निरूपण और स्वीकार - पद्धति. मृषावाद - विरमण - सत्य महाव्रत का निरूपण और स्वीकार पद्धति. अदत्तादान-विरमण – अचौर्य महाव्रत का निरूपण और स्वीकार पद्धति. अब्रह्मचर्य - विरमण – ब्रह्मचर्य महाव्रत का निरूपण और स्वीकार पद्धति. परिग्रह - विरमण – अपरिग्रह महाव्रत का निरूपण और स्वीकार पद्धति. दशर्वकालिक सूची रात्रिभोजन-विरमण- - व्रत का निरूपण और स्वीकार - पद्धति पांच महाव्रत और रात्रि भोजन विरमण व्रत के स्वीकार का हेतु. ३ यतना पृथ्वीकाय की हिंसा के विविध साधनों से बचने का उपदेश 17 अपकाय ܕܙ "7 Page #789 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ४ गाथा १२ २० २१ २२ २३ गाथा १ २ mr x ४ ५ w 9 ७ ८ ह १० ७६१ दशवेकालिक सूची तेजस्काय की हिंसा के विविध साधनों से बचने का उपदेश 17 ११ ४ उदेश वायुकाय वनस्पतिकाय काय की हिंसा से बचने का उपदेश. P3 "1 13 अयतनापूर्वक चलने से हिंसा, बंधन और परिणाम. अयतनापूर्वक खड़े रहने से हिंसा बंधन और परिणाम. " बैठने से 33 11 21 31 सोने से अयतनापूर्वक भोजन करने से हिंसा, बन्धन और परिणाम. 37 "" बोलने से हिंसा प्रवृत्ति में अहिंसा की जिज्ञासा. का निरूपण. आत्मौपम्य-बुद्धि सम्पन्न व्यक्ति और अबंध. ज्ञान और दया ( संयम ) का पौर्वापर्य और अज्ञानी की भर्त्सना. ܕܝ बंधन और मोक्ष का ज्ञान. आसक्ति व वस्तु उपभोग का त्याग. संयोग का त्याग. मुनिपद का स्वीकरण. चारित्रिक भावों की वृद्धि. 17 श्रुति का माहात्म्य और श्रेयस् के आचरण का उपदेश. ५ धर्म-प - फल १२- २५ कर्म से मुक्ति की प्रक्रिया - आत्म शुद्धि का आरोह क्रम. संयम के ज्ञान का अधिकारी. गति-विज्ञान. "" "" "" Page #790 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशकालिक सूची २६ २७ २८ १-३ ४ १) ८ (१) गवैषणा भोजन, पानी की गवेषणा के लिये कब कहाँ और कैसे जाय ? विषम मार्ग से जाने का निषेध. ५ विषम मार्ग में जाने से होनेवाले दोष. ६ सन्मार्ग के अभाव में विषम मार्ग से जाने की विधि. ६-११ ७६२ पूर्वसंचित कर्मरज का निर्जरण. केवलज्ञान और केवल दर्शन को संप्राप्ति. १२ १३ १४ १५ लोक- अलोक का प्रत्यक्षीकरण. योग निरोध अ० ५ उ० १ गाथा १५ शैलेसी अवस्था की प्राप्ति. कर्मों का सम्पूर्ण क्षय. शास्वत सिद्धि की प्राप्ति. सुगति की दुर्लभता. सुगति की सुलभता. यतना का उपदेश और उपसंहार. पंचम पिण्डेषणा अध्ययन प्रथम उद्देशक (एषणा- गवेषणा, ग्रहणैषणा और भोगैषणा की शुद्धि . ) अंगार आदि के अतिक्रमण का निषेध. वर्षा आदि में भिक्षा के लिये जाने का निषेध. वेश्या के पाड़े में भिक्षाटन करने का निषेव और वहाँ होनेवाले दोषों का निरूपण. आत्म-विराधना के स्थलों में जाने का निषेध. गमन की विधि. अविधि-गमन का निषेध. शंका-स्थल के अवलोकन का निषेध. Page #791 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ५ उ० १ गाथा ४४ ७ ६३ दशवकालिक-सूची ل ا मंत्रणागृह के समीप जाने का निषेध. प्रतिक्रुष्ट आदि कुलों से भिक्षा लेने का निषेध. साणी (चिक) आदि को खोलने का विधि-निषेधः मल-मूत्र की बाधा को रोकने का निषेध. अंधकारमय स्थान में भिक्षा लेने का निषेध. पुष्प, बीज आदि बिखरे हुए और अधुनोपलिप्त आंगण में जाने का निषेव-एषणा के नवें दोष ---- "लिप्त" का वर्जन. मेष, वत्स आदि को लांधकर जाने का निषेध. २३-२६ गृह-प्रवेश के बाद अवलोकन, गमन और स्थान का विवेक. (२) ग्रहणेषणा भक्तपान लेने की विधि आहार-ग्रहण का विधि-निषेध. एषणा के दसवें दोष “छदित" का वर्जन. जीव-विराधना करते हुए दाता से भिक्षा लेने का निषेध ३०-३१ एषणा के पाँचवें (संहृत नामक) और छ? (दायक नामक) दोष का वर्णन पुरःकर्म दोष का वर्जन ३३-३५ असंसृष्ट और संसृष्ट का निरुपण पश्चात्-कम का वर्जन संसृष्ट हस्त आदि से आहार लेने का निषेध ३७ उद्गम के पन्द्रहवें दोष “अनिमृष्ट" का वर्जन निसृष्ट-भोजन लेने की विधि ३६ गर्भवती के लिए बनाया हुआ भोजन लेने का विधि निषेध - एषणा के छट्टे दोष “ दायक'' का वर्जन ४०-४१ गर्भवती के हाथ से लेने का निषेध ४२-४३ स्तन्य-पान कराती हुई स्त्री के हाथ से भिक्षा लेने का निषेध ४४ एषणा के पहले दोष शंकित" का वर्जन 300 ا mu Page #792 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवेकालिक सूची - ४५-४६ उद्गम के बारहवें दोष "उद्भिन्न" का वर्जन ४७-४८ दानार्थ किया हुआ आहार लेने का निषेध ४६-५० पुण्यार्थ किया हुआ आहार लेने का निषेध ५१-५२ वनीपक के लिए किया हुआ आहार लेने का निषेध ५३-५४ श्रमण के लिए किया हुआ आहार लेने का निषेध ५५ औद्दे शिक आदि दोष युक्त आहार लेने का निषेध ५६ भोजन के उद्गम की परीक्षा - विधि और शुद्ध भोजन लेने का विधान ७६४ ५७-५८ एषणा के सातवें दोष "उन्मिश्र" का वर्जन ५८-६० एषणा के तीसरे दोष “निक्षिप्त" का वर्जन ६१-६४ दायक - दोष युक्त भिक्षा का निषेध ६५-६६ अस्थिर शिला, काष्ट आदि पर पैर रखकर जाने का निषेध और उसका कारण अ० ५ उ० १ गाथा ८१ ६७-६८ उद्गम के तेरहवें दोष "मालापहृत" का वर्जन और उसका कारण ६९-७० सचित्त कन्द-मूल आदि लेने का निषेध ७१-७२ सचित्त-रज- संसृष्ट आहार आदि लेने का निषेध ७५ ऐसी -७३-७४ जिनमें खाने का थोड़ा भाग हो और फेंकना अधिक पड़े, वस्तुएँ लेने का निषेध तत्काल धोवन लेने का निषेध - एषणा के आठवें दोष "अपरिणत का वर्जन परिणत धोवन लेने का विधान ८० ७६ ७६ ७७-७८ धोवन की उपयोगिता में संदेह होने पर चखकर लेने का विधान प्यास- शमन के लिए अनुपयोगी जल लेने का निषेध असावधानी से लब्ध अनुपयोगी जल लेने का निषेध अनुपयोगी जल के परठने की विधि ८१ Page #793 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ५ उ० २ गाथा ७ दशवकालिक-सूची (३) भोगैषणा भोजन करने की आपवादिक विधिः८२-८३ भिक्षा-काल में भोजन करने की विधि, ८४-८६ आहार में पड़े हुए तिनके आदि की परठने की विधि ८७ उपाश्रय में भोजन करने की विधि स्थान-प्रतिलेखन पूर्वक भिक्षा के विशोधन का संकेत ८८ उपाश्रय में प्रवेश करने की विधि, इर्यापथिकी पूर्वक कायो त्सर्ग करने का विधान । ८६-६० गोचरी में लगने वाले अतिचारों की यथाक्रम स्मृति और उनकी आलोचना करने की विधि सम्यग आलोचना न होने पर पुनः पुनः प्रतिक्रमण का विधान ६२ कायोत्सर्ग काल का चिन्तन कायोत्सर्ग पूरा करने की और उसकी उत्तरकालीन विधि ६४-६५ विश्राम-कालीन चितन, साधुओं का भोजन लिए निमंत्रण, सह भोजन ६६ एकाकी भोजन, भोजनपात्र और खाने की विधि ६७-६९ मनोज्ञ या अमोनज्ञ भोजन में समभाव रखने का उपदेश १०० मुधादायी और मुधाजीवी की दुर्लभता और उनकी गति पिण्डैषणा (दूसरा उद्देशक) जूठन न छोड़ने का आदेश भिक्षा में पर्याप्त आहार न आने पर आहार-गवेषणा विधान यथा समय कार्य करने का निर्देश अकाल भिक्षाचारी श्रमण को उपालम्भ ६ भिक्षा के लाभ और अलाभ में समता का उपदेश भिक्षा की गमन विधि, भक्तार्थ एकत्रित पशुपक्षियों को लांघकर जाने का निषेध ६३ का २-३ Page #794 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०५ उ० २ गाथा५० दशवैकालिक-सूची __ ८ गोचराग्र बेठने और कथा आदि कहने का निषेध ६ अर्गला आदि को उलंघर भिक्षा के लिए घर में जाने का निषेध १०-११ भिखारी आदि को लांघकर भिक्षा के लिए घर में जाने का निषेध और उसके दोषों का निरुपण उनके -- १२-१३ लौट जाने पर प्रवेश का विधान १४-१७ हरियाली को कुचलकर देने वाले से भिक्षा लेने का निषेध १८-१६ अपक्व सजीव फल आदि लेने का उपदेश २० एक बार भुने हुए शमी-धान्य को लेने का निषेध २१-२४ अपक्व, सजीव फल आदि लेने का उपदेश २५ सामुदायिक भिक्षा का विधान २६ अदीन भाव से भिक्षा लेने का उपदेश २७.२८ अदाता के प्रति कोप न करने का उपदेश २६-३० अस्तुति पूर्वक याचना करने व न देनेपर कठोर वचन कहने का निषेध उत्पादन के ग्यारहवें दोष “पूर्व संस्तव' का निषेध ३१-३२ रस लोलुपता और तज्जनित दुष्टपरिणाम ३३-३४ विजन में सरस-आहार और मण्डली में विरस आहार करने वाले की मनोभावना का चित्रण ३५ पूजाथिता और तज्जनित दोष ३६ मद्यपान करने का निषेध ३७-४१ स्तन्य-वृत्ति से मद्यपान करने वाले मुनि के दोषों का प्रदर्शन ४२-४४ गुणानुक्षी की संवर-साधना और आराधना का निरुपण . ४५ प्रणीत रस और मद्यपानवर्जी तपस्वी के कल्याण का उपदर्शन ४६-४६ तप आदि से सम्बन्धित माया-मृषा से होने वाली दुर्गति का निरूपण और उसके वर्जन का उपदेश ५० पिण्डैषणा का उपसंहार, समाचारी के सम्यग् पालन का उपदेश Page #795 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०६ गाथा २८ ७६७ दशवकालिक सूची षष्ठ महाचार कथा अध्ययन १-२ निग्रंथ के आचार-गोचर की पृच्छा ३-६ निग्रंथों के आचार की दुश्चरता और सर्वसामान्य आचरणी यता का प्रतिपादन ७ आचार के अठारह स्थानों का निर्देश पहला स्थान:--- अहिंसा ८-१० अहिंसा की परिभाषा, जीव-वध न करने का उपदेश, अहिंसा के विचार का व्यावहारिक आधार दूसरा स्थान :--- सत्य ११-१२ मृषावाद के कारण और मृषा न बोलने का उपदेश मृषावाद वर्जन के कारणों का निरूपण तीसरा स्थान :- अचौर्य १३-१४ अदत्त ग्रहण का निषेध । चोथा स्थान :- ब्रह्मचर्य २५.१६ अब्रह्मचर्य सेवन का निषेध पांचवां स्थान :- अपरिग्रह १७-१८ सन्निधि का निषेध, सन्निधि चाहने वाले श्रमण की गृहस्थ से तुलना धर्मोपकरण रखने के कारणों का विधान परिग्रह की परिभाषा निग्रंथों के अनमत्व का निरूपण छठा स्थान--रात्रि-भोजन का त्याग २२ एक भक्त भोजन का निर्देशन २३-२५ रात्रि-भोजन का निषेध और उसके कारण सातवां स्थान ---पृथ्वीकाय की यतना २६.२८ श्रमण पृथ्वीकाय की हिंसा नहीं करते Page #796 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवैकालिक-सूची ७६८ अ० ६ गाथा ४६ दोष-दर्शनपूर्वक पृथ्वीकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम आठवाँ स्थान-अप्काय की यतना २६-३१ श्रमण अप्काय की हिंसा नहीं करते दोष-दर्शनपूर्वक अप्काय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम नवाँ स्थान-तेजस्काय की यतना ३२ श्रमण अग्नि की हिंसा नहीं करते ३३-३५ तेजस्काय की भयानकता का निरूपण दोष-दर्शनपूर्वक तेजस्काय की हिंसा का निषेध और उसका निरूपण दसवाँ स्थान----वायुकाय की यतना ३६ श्रमण वायु का समारम्भ नहीं करते ३७-३६ विभिन्न साधनों से वायु उत्पन्न करने का निषेध दोष-दर्शनपूर्वक वायुकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम ग्यारहवाँ स्थान-वनस्पतिकाय की यतना ४०-४२ श्रमण वनस्पतिकाय की हिंसा नहीं करते दोष-दर्शनपूर्वक वनस्पतिकाय की हिंसा का निषेध और उसका परिणाम बारहवां स्थान-सकाय की यतना ४३.४५ श्रमण त्रसकाय की हिंसा नहीं करते दोष दर्शनपूर्वक त्रसकाय की हिंसा का निमेष और उसका परिणाम तेरहवाँ स्थान--अकल्प्य ४६-४७ अकल्पनीय वस्तु लेने का निषेध ४८-४६. नित्याग्न आदि लेने से उत्पन्न होनेवाले दोष और उसका निषेध Page #797 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० . दशवकालिक-सूची ७६६ अ०७ गाथा ५ चौदहवो स्थान-गृहि भाजन ५०-५२ गृहस्थ के भाजन में भोजन करने से उत्पन्न होनेवाले दोष और उसका निषेध पन्द्रहवाँ स्थान-पर्यंक ५३ आसन्दी, पर्यंक आदि पर बैठने, सोने का निषेध ५४ आसन्दी आदि विषयक निषेध और अपवाद ५५ आसन्दी और पर्यंक के उपयोग के निषेध का कारण सोलहवाँ स्थान ---निषद्या ५६-५६ गृहस्थ के घर में बैठने से होनेवाले दोष, उसका निषेध और अपवाद सतरहवाँ स्थान-स्नान ६०-६२ स्नान से उत्पन्न दोष और उसका निषेध ६३ गात्रोद्वर्तन का निषेध अठारहवाँ स्थान--विभूषावर्जन ६४-६६ विभूषा का निषेध और उसके कारण ६७-६८ उपसंहार आचारनिष्ठ श्रमण की गति सप्तम वाक्य शुद्धि अध्ययन (भाषा-विवेक) १ भाषा के चार प्रकार, दो के प्रयोग का विधान और दो के प्रयोग का निषेध २ अवक्तव्य सत्य, सत्यासत्य, मृषा और अनाचीर्ण व्यवहार भाषा बोलने का निषेध ३ अनवद्य आदि विशेषणयुक्त व्यवहार और सत्य भाषा बोलने का विधान ४ सन्देह में डालने वाली भाषा या भ्रामक भाषा के प्रयोग का निषेध ५ सत्याषाभाषा को सत्य कहने का निषेध Page #798 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवकालिक-सूची ७७० अ०७ गाथा ३६ ६-७ जिसका होना संदिग्ध हो, उसके लिए निश्चयात्मक भाषा में बोलने का निषेध ८ अज्ञात विषय को निश्चयात्मक भाषा में बोलने का निषेध ६ शंकित भाषा का प्रतिषेध १० निःशंकित भाषा बोलने का विधान ११-१३ परुष और हिंसात्मक सत्यभाषा का निषेध १४ तुच्छ और अपमानजनक सम्बोधन का निषेध १५ पारिवारिक ममत्व--सूचक शब्दों से स्त्रियों को सम्बोधित करने का निषेध १६ गौरव वाचक या चाटुता-सूचक शब्दों से स्त्रियों को सम्बोधित करने का निषेध १७ नाम और गोत्र द्वारा स्त्रियों को सम्बोधित करने का विधान १८ पारिवारिक ममत्व--सूचक शब्दों से पुरुषों को सम्बोधित करने का निषेध १६ गौरव-वाचक या चाटुता-सूचक शब्दों से पुरुषों को सम्बोधित करने का निषेध २० नाम और गोत्र द्वारा पुरुषों को सम्बोधित करने का विधान २१ स्त्री या पुरुष का सन्देह होनेपर तत्संबन्धित जातिवाचक शब्दों द्वारा निर्देश करने का विधान २२ अप्रीतिकर और उपधातकर वचन द्वारा सम्बोधित करने का निषेध २३ शारीरिक अवस्थाओं के निर्देशन के उपयुक्त शब्दों के प्रयोग का विधान २४-२५ गाय और बैल के बारे में बोलने का विवेक २६-३३ वृक्ष और वृक्षावयवों के बारे में बोलने का विवेक ३४-३५ औषधि (अनाज) के बारे में बोलने का विवेक ३६.३६ संखड़ि (जीमनवार) के बारे में बोलने का विवेक Page #799 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०८ गाथा १६ ७७१ ४०-४२ सावद्य प्रवृत्ति के सम्बन्ध में बोलने का विवेक ४३ विक्रय आदि के सम्बन्ध में वस्तुओं के उत्कर्ष सूचक शब्दों के प्रयोग का निषेध ४४ चिन्तनपूर्वक भाषा बोलने का उपदेश -४५-४६ लेने बेचने की परामर्शदात्री भाषा के प्रयोग का निषेध ४७ असंयति को गमनागमन आदि प्रवृत्तियों का आदेश देने वाली भाषा के प्रयोग का निषेध ४८ असाधु को साधु कहने का निषेध ४६ गुण सम्पन्न संयति को ही साधु कहने का विधान ५० किसी की जय-पराजय के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध ५१ पवन आदि होने या न होने के बारे में अभिलाषात्मक भाषा बोलने का निषेध -५२-५३ मेघ, आकाश और राजा के बारे में बोलने का विवेक ५४ सावद्यानुमोदनी आदि विशेषणयुक्त भाषा बोलने का निषेध -५५-५६ भाषा विषयक विधि निषेध ५७ परीक्ष्यभाषी और उससे प्राप्त होनेवाले फल का निरूपण अष्टम आचार - प्रणिधि अध्ययन ( प्रचार का प्रणिधान) दशर्वकालिक सूची आचार-प्रणिधि के प्ररूपण की प्रतिज्ञा. जीव के भेदों का निरूपण २ ३-१२ षड्जीवनिकाय की यतना-विधि का निरूपण. १३-१६ आठ सूक्ष्म स्थानों का निरूपण और उनकी यतना का उपदेश १७-१८ प्रतिलेखन और प्रतिष्ठापन का विवेक. १६ गृहस्थ के घर में प्रविष्ट होने के बाद के कर्तव्य का उपदेश . Page #800 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ८ गाथा ४० ७७२ दशवकालिकसूची २०-२१ दृष्ट और श्रुत के प्रयोग का विवेक और गृहियोग--गृहस्थ की घरेलु प्रवृत्तिओं में भाग लेने का निषेध. २२ गृहस्थ को भिक्षा की सरसता, नीरसता तथा प्राप्ति और अप्राप्ति के निर्देश करने का निषेध. २३ भोजनगृद्धी और अप्रासुक-भोजन का निषेध. २४ खान-पान के संग्रह का निषेध. २५ रुक्षवृत्ति आदि विशेषणयुक्त मुनि के लिये क्रोध न करने का उपदेश. २६ प्रिय शब्दो में राग न करने और कर्कश शब्दों के सहने का उपदेश. २७ शारीरिक कष्ट सहने का उपदेश और उसका परिणाम दर्शन. २८ रात्रि-भोजन परिहार का उपदेश. २६ अल्प लाभ में शांत रहने का उपदेश. ३० पर-तिरस्कार और आत्मोत्कर्ष न करने का उपदेश. ३१ वर्तमान पापके संवरण और उसकी पुनरावृत्ति न करने का उपदेश. ३२ अनाचार को न छिपाने का उपदेश. ३३ आचार्य-वचन के प्रति शिष्य का कर्तव्य. ३४ जीवन की क्षणभंगुरता और भोग-निवृत्ति का उपदेश. ३५ धर्माचरण की शक्यता, शक्ति और स्वास्थ्य-सम्पन्न दशा में धर्माचरण का उपदेश. कषाय ३६ कषाय के प्रकार और उनके त्याग का उपदेश. ३७ कषाय का अर्थ. ३८ कषाय विजय के उपाय. ४० विनय, आचार और इंद्रिय-संयम में प्रवृत्त रहने का उपदेश. Page #801 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १ उ० १ गाथा १ ७७३ दशवकालिक-सूची ४१ निद्रा आदि दोषों को वर्जने और स्वाध्याय में रत रहने का उपदेश. ४२ अनुत्तर अर्थ की उपलब्धि का मार्ग. ४३ बहुश्रुत की पर्युपासना का उपदेश. ४४-४५ गुरु के समीप बैठने की विधि. ४६-४८ वाणी का विवेक. ४६ वाणी की स्खलना होने पर उपहास करने का निषेध. ५० गृहस्थ को नक्षत्र आदि का फल बताने का निषेध. ५१ उपाश्रय की उपयुक्तता का निरूपण, ब्रह्मचर्य की साधना और उसके साधन. ५२ एकान्त स्थान का विधान, स्त्री-कथा और गृहस्थ के साथ परिचय का निषेध, साधु के साथ परिचय का उपदेश. ५३ ब्रह्मचारी के लिये स्त्री की भयोत्पादकता. ५४ दृष्टि-संयम का उपदेश. ५५ स्त्री मात्र से बचने का उपदेश. ५६ आत्म-गवेषित और उसके घातक तत्त्व. ५७ काम रागवर्धक अंगोपांग देखने का निषेध. ५८-५९ पुदगल-परिणाम की अनित्यता दर्शनपूर्वक उसमें आसक्त न होने का उपदेश. ६० निष्क्रमण-कालीन श्रद्धा के निर्वाह का उपदेश. ६१ तपस्वी, संयमी, और स्वाध्यायी के सामर्थ्य का निरूपण ६२ पुराकृत-मल के विशोध का उपाय. ६३ आचार-प्रणिधि के फल का प्रदर्शन और उपसंहार. नवम विनय-समाधि अध्ययन (प्रथम उद्देशक): (विनय से होनेवाला मानसिक स्वास्थ्य.) १ आचार-शिक्षा के बाधक तत्त्व और उनसे ग्रस्त श्रमण की दशा का निरूपण. Page #802 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवेकालिक सूची २-४ अल्प-प्रज्ञ, वयस्क, या अल्पश्रुत की अवहेलना का फल. · ५- १० आचार्य की प्रसन्नता और अवहेलना का फल उनकी अवहे - लना की भयंकरता का उपमापूर्वक निरूपण और उनको प्रसन्न रखने का उपदेश ७७४ ११ अनन्त - -ज्ञानी को भी आचार्य की उपासना करने का उपदेश. १२ धर्मपद - शिक्षक गुरु के प्रति विनय करने का उपदेश . १३ विशोधि के स्थान और अनुशासन के प्रति पूजा का भाव. १४-१५ आचार्य की गरिमा और भिक्षु परिषद् में आचार्य का स्थान. १६ आचार्य की आराधना का उपदेश. १७ आचार्य की आराधना का फल. १२ १३ १४ १५ अ० ६ उ० २ गाथा १८ १६ १७ १८ १-२ द्रुम के उदाहरण पूर्वक धर्म के मूल और परम का निदर्शन अविनीत आत्मा का संसार भ्रमण. ३ ४ अनुशासन के प्रति कोप और तज्जनित अहित. ५- ११ अविनीत और सुविनीत की आपदा और सम्पदा का तुलनात्मक निरूपण. शिक्षा प्रवृद्धि का हेतु आज्ञानुवर्तिता. गृहस्थ के शिल्पकला सम्बन्धी अध्ययन और नियम का उदाहरण शिल्पाचार्य कृत यातना का सहन. यातना के उपरान्त भी गुरु का सत्कार आदि की प्रवृत्ति का निरूपण. नवम-समाधि अध्ययन (द्वितीय उद्देशक ) ( अविनीत, सुविनीत की आपदा सम्पदा ) धर्माचार्य के प्रति आज्ञानुवर्तिता की सहजता का निरूपण. गुरु के प्रति नम्र व्यवहार की विधि. अविधिपूर्वक स्पर्श होने पर क्षमा-याचना की विधि, Page #803 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ६ उ० ३ गाथा १५ ७७५ दशवैकालिक-सूची १६ अविनीत शिष्य की मनोवृत्ति का निरूपण. २० विनीत की सूक्ष्म-दृष्टि और विनय पद्धति का निरूपण. २१ शिक्षा का अधिकारी. अविनीत के लिये मोक्ष की असंभवता का निरूपण. २३ विनय-कोविद के लिये मोक्ष की सुलभता का प्रतिपादन. नवम विनय-समाधि अध्ययन (तृतीय उद्देशक) : पूज्य कौन ? पूज्य के लक्षण और उसकी अर्हता का उपदेश. आचार्य की सेवा के प्रति जागरूकता और अभिप्राय की आराधना. आचार के लिए विनय का प्रयोग, आदेश का पालन और आशातना का वर्जन. रानिकों के प्रति विनय का प्रयोग, गुणाधिक्य के प्रति नम्रता, वन्दनशीलता और आज्ञानुवतिता. ४ भिक्षा-विशुद्धि कौर लाभ-अलाभ में समभाव. संतोष-रमण. वचनरूपी कांटों को सहने की क्षमता. वचनरूपी कांटों की सुदुस्सहता का प्रतिपादन. दौर्मनस्य का हेतु मिलने पर भी सौमनस्य को बनाए रखना. सदोष भाषा का परित्याग. लोलुपता आदि का परित्याग. आत्म निरीक्षण, मध्यस्थता. स्तब्धता और क्रोध परित्याग. पूज्य-पूजन, जितेन्द्रियता और सत्य-रतता. आचार-निष्णातता गुरु की परिचर्या और उसका फल. Page #804 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशवेकालिक सूची १-३ ४ ५ ६ ७ गाथा ६-७ २-४ विनय-समाधि अध्ययन चतुर्थ उद्देशक समाधि के प्रकार विनय-समाधि के चार प्रकार 33 श्रुत तप आचार 11 11 "1 ७७६ "" 17 " 17 समाधि - चतुष्टय की आराधना और उसका फल सभिक्षु (भिक्षु कौन ? भिक्षु के लक्षण और उसकी अर्हता का उपदेश ) १ चित्त-समाधि, स्त्री - मुक्तता और वान्त भोग का अनासेवन जीव - हिंसा, सचित्त व औद्देशिक आहार और पचन- पाचन का परित्याग ५ श्रद्धा, आत्मोपम्यबुद्धि, महाव्रत- स्पर्श और आश्रव का संवरण ६ कषाय- त्याग ध्रुव-योगिता, अकिंचनता और गृहि-योग का परिवर्जन. अ० १० गाथा १४ ७ सम्यग्दृष्टि, अमूढता, तपस्विता और प्रवृत्ति-शोधन सन्निधि वर्जन & साधर्मिक- निमंत्रणपूर्वक भोजन और भोजनोत्तर स्वाध्याय - रतता १० कलह-कारक कथा का वर्जन, प्रशान्त भाव आदि ११ सुख-दुख में समभाव १२ प्रतिमा स्वीकार, उपसर्गकाल में निर्भयता और शरीर की अनाशक्ति १३ देह विसर्जन, सहिष्णुता और अनिदानता १४ परीषह - विजय और श्रामण्य-रतता Page #805 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • दशवैकालिक सूची ७७७ चूलिका २ गाथा २ १५ संयम, अध्यात्म - रतता और सूत्रार्थ - विज्ञान १६ अमूर्च्छा, अज्ञात भिक्षा, क्रय-विक्रय वर्जन और निस्संगता १७ वाणी का संयम और आत्मोकर्ष का त्याग १८ अलोलुपता, उंछचारिता और ऋद्धि आदि का त्याग १६ मद वर्जन २० आर्यपद की घोषणा और कुशीललिंग का वर्जन २१ भिक्षु की गति का निरूपण प्रथमा रतिवाक्या चूलिका ( संयम में अस्थिर होने पर पुनः स्थिरीकरण का उपदेश ) १ संयम में पुन: स्थिरीकरण के १८ स्थानों के अवलोकन का उपदेश और उनका निरूपण २-८ भोग के लिये संयम को छोड़नेवाले की भविष्य की अनभिज्ञता और पश्चात्तापपूर्ण मनोवृत्ति का उपमापूर्वक निरूपण ६ श्रमण - पर्याय की स्वर्गीयता और नारकीयता का सकारण निरूपण १० व्यक्ति भेद से श्रमण- पर्याय में सुख-दुःख का निरूपण और श्रमणपर्याय में रमण करने का उपदेश ११-१२ संयम भ्रष्ट श्रमण के होनेवाले ऐहिक और पारलौकिक दोषों का निरूपण १३ संयम भ्रष्ट की भोगासक्ति और उसके फल का निरूपण १४-१५ संयम में मन को स्थिर करने का चिन्तन - सूत्र १६ इन्द्रिय द्वारा अपराजेय मानसिक संकल्प का निरूपण १७-१८ विषय का उपसंहार द्वितीया विविक्त चर्या चूलिका ( विविक्त चर्या का उपदेश ) १ चूलिका के प्रवचन की प्रतिज्ञा और उसका उद्देश्य Page #806 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७७८ चूलिका २ गाथा १६ ७७८ दशबैकालिक-सूची २ अनुस्रोत-गमन को बहुमताभिमत दिखाकर मुमुक्ष के लिये प्रति स्रोत-गमन का उपदेश ३ अनुस्रोत और प्रतिस्रोत के अधिकारी, संसार और मुक्ति की परिभाषा ४ साधु के लिये चर्या, 'गुण और नियमों की आवश्यकता का निरूपण ५ अनिकेतवास आदि चर्या का निरूपण ६ आकीर्ण और अपमान संखडि-वर्जन आदि भिक्षा-विशुद्धि के अंगों का निरूपण व उपदेश ७ श्रमण के लिये आहार-विशुद्धि और कायोत्सर्ग आदि का उपदेश ८ स्थान आदि के प्रतिबंध व गाँव आदि में ममत्व न करने का उपदेश ६ गृहस्थ की वैयावृत्य आदि करने का निषेध और असंक्लिष्ट मुनिगण के साथ रहने का विधान. १० विशिष्ट संहनन-युक्त और श्रुत-सम्पन्न मुनि के लिए एकाकी विहार का विधान. ११ चातुर्मास और मासकल्प के बाद पुन: चातुर्मास और मासकल्प करने का व्यवधान-काल, सूत्र और उसके अर्थ के अनुसार चर्या करने का विधान १२-१३ आत्म-निरीक्षण का समय, चिन्तन-सूत्र और परिमाण १४ दुष्प्रवृत्ति होते ही सम्हल जाने का उपदेश १५ प्रतिबुद्ध जीवी, जागरूक भाव से जीनेवाले की परिभाषा १६ आत्म-रक्षा का उपदेश और अरक्षित तथा सुरक्षित आत्मा की गति का निरूपण. श्री जैन श्वे० तेरापन्थी महासभा, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित दशवकालिक द्वितीय भाग से यह सूची साभार उद्धृत की हैः Page #807 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वानुयोगमय उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन उपलब्ध मूल पाठ पद्य सूत्र गद्य सूत्र णमो लोगुत्तमाणं ३६ २१०० श्लोक प्रमाण १६५६ ८६ www Page #808 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ विनयश्रुत ३ चातुरंगीय ५ अकाम मरण ७ औरश्रीय ६ नमि प्रव्रज्या ११ बहुश्रुत पूज्य १३ चित्तसंभूतीय १५ स भिन्तु १७ पापश्रमणीय ६ मृगापुत्रीय २१ समुद्रपालीय २३ केशी - गौतमीय २५ यज्ञीय ४८ २० ३२ ३० ६२ ३२ ३५ १५ २१ ६ ६ २४ ८ ह ४५ २ परीषह ४ संस्कृत १७ ६ तुल्लक निर्बंथीय ८ कापिलिक १० द्रुम पत्रक १२ हरिकेशीय १४ इषुकारीय १६ ब्रह्मचर्य समाधि १८ संयतीय २७ खलु कीय २६ सम्यक्त्व - पराक्रम १ सूत्र ७४ ३० तप मार्ग ३१ चरण - विधि २६ ३३ कर्म-प्रकृति २५ ३५ अणगार २३ २० महा निग्रंथीय २२ रहनेमीय २४ समिति २६ समाचारी २८ मोक्षमार्ग गति ४६ सूत्र ४ १३ १७ सूत्र १ २० ३७ ४७ ५३ १७ सूत्र १० ५४ ६० ५१ २७ ५३ ३६ ३७ ३२ प्रमाद स्थान ३४ लेश्या वर्णन ६१ ३६ जीवाजीवविभक्ति २६६ १११ Page #809 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन विषय-सूची प्रथम विनय अध्ययन विनय उत्थानिका विनीत के लक्षण अवनीत के लक्षण ४ क- दुःशील को कृमीकर्णी कुतिया की उपमा ख- बहुभाषी का सर्वत्र अनादर ५ दुःशील को ग्राम शूकर की उपमा ६ क- आत्महित के लिए विनय आवश्यक है ख- विनय से शील की प्राप्ति ७ बुद्ध पुत्र का सर्वत्र आदर क- सार्थक अध्ययन के लिये प्रेरणा ___ ख- निरर्थक अध्ययन का निषेध ६ क- कठोर अनुशासन के समय क्षमा रखना ख- बाल दुश्चरित्र की संगनिका निषेध क- क्रोध और बहुभाषन का निषेध ख- यथा समय स्वाध्याय तथा ध्यान करने का विधान ११ दोष छिपाने का निषेध, गुरुजनों के समक्ष प्रगट करने का विधान १२ क- अविनयी को अड़ियल टट्ट की उपमा ख- विनयी को अश्व की उपमा । ग- गुरुजनों के अभिप्रायानुसार आचरण करने का आवेश १३ क- अविनयी मृदु स्वभाव वाले गुरुजनों को कठोर बना देता है 'ख- विनयी कठोर स्वभाव वाले गुरुजनों को मृदु बना लेता है १४ क- अकारण बोलने का और मिथ्या बोलने का निषेध Page #810 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० २ गाथा ५ ७८२ उत्तराध्ययन-सूची ख- शान्त रहने का तथा निन्दा-स्तुति में समान रहने का विधान १५ आत्म दमन-निग्रह-का उपदेश १६ दमन की परिभाषा १७ प्रतिकूल आचरण का निषेध १८-१६ गुरुजनों के समीप बैठने के विधि २०-२२ गुरुजनों के बुलाने पर शीघ्र उपस्थित होने का विधान २३ क- विनयी को सूत्रार्थ की प्राप्ति ख- गुरुजनों के पूछने पर यथार्थ कहने का विधान २४-२५ भाषा-विवेक अकेली स्त्री के समीप बैठने का तथा उसके साथ आलाप संलाप का निषेध २७-२६ गुरुजनों के कठोर अनुशासन से स्वहित ३० बैठने का विवेक । ३१-३६ गवेषणा, ग्रहणषणा और ग्रासषणा सम्बन्धी विवेक ३७ क- विनयी को अच्छे अश्व की और अविनयी को अडियल टट्ट की उपमा ख- गुरुजनों को विनयी से सुख, अविनयी से दु:ख ३८-४४ गुरुजनों के कठोर अनुशासन से स्वहित ४५ उपसंहार-विनयी की सर्वत्र प्रशंसा ४६ विनयी को सार्थ श्रुत का लाभ ४७-४८ विनयी को उभयलोक में सुख द्वितीय परिषह अध्ययन १.३ क- भ० महावीर द्वारा परिषहों का उपदेश ____ ख- बावीस परिषहों के नाम १ परिषहों का वर्णन सुसने के लिये प्रेरणा २-३ (१)क्षुधा परिषह का वर्णन ४-५ (२) पिपासा परिषह का , Page #811 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ३ गाथा ६ ७८३ उत्तराध्ययन-सूची ६-७ (३) शीत परिषह का वर्णन ८-६ (४) उष्ण , १०-११ (५) दंश मशक " १२-१३ (६) अचेल १४-१५ (७) अरति १६-१७ (८) स्त्री १८-१६ (६) चर्या २०-२१ (१०) निषद्या २२-२३ (११) शय्या २४-२५ (१२) आक्रोश २६-२७(१३) वध २८-२६ (१४) याचना । ३०-३१ (१५) अलाभ ३२-३३ (१६) रोग ३४-३५ (१७) तृण स्पर्श ,, ३६-३७ (१८) जल्ल-मल ,, ३८-३६ (१६) सत्कार , ४०-४१ (२०) प्रज्ञा ,, ४२.४३ (२१) अज्ञान , ४४-४५ (२२) दर्शन , उपसंहार—परिषह सहने के लिये प्रेरणा तृतीय चातुरङ्गीय अध्ययन चार अंगों की दुर्लभता २-७ (१) मनुष्य भव की दुर्लभता ८ (२) श्रुति -धर्म श्रवण की दुर्लभता ९ (३) श्रद्धा की दुर्लभता Page #812 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८४ उत्तराध्ययन-सूची अ० ५ गाथा २ १० (४) वीर्य-आचरण की दुर्लभता चार अंगों की प्राप्ति का पार लौकिक फल इह लौकिक , घृत सिक्त अग्नि का उदाहरण १३ कर्म बन्ध के कारणों को जानने का फल १४-१५ चार अंगों की प्राप्ति का वैकल्पिक फल-देव गति १६-१६ , मानव भव २० उपसंहार-चार अंगों की प्राप्ति से सिद्ध पद चतुर्थ प्रमादाप्रमाद अध्ययन' १ अप्रमाद का उपदेश २-५ क- धनार्जन में पाप कर्मों का बन्ध ख. चोर का उदाहरण ग. दीपक का उदाहरण ६-७ क- अप्रमाद का उपदेश ख. भारण्ड पक्षी का उदाहरण ८ क- स्वच्छन्दता का निषेध ख- अप्रमत्त को शिक्षित एवं कवचधारी अश्व की उपमा प्रमत्त का अन्तिम समय में दुःखी होना १० अप्रमाद का उपदेश ११-१३ राग-द्वेष एवं कषाय की निवृत्ति के लिये उपदेश समभाव' की साधना के लिये उपदेश पंचम अकाम-मरण अध्ययन मरण विषयक प्रश्न मरण के दो भेद ह प्रमत्त का १. इस अध्ययन का दूसरा नाम असंस्कृत अध्ययन है Page #813 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ५ गाथा २८ ७८५ उत्तराध्ययन-सूची ३ क- देहधारियों का बालमरण अनेक वार ख- उत्कृष्ट पण्डित मरण एक बार ४ बाल-व्यक्ति क्रूर कर्म करनेवाला होता है ५-६ बाल-व्यक्ति का पुनर्जन्म में अविश्वास बाल-व्यक्ति की काम-भोगों में आसक्ति ८ बाल-व्यक्ति द्वारा त्रस-स्थावर जीवों की अर्थ-अनर्थ हिंसा क- बाल-व्यक्ति के लक्षण ख- बाल-व्यक्ति मद्यमांस के आहार को श्रेष्ठ मानता है क- बाल-व्यक्ति की आसक्ति ख- शिशुनाग-अलसिया का उदाहरण बाल-व्यक्ति की तरुण अवस्था में परलोक गति बाल-व्यक्ति की नरक गति बाल-व्यक्ति को अन्तिम समय में पश्चात्ताप ११-१५ विषम पथगामी शाकटिक का उदाहरण १६ क- बाल-व्यक्ति की अकाम-मृत्यु ख- द्य तकार का उदाहरण क- बाल-व्यक्तियों के अकाम-मरण का वर्णन समाप्त ख- पण्डितों के सकाम-मरण का वर्णन प्रारम्भ संयत व्यक्तियों का पण्डित मरण सभी भिक्षुओं का और सभी गृहस्थों का पण्डित मरण नहीं होता भिक्षु और गृहस्थ के संयमी जीवन की तुलना भिक्षुओं की भी दुर्गति सुव्रत गृहस्थ की सुगति-देवगति २३-२४ गृहस्थ का जाल पण्डित मरण और सुगति २५ संवृत भिक्षु की दो गति २६-२७ दिव्य जीवन का वर्णन २८ भिक्षु और गृहस्थ की देवगति Page #814 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ७८६ अ० ७ गाथा १३ २६ शीलवान बहुश्रुत अन्तिम समय में उद्विग्न नहीं होते ३०-३२ पण्डितों का तीन सकाम-मरणों में से एक सकाम-मरण षष्ठ क्ष ल्लक निग्रन्थ अध्ययन' अज्ञानियों का दुखमय जीवन मैत्री भावना का उपदेश अशरण भावना का उपदेश त्याग का फल [वैकल्पिक फल] अशरण भावना हिंसा-निषेध अदत्तादान का निषेध ९-१० अक्रियावाद से मुक्ति की भ्रान्त मान्यता ११ केवल भाषा ज्ञान या मन्त्रविद्या से मुक्ति नहीं १२ आसक्ति से दुःख १३ दीक्षा ग्रहण करने के लिए उपदेश १४-१५ केवल कर्मक्षय के लिये निर्दोष आहारादि से देह धारण करें १६ क- अत्यल्प संग्रह का भी निषेध __ख- पक्षी का उदाहरण गवेषणा का उपदेश १८ उपसंहार-ज्ञात पुत्र वैशालीक भ० महावीर का यह उपदेश सप्तम औरभ्रीय अध्ययन १-३ महमानों के निमित्त पाले जाने वाले मेष (मेण्ढे) का उदाहरण ४-६ मेण्ढे के समान बाल व्यक्ति की मृत्यु १० क- काकिणी का उदाहरण ख- अाम्र का उदाहरण ११-१३ देवताओं और मनुष्यों के काम-भोगों की तुलना rxury saror १ इस अध्ययन का दूसरा नाम “पुरुष विद्या" है Page #815 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची अ० ८ गाथा ११ १४-१५ तीन वणिकों का उदाहरण १६ चार गतियों की लाभ-हानि से तुलना १७-१८ बाल व्यक्ति की दो गति बाल और पण्डित की तुलना का उपदेश सुव्रत की—मनुष्य गति २१-२२ भिक्षु और गृहस्थ को तीन वणिकों के उदाहरण का चिन्तन करने के लिये-उपदेश २३ क- समुद्र का उदाहरण ख- देव और मानव भोगों की तुलना २४ योग क्षेम स्वहित का चिन्तन । २५-२७ काम भोगों से अनिवृत्त और निवृत्त की गति २८-३० उपसंहार-क- बाल और पण्डित, धर्म और अधर्म की तुलना ख- बाल और पण्डित की गति अष्टम कापिलीय अध्ययन दुर्गति-निषेध के उपाय की जिज्ञासा भिक्षु का लक्षण समाधान के लिये मुनि का कथन भिक्षु का लक्षण क. बाल व्यक्ति की आसक्ति ख- मक्षिका का उदाहरण क- काम-भोगों का त्याग अति कठिन ख- सुव्रत गृहस्थ और साधु का भवसागर-तरण ग- सांयात्रिक का उदाहरण बाल-व्यक्ति की दुर्गति ८-१० क- प्राणवध निषेध ख- पानी के प्रवाह का उदाहरण ११ एषणा समिति Page #816 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ६ गाथा ३६ ७८८ ७८८ उत्तराध्ययन-सूची M Nx mr ग्रहणषणा १३ शुद्धषणा [लवण-सामुद्रिक, स्वप्न और अंग विद्या के प्रयोग का निषेध] १४-१५ क- विद्या प्रयोग करने वालों की असुरों में उत्पत्ति ख- भव भ्रमण ग. बोधी की दुर्लभता १६-१७ लोभी की दशा १८-१६ स्त्री की आसक्ति का निषेध २० उपसंहार-कपिल का आख्यान, धर्म आराधकों की उभय लोक आराधना नवम नमि-प्रव्रज्या अध्ययन नमि राजा का जातिस्मरण । पुत्र को राज्य भार देकर नमि राजा का अभिनिष्कमण मिथिला में कोलाहल नमि राजा का गृहत्याग मिथिला की दशा पर ध्यान देने के लिये ब्राह्मण रूप में शकेन्द्र की प्रार्थना ८-१० नमि राजा का उत्तर ११-१२ विरहानल से दग्ध अन्तःपुर की ओर ध्यान देने के लिये इन्द्र का निवेदन १३-१७ नमि राजा का उत्तर १८-३० क- नगर की सुरक्षा के लिये प्रार्थना ख- नमि राजा का उत्तर ३१ राजाओं के दमन के लिये इन्द्र की प्रार्थना ३२-३६ नमि राजा का उत्तर ३७-३८ यज्ञ और ब्रह्म-भोज करने के लिये इन्द्र की प्रार्थना ३६ नमि राजा का उत्तर ३-४ Page #817 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १० गाथा २७ ७८६ उत्तराध्ययन-सूची ४१ नमन गृहस्थाश्रम में गृहस्थधर्म की आराधना करते रहने के लिये प्रार्थना नमि राजा का उत्तर ४२-४३ गृहस्थ जीवन में ही धर्म आराधना करने के लिए प्रार्थना ४४-४५ नमि राजा का उत्तर ४६-४७ कोश की वृद्धि के लिये प्रार्थना ४८-५० नमि राजा का उत्तर प्राप्त भोगों का परित्याग न करने के लिये प्रार्थना ५२-५४ क्रोधादि कषायवालों की दुर्गति ५५-६१ ब्राह्मण रूप त्याग कर इन्द्र ने नमि राजा से क्षमा याचना तथा प्रशंसा, नमि राजा की प्रव्रज्या ६२ उपसंहार-नमि राजा के समान बुद्ध पुरुषों की भोगों से निवृत्ति दशम द्रुम-पत्रक अध्ययन मनुष्य जीवन को द्रुम-पत्र की उपमा ,, को कुशाग्र बिन्दु की उपमा पुराकृत कर्मरज को दूर करने के लिये उपदेश मनुष्य भव की दुर्लभता ५-१४ पृथ्वीकाय-यावत्-नरक पर्यंत भव ग्रहण शुभाशुभ कर्मों से भवभ्रमण आर्य जीवन दुर्लभ परिपूर्ण इन्द्रियाँ दुर्लभ धर्म श्रवण दुर्लभ श्रद्धा दुर्लभ आचरण दुर्लभ २१-२६ श्रोत्रन्द्रियादि सर्व बलों की हानि रोगों की प्रचुरता १६ Page #818 -------------------------------------------------------------------------- ________________ म० ११ गाथा २२ ७६० उत्तराध्ययन-सूची: س س Worrm x ur س س س س سلم २८ क- मोह विजय का उपदेश ख- शारदीय कमल का उदाहरण २६-३० त्यक्त भोगों को पुन: न ग्रहण करने का उपदेश अप्रमाद का उपदेश मार्ग का उदाहरण भार वाहक का उदाहरण समुद्र तट का उदारहण सिद्धपद की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील रहने का उपदेश सदुपदेश देने का विधान उपसंहार-राग-द्वेष का क्षय करने के लिये उपदेश ग्यारह वाँ बहुश्रुत पूज्य अध्ययन अणगार-आचार-कथन प्रतिज्ञा अविनीत के लक्षण जिज्ञासु के पाँच अवगुण जिज्ञासु के आठ गुण अविनीत के लक्षण सुविनीत के लक्षण योग्य जिज्ञासु के लक्षण बहुश्रुत को शंख-पय की उपमा श्रेष्ठ अक्ष की " अश्वारोही वीर की " गजराज वृषभ राज सिंह वासुदेव चक्रवर्ती की " r rrror- Moror mor" 9 0 0 0 d . की ॥ ? ? ? Page #819 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूची २३ २४ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१ ३२ १ २-३ ४-६ १० ११ १२-१३ १४-१५ १६ १७ १८-१६ २०-२३ २४-२५ २६-२८ बहुश्रुत को 17 + 23 ܕܙ " " "" " ७६१ की उपमा इन्द्र दिवाकर की चन्द्र की कोष्ठागार की सुदर्शन जंबू की शीता नदी की मेरू को 33 "3 37 " 23 39 स्वयम्भूरमण समुद्र की क- बहुश्रुत को समुद्र की उपमा ख- बहुश्रुत को उत्तम गति प्राप्ति "3 अ० १२ गाथा २८ उपसंहार - श्रुत के अध्ययन से शिवपद बारह वाँ हरिकेशी अध्ययन श्वपाक कुलोत्पन्न हरिकेशी श्रमण हरिकेशी का भिक्षार्थ ब्रह्म यज्ञ में गमन ब्राह्मणों द्वारा हरिकेशी का उपहास और अनादर श्रमणचर्या के सम्बन्ध में तिन्दुक यक्ष का कथन ब्राह्मणों का भिक्षा न देने का निश्चय तिन्दुक यक्ष द्वारा पुण्यक्षेत्र का प्रतिपादन तिन्दुक यक्ष द्वारा पापक्षेत्र का प्रतिपादन ब्राह्मणों द्वारा भिक्षा न देने के निश्चय का दुहराना भिक्षा न देने पर यज्ञ की असफलता के सम्बन्ध में तिन्दुक यक्ष का उद्घोष ब्रह्म कुमारों द्वारा मुनिपर प्रहार क्रुद्ध ब्रह्म कुमारों को कौशल राज कन्या भद्रा का निवेदन तिन्दुक यक्ष द्वारा ब्रह्म कुमारों की दुर्दशा भद्रा राजकन्या द्वारा मुनि की तेजोलब्धि का परिचय Page #820 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १३ गाथा ३० ७६२ उत्तराध्ययन-सूची ४० २६-३१ यज्ञ-प्रमुख की क्षमा याचना मुनि द्वारा तिन्दुक यक्ष का परिचय यज्ञ प्रमुख द्वारा पुनः क्षमा याचना ३४-३५ यज्ञ प्रमुख का हरिकेशी श्रमण को भिक्षादान दान के समय देवों द्वारा दिव्य वर्षा दिव्य वर्षा से ब्राह्मणों को आश्चर्य ३८-३६ भाव शुद्धि के बिना बाह्य शुद्धि की विफलता के सम्बन्ध में हरिकेशी श्रमण के विचार आत्म शुद्धि एवं श्रेष्ठ यज्ञ के सम्बन्ध में यज्ञ प्रमुख की जिज्ञासा ४१-४७ हरिकेशी द्वारा अध्यात्म स्नान एवं अध्यात्म यज्ञ का प्रतिपादन तेरह वाँ चित्तसंभूति अध्ययन सम्भूत ने हस्तिनापुर में निदान किया, नलिनी गुल्म विमान में उत्पन्न हुअा वहाँ से च्यव-मर-कर कम्पिलपुर में चुलिनी की कुक्षी से ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति कम्पिलपुर में ब्रह्मदत्त की उत्पत्ती क- पुरिम तालपुर में चित्त की उत्पत्ति ख- चित्त का दीक्षित होना चित्त और ब्रह्मदत्त संभूत] का कम्पिलपुर में मिलना चित्त मुनि द्वारा पूर्व जन्म के वृत्तान्तों का वर्णन ६-१४ ब्रह्मदत्त की चित्त मुनि से प्रार्थना १५-२६ क- चित्त मुनि का ब्रह्म दत्त को उपदेश ख- मृत्यु को सिंह की उपमा ग- अशरण भावना का उपदेश २७-३० क- ब्रह्मदत्त की भोगों में आसक्ति · Page #821 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १४ गाथा २८ ७:३ उत्तराध्ययन-सूची ww ८-११ ख- स्वयं को कीचड़ में फंसे हुए गज की उपमा देना ३१-३३ क- ब्रह्मदत्त को पुनः आर्य कर्मों के लिये प्रेरित करना ख- चित्त मुनि का जाना ब्रह्मदत्त की नरक में उत्त्पत्ति चित्त की मुक्ति चौदहवाँ इषुकारीय अध्ययन ___क- पुरोहित पुत्रों का पूर्वभव ख- इषुकार राजा, कमलावती रानी, भृगु पुरोहित, जसा भार्या _और दो पुत्र इन ६ का जिनोक्त मार्गानुसरण ४-७ क. पुरोहित पुत्रों को जाति स्मरण ख- संसार से विरक्ति ग- माता-पिताओं से प्रत्रज्या के लिये अनुमति मांगना गृहस्थ के आवश्यक कृत्य पूर्ण करके प्रव्रज्या लेने का पिता का सुझाव १२-१५ पुरोहित पुत्रों का अविलम्ब प्रव्रज्या ग्रहण करने का दृढ़ संकल्प पुरोहित का पुनः पुत्रों को समझाना पोद्गलिक सुख की प्राप्ति प्रव्रज्या का उद्देश्य नहीं अपितु आध्यात्मिक सुख की प्राप्ति प्रव्रज्या का उद्देश्य है पिता द्वारा आत्मा के अभाव का प्रतिपादन पुत्रों द्वारा आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि अज्ञान अवस्था में की हुई भूल की पुनरावृत्ति न करने का संकल्प २१-२५ पुत्रों द्वारा जीवन को सफल करने का निश्चय वृद्ध होने पर सहदीक्षा का पिता का प्रस्ताव २७-२८ भविष्य को अनिश्चित समझकर अविलम्ब प्रव्रजित होने का निश्चय १६ Page #822 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १५ गाथा ४ ७६४ उतराध्ययन-सूची २६-३० भृगु पुरोहित का जसा भार्या को समझाना वृद्धावस्था में दीक्षित होने के लिये जसा भार्या का निवेदन ३२ दीक्षा का उद्देश्य-मुक्ति है जसा द्वारा भिक्षुचर्या की कठिनाईयों का वर्णन ३४-३५ क- भगु पुरोहित का दृढ़ निश्चय ख- भोगों को सर्प कंचूक और मत्स्य जाल की उपमा ३६ जसा का भी दीक्षित होने का निश्चय ३७-४० कमलावती रानी का राजा को उपदेश ४१-४८ क- आत्मा को पक्षी की और भोगों को पिंजरे की उपमा ख. अरण्य में दग्ध पक्षियों को देखकर अन्य पक्षियों के प्रमुदित होने के रूपक से राग-द्वेष का स्वरूप समझना ग- भोगों को आमिष की उपमा । घ- स्वयं को उरग की और मृत्यु को गरुड़ की उपमा ङ- बन्धन मुक्त गजराज के समान स्वस्थान-शिवपद को प्राप्त करने का प्रस्ताव ४९-५४ राजा आदि छहों का दीक्षित होना पन्द्रह वाँ सभिक्षु अध्ययन भिक्षु के लक्षण क- निदान न करना ख- प्रशंसा न चाहना ग- काम-भोगों की चाहना न करना घ- अज्ञात कुल से आहारादि की एषणा करना क- विरक्त होकर विचरना ख- आसक्ति न करना आक्रोश और वध परीषह सहन करना क- अत्यल्य उपकरण रखना - < Page #823 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ७६५ अ० १६ गाथा ७ as w o wa १३ ख- शीत-उष्ण और दंस मशक परीषह सहना पूजा-प्रतीष्ठा न चाहना क- मोह जीतना ख- स्त्री से विरक्त रहना ग- हँसी मजाक न करना आहार के लिये विद्या प्रयोग न करना , मन्त्रादि का प्रयोग न करना क्षत्रिय आदि की प्रशंसा न करना लौकिक कामनाओं के लिये किसी का परिचय न करना शयनासनादि के न देने वाले पर द्वेष न करना ग्लान-बाल और वृद्ध श्रमण की शुद्ध आहारादि से परिचर्या करना शीत और नीरस आहार लेना मधुर-संगीत और भयावह शब्दों में राग-द्वेष न करना विविध वादो-विचारों-से विचलित न होना अशिल्प जीवी आदि प्रशस्त गुणों का धारक होना सोलह वाँ ब्रह्मचर्य समाधि अध्ययन १ क- भ० महावीर द्वारा दस ब्रह्मचर्य समाधिस्थानों का प्ररुपण ख- स्त्री-पशु-पण्डक रहित शयनासन का सेवन करना, सेवन न करने से होने वाली हानियां स्त्री कथा न करना, करने से होने वाली हानियाँ स्त्री के साथ एक आसन पर न बैठना स्त्री के अंगोंपांगों की ओर दृष्टि न डालना स्त्री के हास्य विलासादि का भित्ति के पीछे से भी न सुनना भुक्त भोगों का स्मरण न करना उत्तेजक पदार्थों का आहार न करना rm x xur 9 Page #824 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १७ गाथा १६ उत्तराध्ययन-सूची अतिमात्रा में आहारादि का न करना शृंगार न करना मनोज्ञ शब्दादि का सेवन न करना १-१० उक्त दस स्थानों की दस गाथाएँ ११-१३ ब्रह्मचारी के लिये दस स्थानों का सेवन तालपुट विष के समान है १४ ब्रह्मचारी के लिये सभी शंका स्थानों का निषेध १५-१६ ब्रह्मचर्य की महिमा उपसंहार--ब्रह्मचर्य से शिवपद की प्राप्ति or wrxur 9 v aor worrrrr सत्तरह हाँ पाप श्रमण अध्ययन निग्रंथ धर्म को जानकर के भी स्वच्छन्द घूमने वाला शयनासन में प्रमत्त, अध्ययन से विमुख अधिक आहार और अधिक निद्रा-लेने वाला जिनसे ज्ञान प्राप्त किया उनकी ही निन्दा करने वाला अविनयी और अभिमानी प्राणियों का उत्पीड़क. बीजादि वनस्पतियों का संहारक अपमाजित संस्तारक आदि काउपभोक्ता अविवेक से चलने वाला अविधि से प्रतिलेखन करने वाला गुरुजनों का तिरस्कार करने वाला मायावी, बहुभाषी, अभिमानी, लोभी, विषयी, लोलुप, द्वेषी कलह प्रिय. अस्थिर-चंचल प्रमार्जन न करने वाला और अविवेक से हाथ फैलाने वाला विकार वर्द्धक आहार करने वाला और तपश्चर्या न करने वाला अनियमित भोजी Page #825 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूची १७ स्वच्छन्द, पर दर्शन प्रशंसक, बार-बार गण बदलने वाला, दुराचारी गृहस्थों के कृत्य करनेवाला, विद्योपजीवी सर्वदा स्वजाति के गृहस्थों से भिक्षा लेने वाला और गृहस्थ के घर में बैठने वाला उपसंहार --- पंचाश्रव सेवी श्रमणवेषी उभयलोक भ्रष्ट होता है सर्वदोष वर्जित सुव्रत श्रमण उभयलोक का आराधक होता है अठारह वां संयती अध्ययन १८ १६ २० २१ १-५ क ७६७ कम्पिलपुर के संयस राजा का शिकार के लिये केसर उद्यान में आना ख- बाण विद्ध एक मृग का ध्यानस्थ तपोधन अनगार गद्दभाली के समीप जाकर पड़ना मृग के पीछे-पीछे राजा का आना ६ ७-१० क- राजा का पश्चात्ताप करना ख- मुनि से क्षमा याचना ११-१८ राजा को मुनि का उपदेश १६ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७-२८ पूर्वजन्म का ज्ञान है २६ अ० १८ गाथा २६ गद्दभाली के समीप राजा संजय का दीक्षित होना संजय मुनि से किसी श्रमण विशेष के कुछ प्रश्न सर्व प्रथम संजय का पूर्व परिचय व अन्य प्रश्नों का उत्तर देना क्रियावाद आदि चार वादों का सर्वत्र प्रचार व प्रसार है यह भ० महावीर ने कहा है पानी और धर्मी की गति मृषावादी क्रियावादियों से मैं सावधान हूं सर्ववादों का विवेक है और आत्मबोध है सम्यक् ज्ञानोपासना करता हूँ Page #826 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० १६ गाथा ६८ ७६८ उत्तराध्ययन-सूची mr ३१ m a ३० प्रश्न विद्या एवं गृहस्थ गोष्ठी से निवृत्त हूँ अन्य प्रश्नों का उत्तर देने की क्षमता ३२ क्रियावाद की उपासना ३३-५० भरत, सगर, मघव, सनत्कुमार, शान्ति, कुंथु, अर, महापद्म, हरिषेण, जय, दशार्णभद्र, नमि, करकंडू, दुमुख, नग्गई, उदायन, श्वेत, विजय, महबल आदि अनेक राजाओं का पूर्वकाल में प्रव्रजित होना ५१ . धीर पुरुषों का अप्रमत्त विहार जिनवाणी के श्रवण से तीन काल में तिरना उपसंहार- सर्वथा परिग्रह मुक्त की मुक्ति उन्नीस वाँ मृगापुत्र अध्ययन १-८ क- सुग्रीव नगर, बलभद्र राजा, मृगा रानी ख- मृगापुत्र को मुनि दर्शन से पूर्व जन्म की स्मृति ९-१० मृगापुत्र का माता-पिताओं से प्रव्रज्या के लिये अनुमति प्राप्त करना m ११-२३ मृगापुत्र द्वारा भुक्त भोगों का यथार्थ वर्णन २४-४३ माता-पिता द्वारा श्रमण जीवन की कठिनाइयों का प्रतिपादन ४४-७४ मृगापुत्र द्वारा पूर्व वेदित नरक वेदना का वर्णन ७५ माता-पिता द्वारा श्रमण जीवन की असुविधाओं का वर्णन ७६-८३ मृगापुत्र द्वारा मृगचर्या का वर्णन ८४-८७ क- अनुमति प्राप्त मृगापुत्र का गृहत्याग ख- गृह को नाग कंचुक की उपमा ग- परिग्रह को पद-रज (वस्त्र के लगी हुई) की उपमा ८८-६५ क- मृगापुत्र के श्रामण्य जीवन का वर्णन ख- एक मास की संलेखना और शिवपद . ६६-६८ उपसंहार Page #827 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० २० गाथा ५० उत्तराध्ययन-सूची क- मृगापुत्र के समान पंडित जनों की भोगों से निवृत्ति ख- मृगापुत्र का वर्णन सुनकर जीवन को प्रशस्त बनाना बीस वाँ महानिग्रंथीय अध्ययन १ क- सिद्धों और संयतों को नमस्कार ख- सत्य धर्मकथा सुनने के लिये प्रेरणा २-८ क- मगधाधिप श्रेणिक का मण्डिकुक्ष चैत्य में घूमने के लिये जाना ख. चैत्य में मुनिदर्शन का होना ग- मुनि से श्रेणिक के कुछ प्रश्न है मुनि का अपने आपको अनाथ कहना .. १०-११ मुनि के कथन से श्रेणिक को आश्चर्य, नाथ होने के लिये निवेदन १२-१५ क- मुनि ने श्रेणिक को अनाथ कहा ख- अनाथ कहने से श्रेणिक को आश्चर्य, श्रेणिक ने अपना परिचय दिया १६-३५ क- मुनि द्वारा स्वयं की अनाथता का दिग्दर्शन ख- गृहस्थ जीवन में हुई चक्षुशूल की वेदना का वर्णन ग- उपचारों की असफलता घ- अनगार प्रव्रज्या लेने के संकल्प से वेदना की उपशान्ति ङ- अनगार बनने पर सनाथ होना ३६.३७ सुख दुःख का कर्ता भोक्ता आत्मा अनाथता के अनेक प्रकार ३८.५० क- श्रमण जीवन में शिथिलाचार ख- श्रमण होने पर भी भोगासक्ति ग- पाँच समितियों का सम्यक् पालन न करना घ- व्रतभंग, अनियमित जीवन ङ- द्रव्यलिंग-केवल साधुवेश च- असंयत जीवन Page #828 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०० उत्तराध्ययन-सूची अ० २२ गाथा ४ छ- विषयासक्ति ज- विद्योपजीवी होना झ- सदोष आहार का सेवन अथवा सर्वभक्षी होना अ- अन्तिम समय में पश्चाताप और दुर्गति ५१ कुशील को छोड़कर महानिग्रंथों के पथपर चलने का उपदेश ५२ संयम साधना से शिवपद ५३ उपसंहार-महानिग्रंथ के जीवन का विस्तृत वर्णन ५४-५९ अनाथी निग्रंथ से श्रेणिक की क्षमा याचना, स्वस्थान गमन मुनि जीवन की विहग-पक्षी-जीवन से तुलना इकबीस वां समुद्रपालीय अध्ययन चम्पा निवासी पालित श्रावक भ० महावीर का शिष्य पालित का पिंहुडनगर जाना पालित का विवाह, गर्भवती स्त्री को साथ लेकर स्वदेश के लिये प्रस्थान करना समुद्र में प्रसव, समुद्रपाल नाम ५-७ चंपा में समुद्रपाल का संवर्धन, अध्ययन और विवाह ८-१० वध्य भूमि की और ले जाते हुए चोर को देखकर समुद्रपाल को वैराग्य, प्रवज्या ग्रहण ११-२२ समूद्रपाल की संयम साधना समुद्रपाल को केवल ज्ञान २४ समुद्रपाल का संसार समुद्र से पार होना बावोस वां रहनेमीय अध्ययन शौरीपुर में वसुदेव राजा बसुदेव के दो भार्या और दो पुत्र शौरीपुर में समुद्र विजय राजा शिवा के पुत्र अरिष्टनेमि . २३ Page #829 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ अ० २३ गाथा १३ ८०१ ... उत्तराध्ययन-सूची अरिपने मि के लिये केशव द्वारा राजिमती की याचना ६-१४ विवाह-मण्डप के समीप अरिष्टनेमि ने वध के लिये एकत्रित पशु-पक्षियों का वाड़ा देखा १५-१६ अरिष्टनेमि का सारथी से प्रश्न सारथी का उत्तर १८-२० अरिपनेमि का आत्महित चिन्तन, सारथि को पारितोषिक २१-२७ अरिपनेमि का दीक्षा महोत्सव और रैवतक पर्व त पर तप-साधना २८-३२ राजीमती की प्रव्रज्या ३३.४० क- राजीमती का रैवतक पर्वत पर स्थित भ० अरिपनेमि के दर्शन लिये जाना ख- मार्ग में वर्षा होना ग- आर्द्र वस्त्रों को सुखाने के लिये गुफा में जाना घ- गुफा में स्थित रथनेमि का संयम से विचलित होना ४१-४६ राजीमती का रथनेमि को उपदेश ४७-४४ रथनेमि का संयम में स्थिर होना राजमती और रथनेमि को केवल ज्ञान और निर्वाण प्राप्ति उपसंहार-इस प्रकार भोगों से निवृत्त पण्डित पुरुषोत्तम होता है तेवीसवाँ केशी-गौतम अध्ययन सावत्थी के तिन्दुक उद्यान में भ० पार्श्वनाथ के शिष्य केशी श्रमण का आगमन ५.८ भ० वर्धमान महावीर के शिष्य गौतम का सावत्थी के कोष्ठक चैत्य में ठहरना ६-१३ दोनों के शिष्यों में अचेल-सचेल और चार याम, पाँच याम के सम्बन्ध में जिज्ञासा १-४ Page #830 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०२ उत्तराध्ययन-सूची अ० २३ गाथा ७३ १४-२० केशी श्रमण और भ० गौतम का मिलन तथा चर्चा २१-२८ क- केशी श्रमण का प्रथम प्रश्न-चार याम और पाँच याम धर्म की भिन्नता का मुख्य हेतु क्या है ? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान २९.३३ क- केशी श्रमण का द्वितीय प्रश्न-भ० पार्श्वनाथ और ___भ० महावीर के अनुयायी श्रमणों की विभिन्न वेशभूषा क्यों? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ३४.३८ क- केशी श्रमण का तृतीय प्रश्न - शत्रुओं पर विजय प्राप्ति का क्रम कौनसा है ? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ३९-४३ क- केशी श्रमण का चतुर्थ प्रश्न-स्नेह बन्धन से मुक्ति किस प्रकार होती है ? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ४४-४८ क- केशी श्रमण का पंचम प्रश्न-तृष्णा का छेदन किस प्रकार? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ४६-५३ क- केशी श्रमण का षष्ठ प्रश्न---कषाय अग्नि का शमन किस प्रकार ? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ५४-५८ क- केशी श्रमण का सप्तम प्रश्न-मन का दमन किस प्रकार? ख- भ० गौतम का समाधान ५६-६३ क- केशी श्रमण का अष्टम प्रश्न--सन्मार्ग गमन किस प्रकार? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ६४-६८ क- केशी श्रमण का नवम प्रश्न-जन्म जरा मरण से मुक्ति किस प्रकार ? ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ६६-७३ का. केशी श्रमण का दशम प्रश्न-~-संसार समुद्र से पार करने वाली नौका व नाविक कौन ? Page #831 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० २५ गाथा ३ ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ७४-७८ क केशी कुमार भ्रमण का एकादशम प्रश्नप्रकाशक कौन ? ८५-८७ ८८ ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ७६-८४ क - केशीकुमार श्रमण का द्वादशम प्रश्नकौन सा ? A ख- भ० गौतम द्वारा समाधान ८६ १-३ ४-८ ११-१२ १३-१४ १५-१६ २०-२१ २२-२३ २४-२५ २६-२७ ८०३ :१-३ ६-१० क भाषा समिति के आठ दोष ख के दो विशेषण एषणा समिति के तीन भेद आदान समिति के दो भेद परिष्ठापनिका समिति के चार भेद मन गुप्ति के चार भेद वचन गुप्ति के चार भेद काय गुप्ति के पांच भेद क- इर्या समिति के चार भेद ख- यतना के चार भेद उत्तराध्ययन सूची केशी भ्रमण का पंच महाव्रत धारण उपसंहार - केशी गौतम के समागम से श्रुत और शील का उत्कर्ष जन साधारण में श्रद्धा की अभिवृद्धि चौवीसवाँ समिति अध्ययन अष्ट प्रवचन माता -पाँच समिति, तीन गुप्ति " - सम्पूर्ण लोक का -शाश्वत स्थान उपसंहार -- समिति गुप्ति की परिभाषा, अष्ट प्रवचन माता की सम्यक् आराधना से मुक्ति पच्चीसवाँ यज्ञ अध्ययन जय घोष मुनि का वाराणसी के बाहर उद्यान में ठहरना Page #832 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० २६ गाथा ४ ८०४ उत्तराध्ययन-सूची १७ १८ mr उसी वाराणसी में विजयघोष का यज्ञ करना मासोपवास के पारणे के लिये जयघोष का विजयघोष के यज्ञ में जाना विजय घोष का भिक्षा न देना यज्ञान्न के अधिकारियों का वर्णन ६-१२ क- जयघोष का समभाव ख- विजयघोष के कतिपय प्रश्न १३-१५ समाधान के लिये विजयघोष की प्रार्थना जयघोष द्वारा समाधान भ० काश्यप, भ० ऋषभदेव की महिमा यज्ञवादी ब्राह्मणों की दशा १९-२६ वास्तविक ब्राह्मण का वर्णन वेद विहित यज्ञ का वर्णन ३१-३२ श्रमण, ब्राह्मण, मुनि और तापस की व्याख्या वर्णाश्रम व्यवस्था का मूल आधार कर्म । कर्ममूलक व्यवस्था का प्रतिपादक ही सच्चा ब्राह्मण गुणी ब्राह्मण से ही स्व-पर का कल्याण ३६-४० क- विजय घोष की जयघोष से भिक्षा के लिये प्रार्थना ख- जयघोष का विजयघोष को विरति का उपदेश भोगी और भोग मुक्त की गति ४२-४३ भोगी और भोग मूक्त को दो गोलों की उपमा ४४-४५ उपसंहार-विजयघोष की श्रमण प्रव्रज्या, जयघोष विजयघोष की सिद्धि छब्बीसवाँ समाचारी अध्ययन श्रमण-समाचारी का कथन २-४ समाचारी के दस भेद mr m Page #833 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूची ५-७ ८- १० ११ १२ १३-१६ पौरुषी प्रमाण २८ २६ ३० ३१ ३२ ३३-३४ ३५ ३६ दस समाचारियों के कर्त्तव्य दिवस - समाचारी दिन के चार भाग चार भागों में श्रमण के कृत्य १७ रात्रि- समाचारी, रात्रि के चार भाग १८ चार भागों में भ्रमण के कर्त्तव्य २१-२२ दिवस - समाचारी- प्रथम भाग में करने योग्य कार्य २३- २५ प्रति लेखना की विधि २६ दोष २७ ३७ ३८ ३६ ४० ४१ ४२ ४३ ४४ ८०५ प्रतिलेखना के ६ प्रति लेखना के अन्य दोष प्रति लेखना के तीन पदों के आठ भांगे प्रति लेखना के समय निषिद्ध कृत्य प्रमत्त प्रतिलेखक विराधक अप्रमत्त प्रतिलेखक आराधक तृतीय पौरुषी में भिक्षा आहार लेने के ६ कारण आहार त्याग के ६ कारण भिक्षा क्षेत्र का उत्कृष्ट प्रमाण चतुर्थ पौरुषी के कर्त्तव्य शय्या की प्रतिलेखना का समय मलमूत्र विसर्जनार्थ भूमि का अवलोकन देवसिक अतिचारों-दोषों का चिन्तन की आलोचना "" कायोत्सर्ग 32 स्तुति मंगल पाठ - काल विवेक रात्रि- समाचारी― चार भाग के कर्त्तव्य अ० २६ गाथा ४४ Page #834 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० २८ गाथा ७ ८०६ उत्तराध्ययन-सूची ४६ ४८ ४६ चतुर्थ विभाग के विशेष कृत्य काल-विवेक कायोत्सर्ग रात्रि-अतिचारों-दोषों---का चिन्तन रात्रि-अतिचारों की आलोचना ५०-५१ कायोत्सर्ग-तप चिन्तना-जिन स्तुति सिद्ध-स्तुति उपसंहार-समाचारी की आराधना से शिवपद की प्राप्ति सत्तावीसवाँ खलुंकीय अध्ययन गर्गाचार्य का आध्यात्मिक परिचय वाहन और योग-संयम-वहन की तुलना ३-८ दुष्ट वृषभ और दुष्ट शिष्य की तुलना ६-१३ दुष्ट शिष्यों के लक्षण गर्गाचार्य की चिन्ता गर्गाचार्य की सारथि से तुलना १६ क- दुष्ट शिष्यों को गर्दभ को उपमा ख- गर्गाचार्य द्वारा दुष्ट शिष्यों का परित्याग गर्गाचार्य का एकाकि विहार अठावीसवाँ मोक्षमार्ग गति अध्ययन मोक्षमार्ग के चार कारण ज्ञान ज्ञान के पाँच भेद ज्ञान की परिभाषा द्रव्य और पर्याय का लक्षण षड् द्रव्यात्मक लोक Page #835 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ०२६ सूत्र ६ ८०७ उत्तराध्ययन-सूची ८ क- धर्म, अधर्म और आकाश एक द्रव्यात्मक ख- काल, जीव और पुदगल अनेक द्रव्यात्मक ६.१२ षड़ द्रव्य के लक्षण पर्याय के लक्षण दर्शन १४ الله नव तत्त्व के नाम १५ सम्यक्त्व की व्याख्या १६-२७ सम्यकत्व के दस भेद २८ सम्यक्त्वी के तीन प्रमुख कर्तव्य २६-३० ज्ञानादि चार का परस्पर अनुबन्ध सम्यक्त्वी के अष्ट कृत्य चारित्र चारित्र के पाँच भेद चारित्र की व्याख्या तप तप के दो भेद, प्रत्येक के ६-६ भेद ज्ञानादि चार का फल उपसंहार- तप संयम से कर्मक्षय الله الله الله سد سد مه له उनत्तीसवाँ सम्यकत्व-पराक्रम अध्ययन क- भ० महावीर द्वारा सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययन का प्रतिपादन ख- अराधना से सिद्धि अध्ययन के विषय संवेग का फल निर्वेद का फल धर्म श्रद्धा का फल गुरु और स्वधर्मी सुश्रुषा का फल الله » مي م Page #836 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन सूची ८०८ अ०२६ सूत्र ३३ आलोचना का फल आत्मनिन्दा का फल गर्दा का फल सामायिक का फल चतुर्विंशतिस्तव का फल वन्दना का फल प्रतिक्रमण का फल कायोत्सर्ग का फल प्रत्याख्यान का फल स्तव-स्तुति-मंगल का फल काल प्रतिलेखना' 'समयज्ञ होने का फल प्रायश्चित्त का फल क्षमापना का फल स्वाध्याय का फल वाचना का फल पृच्छना का फल परिवर्तना-आवृत्ति-का फल अनुप्रेक्षा का फल धर्म कथा का फल श्रुत की आराधना का फल । मन को एकाग्र करने का फल संयम का फल तप का फल व्यवदान-कर्मक्षय-का फल सुख शाता का फल अप्रतिबद्धता का फल विविक्त शय्यासन सेवन का फल Page #837 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० २६ सूत्र ६० ८०६ उत्तराध्ययन-सूची X mr mr X w m r mr IS w mm o 0 on ४६ विनिवर्तना का फल संभोग-व्यवहार-त्याग का फल उपधि त्याग का फल आहार त्याग का फल कषाय त्याग का फल योगत्रय के त्याग का फल शरीर त्याग का फल सहायक के त्याग का फल आहार त्याग का फल सद्भाव-प्रवृति-के त्याग का फल प्रतिरूपता-श्रमण वेषभूषा का फल वैयावृत्य सेवा का फल सर्वगुण संपन्नता का फल वीतरागता का फल क्षमा का फल मुक्ति-निर्लोभता का फल ऋजुता का फल मृदुता का फल सत्य विचारों का फल सत्य-यर्थाथ-क्रिया का फल सत्य योगों का फल मन के निग्रह का फल वचन के निग्रह का फल काया के निग्रह का फल मन के शान्त करने का फल विवेक पूर्वक बोलने का फल विवेक पूर्वक की गई कायिक क्रियाओं का फल ५३ ५६ ६० Page #838 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ८१० अ० ३० गाथा ११ w w w w w w w 9.9 ६१ ज्ञान युक्त होने का फल श्रद्धा युक्त होने का फल चारित्र युक्त होने का फल श्रोत्रेन्द्रिय निग्रह का फल चक्षु इन्द्रिय निग्रह का फल घ्राणेन्द्रिय निग्रह का फल जिह्वा इन्द्रिय निग्रह का फल स्पर्श न्द्रिय निग्रह का फल क्रोध-विजय का फल मान-विजय का फल माया-विजय का फल लोभ-विजय का फल मिथ्या दर्शन शल्य विजय का फल योगों के सर्वथा निरोध का फल-कर्म क्षय का फल उपसंहार-सम्यक्त्व पराक्रम अध्ययन का भ० महावीर द्वारा प्ररूपण तीसवां तप-मार्ग अध्ययन तप से कर्मक्षय आश्रव-शुभाशुभ कर्म-निरोध के लिए ६ व्रतों का आचरण आश्रव निरोध के लिये आवश्यक कृत्य आवश्यक कृत्यों से कर्मक्षय जलाशय का उदाहरण तप के दो भेद....प्रत्येक के ६-६ भेद बाह्य तप के ६ भेद अनशन के दो भेद १०-११ इत्वरिक-अल्पकालिक-अनशन के ६ भेद GK www Page #839 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ३१ गाथा ३ १२ १३ १४ ८ ११ यावज्जीवन - अनशन के दो भेद प्रकारान्तर से दो-दो भेद ऊनोदर तप के पाँच भेद - १५ १६-१६ २०-२१ २२-२३ २४ द्रव्य ऊनोदर तप क्षेत्र ऊनोदर तप काल ऊनोदर तप भाव ऊनोदर तप पर्यव ऊनोदर तप २५ भिक्षाचर्या के सात भेद २६ रस-परित्याग तप २७ कायक्लेश तप २८ प्रति संलीनता तप २६ क- बाह्य तप का वर्णन समाप्त ३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ख- आभ्यन्तर तप वर्णन प्रारम्भ आभ्यन्तर तप के ६ भेद प्रायश्चित्त के दस भेद विनय तप वैयावृत्य-परिचर्या तप के दस भेद स्वाध्याय के पांच भेद विधि - निषेध से ध्यान के चार भेद कायोत्सर्ग तप उपसंहार - तप से निर्वाण इकतीसवाँ चरण - विधि अध्ययन चारित्र से भव- मुक्ति निवृत्ति प्रवृत्ति की व्याख्या राग-द्वेष से निवृत्ति उत्तराध्ययन सूची Page #840 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ८१२ अ० ३० गाथा २० ४ दण्ड, गर्व और शल्य से निवृत्ति ५ उपसर्ग सहन विकथा, कषाय, संज्ञा और दुर्ध्यान द्वय से निवृत्ति ७ क- व्रतों और समितियों में प्रवृत्ति ख- इन्द्रियों के विषयों से और क्रियाओं से निवृत्ति ८ क- लेश्या और आहार के ६ कारणों से निवृत्ति ख- ६ काय के आरम्भ से निवृत्ति है क- पिण्ड अवग्रह प्रतिमाओं में प्रवृत्ति ख- भय स्थानों से निवृत्ति १० क- मद स्थानों से निवृत्ति - ख- ब्रह्मचर्य गुप्तियाँ और भिक्षु-धर्मों में प्रवृत्ति -११ उपासक और भिक्षु-प्रतिमाओं में प्रवृत्ति १२ क्रियास्थान भूतग्राम और परमाधार्मिकों से निवृत्ति १३ क- गाथा षोडशक में प्रवृत्ति ख- असंयमों से निवृत्ति १४ क- ब्रह्मचर्य और ज्ञाता अध्ययनों में निवृत्ति ख- असमाधि स्थानों से निवृत्ति १५ सबल दोषों से और परिषहों से निवृत्ति १६ क- सूत्रकृताङ्ग के अध्ययनों के स्वाध्याय में प्रवृत्ति ख- देव विषयक निवृत्ति १७ क- भावनाओं में प्रवृत्ति ख- दशा कल्प और व्यवहार के अध्ययनों में प्रवृत्ति-निवृत्ति १८ क- अनगार गुणों में प्रवृत्ति ख- आचार प्रकल्प के अध्ययनों में प्रवृत्ति-निवृत्ति १६ पापश्रुत और मोह स्थानों से निवृत्ति २० क- सिद्धातिशयों में प्रवृत्ति ख- आशातनाओं से निवृत्ति Page #841 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ३२ गाथा ४७ २१ १ २-५ ६-७ ८ & १० ११ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ ८ १३ उपसंहार - चरणविधि की अराधना से भाव - मुक्ति बत्तीसवाँ प्रमाद स्थान अध्ययन दुःख से मुक्त होने की विधि का श्रवण समाधिमरण के साधन दुःख के कारण दुःख का समूल नाश मोह से मुक्त होने के उपायों का कथन रस सेवन का निषेध, रस और काम का सम्बन्ध रस को फल की और काम को पक्षी की उपमा इन्द्रियों की विषयाभिलाषा को दावाग्नि की उपमा राग शत्रु को जीतने के उपाय, राग को व्याधि की उपमा एकान्त शयन आदि को औषधि की उपमा ब्रह्मचारी के लिये निषिद्ध स्थान, ब्रह्मचारी को मूषक की उपमा और स्त्री को बिडाल की उपमा स्त्री को विकृत दृष्टि से देखने का निषेध ब्रह्मचारी के हितकारी ब्रह्मचारी के लिये एकान्तवास प्रशस्त है मनोहर स्त्रियों का त्याग दुष्कर है स्त्री-त्याग को समुद्र की उपमा शेष वस्तुओं के त्याग को नदी की उपमा उत्तराध्ययन सूची दुःख का मूल काम और उसके विजेता- वीतराग काम को किपाकफल की उपमा २० २१ विषयों से विरक्त होने का उपदेश २२-३४ चाक्षुष विषयों से विरक्ति, पद्म-पत्र के समान अलिप्त रहने का उपदेश ३५-४७ श्रोत्रेन्द्रिय के विषयों से विरक्ति Page #842 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ८१४ अ० ३३ गाथा १६ ४८-६० घ्राणेन्द्रिय के विषयों से विरक्ति ६१-७३ जिह्वा इन्द्रिय के विषयों से विरक्ति .. ७४-८६ स्पर्शेन्द्रिय के विषयों से विरक्ति ८७-६६ भाव विरक्ति १०० उपसंहार—दुःख के हेतु-इन्द्रियों के विषय दुःख से मुक्त वीतराग १०१ दुःख का मूल विषय नहीं अपितु राग-द्वेष है १०२-१०३मानसिक विकार १०४-१०५सावधान साधक के कर्तव्य १०६ विरक्त पर अच्छे बुरे पदार्थों का प्रभाव नहीं होता १०७ सकल्प विजय से तृष्णा विजय १०८ वीतराग के सर्वथा कर्मक्षय १०६ जीवन्मुक्त की मुक्ति ११० मुक्त आत्मा का शास्वत सुख १११ दुःख मुक्ति के उपायों का ज्ञाता तेतीसवाँ कर्म प्रकृति अध्ययन १ अष्ट कर्मों के कथन का संकल्प २-३ अष्टकर्मों के नाम ४ (१) ज्ञानारवरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियां ५-६ (२) दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ७ (३) वेदनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ ८-११ (४) मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १२ (५) आयु कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १३ (६) नामकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १४ (७) गोत्रकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ. १५ (८) अन्तराय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १६ अष्ट कर्मों के प्रदेश-क्षेत्र-काल और भाव के कथन का संकल्प Page #843 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ३४ गाथा १३ ८१५ उत्तराध्ययन-सूची १७ अष्ट कर्मों के प्रदेश १८ अष्ट कर्मप्रदेशों का पोत्र अष्ट कर्मों की स्थिति १६-२० ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्म की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति २१ मोहनीय कर्म की जघन्य उत्कृष स्थिति २२ आयुकर्म की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति २३ नाम और गोत्र कर्म की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति २४ अष्ट कर्मों का अनुभाग-रस २५ उपसंहार---कर्मविपाक ज्ञाता चोतीसवाँ लेश्या अध्ययन १ कर्म लेश्याओं के कथन का संकल्प २ लेश्या सम्बन्धि इग्यारह अधिकार ३ लेश्याओं के नाम लेश्याओं के वर्ण ४ कृष्ण लेश्या का वर्ण ५ नील लेश्या का वर्ण ६ कापोत लेश्या का वर्ण ७ तेजो लेश्या का वर्ण ८ पद्म लेश्या का वर्ण ६ शुक्ल लेश्याका वर्ण लेश्याओं के रस १० कृष्ण लेश्या का रस ११ नील लेश्या का रस १२ कापोत लेश्या का रस १३ तेजो लेश्या का रस Page #844 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ८१६ अ० ३४ गाथा ३६ १४ पद्म लेश्या का रस १५ शुक्ल लेश्या का रस लेश्याओं की गन्ध १६ तीन अप्रशस्त लेश्याओं की गन्ध १७ तीन प्रशस्त लेश्याओं की गन्ध लेश्याओं का स्पर्श १८ तीन अप्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श १६ तीन प्रशस्त लेश्याओं का स्पर्श लेश्याओं के परिणाम २० छहों लेश्याओं के परिणामों की संख्या लेश्याओं के लक्षण २१-२२ कृष्णा लेश्या का लक्षण २३-२४ नील लेश्या का लक्षण २५-२६ कापोत लेश्या का लक्षण २७-२८ तेजो लेश्या का लक्षण २६-३० पद्म लेश्या का लक्षण ३१-३२ शुक्ल लेश्या का लक्षण लेश्याओं के स्थान ३३ छहों लेश्याओं के स्थान लेश्याओं की स्थिति ३४ कृष्ण लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ३५ नील लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ३६ कापोत लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ३७ तेजो लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ३८ पद्म लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ३६ शुक्ल लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति Page #845 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ अ० ३५ गाथा ५ उत्तराध्ययन-सूची चार गतियों में लेश्याओं की स्थिति ४० चार गतियों में लेश्या-स्थिति कहने का संकल्प नरक गति में लेश्याओं की स्थिति ४१ नरक गति में कापोत लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ४२ , नील लेश्या की जघन्य उत्कृष्ठ स्थिति , कृष्ण लेश्या की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ४४ तिर्यच और मनुष्य गति में लेश्याओं की स्थिति ४५ कृष्ण से पद्म पर्यन्त लेश्याओं को जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ४६ शुक्ल लेश्या की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ४७ देवगति में लेश्याओं की स्थिति ४८ देवगति में कृष्ण लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति नील लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति कापोत लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ५१-५३ , तेजो लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति ५४ , पद्म लेश्या की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति ५५ , शुक्ल लेश्या की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति लेश्याओं की गति ५६ तीन अधर्म लेश्याओं की गति ५७ तीन धर्म लेश्याओं की गति ५८-६० लेश्याओं की परिणति में परलोक गमन ६१ उपसंहार—लेश्याओं के अनुभाव का ज्ञाता पैतीसवाँ अनगार अध्ययन १ बुद्ध कथित मार्ग कहने का संकल्प २-३ संयत के संगों—बन्धनों का ज्ञान ४ साधु निवास के अयोग्य स्थान ५ अयोग्य स्थान में न ठहरने का कारण Page #846 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची अ० ३६ गाथा १२ ६-७ साधु के निवास योग्य स्थान ८-६ अन्य कृत स्थान में ठहरने का कारण १०-१२ क- भोजन बनाने का निषेध ख- निषेध का हेतु १३-१५ क्रय-विक्रय का निषेध भिक्षावृत्ति का विधान आहार भक्षण विधि सन्मान कामना का निषेध साधना विधि अन्तिम साधना उपसंहार-निर्वाण पथ का पथिक छत्तीसवाँ जीवाजीवविभक्ति अध्ययन जीवाजीव-विभक्ति के ज्ञान से संयम साधना लोक-अलोक का स्वरूप . अजीव विभाग ३ जीव-अजीव की द्रव्य क्षेत्र काल और भाव प्ररूपणा ४ क- अजीव के दो भेद ख- अरूपी अजीव के दस भेद ग- रूपी अजीव के चार भेद अरूपी अजीव के दश भेद धर्म, अधर्म, आकाश और काल का क्षेत्र धर्म, अधर्म और आकाश अनादि अनन्त १ क- काल-संतति अपेक्षा अनादि अनन्त ख- आदेश अपेक्षा सादि-सान्त १० रूपी अजीव के चार भेद ११-१२ क- स्कन्ध और परमाणु का लक्षण 1 GK w Page #847 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ३६ गाथा ८ १ १३ १४ १५-४६ ४७ ४८ ४६ ५० ५१ ५२ ५३ ७०-७७ ७८ ७६ is is ८१६ ख- स्कन्ध और परमाणु का क्षेत्र ग 1 ໐ ८१ रूपी अजीव द्रव्य की स्थिति रूपी अजीव द्रव्य का अन्तरकाल रूपी अजीव द्रव्य के पाँच परिणाम जीव विभाग जीव विभाग का कथन जीव के दो भेद " सिद्धों के अनेक भेद सिद्धों की अवगाहना एक समय में सिद्ध होने वालों की संख्या ५४ '५५-५६ ५७-५६ ६० ६१ लोकान्त का परिमाण ६२-६६ क- संसार की स्थिति, जीव के दो भेद ख- स्थावर जीवों के तीन भेद की अपेक्षाकृत स्थिति " लिङ्ग की अपेक्षा से सिद्ध होने वालों की संख्या अवगाहना की अपेक्षा से सिद्ध होने वालों की संख्या क्षेत्र की अपेक्षा से सिद्ध होने वालों की संख्या सिद्धों का वर्णन ईषत् प्राग्भारा पृथ्वी - सिद्धस्थान का आयत विस्तार और सिद्ध स्थान की रचना 13 "" उत्तराध्ययन सूची पृथ्वीकाय के भेद पृथ्वीकाय की व्यापकता द्रव्य और पर्याय की अपेक्षा पृथ्वीकाय की स्थिति पृथ्वीकाय के जीवों की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति पृथ्वीकायिक जीवों की काय स्थिति Page #848 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ८२-६१ २-१०६ २४६ २५० २५१ २५२ ८२० १०७ १०८-११६ तेजस्काय और तेजस्कायिक जीवों का वर्णन ११७-१२५ वायुकाय और वायुकायिक जीवों का वर्णन १२६ उदार त्रस जीवों के चार भेद १२७- १३५ द्वीन्द्रिय जीवों का वर्णन १३६-१४४ त्रीन्द्रिय जीवों का वर्णन १४५-१५४ चतुरिन्द्रिय जीवों का वर्णन १५५ क- पंचेन्द्रिय जीवों का वर्णन ख- पंचेन्द्रिय जीवों के चार भेद १५६ - १६६ नैरयिक जीवों का वर्णन १७०-१६३ पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का वर्णन १९४ - २०२ मनुष्यों का वर्णन २०३-२४८ चार प्रकार के देवों का वर्णन २५७ २५८ २५६ २६० २६१ २६२ २६३ अकाय और अप्कायिक जीवों का वर्णन वनस्पतिकाय और वनस्पति कायिक जीवों का वर्णन त्रस जीवों के तीन भेद उपसंहार नयों की अपेक्षा से जीव अजीव का ज्ञान संलेखना का विधान संलेखना के तीन भेद २५३-२५६ उत्कृष्ट संलेखना का वर्णन अ० ३६ गाथा २६३ अशुभ भावनाओं से दुर्गति और विराधना दुर्लभ बोधि जीव सुलभ बोधि जीव दुर्लभ बोधि जीवन जिन वचनों पर श्रद्धा करने का फल जिन वचनों पर अश्रद्धा करने का फल आलोचना सुनने के योग्य अधिकारी Page #849 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तराध्ययन-सूची ८२१ अ०३६ गाथा २६६ २६४ २६५ २६७ कंदर्प भावना वर्णन अभियोग भावना वर्णन किल्विष भावना वर्णन आसुरी भावना वर्णन मोह भावना वर्णन उपसंहार---छत्तीस उत्तराध्ययनों के कथन के पश्चात भ० महावीर को निर्वाण की प्राप्ति २६६ Page #850 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #851 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो बुद्धाणं द्रव्यानुयोगमय नन्दीसूत्र ७०० श्लोक परिमाण अध्ययन मूल पाठ गद्य सूत्र पद्य गाथा Page #852 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #853 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा १-३ वीर स्तुति ४-१६ संघ स्तुति ४ क- संघ को नगर की उपमा ५ ख- संघ को चक्र की उपमा ६ ग संघ को रथ की उपमा ७-८ घ संघ को कमल की उपमा ६ ङ- संघ को चन्द्र को उपमा १० च- संघ को सूर्य की उपमा ११ छ- संघ को समुद्र की उपमा १२-१८ - संघ को मेरु की उपमा १६ झ- उपसंहार २०-२१ २३ २४ नन्दी सूत्र विषय - सूची २५-५० ५१ ५२-५४ सूत्र १ २ ३ ४ चतुर्विंशति जिन वंदना इग्यारह गणधर वंदना जिन शासन स्तुति स्थविरावली श्रोता की चौदह उपमा तीन प्रकार की परिषद ज्ञान के पाँच भेद ज्ञान के दो भेद प्रत्यक्ष ज्ञान के दो भेद इन्द्रिय प्रत्यक्ष के पाँच भेद Page #854 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्दोसूत्र-सूची ८२६ गाथा ६४ ५ नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष के तीन भेद ६ अवधि ज्ञान के दो भेद ७ भव-प्रत्ययिक अवधिज्ञान वाले दो ८ क्षायोपशमिक अवधिज्ञान वाले दो क्षायोपशमिक अवधिज्ञान के छः भेद १० क- आनुगामिक अवधिज्ञान के दो भेद ख- अंतगत अवधिज्ञान के तीन भेद ग- प्रत्येक भेद की व्याख्या घ. मध्यगत अवधिज्ञान की व्याख्या ङ- अंतगत और मध्यगत की विशेषता ११ अनानुगामिक अवधिज्ञान की व्याख्या १२ वर्धमान अवधिज्ञान की व्याख्या गाथा ५५ क- अवधिज्ञान का जघन्य क्षेत्र ५६ ख- अवधिज्ञान का उत्कृष्ट क्षेत्र ५७ ग- अवधिज्ञान का मध्यम क्षेत्र ५८-६० घ. क्षेत्र और काल की अपेक्षा अवधि ज्ञान का विस्तार ६१ ङ- क्षेत्र और काल की वृद्धि का नियम ६२ च- काल और क्षेत्र की सूक्ष्मता १३ हीयमान अवधिज्ञान की व्याख्या प्रतिपाति अवधिज्ञान की व्याख्या अप्रतिपाति अवधिज्ञान की व्याख्या १६ अप्रतिपाति अवधिज्ञान के चार भेद गाथा ६३ अवधिज्ञान के अनेक भेद ६४ क- नियमित अवधिज्ञान वाले ख- पूर्ण अवधिज्ञान वाले Page #855 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २५ २७ नन्दीसूत्र-सूची ग- देश अवधिज्ञान वाले सूत्र १७ मनःपर्यव ज्ञान वाले १८ मनःपर्यव ज्ञान के दो भेद गाथा ६५ ख- मनःपर्यव ज्ञान का विषय ग- मनःपर्यव ज्ञान का क्षेत्र घ- मनःपर्यव ज्ञान होने का हेतु सूत्र १६ क- केवल ज्ञान के दो भेद ख- भवस्थ केवल ज्ञान के दो भेद ग- सयोगी भवस्थ केवल ज्ञान के दो भेद घ- सयोगी भवस्थ केवल ज्ञान के वैकल्पिक दो भेद ङ- अयोगी भवस्थ केवल ज्ञान के दो भेद च- अयोगी भवस्थ केवल ज्ञान के वैकल्पिक दो भेद सूत्र २० छ- सिद्ध केवल ज्ञान के दो भेद सूत्र २१ ज- अनन्तर सिद्ध केवल ज्ञान के पन्द्रह भेद झ- परम्पर सिद्ध केवल ज्ञान के अनेक भेद अ- परम्पर सिद्ध केवल ज्ञान के संक्षेप में चार भेद सूत्र २२ गाथा ६६ केवल ज्ञान का विषय केवल ज्ञान की नित्यता सूत्र २३ गाथा ६७ केवल ज्ञान का कथन योग्य अंश केवल ज्ञान का अकथन योग्य अंश सूत्र २४ क. परोक्ष ज्ञान के दो भेद ख- मति-श्रुत का साहचर्य ग- मति-श्रत की पूर्वापरता २५ क- मति-ज्ञान और मति अज्ञान के पात्र ख- श्रुत-ज्ञान और श्रुत अज्ञान के पात्र Page #856 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ३५ ८२८ नन्दीसूत्र-सूची २६ क- आभिनिबोधिक ज्ञान के दो भेद ___ ख- अश्रुत निश्रित आभिनिबोधिक ज्ञान के चार भेद गाथा ६८ चार प्रकार की बुद्धि ६६ औत्पत्तिकी बुद्धि की व्याख्या ७०-७२ औत्पत्तिकी बुद्धि के सत्तावीस दृष्टान्त गाथा ७३ विनयजा बुद्धि के लक्षण ७४-७५ विनयजा बुद्धि की पन्द्रह कथाएँ ७६ कर्मजा बुद्धि के लक्षण ७७ कर्मजा बुद्धि की बहार कथाएँ ७८ पारिणामिकी बुद्धि का लक्षण ७६-८१ पारिणामिकी बुद्धि के इक्कीस उदाहरण सूत्र २६ श्रुतनिश्रित मतिज्ञान के चार भेद अवग्रह के दो भेद व्यंजनावग्रह के चार भेद २६ अर्थावग्रह के छः भेद ३० अवग्रह के पाँच समानार्थक शब्द ३१ ईहा के छः भेद ३२ अवाय के छः भेद ३३ धारणा के छ: भेद ३४ अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा की काल मर्यादा ३५ क- व्यंजनावग्रह के दो दृष्टान्त ख- प्रतिबोधक दृष्टान्त का वर्णन ग- मल्लक दृष्टान्त का वर्णन घ- शब्द, रूप, गंध, रस, स्पर्श और स्वप्न के अवग्रह, ईहा, अवाय तथा धारणा का क्रम m m m Page #857 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्दीसूत्र-सूची ८२६ सूत्र ४४ गाथा ८२ मति ज्ञान के चार भेद ८३ अवग्न ह आदि चारों की परिभाषा ८४ अवग्रह आदि चारों की स्थिति ८५ शब्द और रूप अप्राप्यकारी गंध, रस और स्पर्श प्राप्यकारी ८६ सम श्रेणि और विषमश्रेणि में सुनने योग्य शब्द ८७ मति-ज्ञान के समानार्थक शब्द सूत्र ३७ श्रुतज्ञान के चौदह भेद ३८ क- अक्षर श्र त के तीन भेद ख- प्रत्येक भेद की व्याख्या ग- अनक्षर श्रुत के अनेक भेद ३६ संज्ञि और असंज्ञि श्रुत के तीन भेद, प्रत्येक भेद की व्याख्या सम्यक् श्रुत की व्याख्या मिथ्या श्रुत की व्याख्या क- सादि सान्त और अनादि अनन्त श्रुत के चार भेद ख- सादि सान्त और अनादि अनन्त श्रुत के वैकल्पिक दो भेद ग- ज्ञानावरण से अनावृत आत्म-प्रदेशों के आवृत होने पर अजीव होने की आशङ्का मेघाच्छादित चन्द्र-सूर्य का उदाहरण क- गमिक, अगमिक श्रुत ख- श्रतज्ञान के वैकल्पिक दो भेद ग- अंगबाह्य श्रुत के दो भेद घ- आवश्यक के छः भेद ड- आवश्यक व्यतिरिक्त के दो भेद च- उत्कालिक श्रुत के अनेक भेद छ- कालिक श्रुत के अनेक भेद Page #858 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नन्दी सूत्र - सूची ५७ ४४ ४५-५५ ५६ क- दृष्टिवाद के पांच विभाग ख- परिकर्म के सात विभाग के बावीस विभाग गाथा ६४-६५ ६६ ६७ ८३० प्रविष्ट श्रुत के १२ भेद आचाराङ्ग-यावत - विपाक का वर्णन अङ्ग ग- सूत्र घ- पूर्व चौदह ङ. अनुयोग के दो विभाग च पूर्वो की चूलिका छ - दृष्टिवाद का संक्षिप्त परिचय क- गणिपिटक के विषय ख- गणिपिटक की विराधना का फल ग गणिपिटक की आराधना का फल घ- गणिपिटक की नित्यता अष्टगुणयुक्त को श्रुत का लाभ अनुयोग- व्याख्या-विधि शास्त्र श्रवण करने वाले के सात कर्तव्य गाथा ६७ Page #859 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो अणुओगधराणं थेराणं द्रव्यानुयोग प्रधान अनुयोगद्वार सूत्र द्वार उपलब्ध मूलपाठ गद्य सूत्र पद्य सूत्र ४ १८६६ श्लोक प्रमाण १५२ १४३ Page #860 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #861 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुयोग-द्वार विषय-सूची Gxx www पाँच ज्ञान श्रुतज्ञान उद्देश आदि चार भेद अनङ्ग प्रविष्टिक अनुयोग उत्कालिक अनूयोग आवश्यक के श्रुतस्कंध और अध्ययन क. आवश्यक के निक्षेप कहने का संकल्प ख- श्रुत के निक्षेप कहने का संकल्प ग- स्कंध के निक्षेप कहने का संकल्प घ- अध्ययन के निक्षेप कहने का संकल्प आवश्यक के चार निक्षेप नाम आवश्यक की व्याख्या और उदाहरण स्थापना आवश्यक की व्याख्या और उदाहरण नाम और स्थापना की विशेषता द्रव्य आवश्यक के दो भेद द्रव्य आवश्यक की व्याख्या द्रव्य आवश्यक के सप्त नय नो आगम (भाव रहित) द्रव्य आवश्यक के तीन भेद ज्ञ-शरीर (आवश्यक जानने वाले का मृत शरीर) द्रव्यावश्यक की व्याख्या और उदाहरण भव्य शरीर (भाविशरीर से आवश्यक जानेगा) द्रव्यावश्यक की व्याख्या और उदाहरण ज्ञ-शरीर, भव्य शरीर व्यतिरिक्त (भिन्न) द्रव्यावश्यक के तीन भेद Page #862 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ३८ १६ २० २१ २२ २३ २४ २५ २६ २७ २८ क ख २६ ل سل wo ३० ३१ क ख ३२ ३३ क ख ८३४ लोकिक द्रव्यावश्यक की व्याख्या कुप्रावचनिक द्रव्य आवश्यक की व्याख्या लोकोत्तर द्रव्य आवश्यक की व्याख्या भाव आवश्यक के दो भेद आगम भाव आवश्यक की व्याख्या नो आगम भाव आवश्यक के तीन भेद लौकिक भाव आवश्यक की व्याख्या कुप्रावचनिक भाव आवश्यक की व्याख्या लोकोत्तर भाव आवश्यक की व्याख्या लोकोत्तर भाव आवश्यक के पर्यायवाची आवश्यक की परिभाषा श्रुत के चार निक्षेप नाम श्रुत की व्याख्या और उदाहरण स्थापना श्रुत की व्याख्या और उदाहरण नाम और स्थापना की विशेषता ३४ ३५ ३६ ३७ क - ३८ ख ग द्रव्य श्रुत के दो भेद आगम से द्रव्य श्रुत की व्याख्या "3 19 21 11 27 नो आगम से द्रव्य श्रुत के तीन भेद ज्ञ- शरीर द्रव्य श्रुत की व्याख्या और उदाहरण भव्य शरीर द्रव्य श्रुत की व्याख्या और उदाहरण उसके पाँच भेद प्रत्येक भेद की व्याख्या व्याख्या विचारणा ज्ञ शरीर और भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य श्रुत की व्याख्या अनुयोगद्वार सूची ( १ ) कीटज द्रव्य श्रुत-सूत्र के पाँच भेद (२) बालज द्रव्य श्रुत-सूत्र के पाँच भेद भाव श्रुत के दो भेद Page #863 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुयोगद्वार सूची ३६ ४० ४ १ ४२ ४३ ४४ ४७ ४८ ४६ ५० आगम भाव श्रुत की व्याख्या नो आगम भाव श्रुत के दो भेद ! नो आगम लौकिक भाव श्रुत की व्याख्या नो आगम लोकोत्तर भाव श्रुत श्रुत के पर्यायवाची स्कंध के चार निक्षेप ४५ ४६ क द्रव्य स्कंध के दो भेद ८३५ नाम-स्थापना - सूत्र ३०, ३१ के समान 11 ख- आगम द्रव्य स्कंध की व्याख्या और भेद ग- ज्ञ शरीर, भव्य शरीर, व्यतिरिक्त द्रव्यस्कंध के तीन भेद सचित्त द्रव्य स्कंध अनेक प्रकार का अचित्त द्रव्य स्कंध अनेक प्रकार का ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५६ क- आवश्यक के छः अध्ययन मिश्र द्रव्य स्कंध अनेक प्रकार का ज्ञ- शरीर, भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्यस्कंध के वैकल्पिक तीन भेद कृत्स्न- पूर्ण द्रव्यस्कंध अनेक प्रकार का अकृत्स्न- अपूर्ण-द्रव्यस्कंध अनेक प्रकार का अनेक द्रव्य वाले स्कंध की व्याख्या भावस्कंध के दो भेद आगम भावस्कंध की व्याख्या नो आगम भावस्कंध की व्याख्या स्कंध के पर्यायवाची आवश्यक के छः अध्ययनों के विषय ख- प्रथम अध्ययन के चार अनुयोग द्वार ६० क उपक्रम के छः निक्षेप ख- द्रव्य उपक्रम के दो भेद सूत्र ६० Page #864 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ७८ ८३६ अनुयोगद्वार-सूची w w w MMS Me Aau ग- ज्ञ-शरीर, भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य उपक्रम के तीन भेद ६१ क- सचित द्रव्य उपक्रम के तीन भेद ख- प्रत्येक के दो दो भेद द्विपद उपक्रम की व्याख्या चतुष्पद उपक्रम की व्याख्या अपद उपक्रम की व्याख्या अचित्त द्रव्य उपक्रम की व्याख्या मिश्र द्रव्य उपक्रम की व्याख्या क्षेत्र उपक्रम की व्याख्या काल उपक्रम की व्याख्या ६६ क- भाव उपक्रम के दो भेद ख- नो आगम भाव उपक्रम के दो भेद ग- प्रत्येक भेद की व्याख्या . ७० उपक्रम के वैकल्पिक ६ भेद ७१ आनुपूर्वी के दस भेद ७२ क- द्रव्य आनुपूर्वी के दो भेद ख- आगम द्रव्यानुपूर्वी की व्याख्या और नय विचारणा ग- नो आगम द्रव्यानुपूर्वी के तीन भेद, प्रत्येक भेद की व्याख्या घ- ज्ञ-शरीर, भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के दो भेद ङ- अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के दो भेद नगम और व्यवहार नय से अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के पाँच भेद अर्थपद प्ररूपणा, द्रव्यानुपूर्वी की व्याख्या अर्थपद प्ररूपणा का प्रयोजन नैगम-व्यवहार नय से अर्थपद प्ररूपणा के छबीस भंग ওও भंग कथन का प्रयोजन । नैगम-व्यवहार नय से भङ्ग कथन के आठ विकल्प ७३ ७४ ७८ Page #865 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ६२. अनुयोगद्वार-सूची ७६ नैगम-व्यवहार नय से समवतार की व्याख्या अनुगम के नो भेद । क- नैगम-व्यवहार नय से आनुपूर्वी द्रव्यों की सत् पद प्ररूपणा ख- नैगम-व्यवहार नय से अनानुपूर्वी द्रव्यों की सत् पद प्ररूपणा ग- नैगम-व्यवहार नय से अवक्तव्य द्रव्यों की सत् पदप्ररूपणा नैगम-व्यवहार नय से आनुपूर्वी अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों का प्रमाण नैगम-व्यवहार नय से आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों का क्षेत्र प्रमाण नैगम-व्यवहार नय से आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की क्षेत्र स्पर्शना नैगम-व्यवहार नय से आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों की काल मर्यादा नगम-व्यवहार नय से आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी व अवक्तव्य द्रव्यों का अन्तर काल नंगम-व्यवहार नयसे आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों का शेष द्रव्यों की अपेक्षा परिमाण नैगम-व्यवहार-नय से आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों को छः भावों में विचारणा नंगम-व्यवहार-नय से आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य द्रव्यों के देश-प्रदेश और उभय की अल्प-बहुत्व संग्रह नय की अपेक्षा से अनौपधिकी द्रव्यानुपूर्वी के पांच भेद संग्रह नय से आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी और अवक्तव्य स्कंध प्रदेशों की अर्थपद प्ररूपणा १२ क- अर्थ-पद प्ररूपणा का प्रयोजन ख- संग्रह नय सप्तभंगी का कथन ग- भंग कथन का प्रयोजन Page #866 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०० अनुयोगद्वार-सूची ८३८ सूत्र ११५. ६३ संग्रह नय से भंग दर्शन ६४ संग्रह नय से समवतार की व्याख्या ६५ क- संग्रह नय से अनुगम के आठ भेद ख- संग्रह नय से आठ भेदों की व्याख्या __औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के तीन भेद ९७ क- पूर्वानुपूर्वी की व्याख्या ख- पश्चानुपूर्वी की व्याख्या ग. अनानुपूर्वी की व्याख्या १८ क- औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के वैकल्पिक तीन भेद . ख- प्रत्येक भेद की व्याख्या क्षेत्रानुपूर्वी के दो भेद अनोपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी के दो भेद ०१ क- नेगम-व्यवहार नय से अनौपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी के पांच भेद ख- प्रत्येक भेद प्रभेद की व्याख्या १०२ क- नैगम-व्यवहार नय से अनौपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी के पांच भेद ख- प्रत्येक भेद प्रभेद की व्याख्या १०३ क- औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद ग- तिर्यग्लोक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद घ- उर्वलोक क्षेत्रानुपूर्वी के तीन भेद ङ- औपनिधिको क्षेत्रानुपूर्वी के वैकल्पिक तीन भेद ०४ कालानुपूर्वी के दो भेद १०५ अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के दो भेद १०६, नैगम व्यवहार नय से अनोपनिधिकी कालानुपूर्वी के पाँच भेद . १०७-१११ प्रत्येक भेद प्रभेद की व्याख्या ११२ संग्रह नय से अनौपनिधिकी कालानुपूर्वी के पाँच भेद ११३-११४ प्रत्येक भेद की व्याख्या ११५ उत्कीर्तनानुपूर्वी के तीन भेद । Page #867 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २६ ८३.६ अनुयोगद्वार-सूची www . . ११६ गणना-आनुपूर्वी के तीन भेद संस्थान-आनुपूर्वी के तीन भेद ११८ समाचारी आनुपूर्वी के तीन भेद भाव आनुपूर्वी के तीन भेद १२० नाम आनुपूर्वी के दस भेद एक नाम आनुपूर्वी की व्याख्या १२२ क- दो नाम आनुपूर्वी के दो भेद ख- दो नाम आनुपूर्वी के वैकल्पिक दो भेद क- तीन नाम आनुपूर्वी के तीन भेद ख- द्रव्य नाम आनुपूर्वी के छः भेद ग- गुणनाम आनुपूर्वी के पाँच भेद घ- पर्यवनाम आनुपूर्वी के अनेक भेद १२४ चार नाम आनुपूर्वी के चार भेद १२५ पाँच नाम आनुपूर्वी के पाँच भेद १२६ क- छः नाम आनुपूर्वी के छः भेद ख- औदयिक भाव आनुपूर्वी के दो भेद ग- प्रत्येक भेद की व्याख्या घ- औपशमिक भाव आनुपूर्वी के भेद ङ- प्रत्येक भेद की व्याख्या च- क्षायिक भाव आनुपूर्वी के दो भेद छ- प्रत्येक भेद की व्याख्या ज- क्षायोपशमिक भाव आनुपूर्वी के दो भेद झ- प्रत्येक भेद की व्याख्या अ- परिणामिक भाव आनुपूर्वी के दो भेद ट- प्रत्येक भेद प्रभेद की व्याख्या ठ- सांनिपातिक भाव आनुपूर्वी की व्याख्या Page #868 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुयोगद्वार-सूची सूत्र १३० ड- सांनिपातिक भाव आनुपूर्वी के द्विक संयोगी-यावत्-पंचक __संयोगी भांगे १२७ क- सात नाम आनुपूर्वी के सात भेद ख- सात स्वरों की व्याख्या १२८ क- आठ नाम आनु पूर्वी के आठ भेद ख- आठ विभक्तियों की व्याख्या १२६ क- नव नाम आनुपूर्वी के नो भेद ख- नो काव्य रसों की उदाहरण सहित व्याख्या ० क- दस नाम आनुपूर्वी के दस भेद ख- गुणनिष्पन्न नाम आनुपूर्वी की व्याख्या ग- निर्गुण निष्पन्न नाम आनुपूर्वी की व्याख्या घ. आदान पद आनुपूर्वी की व्याख्या ङ- प्रतिपक्ष पद आनुपूर्वी की व्याख्या च- प्रधान पद आनुपूर्वी की व्याख्या छ- अनादिसिद्ध नाम आनुपूर्वी की व्याख्या ज- नाम आनुपूर्वी की व्याख्या झ- अवयव आनुपूर्वी की व्याख्या ञ- संयोग आनुपूर्वी के चार भेद ट- प्रत्येक भेद की व्याख्या ठ- प्रमाण आनुपूर्वी के चार भेद ड- नाम प्रमाण की व्याख्या ढ- स्थापना प्रमाण के सात भेदों की व्याख्या ण- द्रव्य प्रमाण के छः भेद त- भाव प्रमाण के चार भेद थ- समास के सात भेद द- तद्धित के आठ भेद ध. धातु के अनेक भेद Page #869 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १३७ न- निरुक्त की व्याख्या १३१ प्रमाण के चार भेद १३२ क- द्रव्य प्रमाण के दो भेद ८४१ ख- प्रदेश निष्पन्न की व्याख्या ग- विभाग निष्पन्न के पाँच भेद घ. मान प्रमाण के दो भेद ङ - उन्मान प्रमाण की व्याख्या च- अवमान प्रमाण की व्याख्या छ- अवमान प्रमाण का प्रयोजन ज- गणित प्रमाण की व्याख्या झ- गणित प्रमाण का प्रयोजन १३३ क - क्षेत्र प्रमाण के दो भेद ख- प्रत्येक भेद की व्याख्या ग- अंगुल प्रमाण के तीन भेद घ- आत्मागुल प्रमाण की व्याख्या ङ - आत्मागुल प्रमाण का प्रयोजन च- उत्सेधांगुल के अनेक भेद छ- उत्सेधांगुल प्रमाण का प्रयोजन चोबीस दण्डक के जीवों की अवगाहना ज- प्रमाणागुल की व्याख्या - प्रमाणागुल प्रमाण का प्रयोजन - प्रमाणांगुल के तीन भेद ट- प्रत्येक भेद की व्याख्या १३४ १३५ १३६ : १३७ क- समय की व्याख्या काल प्रभाव के दो भेद प्रदेश निष्पन्न काल प्रमाण की व्याख्वा विभागनिष्पन्न काल प्रमाण की व्याख्या अनुयोगद्वार सूची Page #870 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुयोगद्वार-सूची ८४२ सूत्र १४५. ख- आवलिका-यावत्-शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त गणना काल ग- औपमिक काल के दो भेद घ- पल्योपम के तीन भेद ङ- प्रत्येक भेद की व्याख्या च- सागरोपम का की व्याख्या १३८ पल्योपम-सागरोपम काल का प्रयोजन १३६ चौबीस दण्डक के जीवों की स्थिति १४० क- क्षेत्र पल्योपम के दो भेद ख- व्यवहारिक क्षेत्र पल्योपम एवं सागरोपम की व्याख्या और उसका प्रयोजन १४१ क- द्रव्य के दो भेद ख- अजीव द्रव्य के दो भेद ग- अरूपी अजीव द्रव्य के दस भेद घ- रूपी अजीव द्रव्य के चार भेद ङ- अनन्त जीवद्रव्य १४२ चौबीस दण्डक में पाँच शरीरों की बद्ध मुक्त विचारणा १४६ क- भाव प्रमाण के तीन भेद ख- प्रत्येक भेद प्रभेद का वर्णन ग- जीव-गुण प्रमाण के तीन भेद घ. ज्ञान गुण प्रमाण के चार भेद ङ- प्रत्यक्ष अनुमान उपमान और आगम प्रमाण की व्याख्या १४४ क- दर्शन गुण प्रमाण के चार भेद ख- चारित्र गुण प्रमाण के पाँच भेद १४५ क- नय प्रमाण के तीन भेद ख- प्रस्थक दृष्टान्त ग- वसति दृष्टान्त घ- प्रवेश दृष्टान्त Page #871 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४३ सूत्र १५२ ८४३ अनुयोगद्वार-सूची १४६ क- संख्या प्रमाण के आठ भेद ख- प्रत्येक भेद की व्याख्या ग- संख्यात असंख्यात और अनन्त की व्याख्या १४७ क- वक्तव्यता के तीन भेद ख- स्वसमय, परसमय और उभयसमय की नयों से व्याख्या १४८ आवश्यक के छः अर्थाधिकार १४६ आवश्यक के छः समवतार (चिन्तन) १५० क- निक्षेप के तीन भेद ख- प्रत्येक भेद की व्याख्या १५१ क- अनुगम के दो भेद ख- नियुक्ति अनुगम के तीन भेद ग- प्रत्येक भेद की व्याख्या १५२ सात नय की व्याख्या Page #872 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #873 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देशक अधिकार उपलब्ध मूल पाठ सूत्र संख्या उद्देशक १ २ ३ ४ Xur चरणानुयोगमय बृहत्कल्प सूत्र ५ णमो वायणारियाणं अधिकार २४ ७ १६ १६ ११ ६ | ८ १ ६ ८३ ४७३ श्लोक प्रमाण २०६ सूत्र संख्या ५. १ २५ ३१ ३७ ४२ २० २०६ Page #874 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #875 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम उद्देशक एषणा समिति एषणा ग्रहणैषणा श्राहार कल्प कदलीफल के सम्बन्ध में विधि निषेध एषणा - परिभोगैषणा उपाश्रय कल्प ग्राम-यावत्[- राजधानी में रहने की काल मर्यादा ६-६. १०-११ ग्राम यावत्- [ राजधानी में निग्रंथी निवास सम्बन्धी विधि-निषेध १२-१३ दुकान यावत्-दो दुकानों के मध्य के स्थान में निग्रंथ - निग्रंथी निवास सम्बन्धी विधि-निषेध. १-५ १४-१५ कपाट रहित स्थान में निग्रंथ - निग्रंथी निवास सम्बन्धी विधि निषेध एषणा - परिभोगेषणा पात्र कल्प १६-१७ प्रश्रवण पात्र [ निग्रंथ - निग्रंथी ] सम्बन्धी विधि निषेध एपणा - परिभोगैषणा वस्त्रकल्प चिलमिलिका परदा [निग्रंथ - निग्रंथी] सम्बन्धी विधिनिषेध एषणा स्थान आचार कल्प जलाशय तट पर [ निग्रंथियों के लिए ] निषिद्ध कृत्य एषणा - गवेषणा वसति उपाश्रय कल्प १८ बृहत्कल्प विषय सूचि १६ २०-२१ चित्र सहित और चित्र रहित वसति में निर्गंधी निवास सम्बन्धी विधि निषेध एषणा - परिभोगैषणा वसति निवास २२-२३ स्त्री के साथ निग्रंथी वसति निवास सम्बन्धी विधि-निषेध पुरुष के साथ निर्ग्रन्थ वसति निवास सम्बन्धी विधि-निषेध २४ Page #876 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० १ सूत्र ४२ २५ २६ २७ २८ २६ ३० ३१-३२ ३३.३४ ३५. ३६ ३८ बृहत्कल्प- सूचि गृहस्थ के निवास स्थान में निग्रंथ-निर्ग्रन्थी निवास निषेध गृहस्थ रहित स्थान में निर्ग्रथ - निर्ग्रन्थी के निवास का विधान केवल स्त्री निवासवाले स्थान में निग्रंथ निवास निषेध केवल पुरुष निवास वाले स्थान में निवास विधान केवल पुरुष निवास वाले स्थान में निर्ग्रन्थी - निवास निषेध केवल स्त्री निवास वाले स्थान निर्ग्रन्थी निवास विधान प्रतिबद्ध - शय्या ठहरने के स्थान में निग्रंथ निर्ग्रन्थी निवास सम्बन्धी विधिनिषेध. ८४८ गृहमध्य मार्गवाले स्थान में निग्रंथी निग्रंथी निवास सम्बन्धी विधि निषेध. संघ व्यवस्था कलह उपशमन-क्षमायाचना [ आराधना- विराधना ] ईया समिति विहार विषयक कल्प वर्षा ऋतु में निर्ग्रथ निग्रंथियों के विहार का निषेध प्रायश्चित्त सूत्र क- राजा रहित राज्य में और शत्रु राज्य में निर्ग्रथ-निर्ग्रन्थियों के जाने आने का निषेध ख- जावे आवे तो प्रायश्चित्त एषणा समिति श्राहार, वस्त्र, पात्र, रजोहरण ३६-४२ क- आहार गवेषणा ख- वस्त्र, पात्र और रजोहरण, ग्रहणैषणा ग- गोचरी के लिये गये हुए निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को वस्त्र, पात्र, रजोहरणा दिलवाने की विधि. घ- स्वाध्याय भूमि के निमित्त गये हुए - शेष उपरोक्त के समान ङ. स्थण्डिल - शौच भूमि के निमित्त गये हुए Page #877 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० २ सूत्र १० ८४६ बृहत्कल्प-सूची आहार ग्रहणषणा रात्रि तथा सन्ध्याकाल में [निग्रंथ-निग्रंथियों के आहार लेने का निषेध । शय्या, संस्तारक ग्रहणैषणा रात्रि तथा सन्ध्याकाल में [निग्रंथ-निग्रंथियों को पूर्व याचित एवं प्रेक्षित शय्या संस्तारक लेने का विधान. वस्त्र पात्र रजोहरण ग्रहणैषणा रात्रि तथा सन्ध्या काल में [निर्ग्रन्थ-निग्रंथियों को वस्त्र पात्र और रजोहरण लेने का निषेध. चुराये हुये वस्त्र पात्र रजोहरण लौटावे तो लेने का विधान. ईया समिति-विहार कल्प रात्रि तथा सन्ध्याकाल में निग्रंथ निग्रंथियों के विहार का निषेध एषणा समिति-आहार गवेषणा सामूहिक भोज में निग्रंथ-निग्रंथियों को आहार के लिये जाने का निषेध संघ व्यवस्था ४६-५० क. रात्रि में तथा सन्ध्या में स्वाध्याय भूमि के निमित्त ख- रात्रि में तथा सन्ध्या में शौच-भूमि के निमित्त निग्रंथ-निग्रंथियों को अकेले जाने का निषेध. ईया समिति विहार कल्प निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के विहार क्षेत्र की मर्यादा. द्वितीय उद्देशक एषणा समिति-वसति कल्प वसति गवेषणा १-१० क- शाली आदि धान्य वाले स्थान में निग्रंथ-निग्रंथी निवास संबंधी विधि-निषेध ४८ Page #878 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ३ सूत्र ११ ८५० बृहत्कल्प-सूची ख- सुरा आदि के भाण्डवाले स्थान में ग- पानी-पात्र वाले स्थान में घ- दीपक, अग्नि आदि जलनेवाले स्थान में ङ- दूध, दही आदि खाद्य पेय वाले स्थान में-- वसति ग्रहणेषणा निर्ग्रन्थियों के लिये निषिद्ध निवास स्थान निर्ग्रन्थियों के लिये विहित निवास स्थान संघ व्यवस्था १३ सागारिक-ठहरने के लिए स्थान देने वाले स्थान स्वामी का निर्णय १४-२८ आहार ग्रहणैषणा-निर्ग्रन्थ-निग्रन्थियों के लिये सागारिक-मकान मालिक के आहार सम्बन्धी विधि-निषेध वस्त्र परिभोगैषणा निर्ग्रन्थियों के लेने के योग्य पांच प्रकार का वस्त्र रजोहरण परिभौगेषणा निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के लेने योग्य पाँच प्रकार के रजोहरण तृतीय उद्देशक संघ-व्यवस्था निग्रन्थी के उपाश्रय में निर्ग्रन्थ के बैठने आदि का निषेध २ निर्ग्रन्थ के उपाश्रय में निर्ग्रन्थी के बैठने आदि का निषेध एषणा समिति चर्म कल्प निग्रंथ-निर्ग्रन्थियों के चर्म सम्बन्धी विधि निषेध वस्त्र कल्प ग्रहणैषणा-परिभोगैषणा ७-१० निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के वस्त्र सम्बन्धी विधि निषेध निग्रन्थों के लिये गुप्ताङ्ग आच्छादक आभ्यन्तर वस्त्र कौपीन आदि रखने का निषेध Page #879 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ४ सूत्र १ ८५१ बृहत्कल्प-सूची १२ निर्ग्रन्थियों के लिए आभ्यन्तर वस्त्र रखने का विधान १३-१४ निर्ग्रन्थी की वस्त्र ग्रहण विधि १५-१६ निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों की दीक्षा के समय वस्त्र पात्र रजोहरण लेने की मर्यादा वर्षाकाल में [निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को] वस्त्र लेने का निषेध हेमन्त और ग्रीष्म में [निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को] वस्त्र लेने का विधान रात्निकों के लिये [निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों की] वस्त्र लेने की मर्यादा रात्निकों के लिये शय्या संस्तारक लेने की मर्यादा संघ-व्यवस्था रानिकों को वन्दना करने की मर्यादा गृहस्थ के घर में क- बैठने आदि के सम्बन्ध में [निर्ग्रन्थ-निर्गन्थियों के] विधि निषेध ख- प्रश्नोत्तर आदि के सम्बन्ध में २३-२७ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के शय्या संस्तारक लेने देने सम्बन्धि नियम निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों की भूल हुई वस्तुओं के परिभोग सम्बन्धि नियम एषणा समिति-वसति कल्प २६-३१ स्वामी रहित स्थानों में निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के ठहरने की विधि ३२ क- प्रायश्चित्त सूत्र, आहार गवेषणा सेना शिविरों के समीपवर्ती ग्रामों से आहार लाने की विधि ख- रात्रि में रहने का निषेध ग- रहे तो प्रायश्चित्त निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के भिक्षाचर्या क्षेत्र की मर्यादा चतुर्थ उद्देशक २८ प्रायश्चित्त सूत्र-अनुद्घातिक-प्रायश्चित्त के अधिकारी Page #880 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहत्कल्प सूची ८५२ उ० ४ सूत्र २० प्रायश्चित्त सूत्र---पारंचिक-प्रायश्चित्त के अधिकारी प्रायश्चित्त सूत्र-पुनः दीक्षा के अयोग्य दीक्षा के अयोग्य शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने के अयोग्य शास्त्रीय ज्ञान प्राप्त करने के योग्य जिन्हें समझाना अति कठिन है जिन्हें समझाना सरल है प्रायश्चित्त सूत्र---अन्य योग्य सहायकों के होते हुए रुग्ण अवस्था में विषम अवस्था में निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थ की और नि ग्रन्थनिर्ग्रन्थी की सेवा चाहे तो गुरु प्रायश्चित्त एषणा समिति-परिभौगैषणा प्रायश्चित्त सूत्र---कालात्तिक्रान्त आहार का सेवर करे तो लघु प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त सूत्र–क्षेत्रातिक्रान्त आहार का सेवन करे तो लघु प्रायश्चित्त शंकास्पद-अग्राह्य आहार सम्बन्धी विधि निषेध १४ क- औद्देशिक आहार की चौभंगी संघ व्यवस्था ख- आवश्यक-प्रतिक्रमण करने की मर्यादा गण संक्रमण १५-१७ क- भिक्षु अथवा भिक्षुणी के गच्छ बदलने की विधि ख- गणावच्छेदक के गच्छ बदलने की विधि ग. आचार्य-उपाध्याय के गच्छ बदलने की विधि अन्य गण के साथ श्राहार पानी का व्यवहार १८-२० क- भिक्षु अथवा भिक्षुणी अन्यगण के साथ आहार पानी का व्यवहार करना चाहे तो उसकी विधि Page #881 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ४ सूत्र ३६ ८५३ बृहत्कल्प सूची ख- इसी प्रकार गणावच्छेदक ग- इसी प्रकार आचार्य उपाध्याय अन्य गण का अध्यापन २१-२३ क- भिक्षु अथवा भिक्षुणी अन्यगण के आचार्य-उपाध्याय को [प्रवर्तिनी आदि को] अध्यापन कराना चाहे तो उसकी विधि ख- इसी प्रकार गणावच्छेक . ग- इसी प्रकार आचार्य उपाध्याय २४ मृत साधु सम्बन्धी विधि कलह-उपशमन २५ क- किमी के साथ कलह होने पर क्षमा याचना से पूर्व-आहार करने का निषेध ख- किसी के साथ कसह होने हर क्षमा याचना से पूर्व-स्वाध्याय करने का निषेध ग- किसी के साथ कलह होने पर क्षमा याचना से पूर्व-शौच के लिए जाने का निषेध घ- किसी के साथ कलह होने पर क्षमा याचना से पूर्व-विहार करने का निषेध ङ- प्रायश्चित्त के लिये अन्यत्र जाने की विधि वैयावृत्य-विधि परिहार विशुद्ध चारित्र-तप-करने वाले की सेवा विधि इर्या समिति-नदी पार करने की मर्यादा पांच महानदियों को पार करने की विधि व मर्यादा संघ व्यवस्था २८-३६ तृणकुटी---पर्णकुटी आदि में [वर्षा, हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में रहने की विधि Page #882 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहत्कल्प-सूची ८५४ उ० ५ सूत्र २१ पंचम उद्देशक १-४ चतुर्थ महावत---प्रायश्चित्त सूत्र-देवी-देवी वैक्रिय से रूप परिवर्तित कर निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के साथ मैथुन सेवन करे और निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी उसका अनुमोदन करे तो गुरु प्रायश्चित्त संघ व्यवस्था-कलह उपशमन प्रायश्चि सूत्र--कलह उपशन से पूर्व गान्तर संक्रमण का प्रायश्चित्त एषणासमिति-परिभोगैषणा ६-१० घने बादलों से आकाश आच्छादित हो उस समय यदि सूर्योदय से पूर्व या सूर्यास्त पश्चात् आहार ले लिया हो तो उसका गुरु प्रायश्चित् ११-१२ सदोष आहार के परठने (डालने) की विधि चतुर्थ महाव्रत- प्रायश्चित सूत्र निर्ग्रन्थियों के विशेष नियम १३-१४ निर्ग्रन्थी-पशु-पक्षियों के स्पर्श का अनुमोदन करे तो गुरु प्रायश्चित्त संघ व्यवस्था निर्ग्रन्थी के अकेली रहने का निषेध १६-१८ क- आहार-पानी के लिये निर्गन्थी को अकेली जाने का निषेध ख- स्वाध्याय के लिये ग- शौच के लिये घ- अकेली निर्ग्रन्थी के विहार करने का निषेध निर्ग्रन्थी के नग्न रहने का निषेध २० निग्रंन्थी के करपात्र का निषेध निर्ग्रन्थी के अनावृत देह रहने का निषेध Page #883 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ५ सूत्र ५४ ८५५ बृहत्कल्प-सूची २२-२३ निर्ग्रन्थी के आतापना लेने सम्बन्धी विधि निषेध २४ निर्ग्रन्थी के लिये दस अभिग्रहों का निषेध २५ निर्ग्रन्थी के लिये भिक्षु प्रतिमाओं की आराधना का निषेध २६-३४ निर्ग्रन्थी के लिये कतिपय आसनों से कार्योत्सर्ग करने का निषेध एषणा समिति--वस्त्र कल्प ३५-३६ निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के आंकुचन पट्ट सम्बन्धी विधि निषेध शय्या श्रासन परिभोगैषणा ३७-४० निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के शयनासन सम्बन्धी विधि-निषेध पात्र परिभोगैषणा ४१-४२ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के तुम्बा पात्र सम्बन्धी विधि निषेध प्रमार्जनिका-परिभोगैषणा ४३-४४ निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के प्रमाणनिका सम्बन्धी विधि निषेध रजोहरण परिभोगैषणा ४५-४६ निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के रजोहरण सम्बन्धी विधि-निषेध रोग-चिकित्सा ४७-४८ निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के मानव मूत्र लेने सम्बन्धी विधि-निषेध ५६-५३ क. निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के कालातिक्रान्त आहार सम्बन्धी विधि-निषेध ख- निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के कालातिक्रान्त विलेपन-सम्बन्धी विधि निषेध ग- निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के कालातिक्रान्त अभ्यङ्ग सम्बन्धी विधि निषेध घ- निर्ग्रन्थियों के कालातिक्रान्त कल्कादि सम्बन्धी विधि-निषेध संघ व्यवस्था-वैयावृत्य ५४ परिहार कल्प स्थित की स्थविर सेवा सम्बन्धी विशेष नियम Page #884 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहत्कल्प-सूची ५५ १ ३-६ ७-१२ १३ १४ ८५६ एषणा समिति —– आहार कल्प निर्ग्रन्थी को एक घर से आहार मिलने पर दूसरे घर के लिये जाना या नहीं इसका निर्णय उ० ६ सूत्र १४ षष्ठ उद्देशक भाषा समिति निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों के अवक्तव्य न कहने योग्य ६ वचन संघ व्यवस्था - प्रायश्चित्त विधान निर्ग्रन्थ निर्गन्थिों को प्रायश्चित्त देने के ६ प्रसङ्ग चिकित्सा निमित्त वैयावृत्य निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों की और निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थ की विशेष प्रसंग में परिचर्या करे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता निर्दिष्ट विशेष प्रसङ्गों में निर्ग्रन्थी की सहायता करे तो भगवान की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता कल्प मर्यादा के पलिमन्थु – विनाशक - ६ कारण कल्प स्थिति चारित्र ६ प्रकार का है Page #885 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीतकल्पसूत्र विषय-सूची गाथा १ क- प्रवचन वन्दना ख. अभिधेय-प्रायश्चित्त का संक्षिप्त वर्णन २-३ प्रायश्चित्त का माहात्म्य ४ प्रायश्चित्त के दश भेद ५.८ आलोचना प्रायश्चित्त के योग्य दोष १-१२ प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त के योग्य दोष १३-१५ आलोचना और प्रायश्चित्त के योग्य दोष १६-१७ विवेक प्रायश्चित्त के योग्य दोष १८-२२ व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त के योग्य दोष २३-२७ ज्ञाना तिचारों के प्रायश्चित्त २८-३० दर्शनातिचारों के प्रायश्चित्त ३१ प्रथम महाव्रत के अतिचारों का प्रायश्चित्त ३२-३३ द्वितीय, तृतीय और पंचम महाव्रत के अतिचारों का प्रायश्चित्त ३४ रात्रि भोजन विरंति के ततिचारों का प्रायश्चित्त । ३५-३६ उपवास प्रायश्चित्त योग्य एषणा समिति के अतिचार ३७-३८ आयम्बिल प्रायश्चित्त योग्य एषणा समिति के अतिचार ३६ एकासन प्रायश्चित्त योग्य एषणा समिति के अतिचार ४०-४२ पुरिमार्थ प्रायश्चित्त योग्य एषणा समिति के अतिचार ४३.४४ निर्विकृति प्रायश्चित्त योग्य एषणा समिति के अतिचार ४५-५६ तप प्रायश्चित्त योग्य कर्म ६०-६३ सामान्य तथा विशेष दोष के अनुसार प्रायश्चित्त ६४-६५ द्रव्य के अनुसार तप प्रायश्चित्त ६६ क्षेत्र के अनुसार तप प्रायश्चित्त Page #886 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीतकल्प सूत्र गाथा १०३ ६७ काल के अनुसार तप प्रायश्चित्त ६८ मानसिक संकल्पों के अनुसार तप प्रायश्चित्त ६६ गीतार्थ अगीतार्थ आदि सामान्य एवं विशिष्ट श्रमणों के अनुसार प्रायश्चित्त देना ७० श्रमणों के सामर्थ्य के अनुसार प्रायश्चित्त देना ७१-७२ कल्पस्थित और कल्पातीत को भिन्न २ प्रकार का तप प्रायश्चित्त ७३ जीतयन्त्र विधि ७४-७६ प्रतिसेवना के अनुसार प्रायश्चित्त ८०-८२ छेद प्रायश्चित्त योग्य दोष ८३-८६ मूल प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन ८७-६३ अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त के योग्य दोष का सेवन ९४-१०२ अनवस्थाप्य और पारांचिक का वर्तमान में निषेध १०३ उपसंहार Page #887 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो अभयदयाणं चरणानुयोगमय व्यवहार सूत्र उद्देशक उपलब्ध मूल पाठ सूत्र संख्या ३७३ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण amsuTININDIAUSHBIRTHRIDIUDHAPTURMERITUTHIBHUDH ARIBHAILERIE Chur सूत्र संख्या in min m ir no x ml Page #888 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #889 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहार सूत्र विषय-सूची प्रथम उद्देशक १-२० निष्कपट और सकपट की आलोचना का प्रायश्चित्त २१ पारिहारिक और अपारिहारिक का एक साथ निवास २२-२७ परिहार कल्प स्थित का सेवा के लिये अन्यत्र जाना २५-३२ गण प्रवेश क. गण से निकले हुए भिक्षु का पुनः गण प्रवेश ख- " " गणावच्छेदक का पुनः गण-प्रवेश ग- " " आचार्य उपाध्याय का पुनः गण-प्रवेश घ- पार्श्वस्थ भिक्षु का पुनः गण-प्रवेश ङ- अपछन्द भिक्षु का पुन: गण-प्रवेश च- कुशील भिक्षु का पुन: गण-प्रवेश छ- अवसन्न भिक्षु का पुनः गण-प्रवेश ज- संसक्त, भिक्षु का पुन: गण-प्रवेश ३३ पश्चात्तापी की पुन: दीक्षा। श्रालोचना सुनने वाले योग्य व्यक्ति के अभाव में जिनके सामने आलोचना करना उनका निर्देश द्वितीय उद्देशक ५-४ प्रायश्चित्त काल में प्रमुख पद क- दो में एक दोषी ख- दो में दोनों दोषी ग- अनेक में एक दोषी घ- अनेक में सब दोषी my my Page #890 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० २ सूत्र २६ व्यवहारसूत्र-सूची ५ रुग्ण परिहार कल्पस्थित का दोष सेवन. ६-१७ गण से निकालने का निषेध क- ग्लान परिहार कल्पस्थित को ख- परिहार-कल्पस्थित को ग- पारांचिक प्रायश्चित्त स्थित को घ- विक्षिप्त भिक्षु को ङ- दर्पोन्मत्त भिक्षु को च- यक्षाविष्ट भिक्षु को छ- उन्मत्त " को ज- उपसर्ग पीड़ित भिक्षु को झ- क्रोधान्ध " ज- प्रायश्चित्त सेवी " ट- भक्त पान प्रत्याख्यात भिक्षु को ठ- सिद्ध प्रयोजन भिक्षु को गणावच्छेदक पद १८-२३ दोष सेवी को प्रमुख पद क- भिक्षु-वेषी अनवस्थाप्य को न देना ख- गृह-वेषी को देना ग- भिक्षु-वेषी पारचिक प्रायश्चित्त सेवी को न देना घ- गृह-वेषी को देना ङ-च- गण की सम्मति से दोनों को देना कलंक का निर्णय करना २५ मोहमत्त का गण त्याग और पुनः गण प्रवेश से पूर्व स्थविरों द्वारा दोष का निर्णय आचार्य उपाध्याय पद गण की सम्मति से एक पक्षीय भिक्षु को आचार्य-उपाध्याय पद देना Page #891 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ३ सूत्र १२ ८६३ व्यवहारसूत्र-सूची परिहारकल्प और आहार-व्यवहार पारिहारिक और अपारिहारिक का परस्पर-व्यवहार पारिहारिक को स्थविरों की आज्ञा से आहार देना स्थविर सेवा स्थविरों के लिये परिहार कल्पस्थित आहार लावे ३० परिहार कल्पस्थित अन्य के पात्र का उपयोग न करे तृतीय उद्देशक १-२ गण प्रमुख बनने का संकल्प क- स्थविरों को पूछकर गण प्रमुख बने ख- विना पूछे न बने ग- बिना पूछे बने तो प्रायश्चित्त ३-१० संघ प्रमुख पद उपाध्याय पद क- श्रुत चारित्र सम्पन्न तीन वर्ष के दीक्षित को देना ख- श्रुत चारित्र रहित को न देना आचार्य-उपाध्याय पद ग- श्रुत चारित्र सम्पन्न पाँच वर्ष के दीक्षित को देना घ- श्रुत चारित्र रहित को न देना ___आचार्य, उपाध्याय और गणावच्छेदक पद ङ. श्रुत चारित्र सम्पन्न आठ वर्ष के दीक्षित को देना च- श्रुत चारित्र रहित को न देना छ- योग्य नव-दीक्षित को देना ज- संयम से पतित योग्य व्यक्ति के पुनः संयमी बनने पर देना ११-१२ प्रमुख के आधीन रहना Page #892 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३-४ उ० ४ सूत्र १२ ८६४ व्यवहारसूत्र-सूची क- तरुण निर्ग्रन्थ को आचार्य-उपाध्याय की मृत्यु के पश्चात् अन्य आचार्यउपाध्याय की निश्रा-आधीन रहना ख- तरुण निर्ग्रन्थी को उपरोक्त प्रकार से रहना साथ ही प्रवर्तिनी की निश्रा में रहना १३-२२ मैथुन सेवी भिक्षु और प्रमुख पद २३-२६ मृषावादी भिक्षु और प्रमुख पद चतुर्थ उद्देशक विहार-मर्यादा १-२ हेमन्त और ग्रीष्म में आचार्य-उपाध्याय का एक अन्य निग्रंथ सहित विहार गणावच्छेदक का दो अन्य निग्रंथ सहित विहार वर्षावास-मर्यादा ५.६ दो अन्य निग्रंथ सहित आचार्य-उपाध्याय का वर्षावास तीन अन्य निग्रंथ सहित गणावच्छेदक का वर्षावास संघ सम्मेलन हेमन्त और ग्रीष्म में क. ग्राम-यावत्-सन्निवेश में सम्मिलित अनेक-आचार्य उपाध्यायों का हेमन्त और ग्रीष्म में एक-एक निर्ग्रन्थ सहित रहना ख- गणावच्छेदकों को दो दो निग्रन्थों के साथ रहना वर्षावास में--- १० क- ग्राम यावत्-सन्निवेश में आचार्य-उपाध्यायों का दो दो निर्ग्रन्थों सहित वर्षावास ख- गणावच्छेदकों का तीन तीन निर्ग्रन्थों सहित वर्षावास ११-१२ प्रमुख निर्ग्रन्थ की मृत्यु के पश्चात् प्रमुख पद क- हेमन्त और ग्रीष्म में Page #893 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ४ सूत्र २३ ८६५ व्यवहारसूत्र-सूची ख- वर्षावास में ग- प्रमुख निर्ग्रन्थ के बिना रहने पर प्रायश्चित्त १३ घ. रुग्ण प्रमुख के आदेशानुसार प्रमुख पद देना ङ- गण का विरोध होने पर प्रमुख पद का त्याग न करे तो प्रायश्चित्त १४ च- अपध्यानी आचार्य-उपाध्याय के आदेशानुसार प्रमुख पद देना छ- गण का विरोध होने पर प्रमुख पद का त्याग न करे तो प्रायश्चित्त १५-१७ यावज्जीवन का सामायिक चारित्र क-ख- उपस्थापना काल में उपस्थापना न करे तो आचार्य-उपाध्याय को प्रायश्चित्त ग- कारणवश उपस्थापना न करे तो प्रायश्चित्त नहीं अन्य गण का आराधन प्रमुख निर्ग्रन्थ की निश्रा में रहना बहुश्रुत की निश्रा में रहना स्वर्मियों का साथ रहना क- स्थविर को पूछ कर अनेक स्वधर्मी साथ रहें ख- बिना पूछे न रहे ग- बिना पूछे रहे तो प्रायश्चित्त २०-२३ अकेले विचरने का प्रायश्चित्त क- पाँच रात्रि पर्यन्त का प्रायश्चित्त ख- पाँच रात्रि से अधिक का प्रायश्चित्त ग- स्थविर के मिलने पर पाँच रात्रि पर्यन्त के प्रायश्चित्त की आलोचना घ- स्थविर के मिलने पर पाँच रात्रि से अधिक के प्रायश्चित्त की आलोचना १८ . Page #894 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारसूत्र-सूची ८६६ उ० ५ सूत्र १० विनय-भक्ति २४-२५क- शिष्य अल्पश्रुत, गुरु बहुश्रुत ख- शिष्य बहुश्रुत, गुरु अल्पश्रुत वंदन व्यवहार २६-३२ (१) एक साथ रहने वाले निर्ग्रन्थों का तथा निर्ग्रन्थियों का दीक्षा पर्याय के अनुसार वन्दन व्यवहार (२) एक स्थान में मिलने वाले निर्ग्रन्थों का तथा निर्ग्रन्थियों का दीक्षा पर्याय के अनुसार वन्दन व्यवहार क- दो भिक्षुओं का ख- दो गणावच्छेदकों का ग- दो आचार्य-उपाध्यायों का ध- अनेक भिक्षुओं का ङ- अनेक गणावच्छेदकों का च- अनेक आचार्य उपाध्यायों का छ- अनेक भिक्षु अनेक गणावच्छेदक और अनेक आचार्य उपाध्यायों का पंचम उद्देशक १-१० निर्ग्रन्थियों की विहार मर्यादा क-ख- हेमन्त और ग्रीष्म में दो निर्ग्रन्थियों सहित प्रवर्तिनी का विहार ग-ध- हेमन्त और ग्रीष्म में तीन निर्ग्रन्थियों सहित गणावच्छेदिनी का विहार निर्ग्रन्थियों का वर्षावास ङ- तीन निर्ग्रन्थियों सहित प्रवर्तिनी का वर्षावास च- चार निर्गन्थियों सहित गणावच्छेदिनी का वर्षावास निर्ग्रन्थी संघ सम्मेलन हेमन्त और ग्रीष्म में छ-ज- ग्राम-यावत्-सन्निवेश में हेमन्त और ग्रीष्म में सम्मिलित अनेक Page #895 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ५ सूत्र २० ८६७ व्यवहारसूत्र-सूची प्रवर्तिनियों का चार-चार निर्ग्रन्थियों सहित तथा गणावच्छेदिनियों का पाँच-पाँच निर्ग्रन्थियों सहित निवास वर्षावास में ग्राम-यावत्-सन्निवेश में प्रतिनियों का चार-चार निर्ग्रन्थियों सहित तथा गणावच्छेदिनियों का पाँच-पांच निर्गन्थियों सहित वर्षावास ११-१४ प्रमुख निर्ग्रन्थी की मृत्यु के पश्चात् प्रमुख पद क- हेमन्त और ग्रीष्म में ख- वर्षावास में ग- बिना प्रमुख निर्ग्रन्थी के रहने पर प्रायश्चित्त घ- रुग्ण प्रवर्तिनी के आदेशानुसार प्रवर्तिनी पद देना ज- अपध्याना प्रवर्तिनी के आदेशानुसार प्रतिनी पद देना १५.१६ "प्राचार प्रकल्प का विस्मरण और प्रमुख पद क- प्रमाद से आचार प्रकल्प विस्मृत तरुण श्रमण को प्रमुख पद न देना ख- शारीरिक विपत्ति से आचार-प्रकल्प विस्मृत तरुण को प्रमुख पद देना ग-घ- तरुण निर्ग्रन्थी के 'क-ख' के समान दो विकल्प ङ- आचार प्रकल्प स्थविर को प्रमुख पद देना च- विस्मृत आचार प्रकल्प का पुनः कण्ठस्थ करना अनिवार्य अालोचना क. आलोचना सूनने योग्य प्रमुख निर्ग्रन्थ के समीप आलोचना करना ख- योग्य के अभाव में परस्पर आलोचना करना वैयावृत्य-सेवा क- निर्ग्रन्थ की निर्ग्रन्थी सेबा ख- निर्ग्रन्थी की निर्ग्रन्थ सेवा Page #896 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारसूत्र-सूची उ०१७ सूत्र ५ ا ه لله २१ सर्पदंश चिकित्सा क- निर्ग्रन्थ की सर्पदंश चिकित्सा ख- निर्गन्धी की सर्पदंश चिकित्सा ग- जिनकल्पी का आचार षष्ठ उद्देशक मोह विजय और गवेषणा क- गुरु जनों की आज्ञा से स्व-सम्बन्धियों के घर भिक्षार्थ जाना ख- आहार लेने की विधि अतिशय आचार्य उपाध्याय के पांच अतिशय गणावच्छेदक के दो अतिशय ४-७ अल्पश्रुत और बहुश्रुत क- निर्ग्रन्थ और निग्रंथी को सर्वत्र छेद सूत्र के ज्ञाता के साथ रहना खछेद सूत्र के ज्ञाता के बिना रहना ८-६ प्रायश्चित्त सूत्र ब्रह्मचर्य महावत शुक्र क्षय करने वाले को चातुर्मासिक अनुद्घातिक प्रायश्चित्त १०-११ क- अन्य गण की निर्ग्रन्थी को प्रायश्चित्त दिये बिना न मिलाना ख- प्रायश्चित्त देकर मिलाना सप्तम उद्देशक १ क- अन्य गण के निग्रंथों को मिलाना ख- अन्य गण की निग्रंथियों को निर्ग्रन्थियों में मिलाना २-३ सम्बन्ध विच्छेद सम्बन्ध विच्छेद करना ख- इसी प्रकार निर्ग्रन्थी का सम्बन्ध विच्छेद करना ४-५ दीक्षित करना क- निर्ग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थी की दीक्षा Page #897 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ७ सूत्र २३ ८६६ व्यवहारसूत्र-सूची ख- निर्ग्रन्थी द्वारा निर्ग्रन्थ की दीक्षा ६-७ विहार क- निर्ग्रन्थ का विहार ख- निर्ग्रन्थी का विहार ८- क्षमा याचना क- निग्रन्थ की निर्ग्रन्थ से क्षमा याचना निर्ग्रन्थ को निर्ग्रन्थी से क्षमा याचना स्वाध्याय तथा वाचना देना १०-११ विकट काल में स्वाध्याय करने का निषेध १२-१३ अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय करने का निषेध १४ क- शारीरिक अस्वाध्याय होने पर स्वाध्याय करने का निषेध ख- वाचना देने का विधान उपाध्याय पद साध्वी को उपाध्याय पद देना प्राचार्य पद साध्वी को आचार्य पद देना मृत शरीर निर्ग्रन्थ के मृत शरीर को निर्ग्रन्थ एकान्त निर्जीव भूमि में छोड़े वसती निवास १८-१६ निग्रंथ की अवस्थिति में गृह या गृह विभाग के बेचने या किराये देने पर निर्ग्रन्थ के ठहरने के नियम २० मकान मालिक की विधवा पुत्री या उसके पुत्र की भी आज्ञा लेना २१ शून्य स्थानों में पथिक की आज्ञा लेना २२-२३ राज्य परिर्वतन नये राजा का राज्याभिषेक होने पर नये राजा की आज्ञा लेना Page #898 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८७० उ० ६ सूत्र ३४ ८७० व्यवहारसूत्र-सूची अष्टम उद्देशक वसति निवास स्थविरों की आज्ञानुसार श्रमण का वसति-विभाग में निवास शय्या-संस्तारक सभी ऋतुओं में अल्पभार के शय्या-संस्तारक लेना ५ क- स्थविरों के उपकरण ख- शय्या-संस्तारक लौटाये हुए उपकरणों की दूसरी वार आज्ञा लेना ग- शय्या-संस्तारक अन्यत्र ले जाने के नियम १०-११ आज्ञादाता की अनुपस्थिति में ठहरने की और आज्ञा लेने की विधि १२-१४ भुले हुए उपकरण को लौटाना क- गृहस्थ के घर में | ख- स्वाध्याय स्थल में ग- शौच स्थल में घ- मार्ग में भूले हुए उपकरणों को लौटाना १५ अधिक पात्र अन्य निर्ग्रन्थ निग्रंन्थी के लिये स्थविर की आज्ञा से पात्र लाना १६ आहार-परिभोगैषणा क- आहार का प्रमाण ख- प्रमाण से अधिक आहार खाने का निषेध नवम उद्देशक गृह स्वामी१-३० शय्यातर-गृहस्वामी का ग्राह्य और अग्राह्य आहार ३१-३४ भित्तु प्रतिमा क- सप्त सप्तमिका भिक्षु-प्रतिमा Page #899 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ व्यवहारसूत्र-सूची ८७१ उ० १० सूत्र १० ख- अष्ट अष्टमिका भिक्षु प्रतिमा ग- नव नवमिका " " ३५ मानव मूत्र सेवन विधि क- लघु मोक प्रतिमा ख- महा मोक प्रतिमा ३६-३६ शय्यातर गृहस्वामी का ग्राह्य-अग्राह्य आहार भिक्षु प्रतिमा ४० अन्न दाति-धारा की संख्या पानि दाति-धारा की संख्या ४२-४३ अभिग्रह क- तीन प्रकार के अभिग्रह ख- , " के " ग- ,, , के " ___ दशम उद्देशक १ भिक्षु प्रतिमा क- यव मध्य चन्द्र प्रतिमा ख- वज्र मध्य चन्द्र प्रतिमा व्यवहार पांच प्रकार का व्यवहार १० श्रमण-परीक्षा क- परोपकार करना और अभिमान करना श्रमण की चतुभंगी ख- गण का उपकारना और " ग- गण का संग्रह करना और " " घ- गण की शोभा बढ़ाना और " " ङ- गण की शुद्धि करना और " Page #900 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारसूत्र - सूची ११-१२ १३ १४ १५ १६-१७ १८-३३ ३४ च - वेष त्याग और धर्मत्याग छ- धर्म त्याग और गण त्याग ज- प्रियधर्मी और दृढ़धर्मी श्रमण की चतुभैंगी आचार्य ८७२ क- प्रवज्या - उपस्थापना - आचार्य चतुर्भंगी 27 ख उद्देशना वाचना अन्तेवासी - शिष्य शिष्य की चतुभंगी स्थविर तीन प्रकार के स्थविर शिष्य लघु वय का दीक्षार्थी आगमों का अध्ययन काल वैयावृत्य-सेवा क- दश प्रकार की वैयावृत्य ख- वैयावृत्य का फल 33 उ० १० सूत्र ३४ अल्पकालिक सामायक चारित्र वाले तीन प्रकार के शिष्य दीक्षार्थी 33 13 37 " Page #901 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो सम्वन्नूणं चरणानुयोगमय दशाश्रू तस्कंध सूत्र आचार दशा दशा १० उपलब्ध मूल पाठ १८३० अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण गद्य सूत्र पद्य सूत्र १२ सूत्र संख्या २१ प्रथमा दशा द्वितीया दशा तृतीया दशा चतुर्थी दशा पंचमी दशा पष्ठी दशा सप्तमी दशा अकृमी दशा कल्प सूत्र नवमी दशा दशमी दशा Page #902 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #903 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशाश्र तस्कंध विषय-सूची प्रथमा दशा उत्थानिका २-२१ स्थविरोक्त वीस असमाधिस्थान द्वितीया दशा १-३५ स्थविरोक्त इकबीस सबल दोष तृतीया दशा १-३५ स्थविरोक्त तेतीस आशातना चतुर्थी दशा १-१६ स्थविरोक्त आठ गणि सम्पदा विनय शिक्षा के चार भेद शिष्य-विनय के चार भेद उपकरण उत्पादन के चार भेद सहायता के चार भेद गुणानुवाद के चार भेद गणभार वहन के चार भेद पंचमी दशा १-२८ क- वाणिज्य ग्राम, दूतिपलाश चैत्य, जितशत्रु राजा, धारिणी रानी, भ० महावीर का समवसरण ख- स्थविरोक्त दस चित्त समाधि स्थान ग- दस चित्तसमाधि स्थान षष्ठी दशा १-२८ क- स्थविरोक्त इग्यारह उपासक प्रतिमा Page #904 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशाश्रुतस्कंध-सूची ८७६ दशा १० सूत्र ४० अक्रियावादी, और क्रियावादी का वर्णन सप्तमी दशा १-३४ स्थविरोक्त बारह भिक्षु प्रतिमा अष्टमी पर्वृषणा दशा भ० महावीर के पाँच कल्याण नवमी दशा १-४० क- चंपानगरी, पूर्ण भद्र चैत्य कौणिक राजा, धारिणी देवी भ० महावीर का समवसरण . ख- तीस महामोहनीय स्थानों का वर्णन दशमी आयती दशा क- राजगृह, गणशील चैत्य श्रेणिक, भंभसार ख- भ० महावीर का पदार्पण ग- श्रेणिक का सपरिवार भ० महावीर के दर्शन के लिये जाना घ- श्रेणिक और चेलणा को देखकर निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के मन में जो संकल्प पैदा हुए उनका वर्णन ङ- नव निदान कर्मों का वर्णन च. निदान करने वालों की गति छ- निदान रहित संयम का फल ज- निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों की आलोचना-यावत्-आराधना Page #905 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देशक उपलब्ध मूलपाठ गद्य सूत्र उद्देशक १ ३ ४ ५ ७ ८ णमो आयारपकप्पधराणं थेराणं चरणानुयोगमय निशीथ सूत्र १० सूत्र संख्या ५८ ५६ ७६ १११ ७७ ७७ ६ १ १७ २८ ४७ २० ८१२ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण [१४०३ उद्देशक ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ २० सूत्र संख्या ६२ ४२ ७४ ४५ १५४ ५० १५१ ६४ ३६ ५३ १४०५ Page #906 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #907 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथसूत्र विषय-सूचि प्रथम उद्देशक ब्रह्मचर्य-महाव्रत-प्रायश्चित वीर्यपात करना सुगंध सुगंधित पुष्य आदि सूंघना प्रथम महाव्रत प्रायश्चित ११-१४ अन्यतीर्थि तथा गृहस्थ से कार्य करवाने का प्रायश्चित क- मार्ग आदि का निर्माण कार्य करवाना ख- पानी की नाली का निर्माण कार्य करवाना ग- छींका, डोरी का निर्माण कार्य करवाना घ- सूती, ऊनी डोरियों का निर्माण कार्य करवाना एषणा समिति का प्रायश्चित १५-३८ सूई, कैंची, नखहरणी और कर्ण-शोधनी सम्बन्धी नियमों का भंग करना ३६ पात्र का परिकर्म करना ४० दण्डादिका परिकर्म करना ४१-४६ पात्र का परिकर्म करना ४७-५६ वस्त्र का परिकर्म करना घर में धुआँ कराना ५८ सदोष आहार लेना द्वितीय उद्देशक रजोहरण अनावृत दारु दण्डवाले रजोहरण संबंधी प्रायश्चित्त Page #908 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० २ सूत्र ३६ ८८० निशीथ-सूची ११ १४-१७ १८-१६ गंध सुगंधित तैल-इत्र आदि सूंघना प्रथम महावत प्रायश्चित्त मार्ग आदि का निर्माण कार्य कराना पानी की नाली का निर्माण कार्य कराना छींका डोरी का निर्माण कार्य कराना सूई आदि को डोरियों का निर्माण कार्य कराना सूई, कैंची, नखहरणी और कर्ण-शोधनी सम्बन्धी नियमों का भंग करना द्वितीय महावत-प्रायश्चित्त भाषा समिति-प्रायश्चित्त तृतीय महाव्रत-प्रायश्चित्त ब्रह्मचर्य महाव्रत-प्रायश्चित्त हस्तादि प्रक्षालन का प्रायश्चित्त एषणा समिति-प्रायश्चित्त अखण्ड चर्म रखना अखण्ड वस्त्र रखना अभिन्न बस्त्र रखना पात्र परिकर्म करना दण्डादिका परिकर्म करना स्थविरों की आज्ञा के बिना अधिक पात्र रखना एषणा समिति परिभोगैषणा प्रायश्चित्त आहार विषयक प्रायश्चित्त सदैव एक स्थान पर रहना दातार की प्रशसा करना एषणा समिति प्रायश्चित्त स्व सम्बन्धियों से आहार लेना ३२-३६ ३६ Page #909 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०-५८ निशीथ-सूची ८८१ उ० ३ सूत्र ७७ पारिहारिक का अन्यतीर्थी गृहस्थ और अपारिहारिक के साथ रहना ४०-४३ क- भिक्षाचर्या में ख- स्वाध्याय स्थल में ग- शौच स्थल में घ- विहार में एषणा समिति परिभोगैषणा-प्रायश्चित्त ४४-४६ पानी विषयक प्रायश्चित्त ४७-४६ गृहस्वामी का आहार लेना शय्या-सस्तारक विषयक प्रायश्चित्त ५६ सदोष प्रतिलेखना का प्रायश्चित्त तृतीय उद्देशक एषणा समिति-प्रायश्चित्त १-१२ आहार की याचना सम्बन्धी प्रायश्चित्त १३ एक घर में दुसरी बार भिक्षार्थ जाना १४ सामूहिक भोज में भिक्षार्थ जाना १५ सम्मुख लाया हुआ आहार लेना ब्रह्मचर्य-महाव्रत-प्रायश्चित्त १६-२१ पैरों का संस्कार करना २२-२७ शरीर का संस्कार करना चिकित्सा करना ४१-६७ प्रत्येक अंग उपांग का संस्कार करना कपड़े आदि से मस्तक ढ़कना वशीकरण यंत्र करना ७०-७७ मल-मूत्रादि त्याग सम्बन्धी अविवेक करना २८-४० Page #910 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० निशीथ-सूची ८८२ उ० ५ सूत्र २४ चतुर्थ उद्देशक १-१८ राजादि को वश करना अखण्ड पक्व-फल या धान्य खाना प्राचार्य के दिये बिना आहार खाना प्राचार्य-उपाध्याय के दिये बिना दूध आदि विकृति-पदार्थ खाना २२ निषिद्ध कुल जाने बिना भिक्षार्थ जाना २३-२४ निग्रंथी के उपाश्रय में प्रविधि से प्रवेश करना २५-२६ कलह करना २७ अति हंसना २८-३७ पार्श्वस्थ आदि को वस्त्र देना ३८-३६ आहार विषयक प्रायश्चित्त ४०-४८ ग्राम रक्षक आदि को वश करना ४६-१०१ क-एक दूसरे के पैरों का परिकर्म करना ख-एक दूसरे के शरीर का संस्कार करना १०२-११० मल-मूत्रादि सम्बन्धी अविवेक करना १११ परिहार कल्पस्थित के साथ आहार-व्यवहार करना पंचम उद्देशक १-१२ सचित-सजीव वृक्ष के मूल में निषिद्ध कार्य करना १२-१३ अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से कार्य करवाना क- वस्त्र सिलाना ख- मर्यादा से अधिक लम्बा चौडा वस्त्र बनाना १४ फलों को शीत या उष्ण पानी से धोकर खाना १५-२३ लौटाने की शर्त करके लाये हुए पदार्थ नियत समय पर न लौटाना २४ अत्यधिक लम्बे डोरे बनाना Page #911 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ६ सूत्र ७ २५-३३ ३४ ३५ ३६-५६ ६०-६२ ६३ ६४-६६ ६७-७७ १-७७ १-६१ १-६ १० ११ १२ १३-१५ १६ १७ १-६ ७ ८८३ दण्डे आदि का रंगना नये ग्राम आदि में भिक्षार्थ जाना नई खानों में भिक्षार्थ जाना विविध प्रकार के वाद्य बनाना सदोष शय्या का उपयोग करना विपरीत समाचारी वालों के साथ व्यवहार करना वस्त्र पात्र और दण्ड आदि को जीर्ण होने से पहले डाल देना रजोहरण का अनुचित उपयोग करना निर्ग्रन्थी के साथ निर्ग्रन्थ का व्यवहार षष्ठ उद्देशक मैथुन के संकल्प से निर्ग्रथी के साथ अमर्यादित व्यवहार करना सप्तम उद्देशक मैथुन के संकल्प से निर्ग्रन्थी के साथ अमर्यादित व्यवहार करना निशीथ-सूची अष्टम उद्देशक अकेली स्त्री के साथ अमर्यादित व्यावहार करना स्त्री परिषद में असमय धर्म कथा कहना निर्ग्रन्थी के साथ अनुचित व्यवहार करना स्वजन परिजनों से सम्पर्क रखना राज्य परिवार से सम्पर्क रखना खाद्य पदार्थों का संग्रह करना त्याज्य आहार लेना नवम उद्देशक राज्य कुल का आहार लेना ६ दोषायतनों में जाना आना C Page #912 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ-सूची ८-६ १० ११ १२-१७ १८ १६ २०-२८ १-४ ५ ६ ७-८ ६-१० ११-१२ १३ १४ १५-३० ३१-३४ ३५ ३६-३६ ४०-४७ १-८ ८८४ स्त्रियों के अंगोपांगों को देखना माँस आहार लेना राजा के चले जाने पर राजा के निवास स्थान में रहना यात्रियों से आहार लेना राज्याभिषेक के समय नगर में जाना आना निर्दिष्ट दस राजधानियों में बारम्बार जाना आना राज्याश्रित परिवारों से आहार लेना दशम उद्देशक गुरुजनों का अविनय करना अनन्तकाय -वनस्पति-संयुक्त आहार करना आधाकर्म- सदोष आहार करना ज्योतिष से वर्तमान और भविष्य बताना किसी के शिष्य को बहकाना अथवा भगाना दीक्षार्थी को मिथ्या परामर्श देना आगन्तुक श्रमण श्रमणियों से आने का कारण जाने बिना तीन दिन से अधिक साथ रखना लड़-झगड़कर आये अनुपशान्त श्रमण श्रमणी को प्रायश्चित्त दिये बिना तीन दिन से अधिक साथ रखना दोषानुसार प्रायश्चित्त न करना तथा दोषानुसार प्रायश्चित्त न लेने वालों के साथ आहारादि व्यवहार करना संदिग्ध समय में आहार करना संदिग्ध अन्न-पानी को निगलना रोगी श्रमण श्रमणी को परिचर्या न करना वर्षादास सम्बन्धी नियमों का भंग करना उ० ११ सूत्र इग्यारहवाँ उद्देशक पात्र सम्बन्धी मर्यादाओं का भंग करना Page #913 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० ११ सूत्र ६२ ६ १० ११-६३ 057 ७१ ७२ ७३ ७४-७७ ७८ ७६ ६४-६५ ६६-६७ आश्चर्यान्वित करना 11 ६८-६६ स्वयं अथवा अन्य के साथ विपरीत आचरण करना ८० ८१ ८२ ८३ ८४-८५ .८७ ६० १ ६२ धर्म की निन्दा करना अधर्म की प्रशंसा करना अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ से कार्य करवाना क- पैरों का परिकर्म करवाना ख- शरीर का संस्कार करवाना ग- कपड़े आदि से मस्तक ढकना स्वयं अथवा अन्य को भयभीत करना ८६ क ८८५ " प्रशंसा करना दुश्मन के राज्य में जाना आना दिवा भोजन की निन्दा करना रात्रि भोजन की प्रशंसा करना भोजन सम्बन्धी चतुर्भंगी रात्रि में आहारादि रखना रात्रि में रखे हुए – आहार का खाना पीना माँस आहार लेना नैवेद्य खाना स्वच्छन्द श्रमण श्रमणी की प्रशंसा करना स्वच्छन्द श्रमण श्रमणी को वंदना करना अयोग्य को दीक्षा देना अयोग्य से सेवा कराना ख- अयोग्य की सेवा करना, जिन कल्पी के साथ न रहना, चतुर्भंगी रात्रि में रखी हुई पिप्पली आदि का खाना बाल मरण मरना निशीथ-सूची Page #914 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ-सूची ८८६ उ० १३ सूत्र २७ बारहवाँ उद्देशक किसी प्राणी को बांधना अथवा बंधन मुक्त करना प्रत्याख्यान भङ्ग करना वनस्पति मिश्रित आहार खाना पीना केशोंवाला चर्म रखना गृहस्थ के वस्त्र से ढके हुए पीढों का उपयोग करना निर्ग्रन्थी के वस्त्रों को अन्यतीथि अथवा गृहस्थ से सिलवाना छः काय की हिसा करना हरे वृक्ष पर चढ़ना १०-१३ गृहस्थ के वस्त्र आदि उपयोग में लेना तथा गृहस्थ की चिकित्सा करना १४-१५ सदोष आहार लेना १६-२६ विविध प्रकार के दर्शनीय स्थल या पदार्थ देखना कालातिकान्त आहार खाना पीना क्षेत्रातिक्रान्त आहार खाना-पीना ३२-३६ रात्रि में विलेपन लगाना गृहस्थ से अपना भार उठवाना गृहस्थ के अधिकार में आहार आदि रात में रखना महा नदियों को बारम्बार पार करना तेरहवाँ उद्देशक · १-११ अयोग्य स्थान में कायोत्सर्ग करना ,, , कायोत्सर्ग करना अन्यतीर्थी या गृहस्थ को शिल्प आदि सिखाना १३-१६ अन्य तीर्थी या गृहस्थ का अप्रिय करना १७-२६ ,, को मंत्रादि के प्रयोग बताना __ ,, गुप्त मार्ग बताना ३ ३१ २७ Page #915 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० १६ सूत्र ११ २८-२६ ३०-३७ ३८-४१ ४२-५० १-४५ १-४ ५- १२ 73 चौदहवाँ उद्देशक पात्र - सम्बन्धी नियमों का भंग करना पन्द्रहवाँ उद्देशक भिक्षु भिक्षुणी को कठोर शब्द कहना तथा उनके साथ अप्रिय व्यवहार करना सचित फल - अग्नि आदि से नहीं पकाया हुआ अखण्ड फल खाना १३-६५ क- अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ से पैरों का संस्कार करवाना शरीर ६६-७४ ७५-७६ ७७-७८ ७६-६८ ख ग १-३ ४-११ अन्यतीर्थी या गृहस्थ को धातुएँ या खजाना बताना किसी पदार्थ में प्रतिबिम्ब देखना स्वस्थ होते हुए चिकित्सा कराना पार्श्वस्थ आदि को वन्दना करना की प्रशंसा करना ८८७ " ,, कपड़े आदि से अपना मस्तक ढ़कवाना निषिद्ध स्थानों पर मल मूत्र त्यागना अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ को अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ को लेना पार्श्वस्थ आदि को आहार, वस्त्र, पात्र, रजोहरण देना या उनसे लेना && निषिद्ध वस्त्र लेना १०० - १५४ विभूषा निमित्त किसी भी कार्य का करना सोलहवाँ उद्देशक निशीथ-सूची ," वसति विषयक नियमों का भंग करना सचित इक्षु आदि खाना आहार देना या उनसे लेना वस्त्र पात्र आदि देना या उनसे Page #916 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ-सूची १२ १३-१४ १५. १६-२४ २५-२६ २७-३२ ३३-३५ ३६-३७ ३८ ३६ ४०-५० १-१४ १५-११० क ख उ० १७ सूत्र १३६ वन-वासियों तथा वनचरों से ( यात्रियों) से आहार लेना संयमी को असंयमी और असंयमी को संयमी कहना संयमियों के गण से असंयमियो के गण में जाना १३५-१३६ कलह करके आये हुए श्रमण-श्रमणियों से व्यवहार करना कुमार्ग या कुप्रदेश में जाना निन्द्यकुलों से व्यवहार रखना निषिद्ध स्थानों पर आहार करना अन्यतीर्थिक अथवा गृहस्थ स्त्रियों के साथ भोजन करना आचार्य उपाध्याय के शय्या संस्तारक को ठुकराना प्रमाण से अधिक उपकरण रखना 33 शरीर का मस्तक ढकवाये निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी के पैरों का परिकर्म करावे के शरीर का का मस्तक ढ़कवाये १२१ निर्ग्रन्थ का निर्ग्रन्थ को स्थान न देना १२२ निर्ग्रन्थी का निर्ग्रन्थी को स्थान न देना १२३-१३१ आहार सम्बन्धी नियमों का भंग करना 17 १३२ पानी १३३ अपने आपको आचार्य पद के योग्य कहना १३४ मनोविनोद के लिये गायन आदि कार्य करना विविध वाद्य सुनना 37 77 निषिद्ध स्थानों पर मल मूत्र डालना सतरहवाँ उद्देशक कुतूहल के लिये कोई कार्य करना अन्यतीर्थी अथवा गृहस्थ से कार्य करवाना निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थ के पैरों का परिकर्म करावे 31 33 71 ८८८ 77 "" 33 37 11 37 "" Page #917 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० २० सूत्र २० १-४ ५ अठारहवाँ उद्देशक १- २० नौका आरोहण सम्बन्धी नियमों का पालन न करना २१- ६६ वस्त्र विषयक नियमों का पालन न करना उन्नीसवाँ उद्देशक ६ L ८८६ खरीद कर दी हुई प्रासुक वस्तु का लेना रोगी निर्ग्रन्थ के लिये प्रमाण से अधिक प्रासुक आहार लेना प्रासुक आहार लेकर दूसरे गाँव जाना प्राक खाद्य को पानी में गाल कर खाना पीना चार सन्ध्याओं में स्वाध्याय करना ८ ६- १० नियत संख्या से अधिक श्रुत विषयक प्रश्न पूछना चार महोत्सव दिनों में स्वाध्याय करना ११ १२ चार प्रतिपदाओं में स्वाध्याय करना श्रुत स्वाध्यायविषयक नियमों का पालन न करना बीसवाँ उद्देशक १- २० क निष्कपट और सकपट आलोचना का प्रायश्चित्त ख 37 27 निशीथ-सूची 27 Page #918 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देशक ४ ३ ४ ६ ८ १० निशीथ - निर्देशित प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त गुरुमासिक लघुमासिक गुरु चौमासिक : उद्दशक ११ १२ १३ १४ १५ १६ १७ १८ १६ २० प्रायश्चित्त गुरु चौमासिक लघु चौमासिक समुच्चय Page #919 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ० १, २, ६, गाथा ८६ १ प्रायश्चित्त संबंधी विशेष विवरण उद्देशक - १ प्रथम उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का परवश या अनुपयोग से सेवन करनेपर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उत्कृष्ट ३० निर्विकृतिक । प्रथम उद्देदेशक में निर्दिष्ट दोषों का आतुरता या उपयोग पूर्वक सेवन करनेपर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उकृष्ट ३० आचाम्ल । प्रथम उद्दे शक में निर्दिष्ट दोषों का मोहोदय से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उत्कृष्ट ३० उपवास । निशीथ-सूची उद्देशक — २ द्वितीय उद्दे शक में निर्दिष्ट दोषों का परवश या अनुपयोग से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उकृष्ट २७ एकाशन । द्वितीय उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का आतुरता या उपयोग पूर्वक सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ । मध्यम १५ । उत्कृष्ट २७ । आचाम्ल द्वितीय उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का मोहोदय से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ | मध्यम १५ । उत्कृष्ट २८ । उपवास उद्देशक -- ६ छठे उद्दे शक में निर्दिष्ट दोषों का परवश या अनुपयोग से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ उपवास । मध्यम ४ षष्ठ भक्त । उत्कृष्ट १२० उपवास या चार मास का छेद । छठे उद्देशक में निर्दिष्ट से दोषों का आतुरता या उपयोग पूर्वक सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ षष्ठ भक्त या चार दिन का छेद | मध्यम ४ अष्टम भक्त या ६ दिन का छेद । उत्कृष्ट १२० उपवास या चार मास का छेद । Page #920 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथ-सूची उ० १२ छठे उद्दे शक में निर्दिष्ट दोषों का मोहोदय से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ अष्टम भक्त, परणा में आचाम्ल या ६० दिन का छेद ८६२ मध्यम १५ अष्टम भक्त, पारणा में आचाम्ल या ६० दिन का छेद उत्कृष्ट १२० उपवास. पारणा में आचाम्ल या पुनः महाव्रतारोपण उद्देशक – १२ बारहवें उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का परवश या अनुपयोग से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ आचाम्ल । मध्यम ६० निर्विकृतिक | उत्कृष्ट १६० उपवास बारहवें उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का आतुरता या उपयोग पूर्वक सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ उपवास । मध्यम ६ षष्ट भक्त । उत्कृष्ट १०० उपवास. पारणा में विकृति त्याग | बारहवे उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का मोहोदय से सेवन करने पर प्रायश्चित्त जघन्य ४ षष्ठ भक्त । मध्यम ४ अष्टम भक्त । उत्कृष्ट १०८ उपवास पारणा में आचाम्ल क- द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ और पंचम उद्देशक में निर्दिष्ट दोषों का प्रायश्वित्त समान है । -ख-- षष्ठ से एकादशम उद्देशक पर्यन्त ६ उद्दे शकों में निर्दिष्ट दोषों का प्रायश्चित्त समान है । ग- बारहवें से उन्नीसवें उद्देशक पर्यन्त य उद्देशकों में निर्दिष्ट दोषों का प्रायश्चित्त समान है । Page #921 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो सिद्धाणं चरणानुयोगमय आवश्यक सूत्र -अध्ययन मूल पाठ १०० श्लोक प्रमाण गद्य सूत्र पद्य सूत्र BHAIRIDIUIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIRITUDIESILADMINIMIMIRIDINHIBITILIUNIBHIBHAIRATIHD समणेण सावएण य, अवस्सकायव्वयं हवइ जम्हा । अंतो अहो-निसिस्स य, तम्हा आवस्सयं नाम ।। w Page #922 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #923 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक सूत्र विषय-सूची श्रमण-सूत्र प्रथम सामायक अध्ययन १ सामायिक व्रत ग्रहण करने का पाठ द्वितीय चतुर्विंशतिस्तव अध्ययन १ चतुर्विंशतिस्तव का पाठ तृतीय वन्दन अध्ययन १ नमस्कार मंत्र २ गुरु वन्दना का पाठ ३ द्वादशावर्त गुरु वन्दना का पाठ ४ अरिहंत वन्दना का पाठ चतुर्थ प्रतिक्रमण अध्ययन १ मंगल पाठ २ संक्षिप्त प्रतिक्रमण का पाठ ३ शयन सम्बन्धी अतिचारों के प्रतिक्रमण का पाठ ४ भिक्षाचर्या सम्बन्धी अतिचारों के प्रतिक्रमण का पाठ ५ कालप्रति लेखना सबन्धी अतिचारों के प्रतिक्रमण का पाठ ६ असंयम सम्बन्धी अतिचारों के ७ द्विविध बंधन सम्बन्धी अतिचारों के ८ त्रिविध दण्ड सम्बन्धी अतिचारों के ६ त्रिविध गुप्ति सम्बन्धी अतिचारों के १० , शल्य Page #924 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ४ सूत्र ३७ ८६६ आवश्यक-सूची ११ ,, गर्व १२ , विराधना , १३ चतुर्विध कषाय सम्बन्धी अतिचारों के १४ , संज्ञा १५ , विकथा १६ , ध्यान १७ पंचविध किया सम्बन्धी अतिचारों के प्रतिक्रमण का पाठ १८ , कामगुण १६ , महाव्रत २० , समिति २१ षड्विध जीवनिकाय २२ , लेश्या २३ सप्तविध भय २४ अ मदस्थान २५ नव ब्रह्मचर्य-गुप्ति २६ दश श्रमणधर्म २७ ग्यारह उपासक प्रतिमा २८ बारह भिक्षु प्रतिमा २६ तेरह किया स्थान ३० चौदह भूतग्राम ३१ पन्द्रह परमाधामिक ३२ गाथा षोडषक ३३ सत्रह असंयम ३४ अठारह अब्रह्मचर्य ३५ उन्नीस ज्ञाता धर्मकथा अध्ययन ३६ बीस असमाधि ३७ इकबीस शबल दोष و الله الله الله الله الله Page #925 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक-सूची ८६७ अ० ६ सूत्र ७ ३८ बाईस परिषह ३९ तेईस सूत्रकृतांग अध्ययन ४० चौबीस देव ४१ पच्चीस महाव्रत भावना ४२ छब्बीस दशा. कल्प. व्यवहार के अध्ययन ४३ सत्ताईस अनगार गुण , ४४ अट्ठाईस आचार प्रकल्प , ४५ उनतीस पापश्रुत ४६ तीस महामोहनीय स्थान ४७ इकतीस सिद्धगुण ४८ बत्तीस योग संग्रह ४६ तेतीस आशातना ५० शेष सर्व अतिचारों के प्रतिक्रमण का पाठ ५१ धर्म आराधना करने की प्रतिज्ञा का पाठ ५२ ऐर्यापथिकी पापक्रिया के प्रतिक्रमण का पाठ पंचम कायोत्सर्ग अध्ययन १ कायोत्सर्ग करने की प्रतिज्ञा का पाठ २ कायोत्सर्ग के आगारों का पाठ षष्ठ प्रत्याख्यान अध्ययन ३ नमस्कार सहित प्रत्याख्यान का पाठ २ पौरुषी प्रत्याख्यान का पाठ ३ पूर्वार्ध प्रत्याख्यान का पाठ ४ एकाशन प्रत्याख्यान का पाठ ५ एकस्थान प्रत्याख्यान का पाठ ६ आचाम्ल प्रत्याख्यान पाठ ७ अभक्त प्रत्याख्यान पाठ Page #926 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक-सूची ८६८ अ० ६ सूत्र १ ८ चरिम प्रत्याख्यान पाठ है अभिग्रह का पाठ १० विकृति प्रत्याख्यान का पाठ ११ प्रत्याख्यान पारने का पाठ श्रमणोपासक-आवश्यक सूत्र प्रथम सामायक आवश्यक १ सामायिक व्रत स्वीकार करने का पाठ द्वितीय चतुर्विंशति स्तव आवश्यक तृतीय वन्दन आवश्यक (ये दोनों आवश्यक श्रमण आवश्यक के समान हैं) चतुर्थ प्रतिक्रमण आवश्यक १ ज्ञानातिचारों का पाठ २ दर्शनातिचारों का पाठ ३ द्वादश व्रतातिचारों के पाठ ४ संलेखना का पाठ ५ अठारह पापस्थानों का पाठ ६ क्षमापना का पाठ पंचम कायोत्सर्ग आवश्यक (श्रमण आवश्यक के समान) षष्ठ प्रत्याख्यान आवश्यक १ समुच्चय प्रत्याख्यान पाठ Page #927 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धर्मकथानुयोग प्रधान कल्प सूत्र अध्ययन मूल पाठ गद्य सूत्र पद्य सूत्र गाथा १ . १२१५ अनुष्टुप् श्लोक प्रमाण ३१२ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं बहूणं समणीणं, महावीरे रायगि नयरे गुणसिलए उज्जाणे. बहूणं समणाणं. बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं, बहूणं देवारां, बहूणं देवीणं मज्झगए चैत्र. एवं भासइ. एवं पण्णवेइ. एवं परूवेइ. पज्जोसणा कप्पो नामं अयणं सश्रट्ट सहेउयं. सकारणं. ससुत्तं सश्रद्ध सउभय. सवागरणं भुज्जो भुज्जो उवदंसेइ त्ति बेमि । १४ Page #928 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #929 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसूत्र विषय-सूची परमेष्ठी नमस्कार भगवान महावीर १ भ० महावीर के पाँच कल्याण क- आषाढ़ शुक्ला षष्ठी की रात्रि में देवलोक से च्यवन ख- चतुर्थ आरक के ७५ वर्ष अवशेष ग- माहणकुण्ड ग्राम का कोडाल गोत्रीय ऋषभदत्त ब्राह्मण, जालंधर- गोत्रिया देवानन्दा बाह्मणी घ- मध्यरात्रि में गर्भावतरण ३-४ भ- भ० महावीर के तीन ज्ञान ख- देवानन्दा के चौदह स्वप्न ऋषभदत्त से स्वप्न दर्शन के सम्बन्ध में देवानन्दा का निवेदन ५-६ ७-१० ऋषभदत्त का स्वप्नफल कथन ११-१२ देवानन्दा द्वारा स्वप्नफल धारणा १३-१४ शक्रेन्द्र का अवधिज्ञान द्वारा भ० महावीर का गर्भावतरण १५ शक्र स्तव, शक्र संकल्प १६-१७ तीर्थंकर उत्पत्तिकुल का चिन्तन १८ क - ब्राह्मणकुल में अवतरण एक आश्चर्यजनक घटना ख- घटना का मूल हेतु १६- २४ शक्र का स्वकर्तव्य चिन्तन २५ हरिणैगमेषी को गर्भ साहारण का आदेश २६-२८ क - ह्रिणैगमेषी का वैक्रय ख- देवानन्दा के गर्भ का साहारण ग- क्षत्रियकुण्डग्राम, काश्यप गोत्रीय सिद्धार्थ क्षत्रिय, Page #930 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ७७ ६०२ कल्पसूत्र-सूची ४८ वाशिष्ठ गोत्रिया त्रिशला क्षत्रियाणी घ- त्रिशला को अवस्वापिनी निद्रा ङ- हरिणैगमेषी का स्वस्थान के लिए प्रस्थान और शक्रेन्द्र से गर्भ साहरण के सम्बन्ध में निवेदन २६ आश्विन कृष्णा त्रयोदशी-तियासीवीं रात्रि में गर्भ साहरण भ० महावीर का अवधिज्ञान ३१-४७ क- देवानन्दा को स्वगर्भ साहरण का बोध, त्रिशला के चौदह स्वप्न त्रिशला का सिद्धार्थ को जगाना ४६-५७ त्रिशला की स्वप्न-फल पृच्छा ५१-५४ सिद्धार्थ का स्वप्नफल कथन त्रिशला की स्वप्न-फल धारणा ५६ त्रिशला की धर्म जागरणा ७-६६ क- बाह्य उपस्थान शाला के सजाने का आदेश ख- सिद्धार्थ के आवश्यक दैनिक-कृत्य ग- बाह्य उपस्थान शाला में आगमन घ- त्रिशला के लिये तथा स्वप्न-पाठकों के लिये भद्रासनादिकी व्यवस्था ङ- स्वप्न पाठकों को आमंत्रण ६७-६८ स्वप्न पाठकों का आगमन ७०-७१ स्वप्न पाठकों से सिद्धार्थ की स्वप्नफल पृच्छा क- स्वप्न-पाठकों का स्वप्न-फल कथन ७२-७४ ख- बयालीस स्वप्न, तीस महास्वप्न, सर्व बहत्तर स्वप्न ___ग- तीर्थंकर और चक्रवर्ती की माता के चौदह स्वप्न ७५ वासुदेव माता के सात स्वप्न बलदेव माता के चार स्वप्न ওও मांडलिक माता का स्वप्न Page #931 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसूत्र-सूची ६०३ सूत्र १०२ ७८ त्रिशला के चौदह स्वप्नों का फल-पुत्र लाभ ७६ युवा पुत्र का चक्रवर्ती या धर्मचक्रवर्ती होना ८०-८२ क- सिद्धार्थ की स्वप्न-फल धारणा ख- स्वप्न-पाठकों को प्रीतिदान गस्वप्न-पाठकों का विसर्जन ८३-८७ क- सिद्धार्थ का त्रिशला को स्वप्न पाठकों के कथन से अवगत कराना ख- त्रिशला का स्वस्थान गमन ८८ तिर्यक जृम्भक देवों द्वारा राज्य कुल में निधान की वृद्धि ८६-६० सिद्धार्थ और त्रिशला का संकल्प, वर्धमान नाम रखने का निश्चय माता की अनुकम्पा के लिये गर्भ में भ०महावीर का स्थिर होना भ० महावीर के निश्चल होने से त्रिशला का चिन्तित होना ६३ क- भ० महावीर को त्रिशला के मनोगत भावों का अवधिज्ञान से जानना ख- भ० महावीर द्वारा स्वशरीर का स्पंदन ६४ क- त्रिशला की प्रसन्नता ख- भ० महावीर का अभिग्रह सिद्धार्थ द्वारा त्रिशला के दोहद की पूर्ति, त्रिशला का गर्भ पोषण, संरक्षण १६ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी के दिन भ० महावीर का जन्म ६७ जन्मोत्सव के लिये देव-देवियों का आगमन ६८ सिद्धार्थ के भवन में देवों द्वारा हिरण्य आदि की दिव्य वर्षा ६६-१०२ सिद्धार्थ द्वारा दस दिवस पर्यन्त पुत्र जन्मोत्सव क- बन्दिमोचन ख- मान उन्मान की वृद्धि ग- शुल्क मुक्ति, कर मुक्ति Page #932 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०४ सूत्र ११५ कल्पसूत्र-सूची घ- नगर की सफाई आदि ङ- दण्ड निषेध, ऋणमुक्ति १०३ यज्ञ, दान आदि कृत्य क- प्रथम दिन शिशु-स्थिति ख- तृतीय दिन-चन्द्र सूर्य दर्शन ग- छठे दिन-धर्मजागरणा घ- इग्यारहवें दिन अशुचि से निवृत्ति ङ- बारहवें दिन-जाति भोज १०५-१०७ वर्धमान नाम देना १०८ भ० महावीर के गुण निष्पन्न तीन नाम १०६ क- भ० महावीर के पिता के तीन नाम ख- भ० महावीर की माता के तीन नाम ग- भ० महावीर के (पितृव्य) चाचा का नाम घ- भ० महावीर के बड़े भ्राता का नाम ङ- भ० महावीर की बहिन का नाम च- भ० महावीर की भार्या का नाम छ- भ० महावीर की पुत्री के दो नाम ज- भ० महावीर की दोहित्री के दो नाम ११०-१११ क- भ० महावीर की तीस वर्ष की वय होने पर लोकान्तिक देवों का आगमन ख- बोध प्रदान एवं तीर्थ प्रवर्तन के लिये प्रार्थना ११२ क- भ० महावीर को अप्रतिपाति अवधि ज्ञान से निष्क्रमण काल का ज्ञान ख- भ० महावीर द्वारा वर्षीदान ११३-११५ मार्गशीर्ष कृष्णा दसमी के दिन दीक्षा के लिये 'ज्ञात-खण्ड वन" उद्यान में गमन Page #933 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १३१ ११६ क- आभरणादि का त्याग ख- पंचमुष्टि लोच ग- छट्टु तप घ- एक देव दृष्यवस्त्र का धारण करना ङ - एकाकी भ० महावीर की अनगार प्रव्रज्या ६०५ ११७ क- भ० महावीर का देव दृष्य धारण काल ख- भ० महावीर का अचेलक होना क- भ० महावीर का बारह वर्ष पर्यन्त उपसर्ग सहन करना ख- भ० महावीर की समिति गुप्ति आराधना ग- भ० महावीर की इकबीस उपमा घ- प्रतिबन्ध के चार भेद १२२ १२३ १२४ ङ- अठारह पाप से सर्वथा विरति ११६ भ० महावीर का ग्रीष्म - हेमन्त में ग्राम नगर में ठहरने का काल १२०-१२१ दीक्षा काल से तेरहवें वर्ष में जृंभक ग्राम के बहार नृजुवालिका नदी के तट पर चैत्य के समीप वैसाख शुक्ला दसमी के दिन भ० महावीर को केवल ज्ञान कल्पसूत्र - सूची भ० महावीर के वर्षावास भ० महावीर का अन्तिम वर्षावास मध्यपावा में कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन भ० महावीर का निर्वाण १२५-१२६ देवताओं द्वारा भ० महावीर का निर्वाण महोत्सव १२७ इंद्रभूति गौतम गणधर को केवलज्ञान १२८ क- कार्तिक कृष्णा अमावस्या के दिन अठारह गणराजाओं का आहार त्याग कर पौषध करना ख- राजाओं द्वारा दीपोद्योत भस्मराशि नामक महाग्रह का भ० महावीर के जन्म नक्षत्र के साथ संक्रमण १३०-१३१ भस्म - राशि महाग्रह का प्रभाव Page #934 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसूत्र - सूची ६०६ १३२-१३३ क- निर्वाण रात्रि में कुथुओं की उत्पत्ति ख- निर्ग्रन्थों का भक्त प्रत्याख्यान ग- कुँथुओं की उत्पत्ति का फलादेश १३४ १३५ १३६ १३७ १३८ १३६ १४१ १४२ भ० महावीर के अनुयायी श्रमण भ० महावीर की अनुयायी श्रमणियाँ भ० महावीर के अनुयायी श्रमणोपासक भ० महावीर की अनुयायी श्रमणोपासिकायें भ० महावीर के अनुयायी चतुर्दशपूर्वी मुनि भ० महावीर के अनुयायी अवधिज्ञानी मुनि १४३ भ० महावीर के अनुयायी - वैक्रियलब्धि धारी मुनि भ० महावीर के अनुयायी मनः पर्यवज्ञानी मुनि भ० महावीर के अनुयायी बादलब्धि वाले मुनि १४४ क- भ० महावीर के मुक्त होने वाले शिष्य ख- मुक्त होने वाली आर्यिकाएँ १४५ १४६ १४७ क- भ० महावीर का गृहवास काल ख- भ० महावीर का छद्मस्थकाल ग- भ० महावीर का केवलज्ञान युक्त जीवन घ- भ० महावीर का श्रमण जीवन १४८ अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले मुनि भ० महावीर के पश्चात् मुक्त होने वाले मुनि घ- भ० महावीर की सर्वायु च - भ० महावीर का निर्वाण काल कल्पसूत्र का लेखन काल भ० पार्श्वनाथ भ० पार्श्वनाथ के पंच कल्याण १४६ १५० क सूत्र १५० चैत्र कृष्णा चतुर्थी के दिन प्राणत देवलोक से भ० पार्श्वनाथ की आत्मा का च्यवन Page #935 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १६६ ६०७ कल्पसूत्र-सूची x x ख- जम्बूद्वीप, भरत, वाराणसी नगरी, अश्वसेन राजा, वामा रानी ग- वामारानी की कुक्षी में भ० पार्श्वनाथ का अवतरण १५१ क- भ० पार्श्वनाथ के तीन ज्ञान ख- स्वप्न दर्शन आदि सर्व वृतान्त १५२ पौष कृष्णा दसमी के दिन भ० पार्श्वनाथ का जन्म देवताओं द्वारा भ० पार्श्वनाथ का जन्मोत्सव १५४ पाश्र्व कुमार नाम देने का हेतु भ० पार्श्वनाथ की तीस वर्ष की वय होने पर लोकान्तिक देवों का आगमन भ० पार्श्वनाथ द्वारा वर्षीदान १५७ पोष कृष्णा एकादशी के दिन भ० पार्श्वनाथ की तीन सौ पुरुषों के साथ अनगार प्रव्रज्या तियासी दिन का उपसर्ग सहन काल भ० पार्श्वनाथ की समिति गुप्ति आराधना भ० पार्श्वनाथ को चैत्र कृष्णा चतुर्थी के दिन केवल ज्ञान भ० पार्श्वनाथ के आठ गण और आठ गणधर भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी श्रमण भ० पार्श्वनाथ की अनुयायी श्रमणियाँ भ० पार्श्वनाथ के श्रमणोपासक १६४ भ० पार्श्वनाथ की श्रमणोपासिकाएं भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी चौदह पूर्वी मुनि १६६ क- भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी अवधिज्ञानी मुनि ख- भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी केवलज्ञानी मुनि ग- भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी वैक्रिय लब्धि सम्पन्न मुनि घ- भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी मनः पर्यव ज्ञानी मुनि ड- भ० पार्श्वनाथ के मुक्त होने वाले शिष्य १५८ १५६ १६२ Page #936 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र १७२ ६०८ च - मुक्त होने वाली आर्यिकाएँ छ- भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी विपुलमती मनः पर्यव ज्ञानी मुनि ज- भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी वादलब्धि सम्पन्न मुनि झ- भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले मुनि भ० पार्श्वनाथ के पश्चात् मुक्त होनेवाले मुनि १६७ १६८ क- भ० पार्श्वनाथ का गृहवास काल ख- भ० पार्श्वनाथ का छद्मस्थ जीवन १६६ ग- भ० पार्श्वनाथ का केवलज्ञान युक्त जीवन घ- भ० पार्श्वनाथ का श्रमण जीवन कल्पसूत्र - सूची ङ- भ० पार्श्वनाथ का सर्वायु व- श्रावण शुक्ला अष्टमी के दिन सम्मेत- शैल शिखर पर चौतीस पुरुषों के साथ भ० पार्श्वनाथ का निर्वाण कल्प सूत्र का लेखन काल भ० नेमनाथ १७० भ० अरिष्ट नेमिनाथ के पाँच कल्याण १७१ क- कार्तिक कृष्णा द्वादशी के दिन अपराजित विमान से भ० अरिष्ट नेमिनाथ की आत्मा का च्यवन ख- जम्बूद्वीप, भरत, सौर्यपुर नगर, समुद्रविजय राजा, शिवा देवी ग- शिवा देवी की कुक्षी में भ० अरिष्टनेमि की आत्मा का अवतरण घ- चौदह स्वप्न, गर्भपालन आदि १७२ क- श्रावण शुक्ला पंचमी के दिन भ० अरिष्ट नेमिनाथ का जन्म ख- अरिष्ट नेमिनाथ नाम देने का हेतु ग- अरिष्ट नेमिनाथ की तीन सो वर्ष की वय होने पर लोकान्तिक देवों का आगमन घ- तीर्थ प्रवर्तन के लिये प्रार्थना Page #937 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसूत्र-सूची ६०४ सूत्र १८२ १७८ ङ- भ० अरिष्टनेमि द्वारा वर्षीदान १७३ श्रावण शुक्ला षष्ठी के दिन भ० अरिष्ट नेमिनाथ की अनगार प्रव्रज्या १७४ भ० अरिष्ट नेमिनाथ का चौपन दिन का कायोत्सर्ग आश्विन कृष्णा अमावस्या के दिन उज्जयन्त शैल शिखर पर भ० अरिष्ट नेमिनाथ को केवल ज्ञान १७५ भ० अरिष्ट नेमिनाथ के अठारह गण और गणधर १७६ भ० अरिष्ट नेमिनाथ के अनुयायी श्रमण १७७ भ० अरिष्ट नेमिनाथ की अनुयायी श्रमणियां भ० अरिष्ट नेमिनाथ के अनुयायी श्रमणोपासक भ० अरिष्ट नेमिनाथ की अनुयायी श्रमणोपासिकाएँ १७६ भ० अरिष्ट नेमिनाथ के अनुयायी चौदह पूर्वी मुनि १८० क- भ० अरिष्ट नेमिनाथ के अनुयायी अवधि-ज्ञानि मुनि , , केवल ज्ञानी मुनि ग- वैक्रेय लब्धि सम्पन्न मुनि घ- , , विपुल मति मुनि ङ- भ० अरि नेमिनाथ के अनुयायी वादलब्धि सम्पन्न मुनि च- भ० अरिष्ट नेमिनाथ के अनुयायी अनुत्तर विमानो में उत्पन्न होनेवाले मुनि छ- भ० अरिष्ट नेमिनाथ के अनुयायी सिद्ध होनेवाले मुनि ज- भ० अरिष्ट नेमिनाथ की अनुयायी सिद्ध होनेवाली आर्यिकाएँ । भ० अरिष्ट नेमिनाथ के पश्चात् मुक्त होनेवाले मुनि क- भ० अरिष्ट नेमिनाथ का कुमार जीवन छद्मस्थ जीवन । ग- " " केवलज्ञान युक्त जीवन घ- ,, , पूर्णायु आषाढ शुक्ला अष्टमी ङ- " " Page #938 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र २०६ १८३ १८४ १८५ १८६ १८७ १८८ १८६ १६० १६१ १६२ . १६३ १६४ १६५ १६६ १६७ १६८ १६६ भ० पद्मप्रभ १० को उज्जयन्त शैल शिखर पर निर्वाण भ० अरिष्ट नेमिनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० नमिनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० मुनि सुव्रत के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० मल्लिनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० अरनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० कुंथुनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० शान्तिनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० धर्मनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० अनन्तनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल भ० विमलनाथ के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचना काल २०१ २०२ २०३ भ० वासुपूज्य भ० श्रेयाँस नाथ भ० शीतल नाथ भ० सुविधि नाथ भ० चन्द्र प्रभ भ० सुपार्श्वनाथ 19 "1 1) "" 31 77 " 37 " 19 17 21 27 " २०० भ० सुमतिनाथ भ० अभिनन्दन भ० सम्भव नाथ भ० अजितनाथ भ० ऋषभदेव २०४ २०५ भ० ऋषभदेव के पाँच कल्याण २०६ क- आषाढ़ कृष्णा चतुर्थी के दिन भगवान की आत्मा का देव लोक से च्यवन " ३३ 37 " "2 33 कल्पसूत्र सूची " Page #939 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसूत्र सूची ११ सूत्र २१८ ख जम्बूद्वीप, भरत, इक्ष्वकुभूमिका, नाभिकुलकर, मरुदेवा भार्या ग- मरुदेवा भार्या की कुक्षि में भगवान की आत्मा का अवतरण २०७ क- भ० ऋषभदेव को तीन ज्ञान ख- मरुदेवा के चौदह स्वप्न २१२ ग- प्रथम स्वप्न वृषभ का घ- नाभि कुलकर द्वारा स्वप्न फल कथन २०८ २०६ २१० भ० ऋषभदेव के पाँच नाम २११ क- भ० ऋषभदेव का कुमार जीवन ख- भ० ऋषभदेव का राज्य काल ग- भ० ऋषभदेव द्वारा कला व शिल्पकर्मों का उपदेश २१३ २१४ २१५ २१६ २१७ २१८ चैत्र कृष्णा अष्टमी को भ० ऋषभदेव का जन्म जन्मोत्सव आदि घ- सो पुत्रों का राज्याभिषेक ङ. लोकान्तिक देवों का आगमन च वर्षीदान छ- चैत्र कृष्णा अष्टमी को चार हजार पुरुषों के साथ भ० ऋषभदेव की अनगार प्रव्रज्या एक हजार वर्ष पश्चात् फाल्गुन कृष्णा एकादशी को पुरिमताल नगर के बाहर शकटमुख उद्यान में न्यग्रोध ( बड़) वृक्ष के नीचे भ० ऋषभदेव को केवलज्ञान भ० ऋषभदेव के गण और गणधर भ० ऋषभदेव के अनुयायी श्रमणों की संख्या भ० ऋषभदेव की अनुयायी श्रमणियों की संख्या के श्रमणोपासकों की संख्या श्रमणोपासकाओं की संख्या चौदह-पूर्वी मुनि "" 77 "1 की के Page #940 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ सूत्र ४ ६१२ कल्पसूत्र-सूची भ० ऋषभदेव के अनुयायी अवधिज्ञानी मुनि केवलज्ञानी मुनि २२१ ,, , , वक्रियलब्धि सम्पन्न मुनि विपुलमति मनःपर्यव ज्ञानी मुनि वादलब्धि सम्पन्न मुनि २२४ क- मुक्त होनेवाले शिष्य . ख- मुक्त होनेवाली आर्थिकाएँ २२५ अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होनेवाले मुनि भ० ऋषभदेव के पश्चात् मुक्त होने वाले शिष्यों की परम्परा २२१ क- भ० ऋषभदेव का कुमार जीवन राज्य काल गृहवास काल छद्मस्थ जीवन केवलज्ञान युक्त जीवन श्रमण जीवन सर्वायू निर्वाण काल माघ कृष्णा त्रयोदशी को निर्वाण २२८ भ० ऋषभदेव के पश्चात् कल्पसूत्र का वाचता काल भ० महावीर १ भ० महावीर के नौ गण, इग्यारह गणधर २-३ क- नौ गण होने का कारण ख- गणधरों के गोत्र ग- गणधरों ने जिन मुनियों को वाचना दी उनकी संख्या ४ . क- इग्यारह गणधरों का आगम ज्ञान ख- , निर्वाण-स्थल Page #941 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पसूत्र-सूची ६१३ सूत्र २८ ग- इग्यारह गणधरों का निर्वाण काल ५-२० क- सुधर्मा का शिष्य परिवार गाथा१४ ख- स्थविरावली-स्थविरों के कुल, गोत्र, शाखा आदि वर्षावास समाचारी भ० महावीर का वर्षावास निश्चय पचास दिन पश्चात वर्षावास निश्चित करने का हेतु भ० महावीर का अनुसरण वर्षावास में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों का अवग्रह क्षेत्र वर्षावास में निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों का भिक्षाचर्या क्षेत्र गहरे जलवाली नदियों के पार करने का निषेध १२-१३ अल्प जलवाली नदियों को पार करने की विधि १४-१६ ग्लान के निमित्त लाई हुई वस्तु ग्लान को ही देने का विधान स्वस्थ सबल साधक को बारम्बार नो प्रकार की विकृति लेने का निषेध १५-१६ ग्लान के निमित्त आवश्यक वस्तु लाने की विधि २० क- एक ही बार भिक्षा लाने का नियम ख- आचार्यादि के निमित्त दूसरी बार भिक्षा लाने का विधान उपवास के पारणा के दिन आवश्यक हो तो दो बार भिक्षा लाने का विधान २२-२४ क- दो उपवास और तीन उपवास के पारणा के दिन सूत्र २१ के समान ख- उत्कृष्ठ तप के पारणा के दिन स्वेच्छानुसार भिक्षाकाल २५ नित्यभोजी और तपस्वियों के लेने योग्य पानी २६ आहार-पानी की (दात) अखण्ड धारा की संख्या २७ क- उपाश्रय के पार्श्ववर्ती घरों से भिक्षा लेने का निषेध ख- गृह संख्या के तीन विकल्प २८ वर्षा में (अत्यल्प वर्षा में) भिक्षा के लिये जाने का निषेध · Page #942 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० सूत्र ४५ कल्पसूत्र-सूची २६ खुले आकाश के निचे भोजन करने का निषेध पाणिपात्र भिक्षु को वर्षा में भिक्षार्थ जाने का निषेध ३१ क- पात्रधारी भिक्षु भिक्षुणी को अधिक वर्षा में भिक्षार्थ जाने का निषेध ख- पात्रधारी भिक्षु भिक्षुणी को अल्प वर्षा में भिक्षार्थ जाने का विधान वर्षा में ठहरने के स्थान ३३-३५ गृह प्रवेश से पूर्व पक्व आहार के ही लेने का विधान ३६ क- रुक रुक कर वर्षा हो तो भोजन करने की विधि ख- सांयकाल से पूर्व ही उपाश्रय में आने का विधान ३७ रुक रुक कर वर्षा हो तो निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी को एक स्थान पर रुकने का निषेध निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी के एकत्र रुकने के अनेक विकल्प ३६ एकत्र रुकने की चत्तभंगी ४०-४१ क- बिना पूछे आहार लाने का निषेध ख- निषेध का हेतु . क- पानी से शरीर गीला हो तो भोजन करने का निषेध ख- गीले रहनेवाले स्थान पानी सूखने पर भोजन करने का विधान ४४ क- आठ सूक्ष्म ख. पाँच पनक पाँच पनक सूक्ष्म ., बीज सूक्ष्म ,, हरित सूक्ष्म ,, पुष्प सूक्ष्म ङ- , अण्ड सूक्ष्म च- , लयन सूक्ष्म Page #943 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ५६ ६१५ कल्पसूत्र-सूची छ- ,, स्नेह सूक्ष्म ४६ क- आचार्यादि से पूछकर भिक्षा के लिये जाने का विधान ख- पूछकर जाने का कारण क- स्वाध्याय के लिये आचार्यादि से पूछ कर जाने का विधान ख- शौच के लिये आचार्यादि से पूछ कर जाने का विधान ग- आचार्यादि से पूछ कर ही विहार करने का विधान ४८ क- आवश्यकता हो तो आचार्यादि से पूछ कर ही विकृति सेवन का विधान ख- पूछने का हेतु ४६ क- आचार्यादि से पूछ कर ही चिकित्सा कराने का विधान ख- पूछने का हेतु ५० आचार्यादि से पूछ कर ही तपश्चर्या करने का विधान ५१ क- आचार्यादि से पूछ कर ही संलेखना-भक्त प्रत्याख्यान करने का विधान ख- पूछने का कारण ५२ क- वस्त्रादिको धूप में सुखाकर भिक्षा के लिये जाने का निषेध ख. , , , , स्वाध्याय के लिये ग- , , , ,, कायोत्सर्ग करने का निषेध ५३-५४ बिना आसन शयन के सोने बैठने का निषेध ५५ क- मल-मूत्रादि से निवृत्त होने के लिये तीन स्थान ख. तीन स्थान देखने का हेतु ५६ तीन पात्र लेने का विधान ५७ लोच का विधान लोच के विकल्प ५८-५९ क- क्षमा याचना ख- उपशम भाव से आराधना Page #944 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्र ६४ ६१६ कल्पसूत्र-सूची ग- अनुपशम भाव से विराधना घ- साधुता का सार तीन उपाश्रय की याचना भिक्षाचर्या के लिये दिशा अभिग्रह रुग्ण श्रमण के लिये आवश्यक वस्तु निमित्त दूर जाने का परिमाण उपसंहार-समाचारी की आराधना से निर्वाण भ० महावीर का चतुर्विध संघ के समक्ष पर्युषणा कल्प का प्रवचन Page #945 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो लोगुत्तमाणं चरणानुयोगमय दस प्रकीर्णक गाथा _ १ चतुश्शरण प्रकीर्णक २ अातुर प्रत्याख्यान " ३ महा प्रत्याख्यान ४ भक्त परिज्ञा ५ तन्दुल वैचारिक ६ संस्तारक ७ गच्छाचार ८ गणि विद्या ६ देवेन्द्रस्तव ५० मरण-समाधि . . . . rum 9 mrar ॥ ० 9 ur m Page #946 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #947 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दस प्रकीर्णक विषय-सूची १ चतुश्शरण प्रकीर्णक १ आवश्यक के छः अध्ययन २ सामायिक आवश्यक से चारित्र शुद्धि ३ चतुर्विंशति जिन स्तव से दर्शन शुद्धि ४ वन्दना आवश्यक से ज्ञान शुद्धि ५ प्रतिक्रमण से ज्ञान, दर्शन, चारित्र शुद्धि ६ कायोत्सर्ग से तप शुद्धि ७ पच्चक्खाण से वीर्य शुद्धि ८ चौदह स्वप्न ६ उपोद्घात १० गण के कर्तव्य त्रय ११-२३ अहंत शरण २४.३० सिद्ध शरण ३१-४१ साधु शरण ४२-४८ धर्म शरण ४६-५४ दुष्कृत गरे ५५-६१ सुकृत अनुमोदन ६२-६३ उपसंहार २ आतुर प्रत्याख्यान प्रकीर्णक १ बाल पण्डित मरण की व्याख्या २ देशयति की व्याख्या ३ पांच अगुव्रत Page #948 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ४३ १२० प्रकीर्णक-सूची ४ तीन गुण-व्रत ५ चार शिक्षाव्रत ६ संलेखना ७.८ बाल पण्डित मरण (भक्त परिज्ञा में विस्तार से कथन) ६ क- बाल-पंडित का वैमानिकों में उपपात ख- " " की सात भव से सिद्धि १० पंडित मरण गद्यपाठ अतिचार शुद्धि ११ क- जिन वन्दना ख- गणधर वन्दना १२-१४ सर्व प्राणातिपातविरति-यावत्-सर्वपरिग्रह विरति १५-१७ संस्तारक-संथारा प्रतिज्ञा १८ सामायिक १६ सर्व बाह्याभ्यन्तर उपधि का त्याग २०-२२ अट्ठारह पाप का त्याग २३ आत्मा का अवलम्बन २४ निश्चय दृष्टि से आत्मा ही ज्ञान-दर्शनादि रूप है २५-२७ एकत्व भावना २८-३१ प्रतिक्रमण ३२-३३ आलोचना ३४ क्षमा याचना ३५ तीन प्रकार के मरण ३६-३६ विराधक ४० बोधि की दुर्लभता ४१ बोधि की सुलभता ४२ अनन्त संसारी ४३ अल्प संसारी . Page #949 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची ४४ ४५ ४६-४७ ४८-५० ५.१ ५२ ५३-५५ ५६ ५७ ५८ ५६ ६० ६१ ६२ ६३ ६४ ६५ ६६-७० १-२ ३-५ ६-७ ८ ६-१० ११ १२ १३-१७ ६२१ बाल मरण मरने वाले बाल मरण पण्डित मरण का संकल्प काम भोग से अतृप्ति क- सच्चित आहार का फल ख- सच्चित आहार का त्याग मरण की प्रतीक्षा में देह त्याग भव मुक्ति जिन वचन पर श्रद्धा अन्तिम समय में द्वादशाङ्ग श्रुत का चिन्तन असम्भव आराधक मरण तीन भव से मुक्ति श्रमण व संयत मरण से भय नहीं धीर अधीर की मृत्यु शीलवाल और शील रहित की मृत्यु मुक्त होने की योग्यता का संपादन गाथा १७ ३ महा प्रत्याख्यान प्रकीर्णक अर्हत सिद्ध और संयतों को वन्दन, श्रद्धा, पाप-प्रत्याख्यान सर्व विरति क्षमा याचना प्रतिक्रमण ममत्व त्याग निश्चय दृष्टि से आत्मा ही ज्ञान दर्शनादि रूप है मूलगुण और उत्तरगुणों का प्रतिक्रमण एकत्व भावना Page #950 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ६७ १८- २२ २३ २४-२६ ३०-३२ ३३-३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३६-४० ४१-४२ ४३-४४ ४५-५० ५१-६४ ६५ ६६ ६७ ६८-७६ ७७-७६ ८०-८४ ८५-८८ ८६ ६०.६२ ६३-६४ ६५ ६६ ६७ ६२२ आलोचना, निन्दा, निश्शल्य की शुद्धि सशल्य की शुद्धि नहीं आलोचना, निन्दा, प्रायश्चित्त सर्व विरति शुद्ध आराधना शुद्ध प्रत्याख्यान अतृप्ति अनन्त रोदन सर्वत्र जन्म मरण पण्डित मरण की भावना ग अशरण भावना पण्डित मरण की भावना काम भोगों से अतृप्ति निन्दा गर्दा मुक्ति मृत्यु की प्रतीक्षा में पंच महाव्रत रक्षा सच्चा शरण आत्म प्रयोजन की सिद्धि निदान रहित होकर मरण की प्रतीक्षा करना सम्यक् तप का सामर्थ्य पण्डित मरण आराधना की कठिनता आराधना की श्रेष्ठता वास्तविक संथारा देह त्याग प्रकीर्णक-सूची Page #951 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची ६२३ गाथा १४२ १८ इन्द्रिय रूप चौर ६६-१०० कर्म क्षय ज्ञानी और अज्ञानी के कर्म क्षय में अन्तर ___ अन्तिम समय में द्वादशाङ्ग श्रुत चिन्तन असम्भव १०३-१०६ क- संवेग की वृद्धि ख- संवेगी के कर्तव्य १०७ मोक्ष मार्ग १०८ श्रमण व संयत १०६-११२ सर्व-प्रत्याख्यान ११३-११६ चार मंगल, चार शरण, पाप-प्रत्याख्यान आराधक १२१-१२७ चिन्तन-मनन तप का आराधन आराधन ध्वज वास्तविक संथारे से सर्वथा कर्मक्षय आराधक की तीन भव से मुक्ति १३२-१३५ पताका हरण भाव जागरण १३७ क- चार प्रकार की आराधना ख- तीन प्रकार की आराधना १३८-१३६ क- उत्कृष्ट आराधना से उसी भव से मोक्ष ख- जघन्य आराधना से सात आठ भव से मोक्ष १२० १२६ आरा १४० क्षमा याचना १४१ धीर और अधीर की मृत्यु उपसंहार-सम्यक् आराधना का फल १४२ Page #952 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ३६ २ ३ ४-५ ६-८ १ क- महावीर वंदना ख- भक्त - परिज्ञा का कथन जिन शासन स्तुति ज्ञान सम्पादक वास्तविक सुख जिनाज्ञा का आराधन ६ १० ११ १२-१५ १६ १७-१८ १६ २० २१-२२ २३-२८ २६ ३० ३१ ३२-३४ ३५ ३६ ६२४ ४ भक्त-परिज्ञा प्रकीर्णक ३८-३६ पंडित मरण के तीन भेद भक्त-परिज्ञा के दो भेद भक्त - परिज्ञा का कथन भक्त परिज्ञा की उपादेयता दुःख भव-समुद्र भव-समुद्र तिरने का संकल्प गुरु का आदेश गुरु वन्दना सम्यक् आलोचना महाव्रत स्थापना अणुव्रत आराधना गुरु, संघ और स्वधर्मी की पूजा द्रव्य का सदुपयोग सामायिक चारित्र की धारणा भक्त-परिज्ञा का आराधना आराधना-दोषों की आलोचना ३७ क - अन्तिम प्रत्याख्यान ख- तीन आहार का त्याग या सर्वथा त्याग चिन्तन मनन प्रकीर्णक-सूची Page #953 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची १२५ गाथा ६४ ४१ शात ६३ सुख विरेचन शीतल क्वाथ का पान मधुर विरेचन यावज्जीवन के लिये तीन आहार का त्याग ४४ आचार्य या संघ से निवेदन ४५.४६ चार आहार का त्याग ४७-५० क्षमा याचना ५१-५८ आचार्य का उपदेश ५६ क- मिथ्यात्व का त्याग ख- सम्यक्त्व में दृढता ग. नमस्कार सूत्र का जाप ६०-६२ मिथ्यात्व का फल अप्रमाद का उपदेश ६४ चार प्रकार का प्रशस्तराग ६५-६६ दर्शन भ्रष्ट और चारित्र भ्रष्टमें अन्तर ६७ अविरत का तीर्थंकर नाम कर्म सम्पादन ६८-६६ सम्यक् वर्शन महिमा ७०-७५ भक्ति मार्ग ७६-८१ नमस्कार सूत्र आराधना का फल ८२-८३ ज्ञान महिमा ४-८५ चंचल मन का बंधन-ध्यान ८६-८८ श्रुत-महिमा हिंसा का त्याग दयाधर्म की आराधना अहिंसा की महिमा ६२-६३ जीव हिंसा स्वहिंसा है ६४ हिंसा का फल Page #954 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा १७२ ६५-६६ अहिंसा का फल ६७-६८ असत्य का त्याग ६६ सत्य की महिमा असत्य भाषण का फल १००-१०१ १०२-१०६ १०७-१३२ १३३-१३४ १३५ १३६ १३७ १३८ १३६ १४० १४१ १४२-१४४ १४५-१५० १५१. १५३ १५४ १५५ १५६ १५७-१६४ १६५-१६६ १६७-१६८ १६६-१७२ ६२६ अदत्तादान का त्याग ब्रह्मचर्य की आराधना परिग्रह त्याग निश्शल्य और सशल्य शल्यों के हेतु शल्यों के दृष्टान्त निदान शल्य साधक की चार कामनाएँ निदान शल्य का निषेध विषयी की दुर्दशा विषय -: - सुख इन्द्रिय निग्रह कषाय विजय उपदेशामृत का पान आज्ञानुसार आचरण करने का संकल्प वेदना सहन करना प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहना धर्म महिमा नमस्कार सूत्र स्मरण उपसंहार भक्त परिज्ञा का फल क- जघन्य - सौधर्म देवलोक ख- उत्कृष्ट - गृहस्थ-अच्युत कल्प गसाधु - निर्वाण 77 प्रकीर्णक-सूची Page #955 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक--सूची ६२७ सूत्र ६ घ- उत्कृष्ट सर्वार्थ सिद्ध ५ तन्दुल वैचारिक प्रकीर्णक १ महावीर वन्दना, आदि वाक्य २ सौ वर्ष की आयु की दश-दशा ३ क- गर्भस्थ जीव के अहोरात्र ख- " . जीव के मुहूर्त ग- गर्भस्थ जीव के श्वासोच्छवास घ- " ' का आहार ४-५ गर्भस्थ जीव के अहोरात्र गर्भस्थ जीव के मुहूर्त गर्भस्थ जीव के श्वासोछ वास ६-१२ नो लाख जीवों का उत्पत्ति स्थान स्त्री-पुरुष का अबीजकाल १४ क्रोड़ पूर्व की आयुवालों का अबीजकाल १५ क- बारह मुहूर्त में जीवों की उत्पत्ति ख- बारह वर्ष पर्यन्त गर्भस्थ जीव की उत्कृष्ट पितृ-संख्या १६ क- स्त्री, पुरुष और नपुंसक का कुक्षी स्थान ख- तिर्यच का उत्कृष्ट गर्भ-स्थिति काल १७ गर्भस्थ जीव का सर्व प्रथम आहार गद्य पाठ सूत्र १-२ गर्भस्थ जीव का वृद्धि क्रम ३ क- गर्म स्थ जीव के मल-मूत्र का अभाव " आहार सा परिणाम कवलाहार का अभाव का ओज आहार के तीन मान्यङ्ग और तीन पित्र्यङ्ग Page #956 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ४४ ७ ८ & गाथा १८-२१ क ख २५ २६ २७-३० ३१ ३२ ३३ ३४ ३५ ३६ ३७ ३८ ३६ ४० ४१ ४२-४४ " ६२८ गर्भस्थजीव की नरकगति और उसका हेतु 33 के वैध लब्धि का धर्म श्रवण का शयनासनादि 12 गर्भावस्था वर्णन गद्य पाठ क- गर्भस्थ जीव का वर्णन सूत्र १० २२-२३ ख - स्त्री-पुरुष आदि होने का हेतु सूत्र ११ २४ क- तीन प्रकार से प्रसव ख- उत्कृष्ट गर्भ स्थिति जन्म और मरण समय का दुःख और उसका विस्मरण प्रसव पीड़ा गर्भस्थ जीव की दशा दश दशाओं के नाम (१) बाल दशा (२) क्रीड़ा दशा ( ३ ) मंदा दशा प्रकीर्णक-सूची (४) बला दशा (५) प्रज्ञा दशा ( ६ ) हायनी दशा (७) प्रपंचा दशा ( ८ ) प्राग्भारा दशा (६) मुन्मुखी दशा (१०) शायनी दशा दस दशाओं का प्रकारान्तर से वर्णन Page #957 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची ६.२६ सूत्र १६ ४५-४७ धर्माचरण का उपदेश ४८.४१ पुण्य करने के लिये प्रेरक वचन गद्य पाठ अप्रमाद का उपदेश १४ युगल-मनुष्यों का उपदेश छः संहन, छः संस्थान गाथा ५०-५५ अवसर्पिणी काल (ह्रासकाल) का प्रभाव गद्यपाठ ५६ क- सो वर्ष की आयु में तन्दुल आहार का परिमाण ख- मागधप्रस्थ का मान घ- तन्दुल आहार का प्रमाण ङ- अन्य भोज्य द्रव्य का प्रमाण ५७-५८ व्यवहार कालगणना ५९-६६ एक अहोरात्र के श्वासोच्छवास एक मास एक वर्ष के ७२-७३ सौ वर्ष के ७४ क- एक अहोरात्र के मुहूर्त ख- एक मास के मुहूर्त ७५ सौ वर्ष के ऋतु ७६-७८ शतायु क्षय का क्रम ७६-८० धर्माचरण का उपदेश ८१-८२ आयु क्षय का रूपक गद्यपाठ सूत्र १६ क- प्रिय शरीर का वियोग ख- प्रत्येक अंगोपांग का प्रमाण ग- शिरा आदि का प्रमाण ७१ Page #958 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक सूची ६३० गाथा ८८ घ- रोगों की उत्पति का हेतु ङ- शरीरस्थ रक्तादि का प्रमाण गद्य पाठ सूत्र १७ ८३-८४ मानव शरीर का अन्तरङ्ग दर्शन सूत्र १८ ८५-६५ देह की अपवित्रता का वर्णन १६-१२१ क- व्यक्ति की राग दृष्टि __ ख- राग निवारण का उपदेश गद्य पाठ सूत्र १६ स्त्रियों की विकृत दशा का वर्णन स्त्रियों के विकृत जीवन के सूचक ६३ नाम स्त्री वाचक शब्दों का निरुक्त १२२-१२६ स्त्रियों के कुटिल दृश्य का वर्णन १३० मोहान्ध को उपदेश देना निरर्थक १३१ मोह की निरर्थकता १३२-१३५ धर्माचरण के लिये उपदेश धर्म का फल १३७-१३६ उपसंहार ६ संस्तारक प्रकीर्णक १-१५ संथारे (अन्तिम साधना) की महिमा संथारा करने वालों का अनुमोदन प्रशस्त संथारा ३३-३५ अप्रशस्त संथारा ३६-४३ प्रशस्त संथारा ४४-५० संथारे से लाभ یہ 67 m الله Page #959 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची गाथा २६ ५१-५५ ५६-८८ ८६-६० ६१-६२ ६३-६८ १६-१०२ ०३-१०६ ०७-१०८ १०६-११३ ११४-११६ ११७ ११८-१२२ १२३ यथार्थ संथारा अतीत में संथारा करनेवाली महान् आत्माओं का संक्षिप्त जीवन सागारी संथारा क्षमा याचना चिन्तन-मनन ममत्व त्याग क्षमा याचना संथारे से कर्म क्षय संथारा करनेवाले को उपदेश संथारा करने से कर्म क्षय तीन भव से मोक्ष संथारे की महिमा उपसंहार ७ गच्छाचार प्रकीर्णक महावीर वन्दना-आदि वाक्यउन्मार्गगामियों का भव भ्रमण श्रेष्ठ गच्छ में रहने का फल आचार्य लक्षण जिज्ञासा अधम आचार्य के लक्षण आचार्य अन्य के आचार्य समक्ष आलोचना करे श्रेष्ठ आचार्य निकृष्ट आचार्य श्रेष्ठ और निकृष्ट आचार्य निकृष्ट शिष्य प्रमादी श्रमण का उद्बोधन ८-६ १०-११ १२-१३ १४ १६ Page #960 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ६० प्रकीर्णक-सूची २०-२२ २३-२४ २५-२६ २७-२८ २६-३१ ३२-३६ mr mr m ४० ४१-४२ ४४-४५ श्रेष्ठ आचार्य निकृष्ट आचार्य श्रेष्ठ आचार्य निकृष्ट आचार्य कनिष्ट आचार्य का त्याग संविग्न-पाक्षिक मुनि (साधु-श्रावक से भिन्न तृतीय त्यागी वर्ग) निकृष्ट आचार्य का नाम भी न लेना आचार्य का कर्तव्य आज्ञा बिराधक आचार्य गच्छ लक्षण का प्रज्ञापन गीतार्थ उपासना अगीतार्थ परित्याग गीतार्थ आराधना अगीतार्थ परित्याग अश्रेष्ठ गच्छ का अनुगमन निषिद्ध श्रेष्ठ गच्छ से लाभ श्रेष्ठ मुनि के लक्षण आहार करने के छः कारण श्रेष्ठ गच्छ का वर्णन साध्वियों के अमर्यादित संसर्ग का निषेध श्रेष्ठ गच्छ का वर्णन उपाश्रय प्रमार्जन श्रेष्ठ गच्छ का वर्णन मूलगुण भ्रष्ट मुनि श्रेष्ठ गच्छ निकृष्ट गच्छ श्रेष्ठ गच्छ ४६-४६ ५१ ५२-५८ ६०-६२ ६३-७० ७१-७५ ७६ ७७-८४ ८६-८७ ८८-८९ ९० Page #961 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची ६३३ गाथा २१ ११७ ६१-६६ निकृष्ट गच्छ ६७-१०२ श्रेष्ठ गच्छ १०३ निकृष्ट गच्छ १०४-१०५ श्रेष्ठ गच्छ निकृष्ट गच्छ १०७-११६ निकृष्ट साध्वी गच्छ श्रेष्ठ साध्वी संघ ११८-१२२ निकृष्ट साध्वी संघ १२३ श्रेष्ठ साध्वी संघ १२४-१२६ असाध्वी लक्षण १२७-१२८ श्रेष्ठ साध्वी लक्षण १२६ निकृष्ट साध्वी संघ १३०-१३१ श्रेष्ठ साध्वी संघ १३२-१३४ निकृष्ट साध्वी लक्षण ८ गणिविद्या प्रकीर्णक आदि वाक्य नो प्रकार के बल विहार के लिए शुभाशुभ तिथियाँ शिष्य का निष्क्रमण तिथियों के नाम दीक्षा के लिए श्रेष्ठ तिथियां नो नक्षत्रों में गमन करना शुभ १२-१४ प्रस्थान के लिये उपयुक्त नक्षत्र निषिद्ध नक्षत्र १६-२० निषिद्ध नक्षत्रों का फल २१ पादपोपगमन करने के नक्षत्र * * * / * * * Page #962 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ८२ ९३४ प्रकीर्णक -सूची दीक्षा मुहूर्त में निषिद्ध नक्षत्र ज्ञान वृद्धि करने वाले नक्षत्र लोच के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र लोच के लिये अनिष्ट नक्षत्र क- दीक्षा के लिये श्रेष्ठ नक्षत्र ___ ख- गणी और वाचक पद देने के लिये श्रेष्ठ नक्षत्र स्थिर कार्य के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र शीघ्र कार्य संपादन के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र ज्ञान संपादन के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र ३०-३३ मृदु कार्यों के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र ३४-३५ तप प्रारम्भ करने के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र संस्तारक ग्रहण करने के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र ३७-४० संघ के कार्यों के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र ४१-४७ करण के नाम, शुभ कार्यों के लिए करण छाया मुहूर्त ५३-५५ शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ योग तीन प्रकार के शकुन ५७-६० तीन प्रकार के शकुनों में किये जाने वाले कार्य प्रशस्त और अप्रशस्त लग्न मिथ्या और सत्य निमित्त ७०-७३ तीन प्रकार के निमित्त निमित्त की सत्यता ७५-७६ प्रशस्त निमित्तो में प्रशस्त कार्य ७७-७८ अप्रशस्त निमित्त में सर्व कार्यों का निषेध ७६-८१ नव बलों में उत्तरोत्तर बलवान ८२ उपसंहार ४८-५२ Page #963 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ६७ ६३५ प्रकीर्णक-सूची ८ है देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक जिन वन्दना पति द्वारा भ० वर्द्धमान की स्तुति पत्नि का स्तुति श्रवण पति पत्नि की संयुक्त वर्धमान वंदना बत्तीस देवेन्द्रों के सम्बन्ध में पत्नि की जिज्ञासा बत्तीस देवेन्द्रों के सम्बन्ध में छः प्रश्न क- बत्तीस इन्द्र कौन २ से ? ख- बत्तीस इन्द्रों के रहने स्थान ? ग. बत्तीस इन्द्रों की स्थिति घ- बत्तीस इन्द्रों के अधिकार में भवन या विमान ङ- भवनों और विमानों की लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, वर्ण आदि च- बत्तीस इन्द्रों के अवधि ज्ञान का क्षेत्र भवनवासी देवों का वर्णन ११-१६ बीस भवनेन्द्रों के नाम २०-२७ भवन संख्या २८-३१ भवनेन्द्रों की स्थिति ३२-४२ भवनेन्द्रों के नगर और भवन ४३-४४ त्रायस्त्रिंशक देव, लोकपाल, परिषद और सामानिक देव, सब इन्द्रों के सामानिक देव (संख्या में) समान हैं । भवनेन्द्रों की अग्रमहीषियां ४६-५० भवनेन्द्रों के आवास स्थान ओर उत्पात पर्वत ५१-६५ भवनेन्द्रों का बल-वीर्य व्यन्तर देवों का वर्णन ६६-६७ आठ प्रकार के व्यन्तर देव ४५ Page #964 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ११७ ६३६ ६८-७२ व्यन्तर देवों के महद्धिक सोलह इन्द्र ७३ क- तीनों लोक में व्यन्तरेन्द्रों के स्थान ख- अधोलोक में भवनेन्द्रों के स्थान ७४-७८ ७६ ८०-८१ ८२ ८३-८६ ८७-२ ६३ ६४-६५ ६६ ६७ ६८-१०० १०१-१०४ १०५-१०८ १०६-११० १११-११२ ११३-११४ ११५-११७ व्यन्तरेन्द्रो के भवनों का जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट विस्तार व्यन्तरेन्द्रों की स्थिति ज्योतिषो देवों का वर्णन पांच ज्योतिषी देव ज्योतिषी देवों के विमानों का संस्थान धरणितल से ज्योतिषी देवों की ऊंचाई ज्योतिषी देवों के मण्डल, मण्डलों का आयाम - विष्कम्भ बाल्य परिधि ज्योतिषी देवों के विमानों को वहन करने वाले देवों की संख्या ज्योतिषी देवों की गति ज्योतिषी देवों की ऋद्धि ताराओं का अन्तर चन्द्र के साथ योग करने वाले नक्षत्र सर्व आभ्यन्तर, सर्व बाह्य, सर्वोपरि और सबसे नीचे भ्रमण करने वाले नक्षत्र सूर्य के साथ योग करने वाले नक्षत्र जम्बूद्वीप में चन्द्र आदि पांच ज्योतिषी देव लवण समुद्र में धातकी खण्ड में कालोद समुद्र में 31 33 12 " प्रकीर्णक-सूची 33 33 Page #965 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा १६० ६३७ प्रकीर्णक-सूची ११८-१२० पुष्करवर द्वीप में चन्द्र आदि पांच ज्योतिषी देव १२१-१२३ पुष्करार्ध द्वीप में १२४-१२६ मनुष्य लोक में , १२७ क- मनुष्य लोक के बाहर चन्द्र आदि पांच ज्योतिषी देव ख- ज्योतिषी देवों की गति का संस्थान १२८-१३६ ज्योतिषी देवों की पंक्तियाँ १३७ क- चन्द्र सूर्य और मण्डलों में प्रदक्षिणावर्त गति ख- नक्षत्र और ताराओं के अवस्थित मण्डल १३८-१३६ ज्योतिषों देवों की गति का मनुष्यों पर प्रभाव १४०-१४१ चन्द्र सूर्य का ताप क्षेत्र १४२-१४६ चन्द्र की हानि वृद्धि का कारण १४७-१४८ चर स्थिर ज्योतिषी देव १४६-१५२ मनुष्य क्षेत्र के चन्द्र सूर्य १५३ चन्द्र सूर्य का नक्षत्रों से योग १५४-१५६ क- चन्द्र सूर्य का अन्तर ख- सूर्य से सूर्य का अन्तर ग- चन्द्र से चन्द्र का अन्तर १५७-१५८ एक चन्द्र का परिवार १५६-१६२ ज्योतिषी देवों की स्थिति १६३-१६५ बारह देवलोकों के बारह इन्द्र अहमिन्द्र ग्रैवेयक देव १६७-१६८ ग्रैवेयक देवों में उपपात १६६-१७३ बारह देवलोकों की विमान संख्या १७४-१७६ वैमानिक देवों की स्थिति १८०-१८६ प्रैवेयक देव और अनुत्तर देवों की स्थिति १८७-१८८ विमानों के संस्थान १८६-१६० विमानों का आधार Page #966 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची ९३८ गाथा ४६ १६१-१९३ देवताओं में लेश्या १६४-१६८ देवताओं की अवगाहना १६६-२०२ देवताओं का प्रविचार (मैथुन) २०३ देवताओं की गन्ध २०४-२१७ विमानों की अवस्थिति २१८-२२० भवनों और विमानों का अल्प-बहुत्व २२१-२२४ अनुत्तर देवों का वर्णन २२५-२३२ देवताओं की आहारेच्छा और स्वासोच्छ्वास २३३-२४० देवताओं के अवधिज्ञान का क्षेत्र २४१-२४७ विमानों की ऊँचाई आदि का वर्णन २४८-२७३ देवताओं का सामान्य परिचय तथा प्रासादों का वर्णन ७४-२७१ ईषत्प्राग्भारा का वर्णन २८०-३०२ सिद्धों का वर्णन (औपपातिक के समान) जिनेन्द्र महिमा ३०७ उपसंहार मरण समाधि प्रकीर्णक मंगलाचरण, आदि वाक्य २-७ अभ्युद्यत मरण की जिज्ञासा ८-११ अभ्युद्यत मरण का कथन १२-१४ आलोचक है वह आराधिक है तीन प्रकार की आराधना १६-३५ दर्शन आराधक, आराधक का अल्प संसार ३६-३७ आहार करने के छ: कारण आहार न करने के छः कारण ३६-४३ आराधक के लाभ ४४-४६ पंडित मरण के लिये उपदेश WU २ ३०६ Page #967 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा १२८ ९३६ प्रकीर्णक-सूची आराधना से शुद्धि ४८-५२ शल्य रहित की शुद्धि ५३-५४ संवृत और असंतृत की निर्जरा शील और संयम से भाव शुद्धि विशुद्ध चारित्र से दुःख क्षय ५७-५८ निश्शल्य होने से विशुद्ध चारित्र ५६ पाँच संक्लिष्ट भावनाओं का त्याग ६० एक असंक्लिप भावना का समादर ६१ क- कन्दर्प भावना ६२ ख- किल्विषक भावना ६३ ग- अभियोगी भावना ६४ घ- आश्रवी भावना ६५ ङ. सांमोही भावना ६६ असंक्लिष्ट भावना से शुद्ध ६७-७७ बाल मरण वर्णन ७८ निश्शल्य आलोचक है वह आराधक है ७६-८५ आलोचना आदि चौदह प्रकार की विधि ८६-८७ क- आचार्य के गुण ख. अट्ठारह स्थान ग- आठ स्थान ८८-८९ उपस्थापना के दश स्थान ६०-६३ आचार्य के गुण १४-१२६ क- सशल्य है वह आराधक नहीं ख- निश्शल्य है वह आराधक है ग- आलोचना के दस दोष घ- ज्ञान प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करने का उपदेश १२७-१२८ बारह प्रकार के तप का आचरण Page #968 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकीर्णक-सूची ६४० गाथा २३६ १२६ स्वाध्याय की महिमा १३० श्रुतहीन का बाह्यतप १३१-१३३ नित्यभोजी ज्ञानी की अधिक निर्जरा वास्तविक अनशन १३५ अज्ञानी और ज्ञानी की निर्जरा में अन्तर १३६-१४३ ज्ञान की महिमा १४४-१४६ वहुश्रुत की महिमा १४७-१७५ ज्ञान और चारित्र से कर्मक्षय १७६-१८८ क- संलेखना की विधि ख- संलेखना के दो भेद १८६-२०८ कषाय-विजय, राग-द्वेष निग्रह २०६-२११ अप्रमाद का उपदेश २१२-२१४ उपधित्याग २१५-२१६ आत्मा का अवलम्बन २१७-२२१ प्रमाद प्रतिक्रमण मिथ्यात्व प्रतिक्रमण २२२-२३३ क- निश्शल्य आलोचना ख- आराधक-विराधक २३४-२३६ शुद्ध प्रत्याख्यान २३७-२३६ क- लोक में सर्वत्र जन्म-मरण ख- सर्व योनियों में जन्म-मरण Page #969 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ४ ८-8 पिण्ड नियुक्ति विषय-सूचि गाथा १ क- पिंड नियुक्ति के आठ भेद गाथा २ पिंड शब्द के पर्याय 'पिंड के चार अथवा छःनिक्षेप पिंड के छःनिक्षेप गाथा ६ नाम पिंड की व्याख्या गाथा स्थापना पिंड की व्याख्या गाथा द्रव्यपिंड के तीन भेद ख- प्रत्येक के नो भेद गाथा १०-११ क- पृथ्वीकाय के तीन भेद ख- सचित्त-सजीव-पृथ्वीकाय के दो भेद गाथा १२ मिश्र पृथ्वीकाय की व्याख्या गाथा १३ अचित्त-निर्जीव-पृथ्वीकाय गाथा १४-१५ अचित पृथ्वीकाय से प्रयोजन गाथा १६-१७ क. अप्काय के वेद, तीन भेद ख- सचित्त अप्काय के दो भेद गाथा मिश्र अप्काय गाथा मिश्र अप्काय के सम्बन्ध में तीन विभिन्न मत तीनों मतों का निराकरण आगम सम्मत मत का प्रतिपादन गाथा अचित्त अप्काय की व्याख्या गाथा २३ अचित्त अप्काय से प्रयोजन गाथा २४ क- वर्षाकाल के प्रारम्भ में वस्त्र धोने का विधान क- अन्य ऋतुओं में वस्त्र धोने का निषेध गाथा गाथा Page #970 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनिर्युक्ति-सूची गाथा गाथा गाथा गाथा २८ गाथा २६-३० क ख ९४२ गाथा ४५ २५ ग- अन्य ऋतुओं में वस्त्र धोने से लगनेवाले दोष वर्षाकाल के प्रारम्भ में वस्त्र न धोने से लगनेवाले दोष धोने योग्य उपधि का परिमाण आचार्य और ग्लान साधु के वस्त्र सभी ऋतुओं में धोने का विधान सदैव समीप रखने योग्य उपधि की विधि गाथा २६ २७ गाथा गाथा गाथा गाथा गाथा गाथा गाथा ३५-३६ क- तेजस्काय के तीन भेद गाथा गाथा ३१ ३२ ३३ ३४ गाथा अचित्त तेजस्काय गाथा वायुकाय के तीन भेद गाथा ३६-४० क- सचित्त वायु के दो भेद ख- अचित्त वायुकाय ४१ क- अचित्त वायुकाय की क्षेत्र एवं काल मर्यादा ख- मिश्र वायुकाय ३७ ३८ अन्य वस्त्रों की परीक्षा परीक्षा के पश्चात् धोने का विधान वस्त्र परीक्षा के सम्बन्ध में विभिन्न मत नवोदक लेने की विधि ४४ ४५ ४२ ४३ क वस्त्र धोने का क्रम वस्त्र धोने की विधि ख- सचित्त तेजस्काय के दो भेद ग- मिश्र तेजस्काय अचित्त वायुकाय से प्रयोजन वनस्पतिकाय तीन भेद ख- सचित्त वनस्पतिकाय के दो भेद मिश्र वनस्पतिकाय अचित्त वनस्पतिकाय Page #971 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४३ ४ गाथा पिण्ड नियुक्ति-सूची गाथा ८५ गाथा ४६ अचित्त वनस्पतिकाय से प्रयोजन गाथा ४७ द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय ओर पंचेन्द्रियों के तीन भेद तथा उनके शरीरों से प्रयोजन गाथा ४८-५० द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय से प्रयोजन गाथा ५१ पञ्चेन्द्रिय के तीन भेद गाथा ५२ देवता से प्रयोजन मिश्रपिंड के भंग गाथा मिश्रपिंड के उदाहरण गाथा ५५-५८ क्षेत्र पिंड का और कालपिड का वर्णन गाथा ५६-६६ भावपिंड का वर्णन गाथा ६७ अचित्त द्रव्यपिंड और प्रशस्त भावपिंड से प्रयोजन गाथा द्र व्यपिंड का सम्बन्ध गाथा ६६-७१ आहार और निर्वाण का कार्य-कारण भाव गाथा ७२ डि का उपसंहार और एषणा का प्रारम्भ गाथा ७३ एषणा के समानार्थक शब्द गाथा ७४ क- एषणा के चार भेद ख- द्रव्य और भाव एषणा के तीन भेद गाथा ७५-७६ क- एषणा गवेषणा, मार्गणा और उद्गोपना के उदाहरण ख- द्रव्य एषणा के तीन भेद गाथा ७७ भावैषणा के तीन भेद ७८ गवेषणा, ग्रहणषणा और ग्रासैषणा के क्रम की सार्थकता गवेषणा के चार भेद द्रव्य गवेषणा पर हरिण और हाथी का उदाहरण गाथा ८५ क- उद्गम शब्द के समानार्थक शब्द ख- उद्गम के चार भेद गाथा गाथा ७९ गाथा ८०-८४ Page #972 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्ड नियुक्ति-सूची १४४ गाथा ११५ गाथा ८६ द्रव्य और भाव उद्गम का स्वरूप गाथा ८७-६० द्रव्य उद्गम का उदाहरण गाथा ६१ क- दर्शन शुद्धि से चारित्र शुद्धि ख- उद्गम शुद्धि से चारित्र शुद्धि गाथा ६२-६३ सोलह उद्गम दोष गाथा ६४ आधाकर्म सम्बन्धि चार द्वार गाथा ६५ आधाकर्म के समानार्थक शब्द गाथा ६६ व्य आधा की व्याख्या गाथा ६७ भाव आधा की व्याख्या गाथा ६८ द्रव्य अध:कर्म की व्याख्या गाथा ६६ भाव अधःकर्म की व्याख्या गाथा १००-१०२ आधाकर्म से अधोगति गाथा १०३ आत्मघ्न की व्याख्या गाथा १०४ द्रव्य आत्मघ्न और भाव आत्मघ्न गाथा १०५ चारित्र के नाश से ज्ञान दर्शन का नाश तथा इस सम्बन्ध में निश्चय दृष्टि और व्यवहार दृष्टि गाथा १०६ क- द्रव्य आत्मकर्म ख- भाव आत्म कर्म के दो भेद गाथा १०७ भाव आत्मकर्म की व्याख्या. गाथा १०८-११० क- परकृत कर्म का आत्मकर्मरूप में परिणत होना. ख- कूट उपमा का जिनवचनों से विरोध. ग- भावकूट से कर्म बंध गाथा १११ आधाकम आहार ग्रहण करने से कर्म बंध. गाथा ११२ प्रतिसेवना. प्रतिश्रवणा. संवासन. और अनुमोदन की क्रमश: गुरूता लघुता. गाथा ११३ प्रतिसेवना आदि चार द्वार. गाथा ११४.११५ प्रतिसेवना की व्याख्या. Page #973 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा १६८ ६४५ पिण्डनियुक्ति-सूची गाथा प्रतिश्रवणा की व्याख्या. गाथा संवास और अनुमोदन की व्याख्या गाथा ११८-१२४ प्रतिसेवना और प्रतिश्रवणा के उदाहरण. गाथा १२५-१२६ संवास का उदाहरण. गाथा १२७-१२८ अनुमोदन का उदाहरण, गाथा १२६-१३० आधाकर्म शब्द के समानार्थक शब्दों की अर्थ विषयक चतुभंगी. गाथा १३१-१३२ चतुभंगी के उदाहरण. गाथा १३३-१३४ आधाकर्म शब्द के संबंध में चतुभंगी. गाथा १३५ आधाकर्म शब्द के समानार्थक शब्द. गाथा १३६ । __ आधाकर्म आहार ग्रहण करने से आत्मा की अधो गति. गाथा १३७ सामिक के निमित्त बनाहुआ आहार आधा कर्म है. गाथा १३८ साधर्मिक के बारह भेद. गाथा १३६-१४१ बारह प्रकार के लक्षण. गाथा १४२-१४३ नाम सार्मिक संबंधी कल्प्य अकल्प्य विधि. गाथा १४४ स्थापना सामिक और द्रव्य सार्मिक संबंधी विधि. गाथा १४५ क्षेत्र सार्मिक संबन्धी कल्प्य अकल्प्य विधि. गाथा १४६-११६ प्रवचन आदि सात पदों के इकबीस भंग और उनके उदाहरण. गाथा आधाकर्म का स्वरूप समझाने के लिए अशन आदि की व्याख्या. गाथा १६१ अशनादि सम्बन्धी चतुर्भगी. गाथा १६२-१६७ आधाकर्म अशन का उदाहरण गाथा १६८ आधाकर्म पेय का उदाहरण. Page #974 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनियुक्ति सूची गाथा १६६ गाथा १७०-१७१ गाथा १७२-१७६ गाथा १७७-१७८ गाथा १७६ गाथा १८० गाथा १८१-१८२ गाथा १८३-१८८ गाथा १८६ गाथा १६० गाथा १६१-१६४ गाथा १६५ गाथा १६६ गाथा १६७-२०३ गाथा २०४ - २०६ गाथा २०७ गाथा २०८ गाथा २०६ - २११ ९४६ आधाकर्म खादिम स्वादिम का उदाहरण. निष्ठित और कृत शब्द का अर्थ. वृक्ष की छाया के सम्बन्ध में कल्प्य अकल्पय का निर्णय. निष्ठित और कृत की चतुर्भंगी. अतिक्रमादि चार दोष. गाथा २११ आधाकर्म आहार के लिए निमंत्रण. क- आधाकर्म आहार ग्रहण करने में अतिक्रमादि दोष. ख- अतिक्रमादि दोषों का उदाहरण. आधाकर्म आहार ग्रहण करने में आज्ञाभंग आदि चार दोष. अकल्प्य आधाकर्म विषयक ५ द्वार. आधाकर्म अभोज्य है. अकल्प्य और अभोज्य के उदाहरण. आधाकर्म आहार से स्पृष्ट आहार भी अकल्प्य आधाकर्म आहारवाले पात्र में शुद्ध आहार भी अकल्प्य है. आधाकर्म आहार का विधि पूर्वक और अविधि पूर्वक त्याग प्रश्न द्वारा आधाकर्म आहार का निर्णय. आत्मशुद्धि का मूल आधार आत्म परिणाम, शुद्ध आहार लेने पर भी अप्रशस्त आत्मपरिणामों से अशुभ कर्मो का बन्ध शुद्ध आहार गवेषी को अशुद्ध आहार मिलने पर भी दोष नहीं. Page #975 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा २५० गाथा २१२-२१६ गाथा गाथा गाथा गाथा २२०-२२१ गाथा २२२-२२७ गाथा २२८ गाथा २२६-२३० गाथा २३१ २१७ २१८ २१६ गाथा गाथा गाथा २३४-२३६ गाथा २३७ गाथा २३८-२३६ २४० गाथा गाथा १४१-२४२ गाथा २४३ २३२ २३३ गाथा गाथा २४४ गाथा २४५-२४६ गाथा २४७-२४८ गाथा २५० ६४७ पिण्डनिर्युक्ति-सूची क- आज्ञा के आराधक का सदोष आहार भी निर्दोष ख- आज्ञा विराधक का निर्दोष आहार भी सदोष. आधाकर्म भोजी की दुर्गति का उदाहरण. औदेशिक आहार के दो भेद. विभाग औद्देशिक के बारह भेद. औघ औद्देशिक का उदाहरण. ओघ औद्देशिक आहार का ज्ञान. विभाग औद्देशिक औदेशिक आदि चार भेदों की व्याख्या. क- उदिष्ट औद्देशिक के दो भेद. ख- प्रत्येक भेद के चार चार भेद. २४६ - भावपूति के दो भेद अछिन्नद्रव्य औद्देशिक आहार. छिन्न द्रव्य औद्देशिक आहार. कल्प्य और अकल्प्य उदिष्ट आहार. उदिष्ट औदेशिक आहार. कृत औद्देशिक आहार. कर्म औद्देशिक आहार. कल्प्य और अकल्प्य कर्म औद्देशिक आहार. क पूतिकर्म के चार भेद. ख- द्रव्य पूतिकर्म का उदाहरण ग- भाव पूतिकर्म के दो भेद. द्रव्य पूर्ति की व्याख्या. द्रव्य पूर्ति का उदाहरण. भाव पूर्ति की व्याख्या. ख- बादर भावपूर्ति के दो भेद भक्त पान पूति की व्याख्या Page #976 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा गाथा २६६ ६४८ पिण्ड नियुक्ति - सूची २५१ उपकरण पूति के भंग गाथा २५२-२५६ मिश्र भक्त-पान पूति गाथा २५७-२६१ सूक्ष्मपूति की व्याख्या गाथा २६२ दो प्रकार के कार्य गाथा २६३-२६५ सूक्ष्मपूति का परिहार शक्य नहीं है । गाथा २६६-२६८ द्रव्यपूति के कल्प्य अकल्प्य का विधान गाथा २६६ । आधाकर्म और पूति की भिन्नता गाथा २७० आधाकर्म और पूतिकर्म के जानने की विधि गाथा २७१ मिश्रजात के तीन भेद गाथा २७२ यावथिक मिश्र जानने की विधि गाथा २७३ पाखंडी मिश्र और साधु मिश्र जानने की विधि गाथा २७४-२७५ अकल्प्य मिश्रजात की भयंकरता का उदाहरण गाथा २७६ पात्रशुद्धि की विधि गाथा २७७ स्थापना दोष के दो भेद । गाथा २७८ परस्थान स्थापना के अनेक भेद गाथा २७६ स्वस्थान स्थापना और परस्थान स्थापना के दो दो भेद गाथा २८० दो प्रकार के द्रव्य गाथा २८१-२८३ परंपरा स्थापित का उदाहरण गाथा २८४ प्राभृतिका गाथा २८५ क- प्राभृतिका के दो भेद ख- प्रत्येक प्राभृतिका के दो दो भेद गाथा २८६-२६० प्राभृतिका के उदाहरण गाथा २६१ प्राभृतिका आहार करनेवाले की दुर्गति गाथा २६२-२६७ प्रादुष्करण की व्याख्या गाथा २६८-२६६ क- प्रादुष्करण के दो भेद ख- पात्र शुद्धि Page #977 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनियुक्ति-सूची गाथा ३३६ गाथा ३००-३०२ प्रगटीकरण के उदाहरण गाथा ३०३-३०४ कल्प्य और अकल्प्य प्रकाश करण गाथा ३०५ पात्र शुद्धि गाथा ३०६ क- क्रीतकृत के दो भेद ख- प्रत्येक क्रीतकृत के दो दो भेद ग- परद्रव्य क्रीत के तीन भेद गाथा ३०७ : आत्मक्रीत के दो भेद गाथा ३०८ आत्मक्रीत दोष की व्याख्या गाधा ३०६-३११ क- परभाव क्रीत दोष की व्याख्या ख- परभाव क्रीत दोष के सहभावी तीन दोषों का उदाहरण गाथा ३१२-३१५ आत्मभाव क्रीत के अनेक भेद गाथा ३१६ प्रामित्य दोष के दो भेद गाथा ३१७-३२० लौकिक प्रामित्य दोष का उदाहरण गाथा ३२१ लोकोत्तर प्रामित्य के दो भेद गाथा ३२२ लोकोत्तर प्रामित्य क अपवाद गाथा ३२३ क- परिवर्तित दोष के दो भेद । ख- प्रत्येक परिवर्तित दोष के दो दो भेद गाथा ३२४-३२६ लौकिक परिवर्तित का उदाहरण गाथा ३२७-३२८ लोकोत्तर परिवर्तित की व्याख्या गाथा ३२६ क- अभ्याहत के दो भेद ख- प्रत्येक अभ्याहृत दोष के दो दो भेद गाथा ३३० नो निशीथ अभ्याहृत के भेदानुभेद गाथा ३३१-३३२ जलमार्ग अभ्याहृत के अनेक भेद गाथा ३३३-३३५ क- स्व ग्राम अभ्याहृत के दो भेद ख- नो गृहांतक अभ्याहृत के अनेक भेद गाथा ३३६ निशीथ अभ्याहृत की व्याख्या Page #978 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ३६२ ९५० पिण्डनियुक्ति-सूची गाथा ३३७-३४० परग्राम अभ्याहृत का उदाहरण गाथा ३४१-३४२ स्व ग्राम अभ्याहृत का उदाहरण गाथा ३४३ आचीर्ण अभ्याहृत के दो भेद गाथा ३४४ देश और देश-देश की परिभाषा गाथा ३४५ कल्प्य और अकल्प्य आचीर्ण अभ्याहृत गाथा ३४६ आचीर्ण अभ्याहृत के तीन भेद गाथा ३४७ क- उर्भिन्न के दो भेद ख- पिहित के दो भेद गाथा ३४८-३५६ पिहितोद्भिन्न और कपाटोद्भिन्न की व्याख्या और उदाहरण गाथा ३५७ मालापहृत के दो भेद गाथा ३५८-३६२ जघन्य मालापहृत और उत्कृष्ट मालापहृत के उदाहरण गाथा ३६३ मालापहृत के तीन भेद गाथा ३६४ मालापहृत का अपवाद गाथा ३६५ अनुच्चो त्क्षिप्त और उच्चोरिक्षप्त मालापहृत गाथा ३६६ आच्छेद्य के तीन भेद गाथा ३६७-३७० प्रभु आच्छेद्य का उदाहरण गाथा ३७१-३७३ स्वामी आच्छेद्य का उदाहरण गाथा ३७४-३७६ स्तेन आच्छेद्य का उदाहरण गाथा ३७७ अनिसृष्ट के दो भेद गाथा ३७८-३८२ साधारण अनिसृष्ट का उदाहरण गाथा ३८३.३८४ भोजन अनिसृष्ट के दो भेद गाथा ३८५-३८७ कल्प्य और अकल्प्य अनिसृष्ट गाथा ३८८-३८६ अध्यवपूरक के तीन भेद गाथा ३६०-३६१ कल्प्य और अकल्प्य अध्यवपूरक गाथा ३६२ उद्गम के दो भेद Page #979 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनिर्युक्ति-सूची गाथा ३६३ गाथा ३६४ गाथा ३६५-३६६ गाथा ३६७-४०० गाथा ४०१ गाथा ४०२ गाथा ४०३ गाथा ४०४ गाथा ४०५ गाथा ४०६ गाथा ४०७ गाथा ४०८-४०६ गाथा ४१० गाथा ४११ गाथा ४१२-४२० गाथा ४२१-४२७ गाथा ४२८ गाथा ४२६ गाथा ४३० गाथा ४३१ गाथा ४३२ ५१ अविशोधि कोटि का उद्गम अविशोधि कोटि उद्गम के दो भेद विशोधिकोटि उद्गम के चार भेद विशोधि कोटि की चतुर्भगी कोटिकरण के दो भेद क ख- उद्गम कोटि के छः भेद विशोधि कोटि के अनेक भेद उद्गम और उत्पादन की भिन्नता क- उत्पादन के चार भेद ख- द्रव्य उत्पादना के तीन भेद ग- भाव उत्पादना के सोलह भेद सचित्त द्रव्योत्पादना क- अचित्त द्रव्योत्पादना ख- मिश्र द्रव्योत्पादना भाव उत्पादना के दो भेद अप्रशस्त भावोत्पादना के सोलह भेद क- पांच प्रकार की धात्रियां ख- प्रत्येक धात्री के दो दो भेद धात्री शब्द की व्युत्पत्ति गाथा ४३२ क्षीर धात्री दोष का वर्णन मज्जन धात्री आदि शेष धात्री दोष दूती दोष के दो भेद क- प्रत्येक दूती दोष के दो दो भेद ख- छन्न दूती के दो भेद स्वग्राम और परग्राम प्रकट दूती स्व ग्राम-परग्राम लोकोत्तर छन्न दूती स्व ग्राम लोकिक - लोकोत्तर छन्न दूती Page #980 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ४६४ ९५२ पिण्डनियुक्ति-सूची गाथा ४३३-४३४ प्रगट परग्राम दूती का उदाहरण गाथा ४३५ निमित्त दोष गाथा ४३६ निमित्त दोष का उदाहरण ' गाथा ४३७ आजीविका के पांच भेद गाथा ४३८ पांच भेदों की व्याख्या गाथ। ४३९-४४० क- जाति उपजीविका ख- जाति उपजीविका का उदाहरण गाथा ४४१ कुल आजीविका गाथा ४४२ शिल्प आजीविका गाथा ४४३ पांच प्रकार के वनीपक गाथा ४४४ वनीपक शब्द का निरुक्त गाथा ४४५ पांच प्रकार के श्रमण गाथा ४४६ श्रमण वनीपक गाथा ४४७ श्रमण वनीपक की दोष रूपता गाथा ४४८ ब्राह्मण वनीपक गाथा ४४६ कृपण वनीपक गाथा ४५० अतिथि वनीपक गोथा ४५१-४५२ श्वान वनीपक गाथा ४५३ ब्राह्मण वनीपक आदि की दोष रूपता गाथा ४५४ काकादि वनीपक गाथा ४५५ अपात्र प्रशंसा दोष गाथा ४५६ क- चिकित्सा दोष ख- चिकित्सा के तीन भेद गाथा ४५७-४५६ चिकित्सा के तीनों के भेदों की व्याख्या गाथा ४६० चिकित्सा में दोषों की संभावना गाथा ४६१ क्रोधादि चार प्रकार के पिण्ड गाथा ४६२-४६४ क्रोधपिण्ड का उदाहरण Page #981 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनिर्युवित सूची गाधा ४६५-४७३ गाथा ४७४-४८० गाथा ४८१-४८३ गाथा ४८४ गाथा ४८५ गाथा ४८६ गाथा ४८७ गाथा ४८८ गाथा ४८६ गाथा ४६० गाथा ४६१ गाथा ४६२ गाथा ४६३-४६६ गाथा ५०० गाथा ५०१ गाथा ५०२ गाथा ५०३-५०५ गाथा ५०६-५०७ गाथा ५०८-५०६ गाथा ५१० ५११ गाथा ५१२ गाथा ५१३ गाथा ५१४ गाथा ५१५ ६५३ मानपिण्ड का उदाहरण मायापिण्ड का उदाहरण लोभविण्ड का उदाहरण क- संस्तव के दो भेद ख- प्रत्येक भेद के दो दो भेद पूर्व संस्तव और पश्चात् संस्तव परिचय करने की विधि पूर्व संस्तव का उदाहरण पश्चात् संस्तव का उदाहरण पूर्व-पश्चात् संस्तव के दोष वचन संस्तव की व्याख्या पूर्व संस्तव की व्याख्या पश्चात् संस्तव की व्याख्या विद्या और मंत्र दोष के उदाहरण गाथा ५१५ क- चूर्ण योग और मूलकर्म दोष ख- चूर्ण योग और सूलकर्म के उदाहरण चूर्ण दोष योग के दो भेद आहार्य पाद-लेपन योग का उदाहरण भूलकर्म का उदाहरण विवाह दोष का उदाहरण गर्भपात का उदाहरण मूलकर्म दोष की दोष रूपता ग्रहणैषणा की विशुद्धि गवेषणा और ग्रहणषणा की भिन्नता का कथन क- शंकित और अपरिणत ए दो दोष साधु स्वयं लगाता है Page #982 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ५३४ १५४ पिण्डनियुक्ति-सूची ख- शेष आठ दोष गृहस्थ लगाते हैं गाथा ५१६ क- ग्रहणैषणा के चार निक्षेप ख- द्रव्य ग्रहणषणा का उदाहरण ग- भाव ग्रहोषणा के दस भेद गाथा ५१७-५१६ द्रव्य ग्रहणैषणा का उदाहरण गाथा ५२० अप्रशस्त भाव ग्रहणषणा के दस भेद गाथा ५२१ क- शंकित दोष की चतुर्भगी ख- एक भंग शुद्ध है शेष भंग अशुद्ध हैं गाथा ५२२ सोलह उद्गम दोष और नव म्रक्षितादि दोष ये २५ दोष गाथा ५२३ उपयोग युक्त छद्मस्थ श्रुतज्ञानी का लिया हुआ सदोष आहार भी शुद्ध है गाथा ५२४ श्रुतज्ञानी द्वारा लाए हुए आहार का केवली द्वारा ग्रहण करना गाथा ५२५ श्रुत के अप्रामाण्य होने पर चारित्र आराधना का व्यर्थ होना गाथा ५२६-५२८ ग्रहण और परिभोग सम्बन्धी चतुर्भगी गाथा ५२६ सर्व दोषों की मूल शंका गाथा ५३० एषणीय और अनेषणीय का मूल आधार शुद्धा शुद्ध परिणाम गाथा ५३१ क- म्रक्षित के दो भेद ख- सचित म्रक्षित के तीन भेद ग- अचित म्रक्षित के दो भेद गाथा ५३२ अचित म्रक्षित कल्प्य और अकल्प्य गाथा ५३३ सचित पृथ्वीकाय म्रक्षित के दो भेद गाथा ५३४ क- सचित अप्काय म्रक्षित के चार भेद ख- सचित वनस्पतिकाय म्रक्षित के चार भेद Page #983 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ५५७ ६५५ पिण्डनियुक्ति-सूची गाथा ५३५ तेजस्काय वायुकाय और त्रसकाय म्रक्षित का निषेध गाथा ५३६ ख- प्रारम्भ के तीन भंग अशुद्ध और एक भंग शुद्ध गाथा ५३७ क- अचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित की चतुर्भगी ख- अहित का ग्रहण और गहित का निषेध गाथा ५३८ अहित म्रक्षित का निषेध गाथा ५३६ गहित म्रक्षित का निषेध गाथा ५४० क- निक्षिप्त के दो भेद ख- प्रत्येक भेद दो-दो भेद गाथा ५४१ पृथ्वीकाय म्रक्षित के ६ भेद इसी प्रकार शेष पांच काय म्रक्षित के ६-६ भेद सब मिलकर षटकाय म्रक्षित के भेद गाथा ५४२-५४३ सचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित के भंगों का वर्णन गाथा ५४४ सचित्त पृथ्वीकाय म्रक्षित के ४३२ भांगे बनाने की विधि गाथा ५४५-५४८।। कल्प्य और अकल्प्य म्रक्षित सचित्त गाथा ५४६ तेजस्काय म्रक्षित के सात भेद गाथा ५५०-५५१ सात भेदों की व्याख्या गाथा ५५२-५५३ अचित्त तेजस्काय म्रक्षित के यतनापूर्वक लेने की विधि गाथा ५५४.५५५ क- सोलह भंगों का विवरण ख- प्रथम भंग शुद्ध और शेष भंग अशुद्ध गाथा ५५६ क. अत्युष्ण इक्षुरस आदि लेने से दो प्रकार की विराधना ख- वायुकाय निक्षिप्त के दो भेद गाथा ५५७ क- वनस्पतिकाय और त्रसकाय निक्षिप्त का वर्णन ख- अनंतर निक्षिप्त लेने का निषेध Page #984 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनियुक्ति-सूची गाथा ५८६ ग- परम्पर निक्षिप्त लेने का निषेध गाथा ५५८ सचित अचित्त और मिश्र पिहित की चतुर्भगो गाथा ५५६ अवान्तर भंग ४३२ बनाने की विधि गाथा ५६०-५६१ अनन्तरा पिहित और परंपरा पिहित का वर्णन गाथा ५६२ अचित्त पिहित की चतुभंगी गाथा ५६३ क- सचित्त अचित मिश्र और साधारण से संहृत रन- तीन चतुभंगी गाथा ५६४ चार सौ बत्तीस अवान्तर भंग गाथा ५६५ संहृत की व्याख्या गाथा ५६६ सचित्त अचित्त की चतुर्भगी। गाथा ५६७ आई और शुष्क की चतुभंगी गाथा ५६८ अल्प और अधिक की चतुर्भं गी गाथा ५६६-५७१ कल्प्य और अकल्प्य संहृत की चतुर्भंगी गाथा ५७२-५७७ दायक के चालीस भेद गाथा ५७८ क- अपवाद में २५ दायकों से लेना ख- पन्द्रह दायकों से अपवाद में भी न लेना गाथा ५७९ बालक से आहारादि लेने का निषेध गाथा ५८० वृद्ध से आहारादि लेने का निषेध गाथा ५८१ मत्त और उन्मत्त से आहारादि लेने का निषेध गाथा ५८२ कम्पित हाथवालों से और ज्वर ग्रस्त से आहा रादि लेने का निषेध गाथा ५८३ अंध और गलित कूष्ट वाले से आहारादिक लेने का निषेध गाथा ५८४ पादुका पहने हुए से, बद्ध से और हस्तपाद छिन्न से आहारादि लेने का निषेध गाथा ५८५ नपुंसक के हाथ से आहारादि लेने का निषेध गाथा ५८६ भिणी और बाल वत्सा से आहारादि लेने का Page #985 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनियुक्ति-सूची ६५७ गाथा ६२२ गाथा ५८७ गाथा ५८८ भोजन करती हुई से तथा मंथन करती हुई से आहारादि लेने का निषेध आठ प्रकार की निषेध दातृयों से आहारादि लेने का निषेध पांच प्रकार की दातृयों से आहारादि लेने का निषेध षटकाय व्यग्रहस्ता में आहारादि लेने का था ५८६-५६० गाथा ५६१ निषेध गाथा ५६२ इस संबंध में एक आचार्य का मत गाथा ५६३ दो प्रकार की दातृयों से आहारादि लेने का निषेध गाथा ५६४ साधारण तथा चोरी की वस्तु लेने का निषेध गाथा ५६५ प्राभृतिका अपाय और स्थापित द्रव्य लेने का निषेध गाथा ५९६ उपयोग युक्त और उपयोग रहित दाता की व्याख्या गाथा ५७.६०४ निषिद्ध दाताओं से अपवाद में आहारादि लेने का विधान गाथा ६०५-६०८ मिश्र द्रव्यों के अनेक भंग गाथा ६०६ क- अपरिणत द्रव्य के भेद ख- द्रव्य अपरिणत के ६ भेद गाथा ६१० द्रव्य अपरिणत की व्याख्या गाथा ६११ भाव अपरिणत दाता गाथा ६१२ भाव अपरिणत ग्रहिता गाथा ६१३-६२२ क- लेपकृत द्रव्य लेने का विधान ख- लेपकृत द्रव्य के संबंध में प्रश्नोत्तर Page #986 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गाथा ६५४ ९५८ पिण्ड नियुक्ति-सूची गाथा ६२३ गाथा ६२४ गाथा ६२५ गाथा ६२६ गाथा ६२७ गाथा ६२८ गाथा ६२६ गाथा ६३०-६३३ गाथा ६३४ गाथा ६३५ अलेपवाले द्रव्य अल्प लेपवाले द्रव्य बहु लेपवाले द्रव्य संसृष्ट, असंसृष्ट, सावशेष, और निरवशेष के आठ भंग क- छदित की तीन चतुर्भगी ख- चार सौ बत्तीस अवान्तरभंग छदित ग्रहण करने से लगनेवाले दोष क. ग्रासषणा के चार निक्षेप ख- द्रव्य ग्रासैषणा का उदाहरण ग- भाव ग्रासघणा के पांच भेद द्रव्य ग्रासैषणा के दो उदाहरण ग्रासैषणा का उपदेश क- भाव ग्रासैषणा के दो भेद ख- अप्रशस्त भाव ग्रासैषणा के पांच भेद क- सयोजना के दो भेद ख- द्रव्य संयोजना के दो भेद बाह्य संयोजना की व्याख्या भाव संयोजना की व्याख्या द्रव्य संयोजना के अपवाद आहार का प्रमाण प्रमाण दोष के पांच भेद अल्पहार के गुण हित अहित की व्याख्या मिताहार की व्याख्या काल के तीन भेद शीतकाल उष्णकाल और साधारण काल में गाथा ६३६ गाथा ६३७-६३८ गाथा ६३६ गाथा ६४०-६४१ गाथा ६४२-६४३ गाथा ६४४-६४७ गाथा ६४८ गाथा ६४६ गाथा ६५० गाथा ६५१ गाथा ६५२-६५४ Page #987 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिण्डनियुक्ति-सूची ६५९ गाथा ६७१ गाथा ६५५ गाथा ६५६-६५६ गाथा ६६० गाथा ६६१ आहार और पानी के विभाग सांगार और सधूम दोष अंगार और धूम की व्याख्या, आहार करने का प्रयोजन क- आहार करने के ६ कारण ख- आहार न करने के ६ कारण आहार करने के ६ कारणों का विवेचन आहार त्यागने का उपदेश आहार त्यागने के ६ कारणों का विवेचन एषणा के सेंतालीस दोष उपसंहार गाथा ६६२-६६४ गाथा ६६५ गाथा ६६६-६६८ गाथा ६६६ गाथा ६७०-६७१ जस्सारद्धा एए कहवि समत्तंति विग्घर हियस्स । सो लक्खिज्जइ भव्वो, पुव्वरिसी एवं भासंति ।। तम्हा जिणपण्णत्ते, अणंतगमपज्जवेहि संजुत्ते । सज्झाए जहाजोगं, गुरुपसाया अहिज्झिज्जा ।। Page #988 -------------------------------------------------------------------------- ________________ مواج Page #989 -------------------------------------------------------------------------- ________________ णमो लोहियाणं महा निशीथ सूत्र का विषय - निर्देशन परिशिष्ट-१ पं० दलसुखभाई मालवणिया के सौजन्य से डा० ऋषभकुमार द्वारा प्राप्त अन्य अनेक उपयोगी परिशिष्ट अनुयोग शब्द सूची के साथ प्रकाशित होंगे । Page #990 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #991 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महानिसीह - सुयक्खंध ( महानिशीथ श्रुतस्कन्ध ) यह ग्रंथ भी मुद्रित नहीं हुआ है । मुनिराज श्री पुण्यविजयजी के द्वारा तैयार की गयी प्रेस-कापी पर से यह विवरण तैयार किया गया है । पृष्ठ पृ० पृ० पृ० पृ० पृ० पृ० प्रथम अध्ययन 'सल्लुद्धरण' १ शास्त्र का प्रयोजन आरम्भ में तीर्थ और अर्हतों को नमस्कार । तत्पश्चात् 'सुयं में' वाक्य से विषय प्रारम्भ । तुरन्त ही ऐसा कथन कि छद्मस्थ साधु और साध्वी महानिशीथ श्रुतस्कन्ध के अनुसार आचरण करने वाले हों तो एकाग्रचित्त होकर आत्मा में अर्भिरमण करते हैं । २ वैराग्य वर्धक गाथाएँ जिनमें निःशल्यता प्राप्त करने पर भार दिया है। शार्दूलविक्रीडित छन्द का प्रयोग - ( गाथा १२ ) ४ 'हयं नाणं' इत्यादि आवश्यक नियुक्ति की उद्धृत गाथाएँ ( गाथा ३५ इत्यादि ) ६ शास्त्रोद्धार की विधि प्रतिमा-वंदन और श्रुतदेवता विद्या का लेखन – इससे मंत्रित होकर सोने स्वप्न की पर सफलता ६ निःशल्य होकर सबको क्षमापना करना । ७ इससे केवल की भी प्राप्ति ७ दूषित आलोचना के दृष्टांत ( गाथा ६४ ) ( गाथा ७३ आदि) Page #992 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महानिशीथ-सूची अ० ३ पृ० १० मोक्ष प्राप्त करनेवाली निःशल्य' श्रमणियों के नाम पृ० १४ अपने अपराध छुपाने वालों की दुर्गति पृ० १६ दशवकालिक की गाथा (गाथा १६६) प्रथम अध्ययन के अंत में "मैंने इसे अच्छा नहीं लिखा ऐसा मुझ पर दोष नहीं दिया जाय क्योंकि मेरे समक्ष जो आदर्श प्रति है पर त्रुटि है ।"सा लिखा हैं । द्वितीय अध्ययन 'कम् विनामवागरण' प्रथम उद्देश (पर ३० में सम्पूर्ण हुआ है) (द्वितीय से पंचम उद्देश के प्रयन् लुप्त मालूम होता है) पृ० २० जीवों का दुःख-वर्णन छठा उद्देश पृ० २६ शारीरिक और अन्य दुःसी का वर्णन । आश्रवद्वार के निरोध से दुःखों का अन्त सातवाँ उद्देश पृ० २६ स्त्रीवर्जन का उपदेश स्त्रीवर्जन सम्बन्धी गौतम-महावीर संवाद पृ० ३७ अधमादि पुरुषों की स्त्री अभिलाषा तथा स्त्रियों के काम राग का वर्णन पृ. ४५ परिग्रह दोष श्रमण और श्रावक धर्म के दो पंथ तृतीय अध्ययन (तृतीय उद्देश) प्रारंभ में लिखा है कि उपर्युक्त दोनों अध्ययनों का समावेश सामान्य वाचना में है इसके बाद के चार अध्ययन (३-६) योग्य के लिए ही है । अयोग्य ब्यक्ति के लिए नहीं है Page #993 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ३ ६६५ महानिशीथ-सूची पृ. ४६ पृ. ५० bi bi bi bio bi bi bi पृ. ५१ पृ. ५२ पृ. ५४ प्र. ५७ पृ. ६३ पृ. ६८ पृ. ७० पृ. ७० इन चार अध्ययनों के लिए निर्दिष्ट तपस्या सांगोपांग श्रुत का सार—ये चार अध्ययन हैं सभी श्रेय में विघ्न होता है अतएव मंगल करणीय हैं मंत्र, तंत्र, आदि अनेक विद्याओं के नाम पांच मंगलों के उपधान का प्रश्न उपधान विधि नमस्कार सूत्र के पदादि (देखिए "नमस्कार स्वाध्याय' पृ० ६०, ८१) (यह पुस्तक बंबई से प्रकाशित है) नमस्कार सूत्र का अर्थ जिनपूजा की चर्चा तीर्थंकर स्तन.' में वर्धमान की कथा के प्रसंगों का संक्षेप पंचमंगल की नियुक्ति भाष्य और चूणि का उल्लेख “ये सब व्युछिन्न हो गये थे। वज्रस्वामी ने उद्धार कर मूल सूत्र में लिखा', है । "आचार्य हरिभद्र द्वारा खंडित प्रति के आधार से उद्धार हुआ है त्रुटित मालूम पड़े तो दोष नहीं देना।"--- ऐसा उल्लेख है सिद्धसेन दिवाकर, वुड्डवाई, (वृद्धवादी), जक्खसेण, (यक्षसेन)देव गुप्त, यशोवर्धन क्षमाश्रमण के शिष्य रविगुप्त, नेमिचन्द्र, जिनदास गणि क्षमाश्रमण, सत्यश्री प्रमुख युगप्रधान आचार्यों द्वारा महानिशीथ का बहुत मान हुआ है पंचनमस्कार के पश्चात् इरियावहिय आदि कहना--- ऐसा निर्देशक्रम से द्वादश अंगों की भी तपस्या विधि और उससे लाभ इत्यादि (पृ० ८६ में तृतीय उद्देश समान ऐसा उल्लेख आता है किन्तु प्रथम-दूसरे के विषय में कोई निर्देश नहीं है) पृ. ७० bi ७१ पृ. ७१ पृ. ७४ Page #994 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ५ पृ. ல் पृ. bibi bibi पृ. ८६ ६ १ हद पृ. १०० पृ. ८६ पृ. ८६ पृ. १०२ पृ. १०२ पृ. १०३ पृ. १०६ पृ. १०६ पृ. ११६ पृ. ११७ पृ. ११८ ६६६ महानिशीथ-सूची यहाँ लिखा है कि यहाँ आदर्शप्रति भ्रष्ट हैं अतएव तज्य यहाँ अन्य वाचनाओं से संशोधन करलें अंत में लिखा है - तइयज्झयणं ॥ उद्देशा १६ ।। चतुर्थ अध्ययन कुसंग के दृष्टान्तरूप सुमति का कथानक साधुओं के कितनेक शिथिलाचारों की गणना प्रश्नव्याकरण वृद्ध विवरण का उल्लेख शिथिलाचार के समर्थन में दोष शिथिलाचार से व्रतभंग चौथे अध्ययन का सार यह है संसार होता है और कुशील मिलती है । कि कुशील संसर्ग से अनंत संसर्ग छोड़नेवाले की सिद्धि हरिभद्र का मत है कि चौथे अध्याय के कितने ही आलापक श्रद्धा योग्य नहीं हैं, परन्तु वृद्धवाद के अनुसार इसमें शंका नहीं करनी चाहिए । स्थानांग आदि में कहीं भी इस अध्ययनगत मूल बात का समर्थन नहीं किया गया है यह भी हरिभद्राचार्य ने लिखा है । पंचम अध्ययन - णवणीयसारं गच्छ में कैसे रहना- इसकी चर्चा गच्छ की मर्यादा दुप्पसह आचार्य तक रहेगी । गच्छ के स्वरूप का वर्णन, और तत्कालीन शिथिलाचारों का उल्लेख अंतिम होनेवाले साधु साध्वी, श्रावक और श्राविका इन चार द्वारा मर्यादा पालन | सज्जंभव ( शय्यंभव ) को आसन्नकालीन बताया गया है। तीर्थयात्रा से साधु का असंयम Page #995 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महानिशीथ-सूची ९६७ अ०६ पृ० १२६ कल्की के समय में "सिरिप्पभ' अनगार का प्रादुर्भाव पृ० १२७ योग्य-अयोग्य अणगार का विवेक पृ० १३३ दस आश्चर्य का वर्णन पृ० १३६ द्रव्यस्तव करने वाला असंयत पृ० १३८ जिनालयों का संरक्षण आवश्यक पृ० १३६ उसके जीर्णोद्धार संबंधी चर्चा, पृ० १३६ सावधाचार्य का महानिशीथ की ६३वीं गाथा की व्याख्या करने में हिंचकिचाना। कारण यह था कि किसी समय आर्या ने नमस्कार करते समय उनका स्पर्श किया था। पृ० १४२ उत्सर्ग-अपवाद मार्ग का अयोग्य के समक्ष निरूपण करने के कारण उन्होंने (सावधाचार्य ने) अनंत संसार बाँधा तथा उनके अनेक भव षष्ठ अध्ययन-गीयत्थ विहार पृ० १४७ दशपूर्वी नंदिषेण वेश्यागृह में पृ० १४८ इसमें दोष-सेवन होने पर गुरु को लिंग (वेष) सौंप देना और प्रायश्चित्त करना—इसका समर्थन. पृ० १४२ प्रायश्चित्त की विधि पृ० १४५ मेघमाला का दृष्टांत पृ० १४६ आरंभ-त्याग का उपदेश पृ० १४७ आरंभ-त्याग की अशक्यता के विषय में ईसर का दृष्टान्त, पृ० १४८ ईसर गौसालक हुआ यह निरूपण पृ० १४६ रज्जा आर्यिका का दृष्टांत प्राशूक पानी की निंदा के कारण दुविपाक पृ० १६३ अगीतार्थ के विषय में लक्षणार्या का दृष्टान्त द्वितीय चलिका पृ० १७७ विधिपूर्वक धर्माचरण की प्रशंसा Page #996 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अ० ६ चू० २ १८१ १८३ १८४ १८४ १६० १६० १९४ १६८ २०१ २०२ २०८ २२० ६६८ चैत्यवंदन संबंधी प्रायश्चित्त स्वाध्याय में बाधा देने वाले के लिये प्रायश्चित्त प्रतिक्रमण तथा पच्चुप्पेहा के प्रायश्चित्त पारिष्ठापनिका के तथा मुहणंतग के प्रायश्चित्त ज्ञानग्रहण सम्बन्धी प्रायश्चित्त भिक्षा सम्बन्धी प्रायश्चित्त "धम्मो मंगल" गाथा प्रायश्चित्त सूत्र के विच्छद की चर्चा विद्या मंत्रों की चर्चा जो जलादि से रक्षा करता है प्रायश्चित्त विशेष की चर्चा आलोचनादि प्रायश्चित्त हिंसा सम्बन्धी सुसढ की कथा यतनारहित रहने से संसार के विषयों में राजकुल बालिका की कथा २३७ सुसढ सिज्ज श्री का पुत्र था - यह निर्देश २४१-२४१ "त्ति बेमि" से समाप्ति । ५४५४ ग्रन्थाग्र Qugus! महानिशीथ सूची Page #997 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपाध्याय कविरत्न श्री अमरचन्दजी महाराज का अभिमत समवायांग सूत्र का प्रस्तुत संस्करण अपनी शैली का अनूठा संस्करण है । शुद्ध मूल पाठ, मूलस्पर्शी हिन्दी अनुवाद और विभिन्न परिशिष्ट - ऐसा लगता है, समवाय का विचार मन्थन काफी उत्कृष्ट स्थिति पर पहुंच गया है । यह संस्करण जहाँ सर्व साधारण आगम-स्वाध्यायी सज्जनों के लिए उपयोगी है, वहाँ आधुनिक शोधदृष्टि के विवेचक विद्वानों के लिए भी परमोपयोगी है । आगमों के तुलनात्मक अध्ययन की दिशा में यह कदम चिरस्मरणीय रहेगा । सम्पादक मुनिश्री कन्हैयालालजी 'कमल' मेरे चिर परिचित स्नेही मुनि हैं । उनकी आगम अध्ययन के प्रति सहज अभिरुचि का और संपादन शैली की नई दृष्टि का मैं प्रारम्भ से ही प्रशंसक रहा हूं साम्प्रदायिक दुराग्रह से उन्मुक्त रहकर सत्य का सत्य के रूप में समादर क्रना लेखन की सर्व प्रथम अपेक्षा है, और इस अपेक्षा की पूर्ति से मुनि श्री को प्रस्तुत संकरण में उल्लेखनीय सफलता मिली है । अस्वस्थ स्थिति में सांगोपांग अवलोकन नहीं करपाया हूं, यत्र तत्र विहंगम दृष्टि-निक्षेप ही हुआ है, फिरभी जो देखा गया है, तदर्थ संपादक मुनि श्री को शत शत साधुवाद | - उपाध्याय अमर मुनि . Page #998 -------------------------------------------------------------------------- _